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खुरपका

पशुओं में मुँहपका व खुरपका रोग के लक्षण व उपचार

पशुओं में मुँहपका व खुरपका रोग के लक्षण व उपचार

मुँहपका व खुरपका रोग या मुँह खुर रोग विषाणु द्वारा होने वाला रोग है। गाय, भैंस, बकरी व भेड़ में अत्यधिक तेजी से फैलने वाला रोग है।

लक्षण

मुँहपका व खुरपका रोग या मुँह खुर रोग विषाणु द्वारा होने वाला रोग है। गाय, भैंस, बकरी व भेड़ में अत्यधिक तेजी से फैलने वाला रोग है। इस रोग के आने पर पशु को तेज बुखार हो जाता है। बीमार पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर नीचे छाले बनना और खुरों के मध्य की जगह पर छोटे-छोटे छाले बनना जिससे पशु लंगड़ाता है। बाद में ये छाले फैल जाते हैं, और उनमें जख्म हो जाता है। ऐसी स्थिति में पशु जुगाली करना बंद कर देता है, मुंह से तमाम लार गिरती है। पशु सुस्त पड़ जाते हैं। कुछ भी नहीं खाता-पीता है, खुर में जख्म होने की वजह से पशु लंगड़ाकर चलता है। पैरों के जख्मों में जब कीचड़ मिट्टी आदि लगती है, तो उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और उनमें बहुत दर्द होता है। पशु लंगड़ाने लगता है। दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन एकदम गिर जाता है। वे कमजोर होने लगते हैं, समय पाकर व इलाज होने पर यह छाले व जख्म भर जाते हैं। परंतु संकर पशुओं में यह रोग कभी-कभी मौत का कारण भी बन सकता है। गर्भवती पशुओं में गर्भपात की संभावना बनी रहती है। 

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सावधानी

प्रभावित पशु को साफ एवं हवादार स्थान पर अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए। पशुओं की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी हाथ-पांव अच्छी तरह साफ करके ही दूसरे पशुओं के संपर्क में जाना चाहिए। प्रभावित पशु के मुँह से गिरने वाले लार एवं पैर के घाव के संपर्क में आने वाले वस्तुओं पुआल, भूसा, घास आदि को जला देना चाहिए या जमीन में गड्ढा खोदकर चूना के साथ गाड़ दिया जाना चाहिए।

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उपचार

समय समय पर पशुओं का टीकाकरण कराते रहना चाहिए। रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम एवं पीपल के छाले का काढ़ा बनाकर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए। प्रभावित पैरों को फिनाइल-युक्त पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर मक्खी को दूर रखने वाली मलहम का प्रयोग करना चाहिए। मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात 1 ग्राम फिटकरी 100 मिलीलीटर पानी में घोलकर दिन में तीन बार धोना चाहिए। इस दौरान पशुओं को मुलायम एवं सुपाच्य भोजन दिया जाना चाहिए। पशु चिकित्सक के परामर्श पर दवा देनी चाहिए।

जानिए खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण और उसका बचाव

जानिए खुरपका-मुंहपका रोग के लक्षण और उसका बचाव

बरसात का सीजन आते ही पशुओं में खुरपका मुंहपका रोग का संक्रमण तेज हो जाता है। इस रोग के निदान के लिए राज्य सरकार नि:शुल्क वैक्सीनेशन अभियान चलाती हैं लेकिन गाभिन पशुओं को वैक्सीन न लगाने की पृवृत्ति के चलते रोग संक्रमण एक पशु से दूसरे पशुओं में फैलता है। कई राज्यों में इस रोग का संक्रमण दिखने लगा है। दिल्ली के नजदीकी इलाकों में रोग संक्रमण की खबरें आने लगी हैं। उत्तर प्रदेश में वैक्सीनेशन अभियान चल रहा है।

खुरपका—मुंहपका रोग के लक्षण

रोग का प्रभाव नाम के अनुरूप होता है। इस रोग के संक्रमण के साथ ही पशु के खुरों व मुंह में घाव व छाले हो जाते हैं। इसके कारण पशु को एक दो दिन तेज बुखार भी आ सकता है। छाले होने के कारण पशु चारा भी खाना बंद कर देता है। यदि
दुधारू पशु है तो उसका दुुग्ध उत्पादन भी प्रभावित होने लगता है। पशु लंगड़ाकर चलने लगता है। यदि देखभाल व उपचार समय पर न मिले तो खुुरों के मध्य में कीड़े तक पड़ जाते हैं। पशु मुंह में छालों के कारण लगातार लार गिराने लगता है। इस रोग में सामान्यत: पशु मरता तो नहीं लेकिन स्थिति बेहद खराब हो जाती है। रोग प्रभाव में आने वाला दुधारू पशु ठीक होने के बाद भी आसानी से पूरे दूध पर नहीं आता। पशु की प्रजनन क्षमता प्रभावित होने के कारण वह समय से गर्मी में नहीं आता। कुल मिलाकर कीमती पशु आधी कीमत का भी नहीं रहता।

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बचाव

रोग के संक्रमण से बचाने के लिए हर हाल में समय से टीकाकरण कराना चाहिए। प्रभावित पशु को अन्य पशुओं एवं पशु बाडे से अलग कर देना चाहिए ताकि अन्य पशुओं को रोग संक्रमण न हो। पोटेशियम परमैंगनेट के घेल से पैरों व पशु को बांधने वाले स्थान की दिन में कमसे कम दो बार सफाई करें। नीम के पत्तों को पीसकर खुरों में लगा सकते हैं। पशु को खाने के लिए भूसे की बजाय मुलायम हरा चारा दें ताकि वह घावों में चुभे नहीं और पशु थोड़ा बहुत ही सही हरा चारा खाता रहे। चिकित्सक से परामर्श कर उचित उपचार कराएंं। मुंह के छालों को ​एक प्रतिशत फिटकरी को पानी में घोलकर या लाल दवा के घोल से धुलते रहना चाहिए।
खुरपका और मुंहपका रोग की रोकथाम की कवायद तेज

खुरपका और मुंहपका रोग की रोकथाम की कवायद तेज

बरसात और बदलते मौसम के दौरान पशुओं में फैलने वाले खुरपका-मुंहपका रोग की रोकथाम को पशुपालन विभाग ने कवायद तेज कर दी है। इसके तहत पूरे मथुरा जनपद में आगामी 6 जुलाई तक 7.90 लाख पशुओं को वैक्सीन लगाकर टीकाकरण अभियान को पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। सोमवार को मुख्य विकास अधिकारी डॉ. नितिन गौड़ ने अभियान को हरी झंडी दिखाकर शुरुआत की। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी हरेन्द्र सिंह जादौन के अनुसार खुरपका-मुंहपका रोग पशुओं में तेजी से फैलने वाला विषाणु जनित रोग है, जिससे पशुओं के उत्पादन एवं कार्यक्षमता पर कुप्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि मथुरा में दूसरे चरण के अभियान को तेज कर दिया गया है। मानसून की बारिश शुरू होने से पहले ही टीकाकरण का लक्ष्य पूरा हो जाना चाहिए। इसके लिए विभाग ने ब्लॉकवार 38 टीमें गठित कीं हैं। --- पिछले वर्ष हुई थी कई पशुओं की मौत, मथुरा। खुरपका-मुंहपका रोग की चपेट में आकर पिछले वर्ष जिलेभर में तीन दर्जन से ज्यादा पशुओं की मौत हो गई। विभाग का दावा कि इस बार अभी तक कोई केस सामने नहीं आया है, लेकिन बारिश होने के साथ रोग फैलने का खतरा बन सकता है। इसी को देखते हुए टीकाकरण अभियान को तेज कर दिया गया है। --- पिछले वर्ष हुई थी कई पशुओं की मौत, सहारनपुर। खुरपका और मुंहपका रोग की चपेट में आकर पिछले वर्ष गांव नवादा तिवाया में बरसात के दौरान करीब 15 पशुओं की मौत हुई थी। इसी तरह बेहट के घाड़ क्षेत्र में भी कई पशुओं की जान गई थी। विभाग का दावा है कि इस बार अभी तक कोई केस सामने नहीं आया है, लेकिन बारिश होने के साथ रोग फैलने का खतरा बना है। इसी को देखते हुए टीकाकरण अभियान को तेज कर दिया है। रोग के लक्षण - पशु के मुंह से से अत्यधिक लार का टपकना - जीभ और तलवे पर छालों का उभरना एवं जीभ का बाहर आ जाना - पशु के जुगाली करना बंद कर देना - दूध उत्पादन में करीब 80 प्रतिशत की कमी। - पशुओं का गर्भपात होना - बछड़ों में अत्यधिक बुखार आने पर मृत्यु हो जाना। ऐसे करें बचाव (खुरपका मुँहपका रोग नियंत्रण) - रोग का पता लगने पर पशु को अन्य पशुओं से तुरंत दूर किया जाए - दूध निकालने वाले व्यक्ति को हाथ और मुंह साबुन से धोना चाहिए - प्रभावित क्षेत्र को सोडियम कार्बोनेट घोल पानी मिलाकर धोना चाहिए - चिकित्सकों की सलाह लेकर पशु के तुरंत टीका लगवाने के साथ नियमित उपचार कराएं। - स्वस्थ एवं बीमार पशु को अलग-अलग रखें - बीमार पशुओं को स्पर्श करने के बाद व्यक्ति को सोडियम कार्बोनेट घोल से अपने हाथ पैर धोने चाहिए। क्योंकि, यह रोग मनुष्य भी फैल सकता है। - जिस जगह पर पशु को रखते हों, वहां ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करें। - टीकाकरण के दौरान प्रत्येक पशु के लिए अलग-अलग सुई का प्रयोग कराया जाए। - पशु के ठीक हो जाने पर 20 दिन बाद ही उसे दूसरे पशुओं के पास लाना चाहिए।  
मवेशियों और फसलों की आने वाले 15 दिनों में विशेष ध्यान रखने की जरूरत

मवेशियों और फसलों की आने वाले 15 दिनों में विशेष ध्यान रखने की जरूरत

नवंबर माह में आगामी 15 दिनों के दौरान कृषकों को अपने खेत में क्या करना चाहिए एवं क्या नहीं इस संबंध में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सलाह जारी कर दी गई है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने पशुपालकों के लिए भी जरूरी सलाह जारी की है। जैसा कि हम जानते हैं, कि नवंबर महीना चाल हो चुका है। ऐसी स्थिति में प्रसार शिक्षा निदेशालय, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के वैज्ञानिकों ने कृषकों के लिए नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े मतलब कि आगामी 15 दिनों के चलते किए जाने वाले कृषि एवं पशुपालन से जुड़े कार्यों को सुव्यवस्थित ढ़ंग से करने के लिए सलाह जारी कर दी गई है। जिससे किसान इन कामों को करके स्वयं की आय को बढ़ा सकें। बतादें, कि कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से जारी की गई सलाह में फसल उत्पादन, मसर, सब्जी उत्पादन, फसल संरक्षण और पशुधन इत्यादि के विषय में बताया गया है।

गेंहू की रबी फसलों का उत्पादन

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं रबी मौसम की प्रमुख फसल है। ऐसे में गेहूं की आरंभिक फसल को शीतोष्ण वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। यदि वातावरण प्रारंभ में गर्म है, तो फसल की जड़ काफी कम बनती है। साथ ही, इसके रोगग्रसित होने की संभावना भी ज्यादा बढ़ जाती है। साथ ही, निचले एवं मध्यवर्ती इलाकों के कृषक नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े में गेहूं की ऐच.पी.डब्ल्यू-249, एच.पी.डब्ल्यू-368, एच.पी.डब्ल्यू-155, एच.पी.डब्ल्यू-236, वी.एल.-907, एच.एस.507, एच.एस.562 व एच.पी. डब्ल्यू-349 किस्मों को अपने खेत में लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त निचले इलाकों के किसान गेहूं की एच.डी. -3086. डी. पी. डब्ल्यू- 621-50-595, व एच.डी.-2687 किस्में लगाएं। किसान को बिजाई के लिए रैक्सिल 1 ग्राम/कि.ग्रा बीज बाविस्टिन या विटावेक्स 2.5 ग्राम/किग्रा. बीज से उपचारित बीज का उपयोग करना चाहिए।

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 बतादें, कि गेहूं की बिजाई सितंबर माह के समापन या फिर अक्टूबर माह की शुरुआत में की गई हो। खरपतवारों के पौधे 2-3 पत्तों की अवस्था, बिजाई के 35 से 40 दिनों पश्चात में हो तो इस समय गेहूं में खरपतवार नाशक रसायनों का छिड़काव जरूर करें। आइसोप्रोट्यूरॉन 75 डब्ल्यू.पी. 70 किग्रा दवाई या वेस्टा 16 ग्राम एक कनाल के लिए पर्याप्त होती है। छिड़काव के लिए 30 लीटर पानी प्रति कनाल के अनुरूप इस्तेमाल करें।


 

पशुओं में बिमारियों को पहचाने

पशुओं में शर्दियों के मौसम में होने वाले रोगों की और प्रबंधन से जुड़े काम को पशुपालक सुनिश्चित करें। अगर देखा जाए तो इस मौसम में फेफड़ों वसन तंत्र और चमड़ी के रोग ज्यादा होते हैं। घातक संक्रामक रोग जैसे पी. पी. आर. इस समय सिरमौर जनपद में सम्भावित भेड़ एवं बकरी पॉक्स, इस समय किन्नौर जनपद में संभावित गलघोंटू रोग, शिमला में खुरपका एवं मुंहपका रोग होते हैं। अगर पशुपालक मवेशियों में बीमारी के किसी भी लक्षण जैसे कि भूख न लगना अथवा कम होना, तीव्र बुखार की हालत में शीघ्र पशु चिकित्सक की सलाह लें। इस वक्त फेशियोला और एम्फीस्टोम नामक फीता कृमियों के संक्रमण को नजरअंदाज ना करें।