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इजराइल की मदद से अब यूपी में होगी सब्जियों की खेती, किसानों की आमदनी बढ़ाने की पहल

इजराइल की मदद से अब यूपी में होगी सब्जियों की खेती, किसानों की आमदनी बढ़ाने की पहल

लखनऊ।

इजराइल की मदद से सब्जियों की खेती

केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी लगातार किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। अब
उत्तर प्रदेश में इजराइल की मदद से सब्जियों की खेती होने जा रही है। उत्तर प्रदेश में चंदौली जिला ''धान का कटोरा'' नाम से जाना जाता है। चंदौली में अब इजराइल की मदद से आधुनिक तकनीकी से सब्जियों की खेती करने की योजना बनाई जा रही है। चंदौली में इंडो-इजरायल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल की स्थापना की जा रही है। इसका फायदा चंदौली के साथ-साथ गाजीपुर, मिर्जापुर, बनारस व आसपास के कई जिलों को मिलेगा। उक्त सेंटर के द्वारा किसानों को सब्जियों की पैदावार बढ़ाने में काफी फायदा मिलेगा।


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खेतों में आधुनिक तकनीकी का प्रयोग कर किसान को बेहतर उपज देने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। यूपी में कृषि क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए कृषि उत्पादों की नर्सरी तैयार की जा रही है। जिससे कई जिलों के किसानों को लाभ मिलेगा। इसके अलावा यूपी के इस जिले का कृषि और सब्जियों के क्षेत्र में पूरी दुनियां में नाम रोशन होगा। यूपी सरकार की योजना है कि धान व गेहूं के उत्पादन में बेहतर रहने वाला जिला सब्जियों के उत्पादन में भी बेहतर परिणाम दे सके, जिसके लिए पूरी तैयारी की जा चुकी है।


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इस तकनीकी से किसानों को मिलेंगे उन्नत बीज

- इजराइल तकनीकी से होने वाली खेती के लिए किसानों को उन्नत बीज मिलेंगे। उत्कृष्टता केन्द्र बागवानी क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी के लिए प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में काम किया करते हैं। कृषि सेंटर से चंदौली के साथ-साथ पूर्वांचल के किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाएंगे।


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चंदौली में बागवानी फसलों के लिए मिलती है अच्छी जलवायु

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में बागवानी खेती के लिए अच्छी जलवायु एवं वातावरण मिलता है। यही कारण है कि चंदौली को चावल का कटोरा कहा जाता है। यूपी में 9 ऐसे राज्य हैं जिनमें विभिन्न बागवानी फसलों के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है। सब्जियों के लिए उत्कृष्टता केन्द्र टमाटर, काली मिर्च, बैंगन, खीरा, हरी मिर्च व विदेशी सब्जियों का हाईटेक क्लाइमेंट कंट्रोल्ड ग्रीन हाउस में सीडलिंग उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है।
बनारस के अब तक 22 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, अब बनारसी पान भी इसमें शामिल हो गया है

बनारस के अब तक 22 उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग, अब बनारसी पान भी इसमें शामिल हो गया है

आज तक उत्तर प्रदेश के समकुल 45 उत्पादों को जीआई टैग हांसिल हो चुका है। इन के अंतर्गत 22 उत्पाद बनारस जनपद के ही हैं। बतादें, कि जीआई टैग प्राप्त होने से बनारस के लोगों के साथ- साथ किसान भी काफी प्रसन्न हैं। अपने मीठे स्वाद के लिए विश्व प्रसिद्ध बनारसी पान को जीआई टैग मिल गया है। विशेष बात यह है कि इसके अतिरिक्त लंगड़ा आम को भी जीआई टैग प्रदान किया गया है। विशेष बात यह है कि जीआई टैग प्राप्त होने से किसी भी उत्पाद की ब्रांडिंग बढ़ जाती है। साथ ही किसी खास क्षेत्र से उसकी पहचान भी जुड़ जाती है। जानकारी के अनुसार अब तक उत्तर प्रदेश के समकुल 45 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है, जिनमें से 22 उत्पाद एकमात्र बनारस के ही हैं। वहीं जीआई टैग मिलने से बनारस की आम जनता और किसानों में भी खुशी की लहर दौड़ रही है। जानकारी के अनुसार, बनारस में उत्पादित किए जाने वाले बैंगन की एक विशेष किस्म ‘भंता’ को भी जीआई टैग प्राप्त हो चुका है। यह भी पढ़ें : किन वजहों से लद्दाख के इस फल को मिला जीआई टैग

बनारसी पान को मिला जीआई टैग

वाराणसी के प्रसिद्ध बनारसी पान को भौगोलिक संकेत टैग मिल गया है। यह टैग प्रदर्शित करता है, कि किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान के उत्पादों में कुछ ऐसे गुण विघमान होते हैं, जो उस मूल की वजह होते हैं। अपने बेहतरीन स्वाद के लिए प्रसिद्ध बनारसी पान विशेष सामग्री का उपयोग करके अनोखे ढंग से बनाया जाता है। पद्म पुरस्कार से सम्मानित जीआई विशेषज्ञ रजनीकांत ने बताया है, कि बनारसी पान समेत वाराणसी के तीन अतिरिक्त उत्पादों रामनगर भांटा (बैंगन), बनारसी लंगड़ा आम और आदमचीनी चावल को भी जीआई टैग मिल चुका है। बनारसी पान को जीआई टैग प्राप्त होने के उपरांत काशी इलाका फिलहाल 22 जीआई टैग उत्पादों का दावा करता है। नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) उत्तर प्रदेश की सहायता से, कोविड चरण के समय 20 राज्य-आधारित उत्पादों के लिए जीआई आवेदन दायर किए गए थे। इनमें से 11 उत्पाद, जिनमें सात ओडीओपी एवं काशी क्षेत्र के चार उत्पाद शम्मिलित हैं। इनको नाबार्ड एवं योगी आदित्यनाथ सरकार की सहायता से इस वर्ष जीआई टैग प्राप्त हो चुका है। यह भी पढ़ें : जल्द ही पूरी तरह से खत्म हो सकता है महोबा का देशावरी पान

बाकी नौ उत्पाद भी सम्मिलित किए जाऐंगे

रजनीकांत का कहना है, कि पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के जीआई उत्पादों को निर्मित करने में कारीगरों समेत समकुल 20 लाख लोग शम्मिलित होते हैं, जिनमें वाराणसी के लोग भी सम्मिलित हैं। इन उत्पादों का वार्षिक कारोबार 25,500 करोड़ रुपये आंका गया है। उन्होंने यह आशा भी जताई कि अगले माह के अंत तक बाकी नौ उत्पादों को भी देश की बौद्धिक संपदा में शामिल कर लिया जाएगा। इनमें बनारस लाल भरवा मिर्च, लाल पेड़ा, चिरईगांव गूसबेरी, तिरंगी बर्फी, बनारसी ठंडाई आदि शम्मिलित हैं।

बनारस के कौन-कौन से उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग

इससे पूर्व, काशी एवं पूर्वांचल इलाके में 18 जीआई उत्पाद मौजूद थे। इनमें बनारस वुड काविर्ंग, मिजार्पुर पीतल के बर्तन, मऊ की साड़ी, बनारस ब्रोकेड और साड़ी, हस्तनिर्मित भदोही कालीन, मिजार्पुर हस्तनिर्मित कालीन, बनारस मेटल रेपोसी क्राफ्ट, वाराणसी गुलाबी मीनाकारी, वाराणसी लकड़ी के लाख के बर्तन और खिलौने, निजामाबाद काली पत्री, बनारस ग्लास शामिल थे. बीड्स, वाराणसी सॉफ्टस्टोन जाली वर्क, गाजीपुर वॉल हैंगिंग, चुनार सैंडस्टोन, चुनार ग्लेज पटारी, गोरखपुर टेराकोटा क्राफ्ट, बनारस जरदोजी और बनारस हैंड ब्लॉक प्रिंट आते हैं। इसके अंतर्गत 1,000 से अधिक किसानों का पंजीयन किया जाएगा। साथ ही, जीआई अधिकृत उपयोगकर्ता प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। नाबार्ड के एजीएम अनुज कुमार सिंह का कहना है, कि आने वाले समय में नाबार्ड इन जीआई उत्पादों को और आगे बढ़ाने हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाएं चालू करने जा रहा है। उनका कहना है, कि वित्तीय संस्थान उत्पादन एवं विपणन हेतु सहयोग प्रदान किया जाएगा।