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इस तकनीक से पटना के एक व्यक्ति जिनका नाम मोहमद जावेद है, उन्होंने बिना मिट्टी के अपने बगीचे में पेड़ पौधे लगाए है. जावेद पटना में कंकड़बाग कॉलोनी में रहते है. यह बिना मिट्टी के कई वर्षो से सफलता के साथ पेड़ पौधे उगा रहे है. इस विधि से पानी में घुले पोशक तत्वों और खनिज से पौधे का विकास होता है. हिंदी में इस तकनीक को जलकृषि भी कहते है.
जावेद अपने बारे में बताते है कि वो पटना में स्थित श्री कृष्ण विज्ञान केंद्र में 30 साल से शिक्षक का काम कर रहे थे. वह साल 1992 में जलकृषि में आए थे. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी जलकृषि में रुचि होने के कारण. इसके बाद इस विधि के विकास में काम करने लगे. जहां तक की इस विधि को बढ़ावा देने के लिए वो विदेश तक जा चुके है. इस विधि से जावेद 250 से ज्यादा पौधे उगा चुके है. जावेद का कहना है कि इस तरह की तकनीक से पेड़ पौधे उगाने से वातावरण में शुद्धता बरकार रहती है.
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जावेद ने नौकरी छोड़ने के बाद बयोफोर्ट एम विकसित कर ली. एक लीटर पानी में एक मिलीलीटर बयोफोर्ट एम को मिलाकर एक घोल तैयार किया जाता है, इससे 30 से 40 सेंटीमीटर तक लंबे पौधे को 1 साल तक पोषण मिलता रहता है. जावेद ने हाइड्रोपोनिक तकनीक को नया आयाम देने के लिए कंकड़, रेत, पत्थर के टुकड़े आदि से जैविक खाद तैयार की है.
यदि आपके पास जमीन की कमी है तो इस विधि से विंडो गार्डन, रूम गार्डन, हैगिंग गार्डन, टेबल गार्डन, बालकनी गार्डन, बॉटल गार्डन, वॉल गार्डन और ट्यूब गार्डन आदि विकसित कर रहे है. जावेद चाहते है की सरकार इसे बढ़ावा दे जिससे भारत के ज्यादा से ज्यादातर लोग इस तकनीक से पेड़ पौधे उगाए. जिससे पर्यावरण में शुद्धता आए. लोग कम से कम जगह पर खेती भी कर सके.
संपूर्ण विश्व जल की कमी से लड़ रहा है, इस वजह से किसानों को सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों की तरफ प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस तरीके की तकनीकें जो कम सिंचाई में भरपूर पैदावार मिलती है। सूक्ष्म सिंचाई में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर तकनीक शम्मिलित हैं। इन तकनीकों द्वारा सीधे फसल की जड़ों तक जल पहुंचता है। ड्रिप सिंचाई से 60 प्रतिशत जल की खपत कम होती है। फसल की पैदावार में भी काफी वृद्धि देखी जाती है।
वर्टिकल फार्मिंग के माध्यम से खेती करें
संपूर्ण विश्व में खेती का रकबा कम होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य-आपूर्ति करना कठिन होता जा रहा है। यही कारण है, कि विश्वभर में वर्टिकल फार्मिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्टिकल फार्मिंग को खड़ी खेती भी कहा जाता है, जिसमें खेत की आवश्यकता नहीं, बल्कि घर की दीवार पर भी फसलें उत्पादित की जा सकती हैं। यह खेती करने का सफल तरीका माना जाता है। इसके अंतर्गत न्यूनतम भूमि में भी अधिक पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे पैदावार भी ज्यादा होती है।
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शेड नेट फार्मिंग के जरिए करें खेती
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों से खेती-किसानी में हानि होती जा रही है। बेमौसम बारिश,ओलावृष्टि, आंधी, सूखा और कीट-रोगों के संक्रमण से फसलों में काफी हद तक हानि हो रही है, जिसको कम करने हेतु किसानों को शेडनेट फार्मिंग से जोड़ा जा रहा है। पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन का प्रभाव फसलों पर ना पड़े, इस वजह से ग्रीनहाउस, लो टनल, पॉलीहाउस जैसे संरक्षित ढांचे स्थापित किए जा रहे हैं। इनमें गैर मौसमिक बागवानी फसलें भी वक्त से पहले उत्पादित हो जाती हैं।
हाइड्रोपोनिक तकनीक के माध्यम से खेती करें
हाइड्रोपॉनिक तकनीक के अंतर्गत संपूर्ण कृषि जल पर ही निर्भर रहती है। इसमें मृदा का कोई कार्य नहीं है। आजकल विभिन्न विकसित देश हाइड्रोपॉनिक तकनीक से बागवानी यानी सब्जी-फलों का उत्पादन कर रहे हैं। भारत में भी शहरों में गार्डनिंग हेतु यह तकनीक काफी प्रसिद्ध हो रही है। इस तकनीक के माध्यम से खेत तैयार करने का कोई झंझट नहीं रहता है। एक पाइपनुमा ढांचे में पौधे स्थापित किए जाते हैं, जो पानी और पोषक तत्वों से बढ़ते हैं एवं स्वस्थ उत्पादन देते हैं।
ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से खेती करें
आजकल बीज समेत पौधे उगाने में बेहद वक्त लग जाता है, इस वजह से किसानों ने ग्राफ्टिड पौधों से खेती शुरू कर दी है। ग्राफ्टिंग तकनीक के अंतर्गत पौधे के तने द्वारा नवीन पौधा तैयार कर दिया जाता है। बीज से पौधा तैयार होने में काफी ज्यादा समय लगता है। ग्राफ्टिड पौधे कुछ ही दिनों के अंदर सब्जी, फल, फूल उत्पादित होकर तैयार हो जाते हैं। आईसीएआर-वाराणसी द्वारा ग्राफ्टिंग तकनीक द्वारा ऐसा पौधा विकसित किया है, जिस पर एक साथ आलू, बैंगन और टमाटर उगते हैं।