DBW 187 (करण वंदना): गेहूं की अधिक उपज और गुणवत्ता वाली उन्नत किस्म

Published on: 20-Nov-2024
Updated on: 20-Nov-2024
A farmer's hand scattering wheat seeds in a field, symbolizing the start of the sowing process in agriculture
फसल खाद्य फसल गेंहूं

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित गेहूं की किस्म DBW 187 को देश के उत्तर-पश्चिमी उगाही क्षेत्र के चयनित क्षेत्रों में अत्यधिक और समय से बोवाई वाली परिस्थितियों के लिए विशेष रूप से अनुकूल है।

इस लेख में इस किस्म की विशेषताएं, उत्पादन और बुवाई के क्षेत्र से जुडी सम्पूर्ण जानकारी देंगे।

DBW 187 किस्म की विशेषताएं

  • यह DBW 187 किस्म पूरी उगाही क्षेत्र में स्थायित्व के साथ देखी गई है और अधिक पोषक तत्वों और उन्नत प्रबंधन के उपयोग से बेहतर परिणाम प्राप्त हुए हैं।
  • यह किस्म धीमे पकने के बावजूद ग्रीष्मकालीन परिस्थितियों में भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक उत्पादन क्षमता है।
  • यह किस्म धान और गेहूं के मुख्य रोगों के प्रति प्रतिरोधी क्षमता प्रदर्शित करती है। इसमें "ब्लास्ट" रोग के खिलाफ भी प्रतिरोधकता पाई गई है।
  • DBW 187 में उच्च दाना गुणवत्ता (7.6) और अच्छा बड़ा दाना आकार (7.4) पाया गया है।
  • इसमें 6-7 मिलीमीटर के बीच फसल के लिए अनुकूल आकार देखा गया है, जिससे यह किस्म विभिन्न उत्पादों के लिए उपयोगी बनती है।
  • इसके अनाज में उच्च प्रोटीन मात्रा (12.0%) होती है, जो इसे पोषक तत्वों से भरपूर बनाती है।

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DBW 187 उत्पादन

  • DBW 187 (करण वंदना) किस्म के बुवाई का समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक हैं।
  • DBW 187 किस्म का दाना संरचना और गुणवत्ता (स्कोर 10) के अनुसार परिपूर्ण होता है, जिससे उत्पादकता और गुणवत्ता को बनाए रखना संभव हो पाया है।
  • चयनित और समय से बोवाई वाली परिस्थितियों में इस किस्म की औसत उपज 61.3 क्विंटल/हेक्टेयर पाई गई है।
  • इससे उपज के अलावा 60 - 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तुड़ा भी बनता हैं।

DBW 187 किस्म की बुवाई का क्षेत्र

यह किस्म मुख्यतः निम्नलिखित राज्यों और क्षेत्रों में उपयुक्त पाई गई है:

  • पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर मंडल को छोड़कर)।
  • पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी मंडल को छोड़कर)।
  • जम्मू-कश्मीर (जम्मू और कठुआ जिले)।
  • हिमाचल प्रदेश (ऊना जिला और पांवटा घाटी)।
  • उत्तराखंड (तराई क्षेत्र)।

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यह किस्म इन क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त साबित हुई है और किसान समुदाय के बीच लोकप्रिय हो रही है।