गुड़मार, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसे "जिमनिमा सिल्वेस्ट्रे" के रूप में भी जाना जाता है।
इसके जड़ और पत्ते औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और विशेषकर इसका उपयोग मधुमेह जैसे रोगों के उपचार में किया जाता है।
गुड़मार एक बहुवर्षीय बेल है, जिसकी शाखाओं पर हल्के रोयें होते हैं।अगस्त और सितंबर में इसके छोटे-छोटे पीले फूल गुच्छों में खिलते हैं।
इसके फल कठोर होते हैं और बीजों में रूई लगी होती है, जो परिपक्व होने पर उड़ सकते हैं।
गुड़मार की खेती के लिए गर्म और नम जलवायु उपयुक्त होती है। इसका उत्पादन मुख्य रूप से मध्य भारत, पश्चिमी घाट, कोकण और त्रिवणकोर के वनों में होता है। इसके लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है।
अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में इसके पौधे बेहतर तरीके से बढ़ते हैं। खेत की तैयारी के लिए मिट्टी को तीन बार जुताई कर भुरभुरी और समतल बना लेना चाहिए।
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गुड़मार के पौधों की खेती बीजों के माध्यम से की जाती है। बीजों को रोपने से पहले फफूँदनाशक जैसे डायथेन एम-45 या बोवेस्टीन से उपचारित किया जाता है।
बीजों को पॉलीथीन बैग में भरकर अप्रैल से मई तक बोया जाता है, और जुलाई-अगस्त में खेत में रोपण किया जा सकता है।
पुराने पौधों की कलम से भी गुड़मार की खेती की जा सकती है। इसके लिए जनवरी-फरवरी का समय आदर्श माना जाता है।
कलमों को पहले पॉलिथीन बैग में तैयार कर लिया जाता है और जुलाई-अगस्त में खेत में लगाया जा सकता है। यह पौधा 20-30 वर्षों तक उपज देता है।
गुड़मार के पौधों को 1x1 मीटर की दूरी पर गड्ढों में रोपा जा सकता है। प्रत्येक गड्ढे में 5 किलोग्राम गोबर की खाद और 50 ग्राम नीम की खली डालनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर लगभग 10,000 पौधे लगाए जाते हैं।
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चूंकि गुड़मार एक लता है, इसे सहारा देने के लिए बांस, लोहे के एंगल और तारों का उपयोग किया जाता है। इससे बेलों को सहारा मिलता है और पौधों की वृद्धि बेहतर होती है।
गर्मियों में पौधों को 10-15 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 20-25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। इससे पौधों की वृद्धि में मदद मिलती है और सूखे का असर कम होता है।
अधिक बारिश के कारण पौधों में पीलापन आ सकता है, जिसे रोकने के लिए रोपण के समय 10 किलोग्राम फेरस सल्फेट का उपयोग करना चाहिए।
गुड़मार की पत्तियाँ औषधीय उपयोग के लिए मुख्य रूप से एकत्र की जाती हैं। पहले वर्ष से ही पत्तियाँ प्राप्त होने लगती हैं और समय के साथ बेलें बढ़ती रहती हैं।
सिंचित अवस्था में पत्तियों की तुड़ाई साल में दो बार की जाती है: पहली बार सितंबर-अक्टूबर में और दूसरी अप्रैल-मई में।
परिपक्व पत्तियों को तोड़कर छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में बीजों वाली फल्लियाँ एकत्र की जाती हैं, पर ध्यान रहे कि फल्लियाँ चटक न जाएँ, जिससे बीज सुरक्षित रहें।
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गुड़मार का पौधा तीसरे वर्ष से प्रति वर्ष लगभग 5 किलोग्राम गीली पत्तियाँ या 1 किलोग्राम सूखी पत्तियाँ देता है। प्रति हेक्टेयर 4-6 क्विंटल सूखी पत्तियों की उपज मिल सकती है।