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ग्लेडियोलस फूल की खेती कैसे की जाती है और देखभाल के सर्वोत्तम तरीके

Published on: 27-Aug-2024
Updated on: 27-Aug-2024

ग्लेडियोलस की खेती एक सजावटी फूल की उत्पादन प्रक्रिया है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से फूलों की सजावट और फूल उद्योग में किया जाता है।

यह खेती आर्थिक रूप से फायदेमंद होती है और इसकी मांग बहुत अधिक होती है। ग्लैडियोलस की सुंदरता, विभिन्न रंगों और लंबे समय तक फूलदान में टिके रहने की क्षमता के कारण इसे उगाया जाता है।

ग्लैडियोलस की खेती का महत्व

ग्लैडियोलस का फूल बाजार में अत्यधिक मांग में होता है। इसका उपयोग शादियों, त्योहारों और अन्य समारोहों में सजावट के लिए किया जाता है।

यह फूल लाल, सफेद, पीले, गुलाबी और बैंगनी जैसे कई रंगों में उपलब्ध है, जो इसे बागवानी में भी पसंदीदा बनाता है। इस फूल की खेती से किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं

ग्लैडियोलस की खेती के लिए ठंडी और समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है। इसे अच्छी धूप वाली जगह पर उगाया जा सकता है।

15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी वृद्धि के लिए सबसे आदर्श होता है। बहुत ज्यादा गर्मी या ठंड इसके पौधों को नुकसान पहुंचा सकती है।

अगर मिट्टी की बात की जाए, तो इसके लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए क्योंकि पानी के ठहराव से कंद खराब हो सकते हैं।

मिट्टी का pH स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए। खेती शुरू करने से पहले मिट्टी की जांच करना लाभकारी हो सकता है।

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भूमि की तैयारी

ग्लैडियोलस की खेती के लिए भूमि को ठीक तरह से तैयार करना आवश्यक है। पहले खेत की गहरी जुताई करें जिससे मिट्टी नरम हो जाए।

इसके बाद खेत में गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालकर मिट्टी में मिलाएं। खेत को समतल करें ताकि पानी सही ढंग से निकल सके।

बीज और कंद का चयन

ग्लैडियोलस की खेती में मुख्य रूप से कंदों (Corms) का उपयोग किया जाता है। कंदों को स्वस्थ और आकार में अच्छे चुनना आवश्यक है।

सामान्यतः कंदों का आकार 2.5 से 4 से.मी. के बीच होना चाहिए। बुवाई से पहले कंदों को फफूंदनाशक घोल में 10 से 15 मिनट तक भिगोना चाहिए ताकि फफूंद का संक्रमण न हो।

बुवाई का समय

ग्लैडियोलस की बुवाई का सही समय वर्षा ऋतु के बाद, अर्थात सितंबर से नवंबर तक होता है। अगर आपके क्षेत्र में ठंड जल्दी आ जाती है, तो आप बुवाई जुलाई से सितंबर के बीच कर सकते हैं।

बुवाई की विधि

ग्लैडियोलस की बुवाई के लिए 5-7 से.मी. गहरे गड्ढे बनाए जाते हैं। कंदों को 10-15 से.मी. की दूरी पर लगाया जाता है। कंदों को सही दिशा में रखते हुए गड्ढों में डालें और हल्की मिट्टी से ढक दें।

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सिंचाई

ग्लैडियोलस की खेती में नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करें। जब पौधे विकसित होने लगें, तो मिट्टी में नमी बनाए रखना जरूरी होता है।

खासतौर पर गर्मियों में हर 7-10 दिनों में सिंचाई करनी चाहिए। फूल आने से पहले और बाद में अधिक पानी की आवश्यकता होती है।

खाद और उर्वरक

ग्लैडियोलस की फसल को बेहतर वृद्धि के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इसके लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (NPK) वाले उर्वरकों का उपयोग करें।

बुवाई के समय गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालें। फसल के विकास के दौरान उर्वरक का उपयोग करें, खासतौर पर जब पौधों में फूल आने शुरू हो जाएं।

निराई और गुड़ाई

ग्लैडियोलस की खेती में निराई और गुड़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। फसल के बीच उगने वाले खरपतवारों को समय-समय पर हटाना आवश्यक होता है क्योंकि वे पौधों से पोषक तत्व छीन लेते हैं।

निराई और गुड़ाई से मिट्टी में नमी और हवा को बेहतर तरीके से संरक्षित किया जा सकता है।

कीट और रोग प्रबंधन

ग्लैडियोलस की फसल पर कई कीट और रोगों का हमला हो सकता है, जैसे कंद सड़न, ब्लाइट और एफिड्स।

इनसे बचने के लिए नियमित जांच करें और सही समय पर कीटनाशक एवं फफूंदनाशक का उपयोग करें। इसके अलावा, जैविक कीट नियंत्रण विधियों, जैसे नीम के तेल का उपयोग भी फायदेमंद हो सकता है।

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फूलों की तुड़ाई

फूलों की तुड़ाई तब की जाती है जब पौधों पर 1-2 फूल खिल चुके होते हैं और शेष फूल कलियों में होते हैं। फूलों को सावधानी से काटें ताकि शेष पौधा सुरक्षित रहे और कंद खराब न हों।

तुड़ाई के बाद फूलों को सीधे धूप से बचाकर छांव में रखना चाहिए जिससे वे लंबे समय तक ताजा रहें।

उपज

ग्लैडियोलस की खेती से अच्छी उपज प्राप्त हो सकती है। एक हेक्टेयर भूमि से लगभग 1,50,000 से 2,00,000 फूलों की उपज हो सकती है, जो खेती की विधि, जलवायु और प्रबंधन पर निर्भर करती है।

बाजार में बिक्री

ग्लैडियोलस के फूलों की बाजार में अच्छी मांग रहती है। इसे स्थानीय बाजारों के साथ-साथ बड़े शहरों में भी बेचा जा सकता है। शादियों, त्योहारों और अन्य समारोहों में इसकी अधिक मांग रहती है।

ग्लैडियोलस की खेती किसानों के लिए लाभकारी हो सकती है। सही देखभाल और प्रबंधन के साथ किसान इससे अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। यह खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से सफल और स्थायी साबित हो सकती है।

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