अखरोट उत्तरी गोलार्ध के शीतोष्ण क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण फल फसल है। हिमालयी क्षेत्र में इसके वाणिज्यिक उत्पादन की संभावनाएं बहुत अधिक हैं।
भारत में अखरोट की खेती का कुल क्षेत्रफल 1,09,000 हेक्टेयर है, और कुल उत्पादन 3,00,000 मीट्रिक टन है।
जम्मू और कश्मीर राज्य इस मामले में अग्रणी है, जहां पर अखरोट का कुल क्षेत्रफल 85,620 हेक्टेयर और उत्पादन 2,75,450 मीट्रिक टन है।
अखरोट का पेड़ एक बार लगने के बाद कई दशकों तक फल देता है, जिससे यह दीर्घकालिक निवेश के रूप में देखा जाता है।
70-80 वर्षों तक इसके फल प्राप्त किए जा सकते हैं, और यह प्रति हेक्टेयर 2-3 टन तक उत्पादन कर सकता है, जिससे यह लाभकारी फसल बन जाती है।
भारत में कई प्रकार की अखरोट की किस्में उगाई जाती हैं। इनमें प्रमुख किस्में हैं:
यह किस्म अमेरिकी मूल की है और भारत में भी काफी लोकप्रिय हो रही है। इसकी गुणवत्ता और पैदावार क्षमता अन्य किस्मों से इसे अलग बनाती है।
यह किस्म जम्मू-कश्मीर में उगाई जाती है, यह अपनी बड़ी आकार और शानदार स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।
यह किस्म मध्यम से बड़े आकार के अखरोटों का उत्पादन करती है, जिनकी गिरी उच्च गुणवत्ता की होती है।
इस किस्म का विशेष रूप से उन क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन होता है जहां की मिट्टी उपजाऊ होती है।
अखरोट की खेती में किसानों को निम्नलिखित बातो का ध्यान रखना बहुत आवश्यक हैं:
अखरोट के पौधे को अच्छे परिणाम देने के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है, जिसका pH स्तर 6-7 होना चाहिए। भूमि की जुताई के बाद उसे समतल करके रोपण किया जाता है।
अखरोट के पौधों को दिसंबर से फरवरी तक रोपना सर्वोत्तम रहता है। पौधों को 8-10 मीटर की दूरी पर लगाना चाहिए ताकि वे पर्याप्त सूरज की रोशनी और वायु का लाभ उठा सकें।
अखरोट के पौधों को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन शुरुआत में नियमित सिंचाई आवश्यक होती है। ड्रिप इरिगेशन का प्रयोग इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त होता है, क्योंकि इससे पानी की बचत होती है और पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता है।
अखरोट के पौधों को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की जरूरत होती है, जिनसे उनकी बढ़वार और फलने-फूलने में मदद मिलती है। जैविक खाद का उपयोग भी मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है और फसल की गुणवत्ता में सुधार करता है।
अखरोट की खेती में कीटों और रोगों से बचाव अत्यंत महत्वपूर्ण है। ब्लाइट (बैक्टीरियल रोग) और नट बोअर (कीट) जैसे समस्याओं का समय पर इलाज आवश्यक होता है। इसके लिए कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का सही उपयोग करना चाहिए।
ये भी पढ़ें: अखरोट में है अद्भुत स्वास्थ्य लाभ
अखरोट की कटाई सामान्यतः सितंबर से अक्टूबर के बीच की जाती है, जब फल पूरी तरह से पक चुके होते हैं।
कटाई के बाद, इन फलों को अच्छे से सूखा कर उनका बाहरी खोल हटाया जाता है। फिर इन्हें छांटकर और साफ करके पैक कर बाजार में भेजा जाता है।
अखरोट की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए, उसे ठंडे और सूखे स्थानों पर रखा जाना चाहिए। एयरटाइट कंटेनरों का उपयोग करने से उसकी ताजगी बनी रहती है और कीटों तथा फंगस से भी बचाव होता है।
यदि भंडारण सही तरीके से किया जाए, तो अखरोट का दीर्घकालिक उपयोग संभव होता है, और इसका बाजार मूल्य भी बढ़ता है।
अखरोट की खेती से न केवल कृषकों को उच्च आय होती है, बल्कि इससे भूमि की उर्वरता में भी सुधार होता है। यह पौधों के लिए वातावरण को सुधारने के साथ-साथ, मृदा संरक्षण में भी मदद करता है।
साथ ही, अखरोट की वैश्विक मांग बढ़ रही है, जिससे यह एक लाभकारी निर्यात उत्पाद भी बन गया है।
अखरोट की खेती का दीर्घकालिक लाभ और इसके पर्यावरणीय फायदों को देखते हुए, यह भारतीय किसानों के लिए एक आदर्श फसल बन सकती है, जो उन्हें सशक्त बनाने में मदद करेगी।