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जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें

Published on: 08-Nov-2021

मटर रबी सीजन की प्रमुख फसल है। प्रमुख सब्जी व दलहन की फसल होने के कारण मटर का बहुत अधिक महत्व है। अगैती फसल की मटर बाजार में काफी महंगी बिकती है। किसान भाइयों को चाहिये कि अगैती फसल की खेती करके पहले मार्केट में मटर की फलियों को लाकर बेचें। इससे काफी अधिक लाभ होता है।

मटर की बुआई किस प्रकार की जाती है?

नम शीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में मटर की खेती की जाती है। इसलिये हमारे देश में रबी के सीजन में सर्दियों के मौसम में मटर की खेती अधिकांश क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती की बुआई के  समय 20 से 24 डिग्री का तापमान होना चाहिये तथा फसल की पैदावार के लिए 10 से 20 डिग्री का तापमान होना चाहिये। मटर की खेती के लिए मटियार दोमट तथा दोमट भूमि सबसे उत्तम होती है। सिंचित क्षेत्र में बलुई दोमट में भी मटर की खेती की जा सकती है। मटर की खेती के लिए खरीफ की फसल के बाद खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिये। उसके बाद दो तीन जुताई करके मिट्टी के ढेले फोड़ने के लिए पाटा लगाना चाहिये। मिट्टी एकदम भुरभुरी हो जानी चाहिये। खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिये। यदि खेत में नमी न हो तो पलेवा करके बुआई करनी चाहिये। मटर की अगैती फसल का समय 15 नवम्बर तक माना जाता है। इसके बाद भी पछैती मटर की खेती की जा सकती है। पहाड़ी क्षेत्र में अच्छी किस्म की  मटर की बुआई एक माह पहले ही शुरू हो जाती है। मध्यम किस्म की मटर की बुआई नवम्बर में ही होती है। इसी तरह पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में बुआई नवम्बर तक होता है। बुआई से पहले मटर के बीज का उपचार किया जाना बहुत जरूरी होता है। बीजों का उपचार राइजोबियम से करना चाहिये। राजोबियम कल्चर  से बीज को उपचारित करना चाहिये। बीजों को उपचारित करने के लिए 50 ग्राम गुड़ और 2 ग्राम गोंद को एक लीटर पानी में घोल कर गर्म करके मिश्रण तैयार करें। उसे ठंडा होने दे जब ये घोल ठंडा हो जाये तो उसमें राइजोबियम कल्चर को मिलाकर अच्छी तरह मिला कर उससे उपचारित करें। इस तरह उपचारित करने से पहले बीजों का शोधन कर लेना चाहिये। शोधन करने के लिए दो किलो थायरम और एक किलो कार्बन्डाजिम मिलाकर बीजों का उपचार करें। बीजों को छाया में सुखायें। जब बीज का उपचार और शोधन हो जाये तब बुआई करें। बुआई के लिए 70 से 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। यदि पछैती फसल की खेती करनी है तो उसमें आपको 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी।  देशी हल या सीड ड्रिल पद्धति से बुआई करनी चाहिये। किसान भाइयों को चाहिये कि  लाइन से लाइन की दूरी एक फुट से डेढ़ फुट की रखें। पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिये। बीज की गहराई 4 से 7 सेंटीमीटर रखनी चाहिये।

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मटर की खेती की देखभाल ऐसे करें

बुआई के बाद सबसे पहले क्या करें, किसान भाइयों को चाहिये कि मटर की खेती में सबसे पहले खरपतवार का नियंत्रण करना चाहिये। बुआई के एक सप्ताह बाद ही खेत की निगरानी करनी चाहिये। यदि खरपतवार अधिक दिख रहा हो तो उसका निदान करने का प्रयास करना चाहिये। खेत की निराई गुड़ाई करने के साथ ही पौधों की दूरी को भी मेनटेन करना चाहिये। यदि आवश्यकता से अधिक बीज गिर गया है और पौधे पास पास उग आये हैं तो उनकी छंटाई करनी चाहिये। Matar

सिंचाई का प्रबंधन

मटर की फसल बहुत नाजुक होती है और सर्दी के मौसम में होती है। इसलिये इसकी सिंचाई का विशेष प्रबंधन करना चाहिये। शरदकालीन वर्षा वाले क्षेत्रों में मटर की खेती के लिए 2 से 3 सिंचाई जरूरी बताई गर्इं हैं। पहली सिंचाई एक से डेढ़ महीने के बाद की जानी चाहिये। दूसरी सिंचाई फलियों के आने के समय की जानी चाहिये। इस बीच यदि क्षेत्र में पाला पड़ता हो तो उससे पहले मटर के खेत में सिंचाई करनी होती है। अंतिम सिंचाई मटर के दाने पुष्ट होने के समय करनी चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

मटर की फसल की निराई व गुड़ाई करके खरपतवार का नियंत्रण किया जाता है। इससे मटर के पौधों की जड़ मजबूत होती है तथा पौधे में शाखाएं विकसित होती हैं जिससे पैदावार बढ़ जाती है। निराई गुड़ाई के अलावा मटर की खेती के खरपतवार का नियंत्रण रसायनों से भी किया जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए ढाई से तीन लीटर पैण्डीमैथलीन प्रति हेक्टेयर बुआई के बाद तीन दिन में 500 लीटर पानी में मिलाकर उसका छिड़काव करना चाहिये। किसान भाई मेट्रीव्यूजीन और डब्ल्यूपी   मिलाकर बुआई के बाद एक पखवाड़े में  छिड़काव करें।

मटर की फसल में लगने वाले रोग और रोकथाम

मटर की फसल में कई रोग लगते हैं। किसान भाइयों को समय पर इन रोगों को उपचार करना चाहिये।
  1. चूर्णी फफूंद रोग से फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। नमी के समय यह रोग मटर की फसल में तेजी से लगता है। इस रोग के लगने से तने व पत्तियों पर सफेद चूर्ण इकट्ठा हो जाता है। इस रोग के दिखने के बाद किसान भाइयों को चाहिये कि डाइनोकप 48 प्रतिशत ईसी की 400 मिलीलीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। एक बार छिड़काव से रोग न समाप्त हो तो दो तीन बार 15-15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये।
  2. मृदुरोमिल फफूंद की बीमारी मटर के पौधों में पत्तियों की निचली सतह पर लगती है। इससे फसल को बहुत नुकसान होता है। इसके नियंत्रण के लिए 3 किलोग्राम सल्फर 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी या डाइनोकेप 48 प्रतिशत ईसी की दो लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करनी चाहिये।

कीट प्रकोप और रोकथाम

1.फली बेधक कीट के रोग लगने से मटर की फसल में कीड़े लगते हैं जो मटर की फलियों और दानों को खा जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मेलाथियान दो मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। 2.चेपा यानी लीफ माइनर कीट लगे के कारण पत्तियों पर सफेद रंग की धारियां दिखाई लगने लगतीं हैं। चेपा  तने व पत्तियों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम के लिये मोनोक्रोटोफॉस 3 मिलीलीटर को प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। 3.तना मक्खी का प्रकोप अगैती किस्म की मटर की फसल में अधिक होता है। यह कीट पौधों की बढ़वार को पूरी तरह से रोक देता है। इस रोग का नियंत्रण करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी नामक रसायन को 10 किलोग्राम की दर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिये। 4.पत्ती सुरंगक: इस कीट का प्रकोप दिसम्बर माह में देखा जाता है। यह कीट मार्च तक सक्रिय रहता है। यह कीट पत्तियों में सुरंग बना कर रस चूसता रहता है। इसके नियंत्रण के एि मेटासिस्टौक्स 26 ईसी की एक लीटर की मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें और उसका छिड़काव करें। जरूरत के अनुसार बार बार छिड़काव करते रहें। 5.फल बेधक कीट: यह कीट फलियों में छेद करके दानों को खा जाती हैं। इसका अधिक होने से पूरी फसल बरबाद हो सकती है। इस रोग की रोकथाम करने के लिस किसान भाइयों को मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी की 750 मिली लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। एक बार में लाभ न मिले तो इसका छिड़काव  जल्दी-जल्दी करें।

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