लैवेंडर एक सुंदर, बहुवर्षीय औषधीय गुणों वाला झाड़ीनुमा पौधा हैं। लैवेंडर के पौधे में तेल पाया जाता है, जिसका इस्तेमाल खाने में, इत्र, सौंदर्य प्रसाधन और साबुन बनाने में किया जाता है।
इसके अलावा इसके पौधे का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियां दूर करने में भी किया जाता है, इसके फूल गहरे काले नीले, लाल और बेंगानी रंग के होते हैं और दो से तीन फिट ऊंचे होते हैं।
लैवेंडर को नगदी फसल कहा जाता है। लैवेंडर की खेती मुख्यत: सयुंक्त राज्य अमेरिका, कनाड़ा, जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित भूमध्यसागरीय देशों में की जाती है।
भारत में लैवेंडर की खेती कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में मुख्य रूप से की जाती है।
लैवेंडर एक कठोर और ठंडी जलवायु का पौधा है, जो सूखे और पाले को सहन कर सकता है। इसकी खेती के लिए आदर्श जलवायु प्रणाली ठंडी सर्दियाँ और ठंडी गर्मियाँ है।
इसके लिए अच्छी मात्रा में सूर्य की रोशनी चाहिए। इसे जहां बर्फबारी होती है और पहाड़ियां पर भी आसानी से उगाया जा सकता हैं। बीज अंकुरण के समय इन्हें बारह से पंद्रह डिग्री तापमान चाहिए।
इसके पौधों का विकास 20 से 22 डिग्री तक होता है। इसके पौधे 10 डिग्री से भी कम तापमान को सहन कर सकते हैं।
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लैवेंडर का पौधा दिखने में सुन्दर होता है, इसके फूल किस्मो के आधार पर दिखने में अलग अलग होते है। लैवेंडर फूल लाल, बैंगनी, नीले और काले रंग के होते हैं, और पौधा दो से तीन फ़ीट ऊँचा होता है।
इसके पौधों का मूल स्थान एशिया महाद्वीप है। 10 वर्षों तक, पूरी तरह से विकसित पौधा पैदावार देता है। लैवेंडर की खेती से किसान भाई भी अधिक पैसे कमा रहे हैं।
लैवेंडर की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती वैसे तो हर प्रकार की जगह पर की जाती है।
पहाड़ी, मैदानी और रेतीली भूमि में इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। खेती के लिए भूमि का P.H. मान 7 से 8 होना चाहिए।
लैवेंडर अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करता है। भारी और जलभराव वाली मिट्टी से बचना चाहिए।
लैवेंडर की उन्नत किस्में निन्मलिखित है - हाइडकोट सुपीरियर, लेडी लैवेंडर, फोल्गेट, बीचवुड ब्लू, भोर ए कश्मीर लैवेंडर आदि।
पौधे रोपाई से पहले खेत की हल या कल्टीवेटर के माध्यम से 2-3 बार अच्छी गहरी जुताई करना चाहिए। अंतिम जुताई के समय पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा, समतल और खरपतवार मुक्त कर देना चाहिए।
ध्यान रहे खेत में जलभराव की समस्या न रहे। खेत की जुताई के बाद आवश्यकतानुसार मेड़ो तथा क्यारियों को बनाएं।
लैवेंडर की फसल की अच्छी बढ़वार के लिए 6 टन/एकड़ की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में मिला देना चाहिए। तथा मिट्टी की जांच के आधार पर रासायनिक उर्वरक देना चाहिए।
इसके अलावा आखरी जुताई के समय 40 KG फास्फोरस, 40 KG पोटाश और 20 KG नाइट्रोजन की मात्रा का छिड़काव प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना होता है।
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इसके फूलों की कटिंग तब करनी चाहिए जब पौधों में लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा फूल खिल चुके हों।
तने की कटाई के दौरान काटी गई शाखाओं की लम्बाई फूल सहित लगभग 12 सेंटीमीटर से कम नही होनी चाहिए।
इसके फूलों की कटिंग के बाद उन्हें निम्न तापमान पर रखकर अधिक समय तक उपयोग में लिया जा सकता हैं। किसान इसके फूलों को बाज़ार में सजावट के रूप में बेचकर नगद लाभ कमा सकते हैं।