मार्च महीना आ गया है इस महीने में सभी रबी की फसलें पकाई के चरण पर होती हैं। मार्च महीने में किसानों को अपनी फसलों का विशेष ध्यान रखना होता हैं ताकि फसल की उपज में कमी आने से बचा जा सकें।
इस लेख में हम आपको मार्च माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्यों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे।
गेहूँ की फसल में प्रत्येक 2025 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखें कि हवा की गति अधिक न हो, क्योंकि तेज हवा से फसल गिरने की संभावना बढ़ जाती है।
मौसम की स्थिति को देखते हुए किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि वे गेहूँ में पीला रतुआ रोग की नियमित निगरानी करें।
यदि पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई दें, तो प्रभावित पत्तियों को ध्यानपूर्वक तोड़कर मिट्टी में दबा दें। व्यापक रूप से (मार्च के प्रथम पखवाड़े में) परिवर्तन होने पर पानी में घुलनशील गंधक का छिड़काव करें।
रोग के लक्षण उभरने पर प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें। यदि रोग की गंभीरता अधिक हो, तो 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव दोबारा करें।
यदि फसल चूने की अवस्था में हो, तो डाइथेन एम45 @2 मि.ली./लीटर पानी या ज़िनेब @2 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। फफूंद संक्रमण अधिक होने की स्थिति में, 15 दिन बाद पुनः छिड़काव करें।
चना में फली छेदक कीट का आक्रमण दाना बनने की अवस्था में अधिक होता है। इसके नियंत्रण हेतु मोनोक्रोटोफॉस @1 लीटर या स्पिनोसैड/इमामेक्टिन बेंजोएट @250 मि.ली. को 600800 लीटर पानी में घोलकर फली आने के समय फसल पर छिड़काव करें। मटर की फसल में दाना बनने की अवस्था में हल्की सिंचाई करना लाभदायक होता है।
फली छेदक कीट मसूर की फलियों को भी नुकसान पहुँचाता है और दानों को खा जाता है। इससे बचाव के लिए फेनवालरेट @750 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस @750 मि.ली. को 600800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मटर और मसूर की फसल में मार्च के पहले पखवाड़े तक कोमल भागों से रस चूसने वाले कीटों की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड 50 ई.सी. @1 लीटर या फोसीलोन 25 ई.सी. @2 लीटर को 600800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें, जिससे इन कीटों के प्रकोप को प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सके।
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इस माह में ज्वार, बाजरा, मक्का, लोबिया और चवला जैसी चारा फसलों की सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। चारा उत्पादन के लिए उन्नतशील किस्मों का चयन करें। बेहतर उपज के लिए संकर ज्वार की बुवाई उपयुक्त होती है।
बीज उपचार: बीज को बुवाई से पहले थीरम या बाविस्टिन @2.5 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें, जिससे बीज जनित रोगों से बचाव हो सके।
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उत्तर भारत में इस माह भी गन्ने की बुवाई जारी रहेगी। बीज टुकड़े रोगमुक्त होने चाहिए, क्योंकि संक्रमित बीज से फसल में रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
बीज सुरक्षा: बुवाई से पहले बीज टुकड़ों को 0.2% उपयुक्त रसायन के घोल में उपचारित करें ताकि वे पूरी तरह सुरक्षित रहें और स्वस्थ पौधों का विकास हो सके।
रबी मौसम में बरसीम चारे की एक महत्वपूर्ण फसल के रूप में उभरकर आई है। इसका बीज बाजार में महंगा मिलता है, जिससे किसान स्वयं बीज उत्पादन कर अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
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रबी फसलों की कटाई के बाद खाली खेतों में मृदा उर्वरता वृद्धि के लिए हरी खाद वाली फसलों की बुवाई की जा सकती है। हरी खाद के लिए मुख्य रूप से दलहनी फसलें उगाई जाती हैं। दलहनी फसलें मृदा की भौतिक दशा का सुधार करने के अलावा उसमें जीवांश पदार्थ की मात्रा भी बढ़ाती हैं। हरी खाद के प्रयोग से अगली फसल में उर्वरकों की कम आवश्यकता होती है। हरी खाद की फसलों में ढैंचा, सनई, लोबिया तथा ज्वार, इत्यादि मुख्य हैं।
मुख्य नकदी फसल के साथ हरी खाद स्थान, समय, जल तथा अन्य सीमित संसाधनों के साथ प्रतिस्पर्धा करती है, इसी कारण हरी खाद के उपयोग में बहुत बाधाएं हैं।
सब्जियों में कीटों का आक्रमण: सब्जियों में चेपा का आक्रमण की निगरानी करते रहें। वर्तमान तापमान में यह कीट जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं। यह कीट कोमल हिस्सों को अधिक हानि पहुँचाते हैं, इसलिए इमिडाक्लोप्रिड @ 0.25 मिली. प्रति लीटर पानी में घोलकर फसलों पर छिड़काव करें। छिड़काव के बाद आसमान साफ़ होने पर धूप में फसलों पर पानी का असर बना रहे।
आम के भुनगे का अत्यधिक प्रकोप होने की स्थिति में मोनोक्रोटोफास अथवा डायमेथोएट @ 0.05% घोल का छिड़काव करें।
आम में खैर रोग का प्रकोप होने पर डाइनोकैप 0.05% का छिड़काव आवश्यक होता है। भुनगा कीट एवं खैर रोग की रोकथाम के लिए कीटनाशी एवं कवकनाशी का एक साथ मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।