Ad

कुम्हड़ा की खेती से करें भारी मुनाफा: जानें किस्में, पैदावार और उन्नत खेती टिप्स

Published on: 10-Dec-2024
Updated on: 10-Dec-2024

किसान भाइयों आज हम आपको कुम्हड़ा की खेती के बारे में जानकारी देंगे। क्योंकि इससे निर्मित होने वाले पेठे की मांग निरंतर बाजार में बनी रहती है।

इसको सफेद कद्दू, सर्दियो का खरबूजा या धुंधला खरबूजा भी कहा जाता है। इसका मूल स्थान दक्षिण-पूर्व एशिया है। यह चर्बी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और रेशे का उच्चतम स्त्रोत है।

इसका उपयोग काफी सारी औषधियां बनाने में भी किया जाता है। इसमें केलरी कम होने की वजह से यह शुगर के मरीजों के लिए अत्यंत फायदेमंद है।

इसका इस्तेमाल कब्ज, एसिडिटी और आंतड़ी के कीट के उपचार के रूप में भी किया जाता है।

प्रसिद्ध किस्में और पैदावार

PAG-3 (2003): इस किस्म की मध्यम लंबाई की बेलों के हरे पत्ते होते हैं। इसका फल आकर्षक, गोलाकार और औसत आकार के होते हैं।

यह किस्म बुवाई से लेकर कटाई तक 145 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। फलों का वजन औसतन 10 किलो होता है और इसकी औसतन पैदावार 120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। हालाँकि, रेतली दोमट मिट्टी में यह शानदार उपज प्रदान करती है। मिट्टी का उचित pH 6-6.5 होना चाहिए।

ये भी पढ़ें: तारामीरा की खेती - कम पानी और सूखे क्षेत्रों के लिए लाभदायक फसल

आईसीएआर(ICAR), आईआईएचआर (IIHR) बैंगलोर द्वारा तैयार लोकप्रिय किस्में

1. Kashi Surbhi

  • इसका फल आयताकार, दीर्घवृत्ताभ, छिलका हरा सफेद, अंदर से सफेद होता है।
  • इस फल का औसत वजन 10-12 किलोग्राम होने के साथ फल लंबी दूरी के परिवहन के लिए उपयुक्त है।
  • इसकी उपज क्षमता 240 क्विंटल प्रति एकड़ (खरीफ मौसम) और 210-200 क्विंटल प्रति एकड़ (ग्रीष्म ऋतु) है।

2. Kashi Dhawal

  • यह किस्म एक स्थानीय संग्रह से ली गई है। इसकी बेल की लंबाई 7.5-8 मीटर होती है।
  • इसका फल आयताकार, अंदर से सफेद, मोटाई 8.5-8.7 सेंटीमीटर, बीज व्यवस्था रैखिक, औसत वजन 11-12 किलोग्राम, फसल अवधि 120 दिन और उपज 230-240 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • इसके फल में उच्च मात्रा में गुद्दा होता है, जिससे यह पेठा मिठाई बनाने के लिए उपयुक्त है।

इसके अतिरिक्त अन्य राज्यों की किस्मों में CO 1, CO 2, Pusa Ujjwal, Kashi Ujawal, MAH 1, IVAG 502 है। 

भूमि की तैयारी

मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा करने के लिए 3-4 बार जोताई करें। अंत में जोताई करने से पहले 20 किलो गली-सड़ी रूडी की खाद 40 किलो प्रति एकड़ के साथ मिला कर डालें।

ये भी पढ़ें: कोदो की खेती - कम पानी में अधिक मुनाफा देने वाली फसल

बिजाई

  • उत्तरी भारत में इसकी खेती दो बार की जाती है। इसकी बिजाई फरवरी-मार्च में भी की जाती हैं। साथ ही, इसके बीच का फासला 3 मीटर चौड़े बैडों पर, जिनमें 75-90 सैं.मी. का फासला हो, एक तरफ दो बीज बोयें।
  • वहीं, अगर हम बीज की गहराई की बात करें तो इसके बीजों को 1-2 सै.मी. गहराई पर बोयें।
  • बीजों को सीधा ही बैडों पर बोया जाता है। बीज की मात्रा एक एकड़ में 2 किलो बीज की होनी चाहिए।

बीज का उपचार

बीजों को मिट्टी में पैदा होने वाली फंगस से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें।

रसायनिक उपचार के बाद ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम या सिओडोमोनस फ्लूरोसेंस 10 ग्राम के साथ प्रति किलो बीज का उपचार करें। 

सिंचाई

सिंचाई की बात करें तो जलवायु और मिट्टी की किस्म के अनुसार गर्मियों की ऋतु में  7-10 दिनों के फासले पर सिंचाई करें।

बारिश की ऋतु में बारिश के अनुसार सिंचाई करें। साथ ही, खरपतवार की तीव्रता के अनुसार, हाथों या कसी के साथ गोडाई करें।

मलचिंग के साथ भी खरपतवार को रोका जा सकता है और पानी की बचत भी की जा सकती है।

फसल की कटाई

किस्म के आधार पर फसल 90-100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। मांग के मुताबिक फलों की तुड़ाई पकने के समय या उससे पहले की जा सकती है।

पके हुए फलों को ज्यादातर बीजों के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। फलों को तेज चाकू के साथ बेल के पास से काटें।

ये भी पढ़ें: तीखुर क्या है? इसकी खेती, उपयोग और फायदे जानें

बीज उत्पादन

बीज के उत्पादन के लिए, बीजों को फरवरी-मार्च के महीने में बोयें। बीमारी वाली और जरूरत ना होने वाली फसलें फूल निकलने, फल बनने और पकने के समय हटा दें।

जब फल और तने के तल पर सफेद पन दिखाई दें, तो फल काटने का सही समय होता है। बीजों को अलग करके लगाएं और पानी के साथ धो लें।

फिर बीजों को स्टोर करने से पहले सूखा लें। बीजों को कम तापमान और कम नमी पर स्टोर किया जाता है।

Ad