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काली जीरी क्या होती है और इसकी खेती कैसे की जाती है?

Published on: 03-Jan-2025
Updated on: 03-Jan-2025

काली जीरी की खेती एक औषधीय फसल के रूप में की जाती है। इस पौधे में अनके औषधीय गुण होते है, ये पौधा देखने में छोटे आकर का होता है। खाने में इसका स्वाद कड़वा होता है।

इसका इस्तेमाल अनेक कामों के लिए किया जाता है। इसकी तासीर गरम होती है। काली जीरी देखने में सामान्य जीरे जैसा होता है इसका रंग काला होता है।

अंग्रेजी में इसे "ब्लैक क्यूमिन सीड" कहा जाता है। संस्कृत में इसे "कटुजीरक" और "अरण्यजीरक" के नाम से जाना जाता है। मराठी में इसे "कडूजीरें" कहा जाता है।

गुजराती भाषा में इसे "कालीजीरी" ही कहा जाता है। लैटिन भाषा में इसे "वर्नोनिया एन्थेल्मिंटिका" कहा जाता है। इस लेख में हम आपको इसकी खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।

काली जीरी की खेती के लिए जलवायु और मिट्टि

इसकी खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। ये एक ठण्ड को पसंद करने वाला पौधा है। इसकी खेती के लिए रबी का मौसम सही रहता है।

पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए मौसम ठंडा होना चाहिए और फसल में बीज बनने के समय इसको ग्राम मौसम की आवश्यकता होती है।

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काले जीरे की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट और मध्यम मिट्टी इस फसल के लिए उपयुक्त होती है।

काली जीरी की उन्नत किस्में

अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना बहुत आवश्यक है। काली जीरी की उन्नत किस्में इस प्रकार है:

  • स्टैंग (2.1)
  • बारंग (1.3)
  • सनजी (1.9)
  • रिस्पा (2.0)
  • कनम (2.4)
  • किल्बा (1.7)
  • रिब्बा (1.8)
  • सिंगला (2.3)
  • तेलंगी (1.4)
  • थंगी (1.9)
  • लोबसांग (2.1)
  • माईबर (2.4)
  • रोजी (1.5)
  • कोठी (1.8)

बुवाई के लिए भूमि की तैयारी 

बुवाई से पहले भूमि की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए, मिट्टी को 2-3 बार हैरो या देसी हल से जोतकर भुरभुरी बना लिया जाता है।

पिछली फसलों के अवशेष इकट्ठा करके खेत से हटा देने चाहिए। मिट्टी के ढेले तोड़कर खेत को पटरे की मदद से समतल किया जाना चाहिए।

बीज बोने से पहले 4 मीटर × 3 मीटर आकार के बेड बनाकर सिंचाई की नालियों का प्रावधान करना चाहिए, जिससे उचित सिंचाई और अंतर-कल्चर संचालन में सहूलियत हो।

बुवाई का समय

इसकी बुवाई रबी की फसल के रूप में की जाती है। इसकी बुवाई करने का उत्तम समय एक नवंबर से लेकर 25 नवंबर के बीच का माना जाता है।

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बुवाई के लिए बीज की मात्रा और बीज का उपचार

जीरे की बुवाई के लिए 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें। बुवाई करने से पहले बीज को उपचारित करना बहुत आवश्यक है।

बुवाई नवंबर के पहले सप्ताह से दिसंबर के पहले सप्ताह के बीच प्रसारण या 30 से.मी. की पंक्तियों में की जाती है।

बीज दर 12 से 15 कि.ग्रा./हेक्टेयर होती है, जो बुवाई की विधि और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। बीजों को बुवाई से पहले सेरेसन, थिरम या डिफोल्टन @ 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित करना चाहिए।

बुवाई से 8 घंटे पहले बीजों को भिगोने से अच्छा अंकुरण प्राप्त करने में मदद मिलती है। भीगे हुए बीजों को छाया में सुखाकर प्रसारण में सहूलियत के लिए तैयार करना चाहिए।

बीजों को अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कीट और बीमारियों की समस्या से बचने के लिए फसल चक्र का पालन करना चाहिए।

खाद एवं उर्वरक

जीरे की फसल के लिए 15-20 टन एफवाईएम (गोबर खाद), 30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 15 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर की सिफारिश की जाती है।

पूरी मात्रा में एफवाईएम को भूमि तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए।

15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और पूरी फॉस्फोरस की मात्रा को बेसल डोज के रूप में डालना चाहिए। अंकुरण के एक महीने बाद 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन को टॉपड्रेसिंग के रूप में डालना चाहिए।

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निराई

फसल को उचित वृद्धि और विकास के लिए खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। आमतौर पर खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए 2-3 हाथ से निराई की आवश्यकता होती है।

पंक्तियों में बोई गई फसल में हल्की अंतर-कल्चर संचालन लाभकारी होती है। पहली निराई और गुड़ाई बुवाई के 30-40 दिनों बाद करनी चाहिए।

सिंचाई

मिट्टी के प्रकार के आधार पर फसल को 4-6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए और दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 6-10 दिन बाद करनी चाहिए।

इसके बाद की सिंचाई 30, 45, 65 और 80 दिन बाद करनी चाहिए। फूल आने और फल बनने के समय सिंचाई आवश्यक होती है। पकने की अवस्था में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।

फसल की कटाई

जीरे की फसल को पकने में आम तौर पर 110 से 115 दिन लगते हैं। जब पौधे पीले भूरे रंग के हो जाते हैं, तो फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है।

सुबह जल्दी से पूरा पौधा काटकर उखाड़ना चाहिए। कटी हुई फसल को खलिहान में सुखाना चाहिए, फिर बीज निकालना चाहिए। बीज फटकर साफ होना चाहिए।