सफ़ेद मूसली, जिसे अंग्रेजी में "White Musli" या "Safed Musli" कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जो मुख्य रूप से भारत में उगाया जाता है।
इसकी खेती विशेष रूप से आयुर्वेदिक दवाओं के लिए की जाती है क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। भारत में इसकी खेती मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश में ज्यादा की जाती है। किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते है।
सफ़ेद मूसली (Safed Musli), जिसका वैज्ञानिक नाम Chlorophytum borivilianum है, एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है जिसे आयुर्वेदिक चिकित्सा में कई समस्याओं के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके औषधीय गुण इसे विभिन्न स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।
इसके कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित है:
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सफ़ेद मुलसी की बुआई जून-जुलाई माह के 1-2 सप्ताह में की जाती है, जिसका कारण इन महीनों में प्राकृतिक वर्षा होती है अत: सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती के लिए गर्म तथा नम जैल्यु की आवश्यकता होती है।
इसकी खेती वैसे तो कई प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है परन्तु इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी जिसमें उचित जल निकासी की व्यवस्था हो उसे उत्तम मानी जाती है।
सफ़ेद मुलसी की खेती के लिए जमीन को 2 - 3 बार 30 - 40 सेंटीमीटर तक जोत लेना चाहिए। जिससे की भूमि अच्छे से नरम और भुरभुरी हो जाती है। जुताई के समय खेत में 30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दें।
सफ़ेद मुलसी की खेती बीज तथा कंद दोनों से की जा सकती है। बीज द्वारा खेती के लिए 18 - 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
बीज से बोई की गयी फसल में अंकुरण बहुत कम (14 -16 प्रतिशत) होता है। इसलिए इसकी खेती कंद लगाकर करनी चाहिए।
कंद से पौधे तैयार करने के लिए स्वस्थ कंदो का प्रयोग करना चाहिए। कंदो या गाठों को रोपाई से पहले बीजोपचार द्वारा तैयार करना चाहिए। एक अकड़ में रोपाई के लिए लगभग 5 या 5.5 क्विंटल कंदो की आवश्यकता होती है।
सफ़ेद मुलसी के रोपण के लिए जून का प्रथम सप्ताह अच्छा माना जाता है या अगर हल्की वर्षा हो जाती है तो उस समय भी इसकी बुवाई कर लेनी चाहिए।
सफ़ेद मुलसी के पोधो को 10 इंच दुरी पर लगाना चाहिए। पोधो को जमीन में 1 इंच की गहराई तक लगाना चाहिए।
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सफ़ेद मुलसी एक खरीफ की फसल है इसलिए इसको अधिक सिंचाई की आवश्यता नहीं होती है। यदि लंबे समय तक वर्षा नहीं होती है तो 15 दिन के अंतराल पर फसल में सिंचाई अवश्य करें।
फसल में खरपतवारों से बचाव के लिए समय समय निराई गुड़ाई के कार्य करते रहना चाहिए।
नवंबर माह में इसकी फसल तैयार हो जाती है। नवंबर में इसकी खुदाई की जाती है, प्रत्येक पौधे में लगभग 10 से 12 कंद प्राप्त होते है।
खुदाई से पहले खेत में हल्की सिंचाई करें जिससे की आसानी से कंद मिट्टी से बहार निकाले जा सकें। प्रति एकड़ सूखे कंद की उपज 3 से 3.5 क्विंटल तक प्राप्त होती है।
बाजार में इनका रेट 600 रूपए से 1500 रूपए प्रति किलो तक मिल जाता है।