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दिसंबर महीने में गेहूं की अधिक पैदावार लेने के लिए किसान करें ये मुख्य काम

Published on: 13-Dec-2023


भारत में रबी सीजन में सबसे अधिक किसान गेहूं की खेती करते हैं। किसानों को गेहूं की खेती में अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए नई वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। गेहूं की बुआई का समय वैसे भी निकल गया है। फिर भी किसान 25 दिसंबर तक पिछेती गेहूं की बुआई कर सकते हैं। गेहूं की समय पर बोई गई फसल में वर्तमान में बढ़वार की क्रांतिक अवस्था होती है। रबी सीजन में गेहूं की खेती कर रहे किसानों को अधिक पैदावार देने के लिए कृषि विभाग और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा निरंतर सलाह दी जाती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने दिसंबर महीने में गेहूं की खेती के बारे में किसानों को सलाह दी है।

देरी से बुआई करने वाले किसान इस बात का रखें ध्यान

  • वर्तमान में, प्रति इकाई भूमि से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए बहुआयामी या सघन कृषि प्रणालियों का पालन किया जा रहा है। कम अवधि वाली फसलें, जैसे मटर, तोरिया और आलू, मुख्य फसलों के बीच में उगाई जाती हैं। इससे गेहूं समय पर बुआई नहीं होती है। इस तरह की गन्ने की कटाई के बाद गेहूं की भी समय पर बुआई नहीं की जाती है।
  • सामान्यत: देरी से बोये गए गेहूं में भी किसान सामान्य गेहूं के लिए अनुमोदित सस्य खेती करते हैं, जिससे उत्पादकता काफी कम हो जाती है। दिसंबर में तापमान कम होने से अंकुरण काफी कम होना, प्रारंभिक वृद्धि धीमी होना और फरवरी से मार्च में तापमान बढ़ने से फसल जल्दी पकना सब संभव है। अतः देरी से बोये जाने वाले गेहूं से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए नवीनतम तकनीक का प्रयोग करना चाहिए।



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किस समय करें गेहूं की पछेती किस्मों की बिजाई ?

  • अधिकांश किसान सामान्य प्रजातियों को पछेती बुआई में भी उगाते हैं, जिससे उनकी उत्पादकता काफी कम हो जाती है। ऐसी परिस्थितियों में अधिक उत्पादकता के लिए देरी से बोने वाले प्रजातियों को ही बोना चाहिए। उन्नत प्रजातियों (एच.आई.-1621, एच.डी.-3271, एच.डी.-3018, एच.डी.-3167, एच.डी.-3117, एच.डी.-3118, एच.डी.-3059, एच.डी.-3090, एच.डी.-2985, एच.डी.-2643, एच.डी.-2864, एच.डी.-2824, एच.डी.-2932, एच.डी.-2501, WR 544 (पूसा गोल्ड), यदि दानों का आकार बड़ा या छोटा है, तो उसी अनुपात मे बीज दर घटाई या बढ़ाई जा सकती है।।
  • देश में पछेती गेंहू का अधिक उत्पादन करने के लिए, बुआई को 10 दिसंबर तक, उत्तरी भारत में 25 दिसंबर तक और दक्षिणी भारत में 30 नवंबर तक करना चाहिए। खरपतवारों के बीजों से मुक्त और साफ बीज होना चाहिए। छोटे, कटे-फटे बीज निकाल देना चाहिए। प्रमाणित और आधारभूत बीजों की ही बुआई करनी चाहिए। 1.0 किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम बाविस्टिन, 2 ग्राम कैप्टान या 2.5 ग्राम थीरम से शोधित करना चाहिए अगर बीज शोधित नहीं है।

बीज दर

सिंचित क्षेत्रों में पछेती बुआई और लवणीय–क्षारीय मृदाओं के लिए बीज दर 125 kg/ha पर्याप्त है। यही कारण है कि उत्तरी-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में, जहां गेहूं धान के बाद बोया जाता है, प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। गेहूं आम तौर पर 15 से 23 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोया जाता है। देरी से बोने और उसर जमीन पर पंक्तियों में 15 से 18 सेमी की दूरी होनी चाहिए। बीज को 4 से 5 सेमी की गहराई पर अंकुरित करना चाहिए।

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बुवाई करने का तरीका

बुआई को देसी हल या सीडड्रिल से ही करना चाहिए। छिटकवां बोने से बीज अधिक लगता है। जमाव कम होता है, निराई-गुड़ाई मुश्किल होती है और आसमान पौधों की अधिकता से उपज कम होती है। इस प्रक्रिया को नहीं अपनाना चाहिए। सीडड्रिल बुआई आजकल काफी लोकप्रिय हो रही है। इससे जमाव बेहतर होता है और बीज की गहराई और पंक्तियों की दूरी नियंत्रित रहती हैं। विभिन्न परिस्थितियों में बुआई के लिए फर्टि-सीड ड्रिल, जीरो-टिल ड्रिल और शून्य फर्ब ड्रिल आदि मशीनों का प्रयोग बढ़ रहा है।

गेहूं की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन

  • किसानों को बुआई से पहले मृदा में 5 से 10 टन गोबर की खाद अच्छी तरह मिलानी चाहिए। यह भूमि का उचित तापमान और जल धारण क्षमता बनाए रखने में मदद करता है। इससे पौधे का विकास और बढ़वार बेहतर होता है। प्रति हेक्टेयर पिछेती गेहूं को 120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश चाहिए।
  • बुआई के दौरान बालुई दोमट मृदा में चालिस किलोग्राम फाँस्फेट और पोटाश, और भारी दोमट मृदा में छह० किलोग्राम नाईट्रोजन चाहिए। यदि गेहूं की फसल में जिंक सल्फेट की कमी है, तो 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इसे बुआई के समय खेत में डालना चाहिए।
  • यदि इसके बाद भी जिंक सल्फेट की कमी दिखाई देती है, तो किसान भाई को 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का पर्णीय छिड़काव करना चाहिए (21 प्रतिशत)। पहली सिंचाई के दौरान, बालुई दोमट मृदा में 40 किलोग्राम प्रति हैक्टर नाईट्रोजन की टाँप ड्रेसिंग होनी चाहिए, जबकि भारी दोमट मृदा में 60 किलोग्राम प्रति हैक्टर नाईट्रोजन की टाँप ड्रेसिंग होनी चाहिए।
  • दूसरी सिंचाई के समय बालुई दोमट मृदा में शेष 40 किलोग्राम नाईट्रोजन की आवश्यकता होगी। गंधक की कमी को दूर करने के लिए, गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फाँस्फेट या अमोनियम सल्फेट का उपयोग करें। 200 लीटर पानी में मैंगनीज सल्फेट मिलाकर 2 से 3 दिन पहले छिड़काव करना चाहिए।

गेहूं की फसल में सिंचाई करने का उचित समय

गेहूं की फसल को पूरे फसल चक्र में लगभग 35 से 40 सेमी. जल की आवश्यकता होती है। जब इसकी छत्रक (क्राउन) जड़ें निकल जाती हैं और बालियां निकल जाती हैं, तो सिंचाई बहुत जरूरी है; अन्यथा, यह उपज पर बुरा प्रभाव डालता है। गेहूं के लिए आम तौर पर चार से छह सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। गेहूं की बुआई के 20 से 25 दिनों पर 5 से 6 सेमी की पहली सिंचाई करनी चाहिए, फिर 40 से 45 दिनों पर ताजमूल (CRI) अवस्था पर दूसरी सिंचाई करनी चाहिए।

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