Ad

आलू की खेती

आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

किसानों को खेती किसानी के लिए मजबूत बनाने में कृषि वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कड़ी में ICAR की तरफ से आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। कृषकों को सर्दियों के समय अपनी फसलों का संरक्षण करने के उपाय और निर्देश दिए गए हैं। 

आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए महत्वपूर्ण समाचार है। यदि आप भी आलू का उत्पादन करते हैं, तो इस समाचार को भूल कर भी बिना पढ़े न जाऐं।  क्योंकि, यह समाचार आपकी फसल को एक बड़ी हानि से बचा सकता है। दरअसल, सर्दियों के दौरान कोहरा कृषकों के लिए एक काफी बड़ी चुनौती बन जाता है। विशेष रूप से जब कड़ाकड़ाती ठंड पड़ती है। इस वजह से केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम मेरठ (ICAR) ने आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है।

ICAR की एडवाइजरी में क्या क्या कहा गया है ?

ICAR की इस एडवाइजरी में कृषकों को यह बताया गया है, कि वे अपनी फसलों को किस तरह से बचा कर रख सकते हैं। कुछ ऐसे तरीके बताए गए हैं, जो कि सहज हैं और जिनसे आप अपनी फसलों को काफी सुरक्षित रख सकेंगे। यदि किसान के पास सब्जी की खेती है, तो उसे मेढ़ पर पर्दा अथवा टाटी लगाकर हवा के प्रभाव को कम करने पर कार्य करना चाहिए। ठंडी हवा से फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचती है। इसके अतिरिक्त कृषि विभाग की तरफ से जारी दवाओं की सूची देखकर किसान फसलों पर स्प्रे करके बचा सकते हैं। सर्दियों में गेहूं की फसल को कोई हानि नहीं होती है। हालांकि, सब्जियों की फसल काफी चौपट हो सकती है। ऐसी स्थिति में कृषकों को सलाह मशवरा दिया गया है, कि वह वक्त रहते इसका उपाय कर लें।

ये भी पढ़ें: आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

किसान भाई आलू की फसल में झुलसा रोग से सावधान रहें 

ICAR के एक प्रवक्ता का कहना है, कि आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है। इसकी वजह फंगस है, जो कि झुलसा रोग या फाइटोथोड़ा इंफेस्टेस के रूप में जाना जाता है। यह रोग आलू में तापमान के बीस से पंद्रह डिग्री सेल्सियस तक रहने पर होता है। अगर रोग का संक्रमण होता है या वर्षा हो रही होती है, तो इसका असर काफी तीव्रता से फसल को समाप्त कर देता है। आलू की पत्तियां रोग के चलते किनारे से सूख जाती हैं। किसानों को हर दो सप्ताह में मैंकोजेब 75% प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। अगर इसकी मात्रा की बात करें तो यह दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के तौर पर होनी चाहिए।

आलू की खेती में इन चीजों का स्प्रे करें

प्रवक्ता का कहना है, कि संक्रमित फसल का संरक्षण करने के लिए मैकोजेब 63% प्रतिशत व मेटालैक्सल 8 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम व मैकोनेच संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में 200 से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इसके अतिरिक्त, तापमान 10 डिग्री से नीचे होने पर किसान रिडोमिल 4% प्रतिशत एमआई का इस्तेमाल करें। 

ये भी पढ़ें: आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

अगात झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह से होता है। इसकी वजह से पत्ती के निचले भाग पर गोलाकार धब्बे निर्मित हो जाते हैं, जो रिंग की भांति दिखते हैं। इसकी वजह से आंतरिक हिस्से में एक केंद्रित रिंग बन जाता है। पत्ती पीले रंग की हो जाती है। यह रोग विलंब से पैदा होता है और रोग के लक्षण प्रस्तुत होने पर किसान 75% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण, मैंकोजेब 75% प्रतिशत विलुप्तिशील पूर्ण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण को 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर पर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। 

धान की फसल के बाद भी किसान कर सकते हैं आलू की खेती, जाने सम्पूर्ण जानकारी

धान की फसल के बाद भी किसान कर सकते हैं आलू की खेती, जाने सम्पूर्ण जानकारी

आलू की खेती रबी के मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है। उत्तर प्रदेश में आलू की खेती सबसे ज्यादा की जाती है। आलू की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। आलू की बुवाई का कार्य छोटे किसानों द्वारा हाथ से किया जाता हैं वही बड़े किसानों द्वारा मशीन से  बुवाई का कार्य किया जाता हैं। अब किसानों द्वारा आलू की खेती धान की कटाई के बाद भी की जा सकती हैं। इस लेख में हम आपको आलू की खेती के बारे में सम्पूर्ण जानकरी देंगे।

आलू की बुवाई के लिए भूमि की तैयारी 

आलू की बुवाई के लिए सबसे पहले भूमि की अच्छे तरीके से जुताई होनी चाहिए। खेत की जुताई के बाद आलू की रोपाई से पहले उसमे जैविक खाद को भी मिलाया जाता हैं ताकि आलू की उर्वरकता अच्छे से हो सके। आलू की खेती करने से पहले भूमि की कम से कम दो से तीन बार जुताई करनी चाहिए। अंतिम जुताई से पहले खेत में 4 से 5 ट्राली गोबर की खाद डालनी चाहिए और बाद में जुताई करके उसे खेत में अच्छी तरीके से मिला दे, ताकि पूरे खेत में खाद फ़ैल जाये और भूमि को ज्यादा उपजाऊ बनाया जा सके। इस खाद के प्रयोग से खेत की उर्वरा शक्ति भी बनी रहेगी और आलू के उत्पादन में भी इजाफा होगा।

ये भी पढ़ें:
आलू की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

आलू की बुवाई का सबसे अच्छा समय क्या हैं

आलू की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय सितम्बर से अक्टूबर के बीच का महीना माना जाता है।  यानी जब धान की कटाई पूरी हो जाती हैं इसके तुरत बाद यदि किसान आलू की खेती करना चाहे तो कर सकता है।  15 सितम्बर से 15अक्टूबर के बीच का समय आलू की बुवाई के लिए बेहतर माना जाता हैं। साल में आलू की बुवाई दो बार की जाती हैं। सितम्बर माह से आलू की बुवाई को अगेती बुवाई माना जाता है। किसान नवंबर से दिसंबर के महीने में भी आलू की पछेती रोपाई करते है।

आलू की फसल में कितनी बार सिंचाई की जानी चाहिए

आलू की बुवाई के बाद खेत में 3 - 4 सिंचाई की जानी चाहिए। यदि आलू की फसल में ज्यादा पानी लगाया जायेगा तो फसल खराब भी हो सकती है। आलू की फसल में हमेशा हल्की से माध्यम सिंचाई ही करनी चाहिए। आलू की खुदाई के कुछ दिन पहले से ही सिंचाई को रोक देना   चाहिए। अगर सिंचाई का कार्य रोका नहीं जाता हैं तो इससे फसल को भारी नुक्सान पहुंच सकता हैं। आलू के खेत में सिर्फ इतना ही पानी देना चाहिए जिससे मिट्टी में नमी रह सके। यदि आपको लगता हैं की आलू के पौधे पीले पड रहे हैं, तो उसी समय खेत में पानी देना बंद कर दे।

क्या आलू की खेती में ज्यादा लागत आती हैं

आलू की खेती में अन्य फसलों के मुकाबले ज्यादा लागत नहीं आती हैं।आलू की खेती छोटे किसान भी लाभ उठाने के लिए कर सकते है। आलू की खेती भारत के बहुत से राज्यों में सामान्य रूप से करी जाती है। आलू की फसल का उत्पादन किसान द्वारा साल में दो बार किया जा सकता हैं आलू की खेती में बहुत ही कम पानी की आवश्कता रहती है।  यदि किसान रासायनिक पदार्थो का उपयोग करके उत्पादन नहीं करना चाहते हैं तो वो जैविक खाद का भी उपयोग कर सकते हैं या फिर गोबर खाद का भी उपयोग किसानो द्वारा किया जा सकता है।

आलू की खुदाई कब की जाती हैं

आलू की खुदाई मध्य मार्च के महीने में करी जाती हैं। आलू की खुदाई का सही समय मध्य मार्च  ही माना जाता है। आलू की फसल लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं, लेकिन ज्यादा से ज्यादा समय 90-110 दिन का समय आलू की फसल को पकने में लगता है। आलू की खुदाई के बाद कम से कम आलू को कुछ दिनों के लिए सूखने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए ताकि आलू को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। आलू की फसल को कई प्रकार के रोगों से बचाने के लिए किसानों द्वारा आलू को कोल्ड स्टोर जैसी जगहों पर स्टॉक कर दिया जाता हैं, ताकि आलू की कीमत बढ़ने पर आलू को स्टोर से निकाला जा सके और उन्हें अच्छी कीमतों पर बेचा जा सकें। 

हर सब्जी के साथ उपयोग होने वाले आलू को घर पर उगाने का आसान तरीका क्या है?

हर सब्जी के साथ उपयोग होने वाले आलू को घर पर उगाने का आसान तरीका क्या है?

कोई भी व्यक्ति अपने घर में आलू का उत्पादन करके काफी धन की बचत कर सकता है। ये एक ऐसी सब्जी है, जिसका इस्तेमाल प्रत्येक सब्जी में किया जाता है। आलू एक ऐसी सब्जी है, जिसका उपयोग हर घर में किया जाता है। ये भारत के घरों में सबसे ज्यादा इस्तेमाल में आने वाली सब्जी भी है। आलू की सब्जी घरों में विभिन्न प्रकार से बनती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप इसे घर में भी उगा सकते हैं। इसे घर पर लगाने के बाद बाजार से आलू खरीदकर लाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा, आइए जानते हैं इसे घर में लगाने का आसान तरीका। 

आलू उगाने के समय इन बातों का विशेष ध्यान रखें 

यदि आप अपने घर पर ही आलू उगाना चाहते हैं, तो आप अच्छे बीजों का चुनाव करें। आलू उगाने के लिए आप सर्टिफाइड बीजों का ही चयन करें। इसके अतिरिक्त आप आलू को भी बीज के तोर पर उपयोग कर सकते हैं। अगर आप आलू का उपयोग कर रहे हैं, तो आप सफेद बड्स अथवा फिर स्प्राउट्स नजर आने वाले बीजों को इस्तेमाल में लें। इस कारण से शीघ्र ही पौधे निकल आऐंगे। ये भी पढ़ें:
आलू की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी आलू या फिर किसी भी बाकी फसल की खेती में मृदा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके लिए आप शानदार मृदा लें उसमें बेहतर ढंग से खाद डालें। आप इसके लिए 50 प्रतिशत मिट्टी, 30 प्रतिशत वर्मी कम्पोस्ट एवं 20 फीसदी कोको पीट का उपयोग कर सकते हैं। आप इन समस्त चीजों को मिलाकर एक बड़े गमले में लगा दें।

आलू को घर पर बेहतर ढ़ंग से उगाऐं 

आलू के अंकुरों को गमले, कंटेनर अथवा क्यारी में मृदा के नीचे 5-6 इंच नीचे दबा दें। ऊपर से सही ढक कर पानी डाल दें। आप बाजार में बड़े गमले, ग्रो बैग, घर पर कोई पुरानी बाल्टी अथवा कंटेनर का भी उपयोग कर सकते हैं। आलू के अंकुरों को गमले, कंटेनर या क्यारी में मृदा के नीचे 5-6 इंच नीचे दबा दें। ऊपर से सही तरीके से पानी डाल दें। आप बाजार में उपलब्ध ग्रो बैग, बड़े गमले, घर पर कोई पुरानी बाल्टी अथवा कंटेनर भी उपयोग कर सकते हैं। 
आलू बीज उत्पादन से होगा मुनाफा

आलू बीज उत्पादन से होगा मुनाफा

आलू को सब्ज़ियों का राजा माना जाता है। राजा इसलिए क्योंकि इसका अधिकांश सब्जियों में प्रयोग होता है।आलू उत्पादक प्रदेशों की बात करें तो उत्तर प्रदेश इसमें प्रमुख है। यहां के अलावा पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, पंजाब आसाम एवं मध्य प्रदेश में आलू की खेती होती है। आलू उत्पादन में यूपी का तकरीबन 40 प्रतिशत योगदान रहता है। यहां के किसान आलू की उन्नत खेती के लिए जाने जाते हैं लेकिन बीज उत्पादन के क्षेत्र में जो स्थान पंजाब के किसानों ने हासिल किया है वह यहां के किसान नहीं कर पाए हैं । अब जरूरत आलू के उत्पादन के साथ बीज उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ने की है। आलू की खेती मोटी लागत चाहती है। इसे सामान्य किसान नहीं कर सकते। बाजारू गिरावट की स्थिति में कई किसानों को मोटा नुकसान भी उठाना पड़ता है। नुकसान के झटके को कई किसान झेल भी नहीं पाते। यूंतो सामान्य तरीके से किसान बीज तैयार करते हैं इसे प्रमाणित कराकर बेचने की बात ही कुछ और है। बीज उत्पादन और आलू उत्पादन में मूलतः ज्यादा फर्क नहीं होता। इस लिए आलू उत्पादन के साथ किसान बीज उत्पादन को समझें और खुद के लिए बीज तैयार करना शुरू करें।   

   aloo 

 आलू की अभी तक करीब तीन दर्जन किस्में विकसित हो चुकी हैं। इनमें कई कम समय में तैयार होने वाली हाइब्रिड किस्में भी किसानों में खूब भा रही हैं। आलू भी दो तरह का होता है। सब्जी वाला और प्रसंस्करण के लिए उपयोग में आने वाला। 

ये भी पढ़े: Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

 सब्जी वाली किस्मों में कुफरी चंद्रमुखी किस्म 70 से 80 दिन में तैयार हो जाती है। इससे 200 से 250 कुंतल प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है। इसमें पछेती अंगमारी रोग आता है। कुफरी बहार जिसे 3797 नंबर दिया गया है, करीब 100 दिन में तैयार होती है और उपज 250 से 300 कुंतल मिलती है। इसे पक्का आलू माना जाता है। कुफरी अशोका अगेती किस्म है। यह संपूर्ण सिन्धु एवं गंगा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है। अधिकतत 80 दिन में तैयार होकर 300 कुंतल तक उपज देती है। कुफरी बादशाह पकने में लम्बा समय लेती है। यह पछेती अंगमारी रोग रोधी है। जल्दी खुदाई करने पर भी अच्छा उत्पादन रहता है। अधिकतम 120 दिन में तैयार होकर 400 कुंतल तक उपज देती है। कुफरी लालिमा जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। छिलका गुलाबी होता है। यह अगेती झुलसा रोग के लिए मध्यम अवरोधी है। 100 दिन में 300 कुंतल, कुफरी पुखराज 100 दिन में 400 कुंतल, कुफरी सिंदूरी 120 से 140 दिन में पकती है। यह मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है। 400 कुंतल, कुफरी सतलुज 110 दिन में पकती है। सिंधु, गंगा मैदानी तथा पठारी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। उपज 300 कुंतल, कुुफरी आनंद 120 दिन में 400 कुंतल तक उपज देती है। आलू का उपयोग प्रसंस्करण इकाईयों में बहुत हो रहा है। चाहे आलू भुजिया हो, चिप्स या फिर पापड़ आदि। इसके लिए हिमाचल स्थित कुफरी संस्थान ने अन्य किस्में विकसित की हैं। इनमें प्रमुख रूप से कुफरी चिपसोना-1, 110 दिन में तैयार होकर 400 कुंतल तक उपज देती है। कुफरी चिपसोना-2 किस्म 110 दिन में तैयार होकर 350 कुंतल तक उपज देती है। 

ये भी पढ़े: इन तरकीबों से होगा आलू का बंपर उत्पादन 

 कुफरी चिप्सोना-3, कुफरी सदाबहार, कुफरी चिप्सोना-4, कुफरी पुष्कर के पकने की अवधि 90 से 110 दिन है। कुफरी मोहन नई किस्म है। इनका उत्पादन भी 300 कुंतल से ज्यादा ही आता है। किस्मों की कमी नहीं और आलू की खेती जागरूक किसान ही ज्यादा करते हैं। उन्हें अपने इलाके के लिए उपयुक्त किस्मों की जानकारी रहती है। यह इस लिए भी आसान होता है क्योंकि किसान समूह में ही बीज खरीदकर लाते हैं और बेचने का काम भी समूह में होता है। 

आलू के बीज उत्पादन के लिए हर जनपद स्तर पर हर साल आधारीय बीज आता है। इस बीज के कट्टों पर सफेद रंगा का टैग लगा होता है। आधारीय बीज भी दो तरह का होता है आधारीय प्रथम एवं आधारीय द्वितीय। यदि किसानों को दो साल तक खुद के बीज को प्रयोग करना है तो आधारीय प्रथम बीज खरीदें। इससे पहले साल आधारीय द्वितीय बीज तैयार होता। अगले साल उस बीज से प्रमाणित बीज बनेगा। बीज तैयार करने के लिए फसल में 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। इसके अलावा माहू कीट फसल पर दिखने लगे तभी पाल को काटकर छोड़ देना चाहिए। बीज के लिए लगने वाले आलू की बिजाई समय से करनी चाहिए। पाल की कटाई थोड़ा जल्दी इस लिए की जाती ताकि कंद का आकार बड़ा नहो। बीज के आलू का आकार छोटा ही रखा जाता है। कई किसान पूरे समय में ही आलू को निकालते हैं। उसमें से सीड और खाने के लिए आलू को साइज के हिसाब से अलग-अलग छांट लेते हैं।

बीज की बेहद कमी

  aloo seed 

 देष में आलू के बीज की बेहद कमी है। बीज कोई भी हो उत्पादन आम फसल की तरह ही होता है लेकिन कीमतों में बहुुत अंतद होता है। गेहूं यदि फसल के समय 1500 रुपए कुंतल होता है तो छह माह बाद ही वह 3000 रुपए प्रति कुंतल बिकता है। यह बात आम बीजों की है। हाईब्रिड बीजों की कीमत तो लाखों लाख रुपए प्रति किलोग्राम तक होती है और इनका उत्पान सामान्य आदमी के बसका भी नहीं लेकिन आम किस्मों का बीज कोई भी तैयार कर सकता है। पंजीकरण जरूरी हर राज्य में बीज प्रमाणीकरण संस्था होती है। बीज उत्पादन के लिए कट्टों पर लगे टैग, बीज खरीद वाली संस्था की रषीद के आधार पर पंजीकरण कराया जा सकता है।

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

इस तरह करें अगेती आलू की खेती

आज हम आपको जानकारी देने जा रहे है सब्जियों के "राजा साहब" आलू की. आलू एक ऐसी सब्जी है जो की किसी भी सब्जी के साथ मिल जाती है, आलू के व्यंजन भी बनाते है जिनकी गिनती करने लगो तो समय कम पड़ जाये. क्षेत्र के हिसाब से इसके भांति भांति के व्यंजन बनते हैं सब्जी के साथ साथ आलू की भुजिआ , नमकीन , जिप्स, टिक्की, पापड़, पकोड़े, हलुआ आदि. आलू एक ऐसी सब्जी है जब घर में कोई सब्जी न हो तो भी अकेले आलू की सब्जी या चटनी बनाई जा सकती है. सबसे खास बात ये किसान के लिए सबसे बर्वादी वाली फसल है और सबसे ज्यादा आमदनी वाली फसल भी है. सामान्यतः किसानों में एक कहावत प्रचलित है की आलू के घाटे को आलू ही पूरा कर सकता है. इससे इसकी अहमियत पता चलती है.

खेत की तैयारी:

किसी भी जमीन के अंदर वाली फसल के लिए खेत की मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए जिससे की फसल को पनपने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके, क्योकि किसी ठोस या कड़क मिटटी में वो पनप नहीं पायेगी. हमेशा आलू के खेत की मिटटी को इतना भुरभरा बना दिया जाता है की इसमें से कोई भी आदमी दौड़ के पार न कर सके. इसका मतलब इसको बहुत ही गहराई के साथ जुताई की जाती है. अभी का समय आलू के खेत को तैयार करने का सही समय है. सबसे पहले हमको खेत में बनी हुई
गोबर की खाद दाल देनी चाहिए और खाद की मात्रा इतनी होनी चाहिए जिससे की खेत की मिटटी का रंग बदल जाये, कहने का तात्पर्य है की अगर हमें 100 किलो खाद की जरूरत है तो हमें इसमें 150 किलो खाद डालना चाहिए इससे हमें रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और हमारा आलू भी अच्छी क्वालिटी का पैदा होगा.

ये भी पढ़ें:
रासायनिक कीटनाशकों को छोड़ नीम के प्रयोग से करें जैविक खेती
आलू की बुबाई से पहले खेत में जिंक आदि मिलाने की सोच रहे हैं तो पहले मिटटी की जाँच कराएं उसके बाद जरूरत के हिसाब से ही जिंक या पोटाश मिलाएं. ऐसा न करें की आपका पडोसी क्या लाया है वही आप भी जाकर खरीद लाएं किसी भी दुकानदार के वाहकावें में न आएं. आप जो भी पैसा खर्च करतें है वो आपकी खून पसीने की कमाई होती है. किसी को ऐसे ही न लुटाएं.

अगेती आलू की खेती का समय:

अगेती आलू की खेती का समय क्षेत्र के हिसाब से अलग अलग होता है. इसको लगाने के समय मौसम के हिसाब से होता है. इसको विकसित होने के लिए हलकी ठण्ड की आवश्यकता होती है. अगर हम उत्तर भारत की बात करें तो ध्यान रहे की इसकी फसल दिसंबर तक पूरी हो जानी  चाहिए. इसकी बुवाई लगभग सितम्बर/अक्टूबर में शुरू हो जाती है. आलू दो तरह का बोया जाता है एक फसल इसकी कोल्ड स्टोरेज में रखी जाती है उसकी खुदाई फरबरी और मार्च में होती है और जो कच्ची फसल होती है उसको स्टोर नहीं किया जा सकता उसकी खुदाई दिसंबर में हो जाती है. सितम्बर से कच्चा आलू देश के अन्य हिस्सों से आना शुरू हो जाता है.

जमीन और मौसम:

आलू के लिए दोमट और रेतीली मिटटी ज्यादा मुफीद होती है, याद रखें की पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए जिससे की आलू के झोरा के ऊपर पानी न जा पाए. आलू में पानी भी कम देना होता है जिससे की उसके आस पास की मिटटी गीली न हो बस उसको नीचे से नमी मिलती रहे. जिससे की आलू को फूलने में कोई भी अवरोध न आये. आलू पर पानी जाने से उसके ऊपर दाग आने की संभावना रहती है, तो  आलू में ज्यादा पानी देने से बचना चाहिए.

अगेती आलू की खेती के बीज का चुनाव:

  • किसी भी फसल के लिए उसके बीज का चुनाव सबसे महत्वपूर्ण होता है. आलू में कई तरह के बीज आते हैं इसकी हम आगे बात करेंगें.आलू के बीज के लिए कोशिश करें की नया बीज और रोगमुक्त बीज प्रयोग में लाएं. इससे आपके फसल की पैदावार के साथ साथ आपकी पूरे साल की मेहनत और मेहनत की कमाई दोनों ही दाव पर लगे होते हैं.
  • कई बार आलू के बीज की प्रजाति उसके क्षेत्र के हिसाब से भी बोई जाती है. इसके लिए अपने ब्लॉक के कृषि अधिकारी से संपर्क किया जा सकता है या जो फसल अच्छी पैदावार देती है उसका भी प्रयोग कर सकते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए आप हमें लिख सकते हैं.
  • आलू का बीज लेते समय ध्यान रखें रोगमुक्त और बड़ा साइज वाला आलू प्रयोग करें, लेकिन ध्यान रहे की बीज इतना भी महगा न हो की आपकी लागत में वृद्धि कर दे. ज्यादातर देखा गया है की छोटे बीज में ही रोग आने की संभावना ज्यादा होती है.


ये भी पढ़ें:
आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

बुवाई का तरीका:

वैसे तो आजकल आलू बुबाई की अतिआधुनिक मशीनें आ गई है लेकिन बुवाई करते समय ध्यान रखना चाहिए की लाइन में पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए और झोरा से झोरा की दूरी 50 सेंटीमीटर होनी चाहिए. इससे से पौधे को भरपूर रौशनी मिलती है और उसे फैलाने और फूलने के लिए पर्याप्त रोशनी और हवा मिलती है. पास पास पौधे होने से आलू का साइज छोटा रहता है तथा इसमें रोग आने की संभावना भी ज्यादा होती है. [video width="640" height="352" mp4="https://www.merikheti.com/assets/post_images/m-2020-08-aloo-1.mp4" autoplay="true" preload="auto"][/video]

खाद का प्रयोग:

  • जैसा की हम पहले बता चुके हैं की आलू के खेत में बानी हुई गोबर की खाद डालनी चाहिए इससे रासायनिक खादों से बचा जा सकता है.
  • पोटाश 50 से 75 किलो और जिंक ७.५  पर एकड़ दोनों को मिक्स कर लें और 50 किलो पर एकड़ यूरिया मिला के खेत में बखेर दें, और DAP खाद 200 किलो एकड़ खेत में डाल के ( जिंक और DAP को न मिलाएं) ऊपर से कल्टिवेटर से जुताई करके पटेला/साहेल/सुहागा लगा दें.उसके बाद आलू की बुबाई कर सकते है. इसके 25 दिन बाद हलकी सिचाईं करें उसके बाद यूरिआ 50 से 75 किलो पर एकड और 10 किलो पर एकड़  जाइम मिला कर बखेर दें. पहले पानी के बाद फपूँदी नाशक का स्प्रे करा दें.

मौसम से बचाव:

इसको पाले से पानी के द्वारा ही बचाया जा सकता है. जब भी रात को पाला पड़े तो दिन में आपको पानी लगाना पड़ेगा. ज्यादा नुकसान होने पर 5 से 7 किलो पर एकड़ सल्फर बखेर दें जिससे जाड़े का प्रकोप काम होगा.

आलू की प्रजाति:

3797, चिप्सोना, कुफऱी चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, जिनकी पकने की अवधि 80 से 100 दिन है
आलू की यह किस्में मोसमिक मार से भी लड़ती हैं और अधिक पैदावार भी देती हैं

आलू की यह किस्में मोसमिक मार से भी लड़ती हैं और अधिक पैदावार भी देती हैं

भारत में सम्पूर्ण आलू की पैदावार में 33% फीसदी कुफरी पुखराज से ही होता है। इसी वजह से बड़े स्तर पर आलू उत्पादन करने वाले कृषक इसी किस्म से बुवाई करके 100 दिन की समयावधि में 400 क्विंटल तक पैदावार उठा सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं, आलू रबी सीजन की मुख्य नकदी फसल है, जिसकी मांग तो पुरे वर्ष होती ही रहती है। परंतु आलू का अच्छा उत्पादन ठंडे तापमान में ही होता है। इस वजह से किसान ऐसी किस्मों की खोज में लगे हुए रहते हैं, जो कि एक ही सीजन में बेहतरीन पैदावार दे सकें। क्योंकि देश में हो रही आलू की पैदावार से घरेलू आपूर्ति सहित अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांग की भी पूर्ति की जा रही है। इसी तीव्रता से आलू की पैदावार करने हेतु कुफरी पुखराज किस्म के जरिये बुवाई करने की सलाह दी जाती है। यह किस्म कम समय में आलू का बेहतरीन उत्पादन प्रदान करती है। भारत के कृषक कुफरी पुखराज आलू के जरिये ही व्यावसायिक कृषि करते हैं। ऐसी किस्मों को उगाने से लेकर उनका भंडारण एवं निर्यात भी बहुत ज्यादा सुगम रहता है।


ये भी पढ़ें:
हवा में आलू उगाने की ऐरोपोनिक्स विधि की सफलता के लिए सरकार ने कमर कसी, जल्द ही शुरू होगी कई योजनाएं

कुफरी पुखराज किस्म के प्रसिद्ध होने की क्या वजह है

उच्च स्तर पर आलू का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु कुफरी पुखराज किस्म से बुवाई करना अत्यंत लाभदायक और अच्छा मुनाफा अर्जित कराता है। उत्तर भारत की ये सुप्रसिद्ध किस्म कम वक्त में आलू का काफी अत्यधिक पैदावार दे जाती है। आईसीएआर ने यह दावा किया है, कि इस किस्म द्वारा उगाई गयी फसल में कीट-रोग होने का खतरा बहुत कम रहता है। पाला एवं झुलसने जैसी मोसमिक चुनौतियों से भी 'कुफरी पुखराज' आलू अत्यधिक प्रभावित नहीं होता है। इसकी एक और खास बात यह है, कि यह किस्म बुवाई के 100 दिनों की समयावधि में ही तैयार हो जाती है, इससे हम 400 क्विंटल तक पैदावार उठा सकते हैं।

किन क्षेत्रों में की जानी चाहिये आलू की खेती

हालाँकि ठंडे तापमान वाले प्रत्येक क्षेत्र में कुफरी पुखराज की कृषि की जा सकती है। परंतु आईसीएआर(ICAR) के विशेषज्ञों का कहना है, कि आज उत्तर भारत में आलू की पैदावार पर कुफरी पुखराज किस्म की 80 प्रतिशत हिस्सेदारी है। पश्चिम बंगाल से लेकर पंजाब, हरियाणा, गुजरात, असम, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रही है। आईसीएआर (ICAR) की रिपोर्ट के अनुसार सामने आया है, कि वर्ष 2021-22 के चलते कुफरी पुखराज किस्म द्वारा वार्षिक 4,729 करोड़ की आर्थिक सहायता का अनुमान है।

आलू की कौनसी किस्में बंपर पैदावार देती हैं

आलू की कुफरी किस्मों को केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला (Central Potato Research Institute, Shimla) द्वारा विकसित किया गया है। यहां की बेहतरीन किस्में साधारण किस्मों की अपेक्षा में 152 से 400 क्विंटल तक ज्यादा उत्पादन प्रदान करती हैं। कुफरी की अधिकाँश किस्में कम समयावधि वाली रहती हैं, जिनको पूर्ण रूप से तैयार होने में 70 से 135 दिन लगते हैं। नवीनतम किस्मों के अंतर्गत कुफरी आनंद, कुफरी गिरिराज, कुफरी चिप्सोना-1 और कुफरी चिप्सोना-2 का नाम भी प्रथम स्थान पर आता है। बतादें कि इसके बाद किसान सीजन की अन्य दूसरी फसल भी उगा सकते हैं। इन किस्मों में कुफरी ज्योति, कुफरी लालिमा, कुफरी शीलमान, कुफरी स्वर्ण, कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा, कुफरी अलंकार, कुफरी चंद्र मुखी, कुफरी नवताल जी 2524 सम्मिलित हैं।
बिहार के वैज्ञानिकों ने विकसित की आलू की नई किस्म

बिहार के वैज्ञानिकों ने विकसित की आलू की नई किस्म

बिहार के लखीसराय में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने आलू की एक नई किस्म विकसित की है। आलू की इस किस्म को "पिंक पोटैटो" नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आलू की इस किस्म में अन्य किस्मों की अपेक्षा रोग प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा है। साथ ही आलू की इस किस्म में बरसात के साथ शीतलहर का भी कोई खास असर नहीं पड़ेगा। फिलहाल इसकी खेती शुरू कर दी गई है। वैज्ञानिकों को इस किस्म में अन्य किस्मों से ज्यादा उपज मिलने की उम्मीद है।

आलू की खेती के लिए ऐसे करें खेत का चयन

ऐसी जमीन जहां पानी का जमाव न होता हो, वहां
आलू की खेती आसानी से की जा सकती है। इसके लिए दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। साथ ही ऐसी मिट्टी जिसका पीएच मान 5.5 से 5.7 के बीच हो, उसमें भी आलू की खेती बेहद आसानी से की जा सकती है।

खेती की तैयारी

आलू लगाने के लिए सबसे पहले खेत की तीन से चार बार अच्छे से जुताई कर दें, उसके बाद खेत में पाटा अवश्य चलाएं ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी बनी रहे। इससे आलू के कंदों का विकास तेजी से होता है।

आलू कि बुवाई का समय

आलू मुख्यतः साल में दो बार उगाया जाता है। पहली बार इसकी बुवाई जुलाई माह में की जाती है, इसके बाद आलू को अक्टूबर माह में भी बोया जा सकता है। बुवाई करते समय किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि बीज की गोलाई 2.5 से 4 सेंटीमीटर तक होना चाहिए। साथ ही वजन 25 से 40 ग्राम होना चाहिए। बुवाई करने के पहले किसान भाई बीजों को अंकुरित करने के लिए अंधरे में फैला दें। इससे बीजों में अंकुरण जल्द होने लगता है। इसके बाद स्वस्थ्य और अच्छे कंद ही बुवाई के लिए चुनना चाहिए। ये भी पढ़े: हवा में आलू उगाने की ऐरोपोनिक्स विधि की सफलता के लिए सरकार ने कमर कसी, जल्द ही शुरू होगी कई योजनाएं आलू की बुवाई कतार में करनी चाहिए। इस दौरान कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर होनी चाहिए जबकि पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

आलू की फसल में सिंचाई

आलू की खेती में सिंचाई की जरूरत ज्यादा नहीं होती। ऐसे में पहली सिंचाई फसल लगने के 15 से 20 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके बाद 20 दिनों के अंतराल में थोड़ी-थोड़ी सिंचाई करते रहें। सिंचाई करते वक्त ध्यान रखें कि फसल पानी में डूबे नहीं।

आलू की खुदाई

आलू की फसल 90 से लेकर 110 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। फसल की खुदाई के 15 दिन पहले सिंचाई पूरी तरह से बंद कर देनी चाहिए। खुदाई से 10 दिन पहले ही आलू की पतियों को काट दें। ऐसा करने से आलू की त्वचा मजबूत हो जाती है। खुदाई करने के बाद आलू को कम से कम 3 दिन तक किसी छायादार जगह पर खुले में रखें। इससे आलू में लगी मिट्टी स्वतः हट जाएगी।
इस किस्म के आलू की कीमत जानकर हैरान हो जाएंगे आप

इस किस्म के आलू की कीमत जानकर हैरान हो जाएंगे आप

आलू का सेवन प्रत्येक देश में किया जाता है। लेकिन, बहुत सारे स्थानों पर इसका भाव कम वहीं बहुत सारे स्थानों पर थोड़ा ज्यादा होता है। अब आलू की एक किस्म के आलू की काफी कीमत है। भारत आलू की पैदावार करने को लेकर विश्व में अपना अहम स्थान रखता है। आलू का उत्पादन करके देश के किसान भी बेहतरीन आमदनी करते हैं। केंद्र और राज्य सरकार भी कृषकों को आलू की खेती करने हेतु प्रोत्साहित करती हैं। किसान भी बेहतरीन किस्म के बीजों का चयन करके बेहतरीन आमदनी किया करते हैं। उनका यही प्रयास करते हैं, कि उनको बेहतरीन आमदनी मिल जाए। भारत में आलू के भाव बहुत सस्ती होती है। बतादें, कि कभी 5 रुपये किलो तो अधिक से अधिक कई बार 50 रुपये प्रति किलो तक हो जाता है। परंतु, कुछ आलू की ऐसी भी किस्म है, जिसकी कीमत जानकर आप हैरान हो जाओगे।

सोने के भाव की बराबरी करता है इस आलू का दाम

आलू की विभिन्न प्रकार की किस्मे हैं। परंतु, आज आपको जिस आलू के भाव के बारे में बताने जा रहे हैं। उसको जानकर कोई भी हैरान हो जाएगा। इस आलू की कीमत में कोई भी व्यक्ति सुगमता से हाइटेक मोबाइल, टीवी और फ्रिज जैसे उत्पाद खरीद सकते हैं। लोग सोने के आभूषण निर्मित करने का स्वयं भी देख सकते हैं। ये भी पढ़े: इस राज्य ने 40 टन आलू को ओमान निर्यात किया, आलू की एमएसपी भी निर्धारित की गई

आलू की इस किस्म का क्या नाम है

आलू की इस किस्म का नाम अपने भाव की वजह से काफी ज्यादा चर्चा में रहता है। इसका किस्म का नाम Le Bonnotte है . इसकी विशेष बात यह है, कि यह मात्र 10 दिनों के लिए ही बाजार में उपस्थित है। फिर भी लोग बहुत अधिक खर्च करने के बावजूद भी आलू नहीं मिल पाता।

इतना महंगा क्यों होता है यह आलू

फ्रांस में Ile de Noirmoutier नाम का एक द्वीप स्थिति है। यही पर Le Bonnotte आलू का उत्पादन किया जाता है। आप यह यह अनुमान लगा सकते हैं, कि मात्र 50 वर्गमीटर के खेत में ही इस प्रकार की खेती की जाती है। जनवरी माह के अंतर्गत Le Bonnotte की बुवाई करने के उपरांत इसकी खुदाई में 5 माह का वक्त लगता है। इसकी बेहतरीन ढंग से खेती में उर्वरक के तौर पर इसमें समुद्री शैवाल का इस्तेमाल किया जाता है। खाने में इसका स्वाद थोड़ा नमकीन होता है। सामान्यतः इसका उपयोग औषधीय रूप से किया जाता है। ये भी पढ़े: सीवीड की खेती के लिए आई नई तकनीक, सरकार से भी मिलेगी सहायता

Le Bonnotte आलू दुनिया का सर्वाधिक महंगा आलू है।

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि आलू का उत्पादन करने के कई सारे फायदे होते हैं। क्योंकि, इसका इस्तेमाल सामान्य तौर पर सूप, सलाद और क्रीम के रूप में किया जाता है। भारत में एक तोले स्वर्ण का भाव लगभग 50 से 60 हजार रुपये के मध्य होता है। इस आलू को ट्रेड इंडिया पर 56020 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत के अनुसार बेचा गया है। बाकी अन्य किसी आलू की इतनी ज्यादा कीमत पर आलू की बिक्री होने का कोई समाचार नहीं है। ऐसी हालत में Le Bonnotte ही दुनिया का सर्वाधिक महंगा आलू माना जाता है।
Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उपज देने वाली आलू की किस्मों की समय से बोआई संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग समुचित कीटनाशक उचित जल प्रबंधन के जरिये आलू का अधिक उत्पादन कर अपनी आय बढ़ाई जा सकती है। आलू एक प्रमुख नगदी फसल है। प्रत्येक परिवार में यह किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है। इसमें स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन-सी एवं खनिज लवण भरपूर मात्रा में विघमान रहते हैं। बतादें, कि अत्यधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों की समय से बुवाई, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल, समुचित कीटनाशक, बेहतर जल प्रबंधन के माध्यम से आलू की ज्यादा पैदावार कर अपनी आमदनी बढ़ाई जा सकती है।

आलू की खेती के लिए मृदा एवं किस्में

आलू की खेती के लिए जीवांश की भरपूर मात्रा से युक्त दोमट एवं बलुई दोमट मृदा को उपयुक्त माना जाता है। मध्य समय की प्रजातियां - कुफरी लालिमा, कुफरी बहार, कुफरी पुखराज, कुफरी अरुण इत्यादि को नवंबर के पहले सप्ताह में बुवाई करने से अच्छी पैदावार होती है। विलंभ से बोने के लिए कुफरी सिंदूरी, कुफरी देवा और कुफरी बादशाह आदि की नवंबर के आखिरी सप्ताह तक बुवाई जरूर कर देनी चाहिए। यह भी पढ़ें: इस तरह करें अगेती आलू की खेती

आलू की बुवाई एवं खेत की तैयारी इस प्रकार करें

आलू एक शीतकालीन फसल है। इसके जमाव और शुरू की बढ़वार के लिए 22 से 24 डिग्री सेल्सियस और कंद के विकास के लिए 18 से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। खेत की तैयारी हेतु तीन से चार गहरी जुताई करके मृदा को बेहतर तरीके से भुरभुरी बना लें और बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ 55 किलो यूरिया, 87 किलो डीएपी अथवा 250 किलो सिंगल सुपर फास्फेट व 80 किलो एमओपी को मृदा में मिला दें।

आलू की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद का उपयोग

आज हम आपको आलू की खेती में खाद के विषय में जानकारी देंगे। आलू की बुवाई के 30 दिन पश्चात 45 किलो यूरिया खेत में डाल दें। खेत की तैयारी के दौरान 100 किलो जिप्सम प्रति एकड़ उपयोग करने से परिणाम मिलते हैं। शीतगृह से आलू निकालकर सात-आठ दिन छाया में रखने के पश्चात ही बोआई करें। अगर आलू आकार में बड़े हों तो उन्हें काटकर बुवाई करें। परंतु, आलू के प्रत्येक टुकड़े का वजन 35-40 ग्राम के आसपास रहे। प्रत्येक टुकड़े में कम से कम 2 स्वस्थ आंखें होनी चाहिए। इस तरह प्रति एकड़ के लिए 10 से 12 क्विंटल कंद की जरूरत पड़ेगी। यह भी पढ़ें: आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन बुवाई से पूर्व कंद को तीन फीसद बोरिक एसिड अथवा पेंसीकुरान (मानसेरिन), 250मिली/आठ क्विंटल कंद या पेनफ्लूफेन (इमेस्टो), 100 मिली/10 क्विंटल कंद की दर से बीज का उपचार करके ही बुवाई करें। बुवाई के दौरान खेत में पर्याप्त नमी रखें। एक पंक्ति की दूसरी पंक्ति 50 से 60 सेमी के फासले पर रखें। कंद से कंद 15 सेमी की दूरी पर बोएं। आलू की बुवाई के 7 से 10 दिन के पश्चात हल्की सिंचाई कर दें। खरपतवार नियंत्रण के दो से चार पत्ती आने पर मेट्रिब्यूजीन 70 प्रतिशत, डब्ल्यूपी 100 ग्राम मात्रा 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
सामान्य आलू की तुलना में गुलाबी आलू दिलाऐगा किसानों अधिक मुनाफा

सामान्य आलू की तुलना में गुलाबी आलू दिलाऐगा किसानों अधिक मुनाफा

किसान भाइयों आज हम आपको इस लेख में गुलाबी आलू के बारे में बताने जा रहे हैं। गुलाबी आलू आम आलू की तुलना में विलंभ से खराब होता है। यह आलू स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है। अगर आप किसान हैं एवं आप आलू की खेती करते हैं, तो ये खबर आपके लिए बड़े काम की होने वाली है। अब किसान भाइयों को नॉर्मल आलू की खेती करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वर्तमान में गुलाबी आलू की भी खेती हो रही है। यह आलू दिखने में बेहद ही अच्छा लगता है। इसके साथ ही इसका स्वाद भी सामान्य आलू से अच्छा है। जानकारों का कहना है, कि ये आलू अत्यधिक पौष्टिक हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट व स्टार्च भरपूर मात्रा में होता है।

गुलाबी आलू सेहत के लिए काफी फायदेमंद है

गुलाबी आलू को स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद कहा जाता है। इसी के साथ - साथ ये शीघ्रता से सड़ता भी नहीं है। बाजार में यह आलू तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। बतादें, कि मांग बढ़ने के साथ किसान भाइयों को मुनाफा होना चालू हो गया है। अब जितनी इसकी मांग बढ़ेगी किसानों को भी उतना ही ज्यादा लाभ मिलेगा। यह भी पढ़ें: इस तरह करें अगेती आलू की खेती

गुलाबी आलू की खेती से कृषकों को मिलेगा फायदा

गुलाबी आलू की खेती तराई और पहाड़ी क्षेत्र दोनों में की जा सकती है। फसल को तैयार होने में 80 से 100 दिन का समय लग जाता है। गुलाबी आलू काफी चमकीला भी होता है, जिसकी वजह से लोग इसकी ओर तेजी से आकर्षित होते हैं। कीमत की बात की जाए तो बाजारों में इसका भाव आम आलू की तुलना में अधिक होती है। प्रति हेक्टेयर के खेत में इसकी 400 क्विंटल से भी ज्यादा पैदावार हो सकती है। गुलाबी आलू की एक बार की फसल से किसान भाई को एक से दो लाख रुपये का मुनाफा होता है।

गुलाबी आलू सेहत के लिए काफी अच्छा होता है

विशेषज्ञों का कहना है, कि ये आलू आम आलू की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करता है। साथ ही, गुलाबी आलू का कई महीनों तक सुगमता से भंडारण किया जा सकता है। इसमें वायरस के चलते पनपने वाले रोग भी नहीं लगा करते, जिसकी वजह से किसानों की लागत में कमी आती है और मुनाफा भी अधिक होता है।
इस आलू की कीमत सोने से भी महंगी, जानिए इसकी कीमत

इस आलू की कीमत सोने से भी महंगी, जानिए इसकी कीमत

आज हम आपको इस लेख में ले बोनोटे आलू के बारे में जानकारी देने वाले हैं। वहीं, अगर इसकी उत्पत्ति की बात की जाए तो नोइरमौटियर द्वीप पर हुई है। विगत 200 साल से फ्रांस में इसकी खेती हो रही है। इसका नाम एक स्थानी किसान बेनोइट बोनोटे के नाम पर रखा गया है। बतादें कि ऐसा कहा जाता है, कि किसान बेनोइट बोनोटे ने सर्वप्रथम इसकी खेती चालू की थी। आलू की सब्जी का सेवन करना हर किसी को पसंद है। इसकी खेती तकरीबन पूरे भारत में की जाती है। यह एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो कि पूरे वर्ष बाजार में असानी से मिल जाता है। इसकी कीमत सदैव 20 से 30 रुपये किलो ही रहती है। परंतु, कभी- कभी भारत में आलू 50-60 रुपये किलो भी हो जाता है। इससे महंगाई बढ़ जाती है। सरकार के ऊपर दवाब अधिक बढ़ जाता है। साथ ही, लोगों के किचन का बजट भी खराब हो जाता है। क्या आपको जानकारी है कि विश्व में आलू की एक ऐसी भी प्रजाति है, जिसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। इस किस्म के एक किलो आलू खरीदने के लिए आपको हजारों रुपये का खर्चा करना पड़ेगा।

केवल फ्रांस में ही ले बोनोटे का उत्पादन होता है

विशेष बात यह है, कि आलू की इस किस्म का नाम ले बोनोटे है। इसकी खेती केवल फ्रांस में होती है। ऐसा कहा जाता है, कि इसकी कीमत एक तोले सोने से भी ज्यादा होती है। ऐसी स्थिति में आम भारतीय परिवार इस एक किलो आलू की कीमत में कई माह का राशन खरीद सकता है। आम तौर पर विश्व के धनवान लोग ही इस आलू का सेवन करते हैं। क्योंकि गरीब व्यक्ति एक किलो आलू खरीदने की जगह एक तोला सोना खरीद लेगा, जो कि बाद में बेहतरीन रिटर्न देगा। ये भी पढ़े: Potato farming: आलू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी ले बोनोटे आलू इस वजह से इतना महंगा है, क्योंकि इसकी खेती फ्रांस के सीमित इलाकों में ही की जाती है। एक किलो ले बोनोटे की कीमत 50,000 से 90,000 रुपये के मध्य होती है। मतलब कि इतने रुपये में आप भारत में बहुत टन आलू खरीद सकते हैं। ऐसे ले बोनोटे आलू खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। इसकी खेती केवल अटलांटिक महासागर में मौजूद फ्रांसीसी द्वीप नोइर्मौटियर पर ही होती है। बतादें, कि ले बोनोटे आलू को हाथ से भी काटा जाता है।

ले बोनोटे का सेवन मक्खन एवं नमक के साथ किया जाता है

इसकी काफी कम पैदावार होती है और यह सिर्फ मई व जून महीने के दौरान ही बाजार में मिलता है। एक किलो ले बोनोटे आलू की बिक्री अब तक सर्वाधिक 90048 रुपये में हुई है। यही कारण है, कि यह ट्रफल्स अथवा कैवियार जैसे बहुत से खाद्य उत्पादों की तुलना में ज्यादा महंगा है। ऐसा कहा जाता है, कि अनूठा स्वाद ले बोनोटे आलू को और ज्यादा महंगा बनाता है। बतादें, कि सामान्य आलू की भांति इसकी सब्जी नहीं बनाई जाती है। ले बोनोटे आलू को पहले पानी में उबाला जाता है। इसके उपरांत मक्खन और नमक के साथ मिलाकर सेवन किया जाता है। ये भी पढ़े: सीड प्लॉट तकनीक से गुणवत्तापूर्ण आलू बीज एवं बेहतरीन उत्पादन हांसिल करें

ले बोनोटे की पारंपरिक विधि से खेती की जाती है

ले बोनोटे आलू की पारंपरिक तरीकों के माध्यम से ही खेती की जाती है। किसान भाई इसकी रोपाई अपने हाथों से ही किया करते हैं। मतलब कि इसकी खेती में मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। यह आलू सामान्य आलू की अपेक्षा आकार में काफी छोटा होता है। इसका छिलका भी काफी पतला होता है। साथ ही, काफी मुलायम भी होता है। अब ऐसे में आप इसे आसानी से हाथों से भी काट सकते हैं।
पेप्सिको (PepsiCo) ने जारी किया किसानों के लिए मौसम की सटीक जानकारी देने वाला ऐप 

पेप्सिको (PepsiCo) ने जारी किया किसानों के लिए मौसम की सटीक जानकारी देने वाला ऐप 

बतादें कि पेप्सिको (PepsiCo) ने किसानों के लिए उनकी फसल की जाँच करने के लिए ऐप बनाया है। आलू की खेती करने वाले कृषकों को मौसम के साथ- साथ कई सारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। बहुत सारे किसान यह भी समझ नहीं पाते हैं, कि उनकी फसल की सिंचाई करने के लिए उपयुक्त वक्त कब है। आलू का उत्पादन करने वाले किसान भाइयों के लिए खुशखबरी है। उनकी फसल की पहले की तुलना में काफी कम बर्बादी होगी। फिलहाल, किसान भाई अपनी आलू की फसल की वक्त पर सिंचाई कर पाएंगे। बतादें, कि समुचित मात्रा में खाद और कीटनाशकों का भी छिड़काव कर पाऐंगे। यह सब मुमकिन होगा ‘क्रॉप एवं प्लॉट लेवल इंटेलिजेंस मॉडल’ की मदद से। दरअसल, PepsiCo ने अपने ब्रांड लेज के जरिए एक ‘क्रॉप एवं प्लॉट लेवल इंटेलिजेंस मॉडल’ को बाजार में प्रस्तुत किया है। पेप्सिको (PepsiCo) आलू की खेती करने वाले किसान भाइयों की सहायता करने हेतु इस इंटेलिजेंस मॉडल को लागू किया है। विशेष बात यह है, कि इस मॉडल को सर्वप्रथम मध्य प्रदेश व गुजरात में पायलट प्रोजेक्ट की भांति चालू किया गया है।

मौसम की मिलेगी बिल्कुल सटीक जानकारी

पेप्सिको (PepsiCo) का कहना है, कि आलू की खेती करने वाले किसान भाइयों को मौसम के साथ- साथ कई सारी चुनौतियों से जूझना पड़ता है। विभिन्न किसान ये भी समझ नहीं पाते हैं, कि उनकी फसल की सिंचाई करने के लिए उपयुक्त समय कब है। साथ ही, आलू के खेत में खाद एवं कीटनाशक कब डालें। इसके अतिरिक्त मौसम को लेकर उनके पास संपूर्ण अपडेट भी नहीं होता है। अब ऐसी स्थिति में पाला अथवा शीतलहर पड़ने पर आलू की फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचती है। परंतु, फिलहाल किसान भाइयों को PepsiCo की इस मॉडल से सेटेलाइट के माध्यम से उचित वक्त पर मौसम की सटीक जानकारी मिल पाऐगी।

ये भी पढ़ें:
गेहूं चना और आलू की खेती करने वाले किसान कैसे बचा सकते हैं अपनी फसल

समस्त जानकारियां डैशबोर्ड पर उपलब्ध रहेंगी

बतादें, कि क्रॉपिन एक अग्रणी एग्री-टेक कंपनी है। ग्लोबल एग्री-टेक फर्म क्रोपिन की मदद से PepsiCo इंडिया ने क्रॉप एवं प्लॉट लेवल इंटेलिजेंस मॉडल को प्रस्तुत किया है। इस मॉडल के माध्यम से किसान भाइयों को 10 दिन पूर्व ही मौसम की जानकारी प्राप्त हो जाएगी। ऐसी स्थिति में आलू उत्पादक किसान मौसम में परिवर्तन आने से पूर्व ही सतर्क हो जाएंगे। साथ ही, वह संभावित बीमारियों का इलाज भी पहले से चालू कर सकेंगे। खास बात यह है, कि इस मॉडल के माध्यम से एक मोबाइल ऐप तैयार किया गया है, जिसके डैशबोर्ड पर विभिन्न प्रकार की जानकारियां मौजूद रहेंगी।

ये भी पढ़ें:
हवा में आलू उगाने की ऐरोपोनिक्स विधि की सफलता के लिए सरकार ने कमर कसी, जल्द ही शुरू होगी कई योजनाएं

पेप्सिको (PepsiCo) इतने किसानों को प्रशिक्षण दे रही है।

भारत में PepsiCo 14 राज्यों में 27,000 से ज्यादा किसानों के साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर से जुड़ी हुई है। कंपनी का कहना है, कि वह चिप्स हेतु 100 प्रतिशत आलू इन्हीं 14 राज्यों के किसान भाइयों से खरीदती है। कंपनी आरंभिक चरण में इन्हीं में से 62 किसानों को आवश्यक प्रशिक्षण दे रही है। इस दौरान किसानों को डैशबोर्ड के विषय में बताया जा रहा है। आखिर वह इसकी सहायता से मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी कैसे प्राप्त कर सकते हैं। प्रशिक्षण के लिए चयनित 62 में 51 किसान गुजरात व 11 किसान मध्य प्रदेश के निवासी हैं।