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ककड़ी

ककड़ी की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

ककड़ी की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। आज हम आपको ककड़ी की फसल के बारे में जानकारी देंगे, तो आपको सबसे पहले बतादें, कि ककड़ी कुकरबिटेसी परिवार से संबंधित है और इसका वानस्पतिक नाम कुकुमिस मेलो है और भारत इसका मूल स्थान है। यह हल्के हरे रंग की होती है, जिसका छिल्का नर्म और गुद्दा सफेद होता है। इसका मुख्य रूप से सलाद के रूप में नमक और काली मिर्च के साथ सेवन किया जाता है। इसके फल में ठंडा प्रभाव होता है। इसलिए इसे मुख्य तौर पर गर्मियों के मौसम में खाया जाता है।

ककड़ी की खेती के लिए मृदा एवं भूमि  

ककड़ी का उत्पादन मिट्टी की विभिन्न किस्मों में बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है, जैसे रेतीली दोमट से भारी मिट्टी जो कि अच्छी जल निकासी वाली हो। इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 5.8-7.5 होना चाहिए। इसके साथ-साथ जमीन की तैयारी भी करना बहुत जरूरी है। ककड़ी की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार जमीन की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हैरो से 2-3 बार जोताई करना काफी जरूरी है।

बिजाई का समय और विधि क्या है?

बीजों की बिजाई के लिए फरवरी-मार्च का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है। बीजों के मध्य फासला खालियों के बीच 200-250 सैं.मी. और मेंड़ों के बीच 60-90 सैं.मी. रखना फायदेमंद साबित होगा। फसल के शानदार विकास के लिए दो बीजों को एक जगह पर बोयें। बीज की गहराई की बात करें तो बीजों को 2.5-4 सैं.मी गहराई में बोयें। बिजाई का तरीका बीजों को बैड या मेंड़ पर सीधे बोया जाता है। बीज की मात्रा की बात करें तो आप प्रति एकड़ में 1 किलो बीजों का इस्तेमाल करें।

बीजोपचार व खाद 

मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। वहीं, खाद की बात करें तो नर्सरी बैड से 15 सैं.मी. दूरी पर फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का 1/3 भाग बिजाई के समय डालें। बाकी की बची हुई नाइट्रोजन बिजाई से एक महीना बाद में डालें।

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खरपतवार नियंत्रण व सिंचाई 

खरपतवार नियंत्रण के लिए बेलों के फैलने से पहले इनकी ऊपरी परत की कसी से हल्की गुड़ाई करें। सिंचाई की बात करें तो बिजाई के तुरंत पश्चात सिंचाई करना बेहद जरूरी है। गर्मियों में, 4-5 सिंचाइयों की काफी जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई जरूरत के मुताबिक करें। 

ककड़ी के पौधे में लगने वाले हानिकारक कीट और उनकी रोकथाम

  • चेपा और थ्रिप्स: ये कीट पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं। थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे पत्ते कप के आकार के और ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं। 

उपचार: इसका हमला फसल में दिखाई दे तो, थायामैथोकस्म 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फसल पर करें।

  • भुण्डी:  भुंडी कीट के कारण फूल, पत्ते और तने नष्ट हो जाते हैं।

उपचार: यदि इसका हमला दिखाई दें तो, मैलाथियोन 2 मि.ली. या कार्बरिल 4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें यह भुंडी की रोकथाम में सहायक है। 

फल की मक्खी

  • फल की मक्खी: यह ककड़ी की फसल का गंभीर कीट है। नर मक्खी फल की बाहरी परत के नीचे अंडे देती है उसके बाद ये छोटे कीट फल के गुद्दे को अपना भोजन बनाते हैं उसके बाद फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।

उपचार: फसल को फल की मक्खी से बचाने के लिए नीम के तेल में 3.0% फोलियर स्प्रे करें।

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पत्तों पर सफेद धब्बे वाली बीमारियां और उनकी रोकथाम

  • सफेद फफूंदी: पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं ये धब्बे प्रभावित पौधे के मुख्य तने पर भी दिखाई देते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। इनका हमला होने पर पत्ते गिरते हैं और फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।

उपचार: सफेद फफूँदी का हमला खेत में दिखे तो पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में डालकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।

एंथ्राकनोस

  • ऐंथ्राक्नोस: यह पत्तों पर हमला करता है, जिसके कारण पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।

उपचार: एंथ्राकनोस की रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इसका हमला खेत में दिखाई दे तो, मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्तों के निचले धब्बे

  • पत्तों के निचली ओर धब्बे: यह रोग स्यिूडोपरनोस्पोरा क्यूबेनसिस के कारण होता है। इससे पत्तों की निचली सतह पर छोटे और जामुनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

उपचार: यदि इसका प्रभाव दिखाई दे तो डाइथेन एम-45 या डाइथेन Z-78 का प्रयोग इस बीमारी से बचने के लिए करें।

ककड़ी का मुरझाना

  • मुरझाना: यह पौधे के वेस्कुलर टिशुओं पर प्रभाव डालता है, जिससे पौधा तुरंत ही मुरझा जाता है।

उपचार: फुजारियम सूखे से बचाव के लिए कप्तान या हैक्सोकैप 0.2-0.3%का छिड़काव करें।

  • कुकुरबिट फाइलोडी: इस बीमारी के कारण पोर छोटे और पौधे की वृद्धि रूक जाती है, जिसके कारण फसल फल पैदा नहीं करती।

उपचार: इस बीमारी से बचाव के लिए बिजाई के समय फुराडन 5 किलोग्राम बिजाई के समय प्रति एकड़ में डालें। यदि इसका हमला दिखे तो डाईमेक्रोन 0.05 % 10 दिनों के अंतराल पर करें।

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ककड़ी फसल की कटाई कब करें

ककड़ी के फल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। कटाई मुख्य तौर पर फल के पूरी तरह विकसित होने और नर्म होने पर की जाती है। कटाई मुख्य रूप से फूल निकलने के मौसम में 3-4 दिनों के अंतराल पर की जाती है।

ककड़ी का बीज उत्पादन कैसे करें ?

ककड़ी को अन्य किस्मों जैसे कि स्नैप मैलन, वाइल्ड मैलन, खरबूजा और ककड़ी आदि से 1000 मीटर की दूरी पर रखें। खेत में से प्रभावित पौधों को हटा दें। जब फल पक जायें जैसे उनका रंग बदलकर हल्का हो जाये तब उन्हें ताजे पानी में रखकर हाथों से तोड़ें और गुद्दे से बीजों को अलग कर लें। बीज जो नीचे स्तर पर बैठ जाते हैं, उन्हें बीज उद्देश्य के लिए एकत्रित किया जाता है।

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

क्यों है मार्च का महीना, सब्जियों का खजाना : पूरा ब्यौरा ( Vegetables to Sow in the Month of March in Hindi)

मार्च का महीना किसानों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। किसान इस महीने विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई करते है तथा धन की उच्च दर पर प्राप्ति करते हैं। 

इस महीने किसान तरह तरह की सब्जियों की बुवाई करते है जैसे: खीरा, ककड़ी, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजे, तरबूजे, भिंडी, ग्वारफल्ली आदि। मार्च के महीने में बोई जाने वाली सब्जियों की जानकारी:

खीरे की फसल कि पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

खीरे की सब्जियों की टोकरी Cucumber crop

खीरे की खेती के लिए खेतों में आपको क्यारियां बनानी होती है। इसकी बुवाई लाइन में ही करें।  लाइन की दूरी 1.5 मीटर रखें और पौधे की दूरी 1 मीटर। 

बुवाई के बाद 20 से 25 दिन बाद गुड़ाई करना चाहिए। खेत में सफाई रखें और तापमान बढ़ने पर हर सप्ताह हल्की सिंचाई करे, खेत से खरपतवार हटाते रहें।

ककड़ी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Cucumber crop complete information) in Hindi

ककड़ी सब्जियां की बेल kakdi ki kheti

ककड़ी की फसल आप किसी भी उपजाऊ जमीन पर उगा सकते हैं।ककड़ी की बुवाई के लिए मार्च का समय बहुत ही फायदेमंद होता है। या सिर्फ 1 एकड़ भूमि में 1 किलो ग्राम बीज के आधार पर उगना शुरू हो जाती है। 

खेत को आपको तीन से चार बार जोतना होता है ,उसके बाद आपको खेतों में गोबर की खाद डालनी होती है। ककड़ी की बीजों को किसान 2 मीटर चौड़ी क्यारियों में किनारे किनारे पर लगाते है। इनकी दूरी लगभग 60 सेंटीमीटर होती है।

करेले की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Bitter gourd crop complete information) in Hindi

karele ki kheti

करेले की खेती दोमट मिट्टी में की जाती है। करेले को आप दो तरह से बो सकते हैं। पहले बीच से दूसरा पौधों द्वारा ,आपको करेले की खेती के लिए दो से तीन दिन की जरूरत पढ़ती है। 

इसकी बीच की दूरियों को 2.5 से लेकर 5 मीटर तक की दूरी पर रखना चाहिए।किसान करेले के बीज को बोने से पहले  लगभग 24 घंटा पानी में डूबा कर रखते हैं। ताकि उसके अंकुरण जल्दी से फूट सके। 

पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं उसके बाद किसान तीन से चार बार हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत की जुताई करते हैं।

लौकी की फ़सल की पूर्ण जानकारी ( Gourd crop complete information) in Hindi

lauki ki kheti

लौकी की खेती आप हर तरह की मिट्टी में कर सकते हैं लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए बहुत ही उपयोगी है। लौकी की खेती करने से पहले आपको इसके बीज को 24 घंटे पानी में डूबा कर रखना है अंकुरण आने तक, एक हेक्टेयर में आपको 4.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है।

तुरई फसल की पूर्ण जानकारी ( Full details of turai crop) in Hindi

turai ki fasal

तोरई की फसल को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना चाहिए। किसानों द्वारा प्राप्त जानकारियों से यह पता चला है।कि नदियों के किनारे वाली भूमि पर खेती करना बहुत ही अच्छा होता है। 

खेती करने से पहले जमीन को अच्छे से जोत लेना चाहिए। पहले हल द्वारा उसके बाद दो से तीन बार हैरो या कल्टीवेटर  से जुताई करना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में कम से कम 4 से 5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

पेठा फसल की पूर्ण जानकारी( Complete information about Petha crop)

पेठा सब्जियों की बेल Petha crop

पेठा यानी कद्दू को दोमट मिट्टी में बोना बहुत ही  फायदेमंद होता है। पेठा की खेती के लिए दो से तीन बार कल्टीवेटर से जुताई करें। मिट्टियों को भुरभुरा बनाएं तथा खेतों की अच्छे ढंग से जुताई करें। एक हेक्टेयर में लगभग 7 से 8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। 

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खरबूजे की फसल (melon crop) in Hindi

melon crop

मार्च के महीने में खरबूजा बहुत ही फायदेमंद तथा पसंदीदा फलों में से एक है। किसान इसकी खेती नदी तट पर करते हैं। खेती करने से पहले बालू में एक थाला बनाते हैं और बीज बोने से थोड़ी देर पहले खेत को अपने हल के जरिए जोतते हैं। खरबूजे की फसल बोने के बाद इसकी सिंचाई को कम से कम 2 या 3 दिन बाद से करना शुरू कर देना चाहिए।

तरबूजे की फसल ( watermelon crop) in Hindi

watermelon crop

गर्मी में तरबूज को बहुत ही शौक से खाया जाता है।तरबूज में पानी की मात्रा बहुत ही ज्यादा होती है, इसको खाने से आप ताजगी का अनुभव करते हैं। इस फसल में लागत बहुत कम लगती है लेकिन मुनाफा उससे कई गुना होता है। 

तरबूज की फसल बहुत ही कम समय में उग जाती है, जिससे किसानों को काफी मुनाफा भी मिलता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें ,कि तरबूज में कीट और रोग का प्रकोप काफी बड़ा रहता है। किसानों को चाहिए कि वैज्ञानिकों के मुताबिक तरबूज की फसलों की देखरेख करें। तरबूज की फसलें 75 से 90 दिनों के अंदर पूर्ण रुप से तैयार हो जाती है।

भिंडी की फसल( okra harvest) in Hindi

भिंडी सब्जियां bhindi ki kheti

किसान भिंडी की फसल फरवरी से मार्च के दरमियान जोतना शुरू कर देते हैं। भिंडी की खेती हर तरह की मिट्टी में की जाती है। खेती से पूर्व दो तीन बार खेतों की जुताई करें। 

जिससे मिट्टियों में भुरभुरा पन आ जाए, जमीन को समतल कर दे। खेतों में लगभग 15 से 20 दिन पहले इनकी निराई-गुड़ाई करें। खरपतवार नियंत्रण रहे इसके लिए कई प्रकार का रासायनिक प्रयोग भी किसान करते हैं।

ग्वार फली की फसल( guar pod crop) in Hindi

गुआर सब्जियों की फसल guar ki kheti

ग्वार फली किसानों कि आय का बहुत महत्वपूर्ण साधन होता है। किसान ग्वार फली का इस्तेमाल हरी खाद ,हरा चारा ,हरी फली , दानों आदि के लिए करते है। ग्वार फली में प्रोटीन तथा फाइबर का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। 

इनके अच्छे स्त्रोत के कारण इनको पशुओं के चारे के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। जिससे पशुओं को विभिन्न प्रकार के प्रोटीन की प्राप्ति हो सके। किसान ग्वार फली की खेती दो मौसम में करते हैं पहला बहुत गर्मी के मौसम में तथा दूसरा  बारिश के मौसम में। 

ग्वार फली की बुवाई किसान मार्च के महीने में 15 से लेकर 25 तारीख के बीच खेती करना शुरू कर देते हैं। ग्वार फली की फसलें 60 से 90 दिन के अंदर पूर्ण रूप से तैयार हो जाती है तथा यहां कटाई के लायक़ हो जाती हैं। 

ग्वार फली में बहुत तरह के पौष्टिक तत्व भी मौजूद होते हैं इनका उपयोग विभिन्न प्रकार की सब्जियों को बनाने तथा सलातो के रूप में किया जाता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट द्वारा मार्च के महीने में उगाई जाने वाली सब्जियों की पूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। 

आपने इन सब्जियों के विभिन्न प्रकार के लाभ को जान लिया होगा। यदि आप हमारी दी गई जानकारी से संतुष्ट हैं तो आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया पर शेयर करें धन्यवाद।

डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

खीरे के बाद अगर गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है, तो वो है ककड़ी. जी हां, ककड़ी बेहद कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है. देखा जाए तो, देश में लगभग सभी क्षेत्रों में ककड़ी की खेती की जाती है. गर्मियों का सीजन आते ही बाजार में इसकी डिमांड दोगुनी हो जाती है. जिसे देखते हुए अगर इसकी खेती की जाए तो, डबल मुआफा आराम से कमाया जा सकता है. देश में किसान ककड़ी की खेती नगदी फसल के तौर पर करते हैं. 

ककड़ी की खेती करने के लिए बेहद कम लागत में की जा सकती है. जिसमें अच्छा खासा मुनाफा मिलता है. इसे भारतीय मूल की फसल कहा जाता है, जिसे जायद के सीजन में उगाया जाता है. ककड़ी के पौधे में लगभग एक फीट तक फल लगते हैं. इसे सब्जी या सलाद के रूप में खाया जा सकता है. 

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ककड़ी की खेती अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो इस्ससे डबल मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर आप भी ककड़ी की खेती करना चाहते हैं, तो इससे जुड़ी हर तरह की जानकारी के बारे में आपको जान लेना जरूरी है.

कैसे करें ककड़ी की खेती?

ककड़ी का साइंटिफिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय है. यह जायद के सीजन में बोई जाती है. तरोई की तरह ही इसकी खेती भी की जाती है. फरवरी से मार्च के बीच में इसकी बुवाई की जाती है. बलुई दुमट जमीनों से इसकी फसल अच्छी होती है. हफ्ते में दो बार इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत होती है. ककड़ी की सबसे अच्छी फसल गरम और शुष्क मौसम में होती है. दो जातियों वाली इस ककड़ी में एक का रंग हल्का हरा होता है, तो वहीं दूसरे में गहरे हरे रंग की होती है. इन दोनों जातियों में से पहली जाति को लोग ज्यादा खाना पसंद करते हैं. दो सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से उसकी उपज होती है.

क्या है उपयुक्त जलवायु?

गर्म और शुष्क जलवायु ककड़ी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. इसलिए गर्मियों के मौसम में इसकी पैदावार ज्यादा और अच्छी होती है. वहीं टंडी जलवायु में इसकी खेती करना मुश्किल हो सकता है. ककड़ी की फसल खासतौर पर गर्मियों की फसल है. 20 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच इसके बीज बढ़ते हैं. अगर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम है तो, कम के बीज नहीं लगते. लेकिन ज्यादा तापमान भी ककड़ी की खेती के लिए हानिकारक होता है.

कैसी हो जमीन?

ककड़ी की खेती आमतौर पर सरलता से सभी क्षेत्रों में की जा सकती है. अगर मिट्टी उपजाऊ है, तो इसकी खेती करने में आसानी हो सकती है. अगर इसकी अच्छी खासी पैदावार चाहते हैं, तो कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. जहां पर इसकी खेती कर रहे हैं, उस जगह की जमीन की पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए. अगर जल भराव वाली जगह पर खेती की जाएगी, तो फसल बर्बाद हो जाएगी.पीएच 6 से 7.5 मां वाली मिट्टी ककड़ी की खेती के लिए जरूरी होती है.

कैसे करें खेत की तैयारी?

अगर आप ककड़ी की कहती से उसकी ज्यादा पैदावार चाहते हैं, तो इसके खेत को पहले अच्छे से तैयार कर लें. खेत को तैयार करने के लिए खेत में पहले से मौजूद गंदगी को अच्छे से साफ़ कर लें, और खेत की अच्छे जुताई कर लें. जिसके बाद खेत को पलेव कर दें. इसके तीन से चार दिनों के बाद जब मिट्टी ऊपर से थोड़ी सूखने लगे तो उसे भुरभुरी बला लें. समतल जमीन पर मेड़ बनाकर ककड़ी के बीजों की बुवाई की जाती है. बुवाई से पहले तैयार खेत में नाली जरुर बना लें. ताकि जब भी मिट्टी में नमी हो तो बुवाई का काम शुरू किया जा सके. क्योंकि नम मिट्टी में बीजों का अंकुरण भी तेज होता है, और विकास भी अच्छा होता है. 

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क्या हैं उन्नत किस्में?

वैसे तो ककड़ी की उन्नत किस्में काफी कम होती हैं. लेकिन कुछ संकर किस्मों की मदद से किसान ज्यादा से ज्यादा ककड़ी की पैदावार कर सकते हैं.
  • जैनपुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 80 से 85 दिनों के बाद होता है. वहीं इसका उत्पादन 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलता है.
  • अर्का शीतल की उन्नत किस्म 90 से 100 दिन बाद लगभग 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • पंजाब स्पेशल की उन्नत किस्मों का उत्पादन समय 90 से 95 दिन के बाद होता है. जिसमें 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • दुर्गापुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 90 से 100 दिनों का होता है. जिसमें उत्पादन 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • लखनऊ अर्ली की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 75 से 80 दिन का होता है, इसमें 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • 708 की उन्नत किस्म में इसका उत्पादन 80 दिनों के बाद होता है. वहीं 140 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसका उत्पादन होता है.

कितनी मात्रा में करें बीज की बुवाई?

ककड़ी के बीजों की रोपाई आपके तरीके पर भी निर्भर करता है. इसके लिए कम से कम एक हेक्टेयर के खेत में लगभग दो से तीन किलोग्राम बीज काफी होते हैं. अगर आप चाहते हैं, कि मिट्टी को किसी तरह का रोग ना हो तो, उसके लिए बुवाई से पहले बैनलेट या दो से तीन ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें. अगर आप ककड़ी के पौधों को नर्सरी में तैयार कर सकते हैं, या किसी नर्सरी से खरीद भी सकते हैं. ककड़ी के बीजों की रोपाई करने के लिए कम से 20 से 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाएं. जिसके दोनों किनारे 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करें.

कितनी को खाद की मात्रा?

ककड़ी की खेती से पहले जमीन पर गोबर की सड़ी खाद को 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाया जाता है. यह ककड़ी की खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता है. इसके अलावा अगर रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके रूप में 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कर सकते हैं. फास्फोरस और पोटाश को आपस में मिलाकर उसमें एक तिहाई नाइट्रोजन मिला दें. फिर बुवाई करने वाली नालियों की जगह पर डालकर उसमें मिट्टी मिला दें और मेंड़ बना दें. बाकी के बचे हुए नैत्रोजं को दो बराबर हिसों में मिलाकर एक महीन के बाद नालियों में डालकर गुड़ाई कर दें.

कैसे करें पौधों की सिंचाई?

ककड़ी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. इसकी शुरुआती सिंचाई को पौधे रुपाई के तुरंत बाद करना होता है. वहीं गर्मियों के सीजन में ककड़ी के पौधों को हफ्ते में दो बार सिंचाई की जरूरत होती है. अगर जमीन में नमी कम है तो, पैदावार पर इसका असर हो सकता है. इसलिए पौधों पर बनने वक्त उनकी हल्की सिंचाई करते रहना जरूरी होता है.

कैसे करें रोग नियंत्रण?

बेल के रूप में विकास करने वाला ककड़ी का पौधे में खरपतवार से बचाना बेहद जरूरी है. इसे कंट्रोल करने के लिए निराई गुड़ाई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. जो 20 से 30 दिनों के बाद की जाती है. इसके अलावा इसके रोग को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं, ये भी जान लेते हैं.
  • ककड़ी की फसल में फल मक्खी का प्रकोप तेजी से होता है. इसे ककड़ी को ज्यादा नुकसान होता है. इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में बरुथी नाम का कीट पत्तियों के निचले हिस्से में रहता है. यह उसके तने और पत्तियों का रस चूसता है. इससे बचाव के लिए इथियान 50 ई सी 0.6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में दिखने वाला लाल भृंग नई पत्तियों को खा लेता है. इसकी वजह से पत्ते झुलसे हुए नजर आते हैं. इससे फसल को बचाने के लिए कार्बारिल का 3 से 5 फीसद चूरण का 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
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कैसे करें फलों की तुड़ाई?

ककड़ी की फसल की तुड़ाई में बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. आपको इस बात का ख्याल रखना जरूरी है, कि फल हरे और मुलायम हो तभी तुड़ाई का काम करना चाहिए. अगर आपने समय से पहले या समय के बाद फलों की तुड़ाई करेंगे तो, फल अपना आकर्षण और गुण खो देते हैं. इस वजह से बाजार में इसके भाव भी घट जाते हैं.

तो कुछ इस तरह से ककड़ी की खेती करके आप भी मोटा मुनाफा कम सकते हैं.

ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

ककड़ी एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसकी खेती नकदी फसल के लिए की जाती है। भारतीय मूल की फसल ककड़ी जिसको जायद की फसल के साथ उत्पादित किया जाता है। इसके फल की लंबाई तकरीबन एक फीट तक होती है | ककड़ी को प्रमुख तौर पर सलाद एवं सब्जी के लिए उपयोग किया जाता है। गर्मियों के दिनों में ककड़ी का सेवन काफी बड़ी मात्रा में किया जाता है। यह गर्म हवा से बचाने में भी मददगार होती है एवं मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद भी होती है। ककड़ी के पौधे लता के रूप में फैलकर विकास करते हैं। भारत में ककड़ी की खेती तकरीबन देश के समस्त क्षेत्रों में की जाती है। किसान भाई इसकी खेती कर के अच्छी-खासी आमदनी भी करते हैं। अगर आप भी ककड़ी की खेती करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आगे इस लेख में आपको ककड़ी की खेती से जुड़ी सारी अहम जानकारी मिलेगी। यह जानकारी आपके लिए सहायक भूमिका निभाएगी।

ककड़ी की खेती कैसे करें

ककड़ी की खेती लिए उससे सम्बंधित सभी प्रकार की जानकारी का होना बहुत जरूरी होता है, इसलिए यहाँ इसके बारे में अवगत कराया गया है, इसके माध्यम से ककड़ी की उन्नत खेती करके लाभ कमा सकते हैं।

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ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

यदि हम ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त मृदा की बात करें तो यह किसी भी उपजाऊ मृदा में सहजता से की जा सकती है। लेकिन, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कार्बनिक पदार्थो से युक्त मृदा में ककड़ी का अधिक मात्रा में उत्पादन होता है। साथ ही, ककड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा भी काफी उत्तम मानी जाती है। ककड़ी की खेती करने के लिए जमीन जल निकासी वाली होनी बेहद जरूरी है। जल भराव वाली जमीन में ककड़ी की खेती न करें। ककड़ी की खेती में सामान्य P.H मान वाली मृदा की काफी जरूरत होती है।

ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

ककड़ी की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु का होना जरूरी होता है। सामान्य बारिश के मौसम में इसके पौधे बेहतर ढ़ंग से विकास करते हैं। परंतु, गर्मियों का मौसम ककड़ी की पैदावार के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। ककड़ी की खेती के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त नहीं होती है। बतादें, कि ककड़ी के बीज 20 डिग्री तापमान पर बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं। वहीं पौध विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान सबसे अच्छा होता है। इसके पौधे 35 डिग्री तापमान तक अच्छे से विकास कर लेते है। परंतु, इससे ज्यादा तापमान पौधों के लिए अनुकूल नहीं रहता है।

ककड़ी की खेती में सिंचाई किस प्रकार की जाए

  • ककड़ी की फसल में प्रथम सिंचाई बिजाई के शीघ्रोपरान्त करें।
  • द्वितीय सिंचाई के 4 से 5 दिन पश्चात करें, जिससे कि अंकुरण बेहतर हो पाए।
  • पौधो की वनस्पति एवं मृदा में नमी के आधार पर 7-10 दिनों के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए।
  • फसल में फूल आने से पूर्व, फूल आने के दौरान एवं फल के विकास के समय भूमि की नमी में गिरावट नहीं होनी चाहिये।
  • इससे फल की उन्नति में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसल से फलों की तुड़ाई के 2-3 दिन सिचाई करनी चाहिए, जिससे फल ताजा, चमकदार एवं आकर्षित बने रहेंगे।
  • किसान भाइयों जमीन की ऊपरी सतह से 50 से.मी. तक नमी को बरकरार रखना चाहिए। क्योंकि इस भाग पर जड़ें बड़ी संख्या में होती है ।


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ककड़ी की कटाई कब होती है

ऐसी स्थिति में जब फल हरे और मुलायम हों, तब ही तुड़ाई का कार्य करना चाहिए, ककड़ी की तुड़ाई किस्मो के अनुसार 35 से 40 दिन पर शुरू हो जाती है। फलो के आकार के अनुसार तुड़ाई करना चालू करदें।

ककड़ी की किस्में

पंजाब लोंगमेलन 1- यह किस्म 1995 में विकसित की गई थी। यह काफी शीघ्रता से पकने वाली प्रजाति है। इसकी बेलें लंबी, हल्के हरे रंग का तना, पतला एवं लंबा फल होता है। इसका औसतन उत्पादन 86 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। अर्का शीतल- इस किस्म के अंतर्गत 90 से 100 दिन की समयावधि में मध्म आकार का हरे रंग का फल लगता है। इसके फल को तैयार होने के लिए 90 से 100 दिन का समय लगता है। यदि हम इसके उत्पादन की बात करें तो पैदावार 200 से 250 क्विटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। दुर्गापुरी ककड़ी- दुर्गापुरी ककड़ी राजस्थान के समीपवर्ती राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है, इस प्रजाति के फल शीघ्रता से पककर तैयार हो जाते हैं। दुर्गापुरी ककड़ी की सही ढ़ंग से खेती करने पर करीब 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अर्जित किया जा सकता है। ककड़ी की इस किस्म के फल हल्के पीले रंग के होते हैं। जिन पर नालीनुमा धारियां नजर आती हैं।