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कृषि तकनीक

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा खरीफ की मुख्य फसल है लेकिन अब इसे रबी सीजन में भी कई इलाकों में लगाया जाता है। गर्मियों में इसमें रोग भी कम आते हैं और साल भर यह खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे पाता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाजरे की उन्नत खेती कैसे करें 

बाजरे की आधुनिक, वैज्ञानिक खेती

बाजरा कोस्टल क्राप है और किसी भी कोस्टल क्राप में पोषक तत्व गेहूं जैसी सामान्य फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा होते हैं। बाजरा की हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन गेहूं की खेती से ज्यादा लाभकारी हो रहा हैं। कम पानी और उर्वरकों की मदद से इसकी खेती हो जाती है। अन्न के साथ साथ यह पशुओं को हरा और सूखा भरपूर चारा भी दे जाता है। बाजरे के दाने में 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइडेट्स एवं 2.7 प्रतिशत खनिज लवण होते हैं। इसकी खेती के लिए दोमट एवं जल निकासी वाली मृदा उपयुक्त रहती है। रेगिस्तानी इलाकों में सूखी बुबाई कर पानी लगाने की व्यवस्था करें। एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 4 से 5 कि.ग्रा. प्रमाणित बीज पर्याप्त रहता है। 

बाजरे की उन्नत किस्में, संकर

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बाजरा की संकर किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं। इनमें राजस्थान के लिए आरएचडी 21 एवं 30,उत्तर प्रदेश के लिए पूसा 415,हरियाणा एचएचबी 505,67 पूसा 123,415,605,322, एचएचडी 68, एचएचबी 117 एवं इम्प्रूब्ड, गुजरात के लिए पूसा 23, 605, 415,322, जीबीएच 15, 30,318, नंदी 8, महाराष्ट्र के लिए पूसा 23, एलएलबीएच 104, श्रद्धा, सतूरी, कर्नाटक पूसा 23 एवं आंध्र प्रदेश के लिए आईसीएमबी 115 एवं 221 किस्म उपयुक्त हैं। बाजार में प्राईवेट कंपनियों जिनमें पायोनियर, बायर, महको, आदि की अनेक किस्में किसानों द्वारा लगाई जाती हैं। आरएचबी 177 किस्म जोगिया रोग रोधी तथा शीघ्र पकने वाली है। औसत पैदावार लगभग 10-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 40-45 क्विंटल है। आरएचबी 173 किस्म 75-80 दिन, आरएचबी 154 बाजरे की किस्म देश के अत्यन्त शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिये अधिसूचित है। 70-75 दिन में पकती है। आईसीएमएच 356- यह सिंचित एवं बारानी, उच्च व कम उर्वरा भूमि के लिए उपयुक्त, 75-80 दिन में पकने वाली संकर किस्म हैं। तुलासिता रोग प्रतिरोधी इस किस्म की औसत उपज 20-26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। आईसीएमएच 155 किस्म 80-100 दिन में पककर 18-24 क्विंटल उपज देती है। एचएचबी 67 तुलासिता रोग रोधक है। 80-90 दिन में पककर 15-20 क्विंटल उपज देती है।

 

बीजोपचार

 

 बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग पांच मिनट तक डुबो कर गून्दिया या चैंपा से फसल को बचाया जा सकता हैं। हल्के बीज व तैरते हुए कचरे को जला देना चाहिये। तथा शेष बचे बीजों को साफ पानी से धोकर अच्छी प्रकार छाया में सुखाने के बाद बोने के काम में लेना चाहिये। उपरोक्त उपचार के बाद प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम दवा से उपचारित करें। दीमक के रोकथाम हेतु 4 मिलीलीटर क्लोरीपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। 

बुवाई का समय एवं विधि

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 बाजरा की मुख्य फसल की बिजाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक होती है वहीं गर्मियों में बाजारा की फसल लगाने के लिए मार्च में बिजाई होती है। बीज को 3 से 5 सेमी गहरा बोयें जिससे अंकुरण सफलतार्पूवक हो सके। कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दरी 15 सेमी रखें। 

खाद एवं उर्वरक

बाजरा की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए। पर्याप्त वर्षा वाले इलाकों में अधिक उपज के लिए 90 कि.ग्रा. नाइटोजन एवं 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से दें।

 

खरपतवार नियंत्रण

बाजरा की बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत में निडाई कर खरपतवार निकाल लें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई के 15-20 दिन पश्चात् करें। जहां निराई सम्भव न हो तो बाजरा की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु प्रति हेक्टेयर आधा कि.ग्रा. एट्राजिन सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

सिंचाई

 

 बाजरा की सिंचित फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधे में फुटान होते समय, सिट्टे निकलते समय तथा दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।

रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर 80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है ये राज्य सरकार, यहां करें आवेदन

रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर 80 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है ये राज्य सरकार, यहां करें आवेदन

रबी का सीजन प्रारंभ हो चुका है। ऐसे में खेतों की जुताई की जा रही है ताकि खेतों को बुवाई के लिए तैयार किया जा सके। बहुत सारे खेतों में अब भी पराली की समस्या बनी हुई है, जिसके कारण खेतों को पुनः तैयार करने में परेशानी आ रही है। खेतों से फसल अवशेषों को निपटाना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण काम है, इसमें बहुत ज्यादा समय की बर्बादी होती है। अगर किसान एक बार पराली का प्रबंधन कर भी ले, तो इसके बाद भी खेत से बची-कुची ठूंठ को निकालने में भी किसान को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन यदि आज की आधुनिक खेती की बात करें तो बाजार में ऐसी कई मशीनें मौजूद है जो इस समस्या का समाधान चुटकियों में कर देंगी। इन मशीनों के प्रयोग से अवशेष प्रबंधन के साथ-साथ खेतों की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोत्तरी होगी। ऐसी ही एक मशीन आजकल बाजार में आ रही है जिसे रोटरी हार्वेस्टर मशीन कहा जाता है। यह मशीन फसल के अवशेषों को नष्ट करके खेत में ही फैला देती है। यह मशीन किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। इस मशीन के फायदों को देखते हुए बिहार सरकार ने मशीन की खरीद पर किसानों को 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी देने के लिए कहा है।

क्या है रोटरी हार्वेस्टर मशीन

इस मशीन को रोटरी मल्चर भी कहा जाता है, यह मशीन बेहद आसानी से खेत में बचे हुए अनावश्यक अवशेषों को नष्ट करके खेत में फैला देती है, जिसके कारण खेत में पर्याप्त नमी बरकरार रहती है। इसके साथ ही खेत में फैले हुए अवशेष डीकंपोज होकर खाद में तब्दील हो जाते हैं। अवशेषों के प्रबंधन की बात करें तो यह मशीन खेत में उम्दा प्रदर्शन करती है।

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रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर बिहार सरकार कितनी देती है सब्सिडी

अगर रोटरी हार्वेस्टर मशीन की बात करें तो उस मशीन पर बिहार सरकार किसानों को 75 से 80 प्रतिशत तक सब्सिडी प्रदान करती है। यह सब्सिडी बिहार का कृषि विभाग 'कृषि यंत्रीकरण योजना' के अंतर्गत किसानों को उपलब्ध करवाता है। बिहार सरकार के द्वारा जारी आदेश के अनुसार यदि बिहार का सामन्य वर्ग का किसान रोटरी हार्वेस्टर मशीन लेने के लिए आवेदन करता है, तो उसे बिहार सरकार मशीन की खरीद पर 75 प्रतिशत तक की सब्सिडी या अधिकतम 1,10,000 रुपये प्रदान करेगी। इसके साथ ही यदि बिहार का एससी-एसटी, ओबीसी और अन्य वर्ग का किसान रोटरी हार्वेस्टर मशीन खरीदना चाहता है, तो आवेदन करने के बाद सरकार उसे रोटरी मल्चर पर 80 प्रतिशत तक सब्सिडी और रूपये में अधिकतम 1,20,000 रुपये की सब्सिडी प्रदान करेगी।

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रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए ऐसे करें आवेदन

बिहार सरकार के आदेश के अनुसार रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर सब्सिडी प्राप्त करने के लिए किसान को बिहार का निवासी होना जरूरी है। साथ ही उसके पास कृषि योग्य भूमि भी होनी चाहिए। ऐसे किसान जो रोटरी हार्वेस्टर मशीन पर सब्सिडी प्राप्त चाहते हैं, वो बिहार कृषि विभाग के पोर्टल https://dbtagriculture.bihar.gov.in/ पर जाकर अपना ऑनलाइन आवेदन भर सकते हैं। किसानों को ऑनलाइन आवेदन भरते समय आधार कार्ड, पैन कार्ड, जमीन के कागजात, पासपोर्ट साइज फोटो, बैंक खाता संख्या और मोबाइल नंबर अपने साथ रखना चाहिए। इनकी डीटेल आवेदन भरते समय किसान से मांगी जाएगी। इसके अलावा यदि किसान कृषि यंत्रों से संबंधित किसी भी प्रकार की अन्य जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो वो कृषि विभाग के हेल्पलाइन नंबर 18003456214 पर भी संपर्क कर सकते हैं।

अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

अब पशु पालक 10 किलोमीटर के दायरे तक कर पाएंगे अपने जानवरों की लोकेशन ट्रैक; जाने कैसे काम करता है डिवाइस

नई-नई तकनीकों के जरिए खेती का आधुनिकीकरण हो रहा है और इससे हम पूरी तरह से अवगत हैं. बहुत से ऐसे गैजेट्स और तकनीक आ गई है जिसकी मदद से किसानों की मेहनत, समय, पैसा और पानी सभी चीजों की बचत हो रही है. लेकिन अब एक नई चीज पशु पालकों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए सामने आई है. वैज्ञानिकों ने पशु पालन को भी आसान बनाने के लिए एक बहुत ही बेहतरीन तकनीक खोज निकाली है और इसका नाम है काउ मॉनिटर सिस्टम. इस सिस्टम को भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी (IDMC) ने बनाकर तैयार किया है.

जाने क्या है काउ मॉनिटर सिस्टम??

इसमें आप के मवेशी के गले में एक बेल्ट जैसी चीज पहनाई जाती है और इसकी मदद से
पशु पालक अपने पशुओं की लोकेशन को जान सकते हैं. इसके अलावा लोकेशन बताने के साथ-साथ इस बेल्ट के जरिए पशु के फुट स्टेप और उनकी गतिविधियों से उनमें होने वाली संभव बीमारियों के बारे में भी पहले से ही पता लगाया जा सकता है. माना जा रहा है कि पशु पालकों को लंबी जैसी महामारी या फिर किसी भी तरह की दुर्घटनाओं से बचने में यह तकनीक अच्छी खासी मदद करने वाली है. नेशनल डेहरी डेवलपमेंट बोर्ड के अधीन आने वाली भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी  का यह अविष्कार किसानों और पशु पालकों के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होने वाला है.

काउ मॉनिटर सिस्टम को इस्तेमाल करने का तरीका?

इसमें आपको अपने गाय या भैंस के गले में एक बेल्ट नुमा डिवाइस बांध लेना है जिसमें जीपीएस लगा हुआ है. अगर आपके पशु घूमते घूमते कहीं दूर निकल जाते हैं तो आप इस बेल्ट की मदद से उन को ट्रैक कर सकते हैं. इसमें सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें आप लगभग 10 किलोमीटर तक के दायरे में अपने पशुओं को ट्रैक कर सकते हैं. इसके अलावा यह बेल्ट पशुओं के गर्भधान के बारे में भी पालक को अपडेट देगी जो काफी लाभदायक है. ये भी पढ़ें: इस राज्य के पशुपालकों को मिलेगा भूसे पर 50 फीसदी सब्सिडी, पशु आहार पर भी मिलेगा अब ज्यादा अनुदान

कितनी रहेगी डिवाइस की कीमत?

भारतीय डेयरी मशीनरी कंपनी यानी आईडीएमसी के काउ मॉनीटरिंग सिस्टम की बैटरी लाइफ 3 से 5 साल तक बताई गई है और इसकी कीमत 4,000 से 5,000 रुपये है. रिपोर्ट की मानें तो माना जा रहा है कि अगले 3 से 4 महीने के अंदर अंदर यह बेल्ट पशुपालक द्वारा खरीदने के लिए उपलब्ध करवा दी जाएगी.
प्राकृतिक खेती से किसानों को होगा फायदा, जल्द ही देश के किसान होंगे मालामाल

प्राकृतिक खेती से किसानों को होगा फायदा, जल्द ही देश के किसान होंगे मालामाल

वर्तमान में केमिकल युक्त खेती के दुष्परिणामों की देखते हुए सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए सरकार ने इस साल के बजट में प्राकृतिक खेती के लिए अलग से प्रावधान किया है। केंद्र सरकार के साथ-साथ हरियाणा की सरकार भी प्राकृतिक खेती को लेकर बेहद जागरुक है। इसके साथ ही हरियाणा की सरकार ने किसानों को जागरुक करने के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत राज्य सरकार ने साल 2022 में छह हजार एकड़ में किसानों से प्राकृतिक खेती कराई है। इसको राज्य के 2238 किसानों ने अपनाया है। किसानों के रुझान को देखते हुए हरियाणा सरकार ने साल 2023 में राज्य में 20 हजार एकड़ में प्राकृतिक खेती कराने का लक्ष्य रखा है। हरियाणा की सरकार ने किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को प्रचारित करने के लिए 'भरपाई योजना' को भी लागू किया है। इसके अंतर्गत प्राकृतिक खेती अपनाने वाले हर किसान को प्रति एकड़ के हिसाब से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। सरकार ने 'भरपाई योजना' को इसलिए लागू किया है क्योंकि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को शुरुआत में उत्पादन कम प्राप्त होता है। लेकिन प्राकृतिक खेती करने से भूमि की उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है। जो किसानों के लिए लंबे सामयांतराल में फायदेमंद होता है। किसान भाइयों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देने के लिए हरियाणा की सरकार ने राज्य में कई ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए हैं। इसके लिए फिलहाल कुरुक्षेत्र गुरुकुल और करनाल के घरौंडा में बड़े ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए  हैं। इसके साथ ही सरकार ने राज्य में 3 और ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया है। इन ट्रेनिंग सेंटरों का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार जागरूकता अभियान शुरू करने जा रही है। इसकी शुरुआत सिरसा जिले से होगी। सिरसा जिले में यह अभियान पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया जा रहा है। यदि यहां पर यह अभियान सफल रहता है तो बाद में इसे चरणबद्ध तरीके से पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। इस जागरूकता अभियान में किसानों को उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग, पानी का समुचित उपयोग, फसल स्वास्थ्य निगरानी, मृदा स्वास्थ्य निगरानी, कीट निगरानी, सौर ऊर्जा का उपयोग और सूक्ष्म सिंचाई तकनीक के माध्यम से पानी के समुचित उपयोग के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। ये भी देखें: सिंचाई की नहीं होगी समस्या, सरकार की इस पहल से किसानों की मुश्किल होगी आसान इन दिनों भारत में किसानों के द्वारा प्राकृतिक खेती तेजी से अपनाई जा रही है। जिसके कई स्वदेशी रूप हैं। प्राकृतिक खेती का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा दक्षिण भारतीय राज्यों में है। दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में प्राकृतिक खेती बेहद लोकप्रिय है। आंध्र प्रदेश के साथ ही प्राकृतिक खेती छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु के अलावा कई राज्यों में की जा रही है। यह खेती प्राकृतिक या पारिस्थितिक प्रक्रियाओं (जो खेतों में या उसके आसपास मौजूद होती हैं) पर आधारित होती है जो पेड़ों, फसलों और पशुधन को एकीकृत करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकती है।
KITS वारंगल ने विकसित किया स्वचालित ट्रैक्टर, लागत और मेहनत करेगा कम

KITS वारंगल ने विकसित किया स्वचालित ट्रैक्टर, लागत और मेहनत करेगा कम

आज के आधुनिक और मशीनीकरण युग में नित नए अविष्कार हो रहे हैं। सभी क्षेत्रों में अच्छे खासे बदलाव देखने को मिल रहे हैं। इसी कड़ी में KITS वारंगल द्वारा स्वचालित ट्रेक्टर विकसित किया है, जिसका फिलहाल चौथा ट्राइल भी सफलता पूर्वक तरीके से संपन्न हो गया है। बतादें, कि यह ट्रेक्टर लागत प्रभावी है, जो आधुनिक तरीके से किसानों की आमदनी को बढ़ाएगा। आधुनिक तकनीकों एवं मशीनों द्वारा तकरीबन हर क्षेत्र में क्रांति का उद्घोष हो चुका है। महीनों तक विलंबित पड़े कार्य फिलहाल चंद मिनटों में पूर्ण हो जाते हैं। खेती-किसानी के कार्यों को भी सुगम एवं सुविधाजनक करने हेतु बहुत सारे यंत्र, टूल्स एवं वाहन तैयार किए जा रहे हैं। जो कि लागत को प्रभावी होने के साथ-साथ किसानों की आमदनी को दोगुना करने में सहायक हैं। इसी ओर काकतीय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस, वारंगल (KITS-W) ने किसानों के लिए एक ड्राइवरलैस ऑटोमैटिक ट्रैक्टर तैयार किया है, जिसका चौथा ट्राइल भी सफलतापूर्ण ढंग से संपन्न हो चुका है।

इस स्वचालित ट्रैक्टर की क्या-क्या विशेषताएं हैं

KITS, वारंगल के कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग (CSE) के प्रोफेसर डॉ. पी निरंजन ने बताया है, कि ड्राइवरलैस स्वचालित ट्रैक्टर के लिए 41 लाख रुपये की परियोजना राशि मुहैय्या कराई गई थी। इसी कड़ी में इस ट्रेक्टर की विशेषताओं को लेकर इस प्रोजेक्ट के हैड अन्वेषक एमडी शरफुद्दीन वसीम ने जानकारी दी है, कि यह स्वचालित ट्रैक्टर किसानों को सुविधाजनक तरीके से खेतों की जुताई करने में सहायता करेगा। उन्होंने कहा है, कि यह लागत प्रभावी ट्रेक्टर खेती में किसानों की लागत के साथ-साथ समय की भी बचत होगी। साथ ही, किसानों की आमदनी को अधिक करने में भी सहायक भूमिका निभाएगी। ये भी पढ़े: भारत में लॉन्च हुए ये 7 दमदार नए ट्रैक्टर विशेषज्ञों के कहने के मुताबिक, इस स्वचालित ट्रैक्टर को विकसित करने का प्रमुख लक्ष्य खेती में मानव परिश्रम को कम करना है। इस ट्रैक्टर को बिल्कुल उसी प्रकार डिजाइन किया गया है। किसान भाई एक रिमोट द्वारा नियंत्रित उपकरण से इस ट्रैक्टर का सफल संचालन कर कृषि कार्य कर सकते हैं।

इस तरह संचालित होगा यह ट्रैक्टर

सीएसई के प्रोफेसर निरंजन रेड्डी का कहना है, कि स्वचालित ऑटोमैटिक ट्रेक्टर को कंप्यूटर गेम की भांति ही एक एंड्रॉइड एप्लीकेशन की सहायता से संचालित कर सकते हैं। इस स्वचलित ट्रेक्टर में लाइफ फील्ड से डेटा एकत्रित करने हेतु विशेषज्ञों ने सेंसर भी स्थापित किए हैं, जो कि किसी जगह विशेष पर कार्य करने हेतु तापमान एवं मृदा की नमी का भी पता करने में सहायता करेंगे। इससे मृदा की खामियों के विषय में भी जाँच करके डेटा एकत्रित करने में भी सुगमता रहेगी।
IIT मद्रास ने मिलावटी दूध की पहचान करने विकसित की मिल्क किट 

IIT मद्रास ने मिलावटी दूध की पहचान करने विकसित की मिल्क किट 

आज कल दूध में मिलावट की आए दिन सामने आने वाली खबरों को ध्यान में रखते हुए। IIT मद्रास मिल्क किट दूध मिलावट की जानकारी प्रदान करने के लिए एक किट तैयार की है। पूरे भारत में दूध की बढ़ती मांग के चलते इसमें मिलावट की दिक्कतें भी आम होती जा रही है। स्वस्थ जीवनयापन करने के लिए हर कोई दूध का सेवन करता है। परंतु, बाजार में मिल रहे मिलावटी दूध से स्वास्थ्य ठीक होने की जगह और खराब हो सकती है। अब सबसे बड़ी दिक्कत यही है, कि मिलावटी दूध की पहचान करें तो किस तरह करें। आईआईटी मद्रास ने इस परेशानी का समाधान निकाल लिया गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT Madras) के शोधकर्ताओं ने एक 3डी पेपर आधारित पोर्टेबल डिवाइस विकसित किया है। जो 30 सैकेंड के भीतर दूध की जांच पड़ताल करके बता देगा कि इसमें क्या तत्व मिला हुआ है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि केवल दूध के साथ-साथ इस उपकरण से विभिन्न तरह के ड्रिंक्स में मिलावट की पहचान की जा सकती हैं।

मिल्क किट किस प्रकार अपना कार्य करती है

दूध की शुद्धता की पहचान करने के लिए आईआईटी मद्रास ने विकसित की मिल्क किट एक 3-D पेपर-आधारित पोर्टेबल डिवाइस है। ये डिवाइस आपको घर बैठे दूध में सोडियम-हाइड्रोजन-कार्बोनेट, नमक, यूरिया, डिटर्जेंट, साबुन, स्टार्च, हाइड्रोजन पर ऑक्साइड या किस तत्व की मिलावट की जानकारी दे देता है। ये भी पढ़े: जानें पैकेट वाले दूध के बारे में आखिर क्यों यह कच्चे दूध की तुलना में अधिक दिन तक चलता है मिलावटी तत्वों की जानकारी प्रदान करने के लिए डिवाइस में 8 सेक्शन दिए हैं, जो बाजार में सामान्य तौर पर मिलाई जाने वाली घातक चीजों की पहचान करने में सक्षम हैं। शीघ्र सरकार की स्वीकृति के उपरांत इस मिल्क टेस्टिंग डिवाइस को बाजार में मुहैय्या कराया जाएगा।

अब कम खर्च और आसानी से होगी मिलावटी दूध की पहचान

सीधी सी बात यह है, कि दूध की पहचान करने के लिए बहुत वर्षों से लैब पर निर्भरता बरकरार है। परंतु लैब में दूध की जांच-पड़ताल करवाने की प्रक्रिया बेहद लंबी एवं खर्चीली होती है। वहीं, आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई यह डिवाइस सस्ती है एवं केवल 1 मिली दूध की टेस्टिंग करके 30 सैकेंड में नतीजा सामने दिख जाता है। फिलहाल आज तक बैंगलोर, जयपुर, गुरुग्राम, चेन्नई, दिल्ली, मुंबई की भांति के बड़े शहरों में मिलवटी दूध के कई मामले सामने आते हैं। कई बार तो लोग दूध की पहचान नहीं कर पाते एवं जहरीला दूध पीकर बीमार हो जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में आईआईटी मद्रास की डिवाइस लोगों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। इस डिवाइस के शोधकर्ता डॉ. पल्लब सिन्हा महापात्रा ने कहा है, कि इन मिल्क किट का उपयोग मिल्क पॉइट, घर, डेयरी, मिल्क कलेक्शन सेंटर पर दूध की जांच-पड़ताल करने के लिए किया जा सकता है। इस मिल्क किट की सहायता से ताजा जूस, मिल्क शेक के साथ जल में भी मिलावटी तत्वों की पहचान की जा सकती है।
इस अनसुनी सब्जी से किसान सेहत और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं

इस अनसुनी सब्जी से किसान सेहत और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं

आज हम आपको इस लेख में ऐसी सब्जी के बारे में बताने वाले हैं, जिसका नाम आपने शायद ही सुना होगा। यदि आप बाजार में सहजता से उपलब्ध होने वाली त भिंडी, लौकी, बैगन और गोभी इत्यादि सब्जियों को खाकर ऊब चुके हैं, तो आज आपको हम बताएंगे उम्दा और पोषक तत्वों से युक्त जुकिनी सब्जी के बारे में। इस सब्जी को आप बड़े स्वाद से खा सकते हैं। 

सब्जियों का सेवन शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरुरी

सामान्यतौर पर घरों में लौकी, भिंडी एवं तोरई आदि जैसी सब्जियां बनाई जाती हैं। लेकिन हम आपको आज बताएंगे एक ऐसी सब्जी के बारे में जिसका नाम भी बहुत कम लोग जानते हैं। हर कोई जानता है, कि अच्छी सब्जी खाने से सेहत और बुद्धि भी अच्छी रहती है। यहां तक कि चिकित्स्कों का भी यही कहना होता है, कि अच्छी सेहत के लिए अच्छी सब्जियों का सेवन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस बात में कोई शक भी नहीं है। क्योंकि, शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए अच्छी सब्जियों का सेवन करना अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसलिए आज हम इस लेख में आपको एक अनसुनी सब्जी के बारे में बताऐंगे। इस सब्जी का नाम जिकुनी है। अजीब से नाम की यह सब्जी एक प्रकार की तोरई है, जो की रंगीन होती है। 

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जुकिनी तोरी क्या और कैसी होती है

यह सब्जी बिल्कुल कद्दू की भांति दिखाई पड़ती है। परंतु, यह कद्दू नहीं होती है। इसका रंग, आकार एवं बाहरी छिलका बेसक कद्दू जैसा है। परंतु, खाने एवं बनाने में यह बिल्कुल तोरी जैसी होती है। बहुत सारे क्षेत्रों में यह भिन्न-भिन्न रंग की होती है, कुछ क्षेत्रों में यह पीले व हरे रंग की होती है। इसको भिन्न-भिन्न नाम जैसे कि नेनुआ, तोरी और तोरई आदि से भी जाना जाता है।

जिकुनी में विटामिन और खनिज भरपूर मात्रा में पाया जाता है

जिकुनी सब्जी के अंदर विभिन्न प्रकार के पोषण तत्व पाए जाते हैं। खबरों के मुताबिक, इसमें तकरीबन समस्त प्रकार के विटामिन व खनिजों का मिश्रण पाया जाता है। विटामिन ए, सी, के, पोटेशियम और फाइबर आदि की भरपूर मात्रा पाई जाती है। अब ऐसी स्थिति में यदि आप इस जुकिनी सब्जी का सेवन करते हैं, तो आप विभिन्न प्रकार की बीमारियों से निजात पा सकते हैं। 

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जिकुनी के एक पौधे से कितने किलो फल मिल सकेंगे

यदि आप इस जुकिनी सब्जी की खेती करते हैं, तो आप इससे काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। क्योंकि, इसके एक पौधे से तकरीबन 12 किलो तक फल प्राप्त होते हैं। परंतु, ध्यान देने योग्य बात यह है, कि इसकी खेती सितंबर एवं नवंबर के महीने में की जाती है। देखा जाए तो इसकी खेती से 25 से 30 दिन के अंदर ही फल आने चालू हो जाते हैं। फिर उसके पश्चात 40 से 45 दिनों के भीतर ही इसके फलों की तुड़ाई आरंभ कर दी जाती है। बाजार में जुकिनी सब्जी की कीमत तकरीबन 25 से 30 रुपए प्रति किलो के भाव होती है।

इस जगह पौधों को दिया जा रहा बिजली करंट, आखिर क्या वजह है

इस जगह पौधों को दिया जा रहा बिजली करंट, आखिर क्या वजह है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वैज्ञानिकों का कहना है, कि यदि यह तकनीक कामयाब होती है, तो अति शीघ्र इसको संपूर्ण विश्व में फैला दिया जाएगा। साथ ही उन्होंने बताया है, कि इसकी सहायता से वो वैश्विक खाद्य संकट से भी निपट सकते हैं। कृषि तीव्रता से परिवर्तित हो रही है। लोग आधुनिक कृषि के माध्यम से फसलों की पैदावार उम्मीद से भी अधिक कर रहे हैं। हालांकि, इसके लिए किसान भांति-भांति के प्रयोग भी करते हैं। इस लेख में हम आपको एक ऐसे ही एक्सपेरीमेंट के विषय में बताएंगे। सबसे खास बात यह है, कि यदि ये प्रयोग सफल रहा तो बेहद शीघ्रता से आपको खाद एवं केमिकल रहित सब्जियां खाने को मिल सकती हैं। क्योंकि इनका जल्दी से विकास और बढ़वार करने के लिए केमिकल युक्त खाद के स्थान पर बिजली के झटके दिए जा रहे।

इंपीरियल कॉलेज लंदन में एक प्रयोग किया जा रहा है

यह एक प्रकार का प्रयोग है, जिसको इंपीरियल कॉलेज लंदन में किया जा रहा है। यहां प्लांट मॉर्फोजेनेसिस की एक परियोजना के अंतर्गत वर्टिकल फार्मिंग को परिवर्तित करने के लिए इलेक्ट्रोड युक्त हाइड्रोजेल क्यूब्स का उपयोग किया जा रहा है। दरअसल, इस एक्सपेरीमेंट के दौरान इन ट्रांसल्यूसेंट क्यूब्स में उपस्थित नेटवर्क स्ट्रक्चर में तरलता को स्थिर बनाए रखा जाता है। बतादें कि इसके लिए इन हाइड्रोजेल क्यूब्स में बिजली के हल्के-हल्के झटके दिए जाते हैं। उसके पश्चात इसी की वजह से लैब में उपस्थित छोटी एयर टनल्स से हरी-हरी पत्तियां निकलती हैं।

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वैज्ञानिकों ने कहा कि यह तकनीक विश्वभर में फैल जाऐगी

वैज्ञानिकों का कहना है, कि यदि ये तकनीक सफल रही तो अति शीघ्र इसे विश्व भर में फैला दिया जाएगा। बतादें, कि वैज्ञानिकों द्वारा इस तकनीक को बेहद शानदार बताया जा रहा है। उनका कहना है, कि इसकी सहायता से वो वैश्विक खाद्य संकट से भी निपट सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह है, कि इसके इस्तेमाल से सब्जियां केमिकल मुक्त होंगी जो कि स्वास्थ्य के लिए काफी बेहतर होगा। साथ ही, भारत एवं चीन जैसे देश के लिए जहां पर आबादी अत्यधिक है ये तकनीक इनके लिए बेहद फायदेमंद होगी। किसान इस तकनीक की सहायता से अपने खेतों के साथ-साथ छोटी छोटी जगहों पर भी भरपूर मात्रा में सब्जियां उगा पाएंगे। यहां तक की अर्बन किसान जो टेरिस गार्डन में खेती करते हैं, उनके लिए भी यह तकनीक बेहद ही मददगार सिद्ध होगी।
इस तकनीक से किसान सिर्फ पानी द्वारा सब्जियां और फल उगा सकते हैं

इस तकनीक से किसान सिर्फ पानी द्वारा सब्जियां और फल उगा सकते हैं

किसान भाइयों आपको खेती करने के लिए भूमि की कोई आवश्यकता नहीं है। अब किसान भाई पानी पर ही फल और सब्जियां पैदा कर सकते हैं। जो कि पोषण तत्वों से भरपूर होंगी। विश्व भर में खेती को सुगम करने के लिए नवीन तकनीक विकसित की जा रही हैं। 

इन समस्त तकनीकों की सहायता से संसाधनों की बचत एवं मेहनत की खपत भी कम होती है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भी इसी में शुमार है। जहां पारंपरिक खेती में कृषि यंत्रों, खेत, उर्वरक, खाद एवं सिंचाई की बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ती है।

वहीं, इको फ्रेंडली-हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से बेहतरीन फसल कम पानी में पैदा की जा सकती है। हाइड्रोपोनिक्स खेती में मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इस वजह से इसको संरक्षित ढांचे में करना चाहिए। 

इसमें पानी के अतिरिक्त खनिज पदार्थ एवं पोषक तत्व बीजों एवं पौधों को मिलते हैं। बतादें, कि इनमें कैल्शियम, पोटाश, जिंक, सल्फर, आयरन, फास्फोरस, नाइट्रोजन, मैग्नीशियम और अन्य बहुत सारे पोषक तत्व शामिल हैं, जिससे फसल की पैदावार 25–30 प्रतिशत बढ़ती है।

हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से संसाधनों के साथ परिश्रम की खपत भी कम है

दुनिया भर में खेती को सुगम बनाने के लिए नवीन तकनीक तैयार की जा रही हैं। इससे संसाधनों की बचत एवं परिश्रम की खपत कम होती है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक भी इसके अंतर्गत शम्मिलित हैं। 

जहां पारंपरिक खेती में कृषि यंत्रों, खेत, उर्वरक, खाद और सिंचाई की बड़ी मात्रा में जरूरत पड़ती है। उधर इको फ्रेंडली-हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के माध्यम से बेहतरीन फसल कम पानी में पैदा की जा सकती है।

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हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से उगाए सब्जियां

इस तकनीक में प्लास्टिक की पाइपों में बड़े छेद निर्मित किए जाते हैं। जहां पर छोटे-छोटे पौधे भी लगाए जाते हैं। पानी से 25-30 प्रतिशत ज्यादा विकास होता है। इन पौधों को बीज बोकर ट्रे में बड़ा किया जाता है। 

बतादें, कि ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका और सिंगापुर में हाइड्रोपॉनिक का इस्तेमाल हो रहा है। यह तकनीक भारतीय किसानों एवं युवा लोगों में भी काफी हद तक लोकप्रिय हो रही है। 

हाइड्रोपोनिक खेती में बड़े-बड़े खेत की जरूरत नहीं पड़ती है। किसान भाई कम भूमि के हिस्से पर भी खेती कर सकते हैं।

इस तकनीक से ये सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं

हाइड्रोपोनिक्स तकनीक सब्जियों की खेती के अंतर्गत सफल हो चुकी है। भारत में बहुत सारे किसान इस तकनीक का इस्तेमाल करके छोटे पत्ते वाली सब्जियों की खेती कर रहे हैं, जैसे कि खीरा, मटर, मिर्च, करेला, स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, तरबूज, खरबूज, अनानास, गाजर, शलजम, ककड़ी, मूली, अनानास, शिमला मिर्च, धनिया, टमाटर और पालक।

हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक के जरिए पोषण से भरपूर सब्जियां उगती हैं

हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक के माध्यम से उगने वाली सब्जियां पोषण से भरपूर होती हैं। इसलिए इनकी हमेशा मांग बनी रहती है। 100 वर्ग फुट के इलाके में इसे निर्मित करने की लागत 50,000 से 60,000 रुपये हो सकती है। 

साथ ही, 100 वर्ग फुट इलाके में 200 सब्जी पौधे लगाए जा सकते हैं। कमाई के संदर्भ में यह तकनीक ज्यादा रकबे में किसानों को मुनाफा दिला सकती है। हाइड्रोपॉनिक्स को ज्यादा धन कमाने के लिए कम क्षेत्रफल में अनाजी फसलों के साथ पौधे लगाए जा सकते हैं।

भारत के किसान खेती में इजराइली तकनीकों का उपयोग कर बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं

भारत के किसान खेती में इजराइली तकनीकों का उपयोग कर बेहतरीन उत्पादन कर रहे हैं

कृषि क्षेत्र में इजराइल की तकनीक का उपयोग कर भारतीय किसान भी काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इजराइली तकनीक के माध्यम से खेती करने के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी वृद्धि हो रही है।​ इजराइल अपनी तकनीक को लेकर सदैव चर्चा में बना रहता है। अब चाहे फिर वो डिफेंस सिस्टम आयरन डोम हो अथवा फिर खेती में इस्तेमाल होने वाली विभिन्न नवीन-नवीन प्रणालियां। यही वजह है, कि भारत के किसानों को भी इजराइल की तकनीक का उपयोग करने के लिए कहा जाता है। भारत के अधिकांश किसान इजराइली तकनीक का इस्तेमाल भी कर रहे हैं। साथ ही, शानदार मुनाफा भी हांसिल कर रहे हैं। आइए आगे हम आपको इस लेख में उन तकनीकों के विषय में बताऐंगे जिनका उपयोग कर भारतीय किसान काफी शानदार आमदनी कर रहे हैं।

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इजराइल में बागवानी हेतु विभिन्न प्रोजेक्ट जारी किए जा रहे हैं

इजराइल में फल, फूल और सब्जियों की आधुनिक खेती के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। कृषि के क्षेत्र में मदद करने के लिए भारत एवं इजराइल के बीच बहुत सारे समझौते भी हुए हैं। इन समझौतों में संरक्षित खेती पर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इजराइल से भारत के किसानों ने जो संरक्षित खेती के तौर तरीके सीखे हैं, उनकी वजह से क‍िसी भी सीजन में कोई भी फल खाने को म‍िल जाता है। इस टेक्निक की सहायता से वातावरण को नियंत्रित किया जाता है। साथ ही, एक बेहतरीन खेती भी की जाती है।

वातावरण फसल के अनुरूप निर्मित किया जाता है

इसके अंतर्गत कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक लो-हाई टनल एवं ड्रिप इरीगेशन आता है। बाहर का मौसम भले ही कैसा भी हो, परंतु इस तकनीक के माध्यम से फल, फूल और सब्जियों के मुताबिक वातावरण निर्मित कर दिया जाता है। इसके चलते किसान भाई बहुत सी फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। साथ ही, उन्हें बेहतरीन कीमतों में बेच रहे हैं। किसानों को बहुत सारी फसलों के दाम तो दोगुने भी मिल जाते हैं। जानकारों के मुताबिक, तो इस खेती को विश्व की सभी प्रकार की जलवायु जैसे शीतोष्ण, सम शीतोष्ण कटिबंधीय, उष्णकटिबंधीय इत्यादि में अपनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त संरक्षित खेती के चलते जमीन की उत्पादकता में भी काफी बढ़ोतरी होती है।