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कॉफी

इस फसल के लिए बनायी गयी योजना से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

इस फसल के लिए बनायी गयी योजना से किसानों को होगा अच्छा मुनाफा

भारतीय कॉफी बोर्ड (Coffee Board) द्वारा कॉफी हेतु बेंगलुरु हेडक्वार्टर में भूनना व पेषण की व्यवस्था आरंभ की है। लगभग ६ वैरायटियों का विपणन व प्रमोशन हेतु भी बड़ी ई-कॉमर्स तक पहुंचने की भी तैयारी है। केंद्र सरकार के अनुसार आने वाले कॉफी बोर्ड द्वारा अब भारतीय कॉफी को देश-विदेश में प्रख्यात बनाने हेतु ई-कॉमर्स से जुड़ने का निर्णय लिया है। भारतीय कॉफी की मुख्य ६ वैरायटी समेत कूर्ग व चिक्कमंगलुरु की जीआई टैग कॉफी (GI Tag Coffee) के उत्पाद अब एमाजॉन, फ्लिपकार्ट तथा मीशो पर प्रचारित करके विक्रय होंगे। रिपोर्ट्स के मुताबिक कॉफी बोर्ड के अधिकारियों का मुख्य उद्देश्य किसानों की आमंदनी वृध्दि पर है, जिसके हेतु कॉफी को ऑनलाइन मंच पर प्रचारित करके सीधा ग्राहक तक पहुंचाया जाएगा।

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कॉफी को ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा भी बेचा जायेगा

इस सन्दर्भ में कॉफी के वित्त निदेशक एनएन नरेंद्र का कहना है, कि वह बाजार में शुद्ध व बेहतरीन कॉफी हेतु स्थान स्थापित करना चाहते हैं। यही कारण है, कि कॉफी बोर्ड फिलहाल बागान से कॉफी लेकर प्रसंस्करण व पैकिंग कर रहा है। वर्तमान में कॉफी के इन उत्पादों को ई -कॉमर्स वेबसाइटों से ऑनलाइन विक्रय पर ध्यान ज्यादा देने का प्रयास व नियोजन किया जा रहा है। हमारा उद्देश्य इस कॉफी का प्रचार-प्रसार करना है, ना कि मुनाफा अर्जित करना है। कॉफी बोर्ड द्वारा स्वयं परिचालन के खर्च को वहन करने हेतु न्यूनतम अतिरिक्त राशि रखी गयी है, निश्चित तौर पर इस पहल से भारत के कॉफी क्षेत्र का विकास-विस्तार बढ़ेगा।

FSSAI ने प्रमाणित भी किया है

भारतीय कॉफी का प्रसंस्करण कर बाजार में उतारने हेतु बैंगलुरु हेडक्वार्टर में भूनना व पेषण की सुविधा भी प्रारंभ की गई है। यहां सीधे ऑर्डर करने पर कॉफी तैयार करके उसका विपणन किया जाता है। गुणवत्ता नियंत्रण हेतु कॉफी बोर्ड का विभाग खुद कॉफी की असाधारण मात्रा की जाँच करता है। बता दें, कि कॉफी ऑफ इंडिया ब्रांड को FSSAI से प्रमाणीकरण मिल चुका है, जो कि उम्दा गुणवत्ता के फूड का मानक है। बेहतर गुणवत्ता की कॉफी को बाजार में स्थानांतरित हेतु विभिन्न क्षेत्रों में प्रसिद्ध (जीआईटैग) कॉफी को सीधे कॉफी उत्पादकों से खरीदा जाएगा। जिसकी सहायता से किसानों को होगी अच्छी कमाई साथ ही कॉफी के लिए मिलेगा अच्छा बाजार।
भारत में सबसे ज्यादा कॉफी का उत्पादन कहाँ होता है, कॉफी की खेती कैसे की जाती है

भारत में सबसे ज्यादा कॉफी का उत्पादन कहाँ होता है, कॉफी की खेती कैसे की जाती है

भारत के अंदर अधिकांश लोग चाय या कॉफी के शौकीन होते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि देश के कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में एक बड़े पैमाने पर कॉफी का उत्पादन किया जाता है। दरअसल, देश का कर्नाटक राज्य सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक राज्य है। भारत के अंदर अगर लोग चाय के बाद किसी पेय पदार्थ का सेवन करना पसंद करते हैं, उसका नाम कॉफी है। कॉफी को लेकर युवाओं के मध्य अच्छी-खासी रूचि देखने को मिल रही है। इसको स्वास्थ के लिए भी काफी अच्छा माना जाता है। परंतु, क्या आप यह जानते हैं, कि कॉफी की खेती किस प्रकार से की जाती है। अब हम आपको इस लेख में कॉफी की खेती के बारे में जानकारी देने वाले हैं।

भारत के किन राज्यों में कॉफी का अधिकांश उत्पादन किया जाता है

भारत के दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों में कॉफी की खेती विशेष रूप से की जाती है। कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में कॉफी का अत्यधिक उत्पादन किया जाता है। कॉफी के पौधों का मात्र एक बार रोपण करने के उपरांत वर्षों तक इससे उत्पादन प्राप्त किया जाता है। इसकी खेती के लिए सर्वप्रथम खेत की मृदा को ढीला करने के लिए जुताई करनी पड़ती है। उस स्तर के इलाके के उपरांत पुनः कुछ दिनों के लिए इसे ऐसे ही छोड़ दें। खेत को एकसार करने के उपरांत चार या पांच मीटर की पंक्ति एवं चार मीटर की पंक्ति की दूरी वाले गड्ढे तैयार करें। प्रत्येक पंक्ति में पौधरोपण किया जाए। जब गड्ढा तैयार हो जाए तब पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद और रासायनिक खाद मृदा में मिला दें। उसके बाद गड्ढे में डाल दें। इन समस्त गड्ढों को भरने के उपरांत सही ढ़ंग से सिंचाई कर दें। गड्ढे में मृदा सही तरह से जम जाए इसके लिए पुनः गड्ढे को ढक दें। पौधे लगाने से एक माह पूर्व गड्ढा तैयार कर लें।

कॉफी की खेती के लिए उपयुक्त तापमान क्या होता है

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, कॉफी का उत्पादन करने के लिए करीब 150 से 200 सेंटीमीटर बारिश पर्याप्त होती है। यह सर्दियों में खेती के लिए अनुकूल नहीं होती है। क्योंकि, ऐसे मौसम में इसके पौधों का बढ़ना रुक जाता है। इसके पौधों की उन्नति और बढ़ोत्तरी के लिए 18 से 20 डिग्री का तापमान उपयुक्त माना जाता है। परंतु, यह गर्मियों में ज्यादा से ज्यादा 30 डिग्री और सर्दियों में कम से कम 15 डिग्री तक सहन कर सकता है। ये भी पढ़े: इन फसलों को कम भूमि में भी उगाकर उठाया जा सकता है लाखों का मुनाफा

भारत की सबसे पुरानी कॉफी कौन-सी है

भारत में कॉफी की विभिन्न किस्मों का उत्पादन किया जाता है। वह विभिन्न प्रकार की मृदा में पैदा की जाती हैं। इसी कड़ी में हम भारत की केंट कॉफी पर प्रकाश डालेंगे, क्योंकि यह भारत की सबसे पुरानी कॉफी मानी जाती है। केरल राज्य के अंतर्गत इसकी सबसे ज्यादा पैदावार होती है। अरेबिका कॉफी को भारत में उत्पादित उच्चतम गुणवत्ता वाली कॉफी कहा जाता है। यह कॉफी समुद्र तल से 1000 से 1500 मीटर की ऊंचाई पर उत्पादित की जाती है। विशेष तौर से दक्षिणी भारत में पैदा होती है। इसके अतिरिक्त भारत में बाकी अन्य किस्मों की भी कॉफी उत्पादित की जाती है।
जानें भारत कॉफी उत्पादन के मामले में विश्व में कौन-से स्थान पर है

जानें भारत कॉफी उत्पादन के मामले में विश्व में कौन-से स्थान पर है

भारत कॉफी उत्पादन के मामले में दुनिया में 6वें नंबर पर है। भारत लगभग 8200 टन कॉफी का उत्पादन करता है। भारत के अंदर सबसे ज्यादा कॉफी का उत्पादन कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में होता है। इन राज्यों में किसान भाई सर्वाधिक कॉफी की खेती करते हैं। कॉफी के कुल पैदावार में कर्नाटक की भागीदारी 53 फीसद है। बतादें, कि कॉफी की खपत दिनों दिन दुनिया भर में लगातार बढ़ती जा रही है। भारत के बड़े-बड़े शहरों में अधिकांश लोग चाय की तुलना में कॉफी पीना अधिक पसंद करते हैं। कॉफी की प्रोसेसिंग करके बहुत सारे सौंदर्य उत्पाद तथा खाने-पीने की चीजें भी निर्मित की जाती हैं। यही वजह है, कि सब्जी और फलों की भांति बाजार में कॉफी की मांग भी इजाफा होता जा रहा है। कॉफी की दुनियाभर में होने वाली मांग की आपूर्ति करने हेतु भारत के अतिरिक्त 6 देश और इसका उत्पादन करते हैं। इस वजह से किसान चाहें तो कॉफी की खेती करके आरंभ से ही अच्छा-खासा लाभ उठा सकते हैं।

भारत के इन राज्यों में सबसे ज्यादा कॉफी का उत्पादन किया जाता है

कॉफी की बेहतरीन गुणवत्ता वाली पैदावार लेने के लिये समुचित जलवायु एवं मिट्टी का होना अत्यंत आवश्यक होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, सम शीतोष्ण जमीन में इसकी खेती करना मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है। भारत में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक ही ऐसे राज्य है, जहां के बहुत सारे किसान सालों से कॉफी की खेती कर रहे हैं। बतादें, कि एक बार कॉफी की बुवाई-रोपाई करने के पश्चात तकरीबन 50-60 साल तक इसके बीजों की बेहतरीन पैदावार ली जा सकती है। यह भी पढ़ें: चाय की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

जानें किस राज्य में कितने प्रतिशत कॉफी का उत्पादन किया जाता है

भारत कॉफी उत्पादन के मामले में 6वें नंबर पर आता है। भारत 8200 टन कॉफी का उत्पादन करता है। केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में किसान सर्वाधिक कॉफी की खेती करते हैं। कॉफी के कुल उत्पादन में कर्नाटक की भागीदारी 53 प्रतिशत है। इसी प्रकार तमिननाडु की भागीदारी 11 प्रतिशत एवं केरल की 28 प्रतिशत है। कॉफी की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसकी एक बार बिजाई करने पर इसके पेड़ से बहुत वर्षों तक कॉफी का उत्पादन ले सकते हैं।

विभिन्न राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से कॉफी की खेती के लिए प्रोत्साहन देती हैं

वर्तमान में भारत सहित संपूर्ण विश्व में लोग चाय से अधिक कॉफी पीना पसंद कर रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में कॉफी की मांग आहिस्ते-आहिस्ते बढ़ती जा रही है। परंतु, इसके उत्पादन में उस हिसाब से वृद्धि नहीं हो रही है। यदि पंजाब, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में किसान भाई कॉफी की खेती करते हैं, तो पारंपरिक फसलों की तुलना में उनको अधिक मुनाफा होगा। हालांकि, बहुत सारे राज्यों में वक्त-वक्त पर कॉफी की खेती करने के लिए कृषकों को अनुदान भी दिया जाता है। स्वयं छत्तीसगढ़ सरकार राज्य में कॉफी की खेती करने के लिए किसानों को बढ़ावा दे रही है।

कॉफी बारिश से ही अपनी सिंचाई आवश्यकता पूर्ण कर लेती है

कॉफी की खेती के लिए गर्म मौसम सर्वाधिक उपयुक्त माना जाता है। दोमट मृदा में कॉफी का उत्पादन काफी अच्छा होता है। यदि किसान भाई चाहें, तो 6 से 6.5 पीएच मान वाली मृदा में कॉफी की खेती कर सकते हैं। जून और जुलाई माह में कॉफी के पौधों की बुवाई करना अच्छा रहेगा। सबसे खास बात किसान भाई कॉफी के खेत में सदैव उर्वरक के तौर पर जैविक खाद का ही उपयोग किया करते हैं। साथ ही, कॉफी की फसल की सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह बारिश के जल से अपनी आवश्यकता पूर्ण कर लेती है।

कॉफी के एक पेड़ से कितने वर्ष तक पैदावार ली जा सकती है

कॉफी की विशेषता यह है, कि इसके पौधों पर कीटों का संक्रमण भी बेहद कम होता है। रोपाई करने के 5 वर्ष पश्चात कॉफी की फसल तैयार हो जाती है। कॉफी के एक पेड़ से आप 50 वर्ष तक आमदनी कर सकते हैं। यदि किसान भाई एक एकड़ भूमि में कॉफी का बाग लगाते हैं, तो 3 क्विंटल तक उत्पादन मिलेगा। ऐसे में किसान कॉफी की खेती से अच्छा-खासा मुनाफा उठा सकते हैं।
इन फसलों को कम भूमि में भी उगाकर उठाया जा सकता है लाखों का मुनाफा

इन फसलों को कम भूमि में भी उगाकर उठाया जा सकता है लाखों का मुनाफा

आइये अब जानते हैं, उन फसलों के बारे में जिनकी सहायता से किसान कुछ समय में ही लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं। जिसमें कॉफी, लैवेंडर, माइक्रो ग्रीन (microgreen), मशरूम और केसर ये पांच ऐसी फसलें हैं, जो कम जमीन में कम लागत में कम समय में लाखों का मुनाफा प्रदान करने में बेहद सहायक साबित होती हैं, क्योंकि इनकी बाजार में कीमत अच्छी खासी मिलती है। साथ ही इनका बाजार भाव भी अच्छा होता है क्योंकि इन फसलों के प्रयोग से कई तरह के जरुरी और महंगे उत्पाद तैयार किये जाते हैं। जिसकी वजह से इन सभी फसलों के भाव अच्छे खासे प्राप्त हो जाते हैं।

केसर की खेती

बतादें कि, केसर का उत्पादन अधिकतर जम्मू कश्मीर में होता है, जहां केंद्र सरकार द्वारा एक केसर पार्क की भी स्थापना की गयी है, जिसकी वजह से केसर का भाव अब दोगुना हो गया है। केसर का उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों में किया जाता है, जिसकी वजह से किसान इसका उत्पादन कर लाखों कमा सकते हैं।

लैवेंडर की खेती

लैवेंडर की खेती भी कोई कम नहीं, लैवेंडर का उपयोग खुशबू उत्पन्न करने वाले उत्पादों में किया जाता है जैसे कि धूप बत्ती इत्र आदि जिनकी बाजार में कीमत आप भली भांति जानते ही हैं। लैवेंडर अच्छी उपयोगिता और अच्छे गुणों से विघमान फसल है जिसकी मांग हमेसा से बाजार में अच्छे पैमाने पर रही है।
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मशरूम की खेती

अब बात करें मशरूम की तो इसका उत्पादन मात्र १ माह के करीब हो जाता है और इसका बाजार में भी अच्छा खासा भाव मिलता है। इसका जिक्र हमने कुछ दिन पूर्व अपने एक लेख में किया था। लॉकडाउन के समय बिहार में बेसहारा लोगों ने अपनी झुग्गी झोपड़ियों व उसके समीप स्थान पर मशरूम की खेती उगा कर अपनी आजीविका को चलाया था।

कॉफी की खेती

अब हम जिक्र करते हैं, दुनिया भर की बेहद आबादी में सबसे अधिक प्रचलित कॉफी के बारे में। इसकी पूरी दुनिया में खूब मांग होती है, इस कारण से इसका अच्छा भाव प्राप्त होता है। इसलिए किसानों को कॉफी का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा कमा लेना चाहिए। कॉफी उत्पादन करने वाले किसान बेहद फायदे में रहते हैं।

माईक्रोग्रीन

माइक्रोग्रीन्स बनाने के लिए के लिए धनिया, सरसों, तुलसी, मूली, प्याज, गाजर, पुदीना, मूंग, कुल्फा, मेथी आदि के पौधों के बीज उपयुक्त होते हैं।माईक्रोग्रीन में इन बीजों को अंकुरित करके फिर बोना चाहिये, अंकुरित पौधों को हफ्ते-दो हफ्ते 4-5 इंच तक बढ़ने देते हैं। उसके बाद कोमल पौधों को तने, पत्तियों और बीज सहित काटकर इस्तेमाल किया जाता है, इसे सलाद या सूप की तरह प्रयोग करते हैं. माइक्रोग्रीन औषधीय गुण से परिपूर्ण होने के साथ ही घर में ताजी हवा का संचार भी बढ़ता है। आपको बतादें कि उपरोक्त में बताई गयी सभी फसलों का उत्पादन कर किसान कुछ समय के अंदर ही लाखों का मुनाफा कमा सकते हैं और अपनी १ या २ एकड़ भूमि में ही अच्छी खासी पैदावार कर सकते हैं। किसानों को अपनी अच्छी पैदावार लेने के लिए बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि बारिश, आंधी-तूफान एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के साथ साथ फसल का उचित मूल्य प्राप्त न होना जैसी गंभीर समस्याओं से जूझने के साथ ही काफी जोखिम भी उठाना पड़ता है। अब मौसमिक असंभावनाओं के चलते किसान कम भूमि में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की ओर रुख करें तो उनको हानि की अपेक्षा लाभ की संभावना अधिक होगी। इस प्रकार का उत्पादन उपरोक्त में दी गयी फसलों से प्राप्त हो सकता है, जिसमें कॉफी, लैवेंडर, केसर, माइक्रो ग्रीन्स एवं मशरूम की फायदेमंद व मुनाफा देने वाली फसल सम्मिलित हैं। किसान इन फसलों को उगा कर अच्छा खासा मुनाफा उठा सकते हैं, इनमे ज्यादा जोखिम भी नहीं होता है, साथ ही इन सभी फसलों का बाजार मूल्य एवं मांग अच्छी रहती है।
इस राज्य में जैविक कॉफी उत्पादन हेतु सरकार करेगी सहायता

इस राज्य में जैविक कॉफी उत्पादन हेतु सरकार करेगी सहायता

ओड़ीशा कृषि उत्पादन आयुक्त प्रदीप कुमार जेना ने बताया कि कोरापुट में उन्हें बेहतरीन गुणवत्ता वाली अरेबिका कॉफी प्राप्त होती है। ओडिशा के किसानों के लिए यह अच्छी खबर है। प्रदेश सरकार ने आगामी पांच सालों में हजारों हेक्टेयर भूमि में जैविक कॉफी उत्पादन हेतु योजना तैयार की है। इस बात की पुष्टि स्वयं राज्य कृषि उत्पादन आयुक्त प्रदीप कुमार जेना द्वारा की गयी है। उन्होंने कहा है, कि राज्य सरकार द्वारा आने वाले ५ सालों में १०,००० हेक्टेयर में जैविक कॉफी उगायी जाएगी, उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में अच्छी खासी संख्या में कॉफी बागान हैं। हमने भी कॉफी बागानों के साथ अच्छा काम किया है। ऐसे में हमें उम्मीद है, कि जैविक कॉफी की खेती से किसानों की आमदनी में वृद्धि होगी।


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साथ ही, उनका कहना है, कि कोरापुट में हमें अच्छी गुणवत्ता युक्त अरेबिका कॉफी प्राप्त होती है। जेना ने कहा कि हमने अगले कुछ सालों में १०००० हेक्टेयर कॉफी बागान बनाये जाने की कोशिश की है। सरकार का यही प्रयास है, कि ओडिशा को भारत में जैविक कॉफी उत्पादक राज्य के रूप में पहचान दिलाई जाए। बतादें कि कॉफी बोर्ड के मुताबिक, ओडिशा व आंध्र प्रदेश एवं उत्तर-पूर्व के गैर-पारंपरिक इलाकों में कुल कॉफ़ी फ़सल इलाकों का करीब २१% हिस्सा है। पारंपरिक क्षेत्रों में ३. ६८ लाख हेक्टेयर की तुलना में २०२१-२२ में गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में ९९,३८० हेक्टेयर में कॉफी उगाई गई थी।

इन क्षेत्रों को रचनात्मक तरीके से जैविक बनाया जायेगा

आंध्र प्रदेश में ९४.९५६ हेक्टेयर कॉफी हेतु जमीन है, परंतु अपेक्षाकृत ओडिशा में ४.४२४ हेक्टेयर एवं उत्तर-पूर्व में ४.६९५ हेक्टेयर जमीन है। ओडिशा में सिर्फ अरेबिका कॉफी का उत्पादन किया जाता है, लेकिन आंध्र प्रदेश एवं उत्तर-पूर्व में रोबस्टा कॉफी का उत्पादन बड़े स्तर से किया जाता है। साथ ही, ओडिशा के आदिवासी समुदाय के किसान लोग भी कॉफी का उत्पादन करते हैं। अधिकतर जनजातीय क्षेत्र डिफ़ॉल्ट रूप से जैविक खेती करते हैं। वहां रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जेना का कहना है, कि उनके द्वारा कॉफी के विपणन का लाभ अर्जन हेतु इन क्षेत्रों को रचनात्मक तरीके से जैविक बनाया जाये।

कृषि मशीनीकरण का व स्वचालन पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा

उन्होंने कहा कि ओडिशा सरकार के माध्यम से उच्च स्तर पर कृषि को स्वचालित एवं उपकरणीय बनाकर पैदावार को बढ़ावा दिये जाने का प्रयास किया जायेगा। दरअसल में, २० वर्ष पूर्व हमारी प्रति व्यक्ति विघुत व्यय राष्ट्रीय औसत का अधिकांश एक चौथाई थी। प्रदीप कुमार जेना ने बताया कि ओडिशा राज्य प्रति व्यक्ति २.४ kWh विघुत खपत करता है, जो कि राष्ट्रीय औसत २. ७ kWh से कम है। राज्य कृषि उत्पादन आयुक्त द्वारा बताया गया है, कि अब कृषि मशीनीकरण एवं स्वचालन पर अधिक ध्यान दिया जायेगा।
जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी खेती किसानी पर ही निर्भर रहती है। कोरोना जैसी महामारी में भी केवल कृषि क्षेत्र ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। भारत में कृषि को देश की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। भारत पहले से ही बहुत सारी फसलों का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन फसलों के अंतर्गत मक्का, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, कपास, गेहूं, धान, गन्ना, बाजरा आदि शम्मिलित हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत की भूमि कृषि हेतु अत्यधिक बेहतरीन व उपजाऊ होती है।


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भारत में प्रत्येक फसल उत्पादन हेतु विशेष जलवायु एवं मृदा उपलब्ध है। जैसा कि हम जानते ही हैं, कि फसल रबी, खरीफ, जायद इन तीन सीजन में की जाती है, इन सीजनों के अंतर्गत विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जाता है। भारत की मृदा से उत्पन्न अन्न का स्वाद विदेशी लोगों को भी बहुत भाता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन, कपास, धान, गेहूं से लेकर गन्ना, चाय, कॉफी का उत्पादन विशेष तौर पर किया जाता है, परंतु इन फसलों में से धान की फसल का उत्पादन भारत के सर्वाधिक रकबे में उत्पादित की जाती है।

कौन कौन से राज्यों में हो रही है, धान की खेती

हालाँकि धान एक खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है। साथ ही, देश की आहार श्रृंखला के अंतर्गत धान सर्वप्रथम स्थान पर आता है। भारत के धान या चावल की खपत देश में ही नहीं विदेशों में भी भारतीय चावल की बेहद मांग है। एशिया के अतिरिक्त विभिन्न देशों में प्रतिदिन चावल को आहार के रूप में खाया जाता है। यही कारण है, कि किसान निर्धारित सीजन के अतिरिक्त भी विभिन्न राज्यों में बारह महीने धान का उत्पादन करते हैं। अगर हम धान का उत्पादन करने वाले कुछ प्रमुख राज्यों के बारे में बात करें, तो पंजाब, हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश में धान का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर किया जाता है।

धान की खेती किस प्रकार की जाती है

चावल केवल भारत के साथ-साथ विभिन्न देशों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। धान की फसल के लिए सबसे जरूरी बात है, इसको जलभराव अथवा ज्यादा बरसात वाले क्षेत्र धान के उत्पादन हेतु बेहतर साबित होते हैं। इसकी वजह यह है, कि धान का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु बहुत ज्यादा जल आपूर्ति की जरूरत होती है। विश्वभर में धान की पैदावार के मामले में चीन पहले स्थान पर है, इसके उपरांत भारत दूसरे स्थान पर धान उत्पादक के रूप में बनकर उभरा है। चावल की खेती करते समय 20 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियत तापमान एवं 100 सेमी0 से ज्यादा बारिश एवं जलोढ़ मिट्टी बहुत अच्छी होती है। भारत में मानसून के दौरान धान की फसल की बुवाई की जाती है, जिसके उपरांत धान की फसल अक्टूबर माह में पकने के उपरांत कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

इन राज्यों में धान का उत्पादन 3 बार होता है

देश के साथ अन्य देशों में भी धान की काफी खपत होती है, इसी वजह से धान की फसल कुछ राज्यों के अंदर वर्षभर में 3 बार उत्पादित की जाती है। इन राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं असम प्रथम स्थान पर आते हैं, जो धान के उत्पादन हेतु प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य हैं। इन राज्यों में कृषि रबी, खरीफ अथवा जायद के अनुरूप नहीं बल्कि ऑस, अमन व बोरो अनुरूप वर्ष में तीन बार धान की फसल का उत्पादन किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन से क्या हानि हो सकती है

धान एक प्रमुख नकदी फसल तो है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग एवं मौसमिक बदलाव के कारण से फिलहाल धान के उत्पादन में बेहद हानि हुई है। वर्ष 2022 भी धान के किसानों हेतु अत्यंत चिंताजनक रहा है। देरी से हुए मानसून की वजह से धान की रोपाई ही नहीं हो पाई है, बहुत सारे किसानों द्वारा धान की रोपाई की जा चुकी थी। परंतु अक्टूबर माह में कटाई के दौरान बरसात की वजह से आधे से ज्यादा धान नष्ट हो गया, इसलिए वर्तमान में चावल के उत्पादन की जगह पर्यावरण एवं जलवायु के अनुरूप फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है।

धान की फसल के लिए योजनाएं एवं शोध

प्रत्येक खरीफ सीजन के दौरान समय से पूर्व धान का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु बहुत सारी योजनाएं जारी की जाती हैं। साथ ही, कृषि के व्यय का भार प्रत्यक्ष रूप से किसानों को प्रभावित न कर सके। विभिन्न राज्य सरकारें न्यूनतम दरों पर चावल की उन्नत गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करती हैं। धान की सिंचाई से लेकर कीटनाशक व उर्वरकों हेतु अनुदान दिया जाता है। धान की खेती के लिए मशीनीकरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही, धान की फसल को मौसमिक प्रभाव से संरक्षण उपलब्ध कराने हेतु फसल बीमा योजना के अंतर्गत शम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि भी चावल का उत्पादन करने वाले कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराती है। चावल के सबसे बड़े शोधकर्ता के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला (फिलीपींस) एवं भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक (उड़ीसा) पर कार्य कर रहे हैं, जो किसानों को धान की वैज्ञानिक कृषि करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं।