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गेहूं का उत्पादन

हरित क्रांति के बाद भारत बना दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक

हरित क्रांति के बाद भारत बना दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक

नई दिल्ली। हरित क्रांति के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश बना है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने 1068.4 लाख टन गेहूं का उत्पादन किया है, जो वर्ष 1960 के मुकाबले 1000 फीसदी अधिक है। हरित क्रांति से ही भारत को कृषि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हुई थी। हरित क्रांति की बदौलत ही भारत अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बना और पिछले छः दशकों से भारत दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश बन गया है। साल 1960 की हरित क्रांति के बाद भारत ने गेहूं उत्पादन में करीब 1000 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज कराई है।

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केन्द्र सरकार के डाटा चार्ट के अनुसार साल 1960 की शुरुआत में भारत 98.5 लाख टन गेहूं का उत्पादन करता था। लेकिन हरित क्रांति के बाद भारत लगातार गेहूं का उत्पादन बढ़ाता गया और आज गेहूं उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। आज भारत 1068.4 लाख टन गेहूं का उत्पादन कर रहा है।


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भारत पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान रिकॉर्ड 70 लाख टन अनाज का निर्यात कर चुका है। आज अनाज की कुल पैदावार प्रति हेक्टेयर के हिसाब से तीन गुना बढ़ गई है। 1960 के मध्य में प्रति हेक्टेयर 757 किलोग्राम की पैदावार हुआ करती थी, जो वित्तीय वर्ष 2021 में 2.39 टन हो गई है। 

अनाज के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद

वित्तीय वर्ष 2021-22 में गेहूं का उत्पादन बढ़ना तय है। इस साल भी भारत में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जताई जा रही है। गेहूं उत्पादन में भारत को लगातार ख्याति मिल रही है, जो कृषि क्षेत्र के लिए अच्छे संकेत हैं।

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

गेहूं के उत्पादन में यूपी बना नंबर वन

आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है, यह कोई यूपी से सीखे। कोरोना के जिस भयावह दौर में आम आदमी अपने घरों में कैद था। उस दौर में भी ये यूपी के किसान ही थे, जो तमाम सावधानियां बरतते हुए भी खेत में काम कर रहे थे या करवा रहे थे। नतीजा क्या निकला? यूपी गेहूं के उत्पादन में पूरे देश में नंबर 1 बन गया। कुछ चीजें जब हो जाती हैं और आप उनके बारे में सोचना शुरू करते हैं, तो पता चलता है कि यह तो चमत्कार हो गया। ऐसा कभी सोचा ही नहीं गया था और ये हो गया। कुछ ऐसी ही कहानी है यूपी के कृषि क्षेत्र की। कोरोना के जिस कालखंड में आम आदमी अपनी जिंदगी बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था, सावधानियां बरतते हुए चल रहा था, उस यूपी में ही किसानों ने कभी भी अपने खेतों को भुलाया नहीं। क्या धान, क्या गेहूं, क्या मक्का हर फसल को पूरा वक्त दिया। निड़ाई, गुड़ाई से लेकर कटाई तक सब सही तरीके से संपन्न हुआ। यहां तक कि कोरोना काल में भी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की। इन सभी का अंजाम यह हुआ कि यूपी गेहूं के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भर हुआ बल्कि देश भर में सबसे ज्यादा गेहूं उत्पादक राज्य भी बन गया।


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अकेले 32 प्रतिशत गेहूं का उत्पादन करता है यूपी

यूपी के एग्रीकल्चर मिनिस्टर सूर्य प्रताप शाही के अनुसार, यूपी में देश के कुल उत्पादन का 32 फीसद गेहूं उपजाया जाता है। यह एक रिकॉर्ड है, पहले हमें पड़ोसी राज्यों से गेहूं के लिए हाथ फैलाना पड़ता था। अब हमारा गेहूं निर्यात भी होता है, पड़ोसी राज्यों की जरूरत के लिए भी भेजा जाता है। शाही के अनुसार, ढाई साल तक कोरोना में भी हमारे किसानों ने निराश नहीं किया। इन ढाई सालों के कोरोना काल में सिर्फ कृषि सेक्टर की उत्पादकता बढ़ी। किसानों ने दुनिया को निराश नहीं होने दिया। खेतों में अन्न पैदा होता रहा तो गरीबों को मुफ्त में राशन लेने की दुनिया की सबसे बड़ी स्कीम प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चलाई गई। आपको तो पता ही होगा कि देश में 80 करोड़ तथा उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ लोगों को प्रतिमाह मुफ्त में दो बार राशन दिया गया। राज्य सरकार ने भी किसानों को लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने के साथ ही यह तय किया कि महामारी के चलते किसी के भी रोजगार पर असर न पड़े। कोई भूखा न सोए, एक जनकल्याणकारी सरकार का यही कार्य भी होता है।

21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर मिली सिंचाई की सुविधा

आपको बता दें कि यूपी में पिछले 5 सालों में हर सेक्टर में कुछ न कुछ नया हुआ है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पिछले पांच साल में प्रदेश में 21 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई की सुविधा मिली है। सरयू नहर परियोजना से पूर्वी उत्तर प्रदेश के 9 जिलों में अतिरिक्त भूमि पर सिंचाई सुनिश्चित हुई है। हर जिले में व्यापक स्तर पर नलकूप की स्कीम चलाने के साथ सिंचाई की सुविधा को बढ़ाने के लिए पीएम कुसुम योजना के तहत किसानों को अपने खेतों में सोलर पंप लगाने की व्यवस्था की जा रही है। तो, अगर गेहूं समेत कई फसलों के उत्पादन में हम लोग आगे बढ़े हैं तो यह सब अचानक नहीं हो गया है। यह सब एक सुनिश्चित योजना के साथ किया जा रहा था, जिसका नतीजा आज सामने दिख रहा है।
पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

पिछले साल की अपेक्षा बढ़ सकती है, गेहूं की पैदावार, इतनी जमीन में हो चुकी है अभी तक बुवाई

भारत के साथ दुनिया भर में गेहूं खाना बनाने का एक मुख्य स्रोत है। अगर वैश्विक हालातों पर गौर करें, तो इन दिनों दुनिया भर में गेहूं की मांग तेजी से बढ़ी है। जिसके कारण गेहूं के दामों में तेजी से इजाफा देखने को मिला है। दरअसल, गेहूं का उत्पादन करने वाले दो सबसे बड़े देश युद्ध की मार झेल रहे हैं, जिसके कारण दुनिया भर में गेहूं का निर्यात प्रभावित हुआ है। अगर मात्रा की बात की जाए तो दुनिया भर में निर्यात होने वाले गेहूं का एक तिहाई रूस और यूक्रेन मिलकर निर्यात करते हैं। पिछले दिनों दुनिया में गेहूं का निर्यात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है, जिसके कारण बहुत सारे देश भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं।


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दुनिया में घटती हुई गेहूं की आपूर्ति के कारण बहुत सारे देश गेहूं खरीदने के लिए भारत की तरफ देख रहे थे। लेकिन उन्हें इस मोर्चे पर निराशा हाथ लगी है। क्योंकि भारत में इस बार ज्यादा गर्मी पड़ने के कारण गेहूं की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई थी। अन्य सालों की अपेक्षा इस साल देश में गेहूं का उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत कम हुआ था। जिसके बाद भारत सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। कृषि विभाग के अधिकारियों ने इस साल रबी के सीजन में एक बार फिर से गेहूं के बम्पर उत्पादन की संभावना जताई है।


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आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के डायरेक्टर ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा है, कि इस साल देश में पिछले साल के मुकाबले 50 लाख टन ज्यादा गेहूं के उत्पादन की संभावना है। क्योंकि इस साल गेहूं के रकबे में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। साथ ही इस साल किसानों ने गेहूं के ऐसे बीजों का इस्तेमाल किया है, जो ज्यादा गर्मी में भी भारी उत्पादन दे सकते हैं। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर गेहूं की फसल के उत्पादन एवं रिसर्च के लिए शीर्ष संस्था है। अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया है, कि तेज गर्मी से भारत में अब गेहूं की फसल प्रभावित होने लगी है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर सीधा असर पड़ता है।

इस साल देश में इतना बढ़ सकता है गेहूं का उत्पादन

कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि, इस साल भारत में लगभग 11.2 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हो सकता है। जो पिछले साल हुए उत्पादन से लगभग 50 लाख टन ज्यादा है। इसके साथ ही अधिकारियों ने बताया कि इस साल किसानों ने गेहूं की डीबीडब्लू 187, डीबीडब्लू 303, डीबीडब्लू 222, डीबीडब्लू 327 और डीबीडब्लू 332 किस्मों की बुवाई की है। जो ज्यादा उपज देने में सक्षम है, साथ ही गेहूं की ये किस्में अधिक तापमान को सहन करने में सक्षम हैं।


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इसके साथ ही अगर गेहूं के रकबे की बात करें, तो इस साल गेहूं की बुवाई 211.62 लाख हेक्टेयर में हुई है। जबकि पिछले साल गेहूं 200.85 लाख हेक्टेयर में बोया गया था। इस तरह से पिछली साल की अपेक्षा गेहूं के रकबे में 5.36 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। आईसीएआर आईआईडब्लूबीआर के अधिकारियों ने बताया कि इस साल की रबी की फसल के दौरान राजस्थान, बिहार और उत्तर प्रदेश में गेहूं के रकबे में सर्वाधिक बढ़ोत्तरी हुई है।

एमएसपी से ज्यादा मिल रहे हैं गेहूं के दाम

अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को देखते हुए इस साल गेहूं के दामों में भारी तेजी देखने को मिल रही है। बाजार में गेहूं एमएसपी से 30 से 40 प्रतिशत ज्यादा दामों पर बिक रहा है। अगर वर्तमान बाजार भाव की बात करें, तो बाजार में गेहूं 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। इसके उलट भारत सरकार द्वारा घोषित गेहूं का समर्थन मूल्य 20.15 रुपये प्रति किलो है। बाजार में उच्च भाव के कारण इस साल सरकार अपने लक्ष्य के अनुसार गेहूं की खरीदी नहीं कर पाई है। किसानों ने अपने गेहूं को समर्थन मूल्य पर सरकार को बेचने की अपेक्षा खुले बाजार में बेचना ज्यादा उचित समझा है। अगर इस साल एक बार फिर से गेहूं की बम्पर पैदावार होती है, तो देश में गेहूं की सप्लाई पटरी पर आ सकती है। साथ ही गेहूं के दामों में भी कमी देखने को मिल सकती है।
गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान भाई इन रोगों के बारे में ज़रूर रहें जागरूक

गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान भाई इन रोगों के बारे में ज़रूर रहें जागरूक

सर्दियों के मौसम में लगभग पूरे उत्तर भारत में गेहूं की फसल लगाई जाती है। इस फसल के लिए सर्दियां काफी अच्छी मानी गई है। गेहूं का अच्छा उत्पादन किसानों को मार्किट में इससे अच्छे दाम दिवा सकता है। लेकिन अगर कहीं आपकी फसल में किसी ना किसी तरह के कवक जनित व अन्य रोग लग जाएं तो ये गेहूं को बर्बाद भी कर सकते हैं। ऐसे में आपके मुनाफे में कमी तो होती ही है साथ ही आपको परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। किसानों को इन सभी तरह के रोगों से सावधान रहने की जरूरत है। देश के ज्यादातर हिस्सों में गेहूं की बुवाई पूरी हो चुकी है और कुछ हिस्सों में इसकी बुवाई होना बाकी भी है। एक्सपर्ट की माने तो ये पाला आलू, सरसों समेत अन्य रबी फसलों के लिए नुकसान पहुंचाता है। वहीं अधिक सर्दी पड़ना गेंहूँ की सेहत के लिए बेहद लाभकारी है। आलू कम सिंचाई वाली फसल है। इसलिए फसल में अधिक पानी होना इसे कई बार नुकसान पहुंचाता है। आइए आज हम जानते हैं, कि और कौन-कौन से रोग गेहूं को नुकसान पहुंचाते हैं।

करनाल बंट रोग

यह गेहूं में होने वाला काफी प्रमुख रोग है। इस रोग की उपज मानी जाए तो यह रोग मृदा, बीज एवं वायु जनित रोग है। गेंहूँ में होने वाला करनाल बंट टिलेटिया इंडिका नामक कवक से पैदा होता है। इसे आंशिक बंट कहा जाता है। इस रोग के होने पर फसल पर लगने वाली बाली के अंदर काला बुरादा भर जाता है। ऐसा होने से पूरी फसल एकदम खराब हो जाती है और उससे सड़ी हुई मछली जैसी बदबू आती है। यह रोग ट्राईमिथाइल एमीन के कारण होता है। यह गेहूं के बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसलिए इस रोग को गेहूं का कैंसर भी कहा जाता है।

अनावृत कंड रोग

यह रोग भी काफी मात्रा में इस फसल को प्रभावित करता है। गेहूं में होने वाला प्रमुख रोग अनावृत कंड लूज स्मट के नाम से भी जाना जाता है। यह बीज जनित रोग है। इसका सबसे बड़ा कारण अस्टीलेगो न्यूडा ट्रिटिसाई नामक कवक है। इस रोग में गेहूं के पौधों की सारी बालियां काली होने लगती है। एक बार बालियां काली हो जाने के बाद में पौधा सूख जाता है। यह बड़े फसली क्षेत्र को प्रभावित करता है, इसके होने पर गेहूं की उत्पादकता तेेजी से घटती है।
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चूर्णिल आसिता रोग

चूर्णिल आसिता मृदा एवं हवा से होने वाला रोग है। इसका प्रमुख कारण ब्लूमेरिया ट्रिटिसाई नामक कवक है। इस रोग के होने पर पौधों की पत्ती, पर्णव्रतों और बालियों पर सफेद चूर्ण जम जाता है। बाद में यह पूरे पौधे पर फैल जाता है। प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बंद होने के कारण पौधे की मौत हो जाती है।

लीफ ब्लाइट रोग

यह रोग मुख्यत: बाईपोलेरिस सोरोकिनियाना नामक कवक से पैदा होता है। यह रोग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। लेकिन इस रोग का प्रकोप नम तथा गर्म जलवायु वाले उत्तर पूर्वी क्षेत्र में अधिक होता है। इस रोग में फसल की पत्तियों पर भूरे रन के धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं। जो फसल के उत्पादन को प्रभावित करते हैं।
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फुट रांट रोग

यह रोग ज्यादा तापमान वाले हिस्से जैसे मध्य प्रदेश, गुजरात तथा कर्नाटक में ज्यादा फसलों को प्रभावित करता है और सोयाबीन-गेहूं फसल चक्र में अधिक होता है। यह रोग स्क्लरोसियम रोलफसाई नामक कवक से होता है, जो कि संक्रमित भूमि में पाया जाता है। इसमें पौधों की जड़ के ऊपर काले और सफ़ेद फफूंद लगने लगते हैं। जो पौधे की जड़ को ही सड़ा देता है और रोगी पौधा मर जाता है।
जनवरी के महीने में कुछ सावधानी बरतते हुए किसान अपने गेहूं का उत्पादन कर सकते हैं डबल

जनवरी के महीने में कुछ सावधानी बरतते हुए किसान अपने गेहूं का उत्पादन कर सकते हैं डबल

देशभर में कड़ाके की ठंड पड़ रही है और यह सभी के लिए इस समस्या का कारण बनी हुई है। उत्तर भारत में ठंड के हालात बहुत बुरे हैं और बहुत सी जगह तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे पहुंच गया है। ऐसे में किसानों ने जो रबी की फसल उगाई थी उसका उत्पादन चरम सीमा पर है। गेहूं का उत्पादन अक्टूबर के महीने में किया जाता है और मार्च और अप्रैल के बीच की कटाई शुरु कर दी जाती है। ऐसे में जनवरी का महीना इस फसल के लिए बहुत ज्यादा अहम माना गया है। अगर जनवरी के महीने में स्पेशल पर ध्यान ना दिया जाए तो पूरी की पूरी फसल बर्बाद भी हो सकती है। साथ ही, अगर किसान थोड़ा सा ध्यान देते हुए इस महीने में फसल की देखभाल करें तो अपने उत्पादन को काफी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। गेहूं की फसल की अच्छी उपज के लिए साफ सफाई बहुत जरूरी है। विशेषज्ञों का कहना है, कि गेहूं के साथ पैदा हुई खरपतवार फसल को नुकसान पहुंचाती है। इससे बचाव जरूरी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अब बिहार के विशेषज्ञों ने सलाह दी है, कि जरा सी सूझबूझ से जनवरी को खेती के लिहाज से कमाई का महीना बनाया जा सकता है। किसान जनवरी के महीने में अपनी फसल को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखते हुए सही रख सकते हैं।
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  • कृषि विभाग के एक्सपर्ट का कहना है, कि गेहूं की बुवाई पूरी हो चुकी है। तो ऐसे में इस महीने में फसल को खरपतवार से बहुत ज्यादा नुकसान होने का खतरा रहता है। गेहूं की फसल में पहली सिंचाई के बाद चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार पैदा हो जाते हैं। जो फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इससे बचाव के लिए 2.4-डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत का 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर देना चाहिए। छिड़काव 25-30 दिनों में कर देना चाहिए.
  • अगर आपको खेत में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नहीं दिख रहे हैं। आप के खेत में सक्रिय पत्ती वाले खरपतवार हैं, तो आप आइसोप्रोट्युरॉन 50 प्रतिशत का 2 किलोग्राम या 75 प्रतिशत का, 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब छिड़काव करें। यह छिड़काव फ्लैट फैन नोजलवारी स्पे मशीन से करें तो बेहतर रिजल्ट देखने को मिल सकते हैं।
  • छेद में तना करने वाले कीट भी गेहूं की फसल को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अगर समय रहते इस कीट का इलाज न किया जाए तो यह पूरी की पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है। इस तना छेदक कीट से छुटकारा पाने के लिए 10 फेरोमीन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाना चाहिए। यदि अधिक जरूरत है, तो डायमेथोएट 30 प्रतिशत ई.सी 750 का पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।

देश के कुछ राज्यों में बढ़ गई है गेहूं की बुवाई

कृषि मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों की बात की जाए तो पूरे भारतवर्ष में राजस्थान राज्य में गेहूं की बुवाई सबसे ज्यादा की गई है। अगर जगह के हिसाब से बात की जाए तो लगभग ढाई लाख हेक्टेयर भूमि पर गेहूं की बुवाई की गई है। राजस्थान के बाद दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का आता है और यहां पर लगभग दो लाख हेक्टेयर जमीन पर गेहूं की फसल बोई जा चुकी है। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर और असम में अधिक गेहूं की बुवाई की गई है। इस बार के गेहूं बुवाई के आंकड़े देखकर केंद्र सरकार खुश है। इस साल गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना जताई जा रही है। किसान अगर इस महीने में जरा सा ध्यान देते हैं, तो अपना उत्पादन और आमदनी दोनों ही पिछले साल के मुकाबले बढ़ाई जा सकती है।
पहले सब्जी, मसाले और अब गेंहू की कीमतों में आए उछाल से सरकार की बढ़ी चिंता

पहले सब्जी, मसाले और अब गेंहू की कीमतों में आए उछाल से सरकार की बढ़ी चिंता

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि सब्जी, मसाले और चावल के साथ-साथ अब मध्य प्रदेश के इंदौर में गेहूं की कीमतें मंगलवार को 1.5 फीसदी बढ़कर 25,446 रुपये (307.33 डॉलर) प्रति मीट्रिक टन हो गईं, जो 10 फरवरी के बाद सबसे अधिक है। विगत चार महीनों में कीमतें तकरीबन 18 प्रतिशत बढ़ी हैं। चावल की कीमतें देश में सातवें आसमान पर हैं। कीमतों को कंट्रोल करने के लिए सरकार ने चावल की कुछ किस्मों के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब महंगाई की मार गेहूं पर भी पड़ती नजर आ रही है। भारत में गेहूं के भाव 6 महीने के हाई पर पहुंच गए हैं। डीलर्स के मुताबिक, सीमित सप्लाई और त्योहारी सीजन से पहले ज्यादा मांग की वजह से मंगलवार को भारतीय गेहूं की कीमतें छह महीने के हाई पर पहुंच गईं हैं। बढ़ती कीमतों को देखते हुए सरकार आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों को नियंत्रित करने के लिए अनाज पर इंपोर्ट ड्यूटी को समाप्त करने जैसा निर्णय शीघ्र ले सकती है।

गेंहू की बढ़ती कीमतों से चिंतित सरकार

गेहूं की बढ़ती कीमतें फूड इंफ्लेशन को बढ़ा सकती है। साथ ही महंगाई को काबू करने के लिए सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों के प्रयासों पर पानी फेर सकती है। रॉयटर्स की रिपोर्ट में नई दिल्ली के कारोबारी ने कहा कि सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में किसानों की तरफ से सप्लाई तकरीबन रुक गई है। आटा मिलें बाजार में सप्लाई की प्रतीक्षा कर रही हैं।

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जानें 4 महीने में कितने फीसद बढ़े भाव

मध्य प्रदेश के इंदौर में गेहूं की कीमतें मंगलवार को 1.5 फीसदी बढ़कर 25,446 रुपये (307.33 डॉलर) प्रति मीट्रिक टन हो गईं, जो 10 फरवरी के बाद सबसे अधिक है। बीते चार महीनों के अंदर कीमतें तकरीबन 18 फीसदी बढ़ी हैं। मुंबई बेस्ड डीलर ने कहा कि त्योहारी सीजन के चलते संभावित कमी से बचने के लिए सरकार को अपने गोदामों से भंडारण को ओपन मार्केट के लिए जारी करना चाहिए। 1 अगस्त तक, सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 28.3 मिलियन मीट्रिक टन था, जो एक साल पहले 26.6 मिलियन मीट्रिक टन से अधिक है।

आयात शुल्क समाप्त करने की संभावना

डीलर के मुताबिक कीमतें कम करने के लिए इंपोर्ट काफी आवश्यक हो गया है। सरकार इंपोर्ट के बिना सप्लाई बढ़ा ही नहीं सकती। फूड मिनिस्ट्री के सबसे सीनियर सिविल सर्वेंट संजीव चोपड़ा ने विगत सप्ताह कहा था कि भारत गेहूं पर 40 फीसदी इंपोर्ट टैक्स में कटौती करने अथवा इसे खत्म करने और मिल मालिकों और व्यापारियों द्वारा रखे जाने वाले गेहूं के स्टॉक की मात्रा की हद कम करने पर विचार-विमर्श कर रहा है।

भारत में गेहूं की वार्षिक खपत

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के मुताबिक, 2023 में गेहूं का उत्पादन बढ़कर रिकॉर्ड 112.74 मिलियन मीट्रिक टन हो गया, जो एक साल पहले 107.7 मिलियन मीट्रिक टन था। भारत में वार्षिक लगभग 108 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं की खपत की जाती है। परंतु, एक प्रमुख व्यापारिक संस्था ने जून में रॉयटर्स को बताया कि 2023 में भारत की गेहूं की फसल कृषि मंत्रालय के अनुमान से कम से कम 10 प्रतिशत कम देखने को मिली थी।
यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

यह राज्य कर रहा है मिलेट्स के क्षेत्रफल में दोगुनी बढ़ोत्तरी

साल 2023 में उत्तर प्रदेश सरकार मिलेट्स के क्षेत्रफल को बढ़ाएगी। प्रदेश सरकार इस रकबे को 11 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 25 लाख तक करेगी। राज्य सरकार ने अपने स्तर से तैयारियों का शुभारंभ क्र दिया है। आने वाले साल 2023 को दुनिया मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाएगी। मिलेट्स वर्ष मनाए जाने की पहल एवं इसकी शुरुआत में भारत सरकार की अहम भूमिका रही है। भारत में मिलेट्स का उत्पादन अन्य सभी देशों से अधिक होता है। देश का मोटा अनाज पूरी दुनिया में अपना एक विशेष स्थान रखता है। इसी वजह से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी मोटे अनाज को उत्सव के तौर पर मनाकर देश की प्रसिद्ध को दुनियाभर में फैलाना चाहते हैं। कुछ ही दिन पहले मोदी जी ने दिल्ली में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में मोटे अनाज का बना हुआ खाना खाया था। भारत के विभिन्न राज्यों में मोटा अनाज का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है। मिलेट्स इयर आने की वजह से उत्तर प्रदेश राज्य में मोटे अनाज के उत्पादन का क्षेत्रफल बाद गया है।

उत्तर प्रदेश राज्य कितने हैक्टेयर में करेगा मोटे अनाज का उत्पादन

खबरों के मुताबिक, प्रदेश के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने मिलेट्स इयर के संबंध में राज्य के कृषि विभाग के अधिकारीयों को बुलाकर इस विषय पर बैठक की है। इस बैठक में जिस मुख्य विषय पर चर्चा की गयी वह यह था, कि वर्तमान में 11 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाज का उत्पादन हो रहा है। इसको साल 2023 में 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाए। हालाँकि लक्ष्य थोड़ा ज्यादा बड़ा है, विभाग के अधिकारी पहले से ही इस बात के लिए तैयारी में जुट जाएँ।


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उत्तर प्रदेश सरकार ने कितना लक्ष्य तय किया है

राज्य सरकार द्वारा अधीनस्थों को आगामी वर्ष में मोटे अनाज का क्षेत्रफल दोगुने से ज्यादा वृद्धि का आदेश दिया है। बतादें, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाज से संबंधित पहल को बेहद ही गहनता पूर्वक लिया गया है। साथ ही, इस विषय के लिए उत्तर प्रदेश सरकार भी काफी गंभीरता दिखा रही है। उत्तर प्रदेश में सिंचित क्षेत्रफल का इलाका 86 फीसद हैं। बतादें, कि इस रकबे में दलहन, तिलहन, धान, गेहूं का उत्पादन किया जाता जाती है।

कहाँ से खरीदेगी सरकार बीज

कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देेश दिया गया है, कि कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश आदि राज्यों के अधिकारियों से संपर्क साधें। राज्य में बुआई हेतु मोटे अनाज के बीज की बेहतरीन व्यवस्था की जाए। सबसे पहली बार 18 जनपदों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बाजरा खरीदा जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में कितना किया जायेगा अनाज का उत्पादन

उत्तर प्रदेश के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, देश में मोटे अनाज की मुख्य फसलें जिनका अच्छा उत्पादन भी होता है, वह ज्वार एवं बाजरा हैं। महाराष्ट्र राजस्थान, उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बाजरा का उत्पादन किया जाता है। क्षेत्रफलानुसार बात की जाए तो उत्तर प्रदेश 9 .04 लाख हेक्टेयर, महाराष्ट्र में 6.88, राजस्थान में 43.48 लाख हेक्टेयर में बाजरे का उत्पादन किया जाता है। वहीं, उत्तर प्रदेश राज्य की पैदावार प्रति हेक्टेयर 2156 किलो ग्राम है। राजस्थान का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 1049 किलोग्राम एवं महाराष्ट्र की पैदावार की बात करें तो 955 किलो ग्राम है।

ज्वार के उत्पादन का क्षेत्रफल कितना बढ़ा है

राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक में ज्वार का अच्छा खासा उत्पादन होता है। क्षेत्रफल के तौर पर कर्नाटक प्रति हेक्टेयर प्रति क्विंटल पैदावार के मामले में अव्वल स्थान है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा ज्वार की पैदावार बढ़ाने के लिए काफी जोर दे रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022 में 1.71 लाख हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। लेकिन वर्ष 2023 में इसको 1.71 लाख हैक्टेयर से बढ़ाकर 2.24 लाख हेक्टेयर तक पहुँचा दिया है। इसी प्रकार सावां व कोदो का रकबा भी पहले से दोगुना कर दिया गया है।
आजकल पड़ रही ठंड की वजह से गेंहू किसानों को अच्छा उत्पादन मिलने की संभावना

आजकल पड़ रही ठंड की वजह से गेंहू किसानों को अच्छा उत्पादन मिलने की संभावना

बागवानी फसलों हेतु ज्यादा ठंड उचित नहीं होती है। परंतु, कुछ नकदी फसलों की पैदावार को बढ़ाने के पीछे ठंड की अहम भूमिका रहती है। जिन नकदी फसलों में ठंड अच्छी साबित होती है वह हैं गेहूं एवं अगेती सरसों की फसल। आजकल सर्दियां सातवें आसमान पर हैं। वहीं कुछ फसलें जैसे आलू एवं सब्जियों का उत्पादन करने वाले कृषकों की चिंता से धड़कन तेज होती जा रही है। फसलों को पाले से हानि होने की संभावनाएं उत्पन्न होती जा रही हैं। साथ ही, कृषि विशेषज्ञों के माध्यम से निरंतर किसानों को सावधानी बरतने की राय दी जाती है। हालाँकि, ठंड के मौसम में गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि निरंतर गिरता तापमान गेहूं की फसल हेतु लाभदायक साबित होता है। इसकी वजह से किसानों को भी फसल की बेहतरीन पैदावार मिलने की संभावना लग रही है। हालांकि, सरसों की फसल की बुवाई में विलंब करने वाले किसानों के लिए भी यह समय थोड़ी-बहुत दिक्कतें खड़ी कर सकता है।

गेहूं के किसानों को अच्छा खासा उत्पादन मिलने की आशा है

द ट्रिब्यून (The Tribune) की एक रिपोर्ट के जरिए गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान राजीव शर्मा ने बताया है, कि वर्तमान परिस्थितियां गेहूं की फसल हेतु बेहद फायदेमंद हैं। अगर आगामी हफ्तों में भी यथास्थिति बनी रहती है, तो यह इस वर्ष के बेहतरीन उत्पादन का कारण अवश्य रहेगी। सरसों की फसल हेतु भी हालात काफी अनुकूल हैं। परंतु, यदि तापमान इससे भी ज्यादा कम होता है। तब फसल प्रभावित होने की भी संभावना हो सकती है। साथ ही, एक और किसान मलकीत सिंह का कहना है, कि 'मैंने आठ एकड़ में गेहूं और 3 एकड़ में सरसों की बुआई की है। विगत वर्ष दोनों फसलों के उत्पादन में हानि देखने को मिली थी। आपको बतादें, कि सरसों की फसल एक संवेदनशील फसल मानी जाती है। इसमें यदि तापमान अधिक गिरता है, तो इस पर हानिकारक प्रभाव भी पड़ सकता है। हालाँकि, वर्तमान स्थिति में मौसम फसल के अनुकूल ही रहा है। इसलिए हमको इस वर्ष अच्छा उत्पादन मिलने की आशा है।
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विशेषज्ञों ने क्या कहा है

अंबाला जनपद के उप निदेशक (कृषि) डॉ. गिरीश नागपाल ने द ट्रिब्यून (The Tribune) की रिपोर्ट के माध्यम से कहा है, कि 'गेहूं की फसल हेतु मौसम फायदेमंद और अनुकूल है। साथ ही, यह मौसम वानस्पतिक वृद्धि में भी काफी सहायक साबित होगा। उन्होंने किसानों को सलाह के तौर पर यह भी कहा है, कि फसल में पानी एक तय समयावधि पर देना चाहिए, परंतु जिन किसानों ने सरसों की फसल की बुवाई विलंब से करी है। उनको जरा सा सावधान रहने की आवश्यकता है, क्योंकि सरसों की फसल एक संवेदनशील फसल के रूप में जानी जाती है। सरसों का उत्पादन करने वाले कृषकों को नियमित रूप से समय समय पर अपने खेतों पर जाकर फसल की स्थिति को देखना चाहिए। साथ ही, किसान अपनी फसल को पाले के प्रभाव से बचाने हेतु धुएं का प्रयोग करने के अतिरिक्त हल्की सी सिंचाई भी करें। यदि किसान ऐसा करेंगे तो उनकी फसल पाले के प्रकोप से बच सकती है।

सरकार लो टनल में सब्जियों की खेती करने पर देगी अनुदान

कृषि वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों द्वारा निरंतर पाले से सब्जी फसलों के संरक्षण की सलाह दी जाती रही है। इस संदर्भ में अंबाला के जिला उद्यान अधिकारी वीरेंद्र पूनिया का कहना है, कि 'किसानों को अपनी सब्जी की फसल का पाले से संरक्षण हेतु लो टनल का उपयोग करना चाहिए। इसकी वजह यह है, कि अत्यधिक सर्दियाँ भी सब्जी की फसलों हेतु अच्छी साबित नहीं होती है। सरकार द्वारा भी लो टनल में खेती करने हेतु किसानों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है। इस संरक्षित ढांचे में सब्जियों की फसल मौसमिक प्रकोपों की मार के साथ-साथ कीटों के संक्रमण से भी बचाती है।
जानें सर्वाधिक धान उत्पादक राज्य कौन-सा है और धान का कटोरा किस राज्य को कहा जाता है

जानें सर्वाधिक धान उत्पादक राज्य कौन-सा है और धान का कटोरा किस राज्य को कहा जाता है

भारत में उत्पादित किए जाने वाले बासमती चावल की विश्वभर में मांग है। भारत सरकार द्वारा चावल की विभिन्न किस्मों को जीआई टैग प्रदान किया जा चुका है। 

देश में पश्चिम बंगाल धान उत्पादन के मामले में अपनी अलग पहचान रखता है। पश्चिम बंगाल में सर्वाधिक धान का उत्पादन किया जाता है। भारत की अधिकाँश जनसँख्या कृषि पर निर्भर रहती है। 

इसलिए भारत को कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है। यदि हम प्रतिशत के आंकड़ों के अनुसार देखें तो देश की लगभग 60 प्रतिशत जनसँख्या अपने जीवन यापन के लिए प्रत्यक्ष रूप से खेती-किसानी से संबंधित है।

धान का कटोरा

भारत में विभिन्न तरह की फसलों का उत्पादन किया जाता है। जो देश के साथ-साथ विश्वभर की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में अपना अहम योगदान दे रही हैं। भारत में गेहूं एवं चावल का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। 

वर्तमान, सीजन रबी फसलों का है, जिसके अंतर्गत गेहूं का उत्पादन किया जाता है। इसके उपरांत खरीफ सीजन की प्रमुख खाद्य फसल धान का उत्पादन किया जाएगा। किसान भाई जिसकी बुवाई मई-जून माह के मध्य में करेंगे। 

अगर हम वैश्विक धान उत्पादन की बात करें तो चीन के उपरांत दूसरा स्थान भारत का ही होता है। देश में उत्पादित किए जाने वाले बासमती चावल की विश्वभर में मांग है। 

विशेष रूप से अमेरिका यूनाइटेड किंगडम एवं हाल ही में खाड़ी देशों के अंदर बासमती धान की की बेहद मांग देखने को मिल रही है। आपको बतादें, कि भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक चावल का उत्पादन किया जाती है। 

केवल भारत के अंदर ही धान की विभिन्न किस्मों का उत्पादन किया जाता है। भारत में पश्चिम बंगाल को सर्वाधिक धान उत्पादक का स्थान प्राप्त हुआ है। परंतु, आश्चर्य की बात यह है, कि आज भी छत्तीसगढ़ राज्य ने 'धान का कटोरा' नाम से विश्वभर में अपनी अलग पहचान स्थापित है। 

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इसमें कोई मिथक वाली बात नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह है। हालाँकि, छत्तीसगढ़ चावल का सर्वाधिक उत्पादक राज्य नहीं है। 

परंतु, इस प्रदेश की एक बेहद खासियत यह भी है, कि जिसके चलते धान पैदावार के मामले में पश्चिम बंगाल से अधिक नाम छत्तीसगढ़ का हुआ है।

धान के सर्वश्रेष्ठ 10 उत्पादक राज्यों के बारे में जानें

दरअसल, भारत में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के प्रत्येक कोने में धान का उत्पादन किया जाता है। यह फसल उन स्थानों के लिए बेहद अनुकूल है जहां इस फसल हेतु पर्याप्त जल उपलब्ध हो। क्योंकि चावल के उत्पादन में जल की अत्यधिक आवश्यकता पड़ती है। 

अब हम आपको बताने जा रहे हैं, इसके प्रमुख उत्पादक राज्यों के विषय में जिसके अंतर्गत प्रथम स्थान पर पश्चिम बंगाल है। दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश है, यहां बड़े स्तर पर धान का उत्पादन किया जाता है। 

तीसरे स्थान पंजाब राज्य का है, जहां के किसान रबी सीजन में अधिकाँश धान का उत्पादन किया करते हैं। चौथे स्थान पर आंध्र प्रदेश, पांचवे पर उड़ीसा, छठे स्थान पर तेलंगाना, सातवें स्थान पर तमिलनाडु, आठवें स्थान पर छत्तीसगढ़, नौंवे स्थान पर बिहार एवं दसवें स्थान पर असम है। 

उपरोक्त समस्त राज्यों की मृदा एवं जलवायु धान के उत्पादन हेतु सबसे ज्यादा अनुकूल है। यही वजह है, कि इन राज्यों के किसान न्यूनतम एक सीजन में तो धान की फसल का उत्पादन तो करते ही हैं।

गोबर के जरिए छत्तीसगढ़ ने स्थापित की अपनी अलग पहचान

विगत बहुत सदियों से छत्तीसगढ़ राज्य मात्र धान का कटोरा नाम से ही प्रसिद्ध था। यहां धान की जैविक किस्मों से उत्पादन का काफी प्रचलन है। 

हालाँकि, वर्तमान में जलवायु बदलाव के दुष्परिणामों के मध्य आहिस्ते-आहिस्ते प्रदेश में धान के उत्पादन के तुलनात्मक वैकल्पिक फसलों की कृषि को प्रोत्साहन दिया जाता है। 

अगर हम कृषि से अलग बात करें तो आजकल छत्तीसगढ़ राज्य की गौशालाएं (गौठान) भी ग्रामीण रोजगार केंद्र के रूप में प्रदर्शित हो रहे हैं। इन गौठान मतलब गौशालाओं में गोबर से निर्मित कीटनाशक, ऑर्गेनिक पेंट, खाद, उर्वरक सहित कई सारे उत्पाद निर्मित किए जा रहे हैं। 

जिसके लिए सरकार द्वारा प्रोत्साहन धनराशि भी उपलब्ध कराई जाती है। आजकल छत्तीसगढ़ राज्य के कृषक भाइयों को मोटे अनाज का उत्पादन करने हेतु बढ़ावा दिया जा रहा है।