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चीन वो देश है जहां चावल की सालाना खपत 16 करोड़ टन है, लेकिन चीन मे कुल चावल का उत्पादन करीब 14 करोड़ टन होता है। मांग और उत्पादन के बीच के इस गैप को भरने के लिए चीन बाकी का चावल विदेशों से आयात करता है। अब इस बार खरीफ की फसल पर मौसम का विपरीत प्रभाव पड़ने के कारण इसका उत्पादन कम हो पाया है।
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साथ ही साथ चीन में चावलों का अधिक मात्रा में उपयोग वाइन और नूडल्स बनाने मे होता है। इसके साथ ही चीन मे टूटे चावल खाने का ट्रेंड भी है, जिस वजह से वहां चावल की खपत ज्यादा होती है। यही कारण है कि इस बार चीन, भारत से चावल आयात करने वाले देशों के बीच मे एक प्रमुख खरीदार के रूप मे उभर कर सामने आया है। वैसे चीन भारत से हर साल चावल नहीं खरीदता, लेकिन ग्लोबल मार्केट में चावल की उपलब्धता कम होने की वजह से मजबूरी में चीन को भारत से चावल खरीदने पड़ रहे हैं। अक्सर ग्लोबल मार्केट में टूटे चावल की बिक्री कम होती है, लेकिन जब खाने की कमी हो तो टूटे चावल भी बिक जाते हैं। ऐसा ही कुछ इस बार हुआ है और चीन ने भारी मात्रा में भारत से टूटे चावल खरीदे हैं। अब चूंकि खाद्य सामग्री की कमी वैश्विक स्तर पर आई हुई है। इसलिए इस बात को ध्यान मे रखते हुए और हाल के दिनों में घरेलू सप्लाई मे आई कुछ कमी को देखते हुए भारत सरकार चावल एक्सपोर्ट पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। गौर करने वाली बात है कि भारत दुनिया का 40 फीसदी चावल का एक्सपोर्ट करता है। ऐसे में अगर चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लग गया तो दुनिया में हड़कंप मच सकता है।
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भारत में खाद्य चीजों की कमी होने का ख़तरा मंडरा रहा है, इसलिए सरकार ने पहले ही गेहूं और टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब केंद्र सरकार एक और कमोडिटी पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है, वो है चीनी।
सरकार चीनी के निर्यात (cheeni ke niryat, sugar export) पर जल्द ही फैसला ले सकती है क्योंकि इस साल खराब मौसम और कम बरसात की वजह से प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ने का उत्पादन कम हुआ है,
साथ ही कवक रोग के कारण गन्ने की बहुत सारी फसल खराब हो गई है। उत्तर प्रदेश में इस साल सामान्य से 43 फीसदी कम बरसात हुई है।
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इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल सरकार चीनी मिलों को 50 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति ही प्रदान करेगी, इसके बाद देश में होने वाले उत्पादन और खपत का आंकलन करने के बाद आगे की समीक्षा की जाएगी।
इसके पहले केंद्र सरकार 24 मई को ही चीनी निर्यात को प्रतिबन्धी श्रेणी में स्थानान्तरित कर चुकी है। सरकार इस साल चीनी उत्पादन को लेकर बेहद चिंतित है।
सरकार के अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति और मांग में किस प्रकार से सामंजस्य बैठाया जाए। फिलहाल कुछ राज्यों में इस साल अच्छी बरसात हुई है।
इन प्रदेशों में गन्ने की खेती के लिए पानी की उपलब्धता लगातार बनी हुई है, जिससे महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के गन्ने के उत्पादन में वृद्धि हुई है, इससे अन्य राज्यों में कम उत्पादन की भरपाई होने की संभावना बनी हुई है।
साल 2021-22 में चीनी का उत्पादन 360 लाख टन के रिकॉर्ड को छू चुका है, साथ ही इस दौरान चीनी का निर्यात 112 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर रहा।
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सूत्र बताते हैं कि चीनी के उत्पादन के मामलों में सरकार जल्द ही निर्णय ले सकती है, जल्द ही सरकार 50 लाख टन की प्रारंभिक मात्रा की अनुमति दे सकती है।
भारतीय चीनी मिलें जल्द से जल्द चीनी का निर्यात करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के मूड में हैं, क्योंकि अभी इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा नहीं है।
चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक देश ब्राज़ील अप्रैल से लेकर नवम्बर तक इंटरनेशनल मार्केट में चीनी सप्प्लाई करता है। जिससे इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की उपलब्धता ज्यादा हो जाती है और चीनी का वो भाव नहीं मिलता जिस भाव का मिलें अपेक्षा करती हैं।
इसके साथ ही इस मौसम में चीनी मिलें निर्यात करने के लिए इसलिए इच्छुक हैं क्योंकि इस सीजन में चीनी की कीमत ज्यादा मिलती है। इस समय इंटरनेशनल मार्केट में चीनी की वर्तमान बोली लगभग 538 डॉलर प्रति टन लगाई जा रही है।
यह सौदा चीनी को घरेलू बाजार में बेचने से ज्यादा लाभ देने वाला है क्योंकि चीनी को घरेलू बाजार में बेचने पर मिल मालिकों को 35,500 रुपये प्रति टन की ही कीमत मिल पाती है।
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जबकि महाराष्ट्र में यह कीमत घटकर 34000 रूपये प्रति टन तक आ जाती है, जिसमें मिल मालिकों को उतना फायदा नहीं हो पाता जितना कि इंटरनेशनल मार्केट में निर्यात करने से होता है।
इसलिए मिल मालिक ज्यादा से ज्यादा चीनी का भारत से निर्यात करना चाहते हैं। लेकिन सरकार घरेलू जरूरतों को देखते हुए जल्द ही इस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का फैसला ले सकती है।
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पूरी दुनिया में भारत चीनी का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। आमतौर पर देखा जाता है कि यदि भारत में चीनी की पैदावार कम होती है, तो इसका प्रभाव दुनिया पर भी पड़ता दिखता है। अमेरिका के चीनी बाजार मेें इस बार इस बैन का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है।
भारत विभिन्न खाद्य पदार्थों को निर्यात कर विभिन्न देशों का भरण-पोषण करने की भूमिका निभा रहे हैं। साथ ही, चावल, गेहूं, दाल सहित बहुत सारे खाद्य उत्पादों की आपूर्ति भारत से विदेशों में की जाती है।
आटे की भाव अधीक महंगा होते देख गेहूं निर्यात प्रतिबंधित किया गया था। वहीं, बहुत सारे देशों में गेहूं की समस्या सामने देखने को मिली थी।
भारत द्वारा चीनी निर्यात पर भी प्रतिबंधित कर रखा है। इसका प्रभाव भी अब देखने को मिल रहा है। वैश्विक महाशक्ति के रूप में माने जाने वाले देश में भी भारत की वजह से चीनी महंगी हो चुकी है।
न्यूयार्क में चीनी 6 वर्ष के रिकॉर्ड स्तर पर महंगी हो चुकी है। चीनी के बढ़ते भावों से स्थानीय लोगों का भी काफी बजट डगमगा चुका है। ध्यान देने योग्य बात यह है, कि चीनी पर महंगाई का प्रभाव केवल न्यूयार्क ही नहीं बाकी देशों में भी देखने को मिल रहा है।
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इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की तरफ से भी इसको लेकर बयान जारी किया गया है। इस्मा ने भी चीनी पैदावार में गिरावट होने की बात कही है।
भारत में चीनी उत्पादन 299.6 लाख टन दर्ज किया गया है। वहीं, विपणन वर्ष 2021-22 की प्रथम छमाही में भारत में 309.9 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
हालाँकि, इस बार पैदावार में गिरावट होने की आशंका व्यक्त की जा रही है। भारत घरेलू खपत को लेकर काफी सजग दिखाई दे रही है।