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डेयरी फार्म

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

फिलहाल गर्मी के दिन शुरू हो गए हैं। आम जनता के साथ-साथ पशुओं को भी गर्मी प्रभावित करेगी। ऐसे में मवेशियों को भूख कम और प्यास ज्यादा लगती है। पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में न्यूनतम तीन बार जल पिलाएं। 

जिससे कि उनके शरीर को गर्म तापमान को सहन करने में सहायता प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त लू से संरक्षण हेतु पशुओं के जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिला देना चाहिए। 

भारत के विभिन्न राज्यों में गर्मी परवान चढ़ रही है। इसमें महाराष्ट्र राज्य सहित बहुत से प्रदेशों में तापमान 40 डिग्री पर है। साथ ही, गर्म हवाओं की हालत देखने को मिल रही है। साथ ही, उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में तापमान 35 डिग्री तक हो गया है। 

इस मध्य मवेशियों को गर्म हवा लगने की आशंका रहती है। लू लगने की वजह से आम तौर पर पशुओं की त्वचा में सिकुड़न और उनकी दूध देने की क्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। 

हालात यहां तक हो जाते हैं, कि इसके चलते पशुओं की मृत्यु तक हो जाने की बात सामने आती है। ऐसी भयावय स्थिति से पशुओं का संरक्षण करने के लिए उनकी बेहतर देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।

पशुओं को पानी पिलाते रहें

गर्मी के दिनों में मवेशियों को न्यूनतम 3 बार जल पिलाना काफी आवश्यक होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि जल पिलाने से पशुओं के तापमान को एक पर्याप्त संतुलन में रखने में सहायता प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त मवेशियों को जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिलाकर पिलाने से गर्म हवा लगने की आशंका काफी कम रहती है। 

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यदि आपके पशुओं को अधिक बुखार है और उनकी जीभ तक बाहर निकली दिख रही है। साथ ही, उनको सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनके मुंह के समीप झाग निकलते दिखाई पड़ रहे हैं तब ऐसी हालत में पशु की शक्ति कम हो जाती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे हालात में अस्वस्थ पशुओं को सरसों का तेल पिलाना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। सरसों के तेल में वसा की प्रचूर मात्रा पायी जाती है। जिसकी वजह से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। विशेषज्ञों के अनुरूप गाय और भैंस के पैदा हुए बच्चों को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है।

पशुओं को सरसों का तेल कितनी मात्रा में पिलाया जाना चाहिए

सीतापुर जनपद के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह के अनुरूप, गर्मी एवं लू से पशुओं का संरक्षण करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसी हालत में सरसों के तेल का सेवन कराना बेहद लाभकारी होता है। 

ऊर्जा मिलने से पशु तात्कालिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि, सरसों का तेल पशुओं को प्रतिदिन देना लाभकारी नहीं माना जाता है। 

डॉ आनंद सिंह के अनुसार, पशुओं को सरसों का तेल तभी पिलायें, जब वह बीमार हों अथवा ऊर्जा स्तर निम्न हो। इसके अतिरिक्त पशुओं को एक बार में 100 -200 ML से अधिक तेल नहीं पिलाना चाहिए। 

हालांकि, अगर आपकी भैंस या गायों के पेट में गैस बन गई है, तो उस परिस्थिति में आप अवश्य उन्हें 400 से 500 ML सरसों का तेल पिला सकते हैं। 

साथ ही, पशुओं के रहने का स्थान ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर प्रदूषित हवा नहीं पहुँचती हो। पशुओं के निवास स्थान पर हवा के आवागमन के लिए रोशनदान अथवा खुला स्थान होना काफी जरुरी है।

पशुओं की खुराक पर जोर दें

गर्मी के मौसम में लू के चलते पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। उनको इस बीच प्रचूर मात्रा में हरा एवं पौष्टिक चारा देना अत्यंत आवश्यक होता है। 

हरा चारा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। हरे चारे में 70-90 फीसद तक जल की मात्रा होती है। यह समयानुसार जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इससे पशुओं की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

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बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात में बकरियों का विशेष रूप से ख्याल रखना पड़ता है। इस मौसम में उनको बीमार होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि आप बारिश के दिनों में कैसे अपनी बकरी की देखभाल करें। गांव में गाय-भैंस की भांति बकरी पालने का भी चलन आम है। आज के वक्त में बहुत सारे लोग बकरी पालन से प्रति वर्ष मोटी आमदनी करने में सफल हैं। हालांकि, बरसात के दौरान बकरियों को बहुत सारे गंभीर रोग पकड़ने का खतरा रहता है। इस वजह से इस मौसम में पशुपालकों द्वारा उनका विशेष ख्याल रखा जाता है। आज हम आपको यह बताएंगे कि बरसात में बकरियों की देखभाल किस तरह की जा सकती है। 

बकरियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें

पशुपालन विभाग द्वारा जारी सुझावों के मुताबिक, बरसात में बकरियों को जल से भरे गड्ढों अथवा खोदे हुए इलाकों से दूर रखें ताकि वे फंस न जाएं। बारिश से बचाने के लिए उन्हें घर से बाहर भी शेड के नीचे रखें। क्योंकि पानी में भीगने से उनकी सेहत पर काफी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। 

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बकरियों के लिए चारा-जल इत्यादि की उचित व्यवस्था करें

बरसात के समय, बकरियों के लिए स्वच्छ पानी मुहैय्या कराएं। अगर वे बाहर रहते हैं, तो उनके लिए छत के नीचे पानी की व्यवस्था करें। जिससे कि वे ठंड और बरसात से बच सकें। आपको उन्हें स्वच्छ एवं सुरक्षित भोजन भी प्रदान करना होगा। बरसात में आप चारा, घास अथवा अन्य विशेष आहार उनको प्रदान कर सकते हैं। 

बकरियों के आसपास स्वच्छता का विशेष बनाए रखें

बरसात में इस बात का ध्यान रखें, कि बकरियों के आसपास की स्वच्छता कायम रहे। उनके लिए स्थायी अथवा अस्थायी शेल्टर का भी उपयोग करें, जिससे कि वे ठंड और नमी से बच सकें। 

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बकरियों का टीकाकरण कराऐं

बकरियों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए उनको नियमित तौर पर वैक्सीनेशन उपलब्ध कराएं। इसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह भी लें एवं उन्हें बकरियों के लिए अनुशासनिक टीकाकरण अनुसूची बनाने की बात कही है।

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

सरकार द्वारा जारी पांच एप जो बकरी पालन में बेहद मददगार साबित होंगे

बकरी पालन एक लाभकारी व्यवसाय है। अगर आप भी वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप अच्छी नस्ल की बकरी का पालन करना चाहते हैं, तो ये 5 मोबाइल एप आपकी सहायता करेंगे। ये ऐप 4 भाषाओं में मौजूद हैं। किसान भाई खेती के साथ-साथ पशुपालन भी हमेशा से करते आ रहे हैं। परंतु, कुछ ऐसे किसान भी हैं, जो अपनी आर्थिक तंगी की वजह से गाय-भैंस जैसे बड़े-बड़े पशुओं का पालन नहीं कर पाते हैं। इसलिए वह मुर्गी पालन और बकरी पालन आदि करते हैं। भारतीय बाजार में इनकी मांग भी वर्षभर बनी रहती है। यदि देखा जाए तो किसानों के द्वारा बकरी पालन सबसे ज्यादा किया जाता है। यदि आप भी छोटे पशु मतलब कि बकरी पालन (Goat Farming) से बेहतरीन मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आपको नवीन तकनीकों की सहायता से इनका पालन करना चाहिए। साथ ही, केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (Central Goat Research Institute) के द्वारा निर्मित बकरी पालन से जुड़े कुछ बेहतरीन मोबाइल ऐप का उपयोग कर आप अच्छे से बकरी पालन कर सकते हैं। इन ऐप्स में वैज्ञानिक बकरी पालन, बकरियों का सही प्रबंधन, उत्पादन एवं कीमत आदि की जानकारी विस्तार से साझा की गई है।

बकरी पालन से संबंधित पांच महत्वपूर्ण एप

बकरी गर्भाधान सेतु

बकरी की नस्ल में सुधार करने के लिए बकरी गर्भाधान सेतु एप को निर्मित किया गया है। इस एप में वैज्ञानिक प्रोसेस से बकरी पालन की जानकारी प्रदान की गई है।

गोट ब्रीड ऐप

यह एप बकरियों की बहुत सारी नस्लों की जानकारी के विषय में विस्तार से बताता है, ताकि आप बेहतरीन नस्ल की बकरी का पालन कर उससे अपना एक अच्छा-खासा व्यवसाय खड़ा कर पाएं।

गोट फार्मिंग ऐप

यह एप लगभग 4 भाषाओं (हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी) में है। इसमें बकरी पालन से जुड़ी नवीन तकनीकों के विषय में बताया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें देसी नस्ल की बकरी, प्रजनन प्रबंधन, बकरी की उम्र के हिसाब से डाइट, बकरी का चारा, रखरखाव एवं देखभाल के साथ-साथ मांस और दूध उत्पादन आदि की जानकारी के विषय में जानकारी प्रदान की गई है।

बकरी उत्पाद ऐप

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस एप के अंदर बाजार में कौन-कौन की बकरियों की मूल्य वर्धित उत्पादों की बाजार में मांग। साथ ही, कैसे बाजार में इससे अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं। यह एप भी हिंदी, तमिल, कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध है।

बकरी मित्र

इस एप में बकरियों के प्रजनन प्रबंधन, मार्केटिंग, आश्रय, पोषण प्रबंधन, स्वास्थ्य प्रबंधन एवं खान-पान से संबंधित जानकारी प्रदान की जाती है। साथ ही, इसमें बकरी पालन के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें किसानों की सहायता के लिए कॉल की सुविधा भी दी गई है। जिससे कि किसान वैज्ञानिकों से बात कर बेहतर ढ़ंग से बकरी पालन कर सकें। बकरी मित्र एप को विशेषतौर पर यूपी एवं बिहार के किसानों के लिए तैयार किया गया है।
इस योजना से मिलेगा इतने लाख लोगों को रोजगार का अवसर 50 प्रतिशत अनुदान भी

इस योजना से मिलेगा इतने लाख लोगों को रोजगार का अवसर 50 प्रतिशत अनुदान भी

यदि पशुपालन तथा डेयरी फार्मिंग के व्यवसाय में कुछ खास करने में रुचि रखते हैं, तो आपके लिए एक खुशखबरी है। शीघ्र ही सरकार 50 लाख से अधिक किसानों को इस व्यवसाय हेतु सब्सिडी प्रदान करने जा रही है। कृषि के उपरांत पशुपालन तथा डेयरी व्यवसाय द्वारा कृषकों की आय में बढ़ोत्तरी का कार्य किया है। डेयरी के क्षेत्र में निरंतर बढ़ते फायदे को देखते हुए फिलहाल शहरों से युवा एवं प्रोफेशनल इस व्यवसाय से जुड़ते जा रहे हैं। दूध एवं डेयरी उत्पाद की बढ़ती मांग द्वारा इस व्यवसाय के सफलता का मार्ग प्रसस्त कर दिया है। बतादें, कि इस व्यवसाय के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को रोजगार का अवसर प्राप्त होगा इसके लिए सरकार विभिन्न योजनाओं पर कार्य कर रही है।
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अब शीघ्र ही इस व्यवसाय हेतु कृषकों को 50% प्रतिशत अनुदान भी प्रदान करवाएगी। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान ने जानकारी देते हुए बताया है, कि देश के युवा एवं किसान वर्तमान में सरकार द्वारा इस योजना का फायदा लेकर अपना स्वयं का व्यवसाय आरंभ कर सकते हैं।

किस तरह का व्यवसाय शुरू किया जाए

कोरोना महामारी के उपरांत से ही खेती किसानी एवं डेयरी क्षेत्र में नवीन स्टार्टअप एवं व्यवसाय देखने को मिले हैं। इन्हीं प्रयासों को देखते हुए वर्तमान में सरकार द्वारा आर्थिक सहायता की तैयारी कर दी है। दूध-डेयरी को प्रोत्साहन देने वाली राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के चलते सुअर, मुर्गी, गाय, भैंस एवं बकरी का ब्रीडिंग फार्म खोलने हेतु अत्यधिक साइलेज यूनिट्स निर्माण हेतु सरकार 50% अनुदान देने जा रही है। अगर आपके डेयरी अथवा पशुपालन से संबंधित व्यवसाय में 50 लाख से लेकर 60 लाख, 1 करोड़ एवं 4 करोड़ व्यय किये जा चुके हैं, तो आपको आधार धनराशि सरकार मुहैय्या कराएगी। इससे संबंधित व्यवसाय हेतु आप कर्ज भी प्राप्त करेंगे तो AHIDF Scheme से प्रीमियम पर 3% प्रतिशत तक की छूट भी प्रदान की जाएगी।

आप किस प्रकार बन सकते हैं आत्मनिर्भर

मीडिया खबरों के अनुसार, केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान ने कहा है, कि मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी क्षेत्र में सरकार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 50 लाख से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए तैयार है। इस क्षेत्र में स्वयं का व्यवसाय अथवा स्टार्ट अप करने एवं युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु सरकार निरंतर कोशिश किए जा रही है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना से क्या लाभ होगा

संजीव बालियान ने कहा कि राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के जरिये देसी नस्ल की गाय के पालन-पोषण को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी योजना के चलते पशुओं के इलाज हेतु सरकार द्वारा फिलहाल 4332 से ज्यादा पशु मेडिकल यूनिट भी स्थापित करने की तैयारी की है। युवा, किसान अथवा कोई भी प्रोफेशनल वर्तमान में मंत्रालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर के इस संबंध में ज्यादा जानकारी ले सकते हैं।
जानें पैकेट वाले दूध के बारे में आखिर क्यों यह कच्चे दूध की तुलना में अधिक दिन तक चलता है

जानें पैकेट वाले दूध के बारे में आखिर क्यों यह कच्चे दूध की तुलना में अधिक दिन तक चलता है

दूध की माँग में वृद्धि हो रही है। पशुओं द्वारा प्राप्त शुद्ध कच्चे दूध की अपेक्षा पैकेट बंद दूध एवं 6 लेयर टेट्रा पैक वाले दूध की ज्यादा मांग है। आज हम जानेंगे आखिर किस वजह से पैकेट वाला दूध शीघ्रता से खराब नहीं होता है। पशुओं द्वारा प्राप्त होने वाला कच्चा दूध अधिक समय तक नहीं चलता है। इस वजह से अति शीघ्र इस प्राकृतिक दूध को ग्राहकों व उपभोक्ताओं तक उपलब्ध कराना एक बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है। इसी मध्य बहुत बार दूध से भरे टैंक भी खराब हो जाते हैं, इसका नुकसान पशुपालक एवं डेयरी कृषकों को भुगतना होता है। इसी समस्या के चलते वर्तमान समय में दूध का पाश्चराइजेशन होता है, जिससे दूध में विघमान समस्त बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं। नतीजतन, दूध की जीवनावधि कुछ समय के लिए अधिक हो जाती है। वर्तमान में दूध के बाजार पर ध्यान दें तो तीन प्रकार का दूध उपलब्ध है, इसका स्रोत डेयरी फार्म ही हैं।


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इसके अंतर्गत कच्चा दूध, पैकेट वाला दूध एवं टेट्रा पैक शम्मिलित है, परंतु पैकेट वाले दूध की सर्वाधिक मांग रहती है। क्योंकि इस दूध की उपलब्धता हर गली-नुक्कड़ पर सुगमता से हो जाती है। साथ ही, घर-घर पहुंचाए जाने वाला कच्चा दूध सर्वोत्तम होता है, परंतु टेट्रा पैक की जीवनावधि सर्वाधिक होती है। दूध निर्माता तो टेट्रा पैक एवं पैकेट वाले दूध को बेहद सुरक्षित एवं सेहतमंद बताते हैं, परंतु क्या यह पैकेट बंद दूध लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है ? इस बात की जानकारी हेतु पैकेट बंद दूध की पूर्ण प्रोसेस के बारे में जानना होगा।

पशु कच्चे दूध का एकमात्र स्त्रोत होते हैं

दूध का एकमात्र स्त्रोत पशु ही होते हैं, सर्वप्रथम दूधिया द्वारा गांव-गांव से दूध कलेक्शन केंद्र पर एकत्रित करना होता है। बहुत सारे पशुपालक दूध को प्रत्यक्ष तौर पर उपभोक्ता के घर पर ही उपलब्ध करवाते हैं। बतादें, कि कच्चा दूध भी दो प्रकार का होता है, पहला ऑर्गेनिक एवं दूसरा इन-ऑर्गेनिक। ऑर्गेनिक दूध को सर्वोत्तम शुद्ध दूध कहते हैं, इसकी मुख्य वजह इस दूध को प्राप्त करने हेतु पशुओं को किसी भी अन्य दवा जैसे इंजेक्शन आदि नहीं लगाया जाता है। यह पूर्णतया प्राकृतिक एवं ऑर्गेनिक प्रोसेस है, इसमें किसी प्रकार का नाममात्र के लिए कैमिकल की कोई उपस्थिति नहीं रहती है।


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इन-ऑर्गेनिक दूध स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसका कारण यह है, कि इस प्रोसेस के दौरान पशुओं को दिए जाने वाला चारा मिलावटयुक्त होता है। पशुओं से अत्यधिक दूध लेने हेतु पशुओं को अप्राकृतिक तौर पर इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इस वजह से दूध में रसायनों का कुछ अंश विघमान होता है, जो लोगों के शरीर में जाकर उनके स्वास्थ्य को खराब कर देता है।

पैकेट वाले दूध को किस तरह बनाया जाता है

वर्तमान में बहुत सारी कंपनियां बाजार में पैकेट वाला दूध ही बेचती हैं। बतादें, कि इस दूध का स्त्रोत भी पशु ही होते हैं, परंतु इस दूध को दीर्घकालीन चलाने हेतु एक प्रोसेस का विधिवत रूप से करना होता है। इस दूध को पाश्चराइजेशन अथवा होमोजिनाइज दूध के नाम से भी जानते हैं, इसको सर्वप्रथम गर्म करके शीघ्र ठंडा कर दिया जाता है, जिससे दूध से समस्त विषाणु एवं अशुद्धियां बाहर निकल जाएं। इसको पहले टोंड मिल्क फिर डबल टोंड मिल्क उसके बाद फुल क्रीम मिल्क इन तीन प्रकार से तैयार किया जाता है। बतादें, कि फुल क्रीम दूध में फैट और पोषक तत्व काफी मात्रा में पाए जाते हैं, जब कि टोंड एवं डबल टोंड मिल्क से फैट बाहर कर दिया जाता है। इस दूध को बाद में पॉली में बंद किया जाता है, उसके बाद इसे ठंडा करके विभिन्न प्रकार की थैलियों में बंद किया करते हैं। यह ऐसी थैली होती हैं, जिसमें ठंडा दूध भरने व रखने पर कोई हानि ना हो पाए।

टेट्रा दूध किस प्रकार तैयार होता है

शायद ही आप जानते होंगे कि टेट्रा पैक दूध सर्वाधिक पोषणयुक्त एवं सुरक्षा से परिपूर्ण माना गया है, इसको निर्मित करने की विधि भी भिन्न है। दरअसल, दूध को 6 लेयर युक्त टेट्रा पैक डब्बे में बंद करने से पूर्व बहुत अधिक तापमान (Ultra-High Temperature) पर गर्म करना होता है। काफी ज्यादा तापमान पर इसको कुछ समयावधि के लिए रखा जाता है। दूध को काफी गर्म करके शीघ्र ठंडा कर दिया जाता है, इस प्रकार दूध में विघमान नुकसानदायक विषाणु बर्बाद हो जाते हैं, इसके उपरांत दूध को टेट्रा पैक में बंद कर दिया जाता है।
जाने किस व्यवसाय के लिए मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 10 लाख तक का लोन

जाने किस व्यवसाय के लिए मध्य प्रदेश सरकार दे रही है 10 लाख तक का लोन

हमारे देश में दूध की बहुत मांग है। अलग अलग तरह के डेयरी प्रोडक्ट्स भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। दूध को प्रोटीन और कैल्शियम का एक अच्छा सोर्स मानते हैं। इसी डिमांड का नतीजा है, कि आजकल बहुत सी जगह किसानों ने खेती के साथ-साथ पशुपालन का व्यवसाय अपनाना शुरू कर दिया है। इस काम में किसान इसलिए लगे हुए हैं। क्योंकि पशुपालन-डेयरी फार्मिंग से अतिरिक्त आमदनी हो ही जाती है। खेत के लिए खाद का इंतजाम भी हो जाता है। अब सरकार भी किसानों को इस काम में आर्थिक और तकनीकी सहयोग दे रही है। बहुत ही राज्य सरकार किसानों को इस व्यवसाय से जुड़ने के लिए जागरूक कर रही है। इसी पहल में मध्य प्रदेश सरकार भी आगे आई है। सरकार ने अपने राज्य में पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए ऐसे किसानों को ₹1000000 लोन देने की एक स्कीम निकाली है। जो पशुपालन भी करते हैं, किसान बहुत ही आसान प्रक्रिया अपनाते हुए इस स्कीम के तहत लाभ उठा सकते हैं।

क्या है ये योजना

कुछ समय पहले ही मध्य प्रदेश राज्य सहकारी डेयरी फेडरेशन ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ एक एमओयू (EOU) साइन किया है। इस एमओयू (EOU) का मकसद राज्य में दूध के उत्पादन को बढ़ाना है। सरकार ने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए ही राज्य के किसानों और पशुपालकों को किसी भी तरह का दुधारू पशु खरीदने के लिए 1000000 रुपए तक की लोन राशि देने की बात की है। पशुपालकों को यह लोन राशि देते समय सरकार किसी भी तरह की गारंटी नहीं मांग रही है। योजना के आधार पर समझ आता है, कि इस स्कीम से छोटे और मझोले किसानों को भी काफी लाभ होगा। ज्यादातर छोटे किसान साथ में पशुपालन करना चाहते हैं। क्योंकि उनकी खेती की जमीन उतनी ज्यादा नहीं होती है, कि वह उससे बहुत ज्यादा मुनाफा कमा सकें। साथ ही, धनराशि के अभाव में वह कुछ नया भी नहीं कर पाते हैं और इस आर्थिक रेस में बहुत पीछे रह जाते हैं। ऐसे ही किसानों को आर्थिक बल देने के लिए और राज्य में दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है।

कैसे कर सकते हैं लोन का भुगतान

एमपी स्टेट को-ऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के बीच हुए इस एमओयू के अनुसार, किसान और पशुपालकों को 2 मवेशियों से लेकर, 4, 6 और 8 की संख्या में मवेशी खरीदने की छूट दी जाएगी। जिसके लिए वो अपने जिले में चिन्हित 3 से 4 बैंक की शाखाओं में लोन के लिए आवेदन कर पाएंगे। इस स्कीम के तहत दस लाख तक का मुद्रा लोन और ₹60000 तक का लोन मुद्रा लोन किसानों को दिया जाएगा। किसान इस मुद्रा की वदल में 10% तक की मार्जिन मनी जमा करवाते हैं। अच्छी बात यह है, कि लोन की रकम को चुकाने के लिए कैसा भी दवाब नहीं होगा। बल्कि किसान चाहें तो 36 किस्तों में लोन की रकम का भुगतान कर सकते हैं।

किन-किन चीजों के लिए मिलता है लोन

वैसे तो देश में पशुपालन और डेयरी फार्मिंग के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिससे किसानों और पशुपालकों को आर्थिक संबल मिला है। इन सबके अलावा भी सरकार द्वारा कई तरह की अन्य व्यवसाई योजनाओं के लिए फंड जारी किया जाता है। कई योजनाओं में आवेदन करने पर केंद्रीय पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी मंत्रालय से फंड जारी होता है। तो कुछ परियोजनाओं में नाबार्ड का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग मिलता है।
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इस कड़ी में अब एमपी स्टेट कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन के साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया भी आगे आया है। एसबीआई की ओर से मिल्क कलेक्शन यूनिट के निर्माण से लेकर ऑटोमैटिक मिल्किंग मशीन, मिल्क कलेक्शन सिस्टम, मिल्क ट्रांसपोर्ट वैन आदि के लिए भी लोन दिया जाता है। इस तरह के लोन में हमेशा ही लोन की ब्याज दर भी नियम और शर्तों के आधार पर ही निर्धारित की जाती है। यह दरें ज्यादातर 10% से लेकर 24% तक होती हैं। इन योजनाओं में आवेदन करने के लिए अपने जिले के पशुपालन विज्ञान, कृषि विज्ञान केंद्र या पशु चिकित्सालय में भी संपर्क कर सकते हैं।
350 करोड़ में यह सरकार 70% तक बढ़ाएगी दूध का उत्पादन, आपके लिए भी हो सकती है खुशखबरी

350 करोड़ में यह सरकार 70% तक बढ़ाएगी दूध का उत्पादन, आपके लिए भी हो सकती है खुशखबरी

आजकल किसानी और पशुपालन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। पशुओं का ज्यादा पालन दूध उत्पादन के लिए किया जाता है। आजकल बाज़ार में दूध और उससे बने उत्पादों की डिमांड ज्यादा होने के कारण भारत की बड़ी आबादी दुग्ध उत्पादन से जुड़ी हुई है। लगभग देश भर में हर सरकार दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाती हैं। पशुपालकों की मदद करने के लिए सरकारें बहुत से कदम उठा रही हैं। जहां कई जगह पर किसानों को पशु खरीदने के लिए अनुदान राशि और लोन दिया जा रहा है। वहीं पर बहुत जगह पशुओं का बीमा भी किया जा रहा है। इसके अलावा डेयरी फार्मिंग के लिए सरकारें सब्सिडी भी देती हैं। दुग्ध उत्पादन के कारोबार में देश की एक और राज्य सरकार बड़ा कदम उठाने जा रही है। इससे राज्य में रहने वाले सभी लोगों को इस योजना से काफी फायदा होने वाला है।

जम्मू कश्मीर में डेयरी क्षेत्र के विकास के लिए दिया जाएगा 350 करोड़

डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए जम्मू कश्मीर सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। जम्मू कश्मीर सरकार ने अगले 5 साल में डेयरी क्षेत्र को विकसित करने के लिए 350 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव तैयार किया है। इस पैसे की मदद से दुग्ध उत्पादन को अच्छी तरह से बढ़ावा देने के लिए पूरी तरह से तैयारी की जाएगी। माना जा रहा है, कि राज्य सरकार सीधा पशुपालकों से खुल को जोड़कर स्कीम के तहत काम करेगी।

रोजगार के भी बढ़ेंगे अवसर

जम्मू कश्मीर सरकार राज्य के युवाओं को रोजगार देने की कवायद भी कर रही है। इस नई योजना के अनुसार, दुग्ध उत्पादन में 16,000 युवाओं को नौकरियां मिलेंगी। माना जा रहा है, कि यह ऐसी योजना है, कि इसका सीधा-सीधा लाभ आम जनता को मिलेगा।
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दुग्ध उत्पादन बढ़ावा देने को मंजूरी

जम्मू कश्मीर सरकार पहले भी पशु पालकों की मदद करती रही है और अभी योजना के तहत माना जा रहा है। अगले 5 साल में जम्मू-कश्मीर में दूध का उत्पादन लगभग 70% तक बढ़ जाएगा।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के 19वें दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू जी ने महिलाओं व विद्यार्थियों को संबोधित किया

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के 19वें दीक्षांत समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू जी ने महिलाओं व विद्यार्थियों को संबोधित किया

महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू जी के मुख्य आतिथ्य में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान का 19वां दीक्षांत समारोह संपन्न किया गया। इसके चलते उन्होंने कहा कि डेयरी उद्योग के प्रबंधन में नारी-शक्ति की एक अहम और महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के शताब्दी वर्ष में 19वां दीक्षांत समारोह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के मुख्य आतिथ्य में हुआ है। हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक प्रमुख अतिथि थे। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा है, कि भारत में डेयरी उद्योग के प्रबंधन में नारी-शक्ति प्रमुख भूमिका निभा रही है। डेयरी क्षेत्र में 70 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी महिलाओं की है। अत्यंत खुशी की बात है, कि आज डिग्री धारक विद्यार्थियों में एक-तिहाई से ज्यादा लड़कियां शम्मिलित हैं। स्वर्ण पदक हांसिल करने वाले विद्यार्थियों में भी 50 प्रतिशत लड़कियां ही हैं।

राष्ट्रपति मुर्मू ने डेयरी क्षेत्र से संबंधित क्या कहा है ?

राष्ट्रपति मुर्मू जी का कहना है, कि डेयरी क्षेत्र का महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के साथ-साथ उनकी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति में परिवर्तन लाने में अहम महत्व है। हमें यह सुनिश्चित करने की बेहद आवश्यकता है, कि इन महिलाओं के पास फैसला लेने एवं नेतृत्व प्रदान करने के लिए समान अधिकार और अवसर हों। इसके लिए इन महिलाओं को शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास हेतु अधिक अवसर मुहैय्या कराने की जरूरत है। साथ ही, डेयरी फार्मिंग में महिलाओं को उद्यमी बनाने हेतु सुगमता से ऋण की सुविधा और बाजार पहुंच की व्यवस्था होनी चाहिए। उन्होंने पंजाब- हरियाणा के कृषकों ने हरित क्रांति के साथ-साथ श्वेत क्रांति की सफलता में भी प्रमुख भूमिका निभाने का आह्वान करते हुए किसानों का अभिनंदन किया है। उन्होंने कहा है, कि दूध व दूध से जुड़े उत्पाद सदैव ही भारतीय खान-पान एवं संस्कृति का अटूट भाग रहे हैं। मां के दूध के साथ गाय का दूध भी सेहत के लिए अमृत माना गया है।

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गाय के दूध को वेदों में अमृत के समान दर्जा दिया गया है

ऋग्वेद में कहा गया है, कि गोषु प्रियम् अमृतं रक्षमाणा अर्थात गोदुग्ध अमृत के समतुल्य है। जो रोगों से संरक्षण करता है। दूध को काफी पवित्र माना जाता है, इसलिए इसका इस्तेमाल देवताओं का अभिषेक करने के लिए भी किया जाता है। आज भी भारत में बुजुर्गों द्वारा महिलाओं को 'दूधो नहाओ-पूतो फलो' का आशीर्वाद प्रदान किया जाता है। गाय व बाकी पशुधन भारतीय समाज-परंपराओं का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। भारतीय परंपरा में गाय समेत पशुधन को समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। गाय के प्रति श्रीकृष्ण का प्रेम, शिवजी और नंदी की कहानियां भी हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा हैं। कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन आजीविका या जीवनयापन का प्रमुख साधन हैं।

डेयरी उघोग ने भारत की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की है

राष्ट्रपति मुर्मू जी का कहना है, कि डेयरी उद्योग भारत की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गौरवान्वित करने वाली यह बात है, कि भारत विश्व का सर्वोच्च दूध उत्पादक देश है। भारत के वैश्विक दूध उत्पादन में तकरीबन 22 प्रतिशत भागीदारी है। डेयरी क्षेत्र का भारत की जीडीपी में तकरीबन 5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। डेयरी उद्योग तकरीबन 8 करोड़ परिवारों को आय का जरिया बनता है। इस वजह से एनडीआरआई जैसे संस्थानों की भारत के समावेशी विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। वर्ष 1923 में स्थापित एनडीआरआई द्वारा भारत में डेयरी उद्योग के विकास में विशेष योगदान दिया है। संस्थान के अनुसंधान ने डेयरी उत्पादन क्षेत्र में उत्पादकता, कुशलता और गुणवत्ता को सुधारने में सहायता प्रदान की है। उन्होंने खुशी जाहिर की है, कि एनडीआरआई ने ज्यादा दूध देने वाली भैंसों और गायों के क्लोन से उत्पादन करने की तकनीक विकसित की गई है। इससे पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में इजाफा किया जा सकेगा। किसानों की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी होगी।

बढ़ती जनसँख्या से दूध की मांग में हुई वृद्धि

उन्होंने बताया है, कि भारत की बढ़ती जनसँख्या की वजह दूध से संबंधित उत्पादों की मांग बढ़ रही है। साथ ही, पशुओं के लिए बेहतरीन गुणवत्तावाले चारे का प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम में बदलाव व पशुओं की बीमारियां, इन समस्त परेशानियों से डेयरी क्षेत्र जूझ रहा है। दूध उत्पादन, डेयरी फार्मिंग को स्थिर बनाना हमारे समक्ष एक चुनौती है, जिसका निराकरण निकालकर भारत की आवश्यकताओं को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार समेत समस्त स्टैकहोल्डर्स की है। हम सबकी जिम्मेदारी है, कि हम पशु-कल्याण को ध्यान में रखते हुए, पर्यावरण अनुकूल एवं जलवायु स्मार्ट प्रौद्योगिकियां अपनाकर डेयरी उद्योग का विकास करें। उन्होंने इस पर भी हर्ष व्यक्त किया है, कि एनडीआरआई डेयरी फार्मों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने हेतु बहुत सारी तकनीकों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही, बायोगैस उत्पादन जैसे क्लीन एनर्जी के स्रोतों पर भी जोर दे रहा है।

महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने विद्यार्थियों को किया संबोधित

महामहिम राष्ट्रपति मुर्मू जी का विद्यार्थियों से कहना है, कि आप जीवन के नए अध्याय की तरफ बढ़ रहे हैं। आप हमेशा नवीनतम जानकारियों और सीखने के लिए प्रयत्नशील रहें और जनकल्याण के लिए काम करें। आपमें से कुछ विद्यार्थी डेयरी उद्योग में रोजगार प्रदाता व उद्यमी अवश्य बनें। इस उद्योग में विकास की असीम संभावनाएं मौजूद हैं। साथ ही, आपको इन संभावनाओं का फायदा उठाना चाहिए। एनडीआरआई द्वारा देश के बहुत सारे हिस्सों में डेयरी क्षेत्र में उद्यमशीलता और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन देने के लिए निरंतर कोशिशें की जा रही हैं। आशा है, कि आप इसका व सरकार की बाकी योजनाओं का फायदा लेते हुए उद्यमी के तौर पर आरंभ करेंगे और राष्ट्र की उन्नति में सर्वोच्च योगदान प्रदान करेंगे।

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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने क्या कहा है ?

केंद्रीय मंत्री तोमर का कहना है, कि एनडीआरआई देश का अत्यंत महत्वपूर्ण संस्थान है, जिसने 100 साल की गौरवशाली यात्रा संपन्न की है। भारतभर में कृषि विश्वविद्यालयों में प्रतिस्पर्धा में आईसीएआर से सम्बद्ध एनडीआरआई ने निरंतर 5 सालों तक पहला स्थान प्राप्त किया। जो कि गौरव की बात है। उन्होंने कहा है, कि पशुपालन-डेयरी क्षेत्र में आज भारत जिस स्थिति में खड़ा है, उसमें वैज्ञानिकों का योगदान भी अविश्वसनीय और सराहनीय है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसमें कृषि क्षेत्र की कल्पना पशुपालन व मत्स्यपालन के बगैर करना मुमकिन नहीं है। विशेष तौर पर लघु व भूमिहीन किसानों की रोजी-रोटी तो पशुपालन पर भी निर्भर करती है।

पशुपालन का कृषि क्षेत्र में अहम योगदान रहा है

कृषि की जीडीपी में पशुपालन का उल्लेखनीय योगदान है। इस क्षेत्र की जो चुनौतियां है, उनका निराकरण करते हुए आगे चलते रहने की जरूरत है। उन्होंने बताया है, कि भारत में वर्ष 2021-22 में दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 444 ग्राम प्रतिदिन रही। वहीं, 2021 के समय वैश्विक औसत 394 ग्राम प्रतिदिन था। भारत में 2013-14 से 2021-22 के मध्य दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में तकरीबन 44% की बढ़ोत्तरी हुई है। तोमर का कहना है, कि किसी भी विद्यार्थी के लिए दीक्षांत समारोह उसके जीवन का अवस्मरणीय पल होता है। यह और भी गौरवमयी बात है, कि साथ में शताब्दी समारोह का भी शुभारंभ है। उन्होंने डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई देते हुए कहा गया है, कि वह भारत की बड़ी सेवा में लगने वाले हैं।
गाय पालन को प्रोत्साहन देने के लिए यह राज्य सरकार अच्छी-खासी धनराशि प्रदान कर रही है।

गाय पालन को प्रोत्साहन देने के लिए यह राज्य सरकार अच्छी-खासी धनराशि प्रदान कर रही है।

पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों की तरफ से अहम कवायद की गई है। यदि आप भी इस योजना के अंतर्गत प्रतिमाह 900 रुपये पाना चाहते हैं, तो आपको मध्य प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर इस योजना के तहत खुद को रजिस्टर कराना होगा। भारत में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। हिंदू धर्म का अनुपालन करने वाले लोग सामान्यतौर पर प्रत्येक जीव से प्यार करते हैं। परंतु, गाय को लेकर उनको विशेष लगाव होता है। हिंदू धर्म में गाय को काफी ज्यादा पवित्र जीव घोषित किया गया है और इसे मां का दर्जा प्रदान किया गया है। यही कारण है, कि गाय के दूध के साथ-साथ उसके गोबर और मूत्र का भी उपयोग सनातन धर्म के धार्मिक कार्यों में होता है। परंतु, फिलहाल, धीरे-धीरे गाय को पालने वाली परंपरा और संस्कृति समाप्त होती जा रही है। इसी संस्कृति का संरक्षण करने के लिए मध्य प्रदेश की सरकार की तरफ से एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है।

गाय पालन हेतु किसे धनराशि प्रदान की जाएगी

मध्य प्रदेश सरकार ने यह ऐलान किया है, कि वह प्रति माह उन लोगों को 900 रुपये प्रदान किए जाऐंगे। जो गाय का पालन और जैविक खेती करेंगे। इस योजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 22000 किसानों को पहली किश्त जारी भी कर दी है। साथ ही, सरकार द्वारा राज्य में पशु चिकित्सा एंबुलेंस सर्विस का भी शुभारंभ किया है। ये भी पढ़े: इस नंबर पर कॉल करते ही गाय-भैंस का इलाज करने घर पर आएगी पशु चिकित्सकों की टीम

योजना का लाभ लेने के लिए क्या करें

यदि आप भी इस योजना के अंतर्गत प्रति माह 900 रुपये पाना चाहते हैं। तो आपको मध्य प्रदेश की सरकारी वेबसाइट पर जाकर इस योजना के चलते स्वयं को पंजीकृत कराना होगा। इसके साथ ही गाय का गोबर भी खरीदने की योजना तैयार की जा रही है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कहना है, कि वह संपूर्ण राज्य में विभिन्न गोबर प्लांट लगा कर गाय के गोबर से सीएनजी तैयार करेंगे।

पशु एंबुलेंस बुलाने के लिए इस नंबर को डायल करें

यदि आप मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं और अपने पशु के रोगग्रस्त होने पर एंबुलेंस मंगाना चाहते हैं। तब आपको कुछ नहीं करना है, सिर्फ 1962 नंबर डायल कर देना है। यह नंबर पूर्णतयः टोल फ्री है। इस नंबर को डायल करने पर आपके फोन से एक भी रुपया भी नहीं कटेगा। ऐसा करते ही कुछ ही समय में आपके घर के बाहर पशु एंबुलेंस उपस्थित हो जाएगी।
जानें दुनियाभर में मशहूर पुंगनूर गाय की पहचान और विशेषताओं के बारे में

जानें दुनियाभर में मशहूर पुंगनूर गाय की पहचान और विशेषताओं के बारे में

भारत में गाय का पालन प्राचीन काल से लगातार चलता आ रहा है। किसान कई सदियों से कृषि के साथ गावों में गाय पालन भी करते आ रहे हैं। भारत में गाय की विभिन्न सारी देसी नस्लें हैं, इन सबकी अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं। 

इनमें से आपने भी बहुत सारी प्रजातियों की गायों को देखा होगा। साथ ही, कुछ गायों के विषय में सुना भी होगा। पुंगनूर गाय की नस्ल भी इन्हीं में शामिल है, जो अपने कद-काठी के लिए संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। 

पुंगनूर गाय विश्व की सबसे छोटी गाय है, जो कि फिलहाल विलुप्ती की कगार पर है। अगर पुंगनूर गाय खरीदना है तो इस लेख को अंत तक पढ़े। 

पुंगनूर गाय की नस्ल की मुख्य विशेषताएँ

  1. शरीर का रंग : पुंगनूर मवेशी भिन्न-भिन्न रंगों में पाए जाते हैं। इनके शरीर में सफेद रंग सहित लाल, भूरे अथवा काले रंग के धब्बे भी दिखाई पड़ जाते हैं।
  2.  शरीर : पुंगनूर गाय विश्व में बहुत कम मिलने वाले पशुओं की प्रजाति में से एक है। इसका शरीर पीछे की तरफ से झुका हुआ और आगे से पीछे की तरफ पूंछ जमीन को छूती हुई होती हैं। 
  3. सींग: पुंगनूर किस्म का माथा चौड़ा और सींग छोटे होते हैं। सींग वर्धमान के आकार के होते हैं और अक्सर पुरुषों में आगे और पीछे की ओर और मादाओं में पार्श्व और आगे की तरफ झुके हुए होते हैं।

पुंगनूर गाय की यह पहचान होती है

  1. पुंगनूर मवेशी की पूंछ जमीन को छूने लायक लंबी होती है। 
  2. पुंगनूर गाय के सींग थोड़े टेड़े-मेड़े होते हैं और पीठ बिल्कुल सपाट होती है।
  3. पुंगनूर गाय का पीछे का भाग नीचे की तरफ झुका हुआ होता है।

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पुंगनूर गाय में क्या-क्या खासियत मौजूद होती हैं

  1. पुंगनूर गाय की प्रजाति अधिकांश सूखा प्रतिरोधी है। यह सूखे चारे पर भी जिंदा रह सकती है। पुंगनूर गाय औसतन प्रतिदिन तकरीबन 3-5 किलोग्राम दूध का उत्पादन कर सकती है। 
  2. punganur cow प्रजाति प्रति दिन औसतन 3-5 लीटर दूध उत्पादन करती है। इसके लिए इस गाय को रोजाना 5 किग्रा आहार की जरूरत होती है। 
  3. punganur cow विशेष तौर से दूध उत्पादन के लिए उपयोग किए जाते हैं। इनके दूध में वसा की मात्रा ज्यादा होती है और यह औषधीय गुणों से भरे होते हैं।
  4.  पुंगनूर गाय की नस्ल काफी कठोर जानवर हैं। वह अपने गुणवत्तापूर्ण दूध उत्पादन के लिए मशहूर हैं। बाकी मवेशियों की प्रजातियों के दूध की अपेक्षा में उनके दूध में वसा की अधिक मात्रा होती है। सामान्य तौर पर गाय के दूध में 3 से 5 प्रतिशत वसा की मात्रा विघमान होती है। बतादें, कि पुंगनूर गाय की नस्ल के दूध में करीब 8 प्रतिशत वसा की मात्रा मौजूद होती है।

इस नस्ल की भैंस को पालने से पशुपालकों को लाखों की आमदनी होगी

इस नस्ल की भैंस को पालने से पशुपालकों को लाखों की आमदनी होगी

जैसा कि हम सबको ज्ञात है, कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश में खाद्य पदार्थ एवं डेयरी उत्पादों की बेहद मांग है। परंतु, क्या आपको जानकारी है, कि भारत की सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन क्षमता वाली भैंस की नस्ल कौन सी है। यदि नहीं तो आपके इस प्रश्न का उत्तर यहां है। साथ ही, यदि आप इस भैंस का पालन कर इसके दूध की बिक्री करते हैं तो आप अच्छा पैसा कमा सकते हैं। भारत में सर्वाधिक दूध देने वाली भैंस की नस्ल मुर्रा को माना जाता है। मुर्रा भैंस औसतन दिन में 25 लीटर से लेकर 30 लीटर तक दूध प्रदान करती है। इस भैंस को उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर पाला जाता है। मुर्रा भैंस का दूध वसा एवं प्रोटीन में उच्च होता है। इसके दूध का सेवन करने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, प्रोटीन एवं वसा मिलता है। इस भैंस के दूध का उपयोग विभिन्न प्रकार के डेयरी उत्पादों जैसे - घी, छाछ, दही और मक्खन तैयार करने के लिए भी उपयोग किया जाता है। मुर्रा भैंस की कीमत की बात की जाए तो ये 50 हजार रुपये से लगाकर 1 लाख रुपये तक होती है। इस भैंस को पालना अत्यंत लाभकारी साबित होता है। एक मुर्रा भैंस से एक दिन में लगभग 25 लीटर दूध मिलता है, जिसके मुताबिक आप दिन के 1000 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक कमा सकते हैं।

इस नस्ल की भैंस भी काफी अधिक दूध प्रदान करती है

साथ ही, मेहसाना भैंस भी एक दिन में लगभग-लगभग 20 से 30 लीटर तक दूध प्रदान कर देती है। ये भैंस सर्वाधिक गुजरात और महाराष्ट्र में पाई जाती है। बतादें, कि दोनों ही राज्यों में इस भैंस का पालन किया जाता है। उधर महाराष्ट्र राज्य में मिलने वाली पंढरपुरी भैंस की नस्ल भी अपनी दूध देने की क्षमता के कारण जानी जाती है। सुरती भैंस भी दूध उत्पादन में काफी शानदार होती है।

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मुर्रा भैंस की कद काठी कैसी होती है ?

मुर्रा भैंस के सींग मुड़े हुए होते हैं एवं दिखने में यह अन्य भैंसों की तुलना में पावरफुल नजर आते हैं। यह भैंस पंजाब एवं हरियाणा राज्यों में अधिकांश देखने को मिलती है। परंतु, वर्तमान में यह अन्य दूसरे देशों में भी पाली जा रही है। सिर्फ यही नहीं अब तो इस भैंस के सीमन का भी तगड़ा व्यापार हो रहा है। इनमें विभिन्न भैंस काफी लंबी एवं ऊंची होती हैं। इनके मालिक इन्हें विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी भेजते हैं। ज्यादातर प्रतियोगियाओं में मुर्रा भैंस ही सबसे अग्रणी रहती हैं। हालांकि, अधिकांश लोग दूध उत्पादन के लिए इनका पालन करते हैं। हरियाणा में इसेकाला सोनाभी कहा जाता है। ये भैंसे थोड़ी अधिक काली होती हैं।