भीषण गर्मी में लू से बचाने वाले तरबूज-खरबूज की बागवानी
भीषण गर्मी में लू की लपटों से बचाने के लिए मौसमी फल रामबाण का कार्य करते हैं। भीषण गर्मी से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। दोपहर में ही सूर्य की तल्ख किरणें शरीर को झुलसा देती हैं। गर्मियों में 46.8 डिग्री तापमान में दोपहर में थोड़ी दूरी चलने पर ही प्यास की वजह से गला सूखने लगता है।
ऐसी स्थिति में खीरा, ककड़ी व तरबूज का सेवन करना बेहद फायदेमंद साबित होता है। गर्मियों के दिनों हर चौराहे-तिराहे पर आपको इसकी दुकानें भी दिखाई देनी लगेंगी। यहां एक बात और जान लें कि इन मौसमी फलों का सेवन शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक है। यह गर्मियों के दिनों लू इत्यादि का भी खतरा काफी कम करते हैं।
काले रंग का तरबूज
प्रयागराज में थोक फल मार्केट मुंडेरा मंडी में इन दिनों मौसमी फल दिखते हैं। मंडी के थोक कारोबारी श्याम सिंह का कहना है, कि छोटे तरबूज तीन प्रकार के होते हैं। काले रंग का तरबूज सबसे अच्छा और स्वाद में मीठा होता है। क्योंकि, यह देशी प्रजाति का है।
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हरे रंग का तरबूज काफी कम मीठा होता है। यह हाइब्रिड किस्म का है। हरे और धानी रंग का तरबूज अभी नहीं आ रहा है। इसका सेवन करने से प्यास भी काफी कम लगती है। अब जून तक इसकी बाजार में खूब मांग बढ़ेगी।
तरबूज की बुवाई का समय
तरबूज की बुवाई का सीजन दिसंबर से जनवरी माह में चालू हो जाता है। मार्च में इसकी हार्वेस्टिंग होती है। लेकिन, कुछ क्षेत्रों में इसकी बुवाई का वक्त मध्य फरवरी वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में यह मार्च-अप्रैल में बोया जाता है। तरबूज के रस की चाशनी गर्मियों में अत्यंत स्वादिष्ट एवं ठंडी होती है।
इस फल में चूना, फास्फोरस और कुछ विटामिन ए, बी, सी जैसे खनिज विघमान होते हैं। इस वजह से बाजार में इनकी खूब मांग रहती हैं। ऐसी स्थिति में इस रबी सीजन में तरबूज की खेती कृषकों के लिए फायदे का सौदा सिद्ध हो सकती है।
मृदा एवं जलवायु
तरबूज और खरबूज की फसल के लिए मध्यम काली जल निकासी वाली मृदा उपयुक्त होती है। तरबूज के लिए मृदा का स्तर 5.5 से 7 तक अच्छा होता है। तरबूज की फसल को गर्म और शुष्क मौसम एवं भरपूर धूप की जरूरत होती है। बतादें, कि 24 डिग्री सेल्सियस से 27 डिग्री सेल्सियस का तापमान बेल की बढ़ोतरी के लिए आदर्श है।
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उर्वरक और पानी
तरबूज एवं खरबूज दोनों ही फसलों के लिए 50 किलो एन, 50 किलो पी और 50 किलो के रोपण से पहले और 1 किलो रोपण के उपरांत दूसरे हफ्ते में 50 किलो एन दिया जाना चाहिए।
बेल के विकास के दौरान 5 से 7 दिनों के समयांतराल पर और फलने के बाद 8 से 10 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करें। गर्मी के मौसम में तरबूज को सामान्य तौर पर 15-17 सिंचाई की जरूरत होती है।