तिल की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी
भारत के अंदर तिल की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु,महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में की जाती हैI भारत के कुल उत्पादन का 20 फीसद उत्पादन केवल गुजरात से होता है I उत्तर प्रदेश में तिल की खेती विशेषकर बुंदेलखंड के राकर जमीन में और फतेहपुर, आगरा, मैनपुरी, मिर्जापुर, सोनभद्र, कानपुर और इलाहाबाद में शुद्ध और मिश्रित तौर पर की जाती है I तिल की पैदावार काफी हद तक कम है, सघन पद्धतियाँ अपनाकर उपज को बढाया जा सकता है I तकनीकी तरीको से तिल की खेती करने पर तिल की उपज 7 से 8 कुन्तल प्रति हेक्टेयर तक होती है Iतिल की खेती के लिए कैसी जलवायु एवं मृदा उपयुक्त है
तिल की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए शीतोषण जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। विशेषकर बरसात अथवा खरीफ में इसकी खेती की जाती है। दरअसल, अत्यधिक वर्षा अथवा सूखा पड़ने पर फसल बेहतर नहीं होती है I इसके लिए हल्की जमीन और दोमट भूमि अच्छी होती है I यह फसल पी एच 5.5 से 8.2 तक की भूमि में उगाई जा सकती है I फिर भी यह फसल बलुई दोमट से काली मृदा में भी उत्पादित की जाती है I तिल की विभिन्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जैसे कि बी.63, टाईप 4, टाईप12, टाईप13, टाईप 78, शेखर, प्रगति, तरुण और कृष्णा प्रजातियाँ हैं।तिल की खेती के लिए जमीन की तैयारी और बिजाई कैसे करें
खेत की तैयारी करने के लिए प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल से एवं दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या फिर देशी हल से करके खेत में पाटा लगा भुरभुरा बना लेना चाहिए I इसके पश्चात ही बुवाई करनी चाहिए I 80 से 100 कुंतल सड़ी गोबर की खाद को अंतिम जुताई में मिश्रित कर देना चाहिए। यह भी पढ़ें: तिल की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी तिल की बिजाई करने हेतु जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का दूसरा पखवारा माना जाता है I तिल की बिजाई हल के पीछे कतार से कतार 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज को कम गहरे रोपे जाते हैं I तिल की बिजाई हेतु एक हेक्टेयर भूमि के लिए तीन से चार किलोग्राम बीज उपयुक्त होता है I बीज जनित रोगों से संरक्षण के लिए 2.5 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधन करना चाहिए I तिल की बुवाई का उचित समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का दूसरा पखवारा माना जाता हैI तिल की बुवाई हल के पीछे लाइन से लाइन 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज को कम गहराई पर करते हैIपोषण प्रबंधन कब करें
उर्वरकों का इस्तेमाल भूमि परीक्षण के आधार पर होना चाहिए I 80 से 100 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत तैयारी करने के दौरान अंतिम जुताई में मिला देनी चाहिए। इसके साथ-साथ 30 किलोग्राम नत्रजन, 15 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए I रकार और भूड भूमि में 15 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए I नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस,पोटाश व गंधक की भरपूर मात्रा बिजाई के दौरान बेसल ड्रेसिंग में और नत्रजन की आधी मात्रा पहली ही निराई-गुडाई के समय खड़ी फसल में देनी चाहिए।तिल की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन कैसे किया जाए
सिंचाई प्रबंधन तिल की फसल में कब होना चाहिए किस प्रकार होना चाहिए इस बारे में बताईये? वर्षा ऋतू की फसल होने के कारण सिंचाई की कम आवश्यकता पड़ती हैI यदि पानी न बरसे तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिएI फसल में 50 से 60 प्रतिशत फलत होने पर एक सिंचाई करना आवश्यक हैI यदि पानी न बरसे तो सिंचाई करना आवश्यक होता हैI यह भी पढ़ें: सिंचाई समस्या पर राज्य सरकार का प्रहार, इस योजना के तहत 80% प्रतिशत अनुदान देगी सरकारतिल की खेती में निराई-गुडाई
किसान भाईयो प्रथम निराई-गुडाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद दूसरी 30 से 35 दिन बाद करनी चाहिएI निराई-गुडाई करते समय थिनिंग या विरलीकरण करके पौधों के आपस की दूरी 10 से 12 सेंटीमीटर कर देनी चाहिएI खरपतवार नियंत्रण हेतु एलाक्लोर50 ई.सी. 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर बुवाई के बाद दो-तीन दिन के अन्दर प्रयोग करना चाहिएIतिल की खेती के लिए रोग नियंत्रण
इसमें तिल की फिलोड़ी और फाईटोप्थोरा झुलसा रोग लगते हैं। फिलोड़ी की रोकथाम के लिए बुवाई के दौरान कूंड में 10जी. 15 किलोग्राम अथवा मिथायल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी 1 लीटर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए। फाईटोप्थोरा झुलसा की रोकथाम करने के लिए 3 किलोग्राम कापर आक्सीक्लोराइड अथवा मैन्कोजेब 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जरूरत के अनुसार दो-तीन बार छिड़काव करना चाहिए I यह भी पढ़ें: इस फसल को बंजर खेत में बोएं: मुनाफा उगाएं – काला तिल (Black Sesame)तिल की खेती में कीट प्रबंधन
तिल में पत्ती लपेटक और फली बेधक कीट लग जाते हैं I इन कीटों की रोकथाम करने के लिए क्यूनालफास 25 ई.सी. 1.25 लीटर या मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए Iतिल की कटाई एवं मड़ाई
तिल की पत्तियां जब पीली होकर झड़ने लगें एवं पत्तियां हरा रंग लिए हुए पीली हो जाएं तब समझ जाना चाहिए कि फसल पककर तैयार हो चुकी है I इसके पश्चात कटाई नीचे से पेड़ सहित करनी चाहिए I कटाई के पश्चात बण्डल बनाके खेत में ही भिन्न-भिन्न स्थानों पर छोटे-छोटे ढेर में खड़े कर देना चाहिए I जब बेहतर ढ़ंग से पौधे सूख जाएं तब डंडे छड़ आदि की मदद से पौधों को पीटकर अथवा हल्का झाड़कर बीज निकाल लेना चाहिए I
18-Jun-2023