महाराष्ट्र राज्य के किसान अधिकतर प्याज का उत्पादन करते हैं और इस पर ही आश्रित रहते हैं हालाँकि सर्वाधिक प्याज उत्पादन रबी सीजन में ही प्राप्त होता है। प्याज के द्वितीय सीजन की बुआई अक्टूबर-नवंबर माह के मध्य में होती है। इसकी फसल जनवरी से मार्च के मध्य तैयार हो जाती है। प्याज का फसल का तीसरा समय रबी सीजन में होता है। रबी सीजन की बुवाई दिसंबर से जनवरी के मध्य होती है, और इसकी फसल की पैदावार मार्च से मई के मध्य ली जाती है। महाराष्ट्र में प्याज की कुल पैदावार का ६० प्रतिशत उत्पादन रबी सीजन के दौरान होता है।
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लेकिन याद रहे कि पौधों के मध्य में 18 से 24 इंच की दूरी अवश्य हो। सर्दियों में मिर्च की फसल में अधिक पानी देने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। इस वजह से 10 से 15 दिन के अंतराल में हल्का सा जल जरूर दें, जिससे 60 से 90 दिनों के भीतर बेहतरीन उत्पादन हाँसिल हो सके।
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इसके उपरांत 10 से 20 सेमी की दूरी पर प्याज का पौधरोपण की कर दें। आपको बतादें कि प्याज की बुवाई या रोपाई हेतु सबसे अच्छा समय शाम का माना जाता है। प्याज में हल्की सिंचाई करने से फसल में नमी बनी रहती है।
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महाराष्ट्र भारत का प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य है। यहां बड़े स्तर पर प्याज का उत्पादन किया जाता है। यहां वर्ष में तीन बार प्याज की खेती होती है। राज्य में नासिक, पुणे, सोलापुर, धुले और अहमदनगर को प्याज उत्पादन का गढ़ माना जाता है। महाराष्ट्र में इस वक्त रबी सीजन के प्याज की रोपाई चालू हो चुकी है। राज्य में किसान सर्वाधिक प्याज की खेती करते है और यहां एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक के लासलगांव में ही है।
सामान्य तौर पर विभिन्न राज्यो में वार्षिक तौर पर एक ही बार प्याज की खेती की जाती है। परंतु, महाराष्ट्र में ऐसा कुछ नहीं है। प्रदेश में एक वर्ष के दौरान इसकी तीन फसल हांसिल की जाती हैं। यहां खरीफ, खरीफ के बाद तथा रबी सीजन में इसका उत्पादन होता है। महाराष्ट्र में प्याज एक नकदी फसल हैं। यहां के अधिकांश किसान इसकी खेती पर ही आश्रित रहते हैं। रबी सीजन में ही किसान को सर्वाधिक प्याज का उत्पादन मिलता है।
इसे खरीफ सीजन में पछेती फसल के तौर पर भी उगा सकते हैं। ये किस्म 95-100 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन तकरीबन 20-22 टन प्रति हेक्टेयर तक है। प्याज की छटाई करने के सही समय की बात करें तो खेतों से प्याज निकालने का समुचित समय तब होता है जब पौधे में नमी समाप्त हो जाती है एवं उसकी गांठ तकरीबन अपने आप ऊपर आने लग जाती है।