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बीज उपचार

अरहर की खेती से किसानों को ये किस्में दिलाएंगी शानदार मुनाफा

अरहर की खेती से किसानों को ये किस्में दिलाएंगी शानदार मुनाफा

अरहर की खेती सदैव कृषकों के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है। हालांकि, बाजार के उतार-चढ़ाव में अरहर का भाव कम-अधिक होता रहता है। 

परंतु, अरहर की खेती करने वाले कृषकों के समक्ष एक चुनौती यह आती है, कि यह फसल काफी लंबे समय में पककर तैयार होती है। किसान दूसरी फसलों की बुवाई नहीं कर पाता है। 

परंतु, वैज्ञानिकों ने अरहर की कुछ ऐसी भी किस्में तैयार की हैं, जो न सिर्फ कम समय में पककर तैयार होती हैं। साथ ही, उपज भी काफी अच्छी देती हैं। 

इसके अतिरिक्त किसानों को अरहर की खेती में कुछ विशेष सावधानियों की आवश्यकता पड़ती है। बतादें, कि कृषकों को अरहर की रोपाई से पहले उसका बीजोपचार करना पड़ता है। 

साथ ही, अरहर की बुवाई जून के माह में की जाती है। चलिए जानते हैं, कम समयावधि में तैयार होने वाली किस्मों की खूबियां व बीचोपचार के बारे में।

किसान भाई इन तीन किस्मों का उत्पादन कर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं ?

अरहर की पूसा 992 किस्म

भूरे रंग, मोटा, गोल और चमकदार दाने वाली इस किस्म को वर्ष 2005 में विकसित किया गया था। ये किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले कम दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसको पकने में तकरीबन 140 से 145 दिन का समय लगता है।

दरअसल, यह किस्म प्रति एकड़ भूमि द्वारा 7 क्विंटल उत्पादन प्रदान कर सकती है। जानकारी के लिए बतादें, कि इस किस्म की खेती सर्वाधिक पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान राज्य में की जाती है। 

अरहर की पूसा 16 किस्म 

पूसा 16 जल्दी तैयार होने वाली बेहतरीन प्रजाति है। अरहर की इस किस्म की समयावधि 120 दिन की होती है। इस फसल में छोटे आकार का पौधा 95 सेमी से 120 सेमी लंबा होता है, इस किस्म का औसत उत्पादन 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। 

अरहर की आईपीए 203 किस्म  

अरहर की आईपीए 203 किस्म की विशेषता यह है, कि इस किस्म में बीमारियों का आक्रमण नहीं होता है। साथ ही, इस किस्म की बुवाई करके फसल को बहुत सारे रोगों से संरक्षित किया जा सकता है। 

साथ ही, इससे बेहतरीन उपज भी हांसिल कर सकते हैं। इसकी औसत उपज 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की होती है।

इस किस्म की समयावधि 150 दिन की होती है। साथ ही, अन्य किस्मों को तैयार होने में लगभग 220 से 240 दिन लगते हैं।

कृषक इस प्रकार बीज उपचार करें 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि किसी भी फसल की खेती से पहले बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है। बीज उपचार करने से रोगिक प्रभाव काफी कम पड़ते हैं। 

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इसके लिए कार्बेंडाजिम नामक दवा को दो ग्राम प्रति किलो की दर से मिला लें। इसमें पानी मिलाकर बीज को किसी छाया वाली जगह पर चार घंटे के लिए रख दें। इसके बाद इसकी बुवाई करें। ऐसा करने से बीज पर किसी प्रकार का रोग आक्रामण नहीं करता है। 

कृषक इस विधि से करें अरहर की खेती 

सामान्यतः किसान अरहर की खेती छींटा विधि के माध्यम से करते हैं, जिससे कहीं अधिक तो कहीं कम बीज जाते हैं। इससे कहीं घनी तो कहीं खाली फसल तैयार होती है। 

इससे फसलीय उपज में काफी कमी आती है, क्योंकि घना हो जाने से पौधों को समुचित धूप, पानी और खाद नहीं मिल पाता है। इसके लिए किसान को 20 सेंटीमीटर के फासले पर बीज लगाने चाहिए। इससे बीज दर भी काफी कम लगती है।

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

ज्वार की खेती में बीजोपचार और इसमें लगने वाले कीट व रोगों की रोकथाम से जुड़ी जानकारी

रबी की फसलों की कटाई प्रबंधन का कार्य कर किसान भाई अब गर्मियों में अपने पशुओं के चारे के लिए ज्वार की बुवाई की तैयारी में हैं। 

अब ऐसे में आपकी जानकारी के लिए बतादें कि बेहतर फसल उत्पादन के लिए सही बीज मात्रा के साथ सही दूरी पर बुआई करना बहुत जरूरी होता है। 

बीज की मात्रा उसके आकार, अंकुरण प्रतिशत, बुवाई का तरीका और समय, बुआई के समय जमीन पर मौजूद नमी की मात्रा पर निर्भर करती है। 

बतादें, कि एक हेक्टेयर भूमि पर ज्वार की बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन, हरे चारे के रूप में बुवाई के लिए 20 से 30 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता पड़ती है। 

ज्वार के बीजों की बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करके बोना चाहिए। बीजोपचार के लिए कार्बण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम और एप्रोन 35 एस डी 6 ग्राम कवकनाशक दवाई प्रति किलो ग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

इसके अलावा बीज को जैविक खाद एजोस्पाइरीलम व पी एस बी से भी उपचारित करने से 15 से 20 फीसद अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।

इस प्रकार ज्वार के बीजों की बुवाई करने से मिलेगी अच्छी उपज ?

ज्वार के बीजों की बुवाई ड्रिल और छिड़काव दोनों तरीकों से की जाती है। बुआई के लिए कतार के कतार का फासला 45 सेंटीमीटर रखें और बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर तक गहरा बोयें। 

अगर बीज ज्यादा गहराई पर बोया गया हो, तो बीज का जमाव सही तरीके से नहीं होता है। क्योंकि, जमीन की उपरी परत सूखने पर काफी सख्त हो जाती है। कतार में बुआई देशी हल के पीछे कुडो में या सीडड्रिल के जरिए की जा सकती है।

सीडड्रिल (Seed drill) के माध्यम से बुवाई करना सबसे अच्छा रहता है, क्योंकि इससे बीज समान दूरी पर एवं समान गहराई पर पड़ता है। ज्वार का बीज बुआई के 5 से 6 दिन उपरांत अंकुरित हो जाता है। 

छिड़काव विधि से रोपाई के समय पहले से एकसार तैयार खेत में इसके बीजों को छिड़क कर रोटावेटर की मदद से खेत की हल्की जुताई कर लें। जुताई हलों के पीछे हल्का पाटा लगाकर करें। इससे ज्वार के बीज मृदा में अन्दर ही दब जाते हैं। जिससे बीजों का अंकुरण भी काफी अच्छे से होता है।  

ज्वार की फसल में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें ?

यदि ज्वार की खेती हरे चारे के तोर पर की गई है, तो इसके पौधों को खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती। हालाँकि, अच्छी उपज पाने के लिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण करना चाहिए। 

ज्वार की खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक और रासायनिक दोनों ही ढ़ंग से किया जाता है। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का स्प्रे कर देना चाहिए। 

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वहीं, प्राकृतिक ढ़ंग से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के 20 से 25 दिन पश्चात एक बार पौधों की गुड़ाई कर देनी चाहिए। 

ज्वार की कटाई कब की जाती है ?

ज्वार की फसल बुवाई के पश्चात 90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के उपरांत फसल से इसके पके हुए भुट्टे को काटकर दाने के लिए अलग निकाल लिया जाता है। ज्वार की खेती से औसत उत्पादन आठ से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाता है। 

ज्वार की उन्नत किस्में और वैज्ञानिक विधि से उन्नत खेती से अच्छी फसल में 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ दाने की उपज हो सकती है। बतादें, कि दाना निकाल लेने के उपरांत करीब 100 से 150 क्विंटल प्रति एकड़ सूखा पौैष्टिक चारा भी उत्पादित होता है। 

ज्वार के दानों का बाजार भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल तक होता है। इससे किसान भाई को ज्वार की फसल से 60 हजार रूपये तक की आमदनी प्रति एकड़ खेत से हो सकती है। साथ ही, पशुओं के लिए चारे की बेहतरीन व्यवस्था भी हो जाती है। 

ज्वार की फसल को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोग और कीट व रोकथाम 

ज्वार की फसल में कई तरह के कीट और रोग होने की संभावना रहती है। समय रहते अगर ध्यान नहीं दिया गया तो इनके प्रकोप से फसलों की पैदावार औसत से कम हो सकती है। ज्वार की फसल में होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं।

तना छेदक मक्खी : इन मक्खियों का आकार घरेलू मक्खियों की अपेक्षा में काफी बड़ा होता है। यह पत्तियों के नीचे अंडा देती हैं। इन अंडों में से निकलने वाली इल्लियां तनों में छेद करके उसे अंदर से खाकर खोखला बना देती हैं। 

इससे पौधे सूखने लगते हैं। इससे बचने के लिए बुवाई से पूर्व प्रति एकड़ भूमि में 4 से 6 किलोग्राम फोरेट 10% प्रतिशत कीट नाशक का उपयोग करें।

ज्वार का भूरा फफूंद : इसे ग्रे मोल्ड भी कहा जाता है। यह रोग ज्वार की संकर किस्मों और शीघ्र पकने वाली किस्मों में ज्यादा पाया जाता है। इस रोग के प्रारम्भ में बालियों पर सफेद रंग की फफूंद नजर आने लगती है। इससे बचाव के लिए प्रति एकड़ भूमि में 800 ग्राम मैन्कोजेब का छिड़काव करें।

सूत्रकृमि : इससे ग्रसित पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। इसके साथ ही जड़ में गांठें बनने लगती हैं और पौधों का विकास बाधित हो जाता है। 

रोग बढ़ने पर पौधे सूखने लगते हैं। इस रोग से बचाव के लिए गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करें। प्रति किलोग्राम बीज को 120 ग्राम कार्बोसल्फान 25% प्रतिशत से उपचारित करें।

ज्वार का माइट : यह पत्तियों की निचली सतह पर जाल बनाते हैं और पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे ग्रसित पत्तियां लाल रंग की हो कर सूखने लगती हैं। इससे बचने के लिए प्रति एकड़ जमीन में 400 मिलीग्राम डाइमेथोएट 30 ई.सी. का स्प्रे करें।

धनिया की खेती से होने वाले फायदे

धनिया की खेती से होने वाले फायदे

दोस्तों आज हम बात करेंगे धनिया की खेती की, धनिया खेती के लिए बहुत ही उपयोगी फसल मानी जाती हैं। क्योंकि बिना धनिया के किसी भी प्रकार का खाना अधूरा रह जाता है। धनिया की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनाए हैं।

धनिया की खेती:

धनिया के इस्तेमाल से भोजन स्वादिष्ट बनता है तथा भोजन में खुशबू बनी रहती है। धनिया की पत्ती और मसालों में खड़ी धनिया दोनों खानों में अपना अलग ही स्वाद लगाते हैं। 

धनिया ना सिर्फ अभी बल्कि प्राचीन काल से ही मसालों में अपनी अलग भूमिका बनाए हुए है। भारत देश मसाले की भूमि मानी जाती है ऐसे में धनिया एक मुख्य और महत्वपूर्ण मसालों में से एक है।

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किसानों के अनुसार धनिया के बीजों में विभिन्न विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण मौजूद होते हैं। इन औषधीय गुणों का उपयोग कुलिनरी , कार्मिनेटीव और डायरेटिक आदि के  रूप में किया जाता है।

धनिया की खेती करने वाले क्षेत्र:

किसानों को धनिया की खेती करने से अधिक लाभ पहुंचता है, क्योंकि यह कम लागत में भारी मुनाफा देने वाली फसलों में से एक हैं। कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां धनिया की खेती भारी मात्रा में की जाती है। 

जैसे मध्यप्रदेश में करीबन धनिया की खेती 1,16,607 के आस पास होती हैं। 1,84,702 टन धनिया का भारी उत्पादन मिलता है। कृषि विशेषज्ञ के अनुसार धनिया के उत्पादन वाले और भी क्षेत्र हैं जहां पर धनिया की भारी उत्पादकता प्राप्त की जाती है। जैसे गुना, शाजापुर ,मंदसौर, छिंदवाड़ा, विदिशा आदि जगहों पर धनिया की फसल उगाई जाती है।

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धनिया की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु का चयन :

धनिया की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु शुष्क और ठंडे मौसम की जलवायु मानी जाती है। इन मौसमों में धनिया की खेती का भारी  उत्पादन होता है। धनिया के बीजों को अंकुरित या फूटने के लिए करीब 26 से लेकर 27 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। 

धनिया के बीजों के अंकुरित के लिए या तापमान सबसे उचित माना जाता है। किसानों के अनुसार धनिया शीतोष्ण जलवायु फसल है। इसीलिए इन के फूल और दानों को पाले वाले मौसम की जरूरत पड़ती है। कभी कभी धनिया की फसल के लिए पाले का मौसम नुकसानदायक भी होता है।

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धनिया की फसल के लिए भूमि को तैयार करना :

धनिया की फसल के लिए अच्छी दोमट वाली भूमि सबसे उपयोगी मानी जाती है। सिंचाई की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अच्छी जल निकास वाली भूमि सबसे उपयोगी होती है। जो फसलें असिंचित होती हैं उनके लिए काली भारी भूमि ठीक समझी जाती है। 

इसीलिए किसानों के अनुसार धनिया की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी दोमट मिट्टी या फिर मटियार दोमट सबसे उपयोगी होती है। मिट्टियों का पीएच मान लगभग 6 पॉइंट 5 से लेकर 7 पॉइंट 5 का सबसे उपयोगी होता है। धनिया की फसल बुवाई करने से पहले खेतों को भली प्रकार से जुताई की आवश्यकता होती है। 

अच्छी गहराई प्राप्त हो जाने के बाद ही बीज रोपण का कार्य शुरू करें। धनिया की फसल के लिए भूमि को करीब दो से तीन बार अड़ी खड़ी जुताई की आवश्यकता होती है। जुताई करने के बाद खेतों में भली प्रकार से पाटा लगाना चाहिए।

धनिया की फसल बोने का सही समय चुने:

धनिया की फसल बोने का सही समय किसान अक्टूबर और नवंबर के बीच का बताते हैं। करीब 15 से 20 अक्टूबर के बीच धनिया की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। 

धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाने वाली फसल है। धनिया की फसल की बुवाई से किसानों को बहुत लाभ पहुंचता है।अक्टूबर में धनिया के दाने आना शुरू हो जाते हैं। तथा नवम्बर में हरे पत्ते फसल बनकर लहराने लगते हैं। पाले से फसल की खास देखभाल करने की आवश्यकता होती है।

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धनिया की फसल को सुरक्षित रखने के लिए बीज उपचार:

धनिया की फसल को सुरक्षित रखने के लिए  रोगों से बचाव के लिए कार्बेंन्डाजिम और थाइरम का प्रयोग करना चाहिए। इनके इस्तेमाल से भूमि और बीजों दोनों का ही रोगों से बचाव होता है। 

जिन रोगों से फसलें खराब होने का भय रहता है, जनित रोगों से बचाव के लिए 500 पीपीएम तथा में बीजों को स्टे्रप्टोमाईसिन द्वारा उपचार करना चाहिए।

धनिया की फसल में उपयुक्त सिंचाई:

धनिया की फसल की पहली सिंचाई बीज रोपण करते समय करनी चाहिए। उसके बाद दो-तीन दिन के भीतर तीन से चार बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई करते वक्त आप को जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना होगा, ताकि किसी भी प्रकार का रोग या जल एकत्रित होकर फसल खराब ना होने पाए। 

किसानों के अनुसार धनिया की फसल उनकी आय के साधन को मजबूत बनाते हैं। धनिया की पत्तियां और धनिया के बीच दोनों ही उपयोगी होते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं। कि आपको हमारा यह आर्टिकल धनिया की खेती से होने वाले फायदे पसंद आया होगा। 

हमारे इस आर्टिकल  में सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है जो आपके बहुत काम आ सकती है। यदि आप हमारी दी गई सभी प्रकार की जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ तथा अन्य सोशल प्लेटफॉर्म पर शेयर करें। धन्यवाद।

चौसा आम की विशेषताएं

चौसा आम की विशेषताएं

आम की विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में है और उन किस्मों में से जो लोग बहुत ज्यादा पसंद करते हैं वह चौसा आम की किस्म है। यदि आपने चौसा आम खाया होगा, तो आपको भी इस बात का अंदाजा होगा। कि चौसा आम कितना स्वादिष्ट और मीठा होता है। चौसा आम की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे। 

चौसा आम :

चौसा आम बाजार और मार्केट में जुलाई के महीने में आता है चौसा आम का इंतजार लोग बहुत ही बेसब्री से करते हैं। क्योंकि इस आम के गूदे और रेशों मे इतनी मिठास होती है कि खाने के बाद मन मोह हो जाता है। चौसा आम दिखने में बेहद ही खूबसूरत लगता है और इसमें भीनी भीनी खुशबू आती है। सभी आमों की अहमियत कम हो जाने के बाद चौसा आम की अहमियत खास हो जाती है। चौसा आम के संदर्भ में लोगों का यह कहना है। कि करीबन सन 1539 में बिहार क्षेत्र चौसा में शेरशाह सूरी द्वारा हुमायूं से युद्ध के दौरान शेरशाह सूरी ने जब युद्ध जीत लिया था। युद्ध जीतने के बाद इसे चौसाआम के नाम से उपाधि प्रदान की गई थी। जानकारियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में चौसाआम की उत्पत्ति हुई थी। कुछ इस प्रकार इस आम का नाम चौसा आम पड़ा है।

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चौसा आम का वर्तमान स्थान :

इस चौसा आम का वर्तमान स्थान पाकिस्तान को कहा जाता है। इसकी मूल पैदावार करने वाला क्षेत्र पाकिस्तान है। पाकिस्तान के करीब मीरपुरखास ,सिंधु तथा मुल्तान और पश्चिमी बंगाल ,साहीवाल आदि, जहां पर इस चौसा आम की पैदावार होती थी यह सभी क्षेत्र चौसा आम का वर्तमान स्थान है। चौसा आम की इस किस्म को भारत तथा उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाने का श्रेय शेरशाह सूरी को ही जाता है। जिन्होंने पूरे भारतीय महाद्वीप में चौसा आम को श्रेष्ठ बना दिया। या कुछ आवश्यक बातें थी जो चौसा आम के वर्तमान स्थान से जुड़ी हुई थी। 

चौसा आम को जीआई टैग दिलाने का प्रयास :

चौसा आम की बढ़ती मांग को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसे जीआई टैग दिलाने का प्रयास करना शुरू कर दिया है। क्योंकि उत्तर प्रदेश के मलिहाबादी दशहरी आम को जीआई टैग दिलवाने के बाद, अब केंद्रीय कृषि मंत्रालय चौसा आम की ओर बढ़ रहा है। जिससे कि जीआई टैग द्वारा इसकी अच्छी कीमत विदेशों से मिल सके। इन जीआई टैग द्वारा चौसा आम और भी खास हो जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में काम करने वाले कर्मचारियों ने आईसीएआर के अंतर्गत, यूपी के मंडी परिषद से आग्रह करते हुए। चौसा आम की किस्म को जीआई टैग मान्यता प्राप्त करने की अनुमति मांगी है।

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शेरशाह सूरी और चौसा आम के संबंध के विषय में जाने :

कहा जाता है कि मुगल सम्राट शेरशाह सूरी को चौसा आम की यह किस्म बहुत ही पसंद थी। आम की इस किस्म को चौसा नाम हुमायूं को हराने के बाद दिया गया था। जहां पर हुमायूं को हराया गया था। उस जगह के नाम पर आम की इस किस्म का नाम चौसा आम रखा गया था। शेरशाह सूरी द्वारा यह किस्म और यह नाम आज भी बहुत मशहूर हैं। दुनिया भर में लगभग आम की डेढ़ हजार किस्में मौजूद है और उन किस्मों में से एक किस्म चौसा आम की है। मुगलों के समय चौसा आम बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय था। हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह सूरी बहुत ही ज्यादा खुश थे और इस खुशी के चलते उन्होंने आम कि इस किस्म को चौसाआम के नाम की उपाधि प्रदान की कुछ इस प्रकार चौसा आम और शेरशाह सूरी के संबंध थे।

चौसा आम के फायदे :

  • चौसा आम खाने से शरीर स्वस्थ रहता है और गर्मियों में लू लगने से बचाव होता है। चौसा आम खाने से ताजगी बनी रहती है और गर्मी कम लगती है।
  • चौसा आम में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीऑक्सीडेंट जैसे आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं।
  • चौसा आम खाने से इम्यूनिटी सिस्टम अच्छा रहता और पाचन क्रिया संतुलित बनी रहती है
  • ब्लड प्रेशर संतुलित रहता है तथा आंखों की रोशनी भी बढ़ती है।
  • किसानों को चौसा आम की फसल से बहुत फायदा होता हैं क्योंकि इसमें कम लागत में फसल तैयार हो जाती है और बेहद मुनाफा होता है। मार्केट, दुकानों में चौसा आम बहुत ऊंचे दाम पर बेचे जाते हैं।

चौसा आम का बीज उपचार :

चौसा आम का बीज रोपण करने से थोड़ी देर पहले आपको चौसा आम की फसल के बचाव के लिए डाइमेथोएट में कुछ देर पत्थरों को डूबा कर रखना चाहिए। इस प्रक्रिया द्वारा चौसा आम की फसल सुरक्षित रहती है। किसी भी तरह के फंगल से फसल को बचाने के लिए कैप्टन कवकनाशी के साथ बीजों को मिलाकर रखना चाहिए। 

चौसा आम के लिए उपयुक्त जलवायु :

चौसा आम की अच्छी फसल के लिए सबसे अनुकूल जलवायु उष्णकटिबंधीय जलवायु होती है। ज्यादा ठंड इस पौधे के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। समतल जलवायु में पौधे भारी मात्रा में उत्पादन होते हैं। चौसा आम की किस्में वार्षिक और शुष्क मौसम में बहुत ही अच्छी तरह से उगती हैं।

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चौसा आम के लिए उपयुक्त सिंचाई :

मौसम के आधार पर आपको सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। मिट्टी में नमी बनाए रखिए जलवायु और सिंचाई का स्त्रोत समान होना चाहिए। नए पौधों को हल्की सिंचाई देते रहें। चौसा आम की फसल के लिए सबसे सर्वोत्तम सिंचाई हल्की सिंचाई होती है। जब बरसात का मौसम आ जाए और खूब तेज बारिश होने लगे, तो आपको बारिश के आधार पर ही चौसा आम की फसलों की सिंचाई करना है। भूमि के चारों तरफ भली प्रकार से मेड बना दें। जल निकास का मार्ग बनाए, ताकि किसी तरह की सड़क गलन की समस्या न हो। चौसा आम की फसल के लिए तापमान लगभग 80 सेल्सियस से लेकर 85 सेल्सियस तक का सबसे उचित होता है। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं , कि आपको हमारा यह चौसा आम की विशेषताएं का आर्टिकल पसंद आया होगा। यदि आप हमारी दी हुई सभी महत्वपूर्ण जानकारियों से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और अन्य सोशल मीडिया पर शेयर करते रहें। धन्यवाद।

हिमसागर आम की विशेषताएं

हिमसागर आम की विशेषताएं

दोस्तों आम की विभिन्न प्रकार की किस्में मौजूद है और हर किस्म का अपना एक अलग स्थान है। उसी तरह एक किस्म हिमसागर आम (Himsagar Mango) की भी है, जो अपनी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। हिमसागर आम से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को जाने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

हिमसागर आम

हिमसागर आम दिखने में पीला और नारंगी नजर आता है। इनका आकार काफी बड़ा होता है। यह वजन मे लगभग 250 ग्राम से लेकर 350 ग्राम तक के होते हैं हिमसागर आम मध्यम आकार के होते है। 

हिमसागर आम में लगभग गुदे की मात्रा 77% होती हैं। कहां जाता है कि हिमसागर आम की खूबियों के चलते इन्हें विभिन्न प्रकार की कविता और गानों से भी सम्मानित किया जाता है। सभी आमों की किस्मों में से हिमसागर आम की किस्म श्रेष्ठ मानी जाती है।

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हिमसागर आम का उत्पादन

हिमसागर आम का उत्पादन भारत के पश्चिम बंगाल तथा बांग्लादेश के राजशाही क्षेत्रों में उत्पादन होता है। अपने बेहतरीन स्वाद और खुशबूदार सुगंध के चलते हिमसागर आम को दुनिया भर में सभी आमो से ऊपर रखा गया है। और हिमसागर आम को आमोकाराजा भी कहा जाता है।

हिमसागर आम की फसल का बीज उपचार

हिमसागर आम की फसल की सुरक्षा करने के लिए आपको इसके बीज रोपण करने से थोड़ी देर पहले या कुछ मिनटों पहले इस फ़सल के उपचार के लिए डाइमेथोएट का उपयोग करना चाहिए। 

डाइमेथोएट से फसलों की सुरक्षा होती है। कैप्टन कवकनाशी के इस्तेमाल से फंगल संक्रमण से हिमसागर आम की फसल सुरक्षित रहती है।

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हिमसागर आम की बुआई का समय

किसान हिमसागर आम की बुआई का समय मह जुलाई और अगस्त के बीच का बताते हैं। हिमसागर आम का बीज रोपण आमतौर पर वर्षा वाले क्षेत्रों में इन 2 महीनों में होता है।

सिंचित क्षेत्रों में फरवरी और मार्च के बीच इनकी बुवाई की जाती है। जिन क्षेत्रों मे वर्षा बहुत ज्यादा मात्रा में होती है वहां इन बीजों की बुवाई बरसात के आखिरी महीने में होती है।

हिमसागर आम की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु

किसानों के अनुसार हिमसागर आम की फसल के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु उष्णकटिबंधीय तथा उपोष्णकटिबंधीय की होती हैं। कृषि विशेषज्ञों के द्वारा हिमसागर आम की फसल भारत देश में सभी क्षेत्रों में उगाई जाती है। 

किंतु 600 मीटर से ऊपर के क्षेत्रों में या फिर व्यवसायिक रूप से या फसल आप नहीं उगा सकते हैं। हिमसागर आम की फसल ज्यादा ठंड को अपने अंदर बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। जब पौधे नए हो तब तो खासकर फसल का ख्याल रखना होता है।

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हिमसागर आम की फसल की सिंचाई

जब हिमसागर आम के पौधे नए होते हैं। तब लगातार सिंचाई की जरूरत होती है। बाकी हिमसागर आम की फसल की सिंचाई मिट्टी के प्रकार और जलवायु पर निर्भर होती है। 

किसान भाइयों के अनुसार हल्की लगातार सिंचाई हर फसल के लिए बहुत ही ज्यादा सर्वोत्तम मानी जाती है। दो से तीन के अंतराल पर लगातार सिंचाई करते रहें।

हिमसागर आम की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी

वैसे तो हिमसागर आम की फसल के लिए हर तरह की मिट्टी उपयुक्त हैं। परंतु सबसे उपयुक्त मिट्टी दोमट मिट्टी कही जाती हैं। 

जब आप बीज रोपण करें, तो इस बात का ख्याल रखें। कि जल निकास की व्यवस्था उचित होनी चाहिए। ताकि किसी भी तरह का जलभराव ना हो जिससे कि फसल खराब हो जाए।

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हिमसागर आम के फायदे

हिमसागर आम अपने स्वाद और खुशबू के लिए जाना जाता हैं हिमसागर आम को आमो का राजा भी कहा जाता है। यही कारण है कि लोग इसे खाना बहुत ज्यादा पसंद करते।

  • कभी कभी उल्टा सीधा खाना खा लेने से कब्ज जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है। और यह समस्या बच्चे, बड़े, बूढ़े आदि सभी को होती है। ज्यादा दिन कब्ज की समस्या होना अच्छा नहीं है, इससे भिन्न प्रकार की बीमारियों का जन्म भी हो सकता है। हिमसागर आम में मौजूद विटामिन सी और फाइबर जैसे गुण पाचन शक्ति को मजबूत बनाते हैं। जिससे कब्ज जैसी भयानक समस्या से आप अपने शरीर का बचाव कर सकते हैं।
  • जब गर्मी का मौसम आता है तो खूब तेज धूप और साथ ही साथ भयानक लू चलती हैं। जिसकी वजह से व्यक्तियों को तेज बुखार या फिर सरदर्द जैसी विभिन्न प्रकार की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं। कभी-कभी लू के चपेट में आ जाने से मृत्यु भी हो जाती है। ऐसी स्थिति में आपको कच्चे हिमसागर आम का पना बनाकर सेवन करना चाहिए जिससे आप अपने शरीर का बचाव करें।
  • आंखों की रोशनी समय के साथ कम होती रहती है। परंतु यदि आप रोजाना आम का सेवन करते हैं तो आपकी आंखों की रोशनी बढ़ती है। हिमसागर आम में मौजूद विटामिन ए की भरपूर मात्रा होती है। जिससे हमारी आंखों की रोशनी में और बढ़ोतरी होती है इसीलिए आप लगातार हिमसागर आम का सेवन करें।
  • हड्डियों को मजबूत बनाना बेहद ही जरूरी होता है। परंतु हमारे शरीर को उस प्रकार का आहार नहीं मिल पाता जिस प्रकार से हमारे शरीर को जरूरत होती है। हिमसागर आम में भरपूर मात्रा में आयरन मौजूद होता है, जो हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  • हिमसागर आम में एंटीकैंसर जैसे आवश्यक गुण होते हैं जो विभिन्न विभिन्न प्रकार के कैंसर से शरीर का बचाव करते हैं।
  • हिमसागर आम पथरी के रोगियों के लिए बहुत उपयोगी होता है। क्योंकि इसमें विटामिन बी मौजूद होता हैं जिससे पथरी की समस्या दूर हो जाती है।
  • हिमसागर आम में मौजूद फाइबर से हमारे शरीर का वजन सामान्य रहता है। तथा बालों के लिए भी बहुत ही उपयोगी होता है, हृदय स्वस्थ रहता है।
  • हिमसागर आम में मौजूद एंटी-अस्थमैटिक गुण से दमा जैसे रोगों से भी बचाव होता है।

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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल हिमसागर आम की विशेषताएं पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में हिमसागर आम से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद है। 

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घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

घर पर करें बीजों का उपचार, सस्ती तकनीक से कमाएं अच्छा मुनाफा

एक किसान होने के नाते यह बात तो आप समझते ही हैं कि किसी भी प्रकार की फसल के उत्पादन के लिए सही बीज का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है और यदि बात करें सब्जी उत्पादन की तो इनमें तो बीज का महत्व सबसे ज्यादा होता है। स्वस्थ और उन्नत बीज ही अच्छी सब्जी का उत्पादन कर सकता है, इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा आपको हमेशा सलाह दी जाती है कि बीज को बोने से पहले अनुशंसित कीटनाशी या जीवाणु नाशी बीज का ही इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर किसान भाइयों को बीज के उपचार की भी सलाह दी जाती है।


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आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही कुछ बीज-उपचार करने के तरीके, जिनकी मदद से आप घर पर ही अपने साधारण से बीज को कई रसायनिक पदार्थों से तैयार होने वाले लैब के बीज से भी अच्छा बना सकते है। बीज उपचार करने का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसे स्टोर करना काफी आसान हो जाता है और सस्ता होने के साथ ही कई मृदा जनित रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। यह बात तो किसान भाई जानते ही होंगे कि फसलों में मुख्यतः दो प्रकार के बीज जनित रोग होते है, जिनमें कुछ रोग अंतः जनित होते हैं, जबकि कुछ बीज बाह्य जनित होते है।अंतः जनित रोगों में आलू में लगने वाला अल्टरनेरिया और प्याज में लगने वाली अंगमारी जैसी बीमारियों को गिना जा सकता है। बीज उपचार करने की भौतिक विधियां प्राचीन काल से ही काफी प्रचलित है। इसकी एक साधारण सी विधि यह होती है कि बीज को सूर्य की धूप में गर्म करना चाहिए, जिससे कि उसके भ्रूण में यदि कोई रोग कारक है तो उसे आसानी से नष्ट किया जा सकता है। इस विधि में सबसे पहले पानी में 3 से 4 घंटे तक बीज को भिगोया जाता है और फिर 5 से 6 घंटे तक तेज धूप में रखा जाता है।


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दूसरी साधारण विधि के अंतर्गत गर्म जल की सहायता से बीजों का उपचार किया जाता है। बीजों को पानी में मिलाकर उसे 50 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर 20 से 25 मिनट तक गर्म किया जाता है, जिससे कि उसके रोग नष्ट हो जाते है। इस विधि का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बीज के अंकुरण पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है, जैसे कि यदि आप आलू के बीच को 50 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करते हैं तो इसमें लगने वाला अल्टरनेरिया रोग पूरी तरीके से नष्ट हो सकता है। बीज उपचार की एक और साधारण विधि गरम हवा के द्वारा की जाती है, मुख्यतया टमाटर के बीजों के लिए इसका इस्तेमाल होता है। इस विधि में टमाटर के बीज को 5 से 6 घंटे तक 30 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है, जिससे कि इसमें लगने वाले फाइटोप्थोरा इंफेक्शन का असर कम हो जाता है। इससे अधिक डिग्री सेल्सियस पर गर्म करने पर इस में लगने वाला मोजेक रोग का पूरी तरीके से निपटान किया जा सकता है। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिक विकिरण विधि के द्वारा बीज उपचार करते है, जिसमें अलग-अलग समय पर बीजों के अंदर से पराबैगनी और एक्स किरणों की अलग-अलग तीव्रता गुजारी जाती है। इस विधि का फायदा यह होता है कि इसमें बीज के चारों तरफ एक संरक्षक कवच बन जाता है, जो कि बीज में भविष्य में होने वाले संक्रमण को भी रोकने में सहायता प्रदान करता है।


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इसके अलावा सभी किसान भाई अपने घर पर फफूंदनाशक दवाओं की मदद से मटर, भिंडी, बैंगन और मिर्ची जैसी फलदार सब्जियों की उत्पादकता को बढ़ा सकते है। इसके लिए एक बड़ी बाल्टी में पानी और फफूंदनाशक दवा की उपयुक्त मात्रा मिलाई जाती है, इसे थोड़ी देर घोला जाता है,जिसके बाद इसे मिट्टी के घड़े में डालकर 10 मिनट तक रख दिया जाता है। इस प्रकार तैयार बीजों को निकालकर उन्हें आसानी से खेत में बोया जा सकता है। हाल ही में यह विधि आलू, अदरक और हल्दी जैसी फसलों के लिए भी कारगर साबित हुई है। इसके अलावा फफूंद नाशक दवा की मदद से ही स्लरी विधि के तहत बीज उपचार किया जा सकता है, इस विधि में एक केमिकल कवकनाशी की निर्धारित मात्रा मिलाकर उससे गाढ़ा पेस्ट बनाया जाता है, जिसे बीज की मात्रा के साथ अच्छी तरीके से मिलाया जाता है। इस मिले हुए पेस्ट और बीज के मिश्रण को खेत में आसानी से बोया जा सकता है।


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सभी किसान भाई अपने खेतों में जैविक बीज उपचार का इस्तेमाल भी कर सकते है, इसके लिए एक जैव नियंत्रक जैसे कि एजोटोबेक्टर को 4 से 5 ग्राम मात्रा को अपने बीजों के साथ मिला दिया जाता है, सबसे पहले आपको थोड़ी सी पानी की मात्रा लेनी होगी और उसमें लगभग दो सौ ग्राम कल्चर मिलाकर एक लुगदी तैयार करनी होगी। इस तैयार लुगदी और बोये जाने वाले बीजों को एक त्रिपाल की मदद से अच्छी तरह मिला सकते है और फिर इन्हें किसी पेड़ की ठंडी छाया में सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हम आशा करते है कि हमारे किसान भाइयों को जैविक और रासायनिक विधि से अपने बीजों के उपचार करने के तरीके की जानकारी मिल गई होगी। यह बात आपको ध्यान रखनी होगी कि महंगे बीज खरीदने की तुलना में, बीज उपचार एक कम लागत वाली तकनीक है और इसे आसानी से अपने घर पर भी किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की राय के अनुसार इससे आपकी फ़सल उत्पादन में लगभग 15 से 20% तक मुनाफा हो सकता है।
सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया

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सही लागत-उत्पादन अनुपात के अनुसार सब्ज़ी की खेती

भारत शुरुआत से ही एक कृषि प्रधान देश माना जाता है और यहां पर रहने वाली अधिकतर जनसंख्या का कृषि ही एक प्राथमिक आय का स्रोत है। पिछले कुछ सालों से बढ़ती जनसंख्या की वजह से बाजार में कृषि उत्पादों की बढ़ी हुई मांग, अब किसानों को जमीन पर अधिक दबाव डालने के लिए मजबूर कर रही है। इसी वजह से कृषि की उपज कम हो रही है, जिसे और बढ़ाने के लिए किसान लागत में बढ़ोतरी कर रहें है। यह पूरी पूरी चक्रीय प्रक्रिया आने वाले समय में किसानों के लिए और अधिक आर्थिक दबाव उपलब्ध करवा सकती है। भारत सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य पर अब कृषि उत्पादों में नए वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकों की मदद से लागत को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। धान की तुलना में सब्जी की फसल में, प्रति इकाई क्षेत्र से किसानों को अधिक मुनाफा प्राप्त हो सकता है। वर्तमान समय में प्रचलित सब्जियों की विभिन्न फसल की अवधि के अनुसार, अलग-अलग किस्मों को अपनाकर आय में वृद्धि की जा सकती है। मटर की कुछ प्रचलित किस्म जैसा की काशी उदय और काशी नंदिनी भी किसानों की आय को बढ़ाने में सक्षम साबित हो रही है। सब्जियों के उत्पादन का एक और फायदा यह है कि इनमें धान और दलहनी फसलों की तुलना में खरपतवार और कीट जैसी समस्याएं कम देखने को मिलती है। सब्जियों की नर्सरी को बहुत ही आसानी से लगाया जा सकता है और जलवायुवीय परिवर्तनों के बावजूद अच्छा उत्पादन किया जा सकता है।


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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) के अनुसार भारत की जमीन में उगने वाली सब्जियों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है, जिनमें धीमी वृद्धि वाली सब्जी की फसल और तेज वृद्धि वाली सब्जियों को शामिल किया जाता है। धीमी वृद्धि वाली फसल जैसे कि बैंगन और मिर्च बेहतर खरपतवार नियंत्रण के बाद अच्छा उत्पादन दे सकती है, वहीं तेजी से बढ़ने वाली सब्जी जैसे भिंडी और गोभी वर्ग की सब्जियां बहुत ही कम समय में बेहतर उत्पादन के साथ ही अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकती है।

कैसे करें खरपतवार का बेहतर नियंत्रण ?

सभी प्रकार की सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण एक मुख्य समस्या के रूप में देखने को मिलता है। अलग-अलग सब्जियों की बुवाई के 20 से 50 दिनों के मध्य खरपतवार का नियंत्रण करना अनिवार्य होता है। इसके लिए पलवार लगाकर और कुछ खरपतवार-नासी रासायनिक पदार्थों का छिड़काव कर समय-समय पर निराई गुड़ाई कर नियंत्रण किया जाना संभव है। जैविक खाद का इस्तेमाल, उत्पादन में होने वाली लागत को कम करने के अलावा फसल की वृद्धि दर को भी तेज कर देता है।

कैसे करें बेहतर किस्मों का चुनाव ?

किसी भी सब्जी के लिए बेहतर किस्म के बीज का चुनाव करने के दौरान किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि बीज पूरी तरीके से उपचारित किया हुआ हो या फिर अपने खेत में बोने से पहले बेहतर बीज उपचार करके ही इस्तेमाल करें। इसके अलावा किस्म का विपणन अच्छे मूल्य पर किया जाना चाहिए, वर्तमान में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बीज निर्माता कंपनियां अपने द्वारा तैयार किए गए बीज की संपूर्ण जानकारी पैकेट पर उपलब्ध करवाती है। उस पैकेट को पढ़कर भी किसान भाई पता लगा सकते हैं कि यह बीज कौन से रोगों के प्रति सहनशील है और इसके बीज उपचार के दौरान कौन सी प्रक्रिया का पालन किया गया है। इसके अलावा बाजार में बिकने वाले बीज के साथ ही प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में होने वाले अनुमानित उत्पादकता की जानकारी भी दी जाती है, इस जानकारी से किसान भाई अपने खेत से होने वाली उत्पादकता का पूर्व अंदाजा लगा सकते हैं। ऐसे ही कुछ बेहतर बीजों की किस्मों में लोबिया सब्जी की किस्में काशी चंदन को शामिल किया जाता है, मटर की किस्म काशी नंदिनी और उदय के अलावा भिंडी की किस्म का काशी चमन कम समय में ही अधिक उत्पादकता उपलब्ध करवाती है।

कैसे निर्धारित करें बीज की बुवाई या नर्सरी में तैयार पौध रोपण का सही समय ?

किसान भाइयों को सब्जी उत्पादन में आने वाली लागत को कम करने के लिए बीज की बुवाई का सही समय चुनना अनिवार्य हो जाता है। समय पर बीज की बुवाई करने से कई प्रकार के रोग और कीटों से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है और फसल की वर्द्धि भी सही तरीके से हो जाती है, जिससे जमीन में उपलब्ध पोषक तत्वों का इस्तेमाल फसल के द्वारा ही कर लिया जाता है और खरपतवार का नियंत्रण आसानी से हो जाता है। कृषि वैज्ञानिकों की राय में मटर की बुवाई नवंबर के शुरुआती सप्ताह में की जानी चाहिए, मिर्च और बैंगन जुलाई के पहले सप्ताह में और टमाटर सितंबर के पहले सप्ताह में बोये जाने चाहिए।

कैसे करें बीज का बेहतर उपचार ?

खेत में अंतिम जुताई से पहले बीज का बेहतर उपचार करना अनिवार्य है, वर्तमान में कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ जैसे कि थायो-मेथोक्जम ड्रेसिंग पाउडर से बीज का उपचार करने पर उसमें कीटों का प्रभाव कम होता है और अगले 1 से 2 महीने तक बीज को सुरक्षित रखा जा सकता है।


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कैसे करें सब्जी उत्पादन में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल ?

वर्तमान में कई वैज्ञानिक अध्ययनों से नई प्रकार की तकनीक सामने आई है, जो कि निम्न प्रकार है :-
  • ट्रैप फसलों (Trap crop) का इस्तेमाल करना :

इन फसलों को 'प्रपंच फसलों' के नाम से भी जाना जाता है।

मुख्यतः इनका इस्तेमाल सब्जी की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों से बचाने के लिए किया जाता है।

पिछले 10 वर्षों से कृषि क्षेत्र में सक्रिय कृषि वैज्ञानिक 'नीरज सिंह' के अनुसार यदि कोई किसान गोभी की सब्जी उगाना चाहता है, तो गोभी की 25 से 30 पंक्तियों के बाद, अगली दो से तीन पंक्तियों में सरसों का रोपण कर देना चाहिए, जिससे उस समय गोभी की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले डायमंडबैक मॉथ और माहूँ जैसे कीट सरसों पर आकर्षित हो जाते हैं, इससे गोभी की फसल को इन कीटों के आक्रमण से बचाया जा सकता है।

इसके अलावा टमाटर की फसल के दौरान गेंदे की फसल का इस्तेमाल भी ट्रैप फसल के रूप में किया जा सकता है।

  • फेरोमोन ट्रैप (pheromone trap) का इस्तेमाल :

इसका इस्तेमाल मुख्यतः सब्जियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को पकड़ने में किया जाता है।

गोभी और कद्दू की फसलों में लगने वाला कीट 'फल मक्खी' को फेरोमोन ट्रैप की मदद से आसानी से पकड़ा जा सकता है।

इसके अलावा फल छेदक और कई प्रकार के कैटरपिलर के लार्वा को पकड़ने में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है।



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हाल ही में बेंगुलुरू की कृषि क्षेत्र से जुड़ी एक स्टार्टअप कम्पनी के द्वारा तैयार की गई चिपकने वाली स्टिकी ट्रैप (या insect glue trap) को भी बाजार में बेचा जा रहा है, जो आने वाले समय में किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकती है। आशा करते हैं Merikheti.com के द्वारा उपलब्ध करवाई गई यह जानकारी बदलते वक्त के साथ बढ़ती महंगाई और खाद्य उत्पादों की मांग की आपूर्ति सुनिश्चित करने में किसान भाइयों की मदद करने के अलावा उन्हें मुनाफे की राह पर भी ले जाने में भी सहायक होगी।