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बैंगन की खेती

जुलाई माह में बैगन की खेती करने पर किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा

जुलाई माह में बैगन की खेती करने पर किसानों को मिलेगा अच्छा मुनाफा

यदि किसान चाहें, तो नर्सरी से पौधे खरीद कर अगले महीने से बैंगन की खेती शुरू कर सकते हैं। पौधे लगाने के 70 से 80 दिन बाद बैंगन की फसल तैयार हो जाएगी। बैंगन एक ऐसी फसल है, जो कि पूरे सालभर बाजार में मिलती है। कोई इसकी सब्जी का सेवन करना पसंद करता है, तो किसी को बैगन का भरता अच्छा लगता है। बैंगन में विभिन्न प्रकार के विटामिन और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। बैंगन का सेवन करने से एनीमिया जैसे रोग से निजात मिलती है। साथ ही, इसका सेवन करने से वजन भी घट जाता है। यही कारण है, कि बैगन की बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है। ऐसी स्थिति में अगर किसान भाई बैंगन की खेती करते हैं, तो अच्छी आमदनी कर सकते हैं।

इन राज्यों में जुलाई से दिसंबर तक बैगन की रोपाई की जाती है

बैंगन उन फसलों में से एक फसल है, जिसका उत्पादन पूरे देश में साल भर पूरे देश में किया जाता है। बतादें, कि हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की बात की जाए तो इन राज्यों में बैंगन की फसल जुलाई से लगाकर दिसंबर तक लगाई जाती हैं। इससे पूरे वर्ष भर खेत से बैंगन की पैदावार होती है। आप एक एकड़ भूमि में 3500 बैंगन के पौधे लगा सकते हैं। विशेष बात यह है, कि बैंगन के पौधों की रोपाई सदैव 6×3 फीट के फासले पर ही करें। इससे बैंगन के पौधों को विकास करने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है। साथ ही, इससे इसकी कटाई भी बड़ी सुगमता से होती है। ये भी पढ़े: सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

बैगन की फसल तुड़ाई के लिए कितने दिन में तैयार हो जाती है

यदि उत्तर और मध्य भारत के किसान चाहें, तो नर्सरी से पौधे खरीद कर अगले माह से बैंगन की खेती आरंभ कर सकते हैं। पौध रोपण के 70 से 80 दिन उपरांत बैंगन की फसल तैयार हो जाएगी। मतलब कि आप बैंगन की तुड़ाई कर सकते हैं। बैंगन की विशेष बात यह है, कि यह बहुत सारे महीनों तक निरंतर उत्पादन देता है। इससे किसान के घर में सब्जी की कभी कोई कमी नहीं होती है। यदि आपने एक एकड़ जमीन में बैंगन की खेती की है, तो आपको पूरे सीजन में 40 टन तक उत्पादन मिलेगा।

बैगन की खेती करने पर कितना खर्च और कितना मुनाफा होगा

यदि आप एक हेक्टेयर भूमि में बैगन की खेती करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको 2 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ेंगा। साथ ही, पूरे सीजन इसकी देखभाल करने पर भी 2 लाख रुपये की लागत आ जाऐगी। मतलब कि आपको वर्षभर में बैंगन की खेती पर 4 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ेगा। परंतु, इससे आप एक वर्ष में 100 टन तक उत्पादन अर्जित कर सकते हैं। यदि आप 10 रुपये किलो के मुताबिक भी मंडी में बैंगन बेचते हैं, तो 100 टन बैंगन का विक्रय करने पर आपको 10 लाख रुपये की आमदनी होगी। अगर 4 लाख रुपये खर्च निकाल देते हैं, तब भी आपको 6 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा प्राप्त होगा।
किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

किसान निरंजन सरकुंडे ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से बैगन की खेती कर कमाए लाखों

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बैंगन एक ऐसी सब्जी है जिसकी हमेशा मांग बनी रहती है। इसका भाव सदैव 40 से 50 रुपये किलो के समीप रहता है। एक बीघे भूमि में बैंगन का उत्पादन करने पर 20 हजार रुपये के आसपास लागत आएगी। दरअसल, लोगों का मानना है कि नकदी फसलों की खेती में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं है। विशेष रूप से हरी सब्जियों के ऊपर मौसम की मार सबसे ज्यादा पड़ती है। वह इसलिए कि हरी सब्जियां सामान्य से अधिक बारिश, गर्मी एवं ठंड सहन नहीं कर पाती हैं। इस वजह से ज्यादा लू बहने, पाला पड़ने एवं अत्यधिक बारिश होने पर बागवानी फसलों को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचती है। हालाँकि, बेहतर योजना और आधुनिक ढ़ंग से सब्जियां उगाई जाए, तो इससे ज्यादा मुनाफा किसी दूसरी फसल की खेती के अंदर नहीं हैं। यही कारण है, कि अब महाराष्ट्र में किसान पारंपरिक फसलों के स्थान पर सब्जियों की खेती में अधिक परिश्रम कर रहे हैं।

किसान निरंजन को कितने लाख की आय अर्जित हुई है

आज हम आपको एक ऐसे किसान के विषय में जानकारी देंगे, जिन्होंने सफलता की नवीन कहानी रची है। बतादें, कि इस किसान का नाम निरंजन सरकुंडे है और यह महाराष्ट्र के नांदेड जनपद के मूल निवासी हैं। सरकुंडे हदगांव तालुका मौजूद निज गांव जांभाला में पहले पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, वर्तमान में वह बैंगन की खेती कर रहे हैं, जिससे उनको काफी अच्छी आमदनी हो रही है। मुख्य बात यह है, कि निरंजन सरकुंडे ने केवल डेढ़ बीघा भूमि में ही बैंगन लगाया है। इससे उन्हें चार लाख रुपये की आय अर्जित हुई है।

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निरंजन को देख अन्य पड़ोसी गांव के किसान भी खेती करने लगे

निरंजन का कहना है, कि उनके समीप 5 एकड़ जमीन है, जिस पर वह पूर्व में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। परंतु, इससे उनके घर का खर्चा नहीं चल रहा था। ऐसे में उन्होंने डेढ़ बीघे खेत में बैंगन की खेती चालू कर दी। इसके पश्चात उनकी तकदीर बदल गई। वह प्रतिदिन बैंगन बेचकर मोटी आमदनी करने लगे। उनको देख प्रेरित होकर उनके पड़ोसी गांव ठाकरवाड़ी के किसानों ने भी सब्जी का उत्पादन कर दिया। वर्तमान मे सभी किसान सब्जी की पैदावार कर बेहतरीन आमदनी कर रहे हैं।

निरंजन सरकुंडे ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं

सरकुंड के गांव में सिंचाई हेतु पानी की काफी किल्लत है। इस वजह से वह ड्रिप इरिगेशन विधि से फसलों की सिंचाई करते हैं। उन्होंने बताया है, कि रोपाई करने के दो माह के उपरांत बैंगन की पैदावार हो जाती है। वह उमरखेड़ एवं भोकर के समीपवर्ती बाजारों में बैंगन को बेचा करते हैं। इस डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती से निरंजन सरकुंडे को तकरीबन 3 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ है। वहीं, डेढ़ बीघे भूमि में बैंगन की खेती करने पर 30 हजार रुपये की लागत आई थी। उनकी मानें तो फिलहाल वह धीरे- धीरे बैंगन का रकबा बढ़ाएंगे। पारंपरिक खेती की बजाए आधुनिक ढ़ंग से बागवानी फसलों का उत्पादन करना काफी फायदेमंद है।
मार्च-अप्रैल में की जाने वाली बैंगन की खेती में लगने वाले कीट व रोग और उनकी दवा

मार्च-अप्रैल में की जाने वाली बैंगन की खेती में लगने वाले कीट व रोग और उनकी दवा

मार्च माह में किसान भाई बैंगन की खेती कर अच्छा-खासा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। मार्च में बागवानी करने की सोच रहे किसानों के लिए बैगन की खेती एक लाभकारी विकल्प है। पौधों में विभिन्न प्रकार के कीड़ों एवं रोगों का प्रकोप रहता है।

इन कीटों से बैंगन की फसल को काफी ज्यादा हानि होती है। पौधों की सही ढ़ंग से देखभाल कर हम अपने पौधों को इनसे संरक्षित कर सकते हैं। आज हम इस लेख में आपको बताऐंगे बैगन में लगने वाले कीट एवं रोगों व उनकी रोकथाम के बारे में। 

टहनी व फल छिद्रक

किसानों के लिए बैंगन की फसल में टहनी और फल छिद्रक की समस्या काफी बड़ी चुनौती है। इस पर काबू पाने के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों का सहयोग लेते हैं। लेकिन, बहुत बारी कीटों को नियंत्रित करना काफी मुश्किल हो जाता है। 

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इसकी वजह यह है, कि कीट फल या टहनी के भीतर होते हैं और कीटनाशक सीधे कीट तक नहीं पहुँच पाता है। इसका अत्यधिक संक्रमण होने की स्थिति में यह बैंगन की फसल को कई बार पूर्णतय बर्बाद कर देता है। आप इसके लिए Yodha Super का उपयोग कर सकते हैं।

पत्ते खाने वाले झींगुर

पीले रंग के कीट और शिशु निरंतर बैंगन की फसल में पत्तों और पौधे के कोमल हिस्सों को खाते हैं। इन कीटों के भारी संख्या में उत्पन्न होने पर काफी गंभीर  क्षति पहुंचाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पत्ते पूरी तरह से कंकाल में बदल जाते हैं तथा केवल शिराओं का जाल ही दिखता है। आप इसके लिए Yodha Super का इस्तेमाल कर सकते है।

लीफ हापर

नवजात तथा व्यस्क दोनों ही बैंगन की फसल में पत्तों की नीचली सतह से रस चूस लेते हैं। संक्रमित पत्ता किनारों समेत ऊपर की ओर मुड जाता है, पीला पड़ जाता है और जले जैसे धब्बे दिखने लग जाते हैं। 

इससे रोग भी संचारित होते हैं, जैसे माइकोप्लास्मा रोग और मोजेक जैसे वायरस रोग इस प्रकोप के कारण फलों की स्थिति बहुत बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि अत्यंत लाभदायक है।

लीफ रोलर

केटरपिलर बैंगन की फसल में पत्तों को मोड़ देते हैं। साथ ही, उनके अंदर रहते हुए क्लोरोफिल को खाकर जीवित रहते हैं। मुड़े हुए पत्ते मुरझा कर सूख जाते हैं। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का उपयोग कर सकते है, जो कि काफी फायदेमंद है।

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लाल घुन मकड़ी

घुन बैंगन की फसल का कीट है, कम आपेक्षित नमी में इनकी संख्या काफी बढ़ जाती है। पत्तों के निचले हिस्सों में सफेद रेशमी जालों से ढकी इनकी कालोनियां होती हैं, जिनमें यह घुन कई चरणों में पाए जाते हैं। 

यह शिशु व व्यस्क कोशिकाओं से रस चूसते हैं, जिससे पत्तों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं। इनकी चपेट में आए पत्ते बहुत ही विचित्र हो जाते हैं एवं भूरे रंग में परिवर्तित होकर झड़ जाते हैं। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का उपयोग कर सकते हैं, जो कि अत्यंत लाभदायक है।

सफेद कीट

सफेद खटमल नवजात तथा व्यस्क पत्तों, कोमल टहनियों और फलों से रस चूस लेते हैं। पत्तों में वायरस जैसे ही मुड़ने के विशेष लक्षण दिखते हैं। इन खटमलों द्वारा छिपाई गयी मधुरस की बूंदों पर काली मैली भारी फफूंद लग जाती है। अगर खिले हुए फूलों पर संक्रमण होता है, तो फलों के संग्रह पर भी असर पड़ता है। 

फल प्रभावित होते ही पूरी तरह से कीटों से ढक जाते हैं। इस प्रभाव की वजह से या तो फल टूट कर गिर जाता है या सूखी व मुरझाई स्थिति में टहनी से लटका रहता है। इसके लिए आप Sansui (Diafenthiuron 50% WP) का प्रयोग कर सकते हैं, जो कि काफी फायदेमंद है।

मृदा में नमी ज्यादा हो जाना

यह रोग पौधों को नर्सरी में बेहद ज्यादा क्षति पहुंचाता है। मृदा की उच्च नमी और मध्य तापमान के साथ, विशेषकर वर्षा ऋतु, इस रोग को प्रोत्साहन देती है। यह दो प्रकार से होता है, उद्भव से पहले तथा उद्भव के बाद। इसके लिए आप Ribban Plus (Captan 50% WP) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि काफी फायदेमंद है।

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फोमोप्सिस हानि का होना 

यह एक गंभीर रोग है, जो पत्तों तथा फलों को काफी प्रभावित करता है। कार्यमंदन के लक्षणों की वजह से कवक नर्सरी में ही अंकुरों को प्रभावित कर देती है। अंकुरों का संक्रमण, कार्यमंदन के लक्षणों की वजह बनता है। जब पत्ते प्रभावित होते हैं, तब छोटे गोल धब्बे पड़ जाते है, जो अनियमित काले किनारों के साथ-साथ धुमैले से भूरे रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।

डंठल और तने पर भी घावों का विकास हो सकता है, जिसके चलते पौधे के प्रभावित हिस्सों को क्षति पहुँचती है। प्रभावित पौधों पर लक्षण पल भर में आ जाते हैं, जैसे धंसे निष्क्रिय व धुंधले चिन्ह जो कुछ समय बाद में विलय होकर गले हुए क्षेत्र बनाते हैं। कई संक्रमित फलों का गुद्दा सड़ जाता है। 

लीफ स्पॉट

बिगड़े हुए हरे रंग के घाव, कोणीय से अनियमित आकार, बाद में धूमैला-भूरा हो जाना, इस रोग के विशिष्ट चिन्ह हैं। कई संक्रमित पत्ते अपरिपक्व स्थिति में ही नीचे गिर जाते हैं। नतीजतन बैंगन की फसल में फलों की पैदावार कम हो जाती है। 

पत्तों के अल्टरनारिया धब्बे

अल्टरनारिया रोग के चलते गाढे छल्लों के साथ पत्तों पर विशेष धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे अधिकांश अनियमित होते हैं और इकठ्ठे होकर पत्ते का काफी बड़ा भाग ढक देते हैं। वहीं, गंभीर रूप से प्रभावित पत्ते नीचे गिर जाते हैं। प्रभावित फलों पर ये लक्षण बड़े गहरे छिपे धब्बों के रूप में होते हैं। संक्रमित फल पीले पड़ जाते हैं तथा पकने से पहले ही टूट के गिर जाते हैं।

फल सडन 

बैंगन की फसल में अत्यधिक नमी के चलते इस रोग का विकास होता है। पहले फल के ऊपर एक छोटा पानी से भरा जख्म एक लक्षण के तौर पर उभरता है। जो कि बाद में काफी ज्यादा बड़ा हो जाता है। 

संक्रमित फलों का छिलका भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है तथा सफेद रुई जैसी पैदावार का विकास हो जाता है। इसके लिए आप Ribban Plus (Captan 50% WP) का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि अत्यंत फायदेमंद है।

जायद में बैंगन की इन किस्मों से मिलेगा तगड़ा मुनाफा

जायद में बैंगन की इन किस्मों से मिलेगा तगड़ा मुनाफा

रबी की फसलों की कटाई के बाद अब जायद का सीजन शुरू हो गया है। अधिकांश किसान बैंगन की खेती जायद सीजन में करते हैं। क्योंकि, यह एक ग्रीष्मकालीन नकदी फसल है। 

बैंगन की खेती मिश्रित फसल के रूप में भी की जाती है। बैंगन शुष्क और गर्म जलवायु में बेहतरीन रूप से बढ़ता है। बैंगन की खेती से मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

लेकिन, इसके लिए आपको बैंगन की बेहतरीन किस्मों को जान लेना चाहिए। इसके बाद आप बैंगन की खेती (Brinjal Farming) कर काफी मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। 

बैंगन की उन्नत किस्में निम्नलिखित हैं

बैंगन की उन्नत किस्में जैसे कि- पूसा क्लस्टर, पूसा क्रांति, पंजाब जामुनी गोला, नरेंद्र बागन-1, आजाद क्रांति, पंत ऋतुराज, पंत सम्राट, टी-3, पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-9, विजय हाइब्रिड, पूसा पर्पिल लौंग आदि प्रमुख हैं।

बैंगन की खेती कब और कैसे की जाती है

ग्रीष्मकालीन बैंगन की खेती करने के लिए सबसे पहले बेहतर जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा उपयुक्त है। मिट्टी का पी.एच मान 6 से 7 के बीच सही रहता है। 

किसान भाई ग्रीष्मकालीन बैंगन के लिए नर्सरी में बीज की बुवाई करें। ग्रीष्मकालीन बैंगन में खाद और उर्वरक की मात्रा प्रजाति, स्थानीय वातारण और मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है।

बेहतरीन फसल के लिए 15-20 टन सड़ी गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय और पोषक तत्वों के तोर पर रोपाई से पूर्व 60 किग्रा फॉस्फोरस, 60 किग्रा पोटाश और 150 किग्रा नाइट्रोजन की आधी मात्रा आखिरी जुलाई के वक्त मिट्टी में मिला दें। 

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साथ ही, शेष आधी नाइट्रोजन की मात्रा को फूल आने के दौरान प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। क्यारियों में लंबे फल वाली प्रजातियों के लिए 70-75 सेमी और गोल फल वाली प्रजातियों के लिए 90 सेमी के फासले पर पौध रोपण करें। एक हेक्टेयर भूमि में फसल रोपण के लिए 250-300 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

इस तरह करें खरपतवार पर नियंत्रण

आईसीएआर की रिपोर्ट के अनुसार, खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन या स्टाम्प नामक खरपतवारनाशी की 3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से पौध रोपाई से पहले उपयोग करें। 

इस बात का विशेष ख्याल रखें कि छिड़काव से पूर्व भूमि में नमी होनी चाहिए। निराई और गुड़ाई द्वारा भी खेत में खरपतवार की रोकथाम करनी संभव है। फसल की आवश्यकता के अनुरूप ही खेत में सिंचाई का प्रबंध करें।

तनाछेदक कीटों से बचाना जरूरी

तनाछेदक कीट की सूंडी पौधों के प्ररोह को नुकसान करती है और बाद में मुख्य तने में घुस जाती है। छोटे ग्रसित पौधे मुरझाकर सूख जाते हैं। बड़े पौधे मरते नहीं, ये बौने रह जाते हैं और इनमें फल कम लगते हैं।

प्ररोह व फलछेदक कीट से बचाव

प्ररोह व फलछेदक कीट की सूंडी पौधे के प्ररोह व फल को काफी हानि पहुंचाती है। ग्रसित प्ररोह मुरझाकर सूख जाते हैं। फलों में सूंडियां टेढ़ी-मेढ़ी सुरंगे बनाती हैं। 

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फल का ग्रसित हिस्सा काला पड़ जाता है या लगते ही नहीं। तनाछेदक, प्ररोह व फलछेदक के नियंत्रण के लिए रेटून फसल न लें, इसमें फलछेदक का प्रकोप काफी ज्यादा होता है। ग्रसित प्ररोहों व फलों को निकालकर मृदा के अंदर दबा दें।

फलछेदक की निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं। नीम बीज अर्क (5 फीसदी) या बी.टी. 1 ग्राम प्रति लीटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी 1 मिली प्रति 4 लीटर या कार्बेरिल, 50 डब्ल्यू.पी 2 ग्राम प्रति लीटर या डेल्टमेथ्रिन 1 मिली प्रति लीटर का फूल आने से पहले इस्तेमाल करें।

मई-जून में करें इस बैगन की खेती मिलेगा कम समय में मोटा मुनाफा

मई-जून में करें इस बैगन की खेती मिलेगा कम समय में मोटा मुनाफा

रबी सीजन की गेंहू आदि फसलों की कटाई का समय चल रहा है। किसान अब इसके बाद जायद की विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटेंगे। इसलिए आज हम इस सीजन में की जाने वाली बैगन की खेती की जानकारी प्रदान करेंगे। 

भारत में अधिकांश किसान भाई केवल नीले, गुलाबी और हरे रंग के बैगनों को ही जानते हैं । परंतु, क्या आपने कभी दूध की भांति श्वेत यानी सफेद बैगन के विषय में भी सुना है। 

सफेद बैंगन दिखने में पूर्णतय अंडे जैसा नजर आता है। वर्तमान में इस बैगन की बाजार में मांग बढ़ रही है। भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी सफेद बैंगन की मांग में काफी उछाल आ रहा है। 

बैंगन की यह एक ऐसी किस्म है, जिसकी खेती करके किसान भाई बंपर कमाई कर सकते हैं। किसान भाई इसका हर मौसम में सालभर उत्पादन कर सकते हैं। 

सफेद बैगन की खेती से कम समय में मोटी आय 

बैंगन की इस किस्म की खेती के लिए सबसे बेहतरीन वक्त फरवरी और मार्च को माना जाता है। किसान फरवरी के समापन से लेकर मार्च की शुरुआत तक इसकी बुवाई कर सकते हैं।

हालांकि, भारत के अंदर बहुत सारे ऐसे इलाके भी हैं, जहां सफेद बैंगन की बुवाई दिसंबर माह में की जाती है। जून-जुलाई के महीनों में सफेद बैंगन पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं। 

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इनको आसानी से बाजार में बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है। किसानों के लिए कम समय में अधिक आमदनी के लिए सफेद बैंगन की खेती एक शानदार विकल्प है।

किसान भाई इस तरह करें सफेद बैंगन की बुवाई

बैंगन की इस प्रजाति की बुवाई करने से पूर्व आपको क्यारी तैयार कर लेनी चाहिए। आपको तकरीबन डेढ़ मीटर लंबी और 3 मीटर चौड़ी क्यारी को बनाकर तैयार कर लेना चाहिए। 

इसके बाद आपको मिट्टी को भुरभुरा कर लेना है। अब आपको हर एक क्यारी में तकरीबन 200 से 250 ग्राम डीएपी को डाल देना है। क्यारी में डीएपी डालने के पश्चात एक कतार खींचकर इसमें सफेद बैंगन के बीजों की बुवाई करनी है। इसके बाद कुछ ही दिनों में आपको पौधे निकलते हुए नजर आने लगेंगे।

बैगन का सर्वाधिक उत्पादन कहाँ होता है ?

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत में सफेद बैंगन की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे बहुत सारे राज्यों में की जाती है। परंतु, इसकी सर्वाधिक खेती जम्मू में देखने को मिलती है। 

भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों में सफेद बैंगन की खेती के लिए अधिकाँश किसान जम्मू से ही बीज लाकर इसकी खेती करते हैं। जम्मू के अतिरिक्त देश के बाकी राज्यों में सफेद बैंगन की खेती काफी कम होती है। 

बतादें, कि बैगनी या काले रंग के बैंगने से ज्यादा पौष्टिक तत्व सफेद बैंगन में विघमान होते हैं। बाजारों में इसकी काफी मांग बढ़ने के पीछे लगता है यही कारण है। 

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

जानें इंफोसिस की नौकरी छोड़ खेती करने वाले किसान के बारे में

जानें इंफोसिस की नौकरी छोड़ खेती करने वाले किसान के बारे में

आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं, कि किसान वेंकटसामी विग्नेश को पूर्व से ही खेती का कोई अनुभव नहीं था। इस वजह से घर वालों ने उनके नौकरी छोड़ने के फैसले का विरोध किया था। प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की तमन्ना रहती है, कि एक दिन उसको भी नामचीन आईटी कंपनी इंफोसिस में कार्य करने का अवसर मिले। हालाँकि, आज हम आपको ऐसे व्यक्ति से मिलवाने जा रहे हैं, जिसने खेती करने के लिए इंफोसिस की नौकरी को त्याग दिया। दरअसल, उनके इस कदम से नाखुश परिजनों ने उनका खुलकर विरोध किया। इसके बावजूद भी वह अपने निर्णय पर अड़े रहे और जापान पहुँच कर बैगन की खेती चालू कर दी। न्यूज 18 हिन्दी की खबरों के अनुसार, इस व्यक्ति का नाम वेंकटसामी विग्नेश है जो कि तमिलनाडु के थूथुकुडी जनपद स्थित कोविलपट्टी के निवासी हैं। उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ है, इस वजह से उनका लगाव बचपन से ही खेती के प्रति अधिक रहा था। परंतु, इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूर्ण करने के उपरांत उनकी इंफोसिस जैसी दिग्गज कंपनी में नौकरी लग गई। जहां उनका वेतन भी काफी अच्छा-खासा था। इसके चलते साल 2020 में लॉकडाउन लगने के उपरांत वह घर वापिस आ गए। घर आने के उपरांत उन्होंने इंफोसिस की नौकरी छोड़ दी एवं खेती करने का निर्णय लिया।

कम जमीन से भी ज्यादा पैदावार कैसे मिलती है

मुख्य बात यह है, कि वेंकटसामी विग्नेश को पूर्व से ही खेती का कोई अनुभव नहीं था। इस वजह से घर वालों ने भी नौकरी छोड़ने पर उनका खूब विरोध किया था। हालाँकि, वह किसी की कोई बात नहीं माने और नौकरी त्याग कर खेती करने के लिए जापान चले गए। वह जापान में आधुनिक तकनीक से बैगन की खेती कर रहे हैं। साथ ही, उनको बैगन की खेती से मोटी आमदनी भी हो रही है, इससे उनके परिवार वाले भी अब प्रशन्न हैं। विग्नेश के मुताबिक, जापान में खेती लायक जमीन काफी कम है। इस वजह से यहां पर किसान वैज्ञानिक विधि से खेती किया करते हैं। यही कारण है, जो वहां कम जमीन में भी अत्यधिक उत्पादन प्राप्त होता है।

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भारत के शिक्षित युवा किसानों को खेती-किसानी की नौकरी करने ले जा रहा है जापान

जापान में भारत की तुलना में खेती करना बेहद आसान है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि वेंकटसामी विग्नेश जापान में जिस स्थान पर कृषि कर रहे हैं, वहां उनको निःशुल्क रहने की व्यवस्था मुहैय्या कराई गई है। उन्होंने बताया है, कि जितनी धनराशि वह नौकरी के माध्यम से कमाते थे, फिलहाल उससे दोगुना आमदनी वह करते हैं। बतादें, कि विग्नेश जापान में फसल की देखरेख करने का कार्य करते हैं। साथ ही, फसल कटाई के उपरांत प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग का कार्य भी वे देखते हैं। विग्नेश के बताने के अनुसार, जापान में खेती-किसानी करना भारत की तुलना में काफी ज्यादा आसान होता है। यदि भारत में भी किसान जापान की भांति ही तकनीकी आधारित खेती करते हैं, तो उनकी आमदनी बढ़ जाएगी। इसके लिए सरकार को पहल करने की अत्यंत आवश्यकता है।