विदेशों तक के किसान संगठनों ने उनके अद्भुत कार्य का दौरा किया है
किसान गुरसिमरन की सफलता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है, कि पीएयू लुधियाना से सेवानिवृत्त डाॅ. मालविंदर सिंह मल्ली के नेतृत्व में ग्लोबल फोकस प्रोग्राम के अंतर्गत आठ देशों (यूएसए, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी, न्यूजीलैंड, स्विटजरलैंड आदि) के बोरलॉग फार्मर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने किसान गुरसिमरन सिंह के अनूठे कार्यों का दौरा किया।
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किसान गुरसिमरन 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं
वह पारंपरिक फल चक्र से बाहर निकलकर जैतून, चीनी फल लोगान, नींबू, अमरूद, काले और नीले आम, जामुन, अमेरिकी एवोकैडो और अंजीर के साथ-साथ एल्फांजो, ब्लैक स्टोन, चोसा, रामकेला और बारामासी जैसे 20 तरह के फलों का उत्पादन करते हैं।
किसान गुरसिमरन ने पंजाब में प्रथम बार सौ फल के पौधे लगाकर एक नई पहल शुरु की है। इसके अतिरिक्त युवा किसान ने जैविक मूंगफली, माह, चना, हल्दी, गन्ना, ज्वार,बासमती, रागी, सौंफ, बाजरा, देसी और पीली सरसों आदि की खेती कर स्वयं और अपने परिवार को पारंपरिक फसलों के चक्र से बाहर निकाला है।
गुरसिमरन की इस नई सोच की वजह से जिले के किसानों ने भी अपने आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाया है। साथ ही, लोगों को पारंपरिक को छोड़ नई कार्यविधि से खेती करने पर आमंत्रित किया है।
अगर किसान धैर्यपूर्वक महोगनी की खेती करे तो वह महोगनी के उत्पादन से करोडों की आमदनी कर सकता है। बतादें, कि महोगनी के इस पेड़ के लकड़ी, पत्तियां व बीज से लेकर छाल तक काफी अच्छे भाव पर बेचे जाते हैं। परंतु, इस पेड़ को तैयार करने में लगभग 12 वर्ष का समय लग जाता है। अगर हम इसके बीज और लकड़ी की कीमत पर नजर ड़ालें तो इसका बीज 1,000 रुपये किलो वहीं लकड़ी 2000-2200 रुपये क्यूबिक फीट के भाव से बिकती है। साथ ही, इस महोगनी पेड़ के औषधीय गुणों वाली फूल, पत्ती और छाल भी काफी महँगे भावों पर बेची जाती है। इसकी खेती से तकरीबन 1 करोड़ तक की आमदनी की जा सकती है।
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नीम की खेती
नीम के औषधीय गुणों की बात करें तो यह कलयुग की संजीवनी के समान हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है, कि नीम प्रत्येक गली, मौहल्ले में देखने को मिल जाती है। परंतु, नीम की गुणवत्ता एवं इसके लाभ को जानने के बाद भी लोग इसका उपयोग नहीं करते हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि एंटी-बैक्टीरियल एवं एंटीसेप्टिक, गुणों से युक्त निबौरी, छाल, लकड़ी और नीम की पत्तियों से बनते हैं। जिनको बाजार में काफी ज्यादा कीमत पर बेचा जाता है। इसकी विशेषताओं को ध्यान में रखके लोग मालाबार नीम की खेती करने में रुचि दिखा रहे हैं।
दालचीनी की खेती
अगर हम दालचीनी की बात करें तो रसोई के सर्वाधिक पंसदीदा मसालों में आने वाली दालचीनी अपने आप में एक औषधी है। दालचीनी पेड़ की छाल को मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारत में दालचीनी का उत्पादन बड़े स्तर पर किया जा रहा है। यहां इससे सौंदर्य और स्वास्थ्य उत्पाद के साथ तेल निकाला जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दालचीनी का व्यवसाय करोड़ों रुपए का है।
आम की खेती
आम के मीठे स्वाद को तो सब जानते हैं, सबने इसका स्वाद भी खूब चखा होगा। परंतु, क्या आपको यह पता है, कि इसकी पत्ती एवं लकड़ी की भी बाजार में काफी मांग रहती है। आम की लकड़ी से समस्त बैक्टीरिया दूर भाग जाते हैं। भारत में हवन पूजा यानी शुभ कार्यों में आम के पत्ते एवं लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इसकी लकड़ी बैक्टीरिया नाशक है। यही कारण है, कि पूरे वर्ष इसकी मांग रहती है।
अरबी की फसल के लिए मिट्टी, जलवायु और सही तापमान की जानकारी
किसी भी फसल की तरह अरबी की खेती करते समय भी उपजाऊ मिट्टी का होना अनिवार्य है और साथ ही यह एक कंद फसल है इसलिए भूमि में पानी की निकासी अच्छी तरह से होना आवश्यक है.
बलुई दोमट मिट्टी इस फसल के लिए एकदम उपयुक्त मानी गई है और इसकी खेती करते समय भूमि का पीएच 5.5 से 7 के मध्य होना चाहिए. उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को अरबी की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है.
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वर्षा ऋतु के समय और गर्मियों में दोनों ही वातावरण में यह फसल उगती है लेकिन एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि बहुत ज्यादा गर्मी और बहुत ज्यादा सर्दी इस फसल के लिए हानिकारक हो सकती है. सर्दियों में जब पाला पड़ने लगता है तो यह फसल के विकास को बाधित कर सकता है. अरबी की फसल लगाते समय ज्यादा से ज्यादा तापमान 35 डिग्री और कम से कम तापमान 20 डिग्री होना अनिवार्य है. इससे अधिक और कम तापमान फसल को नष्ट कर सकता है.
अरबी की कुछ उन्नत किस्में
अरबी की अलग-अलग किस्म आपको बाजार में देखने को मिल जाती हैं जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार से हैं;
सफेद गौरैया
एक बार फसल की रोपाई करने के बाद लगभग 190 दिन के बाद यह किस्म बनकर तैयार हो जाती है. इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि इससे निकलने वाला कंद खुजली से मुक्त होता है और साथ ही प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 180 क्विंटल तक फसल की पैदावार इस किस्म के जरिए की जा सकती है.
पंचमुखी
गोरैया किस्म की तरह ही पंचमुखी किस्म भी लगभग 180 से 200 दिन के बीच में पक कर तैयार हो जाती है. इससे निकलने वाला पौधा पांच मुखी कर देता है इसीलिए इसे पंचमुखी फसल का नाम दिया गया है. यह किस्मत अच्छी खासी पैदावार देती है और प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसमें 200 से 250 क्विंटल तक फसल का उत्पादन किया जा सकता है.
मुक्ताकेशी
बाकी किस्म के मुकाबले यह किस्मत जल्दी बन कर तैयार हो जाती है. इसमें पौधे लगभग 160 दिन में बनकर तैयार हो जाते हैं और इस पौधे में पत्तियों का आकार बाकियों के मुकाबले थोड़ा छोटा रहता है. उत्पादन की बात की जाए तो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 200 क्विंटल तक अरबी इस किस्म से उगाई जा सकती है.
इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि यह बाकी किस्म के मुकाबले जल्दी बन कर तैयार हो जाती है. केवल 4 महीने में ही बनकर तैयार होने वाली इस फसल से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 280 क्विंटल पैदावार होती है और इसके पौधे सामान्य आकार के बनकर तैयार होते हैं.
नरेंद्र अरबी
देखने में हरे रंग का फल देने वाली यह किस्म लगभग 160 से 170 दिन के बीच में बनकर तैयार हो जाती है और इस किस्म से उगने वाले फल के सभी हिस्से खाने में इस्तेमाल किए जा सकते हैं. इसमें हाला की पैदावार बाकी कसम के मुकाबले थोड़ी कम रहती है जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 क्विंटल तक मानी गई है.
इसके अलावा भी अरबी की कई उन्नत किस्मो को अलग-अलग स्थान और जलवायु के हिसाब से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है, जो कि इस प्रकार है :- पंजाब अरबी 1, ए. एन. डी. सी. 1, 2, 3, सी. 266, लोकल तेलिया, मुक्ता काशी, बिलासपुर अरूम, सफेद गौरिया, नदिया, पल्लवी, पंजाब गौरिया, सहर्षमुखी कदमा, फैजाबादी, काका कंचु, अहिना, सतमुखी, लाधरा और बंसी आदि.
अरबी की फसल के लिए खेत की तैयारी
अरबी की फसल लगाने के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है इसलिए सबसे पहले गहरी जुताई करते हुए खेत में से पुरानी फसल के अवशेष नष्ट कर दिए जाते हैं. एक बार जुताई करने के बाद खेत को 15 से 17 गाड़ी पुराने गोबर की खाद डालकर खुला छोड़ दिया जाता है. गोबर की खाद की जगह केंचुआ खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. थोड़े समय खेत को खुला छोड़ देने के बाद फिर से जुताई की जाती है ताकि खाद को अच्छी तरह से खेत में मिलाया जा सके.
इसके बाद कल्टीवेटर की मदद से दो से तीन बार खेत की तिरछी जोताई की जाती है और आप इसके बाद अगर चाहे तो खेत में केमिकल उर्वरक का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. आखरी जुदाई करते समय आपस में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का छिड़काव कर सकते हैं.
इसके बाद खेत में पानी डालकर उसे थोड़े समय के लिए छोड़ दिया जाता है और अंत में रोटावेटर की मदद से एक बार फिर से तिरछी जुताई करते हुए मिट्टी को भुरभुरा कर लिया जाता है.
भुरभुरी मिट्टी में पानी का जमाव ज्यादा नहीं होता है इसलिए ऐसा करना अनिवार्य है. इसके बाद आप भूमि को समतल करते हुए खेत में फसल उगा सकते हैं.
कैसे करें अरबी के बीजों की रोपाई
प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगभग 15 से 20 क्विंटल बीजों की जरूरत पड़ती है और इन बीजों की रोपाई कंद के तौर पर ही की जाती है. कंद की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन या रिडोमिल एम जेड- 72 की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है. ऐसा करने के बाद आप दो तरीकों से बीजों की रोपाई कर सकते हैं, एक तो समतल भूमि में क्यारियां बनाकर और दूसरा खेत में मेड बनाते हुए कंधों की रोपाई की जा सकती है. इस फसल में बीज को लगभग 5 सेंटीमीटर की गहराई में लगाया जाता है.
अगर आप क्यारी बनाते हुए फसल की रोपाई कर रहे हैं तो प्रत्येक क्यारी के बीच में लगभग 2 फीट की दूरी जरूर रखें. इसके अलावा एक बीज के मध्य अभी लगभग डेढ़ फीट की दूरी होना अनिवार्य है. मेड विधि से रोपाई करते समय यदि खेत में डेढ़ से दो फीट की दूरी बनाते हुए मेड का निर्माण करें. इसके बाद मेल के मध्य में नाली में ही कंद को डालकर उसे एक बार मिट्टी से ढक दें.
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फसल उगाने का सबसे सही समय जून और जुलाई का महीना माना गया है इसके अलावा गर्मियों के मौसम में अगर आप इस फसल की पैदावार चाहते हैं तो आप फरवरी और मार्च के बीच में भी इसकी रोपाई कर सकते हैं.
कैसे करें अरबी की फसल में सिंचाई
अगर आप चाहते हैं कि बारिश के मौसम में पैदावार प्राप्त हो जाए तो आपको पौधों की सिंचाई करने की जरूरत होती. सबसे पहले पौधों को सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है. इसके अलावा अगर आपने अरबी की फसल बारिश के मौसम में लगाई है तो आपको ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ेगी. बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली अरबी की फसल में आप भी इस दिन के अंतर पर सिंचाई कर सकते हैं. इसके अलावा बारिश के मौसम में बारिश का ध्यान रखते हुए ही सिंचाई करें ताकि जमीन में पानी ना ठहर जाए.
अरबी की फसल में खरपतवार नियंत्रण का तरीका
आप चाहे तो अरबी की फसल में केमिकल उर्वरक का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर प्राकृतिक विधि से भी खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिएमल्चिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है, इस विधि में कंद रोपाई के बाद खेत में बनी पंक्तियों को छोड़कर शेष स्थान पर सूखी घास या पुलाव बिछाकर मल्चिंग की जाती है.
इसके बाद खेत में खरपतवार जन्म नहीं लेते है. रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए कंद रोपाई के तुरंत बाद पेंडामेथालिन की उचित मात्रा पानी में मिलाकर खेत में छिड़क दी जाती है.
अरबी की फसल को प्रभावित करने वाले रोग और उनकी रोकथाम का तरीका
एफिड
एफिड, माहू, और थ्रिप्स या तीनो एक ही प्रजाति के रोग है, जो कीट के रूप में पौधों के नाजुक अंगो और पत्तियों पर आक्रमण कर उनका रस चूस लेते है .इसरो के लगने के बाद पौधे की पत्तियां पीली पड़ने शुरू हो जाती है और उनके विकास में बाधा आ जाती है. अगर आप इस रोग से पौधों को बचाना चाहते हैं तोक्विनालफॉस या डाइमेथियोट की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है .इसके अलावा प्राकृतिक विधि अपनाना चाहते हैं तो आप 10 दिन के अंतर पर पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हैं.
जैसा कि नाम से ही जानकारी मिल रही है यह रोग पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करता है और इस रोग में पौधे की पत्तियों पर फफूंद लगने लगती है. एक बारिश रोग से प्रभावित होने के बाद पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के गोल और बड़े धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं और सारी पत्तियां धीरे-धीरे नष्ट होकर गिर जाती हैं. साथ ही अगर पौधों में यह रोग हो जाता है तो यह पौधे के विकास को भी प्रभावित करता है और पौधे में कंद छोटे आकार के ही रह जाते हैं. इस रोग से पौधों को बचाने के लिए फेनामिडोंन, मेन्कोजेब या रिडोमिल एम जेड- 72 की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर किया जाता है.
गांठ गलन
गांड जलन रोग मिट्टी से पैदा होने वाला एक रोग है जो सीधे तौर पर पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करते हुए उन्हें काले रंग का कर देता है. इसमें सबसे पहले पौधे की पत्तियों पर धब्बे नजर आते हैं और बाद में पत्तियां पीले रंग की होकर पूरी तरह से नष्ट हो जाती है. अगर इस रोग पर समय रहते ध्यान ना दिया जाए तो आपकी पूरी फसल भी बर्बाद हो सकती है. इस रोग से पौधे को बचाने के लिएजिनेब 75 डब्ल्यू पी की या एम 45 की उचित मात्रा पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करते है.
कंद सडन रोग
यह रोग भी पौधे की पत्तियों पर आक्रमण करता है और उसमें फफूंद लगा देता है. यह रोग ज्यादातर नमी के समय में देखने को मिलता है और अगर किसी कारण से फसल में पानी ठहर जाता है तो यह रोग होने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है.
यह रोग एक बार फसल पैदा होने के बाद किसी भी चरण पर पौधे को प्रभावित कर देता है. इस रोग से बचाव के लिए सबसे पहले तो आपको कोशिश करनी है की फसल में जलभराव ना हो और साथ ही आप बोर्डो मिश्रण का छिड़काव फसल पर करते हुए इस रोग से बचाव कर सकते हैं.
अरबी की फसल से होने वाली कमाई
अरबी की सभी केस में लगभग 170 से 180 दिन में बनकर तैयार हो जाती हैं. एक बार जो पौधे की पत्तियां हल्के पीले रंग की दिखाई देने लगे तो आप कंद की खुदाई करना शुरू कर सकते हैं. अच्छी तरह से एक कंद को साफ करने के बाद आप इसे घटा कर सकते हैं.
फसल में लगी हुई हरी पत्तियों को भी बेचा जा सकता है और प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सामान्यतः 180 से 200 क्विंटल की पैदावार किसान इस फसल को लगाते हुए कर सकते हैं. बाजार में अरबी का भाव 15 से ₹20 प्रति किलो का होता है तो इस अनुमान से किसान रबी की फसल से लगभग 3 से 4 लाख की कमाई आसानी से कर सकते हैं.
आज के समय मैना चौधरी उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत और मिशाल बन रही हैं, जो बागवानी में अपने बल पर कुछ करना चाहती है। मैना चौधरी को आरंभ से ही खेती किसानी का बेहद शौक था। इसी शौक को 25 वर्ष पूर्व अपने कार्य में परिवर्तित क दिया। मैना चौधरी का कहना है, कि हम खेती के क्षेत्र में बहुत कुछ नवीन कर सकते हैं। अपने नवाचारों को लेकर किसान भाई-बहनों को आगे बढ़ना चाहिए। यदि सही तरीका मालूम हो तो किसान बहनें भी हर प्रकार की फसल से मोटा और अच्छा खासा उत्पादन उठा सकती हैं।
मैना चौधरी मौसमी और गैर मौसमी दोनों तरह की सब्जियां उगाती हैं
यह कोई जरूरी नहीं कि नकदी फसलों के द्वारा ही अच्छा मुनाफा कमाया जाता हो। आज के दौर में किसान करेला, टमाटर, लौकी, तोरई, खीरा जैसी सब्जी की फसलों की आधुनिक खेती करके उत्तम पैदावार प्राप्त कर रहे हैं। मैना चौधरी भी हर प्रकार की मौसम-बेमौसमी सब्जियों का उत्पादन करती हैं। इनका ध्यान केवल वर्षभर खाई जाने वाली सब्जियों की पैदावार पर होता है। बागवानी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मैना चौधरी द्वारा पॉलीहाउस भी स्थापित किया जाएगा। अब सब्जियों का विक्रय करने हेतु बार-बार बाजार नहीं जाना पड़ता, बल्कि ये थोक में ही बिक जाती है।
बागवानी विभाग की तरफ से भी मिलती है मदद
मैना चौधरी का कहना है, कि उन्हें बागवानी विभाग से भरपूर सहायता प्राप्त हो रही है। बागवानी विभाग की टीम कई बार उनके खेत पर मुआयना करने आती रहती है। उन्हें वक्त-वक्त पर नई योजनाओं के बारे में जानकारी भी प्रदान की जाती हैं। इन योजनाओं में आवेदन करके मैना चौधरी को खूब लाभ भी हुआ है। इससे बागवानी के खर्चे को कम करने में सहायता प्राप्त होती है। मैना चौधरी द्वारा अपने खेतों पर सब्जियों सहित नींबू एवं अनार के वृक्ष भी रोपे गए हैं। वो कहती हैं, कि उचित फसल का चयन करके किसान भाई मोटा मुनाफा उठा सकते हैं।