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लीची की खेती

लीची में पुष्प प्रबंधन (Flower management )करके अधिक उपज एवं गुणवक्तायुक्त फल कैसे प्राप्त करें?

लीची में पुष्प प्रबंधन (Flower management )करके अधिक उपज एवं गुणवक्तायुक्त फल कैसे प्राप्त करें?

भारत में 92 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 686 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है, जबकि बिहार में लीची की खेती 32 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 300 मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8 टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.4टन / हेक्टेयर है। 

लीची को फलों की रानी कहते है।इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते है। कुल लीची उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बिहार का है। फरवरी माह का दूसरा हप्ता चल रहा है। इस समय हमारे लीची उत्पादक किसान यह जानने के लिए उत्सुक है की उन्हें फरवरी माह में क्या करना चाहिए क्या नही करना चाहिए । लीची के पेड़ फूल आने की अवधि के दौरान 68-86°F (20-30°C) के बीच गर्म तापमान पसंद करते हैं। उन्हें उच्च आर्द्रता स्तर 70-90% की आवश्यकता होती है।पर्याप्त धूप, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और न्यूनतम हवा भी सफल फूल आने के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं।  इसके अतिरिक्त, लीची के पेड़ों को फूल आने के लिए उनके सुप्त चरण के दौरान ठंडे तापमान (68°F या 20°C से नीचे) की अवधि से लाभ होता है। इष्टतम फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए लीची की खेती में फूलों का प्रबंधन महत्वपूर्ण है।

 1. लीची के फूल को समझना

जलवायु और विविधता के आधार पर, लीची के पेड़ आमतौर पर देर से सर्दियों या शुरुआती वसंत के दौरान फूल आते हैं।पुष्पन तापमान, वर्षा, आर्द्रता और पोषण सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।

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 2.कटाई छंटाई

कटाई छंटाई पेड़ के आकार को बनाए रखने, मृत लकड़ी को हटाने और वायु प्रवाह को बढ़ावा देने में मदद करती है, जिससे रोग एवं कीट का आक्रमण कम होता है। युवा पेड़ों की ट्रेनिंग एवं प्रूनिंग करने से मजबूत मचान विकास को बढ़ावा मिलता है, जो परिपक्व पेड़ों में फूल और फल उत्पादन को प्रोत्साहित करता है।फूलों वाली टहनियों को अत्यधिक हटाने से बचने के लिए छंटाई विवेकपूर्ण तरीके से की जानी चाहिए।

 3. पोषक तत्व प्रबंधन

फूलों की शुरुआत और विकास के लिए उचित पोषण आवश्यक है। मृदा परीक्षण पोषक तत्वों की कमी को समझने और उचित उर्वरक रणनीति तैयार करने में मदद करता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ संतुलित उर्वरक स्वस्थ फूलों के विकास में सहायता करता है।लीची में (प्रजाति के अनुसार) मंजर आने के 30 दिन पहले पेड़ पर जिंक सल्फेट की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बना कर पहला छिड़काव करना चाहिए , इसके 15-20 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजर एवं फूल अच्छे आते है।फल लगने के 15 दिन बाद  बोरेक्स की 4 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर दो या तीन छिड़काव करने से फलों का झड़ना कम हो जाता है, मिठास में वृद्धि होती है तथा फल के आकार एवं रंग में सुधार होने के साथ-साथ फल के फटने की समस्या में भी कमी आती है।

 4. सिंचाई

लीची के बगीचे में अच्छी फलन एवं उत्तम गुणवत्ता के लिये मंजर आने के सम्भावित समय से तीन माह पहले से लेकर फूल में पूरी तरह से फल लगने से ठीक पहले तक लीची के बाग में सिंचाई कत्तई न करें तथा 10 वर्ष से अधिक पुराने बाग में  कोई भी अंतर फसल को नही लेना चाहिए।बाग़ की बहुत हल्की गुड़ाई साफ सफाई के दृष्टिगत कर सकते है लेकिन फूल आने के पहले से लेकर पूरी तरह से फल लग जाने से पूर्व तक सिंचाई बिल्कुल न करें,अन्यथा नुकसान हो सकता है।फूल बनने और फल लगने के लिए मिट्टी की पर्याप्त नमी महत्वपूर्ण है। मौसम की स्थिति, मिट्टी की नमी के स्तर और पेड़ों की वृद्धि अवस्था के आधार पर सिंचाई शेड्यूल को समायोजित किया जाना चाहिए।

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 5. कीट एवं रोग प्रबंधन

यदि बाग में मंजर अभी तक नही आये हो या 2 प्रतिशत से कम फूल आए हो तो उस बाग में इमिडाक्लोप्राइड @1मीली लीटर प्रति लीटर एवम घुलनशील गंधक की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । एफिड्स, माइट्स और फल छेदक जैसे कीट फूलों को नुकसान पहुंचाते हैं और फलों का बनना कम करते हैं।नियमित निगरानी से कीटों का शीघ्र पता लगाने और कल्चरल, जैविक या रासायनिक नियंत्रण उपायों का उपयोग करके समय पर हस्तक्षेप करने में मदद मिलती है।एन्थ्रेक्नोज और पाउडरी फफूंदी जैसे रोग फूलों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं और फलों की उपज को कम करते हैं।  लीची के बाग में माइट से ग्रसित शाखाओं को काट कर एक जगह एकत्र करके जला देना चाहिए। 

 6. परागण

लीची के फूल मुख्यतः मधुमक्खियों द्वारा कीट-परागित होते हैं।फूल आते समय पेड़  पर किसी प्रकार के किसी भी कीटनाशी दवा का छिड़काव नही करना चाहिए।फूल आते समय लीची के  बगीचे में 15 से 20 मधुमक्खी के बक्शे प्रति हेक्टेयर की दर से रखना चाहिए ,जिससे परागण बहुत अच्छा होता है ,जिससे फल कम झड़ते है एवं फल की गुणवक्ता भी अच्छी होती है एवं बागवान को अतरिक्त आमदनी प्राप्त हो जाती है।आवास संरक्षण और मधुमक्खी पालन प्रबंधन के माध्यम से मधुमक्खियों की आबादी को बनाए रखने से परागण दक्षता में वृद्धि होती है। सीमित मधुमक्खी गतिविधि वाले बगीचों में, पर्याप्त फल सेट सुनिश्चित करने के लिए मैन्युअल परागण की आवश्यकता हो सकती है।

 7. पर्यावरण प्रबंधन

फूल आने के दौरान पाले से सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि लीची के फूलों को पाले से क्षति होने की आशंका रहती है।ओवरहेड स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से बाग के तापक्रम को 5 डिग्री सेल्सियस कम करने में सहायक होता है । विंडब्रेक प्रदान करने से फूलों और युवा फलों के गुच्छों को हवा से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है।

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 8. हार्मोनल विनियमन

जिबरेलिन और साइटोकिनिन जैसे विकास नियामकों का अनुप्रयोग फूल आने और फल लगने को प्रभावित कर सकता है। पेड़ों के स्वास्थ्य और फलों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए हार्मोनल उपचार के समय और एकाग्रता को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता है। फल लगने के एक सप्ताह बाद प्लैनोफिक्स की 1 मि.ली.  दवा को प्रति 3 लीटर की दर से पानी में घोलकर  एक छिड़काव करके फलों को झड़ने से बचाया जा सकता है। 

 9. निगरानी और मूल्यांकन

फूलों की प्रगति, फल लगने और पेड़ के स्वास्थ्य की नियमित निगरानी से प्रबंधन प्रथाओं में समय पर समायोजन संभव हो पाता है। विस्तृत रिकॉर्ड रखने से विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने और समय के साथ प्रबंधन रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद मिलती है।

सारांश 

लीची फल उत्पादन और गुणवत्ता को अधिकतम करने के लिए प्रभावी फूल प्रबंधन आवश्यक है।एक समग्र दृष्टिकोण जो कल्चरल, पोषण, कीट और रोग प्रबंधन उपायों को एकीकृत करता है जो सफलता की कुंजी है। लीची की खेती में फूल प्रबंधन रणनीतियों को अनुकूलित करने के लिए नियमित निगरानी, ​​समय पर हस्तक्षेप और निरंतर सीखना महत्वपूर्ण है। इन प्रथाओं को लागू करने से स्वस्थ लीची के पेड़, प्रचुर मात्रा में फूल और अंततः, उच्च गुणवत्ता वाले फलों की भरपूर फसल में योगदान मिलेगा।



Dr AK Singh
डॉ एसके सिंह प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,
पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी,
प्रधान अन्वेषक, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, समस्तीपुर,बिहार
Send feedback sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

लीची : लीची के पालन के लिए अभी से करे देखभाल

सन;1780 मे पहली बार भारत देश मे दस्तक देने वाला फल लीची , जिसकी जरूरत आज भी शहरी और ग्रामीण बाजारों में काफी तेज़ी मे है। 

लीची एक मात्र ऐसा फल है जो हमारे शरीर को डी हाइड्रेशन यानी की पानी की कमी की पूर्ति करता है।इसी कारण भारत के पश्चिमी इलाको मे इसकी मांग बहुत है। 

इसी के साथ साथ इसमें विटामिन सी होता है, जो हमारे शरीर मे कैल्शियम की कमी की पूर्ति करता है। इसमें केरोटिन और नियोसीन भी होता है जो शरीर मे इम्यूनिटी को बढ़ाता हैं। 

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भारत मे लीची का उत्पादन सबसे ज्यादा त्रिपुरा मे होता है। इसके अलावा अन्य राज्य झारखंड , पश्चिम बंगाल , बिहार , उतरप्रदेस और पंजाब मे। 

भारत मे किसानों के लिए लीची की फसल से अच्छा मुनाफा होता है ,लेकिन साथ ही साथ अच्छी देखभाल भी करनी पड़ती है।

लीची की फसल को तैयार होने मे काफी समय लगता है, इसलिए किसानों को काफी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है । ऐसे मे किसानों को संपूर्ण फसल को तैयार करने मे लागत खर्चा भी ज्यादा लगता है।

लीची के पालन के लिए सिंचाई और खाद उर्वरक का इस प्रकार करे इस्तेमाल :

insect pest in litchi

लीची की फसल के लिए हमेशा आपको थाला विधि से ही सिंचाई करनी चाहिए। हमें केवल तब तक सिंचाई करनी है ,जब तक पौधों मे फूल आना न लग जाए। 

उसके बाद हमें नवंबर माह से फरवरी माह तक लीची की फसल की सिंचाई नहीं करनी चाहिए। लीची के पौधों को पानी देने का सबसे अच्छा समय शाम का होता है, क्योंकि इससे दिन की गर्मी की वजह से वाष्पीकरण भी नहीं होता है और पौधों को अच्छी तरह से जल की पूर्ति भी होती हैं। 

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इसके अलावा अच्छी खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें और साथ ही साथ पौधे के आस पास बिल्कुल भी खरपतवार ना रहने दे। खरपतवार सभी प्रकार की फसलों के लिए सबसे खतरनाक होता है। 

इस से बचाव के लिए समय समय पर लीची के पौधों के आस पास ध्यान रखे और खरपतवार बिल्कुल भी न रहने दे। जब पौधे 6 से 7 माह के हो जाते है, तो उसके बाद आप पौधों मे फव्वारे के द्वारा पानी की छटाई अवस्य रूप से करे। 

अप्रैल महीने से लेकर नवंबर महीने तक लीची के पौधे की पूर्ण रूप से सिंचाई करे । इस समय तेज गर्मी के कारण पौधों को पानी की पूर्ति सही ढंग से नहीं करवाने पर संपूर्ण फसल पर बहुत असर पड़ता है।

लीची के पौधों की इस प्रकार करे कांट - छांट और रख - रखाव :

production of litchi crops

लीची के पौधों की रख - रखाव करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है ,क्योंकि इसके बिना पूरी फसल भी खराब हो सकती है। 

इसके लिए आप गर्मी और सर्दी की ऋतू मे जब पोधा 4-5 साल का होता है, तो इस समय उसकी अवांछित टहनियों और साखाओ को हटा देना चाहिए । इससे जो भी कीट पतंग और मकड़िया बिना धूप पहुंचने के कारण शाखाओं में छिप जाती हैं वे नष्ट हो जाएंगी। 

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इससे पौधे का अच्छे से भरण-पोषण होगा और फसल की उपज भी अच्छी होगी। फलों की तुड़ाई करने के बाद आप पौधे की जितनी भी रोग ग्रसित ,अवांछित, खराब टहनियों और पत्तियों को हटा दे। 

संपूर्ण खेत के चारों तरफ से बाढ करना बहुत जरूरी है,इससे आसपास के पशु फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। साथ ही साथ इससे फसल की उपज मे भी इजाफा होगा।

लीची की फसल मे आने वाली समस्याओं का इस प्रकार करे समाधान :

litchi farming

लीची की फसल का सही से रखरखाव और अच्छी उपज के लिए किसानों को काफी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है, जिनके बारे मे आज हम आपको बताएंगे की किस प्रकार आप इन समस्याओं से निदान पा सकते है। एक अच्छी फसल का उत्पादन कर सकते हैं तो चलिए जानते है इनके बारे मे

  1. लीची के फलों का फटना और छोटा होने से बचाव :- लीची के पौधों को गर्म और तेज हवाओं के कारण इनके फलों पर इसका सबसे ज्यादा असर दिखाई देता है क्योंकि इससे फल फटना तथा छोटा होना शुरू हो जाते है। ऐसे मे आप  बोरेक्स  ( 5ग्राम लिटर ) या बोरिक अम्ल (4 ग्रा./ली.) के घोल का 2-3 बार छिड़काव करें । इससे फसल की अच्छी पैदावार होगी।फलों के फटने की समस्या भी दूर हो जायेगी ।
  2. लीची मे मकड़ी का लग जाने से बचाव : लीची मे अगर एक बार मकड़ी लग जाती है, तो पूरी फसल को बर्बाद कर देती है। यह मकड़ी लीची के पौधों की टहनियां ,पत्ते और फलों को चुस्ती रहती है। जिसके कारण पूरा पौधा कमजोर पड़ जाता है और नष्ट हो जाता है। इससे बचाव के लिए आप सितंबर और अक्टूबर माह मे केलथेन या फ़ॉसफामिडान (1.25 मि.ली./लीटर) का घोल बनाकर 10- 15 दिन का अंतराल लेकर छिड़काव करें।
  3. लीची के फलों को झड़ने से रोकने के सुझाव :लीची के फलों का झड़ना संपूर्ण फसल के लिए काफी नुकसानदायक होता है। ऐसा पानी की कमी और किटों के कारण होता है।इससे बचाव के लिए आप पौधे मे फल लगने के मात्र सप्ताह भर के अंदर - अंदर क्रॉनिक्सएक्स 2 मिलीलीटर / 4. 8 लीटर या फिर आप ए एन ए 20 मिलीग्राम प्रति लीटर के घोल का बारी-बारी से छिड़काव करें। इससे फलों का झड़ना बंद हो जाएगा।

लीची के पौधे का पूर्ण विकास और प्रबंध इस प्रकार करें :

Litchi farmers

लीची के पौधे का संपूर्ण तरह से विकास होने मे 15 से 20 साल तक का समय लगता है। ऐसे मे पौधे का पूर्ण विकास और सही रखरखाव होना बहुत ही जरूरी होता है।अच्छी उपजाऊ जमीन और अच्छी जलवाष्प का होना भी काफी आवश्यक होता है। 

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लीची के पौधों को लगाते समय प्रति पौधे के बीच मे 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए। किसान भाई प्रत्येक एक हेक्टर में 90 से 200 लीची के पौधे लगाएं। 

लीची के पौधों का अच्छे से विकास करने के लिए उनको क्रमबद्ध कतारों मे जरूर लगाए। नियमित रूप से सिंचाई और समय-समय पर पौधों की जरूरत के अनुसार खाद और उर्वरक का छिड़काव करना ना भूलें।

भारत मे लीची का बढ़ता हुआ आयात इस प्रकार :

litchi production in india

भारतीय बाजार की तुलना मे अंतरराष्ट्रीय बाजार मे नवंबर माह से लेकर मार्च माह तक काफी ज्यादा लीची की मांग होती है। भारत मे लीची का फल जुलाई महीने तक संपूर्ण रूप से तैयार होकर बाजार मे उपलब्ध होता है। 

ऐसे समय पर अंतरराष्ट्रीय बाजार मे लीची की मांग बढ़ जाती है। भारत से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा एपीडी कार्यक्रम की भी प्रमुख भूमिका है। 

भारत से सबसे ज्यादा लीची का निर्यात सऊदी अरेबिया संयुक्त अरब अमीरात, ओमान , कुवैत  ,बेल्जियम  ,बांग्लादेश और नार्वे जैसे देशों को होता है। 

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भारतीय बाजार मे लीची की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार की तुलना में काफी कम है , लेकिन पिछले कुछ सालों मे इसकी कीमत मे इजाफा हुआ है। 

साथ ही साथ भारत सरकार द्वारा किसान भाइयों के लिए फसलों की रखरखाव और जानकारी के लिए कई सारे कार्यक्रम भी किए जाते हैं। 

इसके अलावा लॉकडाउन लगने के कारण किसानों को लीची की फसल को भारतीय बाजार मे बेचने के लिए काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा लेकिन आने वाले सालों मे लीची का आयात बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। 

अतः हमारे द्वारा बताए गए इन सभी सुझाव समस्याओं एवं उनके निदान जो की लीची की फसल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते है। साथ ही साथ इसके अलावा किसान भाई समय-समय पर लीची के पौधों का उचित रखरखाव और खाद रूप का छिड़काव करते रहे।

New Emerging Disease: लीची के पेड़ के अचानक मुरझाने एवं सूखने (विल्ट) की समस्या को कैसे करें  प्रबंधित ?

New Emerging Disease: लीची के पेड़ के अचानक मुरझाने एवं सूखने (विल्ट) की समस्या को कैसे करें प्रबंधित ?

लीची (लीची चिनेंसिस) एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फल का पेड़ है जो अपने रसीले और सुगंधित फलों के लिए जाना जाता है।लीची में रोग कम लगते है। लीची की सफल खेती के लिए आवश्यक है की इसमें लगनेवाले कीड़ों को प्रबंधित किया जाय। लेकिन विगत कुछ वर्षो से लीची में विल्ट रोग देखा जा रहा है जो फ्युसेरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी कवक के कारण होने वाली एक संवहनी बीमारी के कारण से होता है। यह रोगज़नक़ मुख्य रूप से जड़ प्रणाली पर हमला करता है, पानी और पोषक तत्वों के परिवहन को बाधित करता है और पेड़ के सूखने, पीले होने और अंततः मृत्यु का कारण बनता है।

लीची में विल्ट रोग के लक्षण

हालांकि इस रोग से किसी भी उम्र के लीची के पेड़ प्रभावित हो सकते है लेकिन यह विल्ट रोग आमतौर पर पांच साल से कम उम्र के लीची के नए पेड़ों में कुछ ज्यादा ही देखा जा रहा है जिसमे पेड़ एक हफ्ते से भी कम समय में मुरझा जाते हैं। पहले लक्षण पत्तियों के पीले पड़ने, पत्तियों के गिरने के बाद धीरे-धीरे मुरझाने और सूखने के रूप में दिखाई देते हैं, जिससे 4-5 दिनों के भीतर पौधे की पूर्ण मृत्यु हो जाती है। यह फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी कवक के कारण होता है। इस पर और अधिक अनुसंधान की आवश्यकता है। अभी भी इस रोग पर बहुत कम साहित्य उपलब्ध है। लीची में विल्ट के लक्षण आम में विल्ट रोग के समान ही होते है। लीची का विल्ट रोग (मुरझाना) मृदाजनित कवक फुसैरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी के कारण होता है, जो दुनिया भर में लीची के बागों के लिए एक भयानक खतरा है। लीची की खेती को बनाए रखने के लिए बीमारी, उसके जीवन चक्र को समझना और व्यापक प्रबंधन रणनीतियों को जानना बहुत महत्वपूर्ण है।

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फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम की पहचान और जीवन चक्र

लीची के मुरझाने का कारक एजेंट फुसैरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी, मृदाजनित कवक के एक समूह से संबंधित है जो अपनी विस्तृत मेजबान सीमा और मिट्टी में दृढ़ता के लिए जाना जाता है। रोगज़नक़ लीची के पेड़ों को जड़ों के माध्यम से संक्रमित करता है, संवहनी प्रणाली पर कब्जा कर लेता है और जल-संवाहक वाहिकाओं में रुकावट पैदा करता है। इसके परिणामस्वरूप पौधे मुरझाने लगते हैं और अंततः पेड़ की मृत्यु हो जाती है। फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी के जीवन चक्र में मिट्टी में प्रतिरोधी क्लैमाइडोस्पोर के रूप में जीवित रहना शामिल है। ये बीजाणु वर्षों तक बने रह सकते हैं, किसी संवेदनशील मेजबान के संक्रमित होने की प्रतीक्षा में अतिसंवेदनशील जड़ प्रणाली का सामना करने पर, कवक अंकुरित होता है और जड़ों में प्रवेश करता है, और खुद को संवहनी ऊतकों में स्थापित करता है। फिर कवक अधिक बीजाणु पैदा करता है, चक्र पूरा करता है और बीमारी को कायम रखता है।

लीची के मुरझाने में योगदान देने वाले कारक

लीची के मुरझाने के विकास और प्रसार में कई कारक योगदान करते हैं जैसे.… मिट्टी की स्थिति: फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम गर्म और नम मिट्टी की स्थिति में पनपता है। खराब जल निकासी और जलभराव वाली मिट्टी लीची के पेड़ों को संक्रमित करने के लिए कवक के लिए एक आदर्श वातावरण बनाती है। विभिन्न प्रकार की संवेदनशीलता: कुछ लीची की किस्में फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के प्रति प्रतिरोध प्रदर्शित करती हैं, अन्य अत्यधिक संवेदनशील होती हैं। किस्म का चुनाव लीची के मुरझाने के प्रति बगीचे की संवेदनशीलता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है।

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तापमान और आर्द्रता: गर्म तापमान और उच्च आर्द्रता फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के विकास और प्रसार में सहायक होते हैं। ये जलवायु परिस्थितियाँ रोगज़नक़ों को लीची के पेड़ों को संक्रमित करने के लिए अनुकूलतम स्थितियाँ प्रदान करती हैं।

लीची विल्ट रोग को कैसे करें प्रबंधित?

लीची के मुरझाने के प्रबंधन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो निवारक उपायों, कल्चरल (कृषि)उपाय, रासायनिक उपचार, जैविक नियंत्रण, स्वच्छता और प्रतिरोधी किस्मों पर चल रहे शोध को जोड़ती है। आइए इनमें से प्रत्येक घटक पर गहराई से विचार करें:

1. निवारक उपाय

साइट का चयन: लीची के मुरझाने के जोखिम को कम करने के लिए अच्छी जल निकासी वाली जगहों का चयन करना महत्वपूर्ण है। जलजमाव वाले क्षेत्रों से बचने से फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के लिए कम अनुकूल वातावरण बनाने में मदद मिलती है। प्रतिरोधी किस्मों का चयन: रोगज़नक़ के प्रति अंतर्निहित प्रतिरोध वाली लीची किस्मों का रोपण एक सक्रिय रणनीति है। चल रहे शोध का उद्देश्य प्रतिरोधी किस्मों की पहचान करना और विकसित करना है जो फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम का सामना कर सकें।

2. कल्चरल (कृषि) उपाय

सिंचाई प्रबंधन: उचित सिंचाई पद्धतियाँ आवश्यक हैं। फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के लिए प्रतिकूल परिस्थितियाँ बनाने के लिए जलभराव और सूखे के तनाव के बीच संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली सीधे जड़ क्षेत्र तक पानी पहुंचाने में मदद कर सकती है, जिससे रोगज़नक़ के साथ मिट्टी का संपर्क कम हो जाता है। कटाई छंटाई और पतलापन: संक्रमित शाखाओं की नियमित कटाई छंटाई और छतरी (कैनोपी)को पतला करने से वायु परिसंचरण को बढ़ावा मिलता है, जिससे पेड़ के चारों ओर नमी कम हो जाती है। यह, बदले में, फंगल बीजाणु के अंकुरण और संक्रमण की संभावना को कम करता है।

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पेड़ों के बीच दूरी: लीची के पेड़ों के बीच पर्याप्त दूरी होना बहुत जरूरी है। बढ़ी हुई दूरी बेहतर वायु परिसंचरण की सुविधा प्रदान करती है, आर्द्रता को कम करती है और फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के प्रसार को सीमित करती है।

3. रासायनिक उपचार

कवकनाशी अनुप्रयोग: लीची के मुरझाने के प्रबंधन में कवकनाशी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। थियोफैनेट-मिथाइल और प्रोपिकोनाज़ोल जैसे सक्रिय तत्वों वाले कवकनाशी ने फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी के खिलाफ प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया है। रोग के विकास के शुरुआती चरणों के दौरान निवारक उपचार लागू करने के साथ,प्रयोग का समय महत्वपूर्ण है। मिट्टी (सक्रिय रूट ज़ोन) को हेक्साकोनाज़ोल या प्रॉपिकोनाजोल @ 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल से या कार्बेंडाजिम या रोको एम नामक फफूंद नाशक की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर पेड़ के आसपास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भिगाए। दस दिन के बाद इसी घोल से पेड़ के आस पास की मिट्टी को खूब अच्छी तरह दुबारा से भिगाए। एकीकृत रोग प्रबंधन (आईडीएम): अन्य रोग प्रबंधन प्रथाओं के साथ कवकनाशी को एकीकृत करने से प्रतिरोध विकसित होने का जोखिम कम हो जाता है। आईडीएम दृष्टिकोण पारिस्थितिक संदर्भ पर विचार करता है और स्थायी, दीर्घकालिक रोग नियंत्रण का लक्ष्य रखता है।

4. जैविक नियंत्रण

लाभकारी सूक्ष्मजीव: ट्राइकोडर्मा की विभिन्न प्रजातियां जैसे कुछ लाभकारी सूक्ष्मजीवों ने फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम/सोलानी को दबाने में आशाजनक प्रदर्शन किया है। इन बायोकंट्रोल एजेंटों को मिट्टी में प्रयोग किया जाता है या पर्ण स्प्रे के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो रोग प्रबंधन का प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल साधन प्रदान करता है। लीची में पेड़ की उम्र के अनुसार उर्वरक की अनुशंसित खुराक के साथ नीम की खली या अरंडी की खली @ 5-8 किग्रा/वृक्ष लगाएं या बर्मी कंपोस्ट खाद 20से 25 किग्रा प्रति पेड़ देना चाहिए। ट्राइकोडर्मा हर्जियानम,ट्राइकोडर्मा विरिडी , स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस आदि जैसे जैव नियंत्रण एजेंटों का प्रयोग रोग के प्रबंधन में प्रभावी साबित हुआ है। ट्राइकोडर्मा का कमर्शियल फॉर्मुलेशन का 100-200 ग्राम को खूब सड़ी गोबर या कंपोस्ट खाद की 20 किग्रा में मिला कर , सक्रिय रूट ज़ोन में प्रति वयस्क पेड़ मिलाकर मिट्टी की सतह पर लगभग 30-40 सेंटीमीटर चौड़ी एक गोलाकार पट्टी में एक ऐसे स्थान पर फैला दें जो पेड़ की छतरी की बाहरी सीमा से लगभग दो फीट अंदर हो। पानी का छिड़काव कर मिट्टी में पर्याप्त नमी सुनिश्चित करें या हल्की सिंचाई करें। माइक्रोबियल कंसोर्टिया: माइक्रोबियल कंसोर्टिया विकसित करने के लिए अनुसंधान जारी है जो कई लाभकारी सूक्ष्मजीवों के सहक्रियात्मक प्रभावों का उपयोग करता है। ये कंसोर्टिया पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए उन्नत रोग दमन की पेशकश करते हैं।

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5. स्वच्छता

मलबा हटाना: इनोकुलम के संभावित स्रोतों को खत्म करने के लिए संक्रमित पौधे के मलबे को तुरंत हटाना और नष्ट करना महत्वपूर्ण है। बगीचे में फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के बने रहने को रोकने के लिए गिरी हुई पत्तियों, कटी हुई शाखाओं और अन्य पौधों की सामग्री का उचित तरीके से निपटान किया जाना चाहिए। उपकरण कीटाणुशोधन: छंटाई उपकरणों और उपकरणों की नियमित कीटाणुशोधन पेड़ों के बीच कवक के अनजाने प्रसार को रोकने में मदद करती है। बगीचे के रख-रखाव के दौरान रोग संचरण के जोखिम को कम करने के लिए स्वच्छता आवश्यक हैं।

6. प्रतिरोधी किस्मों पर शोध

प्रजनन कार्यक्रम: प्रजनन कार्यक्रमों में निरंतर प्रयासों का उद्देश्य फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम के लिए अंतर्निहित प्रतिरोध वाली लीची की किस्मों को विकसित करना है। प्रतिरोधी किस्मों की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना लीची के मुरझाने का स्थायी दीर्घकालिक समाधान है। जेनेटिक इंजीनियरिंग: जेनेटिक इंजीनियरिंग में प्रगति से प्रतिरोधी किस्मों के विकास में तेजी आ सकती है। फुसैरियम ऑक्सीस्पोरम को प्रतिरोध प्रदान करने वाले जीन पेश करके, शोधकर्ताओं का लक्ष्य लीची की रोगज़नक़ को झेलने की क्षमता को बढ़ाना है।

7. परिशुद्ध कृषि प्रौद्योगिकी

रिमोट सेंसिंग: रिमोट सेंसिंग सहित सटीक कृषि प्रौद्योगिकियां, उत्पादकों को दूर से बगीचे के स्वास्थ्य की निगरानी करने में सक्षम बनाती हैं। सेंसर से लैस ड्रोन बीमारी के शुरुआती लक्षणों का पता लगा सकते हैं, जिससे लक्षित हस्तक्षेप और समय पर रोग प्रबंधन की अनुमति मिलती है।

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डेटा एनालिटिक्स: सटीक कृषि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से एकत्र किए गए डेटा का विश्लेषण रोग की गतिशीलता में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह जानकारी उत्पादकों को प्रबंधन प्रथाओं को अनुकूलित करने और समग्र बगीचे के स्वास्थ्य में सुधार करने में मार्गदर्शन करती है।

सारांश

लीची विल्ट (मुरझान) प्रबंधन के लिए बहुआयामी और एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। निवारक उपायों और कल्चरल उपाय से लेकर रासायनिक उपचार, जैविक नियंत्रण, स्वच्छता और प्रतिरोधी किस्मों पर चल रहे शोध तक, प्रत्येक घटक फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल और अनुसंधान और तकनीकी प्रगति के माध्यम से लगातार परिष्कृत एक समग्र रणनीति, लीची के बागानों को बनाए रखने और लीची मुरझाने की चुनौतियों का सामना करने वाले उत्पादकों की आजीविका सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

लीची की खेती से इस बार किसानों को मिलेगा मोटा मुनाफा, जानें क्यों

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आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस बार आपको लगभग 15 मई तक बाजार में लीची आना शुरू हो जाएगी। बिहार के लोग ऑनलाइन भी इसकी खरीददारी कर सकेंगे। 

लीची का सेवन करने वालों के लिए बहुत अच्छी खबर है। बिहार के मुजफ्फरपुर की सुविख्यात शाही लीची कुछ ही दिनों में बागानों से निकलने वाली है। 

बिहार की मशहूर शाही लीची आगामी 20 दिनों में आसानी से बाजार में मिल जाएगी। इस बार राज्य सरकार की तरफ से खास तैयारियाँ की गई हैं। 

रेल और हवाई जहाज की सहायता से देश के भिन्न-भिन्न राज्यों व विदेशों में भी शाही लीची भेजने की तैयारी है।

लीची के बेहतर उत्पादन की आशा

इस बार लीची की काफी शानदार पैदावार होने की संभावना है। बिहार के अतिरिक्त मुंबई, नागपुर, बेंगलुरु, चेन्नई, लखनऊ और विशाखापट्टनम जैसे शहरों में 18 मई से लीची भेजना प्रारंभ कर दिया जाएगा। 

कोल्ड चेन की सहायता से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसे भेजा जाएगा। इन शहरों में 10 से 15 किलो के पैक भेजे जाएंगे। वहीं, बिहार के अलग-अलग शहरों में एक किलो लीची का कंज्यूमर पैक व पांच किलो का फैमिली पैक निर्मित किया जाएगा। 

इसको ताजा रखने के लिए बीते वर्ष खुद से तैयार हर्बल सॉल्यूशन का परीक्षण सफल रहा है। इस बार इसका इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि आप ताजा लीची का स्वाद ले सकें।

लीची के सफल यातायात के लिए क्या तैयारी है ?

मुजफ्फरपुर के किसान के अनुसार, वर्ष 1993 में ही गांव में प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया था, जिसकी वजह से वह लीची के पल्प को भी बेचते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार मौसम साथ नहीं दे रहा है। 

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इस वजह से लीची काफी कमजोर हो जा रही है। इसके फल भी गिर रहे हैं। फिर भी बगान से लगभग 100 टन से ज्यादा लीची की पैदावार होगी। 

इस बार बिहार सरकार की सहायता से पैक हाउस तैयार कर रहे हैं। साथ ही, रेफ्रिजरेटर वैन की भी खरीदारी करेंगे। इससे छह डिग्री सेल्सियस में लीची पहुंचाई जाएगी। 

किसान भाई ऑनलाइन भी लीची खरीद सकेंगे 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस बार लगभग 15 मई तक बाजार में लीची उपलब्ध हो जाएगी। बिहार के लोग ऑनलाइन भी इसकी खरीदारी कर सकेंगे। 

कोरोना काल में इस सुविधा को प्रारंभ किया गया था। इस सीजन में सभी बागों से लगभग 3,000 टन लीची की पैदावार होगी। यहां से विशेषकर यूपी, बिहार व झारखंड में 15 व 10 किलो के पैक में लीची भेजी जाएगी।

खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन

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आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार राज्य के अंदर सबसे ज्यादा मुजफ्फरपुर जनपद में लीची (Lychee; Litchi chinensis) का उत्पादन किया जाता है। मुजफ्फरपुर जनपद में 12 हजार हेक्टेयर भूमि में लीची का उत्पादन किया जा रहा है। बिहार के कृषकों के लिए एक अच्छी बात है, कि वर्तमान में बिहार के मुजफ्फरपुर के साथ बाकी जनपदों में भी कृषक लीची का उत्पादन कर सकते हैं। बिहार में करीब 5005441 हैक्टेयर जमीन लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। ऐसी स्थिति में यदि मुजफ्फरपुर के अतिरिक्त अन्य जनपद के कृषक भी लीची का उत्पादन करना चालू करते हैं। तब यह लीची का उत्पादन उनके लिए एक अच्छे आय के स्त्रोत की भूमिका अदा करेगा।

मुजफ्फरपुर के अलावा और भी जगह लीची का उत्पादन किया जाता है

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, मुजफ्फरपुर भारत भर में शाही लीची के उत्पादन के मामले में मशहूर है। साथ ही, लोगों का मानना है, कि केवल मुजफ्फरपुर की मृदा ही लीची की खेती के लिए बेहतर होती है। हालाँकि,अब ये सब बातें काफी पुरानी हो चुकी हैं। एक सर्वेक्षण के चलते यह सामने आया है, कि बिहार के 37 जनपदों के अंदर लीची का उत्पादन किया जा सकता है। इसका यह मतलब है, कि इन 37 जनपदों में लीची के उत्पादन हेतु जलवायु एवं मृदा दोनों ही अनुकूल हैं। सर्वे के अनुसार, इन 37 जनपदों के अंतर्गत 5005441 हेक्टेयर का रकबा लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। साथ ही, 2980047 हेक्टेयर भूमि बाकी फसलों हेतु लाभकारी है। ये भी पढ़े: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

केवल बिहार राज्य में देश का 65 प्रतिशत लीची उत्पादन होता है

जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार में लीची का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है। बिहार में किसान भारत में समकुल लीची की पैदावार का 65 फीसद उत्पादन करते हैं। परंतु, बिहार राज्य में भी सर्वाधिक मुजफ्फरपुर में शाही लीची का उत्पादन होता है। जानकारी के लिए बतादें कि 12 हजार हेक्टेयर के रकबे में लीची का उत्पादन किया जा रहा है। परंतु, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर की तरफ से किए गए सर्वेक्षण के उपरांत बिहार राज्य में लीची के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी देखी जाएगी। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राज्य में 1,53,418 हेक्टेयर रकबा लीची के उत्पादन हेतु सर्वाधिक अनुकूल है।

ये मुजफ्फरपुर से भी अधिक लीची उत्पादक जनपद हैं

सर्वेक्षण के मुताबिक, पश्चिम चंपारण, मधुबनी, कटिहार, अररिया, बांका, औरंगाबाद, जमुई, पूर्णिया, पूर्वी चंपारण, मधेपुरा और सीतामढ़ी में मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा लीची का उत्पादन हो सकता है। इन जनपदों की मृदा और जलवायु मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। अगर इन समस्त जनपदों में लीची का उत्पादन चालू किया जाए तो भारत में भी चीन से ज्यादा लीची की पैदावार होने लगेगी। साथ ही, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विकास दास के मुताबिक, तो किसान अधिकांश पारंंपरिक धान- गेहूं की भांति फसलों का उत्पादन करते हैं। इसकी वजह से प्रति हेक्टेयर में 50 हजार रुपये की आय होती है। हालांकि, लीची की खेती में परिश्रम के साथ- साथ लागत की भी ज्यादा जरूरत होती है। वहीं यदि किसान धान-गेहूं के स्थान पर लीची का उत्पादन करते हैं, तो उनको कम खर्चा में काफी अधिक लाभ मिलेगा। साथ ही, उत्पादकों को खर्चा भी काफी कम करना होगा।
विदेशों में लीची का निर्यात अब खुद करेंगे किसान, सरकार ने दी हरी झंडी

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लीची बिहार की एक प्रमुख फसल है। पूरे राज्ये में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। बिहार के मुजफ्फरपुर को लीची उत्पादन का गढ़ माना जाता है। यहां की लीची विश्व प्रसिद्ध है, इसलिए इस लीची की देश के साथ विदेशों में भी जबरदस्त मांग रहती है। लीची को लोग फल के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। साथ ही इससे जैम बनाया जाता है और महंगी शराब का निर्माण भी किया जाता है। जिससे दिन प्रतिदिन बिहार की लीची की मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सरकार ने प्लान बनाया है कि अब किसान खुद ही अपनी लीची की फसल का विदेशों में निर्यात कर सेकेंगे। अब किसानों को अपनी फसल औने पौने दामों पर व्यापारियों को नहीं बेंचनी पड़ेगी। अगर भारत में लीची के कुल उत्पादन की बात करें तो सबसे ज्यादा लीची का उत्पादन बिहार में ही किया जाता है। यहां पर उत्पादित शाही लीची की विदेशों में जमकर डिमांड रहती है। इसलिए सरकार ने कहा है कि किसान अब इस लीची को खुद निर्यात करके अच्छा खास मुनाफा कमा सकेंगे। इसके लिए सरकार ने मुजफ्फरपुर जिले के चार प्रखंडों में 6 कोल्ड स्टोरेज और 6 पैक हाउस का निर्माण करवाया है। इसके साथ ही 6 पैक हाउस को निर्देश दिए गए हैं कि वो किसानों की यथासंभव मदद करें। इन 6 पैक हाउस में प्रतिदिन 10 टन लीची की पैकिंग की जाएगी, जिसका सीधे विदेशों में निर्यात किया जाएगा।

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बिहार लीची एसोसिएशन के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया है कि निर्यात का काम बिहार लीची एसोसिएशन देखेगी, तथा इस काम में किसानों की यथासंभव मदद की जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले मुजफ्फरपुर में मात्र एक प्रोसेसिंग यूनिट की व्यवस्था थी, लेकिन अब मांग बढ़ने के कारण सरकार ने जिले में 6 प्रोसेसिंग यूनिट लगवा दी हैं। अगर भविष्य में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस की मांग बढ़ती है तो उसकी व्यवस्था भी की जाएगी। जिससे किसान बेहद आसानी से अपने उत्पादों को विदेशों में निर्यात कर पाएंगे। बिहार के कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि इस प्रोजेक्ट को बागवानी मिशन के तहत लॉन्च किया गया है। जिससे किसानों को अपने उत्पादों को मनचाहे बाजार में एक्सपोर्ट करने में मदद मिले। लीची की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर 4 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें 50 फीसदी सब्सिडी सरकार देती है। ऐसे में अगर किसान चाहें तो खुद ही लीची की प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं और खुद के साथ अन्य किसानों की भी मदद कर सकते हैं। उत्पादन को देखते हुए आने वाले दिनों में जिलें में लीची की प्रोसेसिंग यूनिट्स में बढ़ोत्तरी होगी।

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कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि वर्तमान में मुजफ्फरपुर के मानिका, सरहचियां, बड़गांव, गंज बाजार और आनंदपुर में कोल्ड स्टोरेज और पैक हाउस खोले गए हैं। जहां लीची को सुरक्षित रखा जा सकेगा। इनका उद्घाटन आगामी 19 मई को किया जाएगा। किसानों को मदद करने के लिए बिहार लीची एसोसिएशन, भारतीय निर्यात बैंक और बिहार बागवानी मिशन तैयार हैं। ये किसानों को यथासंभव मदद उपलब्ध करवाएंगे, ताकि मुजफ्फरपुर की लीची का विदेशों में बड़ी मात्रा में निर्यात हो सके।