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सरसों बुआई का समय

जानिए सरसों की बुआई के बाद फसल की कैसे करें देखभाल

जानिए सरसों की बुआई के बाद फसल की कैसे करें देखभाल

किसान भाइयों यदि हम आज सरसों की फसल की बात करे तो आजकल सरसों के तेल के दाम बहुत ऊंचे होने के कारण इसका महत्व बढ़ गया है। प्रत्येक किसान अधिक से अधिक लाभ कमाने के लिए सरसों की फसल करना चाहेगा। उस पर यदि सरसों की फसल अच्छी हो जाये तो सोने पर सुहागा हो जायेगा।  इसके लिये किसान भाइयों को शुरू से अंत तक फसल की देखभाल करनी होगी। किसान भाइयों को समय-समय पर जरूरत के हिसाब से खाद-पानी, निराई-गुड़ाई, रोग, कीट प्रकोप से बचाने के अनेक उपाय करने होंगे।

सबसे पहले पौधों की दूरी का ध्यान रखें

बुआई के बाद सबसे पहले किसान भाइयों को बुआई के लगभग 15 से 20 दिनों के बाद खेत का निरीक्षण करना चाहिये तथा पौधों  का विरलीकरण यानी निश्चित दूरी से अधिक पौधों की छंटाई करनी चाहिये ।  इससे फसल को  दो तरह के लाभ मिलते हैं। पहला लाभ  यह कि  पौधों के लिए आवश्यक 10-15 सेन्टीमीटर की दूरी मिल जाती है। जिससे फसल को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। दूसरा लाभ यह है कि खरपतवार का नियंत्रण भी  हो जाता है।

सिंचाई का विशेष प्रबंध करें

सरसों की फसल के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी होती है। बरसात होती है तो उसका ध्यान रखते हुए सिंचाई का प्रबंधन करना होता है। सरसों की अच्छी फसल के लिए खेत की नमी, फसल की नस्ल और मिट्टी  की श्रेणी के अनुसार किसान भाइयों को खेत की जांच पड़ताल करनी चाहिये। उसके बाद आवश्यकता हो तो पहली सिंचाई 15 से 20 दिन में ही करें। उसके बाद 30 से 40 दिन बाद उस समय सिंचाई करें जब फूल आने वाले हों।  इसके बाद तीसरी सिंचाई 2 से ढाई महीने के बाद उस समय करनी चाहिये जब फलियां बनने वाली हों। जहां पर पानी की कमी हो या पानी खारा हो तो किसान भाइयों को चाहिये कि अपने खेतों में सिर्फ एक ही बार सिंचाई करें।



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कैसे करें खरपतवार का नियंत्रण

सिंचाई के अच्छे प्रबंधन के साथ ही सरसों की फसल की देखभाल में खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि किसान भाई जब खेत में खाद व सिंचाई का अच्छा प्रबंधन करते हैं तो खेत में सरसों के पौधों के साथ ही उसमें उग आये खरपतवार भी तेजी से विकसित होने लगते हैं। इसका फसल पर सीधा प्रभाव पड़ने लगता है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि सरसों की फसल की देखभाल करते समय खरपतवार के नियंत्रण पर विशेष ध्यान दें।  खरपतवार का नियंत्रण इस प्रकार करना चाहिये:-
  1. बुआई के लगभग 25 से 30 दिन बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिये। इससे पौंधों के सांस लेने की क्षमता बढ़ जाती है तथा  इससे  पौधों को तेजी से अच्छा विकास होता है।
  2. खरपतवार का अच्छी तरह नियंत्रण करने से फसल में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। किसान भाइयों को अच्छी फसल का लाभ हासिल करने के लिए खरपतवार का प्रबंधन करना ही होगा।
  3. खरपतवार के नियंत्रण के लिए किसान भाई रासायनिक पदार्थों का भी उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए पेन्डी मिथैलीन (30 ईसी) की 3.5 लीटर को 1000 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरन्त बाद छिड़काव करना चाहिये।  यदि पेन्डी मिथेलीन का प्रबंध न हो सके उसकी जगह फ्रलुक्लोरेलिन (45 ईसी) का घोल मिलाकर छिड़काव करना चाहिये ।  इससे खरपतवार नहीं उत्पन्न होता है।
sarson ki kheti

कीट प्रकोप व रोग का ऐसे करें उपचार

कहते हैं कि जब तक फसल सुरक्षित किसान भाई के घर न पहुंच जाये तब तक अनेक बाधाएं फसलों में लगतीं रहतीं हैं। ऐसी ही एक बड़ी व्याधि हैं कीट प्रकोप और फसली रोग। इनसे बचाने के लिए किसान भाइयों को लगातार अपनी फसल की निगरानी करते रहना चाहिये और जो भी कीटों का प्रकोप और रोग के संकेत दिखाई दें तत्काल उनका उपचार करना चाहिये। वरना फसल की पैदावार काफी प्रभावित होती है और किसान भाइयों को  होने वाले अच्छे लाभ पर ग्रहण लग जाता है। आइये जानते हैं कि सरसों की फसल पर कौन-कौन से रोग और कीट लगते हैं और किस प्रकार से किसान भाइयों को उनका उपचार करना चाहिये। सरसों की फसल पर लगने वाले रोग व कीट इस प्रकार हैं:-
  1. चेंपा या माहू
  2. आरा मक्खी
  3. चितकबरा कीट
  4. लीफ माइनर
  5. बिहार हेयरी केटर पिलर
  6. सफेद रतुवा
  7. काला धब्बा या पर्ण चित्ती
  8. चूर्णिल आसिता
  9. मृदूरोमिल आसिता
  10. तना गलन



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1. चेंपा या माहू: सरसों का प्रमुख कीट चेंपा या माहू है। जो फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर देता है। सरसों में लगने वाले माहू पंखों वालें और बिना पंखों वाले हरे या सिलेटी रंग के होते हैं। इनकी लम्बी डेढ़ से तीन मिलीमीटर होती है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों के रस चूसकर उनको कमजोर एवं क्षतिग्रस्त करते हैं। इस कीट के प्रकोप का खतरा दिसम्बर से लेकर मार्च तक बना रहता है।  इस दौरान किसान भाइयों को सतर्क रहना चाहिये।

क्या उपाय करने चाहिये

जब फसल चेंपा या माहू से प्रभावित दिखें और उसका प्रभाव बढ़ता दिखे तो किसान भाइयों को तत्काल एक्टिव होकर डाइमिथोएट  30 ईसी या मोनोग्रोटोफास (न्यूवाक्रोन) का लिक्विड एक लीटर को 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिये। यदि दुबारा कीट का प्रकोप हों तो 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये।  माहू से प्रभावित पौधों की शाखाओं को तोड़कर जमीन में दबा देना चाहिये।  इसके अलावा किसान भाइयों को माहू से प्रभावित फसल को बचाने के लिए कीट नाशी फेंटोथिओन 50 ईसी एक लीटर को 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये। इसका छिड़काव करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि शाम के समय स्प्रे करना होगा। sarson ki kheti 2. आरा मक्खी: सरसों की फसल में लगने वाले इस कीट के नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 ईसी की एक लीटर को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करना चाहिये। एक बार में कीट न खत्म हों तो दुबारा छिड़काव करना चाहिये। 3.चितकबरा कीट : इस कीट से बचाव करने के लिए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्यूलनालफास चूर्ण को 1.5 प्रतिशत को मिट्टी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। जब इस कीट का प्रकोप अपने चरम सीमा पर पहुंच जाये तो उस समय मेलाथियान 50 ईसी की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़कना चाहिये। 4.लीफ माइनर: इस कीट के प्रकोप के दिखते ही मेलाथियान 50 ईसी का छिड़काव करने से लाभ मिलेगा। 5.बिहार हेयरी केटर पिलर : डाइमोथिएट के घोल का छिड़काव करने से इस कीट से बचाव हो सकता है। 6. सफेद रतुवा : सरसों की फसल में लगने वाले रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार तीन बार तक छिड़काव किया जा सकता है। 7. काला धब्बा या पर्ण चित्ती: इस रोग से बचाव के लिए आईप्रोडियाँन, मेन्कोजेब के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। 8. चूर्णिल आसिता: इस रोग की रोकथाम करने के लिए सल्फर का 0.2 प्रतिशत या डिनोकाप 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करे। 9. मृदूरोमिल आसिता: सफेद रतुआ के प्रबंधन से ये रोग अपने आप ही नियंत्रित हो जाता है। 10. तना गलन: फंफूदीनाशक कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत का छिड़काव फूल आने के समय किया जाना चाहिये। बुआई के लगभग 60-70 दिन बाद यह रोग लगता है। उसी समय रोगनाशी का छिड़काव करने  से  फायदा मिलता है।



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देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

देश की सभी मंडियों में एमएसपी से ऊपर बिक रही सरसों

दशकों से खाद्य तेलों के मामलों में हम आत्मनिर्भर नहीं हो पाए हैं। हमें जरूरत के लिए खाद्य तेल विदेशों से मंगाने पढ़ते रहे हैं। इस बार सरसों का क्षेत्रफल बढ़नी से उम्मीद जगी थी कि हम विदेशों पर खाद्य तेल के मामले में काफी हद तक कम निर्भर रहेंगे लेकिन मौसम की प्रतिकूलता ने सरसों की फसल को काफी इलाकों में नुकसान पहुंचाया है। इसका असर मंडियों में सरसों की आवक शुरू होने के साथ ही दिख रहा है। समूचे देश की मंडियों में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर ही बिक रही है। सरसों सभी मंडियों में 6000 के पार ही चल रही है।

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सरसों को रोकें या बेचें

Sarson

घटती कृषि जोतों के चलते ज्यादातर किसान लघु या सीमांत ही हैं। कम जमीन पर की गई खेती से उनकी जरूरत है कभी पूरी नहीं होती। इसके चलते वह मजबूर होते हैं फसल तैयार होने के साथ ही उसे मंडी में बेचकर अगली फसल की तैयारी की जाए और घरेलू जरूरतों की पूर्ति की जाए लेकिन कुछ बड़ी किसान अपनी फसल को रोकते हैं। किसके लिए वह तेजी मंदी का आकलन भी करते हैं। बाजार की स्थिति सरकार की नीतियों पर निर्भर करती है। यदि सरकार ने विदेशों से खाद्य तेलों का निर्यात तेज किया तो स्थानीय बाजार में कीमतें गिर जाएंगे। रूस यूक्रेन युद्ध यदि लंबा खींचता है तो भी बाजार प्रभावित रहेगा। पांच राज्यों के चुनाव में खाद्य तेल की कीमतों का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए दिक्कत जदा रहा। सरकार किसी भी कीमत पर खाद्य तेलों की कीमतों को नीचे लाना चाहेगी। इससे सरसों की कीमतें गिरना तय है। मंडियों में आवक तेज होने के साथ ही कारोबारी भी बाजार की चाल के अनुरूप कीमतों को गिराते उठाते रहेंगे।

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प्रतिकूल मौसम ने प्रभावित की फसल

Sarson ki fasal

यह बात अलग है कि देश में इस बार सरसों की बुवाई बंपर स्तर पर की गई लेकिन इसे मौसम में भरपूर झकझोर दिया। बुबाई के सीजन में ही बरसात पढ़ने से राजस्थान सहित कई जगहों पर किसानों को दोबारा फसल बोनी पड़ी। इसके चलते फसल लेट भी हो गई। पछेती फसल में फफूंदी जनित तना गलन जैसे कई रोग प्रभावी हो गए। इसका व्यापक असर उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता पर पड़ा है। हालिया तौर पर फसल की कटाई के समय पर हरियाणा सहित कई जगहों पर ओलावृष्टि ने फसल को नुकसान पहुंचाया है।

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रूस यूक्रेन युद्ध का क्या होगा असर

रूस यूक्रेन युद्ध का असर समूचे विश्व पर किसी न किसी रूप में पड़ना तय है। परोक्ष अपरोक्ष रूप से हर देश को इस युद्ध का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। युद्ध अधिक लंबा खिंचेगा तो विश्व समुदाय के समर्थन में हर देश को सहभागिता दिखानी ही पड़ेगी। इसके चलते गुटनिरपेक्षता की बात बेईमनी होगी और विश्व व्यापार प्रभावित होगा। कोरोना काल के दौरान बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उद्यम को एक और बड़ा झटका लगेगा। विदेशों पर निर्भरता वाली वस्तुओं की कीमतों में इजाफा होना तय है।

सरकारी समर्थन मूल्य से ऊपर बिक रही सरसों

sarson ke layi

सरसों की फसल की मंडियों में आना शुरू हुई है जिसके चलते अभी वो एमएसपी से ऊपर बिक रही है। मंडी में आवक बढ़ने के बाद स्थिति स्पष्ट होगी कि खरीददार सरसो को कितना गिराएंगे। उत्तर प्रदेश की मंडियों में सरसों 6200 से 7000 तक बिक रही है वहीं कई जगह वह 7000 के पार भी बिक रही है। गुजरे 3 दिनों में सरसों की कीमतें में 200 से 400 ₹500 तक की गिरावट एवं कई जगह कुछ बढत साफ देखी गई। 15 मार्च तक सरसों की आवक और उत्पादन के अनुमानों के आधार पर बाजार में कीमतों की स्थिरता का पता चल पाएगा। अभी खरीदार दैनिक मांग के अनुरूप सरसों की पेराई का फल एवं तेल की सप्लाई दे रहे हैं। कारोबारी एवं किसानों के स्तर पर स्टॉक की पोजीशन 15 मार्च के बाद ही क्लियर होगी।