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सूरजमुखी

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

अभी सूरजमुखी की खेती करने का सही समय है. सूरजमुखी की खेती खाद्य तेल के लिए की जाती है. वैसे भी हमारे देश को खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। आयात को कम करने के लिए सरकार का भी ध्यान सरसों और सूरजमुखी जैसी फसलों पर अधिक है। मार्च के महीने में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई करते समय याद रखें की खेत में गोबर की खाद, नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए. इसको सूरजमुखी नाम देने के पीछे भी एक रोचक कारण है।एक तो इसका फूल सूरज की तरह दिखता है दूसरा इसका फूल सूरज के हिसाब से घूमता है। आप कह सकते है की इसके फूल का मुँह सूरज की तरफ ही रहता है। सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि जब खेतों से सरसों, आलू, गेंहूं आदि से खेत खाली होते हैं तो इसकी खेती की जा सकती है। इसमें से जो तेल निकलता है वो बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनो ही मौसमों में की जा सकती है। लेकिन खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप रहता है। फूल छोटे होते है, तथा उनमें दाना भी कम पड़ता है तथा इतना स्वस्थ भी नहीं होता है, जायद में सूरजमुखी की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इस मौसम की सूरजमुखी में मोटा दाना और उसमें तेल की मात्रा भी ज्यादा होती है। ये भी पढ़ें : सरसों की खेती: कम लागत में अच्छी आय

खेत की तैयारी:

मार्च या अप्रैल के महीने में जब खेत दूसरी फसल से खाली होता है तो खेत में इतनी नमी नहीं होती की उसको दूसरी फसल के लिए तैयार कर दिया जाये। इसके लिए पहले खेत को सूखा ही 2 जोत हैंरों या कल्टीवेटर से लगा देनी चाहिए और अगर संभव हो सके तो उसमें प्लाऊ से 8 से 10 इंच गहरी जुताई लगा कर मिटटी को पलट देना चाहिए जिससे कि ऊपर की मिटटी नीचे और नीचे की मिटटी ऊपर आ जाये। उसके बाद उसमें पलेवा ( सूखे खेत में पानी देना) करके जुताई आने पर कल्टीवेटर से 2 से 3 जुताई लगाकर पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत में नमी बनी रहे और समतल भी हो जाये।

उचित जलवायु और मिटटी:

सूरजमुखी के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। इसको बोने का सही समय फ़रवरी से मार्च का दूसरा सप्ताह उचित होती हैं क्योंकि अगर इसके फूल को बीज पकते समय बारिश नहीं होनी चाहिए अगर पकते समय बारिश हो जाती है तो इसको बहुत नुकसान होता है तथा इसकी फसल की गुणबत्ता भी खराब हो जाती है। इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है इसकी फसल को दोमट और रेतीली भुरभुरी वाली मिटटी में उगाना उचित होगा। सर्वप्रथम हमें ध्यान रखना चाहिए की जिस खेत में हम इसे लगा रहे हैं उसमे पानी निकासी की उचित व्यवस्था है की नहीं क्योंकि अगर इसके खेत में पानी भर जाता है तो इसके पेड़ ख़राब होने की संभावना होती है। ये भी पढ़ें : कहां कराएं मिट्टी के नमूने की जांच

उर्वरक की जरूरत:

हम जिस मिटटी में इसे लगा रहे हैं उसमें खाद की मात्रा कितनी है? उचित रहेगा की हम अपनी मिटटी का टेस्ट कराके उसमे जरूरत के हिसाब से ही नाइट्रोजन, फास्फोरस का प्रयोग करना चाहिए फिर भी हमें 80KG नाइट्रोजन और 60KG फास्फोरस का प्रति एकड़ के हिसाब से लेना चाहिए। नाइट्रोजन को खेत में बखेर देना चाहिए तथा जुताई लगा देनी चाहिए और फास्फोरस और पोटास को कुंडों में डालना चाहिए. अगर खेत में आलू की फसली की गई हो तो उसमे खाद की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत तक काम की जा सकती है।

बुवाई का ठीक समय:

सूरजमुखी की फसल का सही समय फ़रवरी और मार्च के दूसरे सप्ताह तक होता है। इसकी फसल जून के दूसरे सप्ताह तक पक कर स्टोर हो जानी चाहिए या कहा जा सकता है कि जून के दूसरे सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जानी चाहिए जिससे की बारिश शुरू होने से पहले घर आ जानी चाहिए। बारिश की वजह से इसमें बहुत नुकसान होता है।

बुवाई से पहले बीज की तैयारी:

बीज को बोने से 12 घंटे पहले भिगो देना चाहिए और बाद में निकाल कर इसे छाया में सुखा देना चाहिए। इसकी बुवाई दोपहर बाद करनी चाहिए जिससे कि इसके बीज को खेत में ठन्डे में उगने के लिए पर्याप्त माहौल मिल सके। गर्मी के मौसम में हमेशा याद रखें ज्यादातर बीजों  को भिगोकर बोने की सलाह दी जाती है क्योंकि गर्मी में तापमान दिन में बहुत ज्यादा होता है इस तापमान में बीज को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती है।

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में:

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में मार्डन :- इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसकी उपज समय अवधि 80 से 90 दिन है | इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 90 से 100 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति की खेती बहुफसलीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।  इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है। बी.एस.एच.–1 :- इस प्रजाति की उत्पादन 10 से 15 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 100 से 150 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 41 प्रतिशत होती है। एम.एस.एच. :- इस प्रजाति की उत्पादन 15 से 18 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 170 से 200  सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 42 से 44 प्रतिशत होती है। सूर्या :– इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 100 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 130 से 135 सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र38 से 40  प्रतिशत होती है। ई.सी. 68415 :- इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 110 से 115 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 180 से 200  सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है।

कीड़े और  रोकथाम:

सूरजमुखी की खेती में कई प्रकार के कीट रोग लगते है, जैसे कि दीमक हरे फुदके (डसकी बग) आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ईसी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

कटाई:

सूरजमुखी की फसल एक साथ कटाई के लिए नहीं आती है इसके फूलों को तोड़ने से पहले देखें की वो हलके पीले रंग के हो गए है, तभी इनको तोड़ कर किसी छाया वाली जगह में सूखा लें। इसकी गहाई के दो तरीके हैं एक तो इसको फूल से फूल रगड़ कर भी बीज अलग किया जा सकता है या डंडे से पीट पीट कर निकला जा सकता है या फिर ज्यादा फसल है तो इसको निकालने के लिए थ्रेसर की मदद भी ली जा सकती है।
सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)

सूरजमुखी किसानों के लिए बहुत ही मूल्यवान फसल मानी जाती हैं। सूरजमुखी की फसल से जुड़े विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां जिसको जानकर आप सूरजमुखी के बहुत सारे फायदे से जागरूक हो जाएंगे। किसानों के अनुसार सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है। किसानों का यह कहना है कि सूरजमुखी की फसल बेहतर मुनाफा देने वाली फसल है। जिसको आम भाषा में नकदी फसल भी कहा जाता है। प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार सूरजमुखी की पहली खेती उत्तराखंड के पंतनगर में हुई थी जिसका समय लगभग 1969 था। किसान सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी और जायद इन तीनों मौसमों में करते हैं। आइये जानते हैं सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ । कुछ सालों के अनुमान से यह कहा जा सकता है, कि सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। तथा किसान इसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि भी कर रहे हैं जिससे वह उचित मूल्य प्राप्त कर सकें। 

सूरजमुखी की कटाई मई महीने के अंत में ऐसे करें

किसान के लिए सूरजमुखी की फसल बहुत ही फायदेमंद होती है। इसीलिए वह इसकी खास देखभाल करते हैं और इसकी कटाई पर भी विशेष रूप से ध्यान देते हैं। ताकि इस फसल को किसी भी तरह का कोई नुकसान ना हो, जिससे उनको आगे नुकसान सहना पड़े। किसान सूरजमुखी की बुवाई फरवरी के महीने से करना शुरू कर देते हैं ताकि मई के आखिरी महीने में वह इस की कटाई कर अच्छी फसल को प्राप्त कर सकें। यदि सूरजमुखी की बुवाई सही टाइम पर ना करें। तो भारी बारिश हो जाने के बाद पैदावार में काफी हद तक नुकसान भी हो सकता है। सूरजमुखी की फसल की कटाई मई के अंत में करना बहुत ही उचित होता है। 

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सूरजमुखी के लिए जलवायु और भूमि

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ - sunflower farm -सूरजमुखी के लिए जलवायु और भूमि 

 सूरजमुखी की खेती के लिए अच्छी जलवायु और भूमि की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की फसलें खरीफ रबी जायद तीनों मौसमों में इसकी खेती की जाती है। सूरजमुखी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की खेती आप किसी भी भूमि में कर सकते हैं। सूरजमुखी की खेती के लिए अम्लीय एवम क्षारीय भूमि उचित नहीं होती खेती के लिए। वैसे तो आप किसी भी मिट्टी में सूरजमुखी की खेती कर सकते हैं। लेकिन सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे उचित दोमट मिट्टी होती है। 

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सूरजमुखी की फसल के लिए खेत को किस प्रकार तैयार करते हैं:

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ : सूरजमुखी की फसल को तैयार करने के लिए किसान निम्न प्रकार से खेत को तैयार करते हैं जैसे: किसान सूरजमुखी की खेती जायद मौसम में करते हैं जिससे उनको नमी वाली भूमि की प्राप्ति हो सके। किसान भूमि की ऊपरी परत को चीरकर जुताई करने तथा बीज बोने की प्रक्रिया को शुरू करते है। खेत की पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं। तीन से चार दिन बाद खेत की जुताई कल्टीवेटर से करना जरूरी होता है। मिट्टी का  भुरभुरा पन समय-समय पर देखते रहना चाहिए ताकि उस में नमी बरकरार रहे। 

सूरजमुखी की बुवाई:

surajmukhi ki buvai - सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ 

 सूरजमुखी की अच्छी फसल को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ इस तरह से बुवाई करनी चाहिए: सर्वप्रथम आपको सबसे पहले बीज को रात में भिगोकर रखना होगा। भिगोने के बाद आपको करीबन 3 से 4 घंटा बीज को छांव में रखना होगा। शाम होने पर आपको सुखाई हुई बीज को बोना शुरू कर देना चाहिए। सूरजमुखी की फसल के लिए बीज की अलग-अलग मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। इसमें आपको संकुल या सामान्य बीजों की आवश्यकता पड़ती है।फसल की बुवाई के लिए आपको करीबन 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टर बीज लेना चाहिए। यदि आपको यह आभास हो जाए। कि बीज में जमाव की गुणवत्ता नहीं है तो आपको ज्यादा से ज्यादा बुवाई के लिए बीज लेनी चाहिए। सूरजमुखी की बुवाई के लिए लगभग 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रतिकिलो ग्राम बीज को शोधित कर लेना चाहिए।

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सूरजमुखी फसल की सिंचाई का समय:

फसल की अच्छी प्राप्ति के लिए सिंचाई का समय समय पर ध्यान रखना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। किसान सूरजमुखी फसल की पहली सिंचाई बुवाई करने के बाद 20 से 25 दिन के उपरांत करते हैं।किसान यह सिंचाई छिड़काव के रूप में भी करते हैं।10 से 15 दिन के बीच इसकी दोबार सिंचाई करनी होती है। सूरजमुखी फसल की सिंचाई करीबन 5 से 6 बार करनी होती है।जब खेतों में सूरजमुखी के फूल निकल आए तो हल्की सिंचाई करने चाहिए। ताकि पौधे जमीन में ना गिर सके। यदि आप भारी सिंचाई करेंगे तो पानी के प्रभाव से पौधे गिरने लगेंगे। 

सूरजमुखी की फसल के लिए मिट्टी की मात्रा :

सूरजमुखी की फसल के लिए लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन की टापड्रेसिंग करने के बाद पौधों पर यह मिट्टी चढ़ाई जाती है।किसान हमेशा इस चिंता में रहते हैं। कि सूरजमुखी का पौधा ना गिर जाए, क्योंकि यह  आकार में बहुत बड़ा होता है।जिसकी वजह से किसान को इनके गिरने का भय लगा रहता है।मिट्टी चढ़ाने से इनका संतुलन बराबर बना रहता है। 

सूरजमुखी फसल की सुरक्षा:

surajmukhi ki suraksha - सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ 

 फसल को कीटनाशक कीटों से सुरक्षा प्रदान करने तथा दीमक से बचाने के लिए कई तरह के रसायनों का प्रयोग किसान फसल की सुरक्षा के लिए करते हैं। किसान फसलों की सुरक्षा के लिए मिथाइल ओडिमेंटान में लगभग 1 लीटर तथा 25ई सी साथ ही साथ फेन्बलारेट 750 मिली लीटर  प्रति हैक्टर के साथ लगभग 800 से 100 लीटर पानी में मिक्स कर फसलों पर छिड़काव करते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा सूरजमुखी फसलों की सुरक्षा कीटों से होती है। इस पोस्ट में हमने सूरजमुखी फसल से जुड़ी विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां आपको दी है। जैसे मई के महीने में किस प्रकार सूरजमुखी फसल की कटाई कैसे करें, जलवायु और भूमि की उपयोगिता,  बुवाई तथा सिंचाई आदि की पूर्ण जानकारी, हमारी इस पोस्ट में मौजूद है। यदि आप हमारी दी हुई जानकारी से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। तो कृपया आप ज्यादा से ज्यादा हमारी इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें।

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

सहफसली तकनीक से किसान अपनी कमाई कर सकते हैं दोगुना

किसानों को परंपरागत खेती में लगातार नुकसान होता आ रहा है, जिसके कारण जहाँ किसानों में आत्महत्या की प्रवृति बढ़ रही है, वहीं किसान खेती से विमुख भी होते जा रहे हैं. इसको लेकर सरकार भी चिंतित है. लगातार खेती में नुकसान के कारण किसानों का खेती से मोहभंग होना स्वभाविक है, इसी के कारण सरकार आर्थिक तौर पर मदद करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. सरकार की तरफ से किसानों को खेती में सहफसली तकनीक (multiple cropping or multicropping or intercropping) अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. विशेषज्ञों की मानें, तो ऐसा करने से जमीन की उत्पादकता बढ़ती है, साथ ही एकल फसली व्यवस्था या मोनोक्रॉपिंग (Monocropping) तकनीक की खेती के मुकाबले मुनाफा भी दोगुना हो जाता है.


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सहफसली खेती के फायदे

परंपरागत खेती में किसान खरीफ और रवि के मौसम में एक ही फसल लगा पाते हैं. किसानों को एक फसल की ही कीमत मिलती है. जो मुनाफा होता है, उसी में उनकी मेहनत और कृषि लागत भी होता है. जबकि, सहफसली तकनीक में किसान मुख्य फसल के साथ अन्य फसल भी लगाते हैं. स्वाभाविक है, उन्हें जब दो या अधिक फसल एक ही मौसम में मिलेगा, तो आमदनी भी ज्यादा होगी. किसानों के लिए सहफसली खेती काफी फायदेमंद होता है. कृषि वैज्ञानिक लंबी अवधि के पौधे के साथ ही छोटी अवधि के पौधों को लगाने का प्रयोग करने की सलाह किसानों को देते हैं. किसानों को सहफसली खेती करनी चाहिए, ऐसा करने से मुख्य फसल के साथ-साथ अन्य फसलों का भी मुनाफा मिलता है, जिससे आमदनी दुगुनी हो सकती है.


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धान की फसल के साथ लगाएं कौन सा पौधा

सहफसली तकनीक के बारे में कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर दयाशंकर श्रीवास्तव सलाह देते हैं, कि धान की खेती करने वाले किसानों को खेत के मेड़ पर नेपियर घास उगाना चाहिए. इसके अलावा उसके बगल में कोलस पौधों को लगाना चाहिए. नेपियर घास पशुपालकों के लिए पशु आहार के रूप में दिया जाता है, जिससे दुधारू पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ता है और उसका लाभ पशुपालकों को मिलता है, वहीं घास की अच्छी कीमत भी प्राप्त की जा सकती है. बाजार में भी इसकी अच्छी कीमत मिलती है.


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गन्ना, मक्की, अरहर और सूरजमुखी के साथ लगाएं ये फसल

पंजाब हरियाणा और उत्तर भारत समेत कई राज्यों में किसानों के बीच आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है और इसका कारण लगातार खेती में नुकसान बताया जाता है. इसका कारण यह भी है की फसल विविधीकरण नहीं अपनाने के कारण जमीन की उत्पादकता भी घटती है और साथ हीं भूजल स्तर भी नीचे गिर जाता है. ऐसे में किसानों के सामने सहफसली खेती एक बढ़िया विकल्प बन सकता है. इस विषय पर दयाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि सितंबर से गन्ने की बुवाई की शुरुआत हो जाएगी. गन्ना एक लंबी अवधि वाला फसल है. इसके हर पौधों के बीच में खाली जगह होता है. ऐसे में किसान पौधों के बीच में लहसुन, हल्दी, अदरक और मेथी जैसे फसलों को लगा सकते हैं. इन सबके अलावा मक्का के फसल के साथ दलहन और तिलहन की फसलों को लगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. सूरजमुखी और अरहर की खेती के साथ भी सहफसली तकनीक को अपनाकर मुनाफा कमाया जा सकता है. कृषि वैज्ञानिक सह्फसली खेती के साथ-साथ इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी ‘एकीकृत कृषि प्रणाली’ की भी सलाह देते हैं. इसके तहत खेतों के बगल में मुर्गी पालन, मछली पालन आदि का भी उत्पादन और व्यवसाय किया जा सकता है, ऐसा करने से कम जगह में खेती से भी बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है.
देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

देश में दलहन और तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास करेगी सरकार, देश भर में बांटेगी मिनी किट

इस साल देश के कई राज्यों में खरीफ की फसल मानसून की बेरुखी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुई है, जिसके कारण उत्पादन में भारी गिरावट आई है। उत्पादन में यह गिरावट किसानों की कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि यदि किसान खरीफ की फसल में लाभ नहीं कमा पाए तो उनके लिए नई चुनौतियां खड़ी हो जाएंगी। इसके अलावा अगर किसानों के पास पैसा नहीं रहा तो किसानों के लिए रबी की फसल में बुआई करना मुश्किल हो जाएगा। बिना पैसों के खेती से जुड़ी चीजें जैसे कि खाद, बीज, कृषि उपकरण, डीजल इत्यादि सामान खरीदना किसानों के लिए मुश्किल हो जाएगा। किसानों की इन चुनौतियों को देखते हुए केंद्र सरकार किसानों की मदद करने जा रही है। केंद्र सरकार किसानों के लिए रबी सीजन में दलहन और तिलहन की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए मुफ्त मिनी किट वितरित करेगी। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे देश भर में दलहन के उत्पादन में लगभग 20-25 फीसदी की वृद्धि की जा सकती है। इसको देखते हुए मिनी किट वितरण की रूप रेखा तैयार कर ली गई है। ये भी पढ़े: दलहनी फसलों पर छत्तीसढ़ में आज से होगा अनुसंधान देश भर में मिनी किट का वितरण भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड (NAFED) के अंतर्गत आने वाली संस्था राष्ट्रीय बीज निगम - एनएससी (NSC) करेगी। इन मिनी किटों का भुगतान भारत सरकार अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत किया जाएगा। केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की योजना के अनुसार इन मिनी किटों का वितरण उन्हीं राज्यों में किया जाएगा, जहां दलहन एवं तिलहन का उत्पादन किया जाता है।

इस योजना का उद्देश्य क्या है

केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, इस योजना का मुख्य उद्देश्य उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही किसानों के बीच फसलों की नई किस्मों को लेकर जागरूक करना है, ताकि किसान इन मिनी किटों के माध्यम से नई किस्मों के प्रति आकर्षित हों और ज्यादा से ज्यादा रबी की बुआई में नई किस्मों का इस्तेमाल करें। इस योजना के अंतर्गत किसानों के बीच मिनी किटों में उच्च उत्पादन वाले बीजों का वितरण किया जाएगा। मिनी किटों का वितरण महाराष्ट्र के विदर्भ में रेपसीड और सरसों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए, साथ ही तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में वहां की प्रमुख तिलहन फसल मूंगफली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए तथा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान में अलसी और महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में कुसुम (सूरजमुखी) का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाएगा। ये भी पढ़े: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने इस साल देश भर के 11 राज्यों में दलहन की बुवाई बढ़ाने के लिए, उड़द के 4.54 लाख बीज मिनी किट और मसूर के 4.04 लाख बीज मिनी किट राज्यों को भेज दिए हैं। उत्तर प्रदेश के लिए सबसे ज्यादा 1,11,563 मिनी किट भेजे गए हैं, इसके बाद झारखण्ड के लिए 12,500 मिनी किट और बिहार के लिए 12,500 मिनी किट भेजे गए हैं। इसके अतिरिक्त कृषि मंत्रालय एक और योजना लागू करने जा रही है, जिसके अंतर्गत देश भर के 120 जिलों में मसूर और 150 जिलों में उड़द का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। इस योजना को विशेष कार्यक्रम '(TMU 370; टीएमयू 370) 'तूर मसूर उड़द - 370'' के नाम से प्रचारित किया जाएगा।
"केंद्र सरकार के रबी 2022-23 के लिए दलहन और तिलहन के बीज मिनीकिट वितरण" से सम्बंधित 
सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें।
ये भी पढ़े: किस क्षेत्र में लगायें किस किस्म की मसूर, मिलेगा ज्यादा मुनाफा अगर आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले 3 सालों के दौरान देश में दलहन और तिलहन के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है। अगर साल 2018-19 तक अब की तुलना करें तो दलहन के उत्पादन में 34.8% की वृद्धि दर्ज की गई है। जहां साल 2018-19 में दलहन का उत्पादन 727 किग्रा/हेक्टेयर था। जबकि मौजूदा वर्ष मे दलहन का उत्पादन बढ़कर 1292 किग्रा/हेक्टेयर पहुंच गया है।
कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

रबी का सीजन शुरू हो चुका है, सीजन के शुरू होने के साथ ही रबी की फसलों की बुवाई भी बड़ी मात्रा में शुरू हो चुकी है। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरजमुखी या सूर्यमुखी (Sunflower) की खेती की सम्पूर्ण जानकारी ताकि किसान भाई इस बार रबी के सीजन में सूरजमुखी की खेती करके ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकें। अभी भारत में मांग के हिसाब से सूरजमुखी का उत्पादन नहीं होता है, इसलिए भारत सरकार को घरेलू आपूर्ति के लिए विदेशों से सूरजमुखी आयत करना पड़ता है, ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। भारत में इसकी खेती सबसे पहले साल साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी, जिसके बाद अच्छे परिणाम प्राप्त होने पर देश भर में इसकी खेती की जाने लगी। फिलहाल महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा और पंजाब के किसान सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में हर साल लगभग 15 लाख हेक्टेयर पर सूरजमुखी की खेती की जाती है, साथ ही देश के किसान इसकी खेती से 90 लाख टन की पैदावार लेते हैं। अगर सूरजमुखी की खेती में औसत पैदावार की बात करें तो 1 हेक्टेयर में 7 क्विंटल सूरजमुखी के बीजों का उत्पादन होता है। सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसकी खेती सर्दी के सीजन में की जाए तो अच्छी पैदावार निकाली जा सकती है।


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सूरजमुखी की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

खेत तैयार करने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवा लें, यदि खेत की मिट्टी ज्यादा अम्लीय या ज्यादा क्षारीय है तो उस जमीन में सूरजमुखी की खेती करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसके साथ ही विशेषज्ञों से उर्वरक के इस्तेमाल की सलाह जरूर लें ताकि जरुरत के हिसाब से खेत की मिट्टी में पर्याप्त उर्वरक इस्तेमाल किये जा सकें। खेत तैयार करते समय ध्यान रखें कि खेत से पानी की निकासी का सम्पूर्ण प्रबंध होना चाहिए। इसके बाद गहरी जुताई करें और खेत को समतल करके बुवाई के लिए तैयार कर लें।

सूरजमुखी की खेती के लिए बाजार में उपलब्ध उन्नत किस्में

ऐसे तो बाजार में सूरजमुखी के बीजों की कई किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन अधिक और अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिये किसान कंपोजिट और हाइब्रिड किस्मों का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करने पर सूरजमुखी की खेती 90 से 100 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है, और उसके बीजों में तेल का प्रतिशत भी 40 से 50 फीसदी के बीच होता है। अगर बेस्ट किस्मों की बात करें तो किसान भाई सूरजमुखी की बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19 और सूर्या किस्मों का चयन कर सकते हैं।


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सूरजमुखी की बुवाई कैसे करें

सूरजमुखी की बुवाई रबी सीजन की शुरुआत में की जाती है। अगर माह की बात करें तो अक्टूबर का तीसरा और चौथा सप्ताह इसके लिए बेहतर माना गया है। इसकी बुवाई से पहले बीजों का उपचार कर लें ताकि बुवाई के समय किसानों के पास बेस्ट किस्म के बीज उपलब्ध हों। सूरजमुखी के बीजों की बुवाई छिड़काव और कतार विधि दोनों से की जा सकती है। लेकिन भारत में कतार विधि, छिड़काव विधि की अपेक्षा बेहतर मानी गई है। कतार विधि का प्रयोग करने से खेती के प्रबंधन में आसानी रहती है। इसके लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लाइनों के बीच 4-5 सेमी और बीजों के बीच 25-30 सेमी का फासला रखना चाहिए।

सूरजमुखी की खेती में खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल कैसे करें

जैविक खाद एवं उर्वरक किसी भी खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इसलिए सूरजमुखी की खेती में भी इन चीजों का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है। सूरजमुखी के बीजों का क्वालिटी प्रोडक्शन प्राप्त करने के लिए 6 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। इसके साथ विशेषज्ञ 130 से 160 किग्रा यूरिया, 375 किग्रा एसएसपी और 66 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।


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सूरजमुखी की खेती में सिंचाई किस प्रकार से करें

सुरजमुखी की खेती में सामान्य सिंचाई की दरकार होती है। इसकी खेती में 3 से 4 सिंचाईयां पर्याप्त होती हैं। इस खेती में यह सुनिश्चित करना बेहद अनिवार्य है कि खेत में नमी बनी रहे, ताकि पौधे बेहचर ढंग से पनप पाएं। सूरजमुखी की फसल में पहली सिंचाई 30-35 दिन के अंतराल में करनी होती है। इसके बाद हर तीसरे सप्ताह इस फसल में पानी देते रहें। इस फसल में फूल आने के बाद भी हल्की सिंचाई की दरकार होती है। यह एक फूल वाली खेती है इसलिए इसमें कीटों का हमला होना सामान्य बात है। इस फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरी सुंडी व हेड बोरर जैसे कीट तुरंत हमला बोलते हैं। जिससे सूरजमुखी के पौधों को रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसे रोग घेर लेते हैं। इसके अलावा इस खेती में पक्षियों का हमला भी आम बात है। फूलों में बीज आने के बाद पक्षी भी बीज चुन लेते हैं, ऐसे में किसानों को विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए ताकि वो इन परेशानियों से निपट पाएं। बुवाई के लगभग 100 दिनों बाद सूरजमुखी की खेती पूरी तरह से तैयार हो जाती है। इसके फूल बड़े होकर पूरी तरह से पीले हो जाते है। फूलों की पंखुड़ियां झड़ने के बाद किसान इस खेती की कटाई कर सकते हैं। कटाई करने के बाद इन फूलों को 4 से 5 दिन तक तेज धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद मशीन की सहायता से या पीट-पीटकर फूलों के बीजों को अलग कर लिया जाता हैं। अगर पैदावार की बात करें तो अच्छी परिस्थियों में किसान भाई उन्नत किस्मों और आधुनिक खेती के साथ एक हेक्टेयर में 18 क्विंटल तक सूरजमुखी के बीजों की पैदावार ले सकते हैं। सामान्य परिस्थियों में यह पैदावार 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।


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हाल ही में भारत सरकार ने सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर दी है। इस लिहाज से अब सूरजमुखी की खेती करके किसान भाई पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई कर सकते हैं। सरकार ने रबी सीजन के लिए सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 209 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से अब किसान भाइयों के लिए सूरजमुखी के बीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
आगामी बजट से पूर्व वित्त मंत्री ने किसानों के साथ बैठक की

आगामी बजट से पूर्व वित्त मंत्री ने किसानों के साथ बैठक की

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण १ फरवरी, २०२३ को अगला आम बजट प्रस्तुत करेंगी। बजट की तैयारियों के लिए वित्त मंत्री फिलहाल बजट से पहले ही बैठकें कर रही हैं, जिसमें उन्होंने सभी किसान संगठनों व समतियों से उनकी मांगे व सुझाव लिए हैं।

क्या कहा किसानों ने बैठक के दौरान

सामान्य बजट २०२३-२४ हेतु अपनी विश लिस्ट में भारत कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ ने मांग की कि सरकार को जहां आयातित कमोडिटी की देश में आने का खर्च न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम है, ऐसे में उपज के आयात को स्वीकृति नहीं देनी चाहिए। बतादें कि, उन्होंने केंद्र सरकार से कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन उन्नति एवं प्रगति के विकास पर अधिक जोर देने का निवेदन किया है। अजय वीर जाखड़ द्वारा किसानों को उचित व उच्चतम मूल्य प्राप्त करने हेतु सामर्ध्यवान बनाने के लिए खेतों से स्वैच्छिक कार्बन क्रेडिट का दुनियाभर के स्तर पर व्यापार करने हेतु स्वीकृति के संबंध में वकालत की है ।


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बैठक में मौजूद कंसोर्टियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन (सीआईएफए) के अध्यक्ष रघुनाथ दादा पाटिल ने बताया कि, टूटे चावल एवं गेंहू की तरह कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाने की वजह से किसानों की आमदनी पर विपरीत असर हुआ है। पाटिल ने कहा कि बैठक के दर्मियान उनके द्वारा यह सलाह दी गयी कि, सरकार को कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक नहीं लगानी चाहिए। पाटिल जी के हिसाब से निर्यात के माध्यम से भारत को विदेशी मुद्रा अर्जित करने में सहायता प्राप्त होगी। भारत ने घरेलू आपूर्ति में बढ़ोत्तरी करने एवं महंगाई दर को रोकने के लिए टूटे चावल व गेंहू के निर्यात को रोक दिया गया है। खाद्य तेलों के आयात पर भारत की निर्भरता में घटोत्तरी हेतु पाटिल जी ने सलाह दी कि सूरजमुखी, मूंगफली और सोयाबीन के गृह उत्पादन में वृद्धि पर अधिक जोर देना चाहिए। १ फरवरी, २०२३ को आगामी आम बजट प्रस्तुत करने जा रही हैं, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण।

ये लोग रहे बैठक में मौजूद

बतादें कि बैठक के दौरान प्रदेश अध्यक्ष, राज्य फल सब्जियां और फूल उत्पादक संघ (हिमाचल); और जेफरी रेबेलो, अध्यक्ष, यूपीएएसआई, (तमिलनाडु) वीरेन के खोना, सचिव, अखिल भारतीय मसाला निर्यातक फोरम, (केरल); ए एस नैन, निदेशक, गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, (उत्तराखंड); हरीश चौहान, भी मौजूद रहे। साथ ही, दक्षिण भारतीय गन्ना किसान संघ (एसआईएसएफए), तमिलनाडु के अध्यक्ष, वी राजकुमार, इफको के संयुक्त प्रबंध निदेशक – राकेश कपूर, भारतीय किसान संघ के महासचिव – मोहिनी मोहन मिश्रा एवं जैविक कृषि के लिए अंतरराष्ट्रीय क्षमता केंद्र (कर्नाटक) के कार्यकारी निदेशक – मनोज कुमार मेनन, जम्मू-कश्मीर फल और सब्जियां प्रसंस्करण और एकीकृत शीत भंडारण श्रृंखला संघ के अध्यक्ष – माजिद ए वफाई, एसोसिएटेड टी एंड एग्रो मैनेजमेंट सर्विसेज (असम) की कार्यकारी निदेशक – नंदिता शर्मा ने भी अपने विचार व सलाह साझा की।
खाने का तेल होगा सस्ता

खाने का तेल होगा सस्ता

पिछले कुछ समय से आम उपभोक्ताओं की शिकायत रही है, कि खाने के तेल के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं। सरकार की तरफ से भी कहा गया कि मलेशिया से आने वाले पाम आयल पर प्रतिबन्ध लगाए जाने के कारण ऐसा हुआ है। लेकिन, अब उम्मीद बंधती दिख रही है, कि खाने के तेल के दाम में गिरावट आ सकती है। लेकिन, सवाल यह भी है कि क्या किसानों को इससे फायदा होगा या नुकसान ? खबर यह है, कि सूरजमुखी उगाने वाले कई राज्यों, जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और हरियाणा में अभी सूरजमुखी के बीज निकालने का समय आ गया है। भारत हर साल करीब 2 लाख टन सूरजमुखी तेल का उत्पादन करता है। लेकिन, इस बीच खबर यह है, कि तिलहन की मांग में कमजोरी आई है, न सिर्फ सूरजमुखी बल्कि सरसों, सोयाबीन, मूंगफली की कीमत में भी कमी देखी गयी है। दूसरी तरफ, पाम आयल की मांग में तेजी देखी जा रही है।
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जानकारों की माने तो, अभी से ठीक 6 महीना पहले जहां सूरजमुखी तेल की कीमत 2,500 डॉलर प्रति टन थी, वहीं यह करीब आधा घटकर 1,360 डॉलर प्रति टन रह गया है। माना जा रहा है, कि यह विदेशों से तेल आने के कारण हुआ है, विदेश से आने वाला यह तेल ही किसानों को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि उसकी कीमत ११२ रूपये प्रति किलो तय की गयी है। दूसरी तरफ, किसानों को एक किलो सूरजमुखी बीज निकालने में 40 रूपये का खर्च बैठता है। यानी, उसकी कीमत हो गयी 152 रूपये। तो सवाल है, कि वह 112 रूपये वाली कीमत का मुकाबला कैसे करेगा ? जाहिर है, ऐसे में किसान सूरजमुखी का तेल बनाने से अधिक उसके अन्य प्रोडक्ट बनाना पसंद करेंगे, जिससे कि उनका मुनाफ़ा बढ़ सके। सूरजमुखी से अन्य कई प्रोडक्ट, जैसे मुर्गी दाना और पशु आहार आदि भी बनाए जाते हैं। एक और समस्या है, विदेश से आने वाले सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क नहीं है। हां, यह कोटा के तहत जरूर लाया जा रहा है, इस वजह से सप्लाई कम हो गया है और विक्रेता इसका फायदा उठा रहे हैं। जाहिर है, भारत में तिलहन उत्पादन तभी बढ़ सकता है, जब किसानों को उनकी उपज का मूल्य बेहतर मिलेगा। विदेश से आने वाले पाम आयल, सूरजमुखी के मुकाबले सस्ता पड़ता है, इस वजह से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकार को कीमत में अन्तर के बारे में सोचना होगा।
सेना में 18 साल नौकरी करने के बाद, गेंदे की खेती कर कमा रहे हैं लाखों

सेना में 18 साल नौकरी करने के बाद, गेंदे की खेती कर कमा रहे हैं लाखों

विगत कुछ दिनों में फूलों की खेती किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही हैं, जिसका मुख्य कारण कम लागत और बढ़िया मुनाफा है। पूरे भारत में गुलाब से लेकर सूरजमुखी और अन्य फूलों की खेती बड़े स्तर पर की जा रही है। किसान पारंपरिक खेती से फूलों की खेती की तरफ ज्यादा रुझान दिखा रहे हैं, जिसका मुख्य कारण कम लागत में अच्छा मुनाफा बताया जा रहा है। फूलों की खेती में जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है, वह है गेंदा की खेती। किसानों का कहना है, कि गेंदे की खेती में काफी अच्छा मुनाफा है। किसान यह भी बता रहे हैं, कि गेंदे की खेती में लागत कम है और इसे करना भी अन्य फूलों की खेती से आसान है। आज इस लेख में गेंदे की खेती करने वाले उस पूर्व सैनिक की कहानी बताएंगे जो विगत कुछ दिनों से गेंदा की खेती के लिए काफी चर्चित हो रहे हैं।

कौन है गेंदा की खेती करने वाला चर्चित किसान

गेंदा की खेती कर चर्चित होने वाले किसान जमशेदपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर रहने वाला एक आदिवासी बताया जा रहा है। आपको यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि यह किसान पूर्व में 18 साल तक सैनिक के तौर पर सेवाएँ दे चुके हैं। 18 साल सेना में सेवा देने के बाद एरिक मुंडा नामक व्यक्ति अब गेंदा की खेती कर काफी चर्चित हो रहे हैं।


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क्या कहते हैं एरिक मुंडा

गेंदा की खेती कर चर्चित होने वाले किसान एरिक मुंडा का कहना है, कि इसी खेती से वो अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दे पा रहा है। वो कहते हैं, कि इसी खेती की कमाई की वजह से उनके बच्चों ने इंजीनियरिंग, बीकॉम(B.Com) की पढ़ाई की। गौरतलब है, कि उनके बच्चों ने पढ़ाई करने के बाद भी कहीं नौकरी करने की जगह उसी फूल की खेती करना उचित समझा और आज उनके सभी बच्चे उनके साथ फूल की खेती कर रहे हैं। एरिक मुंडा का कहना है, कि ये बच्चे उन किसानों के लिए मिसाल हैं, जो अभी भी नौकरी की तलाश में है या फिर बेरोजगार हैं।


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बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान
एरिक मुंडा 18 साल तक देश की सेवा करने के बाद जब वापस आए, तो वह दलमा के तराई वाले इलाकों में फूल की खेती करना शुरू किया। एरिक मुंडा के पुत्र अनीश मुंडा का कहना है, कि वह अपने पिता से प्रभावित होकर उन्हीं के साथ फूल की खेती शुरू कर दिए हैं। अनीश मुंडा यह भी कहते हैं, कि वह अपने पिता की तरह फूल की खेती में अपना भविष्य भी देख रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आज का यह चर्चित किसान ने कभी मात्र चार एकड़ में गेंदे की खेती शुरू की थी और आज लाखों लाख मुनाफा कमा रहे हैं। एरिक मुंडा किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत है, जो आज भी नौकरी की तलाश कर रहे हैं या फिर बेरोजगार हैं।


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कई बीमारियों में गेंदे के रस का इस्तेमाल

गेंदे की बढ़ती मांग को देखते हुए भी किसान इसकी खेती की तरफ रुझान कर रहे हैं। आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि गेंदे के फूल के रस का इस्तेमाल बहुत सारी बीमारियों में किया जाता है। किसान यह भी बताते हैं, कि अगर आपके पास एक हेक्टेयर खेती योग्य जमीन है तो आप हर साल लगभग छः लाख की कमाई कर सकते हैं।
इस फूल की खेती से किसान तिगुनी पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

इस फूल की खेती से किसान तिगुनी पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई आजकल कम खर्च में अधिक आय देने वाली फसलों की कृषि को अधिकाँश तवज्जो दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के मध्य फूलों का उत्पादन को लेकर लोकप्रियता बहुत बढ़ी है। इसी क्रम में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के किसान उच्च स्तर पर सूरजमुखी की कृषि से मोटी आय अर्जित कर रहे हैं। रबी फसलों की कटाई केवल कुछ दिनों के अंदर ही चालू होने वाली है। इसके उपरांत कुछ माह खेत खाली रहेंगे, उसके उपरांत खरीफ की फसलों की खेती की शुरुआत हो जाएगी। रबी फसलों की कृषि आरंभ हो जाएगी। रबी फसलों की कटाई एवं खरीफ फसलों की बुवाई के मध्य किसान नगदी फसलों का उत्पादन कर सकते हैं। इसके चलते आप मार्च माह में सूरजमुखी के पौधों की भी कृषि कर सकते हैं। इस फसल की खेती पर भारत सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है।

सूरजमुखी के फूल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन-सी है

सूरजमुखी का पौधा तिलहन फसलों के अंतर्गत आता है। सूरजमुखी को साल में तीन बार उगाया जा सकता है। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में इसका उत्पादन बड़े रकबे पर की जाती है। रेतीली दोमट मिट्टी एवं काली मिट्टी इसके उत्पादन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। जिस भूमि पर इसका खेती की जाती है। उसका पीएच मान 6.5 एवं 8.0 के मध्य होना आवश्यक है।

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सूरजमुखी के बीज का उपचार किस प्रकार होता है

खेतों में सूरजमुखी के बीज रोपने से पूर्व उसका उपचार करना काफी आवश्यक है। नहीं तो, विभिन्न बीज जनित बीमारियों से आपकी फसल प्रभावित होकर नष्ट हो सकती है। सर्व प्रथम सूरजमुखी के बीजों को साधारण जल में 24 घंटे के लिए भिगो दें एवं उसके बाद बुवाई से पूर्व छाया में सुखा लें। बीजों पर थीरम 2 ग्राम प्रति किग्रा व डाउनी फफूंदी से संरक्षण हेतु मेटालैक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो अवश्य छिड़कें। इसके उपरांत ही एक निश्चित दूरी की क्यारियों में इसकी बुवाई करें। बुवाई के उपरांत जब पौधा निकल आए तब 20 से 25 दिनों के समयांतराल पर इसकी सिंचाई करते रहें।

सूरजमुखी फूल तैयार होकर कटाई के लिए कब तैयार हो जाता है

सूरजमुखी की फसल की कटाई तब की जाती है, जब समस्त पत्ते सूख जाते हैं। साथ ही, सूरजमुखी के फूल के सिर का पिछला हिस्सा नींबू पीला पड़ जाता है। समय लगने पर दीमक का संक्रमण हो सकता है एवं फसल नष्ट हो सकती है। सूरजमुखी के पौधे से तेल निकालने के अतिरिक्त औषधियों तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कृषक इस फसल से कम खर्च, कम समय में लाखों की आय कर सकते हैं।

फूलों के उत्पादन से किसान लाखों कमा सकते हैं

फूलों के उत्पादन से किसान भाई काफी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। यह बात अब किसान समझने भी लगे हैं। इसलिए आजकल किसान फूलों की खेती करने की दिशा में अपनी काफी रूचि दिखा रहे हैं। भारत के अधिकांश किसान आज भी परंपरागत खेती किया करते हैं। जिसकी वजह से किसानों को कोई खास प्रगति या उन्नति नहीं मिल पाती है। किसान भाई काफी सजग और जागरूक दिखाई दे रहे हैं। तभी आज फूलों की खेती के रकबे मे काफी वृद्धि देखने को मिल रही है।
छत्तीसगढ़ में किसान कर रहे हैं सूरजमुखी की खेती, आय में होगी बढ़ोत्तरी

छत्तीसगढ़ में किसान कर रहे हैं सूरजमुखी की खेती, आय में होगी बढ़ोत्तरी

छत्तीसगढ़ देश का प्रमुख धान उत्पादक राज्य है। जहां धान की खेती सर्वाधिक होती है, इसलिए इसे धान का कटोरा भी कहा जाता है। यहां के ज्यादातर किसान अपने खेतों में धान का उत्पादन करते हैं और उसी से उनकी आजीविका चलती है। लेकिन पिछले कुछ समय से देखा गया है कि राज्य सरकार प्रदेश के किसानों के लिए कई जनहितकारी योजनाएं लेकर आ रही है। जिससे किसानों को फायदा हो रहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा लाई जा रही जनहितकारी योजनाओं के कारण अब किसान धान की खेती के अलावा अन्य खेती की तरफ भी रुख कर रहे हैं। जिससे किसानों को भविष्य में फायदा होने वाला है। क्योंकि अन्य फसलों के उत्पादन में धान की अपेक्षा किसानों को ज्यादा मुनाफ़ा मिल सकता है। छत्तीसगढ़ शासन ने घोषणा की है कि धान के अलावा अन्य फसलों को उगाने पर सरकार किसानों को सीधे सब्सिडी प्रदान करेगी। सरकार के प्रोत्साहन से प्रभावित होकर प्रदेश के कई किसानों ने अपने यहां सूरजमुखी की खेती प्रारंभ कर दी है। रायगढ़ जिले के पुसौर विकासखण्ड के ग्राम बोन्दा के किसान तेजराम गुप्ता ने बताया है कि उन्होंने अपने खेतों में अब धान की जगह पर सूरजमुखी की खेती करना प्रारंभ कर दी है। इसमें उन्हें ज्यादा लाभ हो रहा है। किसान तेजराम गुप्ता ने बताया कि कृषि विभाग के अधिकारियों ने उन्हें यह खेती करने के लिए प्रोसाहित किया है। अधिकारियों ने सूरजमुखी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई है। साथ ही बीज, सूक्ष्म पोषक तत्व एवं कीटनाशक भी उपलब्ध करवाए हैं। इसके लिए किसी भी तरह के पैसे नहीं लिए गए हैं। यह सहायता पूरी तरह से मुफ़्त उपलब्ध करवाई गई है। इसके अलावा उन्होंने 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट स्वयं से खरीदकर खेत में डाला है। किसान तेजराम गुप्ता ने बताया है कि उन्होंने सूरजमुखी की खेती के लिए कड़ी मेहनत की है। इसके लिए खेत तैयार करने के लिए 3 बार गहरी जुताई की है और दो बार रोटवेटर से खेत तैयार किया है। इसके बाद वर्मी कम्पोस्ट को खेत में मिलाकर बुवाई की है। बुवाई के 20 दिन बाद निराई गुड़ाई का काम किया है और सिंचाई की है। कीटों के नियंत्रण के लिए फसल पर क्लोरोपाईरीफास एवं एजाडिरेक्टिन 1500 पी.पी.एम.का छिडक़ाव किया है। अब फसल की कटाई शुरू हो चुकी है। फसल को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार सूरजमुखी की खेती से अच्छा खासा लाभ होने वाला है।

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जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें
किसान तेजराम गुप्ता ने बताया है कि सूरजमुखी की फसल उगाने से उनकी आय में तेजी से वृद्धि हुई है। इसके साथ ही फसल चक्र होने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हुई है। अब राज्य के अन्य किसान भी खेती में वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करने लगे हैं जिससे उत्पादन में तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है और लोगों की आय भी बढ़ी है। इन दिनों भारत में तिलहन की काफी कमी चल रही है, जिसके चलते तिलहन की जबरदस्त मांग बनी हुई है। भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर सूरजमुखी विदेशों से आयात करता है ऐसे में भारत के किसान सूरजमुखी का उत्पादन करके घरेलू मांग की आपूर्ति आसानी से कर सकते हैं।