हवा में आलू उगाने की ऐरोपोनिक्स विधि की सफलता के लिए सरकार ने कमर कसी, जल्द ही शुरू होगी कई योजनाएं
सन 2015 से 2022 तक भारत में आलू (Potato) का उत्पादन लगभग 45 मिलियन मैट्रिक टन से 55 मिलीयन मेट्रिक टन के बीच में रहा है। भारत में उगने वाले कुल आलू में उत्तर प्रदेश का योगदान सर्वाधिक रहता है और वर्तमान में भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक देश है। बढ़ती मांग के मद्देनजर आलू उत्पादन की वृद्धि दर को बढ़ाने के लिए कई नए वैज्ञानिक तरीके बाजार में लोकप्रिय हो रहे हैं, जिनमें हाइड्रोपोनिक (Hydroponics method) अथार्त पानी की मदद से आलू उगाना और परंपरागत तरीके से उत्पादन की पुरानी हो चुकी तकनीकों से हटकर एक काफी लोकप्रिय हो रही है, जिसे एयरोपोनिक्स आलू फार्मिंग (Aeroponics Potato Farming) के नाम से जाना जाता है।
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एयरोपोनिक्स आलू फार्मिंग
इस तकनीक में आलू उगाने के लिए जमीन की आवश्यकता नहीं होती है और केवल हवा की मदद से ही आलू की पौध का उत्पादन किया जा सकता है। भारत में एयरोपोनिक्स तकनीक का सबसे पहले इस्तेमाल करनाल जिले में स्थित आलू प्रौद्योगिकी केंद्र (Potato Technology Centre) के द्वारा किया गया था। [caption id="attachment_10777" align="alignnone" width="1032"] एयरोपोनिक्स आलू फार्मिंग (Aeroponics Potato Farming) (Source: Potato Technology Centre, Shamgarh, Karnal)[/caption] एयरोपोनिक्स तकनीक से मिल रहे परिणामों से यह सामने आया है कि परंपरागत आलू उत्पादन विधि की तुलना में इस नई वैज्ञानिक विधि की मदद से 6 गुना तक अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, कृषि अनुसंधान केंद्र से जुड़े कई वैज्ञानिक उत्पादन की इस क्षमता का समर्थन भी कर चुके हैं। पूसा कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े वैज्ञानिक बताते हैं कि कई बार नए किसान भाइयों को इस तकनीक को समझाने में बहुत तकलीफ होती है, क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं होता कि आखिर कैसे बिना मिट्टी और जमीन के भी आलू का उत्पादन किया जा सकता है। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के तहत बनी एक समिति ने भी इस तकनीक से पर्यावरण पर होने वाले प्रभावों की जांच कर इसे मंजूरी प्रदान कर दी है।
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क्या है एयरोपोनिक्स तकनीक और इससे जुड़ी वैज्ञानिक समझ ?
वर्तमान में लोकप्रिय एयरोपोनिक्स तकनीक में पौधे को ठंडे इलाकों में स्थित वातावरण में उगाया जाता है। इस तकनीक में आलू को उगाने के लिए मिट्टी और सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सबसे पहले बड़े-बड़े बॉक्स में पौधे को लटका दिया जाता है और ऊपर के क्षेत्र को पूरी तरह ढक दिया जाता है इसके बाद प्रत्येक बॉक्स में सूक्ष्म पोषक तत्व डाले जाते हैं, एक बार पोषक तत्वों की मात्रा पूरी हो जाने के बाद थोड़ा बहुत पानी का स्त्राव भी किया जाता है, हालांकि पानी के छिड़काव के दौरान ध्यान रखें कि केवल इतना ही पानी डालें, जिससे कि पौधे की जड़ों में थोड़ी बहुत नमी बनी रहे। एयरोपोनिक्स आलू फार्मिंग (Seed Potato Crop in Aerophonics at PTC Shamgarh Karnal; Source: Potato Technology Centre, Shamgarh, Karnal) मिट्टी और भूमि की कमी होने वाले इलाकों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर बढ़ती जनसंख्या की मांग को पूरा किया जा सकता है, इसके अलावा शहरों में रहने वाले लोग भी इस तकनीक से किसानी का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं। नियंत्रित तापमान और आद्रता की स्थिति में इस्तेमाल आने वाली एयरोपोनिक्स तकनीक, किसानों को परंपरागत विधि से तैयार तकनीक से भी अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध करवा सकती है। कम पोषक तत्व और पानी के कम इस्तेमाल के बाद भी इस विधि से उत्पादन तो बढ़ता ही है, साथ ही उर्वरक और मजदूरी जैसे दूसरे प्रकार के खर्चों में अच्छी खासी कमी देखने को मिलती है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार परंपरागत तरीके से एक किलो आलू उत्पादन करने के लिए लगभग 200 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि एयरोपोनिक्स तकनीक में एक किलोग्राम आलू उत्पादन के लिए केवल 7 से 10 लीटर पानी पर्याप्त रहता है। इस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि आलू के उत्पादन के दौरान पॉलीघर या पॉलीहाउस (Polyhouse) का इस्तेमाल जरूर करें। पोली हाउस आपके प्लांट को ऊपर से ढकने के लिए इस्तेमाल में आने वाली पॉलीथिन से बनाया गया एक ढांचा होता है, जो मुख्यतः तापमान नियंत्रण का काम करता है।
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वर्तमान में भारत के किन क्षेत्रों में हो रहा है एयरोपोनिक्स आलू उत्पादन ?
प्लास्टिक शीट में छेद करके एयरोपोनिक्स विधि से उत्पादन की तकनीक का इस्तेमाल भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थित हरियाणा और पंजाब के राज्य में पिछले कुछ सालों से किया जा रहा है। इसके अलावा हाल ही में पूसा के वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश और असम के क्षेत्रों के अलावा हिमालय पर्वत से जुड़े हुए बर्फीले क्षेत्रों में भी इस तकनीक का इस्तेमाल कर अच्छा खासा उत्पादन किया है। हिमालयी राज्यों में एक बॉक्स बनाकर पौधे की जड़ लटका दी जाती है और पोषक तत्वों का छिड़काव करते हुए तब तक पानी दिया जाता है, जब तक इन जड़ों में आलू लगना शुरू नहीं हो जाता है। एक बार आलू की वृद्धि हो जाने पर बॉक्स को खोल कर तैयार आलू को अलग कर लिया जाता है।एयरोपोनिक्स तकनीक से आलू से होने वाला उत्पादन :
कृषि वैज्ञानिकों की राय में कम समय में ही एक यूनिट क्षेत्र में केवल 20 हज़ार आलू के पौधे लगाकर 6 लाख बीज तैयार किए जा सकते हैं। इस तकनीक की मदद से किसान आसानी से परंपरागत खेती की अपेक्षा अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र (International Potato Centre) के अनुसार भारत में इस तकनीकी का भविष्य काफी उज्ज्वल दिखाई दे रहा है। हाल ही में कृषि मंत्रालय भी स्थानीय राज्य सरकारों के साथ मिलकर इस तकनीक के प्रसार की नीतियां बना रहा है। वैज्ञानिकों की राय में एक बार इसका सेटअप किए जाने के बाद तो मुनाफा कमाना आसान है, हालांकि इसकी शुरुआत करना काफी खर्चीली साबित हो सकती है। गार्डनिंग का अनुभव रखने वाले किसान भाई इस तकनीक का अच्छे से इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें पोली हाउस का इस्तेमाल कर गार्डनिंग करने का अनुभव पहले से ही हासिल है। हाल ही में पश्चिमी राजस्थान और गुजरात के कच्छ जिले के कुछ इलाकों में पानी की कमी होने की वजह से किसानों को एयरोपोनिक्स तकनीक के इस्तेमाल के लिए आलू के अच्छे बीज प्रदान किए गए हैं। भारत सरकार तथा स्थानीय राज्य सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के अपने प्रयास में इस तकनीक का सहारा लेकर जल्द ही कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में भी बेहतर उत्पादन करने के लिए कमर कस चुकी है।
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सामान्यतः पूछे जाने वाले सवाल (FaQs) :
सवाल - क्या राज्य या केंद्र सरकार एयरोपोनिक्स फार्मिंग के लिए किसी प्रकार की सहायता उपलब्ध करवाती है ?
जवाब :- हाल ही में कृषि मंत्रालय ने एयरोपोनिक्स प्रोजेक्ट के लिए 'कमर्शियल हॉर्टिकल्चर डेवलपमेंट स्कीम' (Commercial Horticulture Development Scheme) के तहत किसानों को प्रोजेक्ट शुरु करने के लिए लगे सम्पूर्ण खर्चे की 20% तक की सब्सिडी उपलब्ध करवाने की घोषणा की है। हालांकि इस विधि से उगाई जा रही अलग-अलग फसलों के लिए सब्सिडी की मात्रा अलग-अलग होती है, इसकी अधिक जानकारी आप अपने राज्य सरकार के कृषि मंत्रालय की वेबसाइट या अपने आसपास स्थित किसी कृषि विज्ञान केंद्र से जाकर प्राप्त कर सकते हैं।सवाल - क्या एयरोपोनिक्स फार्मिंग करने के लिए किसी लाइसेंस की आवश्यकता होती है ?
जवाब - वैसे तो किसानों को एयरोपोनिक्स विधि से किसी भी प्रकार की फसल उगाने के लिए किसी विशेष लाइसेंस की आवश्यकता तो नहीं होती है, परंतु फिर भी पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और फर्टिलाइजर के अधिक इस्तेमाल जैसी बातों को ध्यान रखते हुए कुछ विशेष प्रकार के लाइसेंस लेने की जरूरत पड़ सकती है, इसके लिए अलग-अलग राज्य सरकारों ने अपनी अलग गाइडलाइंस जारी की हुई है।सवाल - क्या इस विधि से तैयार आलू लंबे समय तक स्टोर किए जा सकते हैं ?
जवाब - जी हां ! एयरोपोनिक्स विधि से तैयार आलू की स्टोर करने की क्षमता परम्परागत विधि से तैयार आलू से अधिक होती है और इन्हें लंबे समय तक बिना खराब हुए बिना कोल्ड स्टोरेज के संचित किया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार इस विधि से तैयार आलू में पोषक तत्वों की मात्रा भी अधिक होती है और इन्हें खाने से शरीर का बेहतर विकास हो सकता है। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा परंपरागत विधि की तुलना में एयरोपोनिक्स विधि से आलू उत्पादन करने की संपूर्ण विधि की जानकारी मिल गई होगी और खास तौर पर कम बारिश वाली जगहों पर रहने वाले किसान भाई, आसानी से इस विधि का इस्तेमाल कर मध्यम वर्ग की मांग की पूर्ति के अलावा स्वयं भी अच्छा खासा मुनाफा कमा पाएंगे।
28-Sep-2022