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गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें (Plant Care in Summer)

आज हम बात करेंगे गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों की पैदावार कैसे करते हैं और उनकी देखभाल कैसे करनी चाहिए। ताकि गर्मी के प्रकोप से इन सब्जियों और पौधों को किसी भी प्रकार की हानि ना हो। 

यदि आप भी अपने पेड़ पौधों और हरी सब्जियों को इन गर्मी के मौसम से बचाना चाहते हैं तो हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे। जैसा कि हम सब जानते हैं गर्मियों का मौसम शुरू हो गया है। 

सब्जियों के देखभाल और उनको उगाने के लिए मार्च और फरवरी का महीना सबसे अच्छा होता है। बागवानी करने वाले इन महीनों में सब्जी उगाने का कार्य शुरू कर देते हैं। इस मौसम में जो सब्जियां उगती है। 

उनके बीजों को पौधों या किसी अन्य भूमि पर लगाना शुरू कर देते हैं। गर्मी के मौसम में आप हरी मिर्च, पेठा, लौकी, खीरा ,ककड़ी, भिंडी, तुरई, मक्का, टिंडा बैगन, शिमला मिर्च, फलिया, लोबिया, बरबटी, सेम आदि सब्जियां उगा सकते हैं।

यदि आप मार्च, फरवरी में बीज लगा देते हैं तो आपको अप्रैल के आखिरी तक सब्जियों की अच्छी पैदावार प्राप्त हो सकती है। 

गर्मियों के मौसम में ज्यादातर हरी सब्जियां और बेल वाली सब्जी उगाई जाती हैं। सब्जियों के साथ ही साथ अन्य फलियां, पुदीना धनिया पालक जैसी सब्जियां और साथ ही साथ खरबूज तरबूज जैसे फल भी उगाए जाते हैं।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल और उगाने की विधि:

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जी के पौधों की देखभाल करना बहुत ही आवश्यक होता है। ऐसा करने से पौधे सुरक्षित रहेंगे,उन्हें किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होगा। 

यदि आप गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों को उगाना चाहते है, तो आप हरी सब्जी उगाने के लिए इन प्रक्रिया का इस्तेमाल कर सकते हैं यह प्रक्रिया कुछ निम्न प्रकार है;

मक्का

मक्का जो आजकल स्वीट कॉर्न के रूप में लोगों के बीच बहुत ही प्रचलित है।आप इसको घर पर भी लगा सकते हैं। मक्का उगाने के लिए आपको कुछ मक्के के दाने लेने हैं उन्हें रात भर पानी में भिगोकर रखना है और फिर उन्हें किसी प्रकार के साफ कपड़े से बांधकर रख देना है। 

आप को कम से कम 2 दिन के बाद जब उनके छोटे-छोटे अंकुरित आ जाए , तब उन्हें किसी  क्यारी या मिट्टी की भूमि पर लगा देना है। मक्के का पौधा लगाने के लिए आपको अच्छी गहराई को नापना होगा। 

मिट्टी में आपको खाद ,नीम खली, रेत मिट्टी मिलानी होगी। खाद तैयार करने के बाद दूरी को बराबर रखते हुए, आपको बीज को मिट्टी में बोना होगा। मक्के के बीज केवल एक हफ्ते में ही अंकुरित होने लगते हैं।

मक्के के पौधे की देखभाल के लिए:

मक्के के पौधों की देखभाल के लिए पोलीनेशन  बहुत अच्छा होना चाहिए। कंकड़ वाली हवाओं से पौधों की सुरक्षा करनी होगी। 2 महीने पूर्ण हो जाने के बाद मक्का आना शुरू हो जाते हैं। इन मक्के के पौधों को आप 70 से 75 दिनों के अंतराल में तोड़ सकते हैं।

टिंडे के पौधे की देखभाल:

टिंडे की देखभाल के लिए आपको इनको धूप में रखना होगा। टिंडे लगाने के लिए काफी गहरी भूमि की खुदाई की आवश्यकता होती है।इनकी बीज को आप सीधा भी बो  सकते हैं।

इनको कम से कम आप दो हफ्तों के भीतर गमले में भी लगा सकते हैं। टिंडे को आपको लगातार पानी देते रहना है। इनको प्रतिदिन धूप में रखना अनिवार्य है जब यह टिंडे अपना आकार 6 इंच लंबा कर ले , तो आपको इनमें खाद या पोषक तत्व को डालना होगा। कम से कम 70 दिनों के भीतर आप टिंडों  को तोड़ सकते हैं

फ्रेंच बीन्स पौधे की देखभाल

फ्रेंच बीन्स पौधे की देखभाल के लिए अच्छी धूप तथा पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। जिससे पौधों की अच्छी सिंचाई और उनकी उच्च कोटि से देखभाल हो सके।

फ्रेंच बींस के पौधे लगाने के लिए आपको इनकी  बीज को कम से कम रात भर पानी में भिगोकर रखना चाहिए। फ्रेंच बींस के पौधे एक हफ्ते में तैयार हो जाते। 2 हफ्ते के अंतराल के बाद आप इन पौधों को गमले या अन्य बगीचा या भूमि में लगा सकते हैं। 

मिट्टी  खाद ,रेत और नीम खली जैसे खादों का उपयोग इनकी उत्पादकता के लिए इस्तेमाल कर सकते है।फलियां लगभग ढाई महीनों के बाद तोड़ने लायक हो जाती है।

भिंडी के पौधों की देखभाल

भिंडी के पौधों की देखभाल के लिए पौधों में नमी की बहुत ही आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में आप को पर्याप्त मात्रा में पानी और धूप दोनों का उचित ध्यान रखना होगा। 

 भिंडी के पौधों के लिए सामान्य प्रकार की खाद की आवश्यकता होती है। भिंडी के बीज को बराबर दूरी पर बोया जाता है भिंडी के अंकुर 1 हफ्तों के बीज अंकुरित हो जाते हैं। 

पौधों के लिए पोषक तत्वों की भी काफी आवश्यकता होती है। पानी के साथ पोषक तत्व का भी पूर्ण ख्याल रखना होता है। 

भिंडी के पौधे 6 इंच होने के बाद हल्की-हल्की मिट्टियों के पत्तो को हटाकर इनकी जड़ों में उपयुक्त खाद या गोबर की खाद को डालें। भिंडी के पौधों में आप तरल खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं , ढाई महीने के बाद पौधों में भिंडी आना शुरू हो जाएंगे।

गर्मियों के मौसम में हरी मिर्च के पौधों की देखभाल

भारत में सबसे लोकप्रिय मसाला कहे जाने वाली मिर्च ,और सबसे तीखी मिर्च गर्मियों के मौसम में उगाई जाती है। बीमारियों के संपर्क से बचने के लिए तीखी हरी मिर्च बहुत ही अति संवेदनशील होती है। 

इन को बड़े ही आसानी से रोपण कर बोया या अन्य जगह पर उगाया जा सकता है। इन पौधों के बीच की दूरी लगभग 35 से 45 सेंटीमीटर होने चाहिए। और गहराई मिट्टी में कम से कम 1 से 2 इंच सेंटीमीटर की होनी चाहिए , 

इन दूरियों के आधार पर मिर्च के पौधों की बुवाई की जाती है। 6 से 8 दिन के भीतर  इन बीजों में अंकुरण आना शुरू हो जाते हैं। हरी मिर्ची के पौधे 2/3 हफ्तों में पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं।

लौकी गर्मी की फसल है;

लौकी गर्मियों के मौसम में उगाई जाने वाली सब्जी है। लौकी एक बेल कहीं जाने वाले सब्जी है, लौकी में बहुत सारे पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। लौकी को आप साल के 12 महीनों में खा सकते हैं।

लौकी के बीज को आप मिट्टी में बिना किसी अन्य देखरेख के सीधा बो सकते हैं। गहराई प्राप्त कर लौकी के बीजों को आप 3 एक साथ बुवाई कर सकते हैं। 

यह बीज  6 से 8 दिन के भीतर अंकुरण हो जाते है। लौकी की फसल के लिए मिट्टियों का तापमान लगभग 20 और 25 सेल्सियस के उपरांत होना जरूरी है।

गोभी

गर्मियों के मौसम में गोभी बहुत ही फायदेमंद सब्जियों में से एक होती है।और इसकी देखरेख करना भी जरूरी होता हैं।गर्मियों के मौसम में गोभी की सब्जी आपके पाचन तंत्र में बेहद मददगार साबित होती है ,तथा इसमें मौजूद पोषक तत्व आप को कब्ज जैसी शिकायत से भी राहत पहुंचाते हैं। गोभी फाइबर वह पोषक तत्वों से पूर्ण रूप से भरपूर होते हैं।

पालक के पौधों की देखभाल

पालक की जड़ें बहुत छोटी होती है और इस वजह से यह बहुत ज्यादा जमीन के नीचे नहीं जा पाती हैं। इस कारण पालक की अच्छी पैदावार के लिए इसमें ज्यादा मात्रा की सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। 

पालक के पौधों की देखभाल करने के लिए किसानों को पालक के पौधों की मिट्टी को नम रखना चाहिए। ताकि पालक की उत्पादकता ज्यादा हो।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल : करेले के पौधे की देखभाल

गर्मी के मौसम में करेले के पौधों को सिंचाई की बहुत ही आवश्यकता पड़ती है। इसीलिए इसकी सिंचाई का खास ख्याल रखना चाहिए। हालांकि सर्दी और बारिश के मौसम में इसे पानी या अन्य सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती है। गर्मी के मौसम में करेले के पौधों को 5 दिन के अंदर पानी देना शुरू कर देना चाहिए।

बीज रोपण करने के बाद करेले के पौधों को छायादार जगह पर रखना आवश्यक होगा, पानी का छिड़काव करते रहना है ,ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे। 5 से 10 दिन के भीतर बीज उगना  शुरू हो जाती हैं ,आपको करेले के पौधों को हल्की धूप में रखना चाहिए।

शिमला मिर्च के पौधों की देखभाल

शिमला मिर्च के पौधे की देखभाल के लिए उनको समय-समय पर विभिन्न प्रकार के कीट, फंगल या अन्य संक्रमण से बचाव के लिए उचित दवाओं का छिड़काव करते रहना चाहिए। 

फसल बोने के बाद आप 40 से 50 दिनों के बाद शिमला मिर्ची की फसल की तोड़ाई कर सकते हैं। पौधों में समय-समय पर नियमित रूप से पानी डालते रहें। 

बीज के अंकुरित होने तक आप पौधों को ज्यादा धूप ना दिखाएं। शिमला मिर्च के पौधों की खेती भारत के विभिन्न विभिन्न हिस्सों में खूब की जाती है। क्योंकि यह बहुत ही फायदेमंद होता है साथ ही साथ लोग इसे बड़े चाव के साथ खाते हैं।

चौलाई के पौधों की देखभाल :

चौलाई की खेती गर्मियों के मौसम में की जाती है।शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में चौलाई का उत्पादन होता है।

चौलाई की खेती ठंडी के मौसम में नहीं की जाती ,क्योंकि चौलाई अच्छी तरह से नहीं  उगती ठंडी के मौसम में। चौलाई लगभग 20 से 25 डिग्री के तापमान उगना शुरू हो जाती है और अंकुरित फूटना शुरू हो जाते हैं।

गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल : सहजन का साग के पौधों की देखभाल

सहजन का साग बहुत ही फायदेमंद होता है इसके हर भाग का आप इस्तेमाल कर सकते हैं। और इसका इस्तेमाल करना उचित होता है।

सहजन के पत्ते खाने के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं, तथा सहजन की जड़ों से विभिन्न विभिन्न प्रकार की औषधि बनती है। 

सहजन के पत्ते कटने के बाद भी इसमें  प्रोटीन मौजूद होता है। सभी प्रकार के आवश्यक तत्व जैसे एंटीऑक्सीडेंट्स, खनिज,अमीनो एसिड, विटामिंस उचित मात्रा में पाए जाते हैं।

टमाटर गर्मियों के मौसम में

सब्जियों की पैदावार के साथ-साथ गर्मी के मौसम में टमाटर भी शामिल है।टमाटर खुले आसमान के नीचे धूप में अच्छी तरह से उगता है। टमाटर के पौधों के लिए 6 से 8 घंटे की धूप काफी होती है इसकी उत्पादकता के लिए।

टमाटर की बीज को आप साल किसी भी महीने में बोया जा सकते हैं।डायरेक्ट मेथर्ड या फिर ट्रांसप्लांट मेथर्ड द्वारा भी टमाटर की फसल को उगाया जा सकता है। 

माटर की फसल को खासतौर की देखभाल की आवश्यकता होती है। टमाटर की बीजों को अंकुरित होने के लिए लगभग 18 से 27 सेल्सियस डिग्री की आवश्यकता होती है। 

80 से 100 दिन के अंदर आपको अच्छी मात्रा में टमाटर की फसल की प्राप्ति होगी। टमाटर के पौधों की दूरी लगभग 45 से 60 सेंटीमीटर की होनी चाहिए। 


दोस्तों हमने अपनी  इस पोस्ट में गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों और उनकी देखभाल किस प्रकार करते हैं। सभी प्रकार की पूर्ण जानकारी अपनी इस पोस्ट में दी है और उम्मीद करते हैं,कि आपको हमारी या पोस्ट पसंद  आएगी।यदि आप हमारी इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करे। हम और अन्य टॉपिक पर आपको अच्छी अच्छी जानकारी देने की पूरी कोशिश करेंगे।

कनेडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फूड सेफ्टी द्वारा किए गए शोध में लाल राजमा के अंदर जहर पाया गया

कनेडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फूड सेफ्टी द्वारा किए गए शोध में लाल राजमा के अंदर जहर पाया गया

कनेडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फूड सेफ्टी में छपी एक संलेख के अनुसार, लाल राजमा मतलब कि रेड किडनी बिन्स में फाइटोहेमग्लगुटिनिन नाम का एक जहर विघमान रहता है। राजमा उत्तर भारतीयों के लिए, विशेषकर दिल्ली और पंजाब वालों के लिए उनका पसंदीद खाना है। दरअसल, दिल्ली और पंजाब में तो आपको चहुंओर राजमा चावल के ठेले और दुकान देखने को मिल जाऐंगी। वहां के अधिकांश लोग प्रातः काल नाश्ते में इसका सेवन करते हैं। फिलहाल, आपके दिमाग में एक बात आ रही होगी, कि हम बहुत वर्षों से इसे खाते आ रहे हैं। जब आज तक हमें कुछ नुकसान नहीं हुआ तो आगे क्या ही नुकसान होगा। परंतु, यही आप गलती कर रहे हैं। एक शोध के अनुसार, लाल राजमा जिसे अंग्रेजी में रेड किडनी बिन्स कहा जाता हैं उसमें एक प्रकार का जहर पाया गया है। आइए इस लेख में हम आपको इस रिसर्च और इसमें पाए जाने वाले जहर के संबंध में जानकारी देते हैं।

शोध में क्या कहा गया है

कनेडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फूड सेफ्टी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, लाल राजमा मतलब कि रेड किडनी बिन्स में फाइटोहेमग्लगुटिनिन नाम का एक जहर पाया गया है। फाइटोहेमग्लगुटिनिन की मात्रा यदि आपके शरीर में अधिक बढ़ जाए तो यह आपके आंत को काफी नुकसान पहुँचा सकती है। यहां तक कि इसकी वजह से आप डायरिया के भी शिकार हो सकते हैं। साथ ही, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट के अनुसार, यदि आप सूखे लाल राजमा को 10 मिनट से कम वक्त तक पकाते हैं, तो इसके अंदर उपस्थित जहर पांच गुना तक अधिक बढ़ जाता है। ये भी देखें: गेहूं और चावल की पैदावार में बेहतरीन इजाफा, आठ वर्ष में सब्जियों का इतना उत्पादन बढ़ा है

सफेद राजमा और लाल राजमा में क्या अंतर होता है

जानकारी के लिए बतादें कि लाल राजमा को जहरीला कहा गया है। लेकिन, सफेद राजमा को लेकर ऐसी कोई बात नहीं कही गई है। सफेद राजमा को चित्रा राजमा भी कहा जाता है। यह राजमा पूर्णतया लाल नहीं होता, इसके ऊपर हल्की भूरी धारियां भी होती हैं। यह हिमालय की तलहटी में उत्पादित किया जाता है। लाल राजमा की तुलना में इनमें प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इसको आप रातभर के लिए भिगो कर रखें और 15 से 20 मिनट तक उबाल कर बनाएं तो यह और भी ज्यादा लाभकारी हो जाती हैं। दरअसल, इनको कच्चा नहीं खाना चाहिए। क्योंकि, इसको कच्चा सेवन करने से यह राजमा आपके पेट की हालत बिगाड़ सकता है। इसलिए खाने से पहले किसी भी तरह के राजमा को बेहतर ढ़ंग से पका कर ही खाएं।
ग्वार की ये 5 किस्में किसानों को देंगी ज्यादा उपज और मुनाफा

ग्वार की ये 5 किस्में किसानों को देंगी ज्यादा उपज और मुनाफा

किसान बीन्स की खेती से भी काफी शानदार आय अर्जित कर सकते हैं। किसान तरबूज की बेहतरीन किस्मों का चयन करके शानदार उत्पादन एवं मुनाफा दोनों अर्जित कर सकते हैं। बीन्स लता वाले समूह का एक पौधा होता है। 

इसके पौधों पर निकलने वाली फलियां सेम अथवा बीन्स कहलाती हैं, जिन्हें सब्जी के तौर पर उपयोग किया जाता है। इसको ग्वार के नाम से भी जाना जाता है, इसकी फलियां भिन्न-भिन्न आकार की होती हैं। 

जो दिखने में सफेद, हरी और पीले रंग की होती हैं। बीन्स की मुलायम फलियां सब्जी के तौर पर उपयोग की जाती हैं। इसके अंदर प्रोटीन, विटामिन तथा कार्बोहाइड्रेट की पर्याप्त मात्रा उपस्थित होती है।  

साथ ही, यह सब्जी कुपोषण को दूर करने में ज्यादा लाभकारी होती है। इसके चलते बाजार में इसकी मांग वर्ष भर बनी रहती है। ऐसी स्थिति में किसानों के लिए ग्वार की खेती बड़े लाभ का सौदा सिद्ध हो सकती है। 

क्योंकि इसका उत्पादन करके किसान शानदार आय कर सकते हैं। तरबूज का ज्यादा उत्पादन लेने के लिए कृषकों को उसकी सही समय पर खेती एवं शानदार किस्मों का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। 

इसकी कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिसमें तो कीट लगते हैं और ही रोग लगता है। इन किस्मों की खेती से किसान काफी शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

ग्वार की 5 किस्में

टाइगर ग्वार सीड्स    

शक्ति सीड्स कंपनी का यह वैराईटी ज्यादा शाखाओं एवं ज्यादा फैलाव वाली ग्वार किस्म है। इस किस्म के दाने गोल, चमक और वजनदार होते है। 

जड़ गलन, झुलसा, ब्लाईट जैसे रोगों के प्रति उच्च सहनशील प्रजाति है। लंबी अवधि के साथ पकती है, जिसका 100 से 110 का वक्त लग जाता है। 

अधिकतम उत्पादन के साथ 7 से 10 क्विंटल / एकड़ उत्पादन देखने को मिलता है। यह किस्म समस्त प्रकार की मृदा में उपयुक्त मानी गई है।

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ग्वार की सुपर एक्स -7    

सुपर एक्स -7 किस्म के पौधो की ऊंचाई 90 से 100 सेंटीमीटर मानी जाती है। भारत में सिंचित और असिंचित अवस्था दोनों में की जा सकती है। 

इस किस्म को पकने में 80 से 100 दिन का समयांतराल लग जाता है। इसका ओसत उत्पादन 6 से 8 क्विंटल / एकड़ देखा जा सकता है। यह बीज किस्म ब्लाईट, जड़ गलन जैसें रोगों के प्रति सहनशील होती है। 

ग्वार की एच जी -365     

विभिन्न शाखाओं के साथ फैलने वाली यह प्रजाति प्रमाणित उन्नत प्रजाति है। यह 60 से 70 दिनों के समयांतराल में शीघ्रता से पकने वाली किस्म है। पैदावार की बात की जाए तो 18-20 क्विंटल / हेक्टेयर लिया जा सकता है। 

ग्वार की कोहिनूर 51 किस्म

बतादें, कि बीन्स की कोहिनूर 51 किस्म का फल हरे रंग का होता है। इसके फल बाकी किस्मों से लंबे होते हैं। इस बीन्स के बीज को रोपने के 48-58 दिनों की अवधि में पहली तुड़ाई शुरू हो जाती है। 

वहीं, ये किस्म 90 से 100 दिनों में पूर्णतय तैयार हो जाती हैं। इस किस्म की खेती किसान तीनों सीजन मतलब कि रबी, खरीफ एवं जायद में कर सकते हैं।

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ग्वार की अर्का संपूर्ण किस्म

अर्का संपूर्ण किस्म का निर्माण भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा किया गया है। इस प्रजाति के पौधों पर रतुआ एवं चूर्णिल फफूंद का रोग नहीं लगता है। 

इस प्रजाति के पौधे रोपाई के तकरीबन 50 से 60 दिन पश्चात उत्पादन देना चालू कर देते हैं, जिनका प्रति हेक्टेयर समकुल उत्पादन 8 से 10 टन के करीब होता है।