केंद्र सरकार भी एक बार फिर से मोटे अनाज की खेती के लिए पूरे देश भर में किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और बहुत जगह पर मोटे अनाज के बीज किसानों को मुफ्त में मुहैया करवाए जा रहे हैं. साथ इससे जुड़ी हुई कई तरह की स्कीम भी केंद्र सरकार लागू करने में लगी हुई है.
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कोर्णाक आर्मी लोगों को समझ में आ गया कि मोटे अनाज में रोगों से लड़ने की क्षमता बहुत ज्यादा है और अपने भोजन में इनका सेवन करना बेहद जरूरी है. इसके अलावा किसानों के पक्ष से देखा जाए तो इस अंदाज में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती है इसलिए बुंदेलखंड राज्य इसके लिए एकदम सही है. यहां पर किसान फूड प्रोसेसिंग करके अपनी आमदनी में अच्छा-खासा इजाफा कर सकते हैं. कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्राध्यापक डा.कमालुद्दीन ने भी माना है कि मोटे अनाज की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए एक नई क्रांति लेकर आएगी और इससे उनकी आमदनी में अच्छा खासा मुनाफा होने वाला है.
भारत मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों की पैदावार में विश्व में अव्वल स्थान पर है
हमारा भारत देश आज भी मिलेट फसलों की पैदावार के मामले में विश्व में सबसे आगे है। इसके अंतर्गत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, झारखंड, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसान भाई बड़े पैमाने पर मोटे अनाज यानी मिलेट की खेती करते हैं। बतादें, कि असम और बिहार में सर्वाधिक मोटे अनाज की खपत है। दानों के आकार के मुताबिक, मिलेट फसलों को मुख्यतः दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। प्रथम वर्गीकरण में मुख्य मोटे अनाज जैसे बाजरा और ज्वार आते हैं। तो उधर दूसरे वर्गीकरण में छोटे दाने वाले मिलेट अनाज जैसे रागी, सावा, कोदो, चीना, कुटुकी और कुकुम शम्मिलित हैं। इन छोटे दाने वाले, मिलेट अनाजों को आमतौर पर कदन्न अनाज भी कहा जाता है।
वर्ष 2023 को "अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष" के रूप में मनाया जा रहा है
जैसा कि हम सब जानते है, कि वर्ष 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है। भारत की ही पहल के अनुरूप पर यूएनओ ने वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष के रूप में घोषित किया है। भारत सरकार ने मिलेट फसलों की खासियत और महत्ता को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2018 को “राष्ट्रीय मिलेट वर्ष” के रूप में मनाया है। भारत सरकार ने 16 नवम्बर को “राष्ट्रीय बाजरा दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
मिलेट फसलों को केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से बढ़ावा देने की कोशिशें कर रही हैं
भारत सरकार द्वारा मिलेट फसलों की महत्ता को केंद्र में रखते हुए किसान भाइयों को मिलेट की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। मिलेट फसलों के समुचित भाव के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा किया जा रहा है। जिससे कि कृषकों को इसका अच्छा फायदा मिल सके। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के स्तर से मिलेट फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन में बढ़ोत्तरी हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिससे किसान भाई बड़ी आसानी से पैदावार का फायदा उठा सकें। सरकारों द्वारा मिलेट फसलों के पोषण और शरीरिक लाभों को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण एवं शहरी लोगों के मध्य जागरूकता बढ़ाने की भी कोशिश की जा रही है। जलवायु परिवर्तन ने भी भारत में गेहूं और धान की पैदावार को बेहद दुष्प्रभावित किया है। इस वजह से सरकार द्वारा मोटे अनाज की ओर ध्यान केन्द्रित करवाने की कोशिशें की जा रही हैं।
मिलेट यानी मोटे अनाज की फसलों में पोषक तत्व प्रचूर मात्रा में विघमान रहते हैं
मिलेट फसलें पोषक तत्वों के लिहाज से पारंपरिक खाद्यान गेहूं और चावल से ज्यादा उन्नत हैं। मिलेट फसलों में पोषक तत्त्वों की भरपूर मात्रा होने की वजह इन्हें “पोषक अनाज” भी कहा जाता है। इनमें काफी बड़ी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन-E विघमान रहता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन कैल्शियम, मैग्नीशियम भी समुचित मात्रा में पाया जाता है। मिलेट फसलों के बीज में फैटो नुत्त्रिएन्ट पाया जाता है। जिसमें फीटल अम्ल होता है, जो कोलेस्ट्राल को कम रखने में सहायक साबित होता है। इन अनाजों का निमयित इस्तेमाल करने वालों में अल्सर, कोलेस्ट्राल, कब्ज, हृदय रोग और कर्क रोग जैसी रोगिक समस्याओं को कम पाया गया है।
मिलेट यानी मोटे अनाज की कुछ अहम फसलें
ज्वार की फसल
ज्वार की खेती भारत में प्राचीन काल से की जाती रही है। भारत में ज्वार की खेती मोटे दाने वाली अनाज फसल और हरे चारे दोनों के तौर पर की जाती है। ज्वार की खेती सामान्य वर्षा वाले इलाकों में बिना सिंचाई के हो रही है। इसके लिए उपजाऊ जलोड़ एवं चिकिनी मिट्टी काफी उपयुक्त रहती है। ज्वार की फसल भारत में अधिकांश खरीफ ऋतु में बोई जाती है। जिसकी प्रगति के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक तापमान ठीक होता है। ज्वार की फसल विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु में की जाती है। ज्वार की फसल बुआई के उपरांत 90 से 120 दिन के समयांतराल में पककर कटाई हेतु तैयार हो जाती है। ज्वार की फसल से 10 से 20 क्विंटल दाने एवं 100 से 150 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ की उपज है। ज्वार में पोटैशियम, फास्पोरस, आयरन, जिंक और सोडियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। ज्वार का इस्तेमाल विशेष रूप से उपमा, इडली, दलिया और डोसा आदि में किया जाता है।
बाजरा की फसल
बाजरा मोटे अनाज की प्रमुख एवं फायदेमंद फसल है। क्योंकि, यह विपरीत स्थितियों में एवं सीमित वर्षा वाले इलाकों में एवं बहुत कम उर्वरक की मात्रा के साथ बेहतरीन उत्पादन देती हैं जहां अन्य फसल नहीं रह सकती है। बाजरा मुख्य रूप से खरीफ की फसल है। बाजरा के लिए 20 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल रहता है। बाजरे की खेती के लिए जल निकास की बेहतर सुविधा होने चाहिए। साथ ही, काली दोमट एवं लाल मिट्टी उपयुक्त हैं। बाजरे की फसल से 30 से 35 क्विंटल दाना एवं 100 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर की पैदावार मिलती है। बाजरे की खेती मुख्य रूप से गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। बाजरे में आमतौर पर जिंक, विटामिन-ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर तथा विटामिन-बी काम्प्लेक्स की भरपूर मात्रा उपलब्ध है। बाजरा का उपयोग मुख्य रूप से भारत के अंदर बाजरा बेसन लड्डू और बाजरा हलवा के तौर पर किया जाता है।
रागी (मंडुआ) की फसल
विशेष रूप से रागी का प्राथमिक विकास अफ्रीका के एकोपिया इलाके में हुआ है। भारत में रागी की खेती तकरीबन 3000 साल से होती आ रही है। रागी को भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न मौसम में उत्पादित किया जाता है। वर्षा आधारित फसल स्वरुप जून में इसकी बुआई की जाती है। यह सामान्यतः आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार, तमिलनाडू और कर्नाटक आदि में उत्पादित होने वाली फसल है। रागी में विशेष रूप से प्रोटीन और कैल्शियम ज्यादा मात्रा में होता है। यह चावल एवं गेहूं से 10 गुना ज्यादा कैल्शियम व लौह का अच्छा माध्यम है। इसलिए बच्चों के लिए यह प्रमुख खाद्य फसल हैं। रागी द्वारा मुख्य तौर पर रागी चीका, रागी चकली और रागी बालूसाही आदि पकवान निर्मित किए जाते हैं।
कोदों की फसल
भारत के अंदर कोदों तकरीबन 3000 साल पहले से मौजूद था। भारत में कोदों को बाकी अनाजों की भांति ही उत्पादित किया जाता है। कवक संक्रमण के चलते कोदों वर्षा के बाद जहरीला हो जाता है। स्वस्थ अनाज सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसकी खेती अधिकांश पर्यावरण के आश्रित जनजातीय इलाकों में सीमित है। इस अनाज के अंतर्गत वसा, प्रोटीन एवं सर्वाधिक रेसा की मात्रा पाई जाती है। यह ग्लूटन एलजरी वाले लोगो के इस्तेमाल के लिए उपयुक्त है। इसका विशेष इस्तेमाल भारत में कोदो पुलाव एवं कोदो अंडे जैसे पकवान तैयार करने हेतु किया जाता है।
सांवा की फसल
जानकारी के लिए बतादें, कि लगभग 4000 वर्ष पूर्व से इसकी खेती जापान में की जाती है। इसकी खेती आमतौर पर सम शीतोष्ण इलाकों में की जाती है। भारत में सावा दाना और चारा दोनों की पैदावार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह विशेष रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडू में उत्पादित किया जाता है। सांवा मुख्य फैटी एसिड, प्रोटीन, एमिलेज की भरपूर उपलब्ध को दर्शाता है। सांवा रक्त सर्करा और लिपिक स्तर को कम करने के लिए काफी प्रभावी है। आजकल मधुमेह के बढ़ते हुए दौर में सांवा मिलेट एक आदर्श आहार बनकर उभर सकता है। सांवा का इस्तेमाल मुख्य तौर पर संवरबड़ी, सांवापुलाव व सांवाकलाकंद के तौर पर किया जाता है।
चीना मिलेट यानी मोटे अनाज की एक प्राचीन फसल है। यह संभवतः मध्य व पूर्वी एशिया में पाई जाती है, इसकी खेती यूरोप में नव पाषाण काल में की जाती थी। यह विशेषकर शीतोष्ण क्षेत्रों में उत्पादित की जाने वाली फसल है। भारत में यह दक्षिण में तमिलनाडु और उत्तर में हिमालय के चिटपुट इलाकों में उत्पादित की जाती है। यह अतिशीघ्र परिपक्व होकर करीब 60 से 65 दिनों में तैयार होने वाली फसल है। इसका उपभोग करने से इतनी ऊर्जा अर्जित होती है, कि व्यक्ति बिना थकावट महसूस किये सुबह से शाम तक कार्यरत रह सकते हैं। जो कि चावल और गेहूं से सुगम नहीं है। इसमें प्रोटीन, रेशा, खनिज जैसे कैल्शियम बेहद मात्रा में पाए जाते हैं। यह शारीरिक लाभ के गुणों से संपन्न है। इसका इस्तेमाल विशेष रूप से चीना खाजा, चीना रवा एडल, चीना खीर आदि में किया जाता है।
श्री अन्न यानी मोटे अनाज का सेवन करने से होने वाले लाभ
दरअसल, ये तो स्पष्ट तौर पर जाहिर है, कि ज्वार, बाजरा तथा रागी जैसे मोटे अनाज विटामिंस, आयरन, प्रोटीन और फाइबर जैसे मिनरल तत्वों से भरपूर होते हैं। साथ ही, ये अनाज ग्लूटन-फ्री सुपरफूड्स के रूप में जाने जाते हैं, जो कि डाइबिटीज को नियंत्रित करने में बेहद सहायता करते हैं। अगर हम बात करें ग्लूटन की तो, ग्लूटन एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो गेहूं, जौ एवं राई में पाया जाता है। इसके साथ ही ग्लूटन-फ्री डाइट सेहत में सुधार लाने, वजन घटाने एवं एनर्जी बढ़ाने में सहायता करती है।
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साथ ही, जिन व्यक्तियों को हृदय संबंधित बीमारियां हैं, उनके लिए मिलेट्स खाना लाभदायक साबित हो सकता है। क्योंकि ज्वार और बाजरा खाने से ब्लड सर्कूलेशन काफी अच्छा रहता है। ऐसी स्थिति में यदि आप दिल के मरीज हैं, तो आप ज्वार और बाजरा का सेवन अवश्य करें। इसके अतिरिक्त पेट में कब्ज हो अथवा एसिडिटी, पाचन शक्ति को बढ़ाने में भी श्री अन्न काफी लाभदायक साबित होता है। बतादें, कि मोटे अनाजों को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में भी जाना जाता है। अस्थमा, मेटाबॉलिज्म और डायबिटीज जैसी विभिन्न स्वास्थ्य परेशानियों को दूर करने में मोटे अनाजों को शानदार माना गया है।
मोटे अनाजों का सेवन इन बीमारियों से ग्रसित लोग ना करें
हाइपोथायरायडिज्म, जिसको अंडरएक्टिव थायरॉयड ग्रंथि के नाम से भी जाना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो उन्हें मोटे अनाजों का सेवन करने से बचना चाहिए। क्योंकि, मोटे अनाज में गोइट्रोजेन होता है जो आयोडीन के अवशोषण में बाधा पैदा कर सकता है। हालांकि, जब खाना पकाया जाता है, तो पकने की वजह से इसमें मौजूद गोइट्रोजेन की मात्रा कम हो सकती है। परंतु, इसको पूर्णतय समाप्त नहीं किया जा सकता।