उर्वरक उपयोग की प्रवृत्ति लागातार बढ़ रही है। किसान इन पर पूरी तरह निर्भर होते जा रहे हैं। जमीन में कंपोस्ट खादों की रिक्तता से खेती में रासायनिक खादों के बैलेंस और फसलों द्वारा उसके अवशोषण में भी गिरावट दर्ज की जा रही है। यानी कार्बनिक खादों के अभाव में रासायनिक खादें जितनी मात्रा में डाली जा रही हैं उनके काफी बड़े अंश का खेती में दुरुपयोग हो रहा है। फसल उन्हें पूरी तरह से ले नहीं पातीं।
खादों को पौधों की जड़ों तक पहुंचाने वाले वैक्टीरिया जमीन में लागातार घट रहे है। जमीन रासायनिक खादों की आदी हो गई है और अब किसानों को पर्याप्त खाद भी मिल नहीं पा रही है। इस तरह की प्रतिकूलताओं के बाद भी किसानों को इस बात की चिंता सताने लगी है कि आगामी कोविड न्यू वेरियंट के प्रभाव से उनकी फसलों का बाजार प्रभावित न हो जाए। सरकार को अभी से किसानों की आगामी सीजन की फसलों के उचित मूल्य की दिशा में कमद उठाने होंगे। एक तरफ देश एमएसएपी पर गारंटी वाले कानून की बहस में उलझा है दूसरी तरफ किसान कई तरह की दिक्कतों में उलझे हैं। किसानों की उलझन आजादी के प्रारंभ से अभी तक कम नहीं हुई हैं। वह ज्यादातर ऐसी ही रहती हैं। यानी जैसे खेती भगवान भरोसे रहती है वैसे ही किसान भगवान भरोसे हैं।
यह एक कवक रोग है। इस संक्रमण से केले की फसल पूर्णतय बर्बाद हो सकती है। पनामा विल्ट फुसैरियम विल्ट टीआर-2 नामक कवक की वजह से होता है, जिससे केले के पौधों का विकास बाधित हो जाता है। इस रोग के लक्षणों पर नजर डालें तो केले के पौधे की पत्तियां भूरी होकर गिर जाती हैं। साथ ही, तना भी सड़ने लग जाता है। यह एक बेहद ही घातक बीमारी मानी जाती है, जो केले की संपूर्ण फसल को चौपट कर देती है। यह फंगस से होने वाली बीमारी है, जो विगत कुछ वर्षों में भारत के अतिरिक्त अफ्रीका, ताइवान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया सहित विश्व के बहुत सारे देशों में देखी गई। इस बीमारी ने वहां के किसानों की भी केले की फसल पूर्णतय चौपट कर दी है। वर्तमान में यह बीमारी कुछ वर्षों से भारत के किसानों के लिए परेशानी का कारण बन गई है।
पनामा विल्ट रोग की रोकथाम के संबंध में वैज्ञानिकों एवं किसानों की सामूहिक कोशिशों से इस बीमारी का उपचार किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है, कि पनामा विल्ट बीमारी की अभी तक कोई कारगर दवा नहीं मिली है। हालाँकि, CISH के वैज्ञानिकों ने ISAR-Fusicant नाम की एक औषधी बनाई है। इस दवा के इस्तेमाल से बिहार एवं अन्य राज्यों के किसानों को काफी लाभ हुआ है। सीआईएसएच विगत तीन वर्षों से किसानों की केले की फसल को बचाने की कोशिश कर रहा है। इस वजह से भारत भर के किसानों तक इस दवा को पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।
पनामा विल्ट रोग का इन राज्यों में असर हुआ है
हमारे भारत देश में केले का उत्पादन बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं मध्य प्रदेश में किया जाता है। पनामा विल्ट रोग से प्रभावित बिहार के कटिहार और पूर्णिया, उत्तर प्रदेश के फैजाबाद, बाराबंकी, महाराजगंज, गुजरात के सूरत और मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जनपद हैं। ऐसी स्थिति में यहां के कृषकों के लिए यह बेहद आवश्यक है, कि वो अपने केले की फसल का विशेष रूप से ध्यान रखते हुए उसे इस बीमारी से बचालें।
किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए अंजीर की खेती करते हैं
जानकारी के अनुसार, राजस्थान के शेखावाटी इलाके में किसान बड़े पैमाने पर अंजीर की खेती कर रहे हैं। विशेष कर रामजीपुरा में अंजीर की खेती करने वाले किसानों की तादात काफी अधिक है। यहां पर किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से अंजीर की खेती कर रहे हैं। विशेष बात यह है, कि कर्नाटक और आंध्रप्रदेश की बहुत सी कंपनियों ने क्षेत्र के दर्जन भर किसानों से कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है। कंपनियां किसानों को अंजीर की खेती करने हेतु वार्षिक 10 से 24 लाख रुपए निर्धारित भुगतान कर रही हैं।
अंजीर का सेवन करने से बेहद लाभ होते हैं
दरअसल, अंजीर शहतूत परिवार की सदस्य है। यह काफी ज्यादा महंगी बिकती है। वर्तमान बाजार में उत्तम क्वालिटी के एक किलो अंजीर का भाव 1200 रुपये है। ऐसे भी अंजीर खाने से शरीर को भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और विटामिन्स अर्जित होते हैं। नियमित तौर पर अंजीर का सेवन करने से शरीर स्वस्थ्य रहता है। यही कारण है, कि सर्दी के मौसम में लोग अंजीर का सेवन करना ज्यादा पसंद करते हैं।
मुख्य बात यह है, कि सीकर जनपद में किसान अंजीर की विभिन्न किस्मों की खेती कर रहे हैं। इनमें सिमराना, काबुल, मार्सेलस, कडोटा, कालीमिरना और वाइट सैन पेट्रो जैसी किस्में शम्मिलित हैं। यहां के किसान भोला सिंह ने बताया है, कि अंजीर की खेती से उनकी तकदीर बदल गई। फिलहाल वे लाखों में आमदनी कर रहे हैं। कुछ ही वर्ष में यहां के किसान करोड़पति हो जाएंगे। भोला सिंह का कहना है, कि वे कांट्रैक्ट फार्मिंग से बेहद प्रसन्न हैं। किसानों का कहना है, कि जिन कंपनियों से हम लोगों का कॉट्रैक्ट हुआ है, उसके अधिकारी समयानुसार पौधों की देखरेख करने के लिए विशेषज्ञों के साथ आते रहते हैं।
किसान अंजीर से कितनी आय कर सकते हैं
बतादें, कि रोपाई करने के एक साल उपरांत अंजीर के पेड़ से पैदावार चालू हो जाती है। इससे आप 100 साल तक पैदावार उठा सकते हैं। एक बार फल देने के उपरांत अगले 40 दिन में फिर से अंजीर के पौधों पर फल आ जाते हैं। यदि आपने एक बीघे में अंजीर की खेती की है, तो इससे आपको प्रतिदिन 50 किलो तक उत्पादन मिलेगा। स्थानीय बाजार में 300 किलो के हिसाब से अंजीर बिकती है। ऐसी स्थिति में प्रतिदिन 15000 रुपये की आमदनी कर सकते हैं।