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फूलों की खेती से चमकी किसान श्रीकांत की तकदीर, जानें इनकी सफलता की कहानी

फूलों की खेती से चमकी किसान श्रीकांत की तकदीर, जानें इनकी सफलता की कहानी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अधिकांश आबादी कृषि या कृषि से जुड़े कार्यों से आजीविका चलाती है। वर्तमान में भारत के कई पढ़े-लिखे शिक्षित लोग नौकरी को छोड़कर कृषि में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। 

साथ ही, सफलता भी हांसिल कर रहे हैं। इसी कड़ी में फूलों की खेती करके श्रीकांत बोलापल्ली ने एक छोटी स्तर से शुरुआत करके आज वार्षिक करोड़ों की आय का मुकाम हांसिल किया है। 

उन्होंने फूलों की खेती करने से पूर्व आधुनिक कृषि तकनीकों के विषय में सही से जानकारी ग्रहण की और इसका अनुसरण करके इसको कृषि में लागू किया। आज के समय में फूलों की खेती और इसके व्यवसाय में इनका काफी जाना-माना नाम है। 

फूलों की खेती की कहानी कब और कैसे शुरू हुई 

अपनी युवावस्था में आज से तकरीबन 22 वर्ष पूर्व तेलंगाना के एक छोटे से शहर से आने वाले श्रीकांत बोलापल्ली का सपना था, कि वह अपनी जमीन पर खेती करें। 

लेकिन, गरीबी के चलते और घर-परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह जमीन खरीद सकें। समय के चलते हालात बिगड़ने पर श्रीकांत ने अपने शहर ‘निजामाबाद’ को छोड़ दिया और 1995 में बेंगलुरु करियर बनाने आ गये। 

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उस दौरान डोड्डाबल्लापुरा क्षेत्र में श्रीकांत को फूलों की खेती से जुड़ी एक कंपनी में बतौर पर्यवेक्षक के रूप में काम मिला। इस समय श्रीकांत की सैलरी 1000 रुपये महीना हुआ करती थी।

बैंगलुरु से प्रारंभ किया फूलों का व्यवसाय 

2 सालों तक श्रीकांत ने इसी कंपनी में कार्य किया और फूलों की खेती करने के लिए वैज्ञानिक खेती के विषय में जानकारी अर्जित की है। 

उन्होंने यहां नौकरी करके 24000 हजार रुपये जमा किए और बैंगलुरु में ही फूलों का छोटा सा व्यवसाय शुरू किया। श्रीकांत ने विभिन्न कंपनियों और किसानों से संपर्क करके फूलों का व्यापार करना शुरू कर दिया। 

प्रारंभिक समय में वह अकेले ही फूलों को इकट्ठा किया करते थे और इनकी पैकिंग करके पार्सल किया करते थे। धीरे-धीरे मांग में वृद्धि हुई और उन्होंने दो कर्मचारियों को अपने साथ में जोड़ लिया।

श्रीकांत को इस साल करोड़ों की आय की संभावना 

बतादें, कि श्रीकांत ने काफी लंबे समय तक फूलों का व्यवसाय करने के बाद 2012 में श्रीकांत ने डोड्डाबल्लापुरा में ही 10 एकड़ भूमि खरीदी। किसान श्रीकांत ने इस भूमि पर आधुनिक तकनीकों के साथ फूलों की खेती करनी चालू की है।

श्रीकांत आज 30 एकड़ भूमि पर फूलों की खेती कर रहे हैं। फूलों की खेती करके उन्होंने पिछले वर्षों में 9 करोड़ रुपये का मुनाफा प्राप्त किया है। 

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उन्होंने इस वर्ष 12 करोड़ रुपये का लाभ कमाने का आंकलन किया है। 20 सालों में श्रीकांत के साथ कार्य करने वाले कर्मचारियों की तादात 40 हो चुकी है।

श्रीकांत ने आधुनिक कृषि तकनीकों का किया उपयोग  

किसान श्रीकांत ने पिछले चार वर्षों में आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाया और अपने खेतों में इन तकनीकों का उपयोग करने लगे। 

श्रीकांत ने अपने खेत में फूलों की खेती के लिए ग्रीन हाउस तैयार किया है। इस ग्रीन हाउस में उन्होंने उच्च कृषि तकनीकों को अपनाया और फूलों को अनुकूल वातावरण प्रदान किया। 

इस ग्रीन हाउस में श्रीकांत ने सिंचाई, उवर्रक का प्रयोग, घुलनशील उवर्रक, मिट्टी, कीटनाशक उपयोग और फूलों के विकास के नियमों का ख्याल रखा है। 

उन्होंने इस ग्रीन हाउस में फूलों के लिए सूर्य की रौशनी की भी व्यवस्था की हुई है। इसके अलावा उन्होंने कीट जाल भी बनाकर रखे हैं, ताकि कीटनाशक का कम से कम इस्तेमाल किया जा सके। 

श्रीकांत ने आधुनिक तकनीक को अपनाते हुए हवा की भी व्यवस्था की हुई है, जिससे फूलों को समुचित नमी प्राप्त हो सके। 

सामान्य आलू की तुलना में गुलाबी आलू दिलाऐगा किसानों अधिक मुनाफा

सामान्य आलू की तुलना में गुलाबी आलू दिलाऐगा किसानों अधिक मुनाफा

किसान भाइयों आज हम आपको इस लेख में गुलाबी आलू के बारे में बताने जा रहे हैं। गुलाबी आलू आम आलू की तुलना में विलंभ से खराब होता है। यह आलू स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है। अगर आप किसान हैं एवं आप आलू की खेती करते हैं, तो ये खबर आपके लिए बड़े काम की होने वाली है। अब किसान भाइयों को नॉर्मल आलू की खेती करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि वर्तमान में गुलाबी आलू की भी खेती हो रही है। यह आलू दिखने में बेहद ही अच्छा लगता है। इसके साथ ही इसका स्वाद भी सामान्य आलू से अच्छा है। जानकारों का कहना है, कि ये आलू अत्यधिक पौष्टिक हैं। इसमें कार्बोहाइड्रेट व स्टार्च भरपूर मात्रा में होता है।

गुलाबी आलू सेहत के लिए काफी फायदेमंद है

गुलाबी आलू को स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद कहा जाता है। इसी के साथ - साथ ये शीघ्रता से सड़ता भी नहीं है। बाजार में यह आलू तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। बतादें, कि मांग बढ़ने के साथ किसान भाइयों को मुनाफा होना चालू हो गया है। अब जितनी इसकी मांग बढ़ेगी किसानों को भी उतना ही ज्यादा लाभ मिलेगा। यह भी पढ़ें: इस तरह करें अगेती आलू की खेती

गुलाबी आलू की खेती से कृषकों को मिलेगा फायदा

गुलाबी आलू की खेती तराई और पहाड़ी क्षेत्र दोनों में की जा सकती है। फसल को तैयार होने में 80 से 100 दिन का समय लग जाता है। गुलाबी आलू काफी चमकीला भी होता है, जिसकी वजह से लोग इसकी ओर तेजी से आकर्षित होते हैं। कीमत की बात की जाए तो बाजारों में इसका भाव आम आलू की तुलना में अधिक होती है। प्रति हेक्टेयर के खेत में इसकी 400 क्विंटल से भी ज्यादा पैदावार हो सकती है। गुलाबी आलू की एक बार की फसल से किसान भाई को एक से दो लाख रुपये का मुनाफा होता है।

गुलाबी आलू सेहत के लिए काफी अच्छा होता है

विशेषज्ञों का कहना है, कि ये आलू आम आलू की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करता है। साथ ही, गुलाबी आलू का कई महीनों तक सुगमता से भंडारण किया जा सकता है। इसमें वायरस के चलते पनपने वाले रोग भी नहीं लगा करते, जिसकी वजह से किसानों की लागत में कमी आती है और मुनाफा भी अधिक होता है।
घर की बालकनी को गुलाब के फूलों से महकाने का आसान तरीका

घर की बालकनी को गुलाब के फूलों से महकाने का आसान तरीका

नई दिल्ली। हर कोई अपने आशियाने को सुंदर और खूबसूरत बनाना चाहता है। घर के आस-पास के वातावरण को भी अच्छा रखना हर किसी की इच्छा रहती है। बालकनी में लगे पौधे न सिर्फ आपके घर को स्वच्छ बनाने का काम करते हैं बल्कि पूरे घर को ब्यूटीफुल भी बनाते हैं। इसलिए कई लोग आउटडोर प्लांट के अलावा इंडोर प्लांट भी लगाते हैं। अपने घर के अंदर लोगज्यादा फ्लावर प्लांट जैसे - चमेली, रोज प्लांट आदि लगाना पसंद करते हैं।

अगर आप भी अपने घर की बालकनी को सुंदर गुलाब के फूलों से महकता हुआ देखना चाहते हैं, तो पढ़िए ये पूरी खबर:

1. अच्छी नर्सरी से गुलाब के पौधे का चयन

- बालकनी में गुलाब के पौधा लगाने के लिए किसी अच्छी नर्सरी से ही पौधा लें। अच्छी नर्सरी से मिलने वाले पौधे जन्म से ही स्वस्थ होते हैं। इनमें कोई रोग नहीं होता है और रोगों से लड़ने की क्षमता भी अधिक होती है।

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2. गमले में उपयोगी मिट्टी पर विशेष ध्यान दें

- पौधों के लिए मिट्टी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसलिए आपकी बालकनी के गमले में उपयोगी मिट्टी ही होनी चाहिए। इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि गुणवत्तापूर्ण मिट्टी से पौधे के विकास अच्छा होता है।

3. इस तकनीकी से लगाएं पौधे

- बालकनी में गुलाब का पौधा लगाने के लिए मिट्टी के बने हुए गमले खरीद लें। उसमें उचित मात्रा में उपयोगी मिट्टी डालें। पौधे को गमले में ठीक से लगाकर पानी डालें। फिर समय-समय पर पौधे की देखभाल करें। और बीच-बीच में कीट-पतंगों से भी बचाकर रखें। इसके लिए पौधे पर कीटनाशक छिड़काव भी करें। पौधे में पोषक तत्वों का छिड़काव भी आवश्यकता करते रहें। पौधे की वृद्धि का भी ख्याल रखें।

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4. गुलाब के पौधे के लिए ठंडा मौसम है अच्छा

- गुलाब के पौधे के लिए ठंडा मौसम काफी प्रतिकूल रहता है। अत्यधिक धूप और गर्मी से गुलाब के पौधे को नुकसान की आशंका रहती है। इसीलिए बालकनी में मौसम को देखते हुए गुलाब के गमले को रखें।

5. घर में गुलाब के फूल से फायदे

- गुलाब के फूल के पौधे सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाते हैं। इन पौधों को घर की उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। - घर में पेड़-पौधे लगाने से वातावरण में ठंडक बनी रहती है। ये पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद है। - गुलाब के फूल की खुशबू (महक) से घर का वातावरण भी शुद्ध रहता है। - गुलाब के फूल की पत्तियों को खाने के उपयोग में लिया जा सकता है। - गुलाब के साथ-साथ अन्य फूलों से भी बालकनी की रौनक बढ़ती है। ------- लोकेन्द्र नरवार
कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

सिरसा। किसानों के लिए वरदान बनी कपास की खेती को गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का खतरा हो सकता है। हरियाणा राज्य में कृषि विभाग ने इसके लिए अलर्ट जारी किया है। 

सरकार ने कपास की खेती करने वाले सभी किसान भाईयों को गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को बचाने के लिए निर्देश भी दिए हैं। पिछले दो साल से कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। 

कपास ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। जिसके चलते किसानों में लगातार कपास की खेती के प्रति रुचि बढ़ रही है। अकेले सिरसा जिले में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जा रही है।

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क्या है गुलाबी सुंडी?

- कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी सुंडी (इल्ली) पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। 

वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं। अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। करीब 4 से 5 दिन में लार्वा अंडे से बाहर निकल आते हैं। और तुरंत ही कपास की कलियों या बीजकोष में घुस जाते हैं। और फिर करीब 12 से 14 दिन तक फसल को खाता है।

कैसे करें गुलाबी सुंडी से बचाव?

1- जैविक नियंत्रण के अनुसार पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से प्राप्त सेक्स फेरोमोन्स का संक्रमित खेत में छिड़काव करने से गुलाबी सुंडी की क्षमता और तादात कम होती है। 

2- रासायनिक नियंत्रण के अनुसार इन गुलाबी पतंगों को मारने के लिए क्लोरपाइरिफास, एस्फेंवैलेरेट या इंडोक्साकार्ब के कीटनाशक फार्मूलेशन का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।

 3- कीट के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित कपास के पौधों पर निगरानी रखें।

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4- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली वैरायटी का उपयोग करें, ताकि सीजन शुरू होने से पहले ही फसल की उपज मिल जाए। आमतौर पर गुलाबी सुंडी सीजन में ज्यादा जोर पकड़ती है।

5- कीटनाशक दवाओं का सावधानी से प्रयोग करें, ताकि कोई नुकसान न हो। 

6- कटाई के तुरंत बाद पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। 

7- ध्यान रहे कि कभी भी दो रासायनिक पदार्थों को मिलाकर छिड़काव न करें। इससे फसल को नुकसान संभावना बढ़ जाती है। 8- अधिकांश तौर पर नीम आधारित दवाओं का इस्तेमाल करें। 

 ------- लोकेन्द्र नरवार

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

लक्ष्य की आधी हुई कपास की खेती, गुलाबी सुंडी के हमले से किसान परेशान

मुआवजा न मिलने से किसानों ने लगाए आरोप

भूजल एवं कृषि
भूमि की उर्वरता में क्षय के निदान के तहत, पारंपरिक खेती के साथ ही फसलों के विविधीकरण के लिए, केंद्र एवं राज्य सरकारें फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। इसके बावजूद हैरानी करने वाली बात है कि, सरकार से सब्सिडी जैसी मदद मिलने के बाद भी किसान फसल विविधीकरण के तरीकों को अपनाने से कन्नी काट रहे हैं।

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क्या वजह है कि किसान को फसल विविधीकरण विधि रास नहीं आ रही? क्यों किसान इससे दूर भाग रहे हैं? इन बातों को जानिये मेरी खेती के साथ। लेकिन पहले फसल विवधीकरण की जरूरत एवं इसके लाभ से जुड़े पहलुओं पर गौर कर लें।

फसल विविधीकरण की जरूरत

खेत पर परंपरागत रूप से साल दर साल एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है। एक ही तरह की फसलें उपजाने वाला किसान एक ही तरह के रसायनों का उपयोग खेत में करता है। इससे खेत के पोषक तत्वों का रासायनिक संतुलन भी गड़बड़ा जाता है।

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भूमि, जलवायु, किसान का भला

यदि किसान एक सी फसल की बजाए भिन्न-भिन्न तरह की फसलों को खेत में उगाए तो ऐसे में भूमि की उर्वरकता बरकरार रहती है। निवर्तमान जैविक एवं प्राकृतिक खेती की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से भी भूमि, जलवायुु संग कमाई के मामले में किसान की स्थिति सुधरी है।

नहीं अपना रहे किसान

पंजाब सरकार द्वारा विविधीकृत कृषि के लिए किसानों को सब्सिडी प्रदान करने के बावजूद किसान कृषि की इस प्रणाली की ओर रुख नहीं कर रहे है। प्रदेश में आलम यह है कि यहां कुछ समय तक विविधीकरण खेती करने वाले किसान भी अब पारंपरिक मुख्य खेती फसलों की ओर लौट रहे हैं।

किसानों को नुकसान

पंजाब सरकार खरीफ कृषि के मौसम में पारंपरिक फसल धान की जगह अन्य फसलों खास तौर पर कम पानी में पैदा होने वाली फसलों की फार्मिंग को सब्सिडी आदि के जरिए प्रेरित कर रही है।

सब्सिडी पर नुकसान भारी

सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के मुकाबले विविधीकृत फसल पर कीटों के हमले से प्रभावित फसल का नुकसान भारी पड़ रहा है।

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पंजाब के किसानों क मुताबिक उन्हें विविधीकरण कृषि योजना के तहत सब्सिडी आधारित फसलों पर कीटों के हमले के कारण पैदावार कम होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस कारण उन्होंने फसल विविधीकरण योजना एवं इस किसानी विधि से दूसी अख्तियार कर ली है।

कपास का लक्ष्य अधूरा

पंजाब कृषि विभाग द्वारा संगरूर जिले में तय किया गया कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है। कपास के लिए निर्धारित 2500 हेक्टेयर खेती का लक्ष्य यहां अभी तक आधा ही है।

पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी)

किसान कपास की खेती का लक्ष्य अधूरा होने का कारण पिंक बॉलवर्म का हमला एवं खराब मौसम की मार बताते हैं।

गुलाबी सुंडी क्या है

गुलाबी सुंडी (गुलाबी बॉलवार्म), पिंक बॉलवर्म या गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm-PBW) कीट कपास का दुश्मन माना जाता है। इसके हमले से कपास की फसल को खासा नुकसान पहुंचता है। किसानो के मुताबिक, संभावित नुकसान की आशंका ने उनको कपास की पैदावार न करने पर मजबूर कर दिया। एक समाचार सेवा ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि, जिले में 2500 हेक्टेयर कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है, अभी तक केवल 1244 हेक्टेयर में ही कपास की खेती हो पाई है।

7 क्षेत्र पिंक बॉलवर्म प्रभावित

विभागीय तौर पर फिलहाल अभी तक 7 क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म के हमलों की जानकारी ज्ञात हुई है। विभाग के अनुसार कपास के कुल क्षेत्र के मुकाबले प्रभावित यह क्षेत्र 3 प्रतिशत से भी कम है।

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नुकसान आंकड़ों में भले ही कम हो, लेकिन पिछले साल हुए नुकसान और मुआवजे संबंधी समस्याओं के कारण भी न केवल फसल विविधीकरण योजना से जुड़े किसान अब योजना से पीछे हट रहे हैं, बल्कि प्रोत्साहित किए जा रहे किसान आगे नहीं आ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में किसानों ने बताया कि, पिछली सरकार ने पिंक बॉलवर्म के हमले से हुए नुकसान के लिए आर्थिक सहायता देने का वादा किया था।

नहीं मिला धान का मुआवजा

भारी बारिश से धान की खराब हुई फसल के लिए मुआवजे से वंचित किसान प्रभावित 47 गांवों के किसानों की इस तरह की परेशानी पर नाराज हैं।

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बार-बार नुकसान वजह

किसानों की फसल विविधीकरण योजना से दूरी बनाने का एक कारण उन्हें इसमें बार-बार हो रहा घाटा भी बताया जा रहा है। दसका गांव के एक किसान के मुताबिक इस वर्ष गेहूं की कम उपज से उनको बड़ा झटका लगा। पिछले दो सीजन से नुकसान होने की जानकारी किसानों ने दी है। कझला गांव के एक किसान ने खेती में बार-बार होने वाले नुकसान को किसानों को नई फसलों की खेती के प्रयोग से दूर रहने के लिए मजबूर करने का कारण बताया है। उन्होंने कई किसानों का उदाहरण सामने रखने की बात कही जो, फसल विविधीकरण के तहत अन्य फसलों के लिए भरपूर मेहनत एवं कोशिशों के बाद वापस धान-गेहूं की खेती करने में जुट गए हैं। किसानों के अनुसार फसल विविधीकरण के विस्तार के लिए प्रदेश में सरकारी मदद की कमी स्पष्ट गोचर है।

सिर्फ जानकारी से कुछ नहीं होगा

इलाके के किसानो का कहना है कि, जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए सिर्फ जानकारी प्रदान करने से लक्ष्य पूरे नहीं होंगे। उनके मुताबिक कृषि अधिकारी फसलों की जानकारी तो प्रदान करते हैं, लेकिन फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन राशि के साथ अधिकारी किसानों के पास बहुत कम पहुंचते हैं।

हां नुकसान हुआ

किसान हित के प्रयासों में लगे अधिकारियों ने भी क्षेत्र में फसलों को नुकसान होने की बात कही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसानों को हो रहे नुकसान को उन्होंने भी फसल विविधीकरण नहीं अपनाने की वजह माना है। नाम पहचान की गोपनीयता रखने की शर्त पर कृषि विकास अधिकारी ने बताया कि, फसल के नुकसान की वजह से कृषक फसल विविधीकरण कार्यक्रम में अधिक रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि, केवल 1244 हेक्टेयर भूमि पर इस बार कपास की खेती की जा सकी है।
फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में

फूलों की खेती से कमा सकते हैं लाखों में

भारत में फूलों की खेती एक लंबे समय से होती आ रही है, लेकिन आर्थिक रूप से लाभदायक एक व्यवसाय के रूप में फूलों का उत्पादन पिछले कुछ सालों से ही शुरू हुआ है. 

समकालिक फूल जैसे गुलाब, कमल ग्लैडियोलस, रजनीगंधा, कार्नेशन आदि के बढ़ते उत्पादन के कारण गुलदस्ते और उपहारों के स्वरूप देने में इनका उपयोग काफ़ी बढ़ गया है. 

फूलों को सजावट और औषधि के लिए उपयोग में लाया जाता है. घरों और कार्यालयों को सजाने में भी इनका उपयोग होता है. 

मध्यम वर्ग के जीवनस्तर में सुधार और आर्थिक संपन्नता के कारण बाज़ार के विकास में फूलों का महत्त्वपूर्ण योगदान है. लाभ के लिए फूल व्यवसाय उत्तम है. 

किसान यदि एक हेक्टेयर गेंदे का फूल लगाते हैं तो वे वार्षिक आमदनी 1 से 2 लाख तक प्राप्त कर सकते हैं. इतने ही क्षेत्र में गुलाब की खेती करते हैं तो दोगुनी तथा गुलदाउदी की फसल से 7 लाख रुपए आसानी से कमा सकते हैं. भारत में गेंदा, गुलाब, गुलदाउदी आदि फूलों के उत्पादन के लिए जलवायु अनुकूल है.

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जहाँ इत्र, अगरबत्ती, गुलाल, तेल बनाने के लिए सुगंध के लिए फूलों का इस्तेमाल किया जाता है, वहीं कई फूल ऐसे हैं जिन का औषधि उपयोग भी किया जाता है. कुल मिलाकर देखें तो अगर किसान फूलों की खेती करते हैं तो वे कभी घाटे में नहीं रहते.

भारत में फूलों की खेती

भारत में फूलों की खेती की ओर किसान अग्रसर हो रहे हैं, लेकिन फूलों की खेती करने के पहले कुछ बातें ऐसे हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है. 

यह ध्यान देना आवश्यक है की सुगंधित फूल किस तरह की जलवायु में ज्यादा पैदावार दे सकता है. फिलवक्त भारत में गुलाब, गेंदा, जरबेरा, रजनीगंधा, चमेली, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी और एस्टर बेली जैसे फूलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि फूलों की खेती के दौरान सिंचाई की व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए.

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बुआई के समय दें किन बातों पर दें ध्यान

फूलों की बुवाई के दौरान कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है. सबसे पहले की खेतों में खरपतवार ना हो पाए. ऐसा होने से फूलों के खेती पर बुरा असर पड़ता है. 

खेत तैयार करते समय पूरी तरह खर-पतवार को हटा दें. समय-समय पर फूल की खेती की सिंचाई की व्यवस्था जरूरी होती है. वहीं खेतों में जल निकासी की व्यवस्था भी सही होनी चाहिए. 

ताकि अगर फूलों में पानी ज्यादा हो जाये तो खेत से पानी को निकला जा सके. ज्यादा पानी से भी पौधों के ख़राब होने का दर होता है.

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फूलो की बिक्री के लिये बाज़ार

फूलों को लेकर किसान को बाजार खोजने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है, क्योंकि फूलों की आवश्यकता सबसे ज्यादा मंदिरों में होती है. इसके कारण फूल खेतों से ही हाथों हाथ बिक जाते हैं. 

इसके अलावा इत्र, अगरबत्ती, गुलाल और दवा बनाने वाली कंपनियां भी फूलों के खरीदार होती है. फूल व्यवसाई भी खेतों से ही फूल खरीद लेते हैं, और बड़े बड़े शहरों में भेजते हैं.

फूल की खेती में खर्च

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फूलों की खेती में ज्यादा खर्च भी नहीं आता है. एक हेक्टेयर में अगर फूल की खेती की जाए तो आमतौर पर 20000 रूपया से 25000 रूपया का खर्च आता है, 

जिसमें बीज की खरीदारी, बुवाई का खर्च, उर्वरक का मूल्य, खेत की जुताई और सिंचाई वगैरह का खर्च भी शामिल है, फूलों की कटाई के बाद इसे बड़ी आसानी से बाजार में बेचकर शुद्ध लाभ के रूप में लाखों का मुनाफा लिया जा सकता है

बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

बारह महीने उपलब्ध रहने वाले इस फूल की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान

उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद मिर्जापुर में भदोही निवासी किसान नजम अंसारी गुलाब और जरबेरा के फूलों का उत्पादन करके अच्छा खासा लाभ उठा रहा है। जरबेरा के फूलों मांग अधिकांश बड़े शहरों में होती है और किसान इसके फूलों की आपूर्ति भी करता है। किसान इन फूलों की खेती पाली हाउस की सहायता से तैयार करता है। इन फूलों के उत्पादन से बहुत सारे जरूरतमंदों को रोजगार का अवसर प्राप्त होता है। जरबेरा एवं गुलाब के फूलों की विशेष बात यह है कि इनका प्रयोग खुशनुमा समारोह में अधिकतर होता है जैसे जन्मोत्सव, विवाह समारोह एवं अतिथि गृह को सजाने इत्यादि। इस वजह से कई सारे किसान फूल की खेती की तरफ अपना रुख कर रहे हैं।

नजीम अंसारी कितनी भूमि में कर रहे हैं, जरबेरा की खेती

बतादें कि उत्तर प्रदेश राज्य के जनपद मिर्जापुर में भदोही निवासी किसान नजम अंसारी ने तकरीबन ३ बीघे भूमि पर गुलाब एवं जरबेरा के पुष्पों का उत्पादन किया है। जरबेरा एवं गुलाब के फूलों का उत्पादन करने हेतु पाली हाउस तकनीक की सहायता ली जा रही है। फूलों के उत्पादन के लिए १५ से २० लोग कार्यरत हैं। जरबेरा के फूलों की आपूर्ति प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर लखनऊ समेत और भी बहुत सारे जिलों की जाती है। यदि इनकी कीमत की बात की जाये तो जरबेरा का एक फूल ८ से १० रूपये में बिकता है। समारोह कार्यक्रमों के दौरान इसकी मांग के साथ साथ इसकी कीमत में भी बढ़ोत्तरी हो जाती है।


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प्रत्येक फूल अपने आप में मूल्यवान होता है, जरबेरा फूल की खेती भी किसानों को धनवान बनाने में सक्षम है। जरबेरा के फूलों को पाली हाउस में निर्धारित तापमान में ही रखा जाता है। भदोही किसान नजम अंसारी का कहना है, कि जरबेरा फूलों का उत्पादन उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व ही की थी, परंतु अब इसकी सहायता से बेहद अच्छा खासा लाभ अर्जित कर रहे हैं। इन फूलों के उत्पादन में पाली हाउस एक अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि पालीहाउस में २० से २५ डिग्री सेल्सियस तापमान स्थिरता रखने में मदद करता है, जो कि इन फूलों के बेहतर उत्पादन में बेहद सहायक साबित होता है। हालाँकि, ठंड के समय इसके उत्पादन में घटोत्तरी होती है।

जरबेरा का फूल कितने दिन तक ज्यों का त्यों रह सकता है

जरबेरा एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक पुष्प है, इसकी रंग बिरंगी पंखुड़ियों को निहारने से बेहद आन्तरिक सुकून और चैन मिलता है। इसी वजह से जरबेरा के पुष्पों का इस्तेमाल कार्यालयों, भोजनालयों, विश्रामालयों, गुलदस्ते बनाने एवं वैवाहिक समारोहों में सजावट हेतु इत्यादि में इस्तेमाल होता है। यह सफेद, गुलाबी, लाल पीला, नारंगी एवं और भी रंगों वाला जरबेरा वर्ष के १२ माह उपलब्ध होता है। बतादें कि जरबेरा के फूल से आयुर्वेदिक औषधियां भी निर्मित होती हैं। जरबेरा पुष्प की एक विशेषता यह भी है, कि पानी के बोतल में इसे रखने पर यह दो सप्ताह तक से भी ज्यादा ज्यों का त्यों रह सकता है।
गुलाब में लगने वाले ये हैं प्रमुख कीड़े एवं उनसे बचाव के उपाय

गुलाब में लगने वाले ये हैं प्रमुख कीड़े एवं उनसे बचाव के उपाय

वैसे तो गुलाब में कई प्रकार के कीड़े लगते हैं जो फूलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। लेकिन आज हम यहां किसान भाइयों को कुछ प्रमुख प्रकार के कीड़ों के बारे में बताएंगे जो अक्सर गुलाब के फूलों की फसल को नष्ट करने के लिए उत्तरदायी होते हैं। ये कीड़े गुलाब के पेड़ और गुलाब के फूलों को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं, जिनसे उत्पादन कम होता है और किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ता है।

एफिड या चेंपा:

यह एक विशेष प्रकार का कीड़ा होता है, जो गुलाब की फूलों की फसल पर जनवरी और फरवरी माह में आक्रमण करता है। ये कीड़े सामान्यतः काले रंग के होते हैं, जो गुलाब के फूलों पर या फूलों की कलियों पर चिपके रहते हैं। इस दौरान ये कीड़े फूल का और कलियों का रस चूसते हैं, जिसके कारण फूल और कलियां मुरझाकर पेड़ से गिर जाती हैं। इसके साथ ही फूलों में ढंग से ग्रोथ दिखाई नहीं देती और उनका आकार विकृत हो जाता है।

एफिड या चेंपा कीड़ों ने निपटने के लिए करें ये उपाय

इन कीड़ों ने निपटने के लिए रोगोर या मैलाथियान दवा की 2 मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में मिलाएं और इसका स्प्रे मशीन की सहायता से छिड़काव करें। इसके अलावा एक मिलीलीटर मेटासिड को एक लीटर पानी में मिलाकर भी छिड़काव कर सकते हैं।
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थ्रिप्स:-

यह कीड़ा काले एवं भूरे रंग का होता है। साथ ही इस कीड़े का शिशु कीड़ा लाल रंग का होता है। इसका आक्रमण गुलाब के पेड़ की पत्तियों पर मार्च से नवंबर माह के बीच होता है। इन कीड़ों की वजह से पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। साथ ही पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। पत्तियों के साथ कलियां भी सिकुड़कर गिरने लगती हैं। इसके साथ ही ये कीड़े गुलाब के फूलों को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं।

थ्रिप्स कीड़ों से बचने के उपाय

साबुन के घोल के साथ आधा कप कैरोसीन डालकर स्प्रे मशीन की सहायता से छिड़काव करें। साथ ही रोगोर दवा की 2 मिली मात्रा को 1 लीटर पानी के साथ मिश्रित करके छिडक़ाव करें।
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रेड स्केल:

इस कीड़े का प्रकोप जनवरी और फरवरी माह में होता है। यह सामान्यतः पेड़ के तनों पर पाया जाता है और पेड़ के रस को चूसता है, जिससे पेड़ बेजान हो जाता है। यह बेहद हानिकारक कीट तेजी से अपनी संख्या को बढ़ाता है। जिससे इसको कंट्रोल करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।

रेड स्केल कीड़ों से बचने के उपाय

इन कीड़ों से गुलाब की फसल को बचाने के लिए ट्राइजोफॉस 40 ईसी दवाई की एक मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में मिलाएं। इस घोल का स्प्रे मशीन की सहायता से छिड़काव करें। इसके अलावा कार्बोरिल का भी छिड़काव किया जा सकता है।

चैपर बीटल:-

ये अलग प्रकार के कीड़े होते हैं जो गुलाब के पेड़ की पत्तियों को खा जाते हैं। जिससे पत्तियों में छेद हो जाते हैं और पत्तियां पेड़ से गिर जाती हैं।

चैपर बीटल से बचने के उपाय

इन कीड़ों से गुलाब के पेड़ को बचाने के लिए 1 मिलीलीटर पेराथियान दवाई को 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

जैसिड्स:-

जैसिड्स कीटों का आक्रमण गुलाब के पेड़ों पर अप्रैल और मई के महीने में होता है। ये कीट पत्तियों पर चिपके रहते हैं और उनका रस चूसते हैं।
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जैसिड्स से गुलाब की फसल को बचाने के उपाय

जैसिड्स कीटों से गुलाब की फसल को बचाने के लिए कार्बोरिल दवा का छिडकाव कर सकते हैं। इसके साथ ही रोगोर की एक मिलीलीटर मात्रा को 1 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

ब्रिसटली रोज स्लग्स:-

अगर इन कीड़ों की बात करें तो इनका आक्रमण फरवरी और मार्च में होता है। ये कीड़े पत्तियों के निचले भाग को खा जाते हैं। जिससे इन्हें तना छेदक, पणऊ कीट या रोज कैटरपिलर कहा जाता है। इन कीड़ों के चार पंख होते हैं।

ब्रिसटली रोज स्लग्स से गुलाब की फसल को बचाने के उपाय

बसंत आगमन से पूर्व पौधों की पत्तियों पर मैलाथियान या कार्बोरिल का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल में कम से कम दो बार करें।

निमेटोड:-

इन कीड़ों का आक्रमण गुलाब के पेड़ में हर मौसम में होता है। ये कीड़े ज्यादातर पेड़ की जड़ों में अटैक करते हैं। जिसे पौधा कमजोर हो जाता है और उसकी ग्रोथ रुक जाती है। पेड़ में फूल नहीं बनते और पत्तियां पीली पड़ जाती है।

निमेटोड से बचाव के उपाय

पौधों की रोपाई से कम से कम 6 सप्ताह पहले फ्यूराडान अथवा निमागोन दवाई का सिंचाई के साथ प्रयोग करें।

कैटरपिलर:-

ये एक प्रकार से भूरे रंग की सुंडियां होती हैं जो पेड़ों की पत्तियों को खा जाती हैं।
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कैटरपिलर से बचाव के उपाय

हर सप्ताह कार्बोरिल को पानी के साथ मिश्रित करके छिड़काव करें।

रोज मिसीज:-

ये अलग तरह के कीड़े होते हैं जो पेड़ की पत्तियों और कलियों पर अंडे देते हैं, इनका लार्वा पत्तियों और कलियों को खा जाता है। ये पेड़ों के पास भुनगे की तरह उड़ते हैं, इनका रंग मटमैला, पीला या लाल होता है।

रोज मिसीज से बचाव के उपाय

जब गुलाब के फूल खिलने लगें तब कार्बोरिल और मैलाथियान दवा को पानी के साथ मिश्रित करके किड़काव करें।

स्पाइडर माइट्स:-

इन कीड़ों की आक्रमण गुलाब के पेड़ों पर सितंबर से जनवरी के मध्य होता है। लाल रंग के स्पाइडर माइट्स कीड़े पत्तियों के निचले भाग पर रेशमी धागों का जाला बुनते हैं। जिसके कारण पत्ते पीले पड़ जाते हैं और सूखकर झड़ जाते हैं।

स्पाइडर माइट्स से बचाव के उपाय

इथियान की 4 मिलीलीटर मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाएं और पौधों पर छिड़काव करें। इसके साथ ही पैराथियान को भी पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।
गमले में कैसे उगाएं गुलाब के खूबसूरत फूल

गमले में कैसे उगाएं गुलाब के खूबसूरत फूल

गुलाब के फूल की सुंदरता और उसकी बेहद मोहक खुशबू के बारे में कौन नहीं जानता है। सदियों से गुलाब का फूल सुंदरता और प्रेम का प्रतीक माना गया है और बहुत से लोग चाहते हैं, कि वह अपने घर में यह गुलाब का पौधा लगा सकें। गुलाब का पौधा लगाते समय एक समस्या यह हो जाती है, कि यह पौधा बाकी फूलों के पौधे के मुकाबले जरा ज्यादा जगह लेता है। लेकिन अगर आपके घर में जगह की कमी है तो भी आपको निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हम किसी कंटेनर या गमले में गुलाब की किसी भी प्रजाति को विकसित कर सकते हैं। ऐसे में अगर आपके घर में छोटी सी बालकनी है या फिर गार्डनिंग (Gardening) के लिए आपने बहुत कम जगह रखी है। तब भी आप गुलाब की अलग-अलग किस्में अपने घर में उगा सकते हैं।

कभी भी गुलाब का पौधा लगाने से पहले आपको नीचे दी गई चीजों के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है;

  • गुलाब के लिए गमले का चुनाव
  • गमले के लिए मिट्टी
  • गुलाब के लिए सर्वश्रेष्ठ खाद
  • गमले के लिए गुलाब प्रजातियों
  • गुलाब में होने वाले रोग
  • देखभाल

किसी भी बर्तन में कैसे लगाएं गुलाब का पौधा

1. कंटेनर या गमले का चुनाव

सबसे पहले आपको गुलाब का पौधा लगाते समय किसी भी कंटेनर या गमले के चुनाव करने की जरूरत है। आप गुलाब की अलग-अलग किस्मों के हिसाब से कंटेनर का चुनाव कर सकते हैं। अगर आप छोटे गुलाब लगाना चाहते हैं, तो आप लगभग 12 इंच के गमले में यह कैसे लगा सकते हैं। जबकि फ्लोरिबुंडा और हाइब्रिड के लिए १५ इंच (38 सेमी) की आवश्यकता होती है। बड़े संकर और वृक्ष गुलाब 18 इंच (45.7 सेमी) या इससे अधिक बड़े मापने वाले कंटेनरों में होना चाहिए। एक बात को ध्यान में रखना चाहिए कि कंटेनर में अच्छा जल निकासी होनी चाहिए।
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अगर आप चाहते हैं, कि एक बार गुलाब का पौधा उग जाने के बाद आप कंटेनर को एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाना चाहते हैं। हमेशा ही हल्के कंटेनर या गमले का इस्तेमाल करें। आप चाहे तो प्लास्टिक के बने हुए गमले का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

2. गुलाब के पौधे के लिए मिट्टी

गुलाब के पौधे के लिए सही तरह की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाना बेहद जरूरी है। आप चार चीजों को मिलाकर इसके लिए उचित मिट्टी बना सकते हैं। वह है, साधारण मिट्टी 50%, गोबर खनिज 30%, नीम केक पाउडर 10% और रेत 10% इस संयोजन की मात्रा अगर थोड़ी से कम या ज्यादा रहती है। आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है, लेकिन फिर भी कोशिश करें कि आप इस मात्रा को इसी प्रतिशत में रखें। ऐसा करने से आप के पौधे को अच्छी तरह से बढ़ने में बेहद मदद मिलेगी।

3. गुलाब के लिए सर्वश्रेष्ठ खाद

गुलाब पौधे के लिए सबसे अच्छा खाद जैव खाद जैसे गोबर खनिज, वर्मीकंपोस्ट, कंपोस्ट है। गुलाब का पौधा एक ऐसा पौधा है, जिसे बहुत ज्यादा मात्रा में पोषक तत्वों की जरूरत होती है। इसके अलावा अगर आप बहुत ज्यादा केमिकल गया फिर रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, तो आप का पौधा खराब भी हो सकता है। अपने पौधे में आप गोबर खनिज आदि जैसी खादे हर 15 दिन के अंतराल पर डाल सकते हैं।

4. गमले के लिए गुलाब की प्रजातियों

हालांकि गुलाब प्लांट में हजारों प्रजातियां हैं, जैसे भारतीय दैनिक, इंग्लिश रोज, डच रोज, ऑस्ट्रेलियाई रोज हैं। लेकिन गमले के लिए आप चीनी गुलाब के पौधे बहुत आसानी से विकसित कर सकते हैं।

5. गुलाब में लगने वाले रोग

गुलाब के पौधे में बहुत सी बीमारियां लग सकती हैं, जिसमें से ब्लैक स्पॉट और पाउडर मिल्डेव सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बीमारियां है। गुलाब के पौधे पर बहुत ज्यादा फंगल से जुड़ी हुई बीमारियां होने का खतरा भी रहता है। इसलिए समय-समय पर इस पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करते रहना चाहिए।
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6. गुलाब पौधे लगाने के लिए कुछ देखभाल युक्तियाँ

अगर आप घर में गमले में गुलाब का पौधा लगा रहे हैं, तो आपको कुछ बातों पर ध्यान देने की जरूरत है। जो इस प्रकार से हैं;
  • हमेशा गुलाब के पौधे का कमला ऐसी जगह पर रखें जहां पर सूरज की रोशनी अच्छी तरह से आती है। इस पौधे को दिन में लगभग 6 से 7 घंटे सूरज की रोशनी की जरूरत पड़ती है।
  • अगर आप बेहद गर्मी के मौसम में इस पौधे को लगाना चाहते हैं, तो दिन में लगभग 2 बार गमले में पानी जरूर डालें।
  • हमेशा पौधे में पानी डालने से पहले मिट्टी की नमी की जांच जरूर कर लें। अगर हाथ लगाने से मिट्टी एकदम सुखी लग रही है, तो पौधे को तुरंत पानी की जरूरत है और आप उसमें पानी डाल दें।
  • जब भी आप गुलाब के पौधे में पानी डाल रहे हैं, तो इस बात का बेहद ख्याल रखें कि आप बार-बार पौधे के पत्तों को गिला ना करें ऐसा करने से पौधे के पत्तों में अलग-अलग तरह के रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।
  • अगर आप बार-बार पानी नहीं डाल पा रहे हैं, तो एक बार पानी डालने के बाद आप पौधे की सतह पर गीली घास बिछा दें। ऐसा करने से पौधे में से बार-बार पानी का वाष्पीकरण नहीं होगा और नमी बरकरार रहेगी। अगर बारिश का मौसम है तो आप यह घास हटा दें वरना यह पौधे की जड़ों को खराब कर सकती हैं।
  • हम सभी यह जानते हैं, कि गुलाब के पौधे में कांटे होते हैं, जिससे आपके हाथों को हानि पहुंच सकती हैं। इसलिए किसी भी तरह का रखरखाव करते समय दस्ताने पहनना ना भूलें।
  • एक बार जब आप के पौधे पर फूलों के मौसम में फूल आने शुरू हो जाए तो गुलाब की छटाई जरूर करें। ऐसा करने से आप का पौधा एक आकर्षक आकार में बना रहता है और इससे बाद में और ज्यादा अच्छे फूल आने की संभावना भी बढ़ जाती है।
  • गुलाब के पौधे के आस पास प्रत्येक वसंत ऋतु में एप्सॉन नमक (Epson Salt) का एक बड़ा चमचा डाले। पौधे के आधार के आसपास नमक छिड़कें यह पत्ते के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए मैग्नीशियम की एक अतिरिक्त खुराक प्रदान करता है।
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इस तरह से इन सभी छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखते हुए आप अपने घर के छोटे या फिर बड़े बगीचे में गुलाब के खूबसूरत फूल उगा सकते हैं।