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आम में फूल आने के लिए अनुकूल पर्यावरण परिस्थितियां एवं बाग प्रबंधन

आम में फूल आने के लिए अनुकूल पर्यावरण परिस्थितियां एवं बाग प्रबंधन

इस वर्ष भी शीत ऋतु का आगमन देर से होने एवं जनवरी के अंतिम सप्ताह में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस  से कम एक सप्ताह से ज्यादा समय से चल रहा है ,इन परिस्थितियों में किसान यह जानना चाह रहा है की क्या इस साल आम में मंजर समय से आएगा की देर से आएगा । वर्तमान पर्यावरण की परिस्थितियां इस तरफ इशारा कर रही है की मंजर आने में विलम्ब हो सकता है। इष्टतम फल उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए आम के पेड़ों में फूल आने के लिए अनुकूल वातावरण बनाना महत्वपूर्ण है। सफल पुष्पन प्रक्रिया में कई कारक योगदान करते हैं, जिनमें जलवायु परिस्थितियों और मिट्टी की गुणवत्ता से लेकर उचित पेड़ की देखभाल और बाग प्रबंधन की विभिन्न विधा पर निर्भर करता  हैं।

जलवायु और तापमान

आम के पेड़ में अच्छे मंजर आने के लिए आवश्यक है की ढाई से तीन महीने तक शुष्क एवं ठंडा मौसम  उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में आवश्यक हैं। फूल आने के लिए आदर्श तापमान 77°F से 95°F (25°C से 35°C) के बीच होता है। ठंडा तापमान फूल आने में बाधा उत्पन्न करता है, इसलिए ठंढ से बचना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, सर्दियों की ठंड की अवधि, जिसमें तापमान लगभग 50°F (10°C) तक गिर जाता है तब फूलों के आगमन को बढ़ा देता है।कहने का तात्पर्य है की उस साल मंजर देर से आता है।

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प्रकाश आवश्यकताएँ

आम के पेड़ को आम तौर पर सूर्य की किरणे प्रिय होते हैं। मंजर के निकलने एवं उनके स्वस्थ को प्रोत्साहित करने के लिए दिन में कम से कम 6 से 8 घंटे तक पूर्ण सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।  पर्याप्त धूप उचित प्रकाश संश्लेषण सुनिश्चित करती है, जो फूल आने और फलों के विकास के लिए आवश्यक ऊर्जा के लिए महत्वपूर्ण है।

मिट्टी की गुणवत्ता

थोड़ी अम्लीय से तटस्थ पीएच (6.0 से 7.5) वाली अच्छी जल निकासी वाली, दोमट मिट्टी आम के पेड़ों के लिए आदर्श होती है।  अच्छी मिट्टी की संरचना उचित वातन और जड़ विकास की अनुमति देती है।  नियमित मिट्टी परीक्षण और कार्बनिक पदार्थों के साथ संशोधन से पोषक तत्वों के स्तर को बनाए रखने और फूल आने के लिए अनुकूलतम स्थिति सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।

जल प्रबंधन

आम के पेड़ों को लगातार और पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है, खासकर फूल आने के दौरान।  हालाँकि, जलभराव की स्थिति से बचना चाहिए क्योंकि इससे जड़ सड़न हो सकती है।  एक अच्छी तरह से विनियमित सिंचाई प्रणाली, जल जमाव के बिना नमी प्रदान करती है, फूल आने और उसके बाद फल लगने में सहायता करती है।किसान यह जानना चाहता है की मंजर आने से ठीक पहले या फूल खिलते समय सिंचाई कर सकते है की नही ,इसका सही जबाब है की सिंचाई नही करना चाहिए ,क्योंकि यदि इस समय सिंचाई किया गया तो मंजर के झड़ने की समस्या बढ़ सकती है जिससे किसान को नुकसान होता है।

पोषक तत्व प्रबंधन

आम के फूल आने के लिए उचित पोषक तत्व का स्तर महत्वपूर्ण है।  विशिष्ट विकास चरणों के दौरान नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम से भरपूर संतुलित उर्वरक का प्रयोग किया जाना चाहिए।  जिंक जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व भी फूलों की शुरुआत और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  नियमित मृदा परीक्षण पोषक तत्वों के सटीक अनुप्रयोग का मार्गदर्शन करता है।

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छंटाई और प्रशिक्षण

छंटाई पेड़ को आकार देने, मृत या रोगग्रस्त शाखाओं को हटाने और सूर्य के प्रकाश के प्रवेश को प्रोत्साहित करने में मदद करती है।  खुली छतरियाँ बेहतर वायु संचार की अनुमति देती हैं, जिससे फूलों को प्रभावित करने वाली बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।  शाखाओं का उचित प्रशिक्षण सीधी वृद्धि की आदत को बढ़ावा देता है, जिससे सूर्य के प्रकाश के बेहतर संपर्क में मदद मिलती है।

कीट और रोग प्रबंधन

कीट और रोग फूलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।  नियमित निगरानी और उचित कीटनाशकों का समय पर प्रयोग संक्रमण को रोकने में मदद करता है।  उचित स्वच्छता, जैसे गिरी हुई पत्तियों और मलबे को हटाने से एन्थ्रेक्नोज जैसी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है, जो फूलों को प्रभावित करता है।

परागण

आम के पेड़ मुख्य रूप से पर-परागण करते हैं, और मधुमक्खियाँ जैसे कीट परागणकर्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  आम के बागों के आसपास विविध पारिस्थितिकी तंत्र बनाए रखने से प्राकृतिक परागण को बढ़ावा मिलता है।  ऐसे मामलों में जहां प्राकृतिक परागण अपर्याप्त है, फलों के सेट को बढ़ाने के लिए मैन्युअल परागण विधियों को नियोजित किया जा सकता है।

शीतलन की आवश्यकता

आम के पेड़ों को फूल आने के लिए आमतौर पर शीतलन अवधि की आवश्यकता होती है। उन क्षेत्रों में जहां सर्दियों का तापमान स्वाभाविक रूप से कम नहीं होता है, फूलों की कलियों के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए विकास नियामकों को लागू करने या कृत्रिम शीतलन विधियों को प्रदान करने जैसी रणनीतियों को नियोजित किया जाता है।

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रोग प्रतिरोध

रोग प्रतिरोधी आम की किस्मों को रोपने से पेड़ स्वस्थ होता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रोग फूल आने की प्रक्रिया में बाधा न बनें। आम के फलते-फूलते बाग के लिए ख़स्ता फफूंदी या जीवाणु संक्रमण जैसी बीमारियों के खिलाफ नियमित निगरानी और त्वरित कार्रवाई आवश्यक है।

अंत में, आम में फूल आने के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में एक समग्र दृष्टिकोण शामिल होता है जिसमें जलवायु संबंधी विचार, मिट्टी की गुणवत्ता, जल प्रबंधन, पोषक तत्व संतुलन, छंटाई, कीट और रोग नियंत्रण, परागण रणनीतियाँ और विशिष्ट शीतलन आवश्यकताओं पर ध्यान शामिल होता है।  इन कारकों को संबोधित करके, उत्पादक फूलों को बढ़ा सकते हैं, जिससे फलों के उत्पादन में सुधार होगा और समग्र रूप से बगीचे में सफलता मिलेगी।


Dr AK Singh

डॉ एसके सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी) एवं विभागाध्यक्ष,

पोस्ट ग्रेजुएट डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट पैथोलॉजी, 

प्रधान अन्वेषक, 
अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना,डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा-848 125, 
समस्तीपुर,बिहार 
Send feedback sksraupusa@gmail.com/sksingh@rpcau.ac.in
आम के बगीचे में फलों में लगने वाले रोगों से बचाव की महत्वपूर्ण सलाह

आम के बगीचे में फलों में लगने वाले रोगों से बचाव की महत्वपूर्ण सलाह

भा.कृ,अनु.प, केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (ICAR, Central Institute of Subtropical Horticulture) के द्वारा किसानों के लिए मार्च महीने में आम के बगीचे से जुड़ी 5 महत्वपूर्ण सलाह जारी की है। 

ताकि किसान वक्त रहते आम के बगीचे की देखरेख (Mango orchard maintenance) करके शानदार उपज हांसिल कर सकें।

गर्मी के मौसम में बाजार के अंदर सबसे ज्यादा आम की मांग रहती है। इस दौरान किसान आम की खेती से ज्यादा आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। परंतु, सामान्यतः देखा गया है, कि आम की फसल में कई बार कीट व रोग लगने से किसानों को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ता है। 

अब ऐसी स्थिति में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कृषकों के लिए मार्च माह में आम के बगीचों से जुड़ी जरूरी सलाह जारी की है। जिससे किसान वक्त रहते आम के बगीचे से अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकें।

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आम के बगीचे से शानदार फायदा पाने के लिए किसानों को मार्च माह में केवल 5 बातों का ध्यान रखना है, जोकि भा.कृ,अनु.प, केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान रहमानखेड़ा, पो.काकोरी, लखनऊ के द्वारा जारी की गई है। ऐसे में आइए इन 5 महत्वपूर्ण सलाहों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

खर्रा रोग की रोकथाम हेतु सलाह

विभाग के द्वारा जारी की गई जानकारी के मुताबिक, इस सप्ताह उत्तर प्रदेश में खर्रा रोग से क्षति की संभावना जताई गई है. 

अगर फसल में 10 प्रतिशत से अधिक पुष्पगुच्छों पर खर्रा की उपस्थिति देखी जाती है, तो टेबुकोनाजोल+ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन (0.05 प्रतिशत) या हेक्साकोनाजोल (0.1 प्रतिशत) या सल्फर (0.2 प्रतिशत) का छिड़काव किया जा सकता है.

आम के भुनगा कीट की रोकथाम के लिए सलाह 

आम का भुनगा (फुदका या लस्सी) एक बेहद हानिकारक कीट है, जो आम की फसल को बड़ी गंभीर हानि पहुँचा सकता है। यह बौर, कलियों तथा मुलायम पत्तियों पर एक-एक करके अंडे देते हैं और शिशु अंडे से एक सप्ताह में बाहर आ जाते हैं। 

बाहर आने के पश्चात शिशु एवं वयस्क पुष्पगुच्छ (बौर), पत्तियों तथा फलों के मुलायम हिस्सों से रस को चूस लेते हैं। इससे वृक्ष पर बौर खत्म हो जाता है। इसकी वजह से फल बिना पके ही गिर जाते हैं। 

भारी मात्रा में भेदन तथा सतत रस चूसने की वजह से पत्तियां मुड़ जाती हैं और प्रभावित ऊतक सूख जाते हैं। यह एक मीठा चिपचिपा द्रव भी निकालते हैं, जिस पर सूटी मोल्ड (काली फफूंद) का वर्धन होता है। 

सूटी मोल्ड एक तरह की फफूंद होती है, जो पत्तियों में होने वाली प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को कम करती है। अगर समय पर हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो गुणवत्ता वाले फल की पैदावार प्रभावित होगी। 

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अब ऐसी स्थिति में किसानों को सलाह दी जाती है, कि यदि पुष्पगुच्छ पर भुनगे की मौजूदगी देखी जा रही है, तो तत्काल इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मि.ली./ली. पानी) तथा साथ में स्टिकर (1 मि.ली./ली. पानी) छिड़काव करना चाहिए। 

पुष्प गुच्छ मिज की रोकथाम हेतु सलाह

आम के पुष्प एवं पुष्प गुच्छ मिज अत्यंत हानिकारक कीट हैं, जो आम की फसल को काफी प्रभावित करते हैं। मिज कीट का आक्रमण वैसे तो जनवरी महीने के आखिर से जुलाई माह तक कोमल प्ररोह तने एवं पत्तियों पर होता है। 

परंतु, सर्वाधिक नुकसान बौर एवं नन्हें फलों पर इसके द्वारा ही किया जाता है। इस कीट के लक्षण बोर के डंठल, पत्तियों की शिराओं अथवा तने पर कत्थई या काले धब्बे के रूप में दिखाई देते हैं। धब्बे के बीच भाग में छोटा सा छेद होता है।

प्रभावित बौर व पत्तियों की आकृति टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। प्रभावित इलाकों से आगे का बौर सूख भी सकता है। किसान भाइयों को सलाह दी जाती है, कि इस कीट की रोकथाम हेतु जरूरत के अनुसार डायमेथोएट (30 प्रतिशत सक्रिय तत्व) 2.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से स्टिकर (1.मि.ली/ली.पानी) के साथ छिड़काव करें।

आम के बगीचे में थ्रिप्स की रोकथाम हेतु सलाह

दरअसल, आने वाले कुछ दिनों के दौरान आम के बौर पर थ्रिप्स का संक्रमण दर्ज किया जा सकता है। अगर आम के बगीचों में इसका संक्रमण देखा जाता है, तो थायामेथोक्साम (0.33 ग्राम/लीटर) के छिड़काव द्वारा तुरंत इसको प्रबंधित करें।

आम के गुजिया कीट की रोकथाम हेतु सलाह

आम के बागों में गुजिया कीट की गतिविधि जनवरी महीने के पहले सप्ताह से शुरू हो जाती है। यदि बचाव के उपाय असफल होते हुए कीट बौर और पत्तियों तक पहुंच गया है, 

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तो किसानों से अनुरोध है कि इसके प्रबंधन हेतु आवश्यक कार्यवाही शीघ्र करें। अगर कीट बौर और पत्तियों तक पहुंच गया हो तो कार्बोसल्फान 25 ई.सी का 2 मिली./ली.पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

जर्दालु आम को समस्त राज्यपाल व LG को उपहार स्वरूप भेजेगा बिहार कृषि विश्वविद्यालय

जर्दालु आम को समस्त राज्यपाल व LG को उपहार स्वरूप भेजेगा बिहार कृषि विश्वविद्यालय

बिहार राज्य के भागलपुर जनपद को जर्दालु आम की वजह से ही प्रसिद्धि मिली है। बतादें, कि भागलपुर में सर्वाधिक जर्दालु आम के ही बाग हैं। जर्दालु आम एक अगेती किस्म है। इसी कड़ी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर ने यह निर्णय किया है, कि इस बार वह देश के समस्त राज्यपाल एवं उप राज्यपालों के लिए जर्दालु आम भेजा जाएगा। मतलब कि राज्यपाल समेत राजभवन के अधिकारियों द्वारा भी इसका स्वाद लिया जाएगा। साथ ही, विशेषज्ञों ने कहा है, कि कृषि विश्वविद्यालय के माध्यम से जर्दालु आम का विपणन और ब्रांडिंग करने हेतु निर्णय लिया गया है। अब हम यह जानेंगे कि जर्दालु आम में ऐसी कौनसी विशेषता है, जिसके चलते इसको भारत के समस्त राजभवनों को उपहार के तौर पर दिए जाने का फैसला लिया गया है। ये भी पढ़े: आम की खास किस्मों से होगी दोगुनी पैदावार, सरकार ने की तैयारी दैनिक जागरण की खबर के अनुसार, वैसे तो उत्तरी बिहार राज्य में विभिन्न प्रकार के आम की प्रजातियों का उत्पादन किया जाता है। परंतु, इनमें से जर्दालु आम सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह आम खुद के बेहतरीन स्वाद की वजह से जाना जाता है। इसकी मिठास मिश्री की भांति होती है। इसके अंदर रेशे ना के समान होते हैं। यही कारण है, कि जर्दालु आम मुंह में डालते ही मक्खन की भांति घुल जाता है। लोग इसका जूस निकालने हेतु विशेष रूप से इस्तेमाल करते हैं।

जर्दालु आम में कितना वजन होता है

भागलपुर जनपद को जर्दालु आम की वजह से ही जाना जाता है। भागलपुर में सर्वाधिक जर्दालु आम के बाग पाए जाते हैं। इसको आम की एक अगेती प्रजाति है। वैसे तो आम में मंजर बसंत के उपरांत आने चालू हो जाते हैं। परंतु, इसमें जनवरी माह से ही मंजर आने शुरू हो जाते हैं। बतादें कि 20 फरवरी के उपरांत टिकोले आम का रूप धारण कर लेते हैं, जो कि जून माह से पकने चालू हो जाते हैं। हालांकि, इससे पूर्व यह सेवन करने योग्य बाजार में आ जाते हैं। इस आम आकार भी अन्य किस्मों की तुलना में काफी बड़ा होता है। बतादें, कि इसके एक आम का वजन 200 ग्राम से ज्यादा होता है। साथ ही, इसका छिलका थोड़ा मोटा भी होता है। इस वजह से लोग इसको अचार लगाने में भी बेहद इस्तेमाल किया करते हैं।

25 टन आम का उत्पादन केवल एक हेक्टेयर के बगीचे से होता है

जर्दालु आम को उसके रंग से आसानी से पहचाना जा सकता है। पकने के उपरांत जर्दालु आम का रंग हलका पीला एवं नारंगी हो जाता है। अब इस स्थिति में लोग इसको सहजता से पहचाना जा सकता है। इसमें तकरीबन 67 फीसद गूदा रहता है। रेशा तो बिल्कुल मौजूद नहीं होता है। किसान भाई इसके एक पेड़ से एक सीजन में 2000 फलों की तुड़ाई कर सकते हैं। एक हेक्टेयर के बाग से 25 टन आम का उत्पादन मिलता है। बतादें, कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर इससे पूर्व भी बहुत सारे नेताओं एवं संवैधानिक पद पर विराजमान लोगों को जर्दालु आम भेजा जा चुका है। बीते वर्ष इसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राष्ट्रपति को जर्दालु आम उपहार में दिया था। साथ ही, इसको विदेशों में भी नामचीन लोगों को उपहार स्वरुप दिया जाता रहा है।
मिर्जा गालिब से लेकर बॉलीवुड के कई अभिनेता इस 200 साल पुराने दशहरी आम के पेड़ को देखने पहुँचे हैं

मिर्जा गालिब से लेकर बॉलीवुड के कई अभिनेता इस 200 साल पुराने दशहरी आम के पेड़ को देखने पहुँचे हैं

पुरे विश्व में स्वयं की भीनी-सोंधी खुशबू एवं मीठे स्वाद की वजह से प्रसिद्ध दशहरी आम की खोज 200 वर्ष पूर्व ही हुई थी। लखनऊ के समीप एक गांव में आज भी दशहरी आम का प्रथम पेड़ उपस्थित है साथ बेहद प्रसिद्ध भी है। आम तौर पर लोग गर्मी के मौसम की वजह से काफी परेशान ही रहते हैं। परंतु, एक ऐसा फल है, जिससे गर्मियों का मजा दोगुना कर देती हैं। उस फल का नाम है आम जिसको सभी फलों का राजा बोला जाता है। जी हां, भारत में आम की बागवानी बड़े स्तर पर की जाती है। भारत की मिट्टी में आम की हजारों किस्मों के फल स्वाद लेने को उपस्थित हैं। लेकिन यदि हम देसी आम की बात करें तो इसकी तरह स्वादिष्ट फल पूरे विश्व में कहीं नहीं मिल पाएगा। सभी लोगों की जुबान पर दशहरी आम का खूब चस्का चढ़ा हुआ है। यूपी में ही दशहरी आमों की पैदावार होती है। बतादें कि केवल यहीं नहीं अन्य देशों में भी इस किस्म के आमों का निर्यात किया जाता है। साथ ही, आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि दशहरी आम का नामकरण एक गांव के नाम के आधार पर हुआ था।

इस आम का नाम दशहरी आम क्यों रखा गया था

यूपी के लखनऊ के समीप काकोरी में यह दशहरी गांव मौजूद है। ऐसा कहा जाता है, कि दशहरी गांव के 200 वर्ष प्राचीन इस वृक्ष से सर्वप्रथम दशहरी आम प्राप्त हुआ था। ग्रामीणों से मिलकर इस आम का नामकरण गांव दशहरी के नाम पर हुआ था। वर्तमान में 200 वर्ष उपरांत भी ना तो इस दशहरी आम के स्वाद में कोई बदलाव आया है और ना ही वो पेड़, जिससे विश्व का प्रथम दशहरी आम प्राप्त हुआ था। ये भी पढ़े: नीलम आम की विशेषताएं (Neelam Mango information in Hindi)

इस पेड़ के आम आखिर क्यों नहीं बेचे जाते

फिलहाल, दशहरी आम लखनऊ की शान और पहचान बन चुका है। देश के साथ-साथ विदेशी लोग भी इसका स्वाद चखते हैं। हर एक वृक्ष द्वारा काफी टन फलों की पैदावार हांसिल होती है। परंतु, विश्व का पहला दशहरी आम देने वाला पेड़ अपने आप में भिन्न है। वर्तमान में 200 वर्ष उपरांत भी यह वृक्ष भली-भांति अपनी जगह पर स्थिर है। आम के सीजन की दस्तक आते ही इस बुजुर्ग वृक्ष फलों के गुच्छे लद जाते हैं। परंतु, तेवर ही कुछ हटकर है, कि इस वृक्ष का एक भी फल विक्रय नहीं किया जाता है। मीडिया खबरों के मुताबिक, दशहरी गांव में इस आम के पेड़ को नवाब मोहम्मद अंसार अली ने रोपा था और आज भी उन्हीं के परिवारीजन इस पेड़ पर स्वामित्व का हक रखते हैं। इसी परिवार को पेड़ के सारे आम भेज दिए जाते हैं।

दशहरी आम कैसे पहुँचा मलीहाबाद

दशहरी गांव के लोगों का कहना है, कि बहुत वर्ष पूर्व इस दशहरी आम की टहनी को ग्रामीणों से छिपाकर मलीहाबाद ले जाया गया। जब से ही दशहरी आम मलीहाबादी आम के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। ग्रामीणों की श्रद्धा को देखकर आप भी दंग रह जाएंगे। वह इसको एक चमत्कारी वृक्ष मानते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, कुछ वर्ष पूर्व यह वृक्ष पूर्णतयः सूख गया था। समस्त पत्तियां पूरी तरह झड़ गई थीं। परंतु, वर्तमान में सीजन आते ही 200 साल पुराना यह वृक्ष आम से लद जाता है।

मिर्जा गालिब भी इस दशहरी आम के मुरीद रहे हैं

जानकारी के लिए बतादें, कि दशहरी गांव फिलहाल मलीहाबाद क्षेत्र के अंतर्गत आता है। मलीहाबाद के लोगों का कहना है, कि कभी मिर्जा गालिब भी कोलकाता से दिल्ली की यात्रा किया करते थे। तब मलीहाबादी आम का स्वाद अवश्य चखा करते थे। वर्तमान में भी बहुत से सेलेब्रिटी दशहरी आम को बेहद पसंद करते हैं। दशहरी गांव के लोगों का कहना है, कि भारतीय फिल्म जगत के बहुत से अभिनेता इस वृक्ष को देखने गांव आ चुके हैं। दूसरे गांव से भी लोग इस वृक्ष को देखने पहुँचते हैं। इसकी छांव के नीचे बैठकर ठंडी हवा का आंनद लेते हैं। सिर्फ इतना ही नही लोग इस पेड़ की यादों को तस्वीरों में कैद करके ले जाते हैं।
आम उत्पादक किसान इस वैज्ञानिक तरीके से आम की तुड़ाई करने पर हानि से बच सकते हैं

आम उत्पादक किसान इस वैज्ञानिक तरीके से आम की तुड़ाई करने पर हानि से बच सकते हैं

आम की तुड़ाई के दौरान फलों को काफी नुकसान पहुँचता है। इसलिए हमें विशेष सावधानी का ध्यान रखना चाहिए। इसी कड़ी में फल वैज्ञानिक डॉक्टर एसके सिंह के मुताबिक आम को 8 से 10 सेमी की लंबी डंठल सहित ही तोड़ें। यदि आप चाहें तो सिकेटियर मशीन की सहायता से भी आम की तोड़ाई की जा सकती है। भारत के विभिन्न हिस्सों में फिलहाल आम पकने लगे हैं। साथ ही, आम की कुछ ऐसी भी किस्में हैं, जो आगामी कुछ दिनों में पकनी चालू हो जाऐंगी। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को आम तोड़ने के दौरान विशेष सावधान रहने की आवश्यकता है। आम की व्यावसायिक खेती करने वाले किसान हों या शौकिया तौर पर आम उगाने वाले किसान। समस्त किसानों को आम की तुड़ाई करने के लिए आधुनिक तरीके का उपयोग करना चाहिए। तभी आम की गुणवत्ता बरकरार बनी रहेगी। यदि आम की गुणवत्ता अच्छी रहेगी तो बाजार में इसका भाव भी अच्छा मिल पाएगा। अब ऐसे में हम इस लेख में किसान भाईयों को आम तोड़ने की सही विधि के बारे में जानकारी देने वाले हैं। इससे आम उत्पादक किसान नुकसान उठाने से बच सकते हैं।

तुड़ाई से पहले आम से लदे पेड़ों के ऊपर इस घोल का छिड़काव करें

भारत के जाने माने फल वैज्ञानिक डॉक्टर एसके सिंह ने बताया है, कि पेड़ से आम की तुड़ाई करने से लगभग तीन सप्ताह पूर्व थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्ल्यू पी@1 ग्राम को एक लीटर मिलाकर घोल तैयार कर लें और उस घोल का आम से लदे पेड़ों के ऊपर छिड़काव कर दें। इससे फल की तुड़ाई के उपरांत होने वाली हानि से काफी हद तक बचा जा सकता है। साथ ही, आम की तुड़ाई सदैव सुबह और शाम के समय ही करें। इससे आम को हानि पहुंचने की आशंका काफी कम रहती है।

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आम की तुड़ाई किस प्रकार से की जाए

डॉक्टर एसके सिंह के मुताबिक, आम को 8 से 10 सेमी की लंबी डंठल के साथ ही तोड़ें। यदि आप चाहें तो सिकेटियर मशीन की सहायता से भी आम की तोड़ाई की जा सकती है। इससे आम की बर्बादी काफी ज्यादा कम होती है। उनका कहना है, कि आम की तुड़ाई के दौरान फल का संपर्क प्रत्यक्ष रूप से मृदा से नहीं होना चाहिए। यदि आम की तुड़ाई के दौरान आम पेड़ से जमीन पर गिर कर प्रभावित हो गए, तो वह सड़ जाएंगे। डॉक्टर सिंह के अनुसार, घरों में उपयोग करने से पूर्व फलों को जरूर धो लेना चाहिए।