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Modern Farming

जिस स्ट्रोबेरी के है सब दीवाने, उसे उगाकर किस्मत चमकालें

जिस स्ट्रोबेरी के है सब दीवाने, उसे उगाकर किस्मत चमकालें

कन्वेंशनल खेती के माध्यम से हो रही आमदनी में पिछले दस वर्षों में काफी गिरावट देखी गई है, क्योंकि लगातार खराब मौसम और मार्केट में सप्लाई बढ़ने की वजह से आमदनी भी कम प्राप्त हो रही है। जिन किसानों के पास अधिक जमीन है, वह तो फिर भी पारंपरिक खेती के माध्यम से जैसे-तैसे गुजारा कर लेते हैं । परंतु, जिनके पास कम जमीन होती है, उस तरह के किसान अब धीरे-धीरे फलों और सब्जियों की तरफ रुख करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

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इन्हीं फलों की श्रेणियों में एक फल है - स्ट्रॉबेरी (Strawberry)

पिछले कुछ समय से भारतीय लोगों की प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी होने की वजह से, अब लोग महंगे फल एवं सब्जियां खरीदने में भी रुचि दिखा रहे हैं।

स्ट्रॉबेरी भी भारत की एक महत्वपूर्ण फल वाली फसल है

यह भारत के कुछ राज्यों जैसे कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, दिल्ली और राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में उगाई जाती है।

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स्ट्रॉबेरी को उगाने से आप केवल आर्थिक रूप से ही संपन्न नहीं होंगे, बल्कि साथ की इस फसल के स्वास्थ्यगत फायदे भी बहुत अधिक होते हैं। चमकीले लाल रंग की दिखाई देने वाली यह स्ट्रॉबेरी विटामिन सी और आयरन की कमी को पूरा करती है। इसके अलावा इसका यूज स्ट्रॉबेरी फ्लेवर वाली आइसक्रीम बनाने में भी किया जाता है।

स्ट्रॉबेरी की खेती ऐसे करें (Strawberry farming information in hindi)

स्ट्रॉबेरी की फसल उगाने के लिए आपको अक्टूबर के महीने को चुनना चाहिए, क्योंकि इस समय भारत में मानसून जैसी कोई हालत नहीं रहती है।

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 भारत में मुख्यतया इसके उत्पादन के लिए हाइड्रोपोनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में हरितगृह बनाने पड़ते हैं जिससे कि, जिस जगह पर फसल को उगाया जा रहा है वहां के तापमान को फसल के उत्पादन के अनुकूल बनाया जा सके। स्ट्रॉबेरी फसल को उगाने से पहले जमीन की अच्छी तरीके से जुताई या पलॉगिंग (ploughing) की जाती है, इसके लिए कल्टीवेटर (cultivator) का इस्तेमाल किया जा सकता है। 

 स्ट्रॉबेरी की फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि, इसे समतल जगह के अलावा पहाड़ी ढलान और ऊंची उठी हुई जमीन पर भी लगाया जा सकता है। पिछले कुछ सालों में ऐसे ही कई युवाओं ने मौसम विभाग के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी और उद्यान विभाग के द्वारा दी गई पौध का इस्तेमाल कर, एक से डेढ़ एकड़ की जमीन में भी इस फसल की खेती की शुरुआत की है और उन्हें केवल दो से तीन लाख रुपए की लागत के बाद दस लाख रुपए से भी ज्यादा की बचत हुई है। स्ट्रॉबेरी फसल को उगाने के लिए मुख्यतया आपको नर्सरी से तैयार किए हुए पौधों को लगाना पड़ता है, इसके बाद उसमें गोबर और ऑर्गेनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है।

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आपको ध्यान रखना चाहिए कि स्ट्रॉबेरी को ज्यादा पानी मिलने पर इस में कीड़े लगने की संभावनाएं होती है, इसीलिए इसमें ड्रिप सिंचाई विधि का इस्तेमाल किया जाता है और पौधों के नीचे पॉलिथीन बिछाई जाती है। इसके बाद जो फ़सल पूरी तरह बनकर तैयार हो जाती है, तब आप एक पौधे से 5 किलो तक स्ट्रॉबेरी प्राप्त कर सकते हैं। यदि एक सामान्य अनुमान की बात करें, तो भारत के किसान एक एकड़ जमीन में लगभग 8 टन से भी ज्यादा की स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर सकते हैं। मध्य प्रदेश के सातारा और पश्चिमी बंगाल के कुछ जिलों ने इससे भी ज्यादा ज्यादा यील्ड पैदा करके यह साबित कर दिया है, कि सही मैनेजमेंट और उचित आपूर्ति में डाले गए ऑर्गेनिक खाद की वजह से इस फ़सल से बहुत ही अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

वर्तमान में भारत के अलग-अलग राज्यों में इनकी बाजार कीमत 400 रुपये से लेकर 700 रुपए प्रति किलो तक है।

अक्टूबर में इस फसल को उगाने के बाद इसकी कटाई लगभग मार्च-अप्रैल में की जाती है। इनकी कटाई का सबसे उपयुक्त समय सुबह का माना जाता है और एक सप्ताह में लगभग तीन से चार बार इन्हें हार्वेस्ट किया जा सकता है, इसके बाद इन्हें छोटे-छोटे बास्केट में पैक कर दिया जाता है। स्ट्रॉबेरी को खेत में लगाने के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना होता है, सबसे पहले यह है कि इसकी दो पौध के बीच में लगभग 25 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए, इस आंकड़े के आधार पर आप एक एकड़ जमीन में करीब बीस हजार पौधे लगा सकते हैं। 

 पौध के बीच में अंतराल सही होने की वजह से बड़े होने पर इनकी ग्रोथ अच्छी दिखाई देती है, हालांकि आपको ध्यान रखना होगा कि स्ट्रॉबेरी की फसल को कोल्ड स्टोरेज में भी स्टोर करना पड़ सकता है, इसके लिए फ़सल से तैयार हुए फलों को 27 डिग्री से लेकर 30 डिग्री के तापमान में स्टोर किया जाता है। हमें उम्मीद है कि Merikheti.com के द्वारा दी गई स्ट्रॉबेरी फसल की यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और यदि आपका खेत छोटा भी है, तो आप उसमें कृषि विभाग के मार्गदर्शन में दी गई जानकारी का सही फायदा उठाकर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

पॉली हाउस में खीरे का उत्पादन करने पर बारिश, आंधी, लू, धूप और सर्दी का प्रभाव नहीं होता है। आप किसी भी मौसम में पॉली हाउस के भीतर किसी भी फसल का उत्पादन कर सकते हैं। खीरा खाना प्रत्येक व्यक्ति को अच्छा लगता है। साथ ही, खीरा में आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी6, विटामिन सी,विटामिन डी और पौटेशियम भरपूर मात्रा में विघमान रहता है। नियमित तौर पर खीरे का सेवन करने पर शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है। साथ ही, खीरे में बहुत ज्यादा फाइबर भी पाया जाता है। खीरे से कब्ज की परेशानी से छुटकारा मिलता है। यही कारण है, कि बाजार में खीरे की मांग वर्षों बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में मांग को पूर्ण करने के लिए किसान पॉली हाउस के भीतर खीरे का उत्पादन कर रहे हैं। इससे किसानों को अच्छी-खासी आमदनी हो रही है।

पॉली हाउस फसल को विभिन्न आपदाओं से बचाता है

वास्तव में पॉली हाउस में खीरे की खेती करने पर ताप, धूप, बारिश, आंधी, लू और ठंड का प्रभाव नहीं पड़ता है। आप किसी भी मौसम में पॉली हाउस के भीतर किसी भी फसल की खेती आसानी से कर सकते हैं। इससे उनका उत्पादन भी बढ़ जाता है और किसान भाइयों को मोटा मुनाफा प्राप्त होता है। इसी कड़ी में एक किसान हैं दशरथ सिंह, जिन्होंने पॉली हाउस तकनीक के जरिए खेती शुरू कर लोगों के सामने नजीर पेश की है। दशरथ सिंह अलवर जनपद के इंदरगढ़ के निवासी हैं। वह लंबे वक्त से पॉली हाउस के भीतर खीरे का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको काफी अच्छी आमदनी भी अर्जित हो रही है। ये भी देखें: नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

किसान खीरे की कितनी उपज हांसिल करता है

दशरथ सिंह पूर्व में पारंपरिक विधि से खेती किया करते थे। उनको पॉली हाउस के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं थी। एक दिन उनको उद्यान विभाग के संपर्क में आकर उनको पॉली हाउस तकनीक से खेती करने की जानकारी प्राप्त हुई है। इसके पश्चात उन्होंने 4000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में पॉली हाउस का निर्माण करवाया और उसके अंदर खीरे का उत्पादन चालू कर दिया।

बहुत सारे किसान पॉली हाउस तकनीक से खेती करते हैं

किसान दशरथ सिंह का कहना है, कि पॉली हाउस की स्थापना करने पर उनको 15 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ा। हालांकि, सरकार की ओर से उनको 23 लाख 50 हजार का अनुदान भी मिला था। उनको देख कर फिलहाल जनपद में बहुत सारे किसान भाइयों ने पॉली हाउस के भीतर खेती शुरू कर दी है।

लखन यादव ने पॉली हाउस तकनीक को लेकर क्या कहा

साथ ही, दशरथ सिंह के बेटे लखन यादव का कहना है, कि हम पॉली हाउस के भीतर केवल खीरे की ही खेती किया करते हैं। विशेष बात यह है, कि वह पॉली हाउस के भीतर सुपर ग्लो-बीज का उपयोग करते हैं, इससे फसल की उन्नति एवं प्रगति भी शीघ्र होती है। उनका यह भी कहना है, कि उन्हें एक बार की फसल में 60 से 70 टन खीरे की उपज अर्जित हुई थी। वहीं, एक फसल तैयार होने में करीब 4 से 5 माह का समय लगता है। बतादें, कि 60 से 70 टन खीरों का विक्रय कर वे 12 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। इसमें से 6 लाख तक का मुनाफा होता है।
सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि युवा किसान मुकेश का कहना है, कि नेट हाउस निर्मित करने के लिए सरकार की ओर से अनुदानित धनराशि भी मिलती है। शुरुआत में नेट हाउस स्थापना के लिए उसे 65% की सब्सिडी मिली थी। हालांकि, वर्तमान में हरियाणा सरकार ने अनुदान राशि को घटाकर 50% कर दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज भी सरकारी नौकरी के पीछे लोग बिल्कुल पागल हो गए हैं। प्रत्येक माता- पिता की यही चाहत होती है, कि उसकी संतान की सरकारी नौकरी लग जाए, जिससे कि उसकी पूरी जिन्दगी सुरक्षित हो जाए। अब सरकारी नौकरी बेशक निम्न स्तर की ही क्यों न हो। परंतु, आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे, जो कि अच्छी-खासी सरकारी नौकरी को छोड़ अब गांव आकर खेती कर रहा है।

किसान मुकेश कहाँ का रहने वाला है

दरअसल, हम जिस युवा किसान के संबंध में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम मुकेश कुमार है। मुकेश हरियाणा के करनाल जनपद का रहने वाला है। पहले वह हरियाणा बोर्ड में सरकारी नौकरी करता था। नौकरी के दौरान मुकेश को प्रति महीने 45 हजार रुपये सैलरी मिलती थी। परंतु, इस सरकारी कार्य में उसका मन नहीं लगा, तो ऐसे में उसने इस नौकरी को लात मार दी। आज वह अपनी पुश्तैनी भूमि पर नेट हाउस विधि से खेती कर रहा है, जिससे उसको काफी अच्छी कमाई हो रही है।

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किसान मुकेश लोगों को रोजगार मुहैय्या करा रहा है

किसान मुकेश अन्य बहुत से किसानो के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। किसान मुकेश का कहना है, कि उसने अपनी भूमि पर चार नेट हॉउस तैयार कर रखे हैं। इनके अंदर किसान मुकेश खीरे की खेती करते हैं। किसान मुकेश के मुताबिक खीरे की मांग गर्मियों में काफी ज्यादा बढ़ जाती है। अब ऐसे में किसान मुकेश लगभग 2 वर्षों से खीरे की खेती कर रहा। बतादें कि इससे किसान मुकेश को काफी अच्छी कमाई हो रही है। यही वजह है, कि वह आहिस्ते-आहिस्ते खीरे की खेती का रकबा और ज्यादा बढ़ाते गए हैं। इसके साथ साथ मुकेश ने अपने आसपास के बहुत से लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है।

खीरे की वर्षभर खेती की जा सकती है

मुकेश का कहना है, कि एक नेट हाउस निर्मित करने के लिए ढ़ाई से तीन लाख रुपये की लागत आती है। परंतु, इसके अंदर खेती करने पर आमदनी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। युवा किसान का कहना है, कि खीरे की बहुत सारी किस्में हैं, जिसकी नेट हाउस के अंदर सालों भर खेती की जा सकती है।

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ड्रिप विधि से सिंचाई करने पर जल की काफी कम बर्बादी होती है

किसान मुकेश का कहना है, कि उनको खीरे की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह लगी है कि इसकी खेती में जल की काफी कम खपत होती है। दरअसल, नेट हॉउस में ड्रिप विधि के माध्यम से फसलों की सिंचाई की जाती है। ड्रिप विधि से सिंचाई करने से जल की बर्बादी बेहद कम होती है। इसके साथ ही पौधों की जड़ो तक पानी पहुँचता है। किसान मुकेश अपने खेत में पैदा किए गए खीरे की सप्लाई दिल्ली एवं गुरुग्राम समेत बहुत सारे शहरों में करता है। वर्तमान में वह 15 रूपए किलो के हिसाब से खीरे बेच रहा है।