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जायद में मूंग की इन किस्मों का उत्पादन कर किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा

जायद में मूंग की इन किस्मों का उत्पादन कर किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा

मूंग की खेती अन्य दलहनी फसलों की तुलना में काफी सरल है। मूंग की खेती में कम खाद और उर्वरकों के उपयोग से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। मूंग की खेती में बहुत कम लागत आती है, किसान मूंग की उन्नत किस्मों का उत्पादन कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते है। इस दाल में बहुत से पोषक तत्व होते है जो स्वास्थ के लिए बेहद लाभकारी होते है। 

मूंग की फसल की कीमत बाजार में अच्छी खासी है, जिससे की किसानों को अच्छा मुनाफा होगा। इस लेख में हम आपको मूंग की कुछ ऐसी उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी देंगे जिनकी खेती करके आप अच्छा मुनाफा कमा सकते है। 

मूंग की अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्में 

पूसा विशाल किस्म 

मूंग की यह किस्म बसंत ऋतू में 60 -75 दिन में और गर्मियों के माह में यह फसल 60 -65 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मूंग की यह किस्म IARI द्वारा विकसित की गई है। यह मूंग पीला मोजक वायरस के प्रति प्रतिरोध है। यह मूंग गहरे रंग की होती है, जो की चमकदार भी होती है। यह मूंग ज्यादातर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में ज्यादा मात्रा में उत्पादित की जाती है। पकने के बाद यह मूंग प्रति हेक्टेयर में 12 -13 क्विंटल बैठती है। 

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पूसा रत्न किस्म 

पूसा रत्न किस्म की मूंग 65 -70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। मूंग की यह किस्म IARI द्वारा विकसित की गई है। पूसा रत्न मूंग की खेती में लगने वाले पीले मोजक के प्रति सहनशील होती है। मूंग की इस किस्म पंजाब और अन्य दिल्ली एनसीआर में आने वाले क्षेत्रो में सुगम और सरल तरीके से उगाई जा सकती है। 

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मूंग की यह किस्म मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। इस किस्म के पौधे लगभग 60 -65 दिन के अंदर कटाई के लिए तैयार हो जाते है। इसकी फलिया पकने के बाद हल्के भूरे रंग की दिखाई पड़ती है। साथ ही इस किस्म में पीली चित्ती वाला रोग भी बहुत कम देखने को मिलता है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 12 -15 प्रति क्विंटल होती है। 

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मूंग की यह किस्म बनारस हिन्दू विश्वविधालय द्वारा तैयार की गई है, इस किस्म के पौधे पर बहुत ही कम मात्रा में फलिया पाई जाती है। मूंग की यह किस्म लगभग 65 -70 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती है। साथ ही मूंग की फसल में लगने वाले पीले मोजक रोग का भी इस पर कम प्रभाव पड़ता है। 

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मूंग की यह किस्म जायद के मौसम में अच्छे से उगाई जा सकती है। इस किस्म की खेती खरीफ के मौसम में भी अच्छे से की जा सकती है। यह किस्म लगभग 70 -75 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। साथ ही यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 8 -10 क्विंटल होती है। 

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मूंग की इस किस्म को जायद के मौसम के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे बुवाई के दो महीने बाद पककर तैयार हो जाते है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर में 10 क्विंटल के आस पास हो जाती है। 

पन्त मूँग -1 

मूंग की इस किस्म को जायद और खरीफ दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है। मूंग की इस किस्म पर बहुत ही कम मात्रा में जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव देखने को मिलता है। यह किस्म लगभग 70 -75 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। पन्त मूंग -1 का औसतन उत्पादन 10 -12 क्विंटल देखने को मिलता है। 

खुशखबरी: इस राज्य में मूंग की खेती को बढ़ावा देने लिए 50% प्रतिशत अनुदान

खुशखबरी: इस राज्य में मूंग की खेती को बढ़ावा देने लिए 50% प्रतिशत अनुदान

किसान भाई वर्तमान में अपनी रबी फसलों की कटाई और प्रबंधन में जुटे हुए है। अप्रैल महीने के अंत तक तकरीबन सभी फसलों की कटाई पूर्ण हो जाएगी। वहीं, जायद फसलों का सीजन भी अब शुरू हो चुका है। 

ऐसे में किसान कटाई संपन्न होने के बाद जायद फसलों में से मूंग की खेती कर सकते हैं। अगर आप भी मूंग की खेती करते हैं या इस बार करने की सोच रहे हैं तो ये खबर आप ही के लिए है। 

दरअसल, मूंग की खेती के लिए राज्य सरकार 50% प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। आप भी इस अनुदान का फायदा उठाकर शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। 

मूंग के बीजों पर कितना अनुदान मिलेगा

मूंग की खेती करने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर यह है, कि योगी सरकार की तरफ से इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिड़ी प्रदान की जा रही है। अब ऐसे में उत्तर प्रदेश के किसान इसका लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 

यूपी सरकार मूंग के बीजों पर 50% प्रतिशत सब्सिडी प्रदान कर रही है। अब जैसे मान लीजिए मूंग के एक किलो बीज का मूल्य 80 रुपए है, तो किसान को 40 रुपए में मूंग का बीज उपलब्ध कराया जाएगा। 

इस प्रकार किसान मूंग के प्रमाणिक उन्नत बीज आधी कीमत पर भी हांसिल कर सकते हैं। उत्तर प्रदेश के किसानों को अनुदान पर मूंग के बीज पाने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा।

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यह अनुदान किसानों को दलहन योजना के अंतर्गत प्रदान किया जाएगा। साथ ही, अनुदान की धनराशि डीबीटी (DBT) के जरिए किसानों के खाते में हस्तांतरित की जाएगी। इसके लिए किसान को बीज खरीदने से पहले विभाग की वेबसाइट पर अपना पंजीकरण कराना होगा। 

किसान भाई योजना का लाभ उठाने के लिए इस प्रकार आवेदन करें 

अगर आप भी उत्तर प्रदेश के किसान हैं, तो आप मूंग की खेती के लिए 50% प्रतिशत अनुदान (Subsidy) पर मूंग के बीजों की खरीदकर लाभांवित हो सकते हैं। 

इसके लिए आपको सबसे पहले राजकीय कृषि विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पोर्टल agriculture.up.gov.in पर अपना पंजीकरण करना होगा। साथ ही, किसानों को यहां से ही बीज की खरीदारी करनी होगी, जो किसान पहले से पंजीकृत हैं उनको पुनः पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं है।

किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

किसान भाई खरीफ सीजन में इस तरह करें मूंग की खेती

मूँग एक प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह से यह एक उत्तम आय का माध्यम है। साथ ही, मूँग की फसल को पोषण के मामले में काफी ज्यादा अच्छा माना जाता है। 

भारत के अंदर खेती करने के लिये तीन फसल चक्र अपनाये जाते हैं, जिसमें रबी की फसल, खरीफ की फसल और जायद की फसल शम्मिलित हैं। किसान भाइयों ने रबी फसल की कटाई कर ली है एवं खरीफ फसल के लिये खेतों की तैयारी का काम चल रहा है। 

जो भी किसान भाई खरीफ सीजन में अच्छा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, वे अपने खेतों में पलेवा, बीजों का चुनाव, सिंचाई की व्यस्था और खेतों में बाड़बंदी की तैयारी कर लें। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निर्देशानुसार यह समय मूंग की खेती करने के लिये काफी ज्यादा अनुकूल है। मूंग एक प्रमुख दलहनी फसल है, जिसकी खेती कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में की जाती है। 

प्रमुख दलहनी फसल होने की वजह मूंग की फसल एक बेहतरीन कमाई का जरिया तो है ही, साथ में पोषण के मामले में मूंग की फसल को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।

मूंग की फसल हेतु खेत की तैयारी

अगर किसान इस खरीफ सीजन में मूंग की फसल लगाना चाह रहे हैं, तो वो खेतों में 2-3 बार बारिश होने पर गहरी जुताई का कार्य कर लें। इससे मृदा में छिपे कीड़े निकल जाते हैं और खरपतवार भी खत्म हो जाते हैं। 

गहरी जुताई से फसल की पैदावार बढ़ती है और स्वस्थ फसल लेने में भी सहायता मिलती है। किसान ध्यान रखें, कि गहरी जुताई करने के पश्चात खेत में पाटा चलाकर उसे एकसार कर लें। 

इसके पश्चात खेत में गोबर की खाद और आवश्यक पोषक तत्व भी मिला लें, जिससे बेहतरीन पैदावार प्राप्त हो सके।

मूंग की फसल हेतु बीजों का चयन

जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के प्रथम सप्ताह तक किसान खरीफ मूंग की बुवाई कर सकते हैं। बुवाई के लिये किसानों को बेहतरीन गुणवत्ता वाले उपयुक्त बीजों का ही चयन करना चाहिये, इससे मूंग की फसल में कीड़े एवं बीमारियां लगने की संभावना काफी कम रहती है। 

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मूंग की फसल की बुवाई

खेत में मूंग के बीज की बुवाई करने से पहले उनका बीजशोधन अवश्य करना चाहिए। बतादें कि इससे स्वस्थ और रोगमुक्त फसल लेने में विशेष सहायता मिलती है। 

मूंग के बीजों को कतारों में ही बोयें, जिससे निराई-गुड़ाई करने में काफी सुगमता रहे और खरपतवार भी आसानी से निकाले जा सकें।

मूंग की फसल में सिंचाई की व्यवस्था

हालांकि, मूंग की फसल के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 2 से 3 बरसातों में ही फसल को अच्छी खासी नमी मिल जाती है। परंतु, फिर भी फलियां बनने के दौरान खेतों में हल्की सिंचाई कर देनी चहिये। 

शाम के वक्त हल्की सिंचाई करने पर मिट्टी को नमी मिल जाती है। इस बात का खास ख्याल रखें कि फसल पकने के 15 दिन पहले ही सिंचाई का काम बंद कर दें।

मूंग की फसल में कीटनाशक और खरपतवार नियंत्रण

दूसरी फसलों की तरफ मूंग की फसल में भी कीट-रोग लगने की संभावना बनी रहती है। इस वजह से समय-समय पर निराई-गुड़ाई का भी कार्य करते रहें। खेतों में उगे खरपतवारों को उखाड़कर जमीन के अंदर दबा दें। साथ ही, रोगों से भी फसल की निगरानी करते रहें। 

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मूंग की फसल की कटाई-गहाई

खरीफ मूंग की फसल कम समय में पकने वाली फसल है। यह सामान्य तौर पर 65-70 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है। जून-जुलाई के मध्य बोई गई फसल सिंतबर-अक्टूबर के मध्य पककर तैयार हो जाती है। 

मूंग की फलियां हरे रंग से भूरे रंग की होने लग जाऐं तो कटाई-गहाई का कार्य वक्त रहते कर लेना चाहिये।

अप्रैल माह में करें मूंग की खेती बेहतर उपज के साथ होगा खूब मुनाफा

अप्रैल माह में करें मूंग की खेती बेहतर उपज के साथ होगा खूब मुनाफा

रबी फसलों की कटाई अब लगभग पूरी हो चुकी है। इसके साथ ही किसान अब अगली फसलों की तैयारी में जुट गए हैं। इन दिनों देश के कई हिस्सों में किसान मूंग की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। 

हालांकि, कई बार किसानों को ये शिकायत रहती है की उन्हें मनचाही पैदावार नहीं मिली। जिस वजह से उन्हें अच्छा मुनाफा नहीं हो पाता है। 

आज की इस खबर में हम आपको कृषि सलाहकारों द्वारा बताए गए कुछ खास तरीके बताएंगे, जिससे आपको अच्छी पैदावार मिल सकती है। 

खेत को तैयार करना बेहद जरूरी

किसी भी चीज की खेती करने से पहले खेत को तैयार करना बेहद जरूरी है। कृषि सलाहकारों की मानें तो मूंग की बेहतर पैदावार लेने के लिए सबसे पहले खेतों की गहरी जुताई कर मिट्टी को पलट देना चाहिए। 

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फिर दो बार कल्टीवेटर से खेत की मिट्टी को ढीला करें। फसलों को दीमक से बचाने के लिए अंतिम जुताई से पहले 1.5% क्विनाफॉस पाउडर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैलाएं, फिर जुताई करके मिट्टी में मिला दें। 

मूंग के सही बीज का चयन करना बेहद जरूरी 

मूंग की खेती में सही बीजों का चुनाव काफी महत्वपूर्ण है। कृषि सलाहकारों की मानें तो किसानों को गर्मी के महीनों के दौरान संकर बीजों का चयन करना चाहिए। 

उत्पादकता के अलावा, संकर बीजों में उच्च तापमान सहनशीलता भी होती है। अगर आप सही बीजों का चयन करते हैं तो आपकी पैदावार भी अच्छी होगी, जिससे आप अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे। 

किसान भाई उचित बीजों का उपचार करें 

ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई में 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ मूंग लेना चाहिए, जिसे 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज और भूमि जन्य बीमारियों से फसल सुरक्षित रहती है। 

इसके अलावा आप इफको की सागरिका, नैनो डीएपी से भी बीज उपचारित करा सकते हैं। इसके अलावा 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को किसी पात्र में लेकर 1 लीटर पानी में डाल दें। साथ ही 250 ग्राम गुड़ के साथ मिश्रित कर गर्म कर लें, जिसके ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छांव में सुखा लें और बुवाई कर दें। 

किसान भाई सही उर्वरकों का प्रयोग करें 

अगर संभव हो तो पहले मिट्टी का परीक्षण करें, ताकि आप आवश्यक उर्वरक और खाद डाल सकें। वैसे तो रबी के मौसम में मिट्टी में डाला गया उर्वरक कुछ हद तक मूंग की फसल के लिए कारगर होता है। 

लेकिन, इसके बावजूद खेतों में कम से कम 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट जरूर डालें। इससे भविष्य की फसलों को भी फायदा होगा। 

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इसके अलावा, मूंग की खेती के दौरान 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटेशियम, 25 किलोग्राम सल्फर और 5 किलोग्राम जस्ता का भी इस्तेमाल करें। 

मूंग की सिंचाई का सही समय

दरअसल, ग्रीष्मकालीन मूंग को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। मूंग की फसल 25 से 40 डिग्री तक तापमान तक सहन कर सकती है। 

हालांकि, यदि फूल आने की अवधि के दौरान सूखे की स्थिति में इसकी सिंचाई की जाए, तो उपज में काफी वृद्धि होगी। 

मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (pests and diseases)

मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (pests and diseases)

मूंगफली में रोग बहुत लगते हैं। इनमें प्रमुख रूप से बीज से पैदा होेने वाले रोगों की संख्या ज्यादा है। फसल को रोग मुक्त रखने के लिए कुछ चीजों का ध्यान रखना आवश्यक है। 

मई—जून की गर्मी में खेत की दो तीन गहरी जुताई करेंं। हर जुताई के मध्य एक हफ्ते का अंतर रहे। फसल लगाने से पूर्व खेत में 50 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राईकोडर्मा मिलाकर एक हफ्ते छांव में रखें। 

बाद में इसे जुताई से पूर्व खेत में बुरक दें। बीज का उपचार किसी भी प्रभावी फफूंदनाशक कार्बन्डाजिम, बाबस्टीन आदि की उचित मात्रा से करें। 

खेत में सिंचाई का पानी कहीं जमा न हो इस तरह का समतलीकरण करें। इन उपायों से रोग की 70 प्रतिशत संभावना नहीं रहती। 

बीज का सड़न रोग (seed rot disease)

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कुछ रोग उत्पन्न करने वाले कवक बीज उगने लगता है उस समय इस पर आक्रमण करते हैं। इससे बीज पत्रों, बीज पत्राधरों एवं तनों पर गोल हल्के भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। 

बाद में ये धब्बे मुलायम हो जाते हैं तथा पौधे सड़ने लगते हैं और फिर सड़कर गिर जाते हैं। बचाव हेतु प्रमाणित एवं  2.5 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचार करके बोएं। 

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रोजेट रोग

रोजेट (गुच्छरोग)

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विषाणुजनित यह रोग पौधों में बोनापन लाता है। उनकी बढ़वार रुक जाती है। रोग को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित पौधों को जैसे ही खेत में दिखाई दें, उखाड़कर फेंक देना चाहिए। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 3 लीटर पानी में घोल कर छिड़केंं। 

टिक्का रोग

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यह गंभीर रोग है। आरम्भ में पौधे के नीचे वाली पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे रंग के छोटे-छोटे गोलाकार धब्बे दिखाई पड़ते हैं इसके प्रभाव से खेत में केवल तने ही शेष रह जाते हैं।  

रोकथाम के लिए डाइथेन एम-45 को 2 किलोग्राम एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से दस दिनों के अन्तर पर दो-तीन छिड़काव करने चाहिए। 

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कीट नियंत्रण

रोमिन इल्ली पत्तियों को खाकर पौधों को अंगविहीन करती है। पूर्ण विकसित इल्लियों पर घने भूरे बाल होते हैं। इसकी रोकथाम के लिए क्विनलफास 1 लीटर कीटनाशी दवा को 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 

मूंगफली का माहू कीट सामान्य रूप से छोटा एवं भूरे रंग का होता है। यह बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होकर पौधों का रस चूसते हैं। साथ ही वाइरस जनित रोग के फैलाने में सहायक भी होती है। 

इसके नियंत्रण के लिए इस रोग को फैलने से रोकने के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर देना चाहिए। 

लीफ माइनर moongfuli

लीफ माइनर के प्रकोप होने पर पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई पड़ने लगते हैं। इसके गिडार पत्तियों में अन्दर ही अन्दर हरे भाग को खाते रहते हैं और पत्तियों पर सफेद धारियॉं सी बन जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए इमिडाक्लोरपिड 1 मि.ली. को 1 लीटर पानी में घोल छिड़काव करें।

सफेद लट

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मूंगफली को बहुत ही क्षति पहुँचाने वाला बहुभोजी कीट है। मादा कीट मई-जून के महीनें में जमीन के अन्दर अण्डे देती है। इनमें से 8-10 दिनों के बाद लट निकल आते हैं।  

क्लोरोपायरिफास से बीजोपचार प्रारंभिक अवस्था में पौधों को सफेद लट से बचाता है। अधिक प्रकोप होने पर खेत में क्लोरोपायरिफास का प्रयोग करें । 

इसकी रोकथाम फोरेट की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हैक्टर खेत में बुवाई से पहले भुरक कर की जा सकती है। सिंचित क्षेत्रों में औसत उपज 20-25 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है। 

लागत 30 हजार प्रति हैक्टेयर खर्चने पर लाभा 40 हजार तक का होता है। यह रेट 30 रुपए प्रति किलोग्राम रहने पर प्राप्त होता है।

मूंगफली की इस किस्म की खेती करने वाले किसानों की बेहतरीन कमाई होगी

मूंगफली की इस किस्म की खेती करने वाले किसानों की बेहतरीन कमाई होगी

मूगंफली की किस्म डी.एच. 330 की खेती कम जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है। मूंगफली की पैदावार मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में की जाती है। इन राज्यों में सूखे के कारण मूंगफली की पैदावार में किसानों के समक्ष काफी चुनौतियां आती हैं। यहां पर कम बारिश होने के कारण मूंगफली की कम पैदावार होती है। साथ ही, किसान भाइयों की कमाई भी कम होती है। ऐसी स्थिति में आज हम मूगंफली की प्रजाति डी.एच. 330 के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं, जिसकी खेती के लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है।

मूंगफली की बुवाई कब की जाती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि
मूंगफली की बुवाई जुलाई के माह में की जाती है। यह बिजाई के 30 से 40 दिन पश्चात अंकुरित होने लगती है। इसमें फूल निर्माण के उपरांत फलियां आने लगती हैं। यदि आपके क्षेत्र में कम बारिश एवं सूखे की संभावना बनी रहती है, तो इसकी उत्पादकता में गिरावट नहीं होगी। इसके लिए 180 से 200 एमएम की वर्षा काफी होती है।

मूंगफली की खेती के लिए मृदा की तैयारी

मृदा की तैयारी करने के लिए खेत की जुताई के पश्चात एक बार इसमें सिंचाई कर दें। बुवाई के उपरांत जब पौधों में फलियां आना शुरू हो जाऐं तो पौधों की जड़ों की चारों तरफ मिट्टी को चढ़ा दें। इससे फली की पैदावार अच्छी तरह से होती है। मृदा की तैयारी करना बेहतर फसल उत्पादकता के लिए काफी अहम होती है। यह भी पढ़ें: मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की इस प्रकार रोकथाम करें

मूंगफली का अच्छा उत्पादन कैसे प्राप्त करें

किसान मूंगफली का उत्पादन बढ़ाने के फसल की बुवाई के समय जैविक खाद का छिड़काव कर सकते हैं। इसके अरिरिक्त इंडोल एसिटिक को 100 लीटर पानी में मिला कर वक्त-वक्त पर फसल पर छिड़काव करते रहें। यह भी पढ़ें: मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की फसल में लगने वाले रोगों से बचाव

मूंगफली की फसल के अंतर्गत कॉलर रॉट रोग, टिक्का रोग एवं दीमक लगने की संभावना काफी अधिक रहती है। इसके लिए कार्बेंडाजिम, मैंकोजेब जैसे फफूंदनाशक एवं मैंगनीज कार्बामेट की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के समयांतराल पर लगभग 4 से 5 बार छिड़काव करना चाहिए। किसान भाइयों को मूंगफली की इस किस्म डी.एच. 330 की बुवाई से बेहतरीन उत्पादन के लिए और किसी भी रोग से जुड़ी जानकारी हेतु कृषि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की सलाह अवश्य लें।
किसान भाई मूंगफली की इस किस्म की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई मूंगफली की इस किस्म की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

मूंगफली की डी.एच. 330 किस्म की खेती के लिए कम जल की जरूरत होती है। साथ ही, इसको तैयार होने में तकरीबन 4 से 5 महीने का वक्त लग जाता है। मूंगफली एक बेहद ही स्वादिष्ट एवं फायदेमंद फसल है।

भारत के तकरीबन प्रत्येक व्यक्ति को मूंगफली काफी पसंद होती है। भारत में मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य गुजरात है। उसके पश्चात महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश आते हैं।

यदि आप किसान भाई भी इसकी खेती कर बेहतरीन कमाई करने का सोच रहे हैं। तो आगे इस लेख में आज हम आपको इसकी खेती के विषय में जानकारी देंगे, जिसे अपनाकर आप केवल 4 माह में ही मूंगफली का बेहतरीन उत्पादन कर मोटी आय अर्जित कर सकते हैं।

मूंगफली की खेती का बेहतरीन तरीका

मूंगफली की उन्नत और शानदार खेती के लिए अच्छे बीज के साथ-साथ आधुनिक तकनीक की भी आवश्यकता होती है। मूंगफली की डी.एच. 330 फसल के लिए खेतों में तीन से चार बार जुताई करने के उपरांत ही बिजाई करनी होती है।

इसके उपरांत मृदा को एकसार करने के पश्चात खेत में आवश्यकता के हिसाब से जैविक खाद, उर्वरक एवं पोषक तत्वों को मिला देना चाहिए। डी.एच. 330 एक ऐसी प्रजाति की मूंगफली है, जिसे अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। 

खेत तैयार करने के उपरांत मूंगफली की बुवाई करनी चाहिए। आपको इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि इसकी बेहतरीन पैदावार के लिए स्वस्थ बीजों का चुनाव करें।

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मूंगफली की खेती में सिंचाई बेहद आवश्यक है

मूंगफली की डी.एच. 330 की फसल को तैयार होने में कम बारिश की आवश्यकता होती है। इस वजह से इसे पानी बचाने वाली फसल के नाम से भी जाना जाता है। 

अगर आपके क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होने की संभावना रहती है, तो आप इस किस्म की खेती बिल्कुल भी ना करें। मूंगफली की फसल में पानी भरने से सड़ने का खतरा काफी बढ़ जाता है और कीड़े लगने का भी खतरा रहता है।

मूंगफली की फसल में जैविक कीटनाशक

डी.एच. 330 मूंगफली की फसल में अत्यधिक खरपतवार निकलने की संभावना बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में आप जैविक खाद के इस्तेमाल से अपनी पैदावार को अच्छा कर सकते हैं। 

मूंगफली की बिजाई के 25 से 30 दिन उपरांत खेतों में निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए। खेत में उत्पादित होने वाली घास को हटा दें। साथ ही, फसल को कीटों एवं रोगों से सुरक्षा के लिए माह में दो से तीन बार कीटनाशक का स्प्रे करते रहें।

मूंग के कीट एवं रोग

मूंग के कीट एवं रोग

मूंग दलहनी फसल है। कीटों का भी दलहनी फसलें खूब भाती हैं। कई तरह के कीट एवं रोग इनमें नुकसान पहुंचाते हैं। इनका समय से उपचार करना भी आ​र्थिक क्षति स्तर को कम करने के लिए आवश्यक है। दलहनी फसलें 60 से 75 सेंटीमीटर बरसात वाले इलाकों में की जाती हैं। जिन इलाकों में सिंचाई के जल की कमी होती वहां दालें ज्यादा लगती हैं। दालों के लिए पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है। यदि बरसात हो जाए तो एक भी पानी की जरूरत नहीं होती। 

मूंग के कीट एवं रोग उपाय

दीमक (Termite)

  Termite 

 दीमक का प्रभाव कम पानी वाले इलाकों में ज्यादा होता है। दीमक फसल के पौधों की जड़ो को खाकर नुकसान पहुंचती हैl बुवाई से पहले अंतिम जुताई के समय खेत में क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत या क्लोरोपैरिफॉस पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से मिट्टी में मिला देनी चाहिए। बोने के समय बीज को क्लोरोपैरिफॉस कीटनाशक की 2 मिली. मात्रा को प्रति किलो ग्राम बीज दर से उपचरित कर बोएं ताकि कीट अंकुरण के समय दाने को न खाएं I

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फली भेदक कीट

  fali keet 

 यह कीट फलियों को भेदकर दाने को खा जाता है। इससे बचाव के लिए क्यूनालफास 25 र्इ्सी 1.25 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

कट्टा या कतरा कीट

  keet 1 

 इसका प्रकोप बिशेष रूप से दलहनी फसलों में बहुत होता है। यह कीट अंकुरण होते ही पौधों को काटते हैं। इस श्रेणी के कीट दिन में खेत की मेंढ़ों की घास में छिप जाते हैं और रात के समय में फसल को काटते हैं। इसके नियंत्रण हेतु खेत के आस पास कचरा नहीं होना चाहिये। कतरे की लटों पर क्यूनालफोस 1.5  प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव कर देना चाहिये। मेंढ़ों पर विशेष रूप से दवा डालें। 

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रस चूसक कीट   ras chuska keet 

 इस श्रेणी के वयस्क कीट फलियों का रस चूसते हैं। इससे उपज प्रभावित होती है। बचाव के लिए क्यूनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर, डाइमिथोएट 30 ईसी 800 एमएल प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 

सफ़ेद मक्खी एवं हरा तेला

  safed makhi 

 ये सभी कीट मूंग की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाते हैंI इनकी रोकथाम के किये मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यू ए.सी या  मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1.25 लीटर को प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।


 

 पत्ती बीटल

  beetle इस कीट के 

नियंत्रण के लिए क्यूंनफास 1.5 प्रतिशत पॉउडर की 20-25 किलो ग्राम का प्रति हेक्टयर की दर से बुरकाव करें। इस रोग के लक्षण पत्तियों,तने एवं फलियों पर छोटे गहरे भूरे धब्बे  के रूप में दिखाई देते है I इस रोग की रोकथाम हेतु एग्रीमाइसीन 200 ग्राम या स्टेप्टोसाईक्लीन 50 ग्राम को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें। I 

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पीत शिरा मोजेक

इस रोग के लक्षण फसल की पत्तियों पर एक महीने के अंतर्गत दिखाई देने लगते हैं। यह रोग एक मक्खी के कारण फैलता हैI इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल दिमेटान 0.25 प्रतिशत व मैलाथियोन 0.1 प्रतिशत मात्रा को मिलकर प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। I तना झुलसा रोग इस रोग की रोकथाम हेतु 2 ग्राम मैंकोजेब से प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करेंं। बुवाई के 30-35 दिन बाद 2 किलो मैंकोजेब प्रति हेक्टयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चहिये । 

पीलिया रोग

  peeliya 

 इस रोग के कारण फसल की पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है। इस रोग के नियंत्रण को गंधक का तेजाब या 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का छिड़काव करें। I 

सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा

  kapas 

 इस रोग के कारण पौधों के ऊपर छोटे गोल बैगनी लाल रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। Iपौधों की पत्तियां, जड़ें व अन्य भाग भी सूख जाते हैंI इसके नियंत्रण हेतु कार्बेन्डाजिम की1ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें। बीज को 3 ग्राम केप्टान या २ ग्राम कार्बेंडोजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। 

विषाणु जनित रोग

इस रोग के कारण पोधे की पत्तियां सिकुड़ कर इकट्ठी हो जाती हैं तथा पौधो पर फलियां बहुत ही कम बनती हैं। इसकी रोकथाम हेतु डाइमिथोएट 30 ई.सी. आधा लीटर अथवा मिथाइल डीमेंटन 25 ई.सी.750 मि.ली.प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए l ज़रूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।  I 

जीवाणु जनित रोग

इस श्रेणी के रोगों की रोकथाम के लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम , सरेप्टोसाइलिन की 0.1 ग्राम एवं मिथाइल डेमेटान  25 ई.सी. की एक मिली. मात्रा को प्रति लीटर पानी में एक साथ मिलाकर पर्णीय छिड़काव करना चहिये। मूंग की फलियों जब काली परने लगें तो उन्हें तोड़ लेना चाहिए। मूंग की एक एवं बहु तुड़ार्इ् वाली किस्में अलग अलग आती हैं। तुड़ाई का काम किस्म के अनुरूप करें।

पोषण और पैसे की गारंटी वाली फसल है मूंग

पोषण और पैसे की गारंटी वाली फसल है मूंग

मूंग खरीफ बोई जाने वाली मुख्य फसल है लेकिन इस मौसम में मोजैक रोग ज्यादा आने के कारण् अब इसकी फसल खरीफ में भी लेना ज्यादा लाभकारी सिद्ध हो रहा है। बेहद कम समय यानी कि 60-70 दिन में इस दलहनी फसल को लेने के दो फायदे हैं। इसकी जड़े खेत में जैविक नाइट्रोजन ​फिक्सेसन का काम करती हैं और नाके बराबर लागत में किसान अपने परिवार के लिए साल भर का पोषक दाल का जुगाड़ कर सकते हैं। मूंग की खेती रबी सीजन के बाद गेहूं काटने के बाद भी ले सकते हैं। फसल मिले तो ठीक नहीं भी मिले तो मूंग की फसल जमीन को खाद के रूप में बेशकीमती पोषक तत्वों का भंडार देने वाली है। तकनीकी ज्ञान के आधार पर अनेक प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी इसका अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। रबी सीजन के बाद देश में लाखों हैक्टेयर क्षेत्रफल समूूचे देश में खाली पड़ा रहा जाता है । यदि किसान सामूहिक और सामान्य रूप से भी इसमें मूंग लगाएं तो बेहद लाभकारी परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। मूंग की टाइप 44 किस्म अगस्त के दूसरे हफ्ते में बोकर 65 दिन में काटी जा सकती है। इससे अधिकतम 8 कुंतल प्रति हैक्टेयर की उपज मिलती है। पंत मूूंग 1 की बिजाई 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त कर करते हैं। 75 दिन में पक कर 10 कुंतल तक उपज मिलती है। यह पीला मोजेक अवरोधी है। पन्त मूंग दो 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त कर बोते हैं। यह 70 दिन में 11 कुंतल तक उपज देती है। पंत मूंग 3 की ​बिजाइ्र 25 जुलार्इ् से 10 अगस्त तक करते हैं। अधिकतम 85 दिन में यह 10 से 15 कुंतल तक उत्पादन देती है। राजस्थान के लिए आर एम जी-62 पकाव अवधि 65-70 दिन, उपज 6-9 कुंतल, राइजक्टोनिया ब्लाइट कोण व फली छेदन कीट के प्रति रोधक ,फलियां एक साथ पकती हैं। आरएमजी-268 अवधि 62-70 उपज 8-9 कुंतल, सूखे के प्रति सहनसील,I रोग एवं कीटो का कम प्रकोप,I फलियां एक साथ पकती हैं। I आरएमजी-344 पकाव 62-72 दिन, उपज 7-9 कुंतल, खरीफ एवं जायद दोनों के लिए उपयुक्त,I ब्लाइट को सहने की क्षमता। Iएसएमएल-668, 62-70 दिन, उपज 8-9 कुंतल, दोनों सीजन के लिए उपयुक्त, अनेक बिमारियों एवं रोगो के प्रति सहनसील । गंगा-8, 70—72 दिन, उपज 9-10 कुंतल, उचित समय एवं देरी दोनों स्थतियों में बोने योग्य, दोनों सजीनों के लिए उपयुक्त रोग रोधी। जीएम-4, 62-68 दिन, उपज 10-12 कुंतल, फलियां एक साथ पकती हैं। Iदाने हरे रंग के तथा  बड़े आकर के होते हैं। मूंग के -851, 70-80 दिन, उपज 8-10 कुंतल, सिंचित एवं असिंचित क्षत्रों के लिए उपयुक्त, I चमकदार एवं मोटा दाना होता है। नरेन्द्र मूंग 1, पीडीएम 54, पंत मूग 4, मालवीय ज्योति, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जागृति, मालवीय जन चेतना, आशा, मेहा, टीएम 9937, मालवीय जनकल्याणी किस्में अधिकतम 70 दिन में तैयार होकर 15 कुंतल तक उत्पादन देती हैं। पूसा विशाल किस्म समूचे देश में लगार्इ् जा सकती है। उपज 12 कुतल एवं अवधि 70 दिन है। पूसा 672 किस्म 65 दिन में तैयार होकर 12 कुंतल तक उपज देती है। मूंग की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। उत्तर भारत में इसकी खेती गर्मी एवं बरसात के सीजन में तथा दक्षित भारत में रबी सीजन में की जाती है। किस्में अनेक हैं। एचयूएम सीरीज की भी मूग की कई किस्में श्रेष्ठ हैं। किसानों को क्षेत्रीय कृषि विज्ञान केन्द्र एवं कृषि विभाग में संपर्क कर आगामी फसल के समय को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार अपने खेतों में मूंग की खेती अवश्य करनी चाहिए ताकि जमीन की उपज क्षमता बरकरार रहे।

मूंग की खेती के लिए बीज की बुवाई

  buwai 5 मूंग की बुवाई 15 जुलाई तक करलें। वर्षा देरी से हो तो शीघ्र पकने वाली किस्म की वुबाई 30 जुलाई तक करें। बीज प्रामाणिक लेना चाहिए। कतरों के बीच दूरी 45 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दूरी 10 से.मी. उचित है । मूंग की खेती के लिए 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बीज की जरूरत होती है।

मूंग की फसल में खाद एवं उर्वरक

  urwaruk 1 दलहनी फसलों में उर्वरक की बेहद कम जरूरत होती है। मूंग के लिए 20 किलो नाइट्रोजन तथा 40  किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है। इसकी पूर्ति क्रमश 87 किलो ग्राम डी.ए.पी. एवं 10 किलो ग्राम यूरिया से करें। 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिए तथा बुवाई कर देनी चाहिए। किसी भी दलहनी फसल में अच्छे उत्पादन के लिए कल्चर से बीज उपचार जरूर करें।

मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण

  moong kharaptar फसल की बुवाई के एक या दो दिन पश्चात एवं अंकुरण से पूर्व पेन्डीमेथलिन (स्टोम्प )की बाजार में उपलब्ध 3.30 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। फसल जब 25 -30 दिन की हो जाये तो ​निराई करें।  इसके बाद भी खरपतवार दिखे तो इमेंजीथाइपर(परसूट) की 750 मिली लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।
एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल

एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल

सीएम ने आखिरी दौर में की घोषणा, अब सर्वर डाउन

पहले ही उपज बेच चुके हैं कुछ किसान, चूक गए चौहान मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मूंग की सरकारी खरीद शुरू करने का निर्णय लिया है। किसान हित में मुख्यमंत्री के इस निर्णय को देर से लिया गया फैसला बताया जा रहा है। मध्य प्रदेश में मूंग की खेती करने वाले किसानों के लिए समर्थन मूल्य पर उपज खरीदने के सरकारी निर्णय की जरूरी खबर आई तो जरूर है, लेकिन देरी से। गुड न्यूज ये भी है कि सरकार ने इस साल समर्थन मूल्य में आंशिक लेकिन वृद्धि जरूर की है।



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टाइमिंग पर सवाल -

भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह एक किसान समर्थित फैसला हो, लेकिन इसकी टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन पर मूंग के समर्थन मूल्य की घोषणा के संदर्भ में चूक गए चौहान वाली कटूक्तियां की जा रहीं हैं।

उपज बेच चुके किसान -

किसानों का कहना है कि, मध्य प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीदी करने में देर कर दी है। इस घोषणा एवं खरीदी संबंधी रजिस्ट्रेशन आदि की प्रक्रिया पूरी होने के पहले तक अधिकांश किसानों ने कृषि उपज मंडी में ओने-पोने दाम पर मूंग की अपनी उपज बेच दी है।



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प्रक्रिया इस बार -

मध्य प्रदेश में इस साल समर्थन मूल्य पर खरीदी करने का रजिस्ट्रेशन सिर्फ सहकारी सोसायटी के माध्यम से हो रहा है। ऐसी स्थिति में पंजीकरण का अन्य कोई विकल्प न होने से भी किसान असमंजस में हैं, कि वे किस तरह समर्थन मूल्य पर उपज का रजिस्ट्रेशन कराएं। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बरेली आदि क्षेत्रों में ग्रीष्म कालीन सीजन में गेहूं, चना, कटाई के फौरन बाद मूंग की खेती शुरू कर दी जाती है। इस चक्र के अनुसार इस बार भी क्षेत्र के कृषकों ने लगभग 18 से 20 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की बोवनी की थी।



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तंत्र की खामी -

इंटरनेट आधारित समर्थन मूल्य पर कृषि उपज के रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया तंत्र की सबसे बड़ी समस्या सर्वर डाउन होने की है। किसानों ने जी तोड़ मेहनत कर मूंग उपजाई थी, लेकिन सरकारी खरीद नीति ने फिलहाल किसानों की मुसीबत बढ़ा दी है। कई जगहों पर सर्वर डाउन होने की वजह से पंजीयन नहीं हो पा रहे हैं। पंजीकरण सिर्फ सहकारी सोसायटी से होने के कारण दूसरा विकल्प न होने से भी किसान मूंग की उपज के पंजीकरण से वंचित हैं।



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इनको किया था दायरे में शामिल -

सरकार ने पूर्व में धान, गेहूं, चना आदि उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की थी, लेकिन सरकार के द्वारा हाल ही में मूंग की उपज को समर्थन मूल्य के दायरे में लाया गया।

पिछले माह के मुकाबले अंतर -

पिछले साल सरकार ने मूंग के बारे में 15 जून से समर्थन मूल्य की घोषणा की थी। इस साल सरकार ने 18 जुलाई से समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। हालांकि इस बार सरकार ने समर्थन मूल्य में 79 रुपए की वृद्धि की है।

समर्थन मूल्य तब और अब -

सरकार ने इस वर्ष मूंग का समर्थन मूल्य 79 रुपए बढ़ाकर 7275 रुपए तय किया है। पिछले साल मूंग का समर्थन मूल्य 7196 रुपए था। आंकड़ों के मान से इस बार बाडी क्षेत्र में 18 से 20 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की बोवनी हुई।
फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

दलहनी फसलों में मूंग की खेती अपना एक अलग ही स्थान रखती है. मूंग की फसल को जायद सीजन में बोया जाता है. अगर किसान फायदे का सौदा चाहते हैं, तो इस सीजन में बूंग की फसल की बुवाई कर सकते हैं. 

मार्च से लेकर अप्रैल के महीने में खेत खुदाई और सरसों की कटाई के बाद खाली हो जाते हैं. जिसके बाद मूंग की बुवाई की जाती है. एमपी में मूंग जायद के अलावा रबी और खरीफ तीनों सीजन में उगाई जाति है. 

यह कम समय में पकने वाली ख़ास दलहनी फसलों में से एक है. मूंग प्रोटीन से भरपूर होती है. जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है. इतना ही नहीं यह फसल खेत और मिट्टी के लिए भी काफी फायदेमंद मानी जाती है. 

मूंग की खेती जिस मिट्टी में की जाती है, उस मिट्टी की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है. मूंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि, इसकी फलियों की तुड़ाई के बाद खेत में हल से फसल को पलटकर मिट्टी में दबा दिया जाए, तो यह खाद का काम करने लगती है. अगर अच्छे ढंग से मूंग की खेती की जाए तो, किसान इससे काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं.

पोषक तत्वों से भरपूर मूंग

जैसा की हम सबको पता है कि मूंग में प्रोटीन की भरपूर मात्रा होती है. लेकिन इसमें अन्य पोषक तत्व जैसे पोटैशियम, मैंग्निशियम, कॉपर, जिंक और कई तरह के विटामिन्स भी मिलते हैं. 

अगर इस दाल का सेवन किया जाए तो, इससे शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है. अगर किसी मरीज को इस दाल का पानी दिया जाए तो, इससे स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से राहत दिलाई जा सकती है. इसके अलावा मूंग दाल डेंगू से भी बचाने में मदद करती है. 

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इन जगहों पर होती है खेती

भारत के आलवा रूस, मध्य अमेरिका, फ़्रांस, इटली और बेल्जियम में मूंग की खेती की जाती है. भारत के राज्यों में इसके सबसे ज्यादा उत्पान की बात करें तो, यूपी, बिहार, कर्नाटक, केरल और पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है.

क्या है मूंग की उन्नत किस्में

मूंग के दाने का इस्तेमाल दाल के रूप में किया जाता है. मूंग की लिए करीब 8 किलोग्राम नत्रजन 20 किलोग्राम स्फुट, 8 किलोग्राम पोटाश और 8 किलो गंधक प्रति एकड़ बुवाई के समय इस्तेमाल करना चाहिए. 

इसके अलावा मूंग की फसल के उन्नत किस्मों का चयन का चुनाव उनकी खासियत के आधार पर किया जाना चाहिए.

  • टाम्बे जवाहर नाम की किस्म का उत्पादन जायद और खरीफ सीजन के लिए अच्छा माना जाता है. इसकी फलियां गुच्छों में होती है. जिसमें 8 से 11 दानें होते हैं.
  • जवाहर मूंग 721 नाम की किस्म तीनों सीजन के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 53 से 65 सेंटीमीटर होती है. इसमें 3 से 5 फलियां गुच्छों में होती है. जिसमें 10 से 12 फली होती है.
  • के 851 नाम की किस्म की बुवाई के लिए जायद और खरीफ का सीजन उपयुक्त होता है. 60 से 65 सेंटीमीटर तक इसके पौधे की लंबाई होती है. एक पौधे में 50 से 60 फलियां होती हैं. एक फली में 10 से 12 दाने होते हैं. इस किस्म की मूंग दाल के दाने चमकीले हरे और बड़े होते हैं.
  • एमयूएम 1 नाम की किस्म गर्मी और खरीफ दोनों सीजन के लिए अच्छी होती है. इसके पौधों का आकार मीडियम होता है. एक पौधे में लगभग 40 से 55 फलियां होती हैं. जिसकी एक फली में 8 से 12 दाने होते हैं.
  • पीडीएम 11 नाम की किस्म जायद और खरीफ दोनों सीजन के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे का आकार भी मध्यम होता है. इसके पौधे में तीन से चार डालियां होती हैं. इसकी पकी हुई फली का आकार छोटा होता है.
  • पूसा विशाल नाम की किस्म के पौधे मध्यम आकार के होते हैं. इसकी फलियों का साइज़ ज्यादा होता है. इसके दाने का रंग हल्का हरा और चमकीला होता है.
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कैसे करें जमीन तैयार?

खेत को समतल बनाने के लिए दो या तीन बार हल चलाना चाहिए. इससे खेत अच्छी तरह तैयार हो जाता है. मूंग की फसल में दीमग ना लगे, इसलिए इसे बचने के लिए क्लोरोपायरीफ़ॉस पाउडर 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिला लेना चाहिए. इसके अलावा खेत में नमी लंबे समय तक बनी रहे इसके लिए आखिरी जुताई में लेवलर लगाना बेहद जरूरी है.

कितनी हो बीजों की मात्रा?

जायद के सीजन में मूंग की अच्छी फसल के लिए बीजों की मात्रा के बारे में जान लेना बेहद जरूरी है. इस सीजन में प्रति एकड़ बीज की मात्रा 20 से 25 किलोग्राम तक होनी चाहिए. इसके बीजोपचार की बात करें तो उसमें 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीजों के हिसाब से मिलाने से बीज, भूमि और फसल तीनों ही बीमारियों से सुरक्षित रहती है.

फसल की बुवाई का क्या है सही समय?

मूंग की फसल की बुवाई खरीफ और जायद दोनों ही सीजन में अलग अलग समय पर की जाती है. बार खरीफ के सीजन में बुवाई की करें तो, जून के आखिरी हफ्ते से लेकर जुलाई के आखिरी हफ्ते तक इसकी बुवाई करनी चाहिए. 

वहीं जायद के सीजन में इस फसल की बुवाई मार्च के पहले गते से लेकर अप्रैल के दूसरे हफ्ते तक बुवाई करनी चाहिए.

क्या है बुवाई का सही तरीका?

मून की बुवाई कतारों में करनी चाहिए. जिसमें सीडड्रिल की मदद ली जा सकती है. कतारों के बीच की दूरी कम से कम 30 से 45 सेंटीमीटर तक और 3 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में बीज की बुवाई होनी चाहिए. 

अगर एक पौधे की दूरी दूसरे पौधे की दूरी से 10 सेंटीमीटर पर है, तो यह अच्छा माना जाता है. 

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कैसी हो खाद और उर्वरक?

मूंग की फसल के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी को चेक कर लेना जरूरी है. इसमें कम से कम 5 से 12 टन तक कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. 

इसके अलावा मून की फसल के लिए 20 किलो नाइट्रोज और 50 किलो स्फुर का इस्तेमाल बीजों की बुवाई के समय करें. वहीं जिस क्षेत्र में पोटाश और गंधक की कमी है वहां 20 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पोटाश और गंधक देना फायदेमंद होता है.

कैसे करें खरपतवार नियंत्रण?

पहली निराई बुवाई के 25 से 30 दिनों के अंदर और दूसरी 35 से 40 दिनों में करनी चाहिए. मूंग की फसल की बुवाई के एक या फिर दो दिनों के बाद पेंडीमेथलीनकी की 3 लीटर मात्रा आधे लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें. जब फसल एक महीने की हो जाए तो उसकी गुड़ाई कर दें.

कैसे करें रोग और कीट नियंत्रण?

  • फसल को दीमग से बचाने के लिए बुवाई से पहले खेत में जुताई के वक्त क्यूनालफोस या क्लोरोपैरिफ़ॉस पाउडर की 25 किलो तक की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला लें.
  • फसल की पत्तियों में अगर पीलापन नजर आए तो यह पीलिया रोग का संकेत होता है. इससे बचाव के लिए गंधक के तेज़ाब का छिड़काव करना अच्छा होता है.
  • कातरा नाम का कीट पौधों को शुरूआती अवस्था में काटकर बर्बाद कर देता है. इससे बचाव के लिए क्यूनालफोस 1.5 फीसद पाउडर की कम से 20 से 25 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भुरक देनी चाहिए.
  • फसलों को तना झुलसा रोग से बचाने के लिए दो ग्राम मैकोजेब से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करके बुवाई की जानी चाहिए. बीजों की बुवाई के एक महीने बाद दो किलो मैकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से कम से कम 5 सौ लीटर पानी घोलकर स्प्रे करना चाहिए.
  • फसलों को फली छेदक से बचाने के लिए मोनोक्रोटोफास कम से कम आधा लीटर 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्प्रे करना चाहिए.

कब सिंचाई की जरूरत?

मूंग की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती लेकिन लेकिन जायद के सीजन में फसल को 10 से 12 दिनों के अंतराल में कम से कम 5 बार सिंचाई की जरूरत होती है. मूंग की फसलों की सिंचाई के लिए उन्नत तकनीकों की मदद ली जा सकती है.

कैसे करें कटाई?

मूंग की फलियों का रंग जब हरे से भूरा होने लगे तब फलियों की कटाई करनी चाहिए. बाकी की बची हुई फसल को मिट्टी में जुताई करने से हरी खाद की जरूरत पूरी हो जाती है. 

अगर फलियां ज्यादा पक जाएंगी तो उनकी तुड़ाई करने पर उनके चटकने का डर रहता है. जिसकी वजह से फसल का उत्पादन कम होता है. मूंग की फसल के बीज का भंडारण करने के लिए उन्हें अच्छे से सुखा लेना चाहिए. 

बीज में 10 फीसद से ज्यादा नमी नहीं होनी चाहिए. अगर आप भी इन बातों का ख्याल रखते हुए मूंग की फसल की बुवाई करेंगे तो, यह आपके लिए फायदे का सौदा हो सकता है.

मूंग की खेती में लगने वाले रोग एवं इस प्रकार से करें उनका प्रबंधन

मूंग की खेती में लगने वाले रोग एवं इस प्रकार से करें उनका प्रबंधन

इन दिनों देश में जायद मूंग की बुवाई चल रही है। कुछ दिनों में ही यह ग्रीष्मकालीन मूंग खेतों में लहलहाने लगेगी। पौधों के बढ़ने के साथ ही मूंग की खेती में कई प्रकार के रोग लगना प्रारंभ हो जाते हैं जिनके कारण फसल बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं  मूंग की फसल में लगने वाले रोगों के बारे में। साथ ही रोगों का प्रबंधन किस प्रकार से किया जाए ताकि फसल को नुकसान न हो, इसके बारे में भी जानकारी दी जाएगी।

पीला मोज़ेक रोग

यह मूंग की फसल में लगने वाला विषाणु जनित रोग है, जो तेजी से फैलता है। यह सबसे ज्यादा सफेद मक्खियों के कारण फैलता है। इसकी वजह से फसल कई बार पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। जब पौधों में इसका अटैक होता है तो पत्तियों में पीले धब्बे पड़ जाते हैं। कुछ समय बाद पत्तियां पूरी तरह से पीली होकर सूख जाती हैं। जिन पेड़ों में इसका ज्यादा असर होता है उनमें फलियों और बीजों पर भी पीले धब्बे दिखाई देते हैं। ये भी पढ़े: फायदे का सौदा है मूंग की खेती, जानिए बुवाई करने का सही तरीका

इस प्रकार से पाएं इस रोग से छुटाकारा

इस रोग से निपटने के लिए बुवाई एक समय ऐसी किस्मों का चयन करें जिनमें इस रोग का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए बुवाई के लिए मूंग की टी.जे.एम.-3, के-851, पंत मूंग -2, पूसा विशाल, एच.यू.एम. -1 जैसी किस्मों को ले सकते हैं। इसके अलावा यदि प्रारम्भिक अवस्था में ही रोग लगना शुरू हो गया है तो पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें। साथ ही बाजार में उपलब्ध कीटनाशकों का प्रयोग भी कर सकतें हैं।

श्याम वर्ण रोग

यह एक खतरनाक रोग है जिसके कारण उत्पादन में 25 से लेकर 60 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। अगर आसमान में बादल छाए हुए है तो फसल में यह रोग आसानी से लग सकता है। इस रोग के कारण पेड़ की पत्तियों में गंभीर धब्बे दिखाई देते हैं। इससे पत्तियों में छेद हो जाते हैं और अंततः पत्तियां झड़ जाती हैं। पेड़ों के तनों पर गहरे और गंभीर घाव बन जाते है और अंततः नए पौधे मर जाते हैं। ये भी पढ़े: चने की फसल को नुकसान पहुँचाने वाले प्रमुख रोग और इनका प्रबंधन

इस प्रकार से करें इस रोग का प्रबंधन

पेड़ों में लक्षण दिखाई देने पर 15 दिनों के अंतराल पर जिऩेब या थीरम का छिडक़ाव करें। इसके पहले बुवाई के पहले भी बीजों को उपचारित करें, इसके उपरांत बुवाई करें। साथ ही कार्बेन्डाजिम या मेनकोजेब का छिड़काव भी इस रोग को जल्द ही खत्म कर देता है।

चूर्णी फफूंद रोग

यह वायु द्वारा परपोषी पौधों के द्वारा फैलने वाला रोग है जो गर्मी और शुष्क वातावरण में फैलता है। अपनी उग्र अवस्था में यह रोग फसल का 21% हिस्सा नष्ट कर सकता है। इस रोग के कारण मूंग के पौधों की पत्तियों ने निचले हिस्सों में गहरे रंग के धब्बे प्रकट होते हैं। इसके साथ ही छोटी-छोटी बिंदियां भी दिखाई देने लगती हैं। समय के साथ ही इन बिंदियों और धब्बों का आकार बढ़ने लगता है और यह रोग पत्तियों के साथ पौधों के तनों पर भी फैल जाता है। इससे अंततः पौधे पूरी तरह से सूख जाते हैं। ये भी पढ़े: मध्य प्रदेेश में एमएसपी (MSP) पर 8 अगस्त से इन जिलों में शुरू होगी मूंग, उड़द की खरीद

इस प्रकार से करें चूर्णी फफूंद रोग का प्रबंधन

फसल में इस रोग से निपटने के लिए  कवकनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम या केराथेन के घोल का छिड़काव कर सकते हैं। इनका छिड़काव रोग के लक्षण दिखते ही शुरू कर दें। इसके बाद 15-20 दिन के अंतराल में इनका छिड़काव करते रहें।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग

यह एक कवक रोग है जो मूंग की फसल में बरसात के मौसम में तथा शुष्क मौसम में फैलता है। गर्म तापमान, लगातार वर्षा, और उच्च आर्द्रता के कारण यह रोग मूंग के पौधे को अपनी जद में ले लेता है। इस रोग के कारण आमतौर पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं जो लाल बाहरी किनारों से घिरे होते हैं। जब यह रोग फसल में ज्यादा फैल जाता है तो मूंग के पेड़ों की शाखाओं और तने पर भी धब्बे दिखाई देते हैं।

सर्कोस्पोरा पर्णदाग रोग का प्रबंधन

संक्रमित फसल अवशेषों को नष्ट करने के साथ ही खेत की सफाई से यह रोग नियंत्रित होता है। बुवाई से पहले कवकनाशी कैप्टान या थीरम से बीज को उपचारित कर लें। इसके साथ ही मेन्कोजेब 75 डब्ल्यू. पी. और कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू. पी. के घोल का छिड़काव करने से भी इस रोग के प्रसार में नियंत्रण पाया जा सकता है।

लीफ कर्ल

यह एक विषाणु जनित रोग है जो मक्खियों के कारण या बीजों के कारण फैलता है। इस रोग के कारण पौधे की पत्तियों में झुर्रियां आने लगती हैं। इसके साथ ही पत्तियां जरूरत से ज्यादा बड़ी होने लगती हैं। इससे पौधे का विकास रुक जाता है और पौधे में नाम मात्र की फलियां आती है। बुवाई के 4 से 5 सप्ताह के भीतर ही पौधों में ये लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं। इस रोग से संक्रमित पौधों को खेत में दूर से ही पहचाना जा सकता है। ये भी पढ़े: इस राज्य के किसान फसल पर हुए फफूंद संक्रमण से बेहद चिंतित सरकार से मांगी आर्थिक सहायता

लीफ कर्ल रोग का प्रबंधन

इस रोग को नियंत्रित करने के लिए बुवाई से पहले बीज को इमिडाक्लोप्रिड से उपचारित करना चाहिए। इसके साथ ही बुवाई के 15 दिनों के बाद इमिडाक्लोप्रिड को पानी में घोलकर छिड़काव भी करना चाहिए। इससे लीफ कर्ल रोग को फसल पर प्रकोप कम हो सकता है।