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जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

जानिए सूरजमुखी की खेती कैसे करें

अभी सूरजमुखी की खेती करने का सही समय है. सूरजमुखी की खेती खाद्य तेल के लिए की जाती है. वैसे भी हमारे देश को खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है। आयात को कम करने के लिए सरकार का भी ध्यान सरसों और सूरजमुखी जैसी फसलों पर अधिक है। मार्च के महीने में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई करते समय याद रखें की खेत में गोबर की खाद, नाइट्रोजन की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए. इसको सूरजमुखी नाम देने के पीछे भी एक रोचक कारण है।एक तो इसका फूल सूरज की तरह दिखता है दूसरा इसका फूल सूरज के हिसाब से घूमता है। आप कह सकते है की इसके फूल का मुँह सूरज की तरफ ही रहता है। सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि जब खेतों से सरसों, आलू, गेंहूं आदि से खेत खाली होते हैं तो इसकी खेती की जा सकती है। इसमें से जो तेल निकलता है वो बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनो ही मौसमों में की जा सकती है। लेकिन खरीफ में सूरजमुखी पर अनेक रोग कीटों का प्रकोप रहता है। फूल छोटे होते है, तथा उनमें दाना भी कम पड़ता है तथा इतना स्वस्थ भी नहीं होता है, जायद में सूरजमुखी की खेती से अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। इस मौसम की सूरजमुखी में मोटा दाना और उसमें तेल की मात्रा भी ज्यादा होती है। ये भी पढ़ें : सरसों की खेती: कम लागत में अच्छी आय

खेत की तैयारी:

मार्च या अप्रैल के महीने में जब खेत दूसरी फसल से खाली होता है तो खेत में इतनी नमी नहीं होती की उसको दूसरी फसल के लिए तैयार कर दिया जाये। इसके लिए पहले खेत को सूखा ही 2 जोत हैंरों या कल्टीवेटर से लगा देनी चाहिए और अगर संभव हो सके तो उसमें प्लाऊ से 8 से 10 इंच गहरी जुताई लगा कर मिटटी को पलट देना चाहिए जिससे कि ऊपर की मिटटी नीचे और नीचे की मिटटी ऊपर आ जाये। उसके बाद उसमें पलेवा ( सूखे खेत में पानी देना) करके जुताई आने पर कल्टीवेटर से 2 से 3 जुताई लगाकर पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत में नमी बनी रहे और समतल भी हो जाये।

उचित जलवायु और मिटटी:

सूरजमुखी के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। इसको बोने का सही समय फ़रवरी से मार्च का दूसरा सप्ताह उचित होती हैं क्योंकि अगर इसके फूल को बीज पकते समय बारिश नहीं होनी चाहिए अगर पकते समय बारिश हो जाती है तो इसको बहुत नुकसान होता है तथा इसकी फसल की गुणबत्ता भी खराब हो जाती है। इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है इसकी फसल को दोमट और रेतीली भुरभुरी वाली मिटटी में उगाना उचित होगा। सर्वप्रथम हमें ध्यान रखना चाहिए की जिस खेत में हम इसे लगा रहे हैं उसमे पानी निकासी की उचित व्यवस्था है की नहीं क्योंकि अगर इसके खेत में पानी भर जाता है तो इसके पेड़ ख़राब होने की संभावना होती है। ये भी पढ़ें : कहां कराएं मिट्टी के नमूने की जांच

उर्वरक की जरूरत:

हम जिस मिटटी में इसे लगा रहे हैं उसमें खाद की मात्रा कितनी है? उचित रहेगा की हम अपनी मिटटी का टेस्ट कराके उसमे जरूरत के हिसाब से ही नाइट्रोजन, फास्फोरस का प्रयोग करना चाहिए फिर भी हमें 80KG नाइट्रोजन और 60KG फास्फोरस का प्रति एकड़ के हिसाब से लेना चाहिए। नाइट्रोजन को खेत में बखेर देना चाहिए तथा जुताई लगा देनी चाहिए और फास्फोरस और पोटास को कुंडों में डालना चाहिए. अगर खेत में आलू की फसली की गई हो तो उसमे खाद की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत तक काम की जा सकती है।

बुवाई का ठीक समय:

सूरजमुखी की फसल का सही समय फ़रवरी और मार्च के दूसरे सप्ताह तक होता है। इसकी फसल जून के दूसरे सप्ताह तक पक कर स्टोर हो जानी चाहिए या कहा जा सकता है कि जून के दूसरे सप्ताह तक फसल पक कर तैयार हो जानी चाहिए जिससे की बारिश शुरू होने से पहले घर आ जानी चाहिए। बारिश की वजह से इसमें बहुत नुकसान होता है।

बुवाई से पहले बीज की तैयारी:

बीज को बोने से 12 घंटे पहले भिगो देना चाहिए और बाद में निकाल कर इसे छाया में सुखा देना चाहिए। इसकी बुवाई दोपहर बाद करनी चाहिए जिससे कि इसके बीज को खेत में ठन्डे में उगने के लिए पर्याप्त माहौल मिल सके। गर्मी के मौसम में हमेशा याद रखें ज्यादातर बीजों  को भिगोकर बोने की सलाह दी जाती है क्योंकि गर्मी में तापमान दिन में बहुत ज्यादा होता है इस तापमान में बीज को अंकुरित होने के लिए पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती है।

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में:

सूरजमुखी की निम्न उन्नत किस्में मार्डन :- इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 6 से 8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसकी उपज समय अवधि 80 से 90 दिन है | इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 90 से 100 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति की खेती बहुफसलीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।  इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है। बी.एस.एच.–1 :- इस प्रजाति की उत्पादन 10 से 15 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 100 से 150 सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 41 प्रतिशत होती है। एम.एस.एच. :- इस प्रजाति की उत्पादन 15 से 18 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 95 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 170 से 200  सेमी. तक होती है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 42 से 44 प्रतिशत होती है। सूर्या :– इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 90 से 100 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 130 से 135 सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र38 से 40  प्रतिशत होती है। ई.सी. 68415 :- इस प्रजाति की उत्पादन 8 से 10 किवंटल प्रति हैक्टेयर है तथा इसकी उत्पादन समय 110 से 115 दिन है। इसकी विशेषता यह है की पौधों की ऊँचाई 180 से 200  सेमी. तक होती है। इसप्रजाति की की खेती पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। इस प्रजाति में तेल की मात्र 38 से 40 प्रतिशत होती है।

कीड़े और  रोकथाम:

सूरजमुखी की खेती में कई प्रकार के कीट रोग लगते है, जैसे कि दीमक हरे फुदके (डसकी बग) आदि है। इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का भी प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ईसी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।

कटाई:

सूरजमुखी की फसल एक साथ कटाई के लिए नहीं आती है इसके फूलों को तोड़ने से पहले देखें की वो हलके पीले रंग के हो गए है, तभी इनको तोड़ कर किसी छाया वाली जगह में सूखा लें। इसकी गहाई के दो तरीके हैं एक तो इसको फूल से फूल रगड़ कर भी बीज अलग किया जा सकता है या डंडे से पीट पीट कर निकला जा सकता है या फिर ज्यादा फसल है तो इसको निकालने के लिए थ्रेसर की मदद भी ली जा सकती है।
सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी की इन प्रमुख किस्मों की खेती से मिलेगी शानदार उपज और मोटा मुनाफा

सूरजमुखी एक सदाबहार फसल है, इसकी खेती रबी, जायद और खरीफ के तीनों सीजन में की जा सकती है। बतादें, कि सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे अच्छा समय मार्च के माह को माना जाता है। इस फसल को कृषकों के बीच नकदी फसल के रूप में भी पहचाना जाता है। 

सूरजमुखी की खेती से किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। इसके बीजों से 90-100 दिनों के समयांतराल में 45 से 50% तक तेल हांसिल किया जा सकता है। 

सूरजमुखी की फसल को शानदार विकास देने के लिए 3 से 4 बार सिंचाई की जाती है, ताकि इसके पौधे सही तरीके से पनप सकें। अगर हम इसकी टॉप 5 उन्नत किस्मों की बात करें, तो इसमें एमएसएफएस 8, केवीएसएच 1, एसएच 3322, ज्वालामुखी और एमएसएफएच 4 आती हैं।

1. सूरजमुखी की एमएसएफएस-8 (MSFS-8) किस्म 

सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में एमएसएफएस-8 भी शम्मिलित है। इस किस्म के सूरजमुखी के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 से 200 सेमी तक रहती है। एमएसएफएस-8 सूरजमुखी के बीज में 42 से 44% तक तेल की मात्रा पाई जाती है।

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किसान को सूरजमुखी की इस फसल को तैयार करने में 90 से 100 दिनों का वक्त लगता है। MSFS-8 किस्म की सूरजमुखी फसल की यदि एकड़ भूमि पर खेती की जाती है, जो इससे लगभग 6 से 7.2 क्विंटल तक उपज मिलती है। 

2. सूरजमुखी की केवीएसएच-1 (KVSH-1) किस्म 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी की उन्नत किस्मों में शम्मिलित है, जो कि शानदार उत्पादन देती है। सूरजमुखी के इस किस्म वाले पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 से 180 सेमी तक होती है। 

केवीएसएच-1 सूरजमुखी के बीज से लगभग 43 से 45% तक तेल प्राप्त होता है। किसान को सूरजमुखी की इस उन्नत किस्म को विकसित करने में 90 से 95 दिनों की समयावधि लगती है। अगर केवीएसएच-1 सूरजमुखी की फसल को एकड़ भूमि पर लगाया जाए, तो इससे तकरीबन 12 से 14 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। 

3. सूरजमुखी की एसएच-3322 (SH-3322) किस्म 

सूरजमुखी की शानदार उपज देने वाली किस्मों में एसएच-3322 भी शुमार है। इस सूरजमुखी की उन्नत किस्म के पौधों की ऊंचाई तकरीबन 137 से 175 सेमी तक पाई जाती है। एसएच-3322 सूरजमुखी के बीज से लगभग 40-42% फीसद तक तेल की मात्रा हांसिल होती है। 

किसान को एसएच-3322 किस्म की सूरजमुखी फसल को विकसित करने में 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। सूरजमुखी की एसएच-3322 किस्म को अगर एक एकड़ जमीन पर उगाया जाए, तो इससे तकरीबन 11.2 से 12 क्विंटल तक की उपज हांसिल हो सकती है। 

4. सूरजमुखी की ज्वालामुखी (Jwalamukhi) किस्म 

सूरजमुखी की ज्वालामुखी किस्म के बीजों में 42 से 44% प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। किसान को इसकी फसल तैयार करने में 85 से 90 दिनों का वक्त लगता है। 

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ज्वालामुखी पौधे की ऊंचाई तकरीबन 170 सेमी तक रहती है। सूरजमुखी की इस किस्म को एक एकड़ भूमि पर लगाने से लगभग 12 से 14 क्विंटल तक पैदावार हो जाती है। 

5. सूरजमुखी की एमएसएफएच-4 (MSFH-4) किस्म

सूरजमुखी की इस एमएसएफएच-4 किस्म की खेती रबी और जायद के सीजन में की जाती है। इस फसल के पौधे की ऊंचाई तकरीबन 150 सेमी तक पाई जाती है। 

एमएसएफएच-4 सूरजमुखी के बीजों में तकरीबन 42 से 44% तक तेल की मात्रा विघमान रहती है। इस किस्म की फसल को तैयार करने में किसान को 90 से 95 दिनों का वक्त लग जाता है। 

अगर किसान इस किस्म की फसल को एक एकड़ खेत में लगाते हैं, तो इससे करीब 8 से 12 क्विंटल तक की उपज बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है।

जानें लहसुन की कीमत में कितना इजाफा हुआ है

जानें लहसुन की कीमत में कितना इजाफा हुआ है

मंडी समिति के सचिव मदन लाल गुर्जर ने बताया है, कि विगत एक सप्ताह से लहसुन के भाव में यह बढ़ोत्तरी हुई है। मंगलवार को लहसुन की कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि दर्ज की गई। राजस्थान में लहसुन के भाव में काफी उछाल आया है। अब ऐसी स्थिति में मंडियों में लहसुन की आवक बढ़ गई है। अत्यधिक कीमत होने की वजह से बड़ी तादात में किसान लहसुन की उपज को विक्रय करने के लिए मंडी पहुंच रहे हैं। साथ ही, ऐसा भी सुनने को मिल रहा है, कि आगामी समय में कीमतों में और वृद्धि दर्ज होने की संभावना होती है। विशेष बात यह है, कि लहसुन के भाव में यह वृद्धि प्रतापगढ़ की मंडी में अधिक देखने को मिल रही है। इससे लहसुन उत्पादक किसान बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं। लहसुन की खेती करना काफी मुनाफे का सौदा साबित होता है। लहसुन शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। कई बार चिकित्सक भी मरीजों को लहसुन खाने की सलाह देते हैं। अधिकांश लोग सब्जी में लहसुन का तड़का दिए बिना सब्जी पसंद नहीं करते हैं।

लहसुन के भाव में 300 रुपए प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि

मीडिया एजेंसियों के अनुसार, मंडी समिति के सचिव मदन लाल गुर्जर ने बताया है, कि विगत एक सप्ताह से लहसुन के भाव में यह वृद्धि सामने आ रही है। मंगलवार को लहसुन की कीमत में 300 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से वृद्धि दर्ज की गई है। वर्तमान में मंडी के अंदर एक क्विंटल लहसुन का भाव 13000 हो चुका है। यही कारण है, कि किसान अपनी फसल विक्रय करने हेतु बड़ी तादात में मंडी पहुँच रहे हैं। मंडी में प्रतिदिन लगभग 1500 बोरी लहसुन की आवक हो रही है। लहसुन व्यापारी नितिन चंडालिया का कहना है, कि आगामी दिनों में लहसुन की कीमत में और उछाल आएगा। साथ ही, यहां से लहसुन का निर्यात फिलहाल अन्य राज्यों में भी चालू हो चुका है। यह भी पढ़ें: मध्य प्रदेश के किसान लहसुन के गिरते दामों से परेशान, सरकार से लगाई गुहार

टमाटर के भाव में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है

बतादें, कि राजस्थान में लहसुन के भाव में काफी इजाफा दर्ज हुआ है। महाराष्ट्र राज्य में टमाटर भी काफी महंगा हो चुका है। 30 रुपये किलो में मिलने वाले टमाटर की कीमत फिलहाल 60 रुपये तक पहुँच चुका है। बतादें, कि टमाटर उत्पादक काफी प्रसन्न हैं। वर्तमान, व्यापारी कृषकों से ज्यादा कीमत पर टमाटर खरीद रहे हैं। कृषकों को पहले एक किलो टमाटर के लिए 2 से 3 रुपये मिला करते थे। लेकिन, फिलहाल उनको काफी अच्छा भाव अर्जित हो रहा है।

राजस्थान के इस जनपद में हजारों हेक्टेयर में लहसुन की खेती

जानकारी के लिए बतादें, कि विगत वर्ष राजस्थान में लहसुन की उपज का समुचित भाव नहीं मिला था। सरकार द्वारा बाजार हस्तक्षेप योजना को मंजूरी मिलने के पश्चात भी उत्पादकों को लहसुन की समुचित कीमत नहीं मिल पाई थी। बतादें, कि किसान 14 रुपये किलो की दर से लहसुन का विक्रय करने हेतु विवश थे। बतादें, कि राजस्थान में किसान 1.31 लाख हेक्टेयर भूमि में लहसुन का उत्पादन करते है। बारा, हाड़ौती, बूंदी, झालावाड़ और कोटा इलाकों में किसान सर्वाधिक लहसुन की खेती करते हैं। इन इलाकों से 90 प्रतिशत लहसुन का उत्पादन होता है। इसी कड़ी में बारा जनपद में उत्पादकों ने 30 हजार 420 हेक्टेयर भूमि पर लहसुन का उत्पादन किया है।
लहसुन का जैविक तौर पर उत्पादन करके 6 माह में कमाऐं लाखों

लहसुन का जैविक तौर पर उत्पादन करके 6 माह में कमाऐं लाखों

जैविक फल सब्जियों का बाजार के अंदर काफी अच्छा भाव मिलता है। ऐसी स्थिति में यदि आप लहसुन की खेती जैविक ढ़ंग से करते हैं, तो आप काफी मोटी आमदनी कमा सकते हैं। लहसुन की खेती काफी लाभदायक होती है। यदि आप इसकी खेती जैविक ढ़ंग से करते हैं, तो यह आपकी आमदनी को दोगुना कर सकती है। बाजार में रसायन मुक्त सब्जियों की काफी अधिक मांग होती है। लोग जैविक ढ़ंग से उगाई जाने वाली सब्जियों के लिए ज्यादा कीमत भी देने को तैयार रहते हैं। ऐसी स्थिति में आज हम आपको जैविक विधि से लहसुन की खेती करने के तरीके के विषय में बताने जा रहे हैं। जिस विधि को अपनाकर आप मोटी आमदनी कर सकते हैं।

जैविक ढ़ंग से खेत तैयार करना

लहसुन की जैविक खेती का उपयुक्त वक्त जुलाई माह की गर्मी में होता है। इस दौरान खेत की जुताई के उपरांत उसमें हरी खाद के साथ ढेंचा की बिजाई भी कर सकते हैं। आप इस बात का विशेष ख्याल रखें कि आप वक्त-वक्त पर हरी खाद के साथ मृदा को पलटते रहें। खेती के लिए मृदा में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। लहसुन की बिजाई के लिए मेढ़ निर्मित की जा सकती है। मेढ़ की लम्बाई जमीन के ढाल के अनुरूप ही तैयार करें।

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लहसुन की खेती के लिए जैविक खाद

खेत के उपजाऊपन में वृद्धि के लिए आप मृदा में सड़ी हुई गोबर की खाद एवं कम्पोस्ट को क्यारियों में मिला दें। आप स्वयं के घर पर नीम की पत्तियों से निर्मित खाद का भी उपयोग कर सकते हैं। खेत में कम्पोस्ट अथवा गोबर खाद का इस्तेमाल लहसुन की रोपाई के 15 से 20 दिन पश्चात ही कर दें।

लहसुन की फसल की सिंचाई

लहसुन की बिजाई के पश्चात इसकी प्रथम सिंचाई 8 से 10 दिन के उपरांत कर देनी चाहिए। इसकी बेहतरीन उपज पाने के लिए दूसरी सिंचाई को 20 से 25 दिन की समयावधि पर मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर करनी चाहिए। लहसुन की फसलों को सदैव निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती रहती है।

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लहसुन का भण्डारण

लहसुन की फसल को पककर तैयार होने में लगभग पांच से छह माह का वक्त लग जाता है। जब इसके पौधों की पत्तियों का रंग पीला नजर आने लगे तो इसकी सिंचाई बंद कर दें। साथ ही, कुछ दिनों के पश्चात इसकी मृदा से निकालना शुरु कर दें। इन गठिलें लहसून को तकरीबन 3 से 4 दिनों तक छाया में सूखने के लिए रख दें। वर्तमान में आप इसे घर की किसी सूखी जगह पर रख दें। यह लहसुन आगामी 6 से 8 महीनों तक भण्डारित करके रखा जा सकता है। एक एकड़ के खेत में आप सुगमता से इसकी खेती कर 2 से 3 लाख रुपये की आमदनी कर सकते हैं।
गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल (Flowering Plants to be sown in Summer)

गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल (Flowering Plants to be sown in Summer)

गर्मियों का मौसम सबसे खतरनाक मौसम होता है क्योंकि इस समय बहुत ही तेज गर्म हवाएं चलती हैं। इनसे बचने के लिए हम सभी का मन करता है की ठंडी और खुसबुदार छाया में बैठ कर आराम करने का। 

यही आराम हम बाहर बाग बागीचो में ढूंढतेहै ,लेकिन अगर आप थोड़ी सी मेहनत करे तो आप इन ठंडी छाया वाले फूलों का अपने घर पर भी बैठ कर आनंद ले सकते है।

गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल (Flowers to plant in the summer season:)

गर्मियों के मौसम की एक खास बात यह होती है को यह पौधों की रोपाई के लिए सबसे अच्छा समय होता है। तेज धूप में पौधे अच्छे से अपना भोजन बना पाते है।

साथ ही साथ उन्हें विकसित होने में भी कम समय लगता है। ऐसे में आप गेंदे का फूल , सुईमुई का फूल , बलासम का फूल और सूरज मुखी के फूल बड़ी ही आसानी से अपने घर के गार्डन में लगा सकते है। 

इससे आपको घर पर ही गर्मियों के मौसम में ठंडी और खुसबुदार छाया का आनंद मिल जायेगा।अब बात यह आती है की हम किस प्रकार इन फुलों के पौधों को अपने घर पर लगा पाएंगे। 

इसके लिए सबसे पहले आपको मिट्टी, फिर खाद और उर्वरक और अंत में अच्छी सिंचाई करनी होगी। साथ ही साथ हमे इन पौधों की कीटो और अन्य रोगों से भी रोकथाम करनी होगी। तो चलिए अब हम आपको बताते है आप प्रकार इन मौसमी फुलों के पौधों लगा सकते है।

गर्मियो में फूलों के पौधें लगाने के लिए इस प्रकार मिट्टी तैयार करें :-

mitti ke prakar

इसके लिए सबसे पहले आप जमीन की अच्छी तरह से उलट पलट यानी की पाटा अवश्य लगाएं।खेत को अच्छे से जोतें ताकि किसी भी प्रकार का खरपतवार बाद में परेशान न करे पौधों को।

मौसमी फूलों के पौधों के बीजों के अच्छे उत्पादन के लिए जो सबसे अच्छी मिट्टी होती हैं वह होते हैं चिकनी दोमट मिट्टी।इन फुलों को आप बीजो के द्वारा भी लगा सकते है और साथ ही साथ आप इनके छोटे छोटे पौधें लगाकर रोपाई भी कर सकते हैं। 

इसके अलावा बलुई दोमट मिट्टी का भी आप इस्तेमाल कर सकते है बीजों को पैदावार के लिए। इसके लिए आप 50% दोमट मिट्टी और 30% खाद और 20% रेतीली मिट्टी को आपस में अच्छे से तैयार कर ले। 

एक बार मिट्टी तैयार हो जाने के बाद आप इसमें बीजों का छिड़काव कर दे या फिर अच्छे आधा इंच अंदर तक लगा देवे। उसके बाद आप थोड़ा सा पानी जरूर देवे पौधों को।

गर्मियों में फूलों के पौधों को इस प्रकार खाद और उर्वरक डालें :-

khad evam urvarak

मौसमी फूलों के पौधों का अच्छे से उत्पादन करने के लिए आप घरेलू गोबर की खाद का इस्तमाल करे न की रासायनिक खाद का। रासायनिक खाद से पैदावार अच्छी होती है लेकिन यह खेत की जमीन को धीरे धीरे बंजर बना देती है। 

इसलिए अपनी जमीन को बंजर होने से बचाने के लिए आप घरेलू गोबर की खाद का ही इस्तमाल करे। यह फूलों के पौधों को सभी पोषक तत्व प्रोवाइड करवाती है।

100 किलो यूरिया और 100 किलो सिंगल फास्फेट और 60 किलो पोटाश को अच्छे मिक्स करके संपूर्ण बगीचे और गार्डन में मिट्टी के साथ मिला देवे। खाद और उर्वरक का इस्तेमाल सही मात्रा में ही करे । ज्यादा मात्रा में करने पर फुल के पौधों में सड़न आने लगती है।

गर्मियों में फूलों के पौधों की इस प्रकार सिंचाई करे :-

phool ki sichai

गर्मियों में पौधों को पानी की काफी आवश्यकता होती है। इसके लिए आप नियमित रूप से अपने बगीचे में सभी पौधों की समान रूप से पानी की सिंचाई अवश्य करें। 

पौधों को सिंचाई करना सबसे महत्वपूर्ण काम होता है, क्योंकि बिना सिंचाई के पौधा बहुत ही काम समय में जल कर नष्ट हो जायेगा। 

इसी के साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए की गर्मियों के मौशम में पौधों को बहुत ज्यादा पानी की आवश्यकता होती हैं और वहीं दूसरी तरफ सर्दियों के मौसम में फूलों को काफी कम पानी की आवश्यकता होती है। 

इन फूलों के पौधों की सिंचाई के लिए सबसे अच्छा समय जल्दी सुबह और शाम को होता है।सिंचाई करते समय यह भी जरूर ध्यान रखे हैं कि खेत में लगे पौधों की मिट्टी में नमी अवश्य होनी चाहिए ताकि फूल हर समय खिले रहें। क्यारियों में किसी भी प्रकार का खरपतवार और जरूरत से ज्यादा पानी एकत्रित ना होने देवे।

गर्मियों के फुलों के पौधों में लगने वाले रोगों से बचाव इस प्रकार करे :-

phoolon ke rogo se bachav

गर्मियों के समय में ना  केवल पौधों को गर्मी से बचाना होता है बल्कि रोगों और कीटों से भी बचाना पड़ता है।

  1. पतियों पर लगने वाले दाग :-

इस रोग में पौधों पर बहुत सारे काले और हल्के भूरे रंग के दाग लग जाते है। इस से बचने के लिए ड्यूथन एम 45 को 3 ग्राम प्रति लिटर में अच्छे से घोल बना कर 8 दिनों के अंतराल में छिड़काव करे। इस से सभी काले और भूरे दाग हट जाएंगे।
  1. पतियों का मुर्झा रोग :-

इस रोग में पौधों की पत्तियां धीरे धीरे मुरझाने लगती है और बाद में संपूर्ण पौधा मरने लग जाता है।इस से बचाव के लिए आप पौधों के बीजों को उगाने से पहले ट्राइको टर्म और जिनॉय के घोल में अच्छे से मिक्स करके उसके बाद लगाए। इस से पोधे में मुर्झा रोग नहीं होगा।
  1. कीटों से सुरक्षा :-

जितना पसंद फूल हमे आते है उतना ही कीटो को भी। इस में इन फूलों पर कीट अपना घर बना लेते है और भोजन भी। वो धीरे धीरे सभी पतियों और फुलों को खाना शुरू कर देते है। इस कारण फूल मुरझा जाते है और पोधा भी। इस बचाव के लिए आप कीटनाशक का प्रति सप्ताह 3 से 4 बार याद से छिड़काव करे।इससे कीट जल्दी से फूलों और पोधें से दूर चले जायेंगे।

गर्मियों में मौसम में इन फुलों के पौधों को अवश्य लगाएं अपने बगीचे में :-

गर्मियों के मौसम में लगाए जाने वाले फूल - सूरजमुखी (sunflower)
  1. सुरजमुखी के फुल का पौधा :-

सूरजमुखी का फूल बहुत ही आसानी से काफी कम समय में बड़ा हो जाता है। ऐसे में गर्मियों के समय में सुरज मुखी के फूल का पौधा लगाना एक बहुत ही अच्छी सोच हो सकती है। 

आप बिना किसी चिंता के आराम से सुरज मुखी के पौधे को लगा सकते हैं। गर्मियों के मौसम में तेज धूप पहले से ही बहुत होती है और सूरज मुखी को हमेशा तेज धूप की ही जरूरत होती हैं।

  1. गुड़हल के फूल का पौधा :-

गर्मियों के मौसम में खिलने वाला फूल गुड़हल बहुत ही सुंदर दिखता है घर के बगीचे में।गुड़हल का फूल बहुत सारे भिन्न भिन्न रंगो में पाया जाता हैं। 

गुड़हल का सबसे ज्यादा लगने वाला लाल फूल का पौधा होता है। यह न केवल खूबसूरती के लिए लगाया जाता है बल्कि इस से बहुत अच्छी महक भी आती है।

  1. गेंदे के फूल का पौधा :-

गेंदे का फूल बहुत ही खुसबूदार होता है और साथ ही साथ सुंदर भी। गेंदे के फूल का पौधा बड़ी ही आसानी से लग जाता है और इसे आप अपने घर के गार्डन में आराम से लगाकर सम्पूर्ण घर को महका सकते है।।

ये भी पढ़े: गेंदे के फूल की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

  1. बालासम के फूल का पौधा :-

बालासाम का पौधा काफी सुंदर होता है और इसमें लगने वाले रंग बिरंगे फूल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। यह फूल बहुत ही कम समय में खेलना शुरू हो जाते हैं यानी की रोपाई के बाद 30 से 40 दिनों के अंदर ही यह पौधा विकसित हो जाता है और फूल खिला लेता है।

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ (Sunflower Farming in Hindi)

सूरजमुखी किसानों के लिए बहुत ही मूल्यवान फसल मानी जाती हैं। सूरजमुखी की फसल से जुड़े विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां जिसको जानकर आप सूरजमुखी के बहुत सारे फायदे से जागरूक हो जाएंगे। किसानों के अनुसार सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है। किसानों का यह कहना है कि सूरजमुखी की फसल बेहतर मुनाफा देने वाली फसल है। जिसको आम भाषा में नकदी फसल भी कहा जाता है। प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार सूरजमुखी की पहली खेती उत्तराखंड के पंतनगर में हुई थी जिसका समय लगभग 1969 था। किसान सूरजमुखी की खेती खरीफ, रबी और जायद इन तीनों मौसमों में करते हैं। आइये जानते हैं सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ । कुछ सालों के अनुमान से यह कहा जा सकता है, कि सूरजमुखी की खेती किसानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई है। तथा किसान इसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि भी कर रहे हैं जिससे वह उचित मूल्य प्राप्त कर सकें। 

सूरजमुखी की कटाई मई महीने के अंत में ऐसे करें

किसान के लिए सूरजमुखी की फसल बहुत ही फायदेमंद होती है। इसीलिए वह इसकी खास देखभाल करते हैं और इसकी कटाई पर भी विशेष रूप से ध्यान देते हैं। ताकि इस फसल को किसी भी तरह का कोई नुकसान ना हो, जिससे उनको आगे नुकसान सहना पड़े। किसान सूरजमुखी की बुवाई फरवरी के महीने से करना शुरू कर देते हैं ताकि मई के आखिरी महीने में वह इस की कटाई कर अच्छी फसल को प्राप्त कर सकें। यदि सूरजमुखी की बुवाई सही टाइम पर ना करें। तो भारी बारिश हो जाने के बाद पैदावार में काफी हद तक नुकसान भी हो सकता है। सूरजमुखी की फसल की कटाई मई के अंत में करना बहुत ही उचित होता है। 

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सूरजमुखी के लिए जलवायु और भूमि

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ - sunflower farm -सूरजमुखी के लिए जलवायु और भूमि 

 सूरजमुखी की खेती के लिए अच्छी जलवायु और भूमि की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की फसलें खरीफ रबी जायद तीनों मौसमों में इसकी खेती की जाती है। सूरजमुखी की खेती के लिए शुष्क जलवायु की बहुत ही आवश्यकता होती है। सूरजमुखी की खेती आप किसी भी भूमि में कर सकते हैं। सूरजमुखी की खेती के लिए अम्लीय एवम क्षारीय भूमि उचित नहीं होती खेती के लिए। वैसे तो आप किसी भी मिट्टी में सूरजमुखी की खेती कर सकते हैं। लेकिन सूरजमुखी की खेती के लिए सबसे उचित दोमट मिट्टी होती है। 

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सूरजमुखी की फसल के लिए खेत को किस प्रकार तैयार करते हैं:

सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ : सूरजमुखी की फसल को तैयार करने के लिए किसान निम्न प्रकार से खेत को तैयार करते हैं जैसे: किसान सूरजमुखी की खेती जायद मौसम में करते हैं जिससे उनको नमी वाली भूमि की प्राप्ति हो सके। किसान भूमि की ऊपरी परत को चीरकर जुताई करने तथा बीज बोने की प्रक्रिया को शुरू करते है। खेत की पहली जुताई किसान हल द्वारा करते हैं। तीन से चार दिन बाद खेत की जुताई कल्टीवेटर से करना जरूरी होता है। मिट्टी का  भुरभुरा पन समय-समय पर देखते रहना चाहिए ताकि उस में नमी बरकरार रहे। 

सूरजमुखी की बुवाई:

surajmukhi ki buvai - सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ 

 सूरजमुखी की अच्छी फसल को प्राप्त करने के लिए आपको कुछ इस तरह से बुवाई करनी चाहिए: सर्वप्रथम आपको सबसे पहले बीज को रात में भिगोकर रखना होगा। भिगोने के बाद आपको करीबन 3 से 4 घंटा बीज को छांव में रखना होगा। शाम होने पर आपको सुखाई हुई बीज को बोना शुरू कर देना चाहिए। सूरजमुखी की फसल के लिए बीज की अलग-अलग मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। इसमें आपको संकुल या सामान्य बीजों की आवश्यकता पड़ती है।फसल की बुवाई के लिए आपको करीबन 12 से 15 किलोग्राम प्रति हैक्टर बीज लेना चाहिए। यदि आपको यह आभास हो जाए। कि बीज में जमाव की गुणवत्ता नहीं है तो आपको ज्यादा से ज्यादा बुवाई के लिए बीज लेनी चाहिए। सूरजमुखी की बुवाई के लिए लगभग 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रतिकिलो ग्राम बीज को शोधित कर लेना चाहिए।

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सूरजमुखी फसल की सिंचाई का समय:

फसल की अच्छी प्राप्ति के लिए सिंचाई का समय समय पर ध्यान रखना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। किसान सूरजमुखी फसल की पहली सिंचाई बुवाई करने के बाद 20 से 25 दिन के उपरांत करते हैं।किसान यह सिंचाई छिड़काव के रूप में भी करते हैं।10 से 15 दिन के बीच इसकी दोबार सिंचाई करनी होती है। सूरजमुखी फसल की सिंचाई करीबन 5 से 6 बार करनी होती है।जब खेतों में सूरजमुखी के फूल निकल आए तो हल्की सिंचाई करने चाहिए। ताकि पौधे जमीन में ना गिर सके। यदि आप भारी सिंचाई करेंगे तो पानी के प्रभाव से पौधे गिरने लगेंगे। 

सूरजमुखी की फसल के लिए मिट्टी की मात्रा :

सूरजमुखी की फसल के लिए लगभग 10 से 15 सेंटीमीटर मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन की टापड्रेसिंग करने के बाद पौधों पर यह मिट्टी चढ़ाई जाती है।किसान हमेशा इस चिंता में रहते हैं। कि सूरजमुखी का पौधा ना गिर जाए, क्योंकि यह  आकार में बहुत बड़ा होता है।जिसकी वजह से किसान को इनके गिरने का भय लगा रहता है।मिट्टी चढ़ाने से इनका संतुलन बराबर बना रहता है। 

सूरजमुखी फसल की सुरक्षा:

surajmukhi ki suraksha - सूरजमुखी की फसल के लिए उन्नत कृषि विधियाँ 

 फसल को कीटनाशक कीटों से सुरक्षा प्रदान करने तथा दीमक से बचाने के लिए कई तरह के रसायनों का प्रयोग किसान फसल की सुरक्षा के लिए करते हैं। किसान फसलों की सुरक्षा के लिए मिथाइल ओडिमेंटान में लगभग 1 लीटर तथा 25ई सी साथ ही साथ फेन्बलारेट 750 मिली लीटर  प्रति हैक्टर के साथ लगभग 800 से 100 लीटर पानी में मिक्स कर फसलों पर छिड़काव करते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा सूरजमुखी फसलों की सुरक्षा कीटों से होती है। इस पोस्ट में हमने सूरजमुखी फसल से जुड़ी विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां आपको दी है। जैसे मई के महीने में किस प्रकार सूरजमुखी फसल की कटाई कैसे करें, जलवायु और भूमि की उपयोगिता,  बुवाई तथा सिंचाई आदि की पूर्ण जानकारी, हमारी इस पोस्ट में मौजूद है। यदि आप हमारी दी हुई जानकारी से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं। तो कृपया आप ज्यादा से ज्यादा हमारी इस पोस्ट को अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें।

कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा 192 मीट्रिक टन गाय का गोबर

गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी - कुवैत में खेती के लिए भारत से जाएगा १९२ मीट्रिक टन गाय का गोबर

नई दिल्ली। गोवंश पालकों के लिए खुशखबरी है। अब गोवंश का गोबर बेकार नहीं जाएगा। सात समुंदर पार भी गोवंश के गोबर को अब तवज्जो मिलेगी। अब पशुपालकों को गाय के गोबर की उपयोगिता समझनी पड़ेगी। पहली बार देश से 192 मीट्रिक टन गोवंश का गोबर कुवैत में खेती के लिए जाएगा। गोबर को पैक करके कंटेनर के जरिए 15 जून से भेजना शुरू किया जाएगा। सांगानेर स्थित श्री पिंजरापोल गौशाला के सनराइज ऑर्गेनिक पार्क (
sunrise organic park) में इसकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।

कुवैत में जैविक खेती मिशन की शुरुआत होने जा रही है।

भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ (Organic Farmer Producer Association of India- OFPAI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता ने बताया कि जैविक खेती उत्पादन गो सरंक्षण अभियान का ही नतीजा है। जिसकी शुरुआत हो चुकी है। पहली खेप में 15 जून को कनकपुरा रेलवे स्टेशन से कंटेनर रवाना होंगे। श्री गुप्ता ने बताया कि कुवैत के कृषि विशेषज्ञों के अध्ययन के बाद फसलों के लिए गाय का गोबर बेहद उपयोगी माना गया है। इससे न केवल फसल उत्पादन में बढ़ोतरी होती है, बल्कि जैविक उत्पादों में स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिलता है। सनराइज एग्रीलैंड डवलेपमेंट को यह जिम्मेदारी मिलना देश के लिए गर्व की बात है।

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राज्य सरकारों की भी करनी चाहिए पहल

- गाय के गोबर को उपयोग में लेने के लिए राज्य सरकारों को भी पहल करनी चाहिए। जिससे खेती-किसानी और आम नागरिकों को फायदा होगा। साथ ही स्वास्थ्यवर्धक फसलों का उत्पादन होगा। प्राचीन युग से पौधों व फसल उत्पादन में खाद का महत्वपूर्ण उपयोग होता हैं। गोबर के एंटीडियोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होने के साथ-साथ 16 प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व भी पाए जाते हैं। गोबर इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सभी राज्य सरकारों को इसका फायदा लेना चाहिए।

गाय के गोबर का उपयोग

- प्रोडक्ट विवरण पारंपरिक भारतीय घरों में गाय के गोबर के केक का उपयोग यज्ञ, समारोह, अनुष्ठान आदि के लिए किया जाता है। इसका उपयोग हवा को शुद्ध करने के लिए किया जाता है क्योंकि इसे घी के साथ जलते समय ऑक्सीजन मुक्त करने के लिए कहा जाता है। गाय के गोबर को उर्वरक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। ये भी पढ़े : सीखें वर्मी कंपोस्ट खाद बनाना 1- बायोगैस, गोबर गैस : गैस और बिजली संकट के दौर में गांवों में आजकल गोबर गैस प्लांट लगाए जाने का प्रचलन चल पड़ा है। पेट्रोल, डीजल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्रोत हैं, किंतु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्रोत है। जब तक गौवंश है, अब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी। एक प्लांट से करीब 7 करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है जिससे करीब साढ़े 3 करोड़ पेड़ों को जीवनदान दिया जा सकता है। साथ ही करीब 3 करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड को भी रोका जा सकता है। 2- गोबर की खाद : गोबर गैस संयंत्र में गैस प्राप्ति के बाद बचे पदार्थ का उपयोग खेती के लिए जैविक खाद बनाने में किया जाता है। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। गोबर फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। ये भी पढ़े : सीखें नादेप विधि से खाद बनाना 3- गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है। कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 4- कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की उर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। 5- प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। 6- गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल में मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है। 7- गोबर के कंडे या उपले : वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है। कंडे पर रोटी और बाटी को सेंका जा सकता है। 8- गोबर का पाउडर के रूप में खजूर की फसल में इस्तेमाल करने से फल के आकार में वृद्धि के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है।

भारत मे 30% गोबर से बनते हैं उपले

- भारत में 30% गोबर से उपले बनते हैं। जो अधिकांश ग्रामीण अंचल में तैयार किए जाते हैं। इन उपलों को आग जलाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। जबकि ब्रिटेन में हर वर्ष 16 लाख यूनिट बिजली का उत्पादन किया जाता है। वहीं चीन में डेढ़ करोड़ परिवारों को घरेलू ऊर्जा के लिए गोबर गैस की आपूर्ति की जाती है। अमेरिका, नेपाल, फिलीपींस तथा दक्षिणी कोरिया ने भारत से जैविक खाद मंगवाना शुरू कर दिया है। -------- लोकेन्द्र नरवार
कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

सिरसा। किसानों के लिए वरदान बनी कपास की खेती को गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का खतरा हो सकता है। हरियाणा राज्य में कृषि विभाग ने इसके लिए अलर्ट जारी किया है। 

सरकार ने कपास की खेती करने वाले सभी किसान भाईयों को गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को बचाने के लिए निर्देश भी दिए हैं। पिछले दो साल से कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। 

कपास ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। जिसके चलते किसानों में लगातार कपास की खेती के प्रति रुचि बढ़ रही है। अकेले सिरसा जिले में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जा रही है।

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क्या है गुलाबी सुंडी?

- कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी सुंडी (इल्ली) पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। 

वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं। अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। करीब 4 से 5 दिन में लार्वा अंडे से बाहर निकल आते हैं। और तुरंत ही कपास की कलियों या बीजकोष में घुस जाते हैं। और फिर करीब 12 से 14 दिन तक फसल को खाता है।

कैसे करें गुलाबी सुंडी से बचाव?

1- जैविक नियंत्रण के अनुसार पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से प्राप्त सेक्स फेरोमोन्स का संक्रमित खेत में छिड़काव करने से गुलाबी सुंडी की क्षमता और तादात कम होती है। 

2- रासायनिक नियंत्रण के अनुसार इन गुलाबी पतंगों को मारने के लिए क्लोरपाइरिफास, एस्फेंवैलेरेट या इंडोक्साकार्ब के कीटनाशक फार्मूलेशन का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।

 3- कीट के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित कपास के पौधों पर निगरानी रखें।

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4- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली वैरायटी का उपयोग करें, ताकि सीजन शुरू होने से पहले ही फसल की उपज मिल जाए। आमतौर पर गुलाबी सुंडी सीजन में ज्यादा जोर पकड़ती है।

5- कीटनाशक दवाओं का सावधानी से प्रयोग करें, ताकि कोई नुकसान न हो। 

6- कटाई के तुरंत बाद पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। 

7- ध्यान रहे कि कभी भी दो रासायनिक पदार्थों को मिलाकर छिड़काव न करें। इससे फसल को नुकसान संभावना बढ़ जाती है। 8- अधिकांश तौर पर नीम आधारित दवाओं का इस्तेमाल करें। 

 ------- लोकेन्द्र नरवार

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

लक्ष्य की आधी हुई कपास की खेती, गुलाबी सुंडी के हमले से किसान परेशान

मुआवजा न मिलने से किसानों ने लगाए आरोप

भूजल एवं कृषि
भूमि की उर्वरता में क्षय के निदान के तहत, पारंपरिक खेती के साथ ही फसलों के विविधीकरण के लिए, केंद्र एवं राज्य सरकारें फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। इसके बावजूद हैरानी करने वाली बात है कि, सरकार से सब्सिडी जैसी मदद मिलने के बाद भी किसान फसल विविधीकरण के तरीकों को अपनाने से कन्नी काट रहे हैं।

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क्या वजह है कि किसान को फसल विविधीकरण विधि रास नहीं आ रही? क्यों किसान इससे दूर भाग रहे हैं? इन बातों को जानिये मेरी खेती के साथ। लेकिन पहले फसल विवधीकरण की जरूरत एवं इसके लाभ से जुड़े पहलुओं पर गौर कर लें।

फसल विविधीकरण की जरूरत

खेत पर परंपरागत रूप से साल दर साल एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है। एक ही तरह की फसलें उपजाने वाला किसान एक ही तरह के रसायनों का उपयोग खेत में करता है। इससे खेत के पोषक तत्वों का रासायनिक संतुलन भी गड़बड़ा जाता है।

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भूमि, जलवायु, किसान का भला

यदि किसान एक सी फसल की बजाए भिन्न-भिन्न तरह की फसलों को खेत में उगाए तो ऐसे में भूमि की उर्वरकता बरकरार रहती है। निवर्तमान जैविक एवं प्राकृतिक खेती की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से भी भूमि, जलवायुु संग कमाई के मामले में किसान की स्थिति सुधरी है।

नहीं अपना रहे किसान

पंजाब सरकार द्वारा विविधीकृत कृषि के लिए किसानों को सब्सिडी प्रदान करने के बावजूद किसान कृषि की इस प्रणाली की ओर रुख नहीं कर रहे है। प्रदेश में आलम यह है कि यहां कुछ समय तक विविधीकरण खेती करने वाले किसान भी अब पारंपरिक मुख्य खेती फसलों की ओर लौट रहे हैं।

किसानों को नुकसान

पंजाब सरकार खरीफ कृषि के मौसम में पारंपरिक फसल धान की जगह अन्य फसलों खास तौर पर कम पानी में पैदा होने वाली फसलों की फार्मिंग को सब्सिडी आदि के जरिए प्रेरित कर रही है।

सब्सिडी पर नुकसान भारी

सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के मुकाबले विविधीकृत फसल पर कीटों के हमले से प्रभावित फसल का नुकसान भारी पड़ रहा है।

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पंजाब के किसानों क मुताबिक उन्हें विविधीकरण कृषि योजना के तहत सब्सिडी आधारित फसलों पर कीटों के हमले के कारण पैदावार कम होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस कारण उन्होंने फसल विविधीकरण योजना एवं इस किसानी विधि से दूसी अख्तियार कर ली है।

कपास का लक्ष्य अधूरा

पंजाब कृषि विभाग द्वारा संगरूर जिले में तय किया गया कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है। कपास के लिए निर्धारित 2500 हेक्टेयर खेती का लक्ष्य यहां अभी तक आधा ही है।

पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी)

किसान कपास की खेती का लक्ष्य अधूरा होने का कारण पिंक बॉलवर्म का हमला एवं खराब मौसम की मार बताते हैं।

गुलाबी सुंडी क्या है

गुलाबी सुंडी (गुलाबी बॉलवार्म), पिंक बॉलवर्म या गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm-PBW) कीट कपास का दुश्मन माना जाता है। इसके हमले से कपास की फसल को खासा नुकसान पहुंचता है। किसानो के मुताबिक, संभावित नुकसान की आशंका ने उनको कपास की पैदावार न करने पर मजबूर कर दिया। एक समाचार सेवा ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि, जिले में 2500 हेक्टेयर कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है, अभी तक केवल 1244 हेक्टेयर में ही कपास की खेती हो पाई है।

7 क्षेत्र पिंक बॉलवर्म प्रभावित

विभागीय तौर पर फिलहाल अभी तक 7 क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म के हमलों की जानकारी ज्ञात हुई है। विभाग के अनुसार कपास के कुल क्षेत्र के मुकाबले प्रभावित यह क्षेत्र 3 प्रतिशत से भी कम है।

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नुकसान आंकड़ों में भले ही कम हो, लेकिन पिछले साल हुए नुकसान और मुआवजे संबंधी समस्याओं के कारण भी न केवल फसल विविधीकरण योजना से जुड़े किसान अब योजना से पीछे हट रहे हैं, बल्कि प्रोत्साहित किए जा रहे किसान आगे नहीं आ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में किसानों ने बताया कि, पिछली सरकार ने पिंक बॉलवर्म के हमले से हुए नुकसान के लिए आर्थिक सहायता देने का वादा किया था।

नहीं मिला धान का मुआवजा

भारी बारिश से धान की खराब हुई फसल के लिए मुआवजे से वंचित किसान प्रभावित 47 गांवों के किसानों की इस तरह की परेशानी पर नाराज हैं।

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बार-बार नुकसान वजह

किसानों की फसल विविधीकरण योजना से दूरी बनाने का एक कारण उन्हें इसमें बार-बार हो रहा घाटा भी बताया जा रहा है। दसका गांव के एक किसान के मुताबिक इस वर्ष गेहूं की कम उपज से उनको बड़ा झटका लगा। पिछले दो सीजन से नुकसान होने की जानकारी किसानों ने दी है। कझला गांव के एक किसान ने खेती में बार-बार होने वाले नुकसान को किसानों को नई फसलों की खेती के प्रयोग से दूर रहने के लिए मजबूर करने का कारण बताया है। उन्होंने कई किसानों का उदाहरण सामने रखने की बात कही जो, फसल विविधीकरण के तहत अन्य फसलों के लिए भरपूर मेहनत एवं कोशिशों के बाद वापस धान-गेहूं की खेती करने में जुट गए हैं। किसानों के अनुसार फसल विविधीकरण के विस्तार के लिए प्रदेश में सरकारी मदद की कमी स्पष्ट गोचर है।

सिर्फ जानकारी से कुछ नहीं होगा

इलाके के किसानो का कहना है कि, जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए सिर्फ जानकारी प्रदान करने से लक्ष्य पूरे नहीं होंगे। उनके मुताबिक कृषि अधिकारी फसलों की जानकारी तो प्रदान करते हैं, लेकिन फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन राशि के साथ अधिकारी किसानों के पास बहुत कम पहुंचते हैं।

हां नुकसान हुआ

किसान हित के प्रयासों में लगे अधिकारियों ने भी क्षेत्र में फसलों को नुकसान होने की बात कही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसानों को हो रहे नुकसान को उन्होंने भी फसल विविधीकरण नहीं अपनाने की वजह माना है। नाम पहचान की गोपनीयता रखने की शर्त पर कृषि विकास अधिकारी ने बताया कि, फसल के नुकसान की वजह से कृषक फसल विविधीकरण कार्यक्रम में अधिक रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि, केवल 1244 हेक्टेयर भूमि पर इस बार कपास की खेती की जा सकी है।
कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

कैसे करें सूरजमुखी की खेती? जानें सबसे आसान तरीका

रबी का सीजन शुरू हो चुका है, सीजन के शुरू होने के साथ ही रबी की फसलों की बुवाई भी बड़ी मात्रा में शुरू हो चुकी है। इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं सूरजमुखी या सूर्यमुखी (Sunflower) की खेती की सम्पूर्ण जानकारी ताकि किसान भाई इस बार रबी के सीजन में सूरजमुखी की खेती करके ज्यादा से ज्यादा लाभ कमा सकें। अभी भारत में मांग के हिसाब से सूरजमुखी का उत्पादन नहीं होता है, इसलिए भारत सरकार को घरेलू आपूर्ति के लिए विदेशों से सूरजमुखी आयत करना पड़ता है, ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। भारत में इसकी खेती सबसे पहले साल साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी, जिसके बाद अच्छे परिणाम प्राप्त होने पर देश भर में इसकी खेती की जाने लगी। फिलहाल महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, आंधप्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा और पंजाब के किसान सूरजमुखी की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में हर साल लगभग 15 लाख हेक्टेयर पर सूरजमुखी की खेती की जाती है, साथ ही देश के किसान इसकी खेती से 90 लाख टन की पैदावार लेते हैं। अगर सूरजमुखी की खेती में औसत पैदावार की बात करें तो 1 हेक्टेयर में 7 क्विंटल सूरजमुखी के बीजों का उत्पादन होता है। सूरजमुखी एक तिलहनी फसल है, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इसकी खेती सर्दी के सीजन में की जाए तो अच्छी पैदावार निकाली जा सकती है।


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सूरजमुखी की खेती के लिए खेत की तैयारी कैसे करें

खेत तैयार करने से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करवा लें, यदि खेत की मिट्टी ज्यादा अम्लीय या ज्यादा क्षारीय है तो उस जमीन में सूरजमुखी की खेती करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। इसके साथ ही विशेषज्ञों से उर्वरक के इस्तेमाल की सलाह जरूर लें ताकि जरुरत के हिसाब से खेत की मिट्टी में पर्याप्त उर्वरक इस्तेमाल किये जा सकें। खेत तैयार करते समय ध्यान रखें कि खेत से पानी की निकासी का सम्पूर्ण प्रबंध होना चाहिए। इसके बाद गहरी जुताई करें और खेत को समतल करके बुवाई के लिए तैयार कर लें।

सूरजमुखी की खेती के लिए बाजार में उपलब्ध उन्नत किस्में

ऐसे तो बाजार में सूरजमुखी के बीजों की कई किस्में उपलब्ध हैं, लेकिन अधिक और अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिये किसान कंपोजिट और हाइब्रिड किस्मों का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार की उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करने पर सूरजमुखी की खेती 90 से 100 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है, और उसके बीजों में तेल का प्रतिशत भी 40 से 50 फीसदी के बीच होता है। अगर बेस्ट किस्मों की बात करें तो किसान भाई सूरजमुखी की बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19 और सूर्या किस्मों का चयन कर सकते हैं।


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सूरजमुखी की बुवाई कैसे करें

सूरजमुखी की बुवाई रबी सीजन की शुरुआत में की जाती है। अगर माह की बात करें तो अक्टूबर का तीसरा और चौथा सप्ताह इसके लिए बेहतर माना गया है। इसकी बुवाई से पहले बीजों का उपचार कर लें ताकि बुवाई के समय किसानों के पास बेस्ट किस्म के बीज उपलब्ध हों। सूरजमुखी के बीजों की बुवाई छिड़काव और कतार विधि दोनों से की जा सकती है। लेकिन भारत में कतार विधि, छिड़काव विधि की अपेक्षा बेहतर मानी गई है। कतार विधि का प्रयोग करने से खेती के प्रबंधन में आसानी रहती है। इसके लिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लाइनों के बीच 4-5 सेमी और बीजों के बीच 25-30 सेमी का फासला रखना चाहिए।

सूरजमुखी की खेती में खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल कैसे करें

जैविक खाद एवं उर्वरक किसी भी खेती के उत्पादन को बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी होते हैं। इसलिए सूरजमुखी की खेती में भी इन चीजों का उपयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है। सूरजमुखी के बीजों का क्वालिटी प्रोडक्शन प्राप्त करने के लिए 6 से 8 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें। इसके साथ विशेषज्ञ 130 से 160 किग्रा यूरिया, 375 किग्रा एसएसपी और 66 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।


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सूरजमुखी की खेती में सिंचाई किस प्रकार से करें

सुरजमुखी की खेती में सामान्य सिंचाई की दरकार होती है। इसकी खेती में 3 से 4 सिंचाईयां पर्याप्त होती हैं। इस खेती में यह सुनिश्चित करना बेहद अनिवार्य है कि खेत में नमी बनी रहे, ताकि पौधे बेहचर ढंग से पनप पाएं। सूरजमुखी की फसल में पहली सिंचाई 30-35 दिन के अंतराल में करनी होती है। इसके बाद हर तीसरे सप्ताह इस फसल में पानी देते रहें। इस फसल में फूल आने के बाद भी हल्की सिंचाई की दरकार होती है। यह एक फूल वाली खेती है इसलिए इसमें कीटों का हमला होना सामान्य बात है। इस फसल में एफिड्स, जैसिड्स, हरी सुंडी व हेड बोरर जैसे कीट तुरंत हमला बोलते हैं। जिससे सूरजमुखी के पौधों को रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसे रोग घेर लेते हैं। इसके अलावा इस खेती में पक्षियों का हमला भी आम बात है। फूलों में बीज आने के बाद पक्षी भी बीज चुन लेते हैं, ऐसे में किसानों को विशेषज्ञों से सलाह लेनी चाहिए ताकि वो इन परेशानियों से निपट पाएं। बुवाई के लगभग 100 दिनों बाद सूरजमुखी की खेती पूरी तरह से तैयार हो जाती है। इसके फूल बड़े होकर पूरी तरह से पीले हो जाते है। फूलों की पंखुड़ियां झड़ने के बाद किसान इस खेती की कटाई कर सकते हैं। कटाई करने के बाद इन फूलों को 4 से 5 दिन तक तेज धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद मशीन की सहायता से या पीट-पीटकर फूलों के बीजों को अलग कर लिया जाता हैं। अगर पैदावार की बात करें तो अच्छी परिस्थियों में किसान भाई उन्नत किस्मों और आधुनिक खेती के साथ एक हेक्टेयर में 18 क्विंटल तक सूरजमुखी के बीजों की पैदावार ले सकते हैं। सामान्य परिस्थियों में यह पैदावार 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।


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हाल ही में भारत सरकार ने सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी कर दी है। इस लिहाज से अब सूरजमुखी की खेती करके किसान भाई पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई कर सकते हैं। सरकार ने रबी सीजन के लिए सूरजमुखी के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 209 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है। इस हिसाब से अब किसान भाइयों के लिए सूरजमुखी के बीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
इस फूल की खेती से किसान तिगुनी पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

इस फूल की खेती से किसान तिगुनी पैदावार लेकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई आजकल कम खर्च में अधिक आय देने वाली फसलों की कृषि को अधिकाँश तवज्जो दे रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसानों के मध्य फूलों का उत्पादन को लेकर लोकप्रियता बहुत बढ़ी है। इसी क्रम में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के किसान उच्च स्तर पर सूरजमुखी की कृषि से मोटी आय अर्जित कर रहे हैं। रबी फसलों की कटाई केवल कुछ दिनों के अंदर ही चालू होने वाली है। इसके उपरांत कुछ माह खेत खाली रहेंगे, उसके उपरांत खरीफ की फसलों की खेती की शुरुआत हो जाएगी। रबी फसलों की कृषि आरंभ हो जाएगी। रबी फसलों की कटाई एवं खरीफ फसलों की बुवाई के मध्य किसान नगदी फसलों का उत्पादन कर सकते हैं। इसके चलते आप मार्च माह में सूरजमुखी के पौधों की भी कृषि कर सकते हैं। इस फसल की खेती पर भारत सरकार द्वारा अनुदान भी दिया जाता है।

सूरजमुखी के फूल की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी कौन-सी है

सूरजमुखी का पौधा तिलहन फसलों के अंतर्गत आता है। सूरजमुखी को साल में तीन बार उगाया जा सकता है। तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र में इसका उत्पादन बड़े रकबे पर की जाती है। रेतीली दोमट मिट्टी एवं काली मिट्टी इसके उत्पादन हेतु सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। जिस भूमि पर इसका खेती की जाती है। उसका पीएच मान 6.5 एवं 8.0 के मध्य होना आवश्यक है।

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सूरजमुखी के बीज का उपचार किस प्रकार होता है

खेतों में सूरजमुखी के बीज रोपने से पूर्व उसका उपचार करना काफी आवश्यक है। नहीं तो, विभिन्न बीज जनित बीमारियों से आपकी फसल प्रभावित होकर नष्ट हो सकती है। सर्व प्रथम सूरजमुखी के बीजों को साधारण जल में 24 घंटे के लिए भिगो दें एवं उसके बाद बुवाई से पूर्व छाया में सुखा लें। बीजों पर थीरम 2 ग्राम प्रति किग्रा व डाउनी फफूंदी से संरक्षण हेतु मेटालैक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो अवश्य छिड़कें। इसके उपरांत ही एक निश्चित दूरी की क्यारियों में इसकी बुवाई करें। बुवाई के उपरांत जब पौधा निकल आए तब 20 से 25 दिनों के समयांतराल पर इसकी सिंचाई करते रहें।

सूरजमुखी फूल तैयार होकर कटाई के लिए कब तैयार हो जाता है

सूरजमुखी की फसल की कटाई तब की जाती है, जब समस्त पत्ते सूख जाते हैं। साथ ही, सूरजमुखी के फूल के सिर का पिछला हिस्सा नींबू पीला पड़ जाता है। समय लगने पर दीमक का संक्रमण हो सकता है एवं फसल नष्ट हो सकती है। सूरजमुखी के पौधे से तेल निकालने के अतिरिक्त औषधियों तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कृषक इस फसल से कम खर्च, कम समय में लाखों की आय कर सकते हैं।

फूलों के उत्पादन से किसान लाखों कमा सकते हैं

फूलों के उत्पादन से किसान भाई काफी अच्छी आमदनी कर सकते हैं। यह बात अब किसान समझने भी लगे हैं। इसलिए आजकल किसान फूलों की खेती करने की दिशा में अपनी काफी रूचि दिखा रहे हैं। भारत के अधिकांश किसान आज भी परंपरागत खेती किया करते हैं। जिसकी वजह से किसानों को कोई खास प्रगति या उन्नति नहीं मिल पाती है। किसान भाई काफी सजग और जागरूक दिखाई दे रहे हैं। तभी आज फूलों की खेती के रकबे मे काफी वृद्धि देखने को मिल रही है।
इस राज्य के कई गांवों में पशुओं को रविवार की छुट्टी देने की परंपरा चली आ रही है

इस राज्य के कई गांवों में पशुओं को रविवार की छुट्टी देने की परंपरा चली आ रही है

झारखंड राज्य के 20 गांवों में पशुओं की देखरेख और सेहत के लिहाज से स्वस्थ्य परंपरा जारी है। ग्रामीण इस अवसर पर अपने पशुओं से किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं लेते हैं। यहां तक कि ग्रामीण अपनी गाय-भैंस का दूध भी नहीं निकालते हैं। झारखंड राज्य के 20 से ज्यादा गांवों में पशुओं को भी एक दिन का अवकाश प्रदान किया जाता है। इनका भी आम लोगों की तरह रविवार को आराम का दिन होता है। क्योंकि रविवार के दिन इन मवेशियों से किसी भी प्रकार का कोई काम नहीं लिया जाता है। लोतहार जनपद के 20 गांवों में पशुओं की यह छुटटी रविवार के दिन होती है। इस दिन गाय-भैंसों का दूध भी नहीं निकाला जाता है।

पशुपालक रोपाई और खुदाई भी अपने आप करते हैं

पशुपालक रविवार के दिन अपने समस्त पशुओं की खूब सेवा किया करते हैं। पशुओं को काफी बेहतरीन आहार प्रदान किया जाता है। पशुपालक रविवार के दिन स्वयं ही कुदाल लेकर के खेतोें में पहुँच जाते हैं। पशुपालक स्वयं ही जाकर के खेतों में कार्य करते हैं। किसी भी स्थिति में मवेशियों को रोपाई अथवा बाकी कामों हेतु खेत पर नहीं ले जाते हैैं। किसान भाई इस दिन अपने आप ही कार्य करना पसंद करते हैं।

इस परंपरा को चलते 100 वर्ष से भी अधिक समय हो गया

आपको बतादें कि स्थानीय लोगों के बताने के अनुसार, यह परंपरा उनको उनके बुजुर्गों से मिली है। जो कि 100 वर्ष से ज्यादा वक्त से चलती आ रही है। वर्तमान में नई पीढ़ियां इस परंपरा का पालन कर रही हैं। पशु चिकित्सकों ने बताया है, कि यह एक बेहतरीन सकारात्मक परंपरा है। जिस प्रकार मनुष्यों को सप्ताह में एक दिन विश्राम हेतु चाहिए। उसी तरह पशुओं को भी विश्राम अवश्य मिलना चाहिए।

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परंपरा को शुरू करने के पीछे क्या वजह थी

ग्रामीणों का कहना है, कि लगभग 100 वर्ष पूर्व खेत की जुताई करने के दौरान एक बैल की मृत्यु हो गई थी। इस घटना की वजह से गांववासी काफी गंभीर हो गए थे। इसके संबंध में गांव में एक बैठक की गई। बैठक के दौरान यह तय किया गया कि एक सप्ताह में पशुओं को एक दिन आराम करने के लिए दिया जाएगा। रविवार का दिन पशुओं को अवकाश देने के लिए तय किया गया था। तब से आज तक रविवार के दिन पशुओं से किसी भी तरह का कोई काम नहीं लिया जाता है। गांव के समस्त पशु रविवार में दिनभर केवल विश्राम किया करते हैं।