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इस तरीके से करें चौलाई की उन्नत खेती (cultivation of amaranth), गर्मी के मौसम में होगी मनचाही कमाई

इस तरीके से करें चौलाई की उन्नत खेती (cultivation of amaranth), गर्मी के मौसम में होगी मनचाही कमाई

किसी भी फसल को तैयार करने के लिए किसान भाइयों आपको सबसे अधिक मेहनत करनी पड़ती है लेकिन आपको अपनी मेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाता है। यदि आप कम लागत में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो चौलाई की फसल के जरिए अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। चौलाई की फसल भारत के कई क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस फसल को शहरी क्षेत्रों के आसपास सबसे ज्यादा उगाया जाता है। यह फसल पत्तियों वाली सब्जियों की मुख्य फसल है जिसका इस्तेमाल आलू के साथ-साथ या अन्य भुजी के रूप में किया जाता है। इसके अलावा लड्डू के रूप में भी चौलाई का प्रयोग किया जाता है। यदि आप चौलाई की फसल करना चाहते हैं तो आपके लिए यह फसल काफी फायदेमंद होगी।आज हम आपको इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे हैं कि, आप चौलाई की खेती कैसे कर सकते हैं और इसकी खेती करने के क्या-क्या फायदे हैं। तो आइए जानते हैं चौलाई की खेती करने की संपूर्ण जानकारी।

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चौलाई की उन्नत खेती (Cultivation of Amaranth)

चौलाई की खेती का परिचय

चौलाई पत्तियों वाली सब्जियों की प्रमुख फसल में से एक है। इस सब्जी का उत्पादन न सिर्फ भारत बल्कि मध्य एवं दक्षिणी अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका साथ ही दक्षिणी पूर्वी एशिया में भी किया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि चौलाई की करीब 685 प्रजाति है जो एक दूसरे से काफी अलग-अलग है। चौलाई की पैदावार हिमालय क्षेत्रों में अधिक होती है। दरअसल यह एक गर्म मौसम में तैयार की जाने वाली फसल है। जबकि इसकी कई किस्में ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में भी उगाई जाती है।

चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

बता दें, चौलाई की खेती जलभराव वाली मिट्टी में नहीं की जा सकती है। दरअसल जलभराव वाले खेतों में चौलाई के पौधे अच्छे से विकसित नहीं हो पाते हैं, ऐसे में यह पकने से पहले ही खराब हो जाती है। इसकी खेती कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और जल निकासी वाली भूमि में ही होती है। इसका सही उत्पादन करने के लिए भूमि का PH मान करीब 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

चौलाई की खेती के लिए जलवायु और तापमान

चौलाई की खेती गर्मी के मौसम में की जाती है, जबकि सर्दी का मौसम चौलाई की खेती के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। चौलाई का उत्पादन शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में किया जा सकता है। बता दें, चौलाई के पौधों को अंकुरित होने के लिए करीब 20 से 25 डिग्री के बीच तापमान की आवश्यकता होती है। इसके बाद जब पौधे अंकुरित हो जाते हैं तब उनके विकास के लिए करीब 30 डिग्री के आसपास तापमान सही माना जाता है। हालांकि गर्मी के मौसम में अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर भी चौलाई के पौधे अपने आप विकास कर लेते हैं, लेकिन इस दौरान आपको इसकी सिंचाई पर भी अधिक ध्यान देना होता है।

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कितनी होती है चौलाई की किस्में?

chaulaee kee khetee वैसे तो मार्केट में चौलाई की कई किस्में आसानी से उपलब्ध हो जाती है लेकिन कम समय में और अधिक मात्रा में पैदावार करने के लिए इन निम्न किस्मों का अधिक उत्पादन किया जाता है।
  • कपिलासा

कपिलासा चौलाई की एक ऐसी किस्म है जो जल्द ही पैदा हो जाती है। इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है। चौलाई की इस किस्म के पौधे की लंबाई 2 मीटर के आसपास होती है। इस किस्म की चौलाई बुवाई के करीब 30 से 40 दिन बाद ही सब्जी के रूप में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
  • बड़ी चौलाई

इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा तैयार किया गया है। इसके पौधे के तने का आकार थोड़ा मोटा पाया जाता है और इसकी पत्तियां भी बड़े आकार की होती है। वहीं इसके तने और पत्तियों का रंग हरा होता है। गर्मी के मौसम में इस किस्म के पौधे अधिक पैदावार देते हैं।
  • छोटी चौलाई

छोटी चौलाई की किस्म भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा ही तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधों की लंबाई बाकी किस्म के पौधों से थोड़ी कम होती है और इसकी पत्तियों का आकार भी थोड़ा छोटा होता है। इस किस्म की चौलाई को बारिश के मौसम में उगाना सबसे अच्छा माना जाता है।
  • अन्नपूर्णा चौलाई

चौलाई की यह एक ऐसी किस्म है जिसे अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है। इसके पौधे की ऊंचाई करीब 2 मीटर के आसपास होती है। इस किस्म की चौलाई को हरी फसल के रूप में ही काटना सबसे उपयुक्त माना जाता है। यह किस्म बीज बोने के करीब 30 से 35 दिन बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
  • पूसा लाल चौलाई

इस किस्म की चौलाई के पौधों की पत्तियों का रंग लाल जबकि डंठल का रंग हरा होता है। इसकी पत्तियों का आकार काफी बड़ा होता है। इस किस्म की सबसे खास बात यह है कि, इसका उत्पादन बरसात और गर्मी दोनों ही मौसम में किया जा सकता है। यह फसल बोने के करीब लगभग 30 दिन बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
  • सुवर्णा चौलाई

सुवर्णा चौलाई की एक ऐसी किस्म है जो उत्तर भारत में सबसे ज्यादा उगाई जाती है। इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 क्विंटल के आसपास होता है। सुवर्णा किस्म की चौलाई बोने के करीब 80 से 90 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
  • गुजराती अमरेंथ 2

चौलाई की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार के लिए जानी जाती है। इस किस्म के पौधे रोपने के करीब लगभग 3 महीने बाद ही कटने के लिए तैयार हो जाते हैं। बता दें, इस किस्म का उत्पादन सबसे ज्यादा गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में किया जाता है। इसके अलावा भी बाजार में कई किस्मों में चौलाई मौजूद हैं जिन्हें अलग-अलग मौसम के आधार पर पैदा किया जाता है। chaulaee kee khetee

कैसे करें चौलाई के पौधों की सिंचाई?

चौलाई के बीज रोपने के बाद इसमें तुरंत पानी नहीं देना चाहिए। यदि आप सुखी भूमि में बीच की रोपाई करते हैं तो तुरंत पानी देना सही है और अंकुरित होने तक खेतों में नमी बनाए रखें। बीजों के अंकुरित होने के बाद आप पहली सिंचाई रुपाई के 20 से 25 दिन बाद कर दें। यदि आप इसकी हरी पत्ती के रूप में फसल चाहते हैं तो इसके पौधों को गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार जरूर पानी दे।

कैसे करें चौलाई के खरपतवार पर नियंत्रण?

इस फसल की अच्छी पैदावार के लिए आपको खरपतवार नियंत्रण पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। दरअसल खरपतवार में पाए जाने वाले कीड़े इसकी पत्तियों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं जिससे इसकी गुणवत्ता और पैदावार में कमी हो जाती है। इसके लिए आप सबसे पहले बीज बोने के करीब 10 से 12 दिन बाद ही खेत में हल्की गुड़ाई कर दें। इसके बाद दूसरी गुड़ाई 40 दिन बाद कर देनी चाहिए। गुड़ाई करने के दौरान चौलाई के पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। ये भी पढ़े : जौ की खेती में फायदा ही फायदा

चौलाई के लिए खाद की सही मात्रा

चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए गोबर की खाद सबसे अच्छी मानी जाती है। ऐसे में आप 15 से 20 ट्राली प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद खेत में डालें। जबकि रासायनिक उर्वरक 25 किलो डाई अमोनियम फास्फेट 80 से 100 किलो प्रति हेक्टेयर में डालें। चौलाई में तना वीविल, तंबाकू की सुंडी, पर्ण जालक जैसे कीट का अधिक प्रकोप देखने को मिलता है। ऐसे में आप जैविक कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं।

चौलाई की बुवाई का सही समय

बता दें, उत्तरी भारत में चौलाई को करीब 2 बार बोया जाता है। यहां पर पहली बुवाई फरवरी से मार्च के बीच और दूसरी बुवाई जुलाई में कर दी जाती है। मार्च और फरवरी के बीच बुवाई करने से गर्मी के मौसम में इसकी पत्तियां खाने को मिल जाती है, वहीं जुलाई में बुवाई करने के दौरान वर्षा ऋतु के मौसम में इसकी पत्तियां खाने को मिल जाती है। चौलाई की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए आप इसकी बुवाई पंक्तियों में करें। बता दें, एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति की दूरी करीब 50 सेंटीमीटर जबकि पौधे से पौधे की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर होनी चाहिए।

फसल की कटाई करने का सही समय

चौलाई के पौधे की कटाई अलग-अलग समय पर की जाती है। दरअसल इसकी कटाई आपके द्वारा बोई गई किस्मों पर निर्भर होती है। बता दें, चौलाई की लाल और हरी पत्तियों का इस्तेमाल करने के लिए आप इसकी कटाई बुवाई के करीब 25 से 20 दिन बाद ही कर ले। यदि आप इसकी पत्तियों की गुणवत्ता अच्छी चाहते हैं तो इसकी तीन से चार बार कटाई कर ले। इसके अलावा जब आप दानों की पैदावार के लिए फसल चाहते हैं तो जब इसकी बालियां पीली पड़ने लगे तो आप इसकी कटाई कर ले। चौलाई की फसल करीब 90 से 100 दिनों में आराम से तैयार हो जाती है।

चौलाई की पैदावार और लाभ

चौलाई की फसल से आप अपनी इच्छा अनुसार लाभ कमा सकते हैं। दरअसल इस फसल की कटाई किसान भाई 2 से 3 बार कर सकते हैं। इसके बीज के साथ-साथ आप इसकी पत्तियों को बेचकर भी लाभ कमा सकते हैं। चौलाई की पैदावार से कोई भी व्यक्ति एक बार में 1 हेक्टेयर से काफी अच्छी कमाई कर सकता है। यदि आप इसकी अलग-अलग किस्में उगाते हैं तो आपको इस फसल का अधिक फायदा होगा। मार्केट में भी चौलाई की मांग अधिक है ऐसे में आप इस फसल के जरिए मनचाहा लाभ कमा सकते हैं।
अगस्त में ऐसे लगाएं गोभी-पालक-शलजम, जाड़े में होगी बंपर कमाई, नहीं होगा कोई गम

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मानसून सीजन में भारत में इस बार बारिश का मिजाज किसानों की समझ से परे है। मानसून के देरी से देश के राज्यो में आमद दर्ज कराने से धान, सोयाबीन जैसी प्रतिवर्ष ली जाने वाली फसलों की तैयारी में देरी हुई, वहीं अगस्त माह में अतिवर्षा के कारण कुछ राज्यों में फसलों को नुकसान होने के कारण किसान मुआवजा मांग रहे हैं। लेकिन हम बात नुकसान के बजाए फायदे की कर रहे हैं। 

अगस्त महीने में कुछ बातों का ध्यान रखकर किसान यदि कुछ फसलों पर समुचित ध्यान देते हैं, तो आगामी महीनों में किसानों को भरपूर कृषि आय प्राप्त हो सकती है। जुलाई महीने तक भारत में कई जगह सूखा, गर्मी सरीखी स्थिति रही। ऐसे में अगस्त माह में किसान सब्जी की फसलों पर ध्यान केंद्रित कर अल्पकालिक फसलों से मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। अगस्त के महीने को साग-सब्जियों की खेती की तैयारी के लिहाज से काफी मुफीद माना जाता है। मानसून सीजन में सब्जियों की खेती से किसान बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं, हालांकि उनको ऐसी फसलों से बचने की कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं, जो अधिक पानी की स्थिति में नुकसान का सौदा हो सकती हैं।

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 ऐसे में अगस्त के महीने में समय के साथ ही किसान को सही फसल का चुनाव करना भी अति महत्वपूर्ण हो जाता है। अगस्त में ऐसी कुछ सब्जियां हैं जिनकी खेती में नुकसान के बजाए फायदे अधिक हैं। एक तरह से अगस्त के मौसम को ठंड की साग-सब्जियों की तैयारी का महीना कहा जा सकता है। अगस्त के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां सितंबर माह के अंत या अक्टूबर माह के पहले सप्ताह तक बाजार में बिकने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं।

शलजम (Turnip) की खेती

जड़ीय सब्जियों (Root vegetables) में शामिल शलजम ठंड के मौसम में खाई जाने वाली पौष्टिक सब्जियों में से एक है। कंद रूपी शलजम की खेती (Turnip Cultivation) में मेहनत कर किसान जाड़े के मौसम में बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं। गांठनुमा जड़ों वाली सब्जी शलजम या शलगम को भारतीय चाव से खाते हैं। अल्प समय में पचने वाली शलजम को खाने से पेट में बनने वाली गैस आदि की समस्या का भी समाधान होता है। कंद मूल किस्म की इस सब्जी की खासियत यह है कि इसे पथरीली अथवा किसी भी तरह की मिट्टी वाले खेत में उपजाया जा सकता है। हालांकि किसान मित्रों को शलजम की बोवनी के दौरान इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखना होगा कि, खेत में जल भराव न होता हो एवं शलजम बोए जाने वाली भूमि पर जल निकासी का समुचित प्रबंध हो।

शलजम की किस्में :

कम समय में तैयार होने वाली शलजम की प्रजातियों में एल वन (L 1) किस्म भारत में सर्वाधिक रूप से उगाई जाती है। महज 45 से 60 दिनों के भीतर खेत में पूरी तरह तैयार हो जाने वाली यह सब्जी अल्प समय में कृषि आय हासिल करने का सर्वोत्कृष्ट उपाय है। इस किस्म की शलजम की जड़ें गोल और पूरी तरह सफेद, मुलायम होने के साथ ही स्वाद में कुरकुरी लगती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में किसान प्रति एकड़ 105 क्विंटल शलजम की पैदावार से बढ़िया मुनाफा कमा सकता है। इसके अलावा पंजाब सफेद फोर (Punjab Safed 4) किस्म की शलजम का भी व्यापक बाजार है। जैसा कि इसके नाम से ही जाहिर है, खास तौैर पर पंजाब और हरियाणा में इस प्रजाति की शलजम की खेती किसान करते हैं।

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शलजम की अन्य किस्में :

शलजम की एल वन (L 1) एवं पंजाब सफेद फोर (Punjab Safed 4) किस्म की प्रचलित किस्मों के अलावा, भारत के अन्य राज्यों के किसान पूसा कंचन (Pusa Kanchan), पूसा स्वेति (Pusa Sweti), पूसा चंद्रिमा (Pusa Chandrima), पर्पल टॉप व्हाइट ग्लोब (Purple top white globe) आदि किस्म की शलजम भी खेतों में उगाते हैं।

गाजर की खेती (Carrot farming)

जमीन के भीतर की पनपने वाली एक और सब्जी है गाजर। अगस्त के महीने में गाजर (Carrot) की बोवनी कर किसान ठंड के महीने में बंपर कमाई कर सकते हैं। मूल तौर पर लाल और नारंगी रंग वाली गाजर की खेती भारत के किसान करते हैं। भारत के प्रसिद्ध गाजर के हलवे में प्रयुक्त होने वाली लाल रंग की गाजर की ठंड में जहां तगड़ी डिमांड रहती है, वहीं सलाद आदि में खाई जाने वाली नारंगी गाजर की साल भर मांग रहती है। गाजर का आचार आदि में प्रयोग होने से इसकी उपयोगिता भारतीय रसोई में किसी न किसी रूप मेें हमेशा बनी रहती है। अतः गाजर को किसान के लिए साल भर कमाई प्रदान करने वाला जरिया कहना गलत नहीं होगा। अगस्त का महीना गाजर की फसल की तैयारी के लिए सर्वाधिक आदर्श माना जाता है। हालांकि किसान को गाजर की बोवनी करते समय शलजम की ही तरह इस बात का खास ख्याल रखना होता है कि, गाजर की बोवनी की जाने वाली भूमि में जल भराव न होता हो एवं इस भूमि पर जल निकासी के पूरे इंतजाम हों।

फूल गोभी (Cauliflower) की तैयारी

सफेद फूल गोभी की खेती अब मौसम आधारित न होकर साल भर की जाने वाली खेती प्रकारों में शामिल हो गई है। आजकल किसान खेतों में साल भर फूल गोभी की खेती कर इसकी मांग के कारण भरपूर मुनाफा कमाते हैं। हालांकि ठंड के मौसम में पनपने वाली फूल गोभी का स्वाद ही कुछ अलग होता है। विंटर सीजन में कॉलीफ्लॉवर की डिमांड पीक पर होती है। अगस्त महीने में फूल गोभी के बीजों की बोवनी कर किसान ठंड के मौसम में तगड़ी कमाई सुनिश्चित कर सकते हैं। चाइनीज व्यंजनों से लेकर सूप, आचार, सब्जी का अहम हिस्सा बन चुकी गोभी की सब्जी में कमाई के अपार अवसर मौजूद हैं। बस जरूरत है उसे वक्त रहते इन अवसरों को भुनाने की।

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पर्ण आधारित फसलें

बारिश के मौसम में मैथी, पालक (Spinach) जैसी पर्ण साग-सब्जियों को खाना वर्जित है। जहरीले जीवों की मौजूदगी के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका के कारण वर्षाकाल में पर्ण आधारित सब्जियों को खाना मना किया गया है। बारिश में सड़ने के खतरे के कारण भी किसान पालक जैसी फसलों को उगाने से बचते हैं। हालांकि अगस्त का महीना पालक की तैयारी के लिए मददगार माना जाता है। लौह तत्व से भरपूर पालक (Paalak) को भारतीय थाली में सम्मानजनक स्थान हासिल है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर हरी भरी पालक को सब्जी के अलावा जूस आदि में भरपूर उपयोग किया जाता है।

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सर्दी के मौसम में पालक के पकौड़े, पालक पनीर, पालक दाल आदि व्यंजन लगभग प्रत्येक भारतीय रसोई का हिस्सा होते हैं। अगस्त के महीने में पालक की तैयारी कर किसान मित्र ठंड के मौसम में अच्छी कृषि आय प्राप्त कर सकते हैं।

चौलाई (amaranth) में भलाई

चौलाई की भाजी की साग के भारतीय खासे दीवाने हैं। गरमी और ठंड के सीजन में चौलाई की भाजी बाजार मेें प्रचुरता से बिकती है। चौलाई की भाजी किसान किसी भी तरह की मिट्टी में उगा सकता है। अगस्त के महीने में सब्जियों की खेती की तैयारी कर ठंड के मौसम के लिए कृषि आय सुनिश्चित कर सकते हैं। तो किसान मित्र ऊपर वर्णित किस्मों विधियों से अगस्त के दौरान खेत में लगाएंगे गोभी, पालक और शलजम तो ठंड में होगी भरपूर कमाई, नहीं रहेगा किसी तरह का कोई गम।

गर्मियों के मौसम में करें चौलाई की खेती, होगा बंपर मुनाफा

गर्मियों के मौसम में करें चौलाई की खेती, होगा बंपर मुनाफा

चौलाई पत्तियों वाली सब्जी की फसल है, जिसे गर्मियों और बरसात के मौसम में उगाया जाता है। इसके पौधों को विकास के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं। वैसे चौलाई को ज्यादातर गर्मियों में ही उगाया जाता है, इस मौसम में इस फसल में अच्छा खासा उत्पादन होता है, जिससे किसानों को मोटी कमाई होती है। चौलाई प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए, सी, आयरन,कैल्शियम और फॉस्फोरस से भरपूर होती है, इसलिए इसे कई मिनरल्स गुणों का खजाना कहा जाता है। इसके बीजों को राजगिरा कहा जाता है, जिसका आटा बनता है। यह पत्तों वाली सब्जी होती है। जिसकी शहरों में अच्छी खासी डिमांड रहती है, इसलिए आजकल इसे शहरों के आसपास जमकर उगाया जा रहा है। चौलाई पूरे विश्व में पाया जाने वाला साग है। अभी तक इसकी 60 से ज्यादा प्रजातियों की पहचान की जा चुकी है। इसका पौधा 80 सेंटीमीटर से लेकर 200 सेंटीमीटर तक ऊंचा होता है। इनके पत्ते एकान्तर, भालाकार या आयताकार होती हैं, जिनकी लंबाई 3 से 9 सेमी तथा चौड़ाई 2 से 6 सेमी होती है। इसमें पीले, हरे, लाल और बैगनी रंग के फूल आते हैं जो गुच्छों में लगे होते हैं। यह अर्ध-शुष्क वातावरण में उगाया जाने वाला साग है।

चौलाई की किस्में

अभी तक चौलाई की 60 से ज्यादा किस्में पहचानी जा चुकी हैं। लेकिन भारत में अभी तक कुछ किस्मों की खेती ही की जाती है। जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं-

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चौलाई की खेती कैसे करें कपिलासा: चौलाई की यह एक उन्नत किस्म है जो बुवाई के मात्र 95 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 165 सेंटीमीटर होती है। एक हेक्टेयर में बुवाई करने पर 13 क्विंटल साग का उत्पादन हो सकता है। यह किस्म ज्यादातर उड़ीसा, तमिलनाडू, कर्नाटक आदि में उगाई जाती है। गुजरात अमरेंथ 1: यह ऐसी किस्म है जो 100-110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म पर कीटों का प्रभाव नहीं होता। प्रति हेक्टेयर इस किस्म की औसत पैदावार 19.50 क्विंटल है। गुजरात अमरेंथ 2 : यह किस्म मैदानी इलाकों के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। यह किस्म बुवाई के 90 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कम समय में तैयार होने से और पैदावार अधिक होने से किसान इस किस्म को बोना पसंद करते हैं। इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 23 क्विंटल है। सुवर्णा: चौलाई की यह किस्म ज्यादातर उत्तर भारत में उगाई जाती है। यह बुवाई के मात्र 80 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन एक हेक्टेयर खेत में 16 क्विंटल तक हो सकता है। दुर्गा : यह चौलाई की ऐसी किस्म है जिस पर कीटों का असर नहीं होता। इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 170 सेंटीमीटर होती है और यह बुवाई के 125 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पूसा कीर्ति : चौलाई इस किस्म की पत्तियां बड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की लंबाई 6 से 8 सेमी और चौड़ाई 4 से 6 सेमी होती है। इसका तना हरा होता है। इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों में की जाती है। पूसा किरण : चौलाई की इस किस्म की खेती बरसात के मौसम में की जाती है। इसकी पत्तियां मुलायम होती हैं तथा इनका आकार बड़ा होता है।

चौलाई की खेती के लिए जलवायु और तापमान

चौलाई की खेती गर्मी और बरसात के मौसम में ही की जा सकती है। सर्दियों का मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है और इसका पेड़ 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को आसानी से झेल सकता है। चौलाई की खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान नहीं होना चाहिए।

चौलाई की खेती के लिए इस तरह की मिट्टी होती है उपयुक्त

चौलाई की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ उचित जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। ऐसी मिट्टी जहां पानी का जमाव होता हो, वहां पर चौलाई की खेती नहीं की जा सकती। जलभराव वाली मिट्टी में चौलाई का विकास अच्छे से नहीं होता है। इसकी खेती के लिए जमीन का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए।

चौलाई की बुवाई

चौलाई की पहली बुवाई मार्च और अप्रैल माह में की जाती है। जबकी दूसरी बुवाई जून-जुलाई माह में की जाती है। चौलाई की बुवाई आप छिड़काव और रोपाई दोनों विधियों द्वारा कर सकते हैं। बुवाई के पहले बीजों को गोमूत्र से उपचारित कर लें। इससे फसल रोगों से सुरक्षित रहेगी। चौलाई के बीज बहुत छोटे दिखाई देते हैं, इसलिए इनकी बुआई रेतीली मिट्टी में मिलाकर करें।

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चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए इसकी बुवाई पक्तियों में करना चाहिए। कतारों में रोपाई के दौरान प्रत्येक कतार के बीच आधा फीट की दूरी अवश्य रखें। साथ ही पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। ड्रिल माध्यम से बीजों की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर जमीन के भीतर करना चाहिए।

चौलाई की सिंचाई

चौलाई की फसल में बुवाई के 3 सप्ताह बाद पहली बार सिंचाई करनी होती है। इसके बाद 20 से 25 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहें। अगर वातावरण में तेज गर्मी पड़ रही हो तो हर सप्ताह सिंचाई करें। गर्मियों में कम सिंचाई करने पर इसके पत्ते पीले पड़ जाएंगे और बाजार में इसके उचित दाम नहीं मिलेंगे। अगर खेत में हमेशा नमी बनी रहती है तो चौलाई की फसल में अच्छी पैदावार देखने को मिलती है।

खरपतवार नियंत्रण

चौलाई की फसल में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी होता है। इसकी अच्छी उपज के लिए खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए। खरपतवार में पाए जाने वाले कीट इस फसल की पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं। जिससे पैदावार प्रभावित होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए खेत की समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें। निराई गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी जरूर चढ़ा दें।

चौलाई की कटाई

चौलाई की कटाई मौसम के हिसाब से की जाती है। अगर आप चौलाई की पत्तियों को बाजार में बेंचना चाहते हैं तो गर्मियों के मौसम में इसकी कटाई बुवाई के 30 दिनों के बाद कर लें। इसके बाद हर 15 दिन में कटाई करते रहें। एक हेक्टेयर जमीन पर इसका उत्पादन 100 क्विंटल के आस पास होता है। इसके साथ ही अगर आप फसल से दानों की पैदावार चाहते हैं तो जब इसकी बालियां पीली पड़ने लगे तब कटाई कर लें। चौलाई की फसल आमतौर पर 100 दिनों में तैयार हो जाती है। इस हिसाब से किसान भाई इसकी फसल उगाकर कम समय में अच्छा खासा लाभ कमा सकते हैं।
चौलाई की खेती किसानों को मुनाफा और लोगों को अच्छी सेहत प्रदान कर सकती है

चौलाई की खेती किसानों को मुनाफा और लोगों को अच्छी सेहत प्रदान कर सकती है

चौलाई की खेती करने के लिए हर प्रकार की मृदा उपयुक्त मानी जाती है। परंतु, बलुई-दोमट मृदा को इसकी खेती लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। सर्दी का मौसम आने के साथ ही पूरा बाजार विभिन्न प्रकार की सब्जियों से पट जाता है। इस दौरान गंधारी, पालक, सरसों, चना और मेथी की मांग बढ़ जाती है। लोग सब्जी के स्थान पर रोटी के साथ साग को खाना अधिक पसंद करने लगते हैं। अब ऐसी स्थिति में मांग बढ़ने से कृषकों की आमदनी में भी इजाफा हो जाता है। परंतु, मेथी, बथुआ, सरसों और चना की सब्जी साल भर नहीं उगाए जा सकते हैं। वहीं इनकी मांग भी सदैव नहीं रहती है। यदि किसान भाई लाल साग मतलब कि चौलाई की खेती करें, तो उनको बेहतरीन आमदनी हो सकती है। चौलाई साग की एक ऐसी किस्म है, जिसको किसी भी मौसम में उत्पादित किया जा सकता है। बाजार में इसकी मांग भी सदैव रहती है।

चिकित्सक भी चौलाई के साग का सेवन करने की सलाह देते हैं

दरअसल, चिकित्सक भी चौलाई के साग का सेवन करने की सलाह देते हैं। चौलाई में विभिन्न प्रकार के विटामिन्स और पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-ए, फॉस्फोरस और मिनिरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यह एक प्रकार से आयरन का भंडार है। चौलाई के साग का सेवन करने से आंखों की रोशनी अच्छी रहती है। शरीर में भी खून की कमी नहीं होती है। साथ ही, यह कफ और पित्त का भी खात्मा करता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि चौलाई की सब्जी का सेवन करने से कब्ज की बीमारी सही हो जाती है। साथ ही, पाचन तंत्र भी बेहतर ढंग से कार्य करता है।

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चौलाई साग के लिए कितना डिग्री तापमान बेहतर होता है

चौलाई साग की खेती के लिए 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा माना गया है। आप इसकी पत्तियों एवं तनों को पकाकर स्वादिष्ट सब्जी भी बना सकते हैं। यह एक नगदी फसल है। ऐसी स्थिति में यदि छोटी जोत वाले किसान इसका उत्पादन करतें हैं, तो उनको बेहतर आमदनी अर्जित हो सकती है।

खेत में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था जरुरी

जैसा कि हमने उपरोक्त में बताया है, कि चौलाई की खेती किसी भी तरह की मृदा में की जा सकती है। हालाँकि, बलुई-दोमट मृदा को इसकी खेती लिए सर्वोत्तम माना गया है। यह साग की ऐसी किस्म है, जिसकी खेती गर्म और ठंड दोनों प्रकार के मौसम में की जा सकती है। यदि किसान भाई चौलाई की खेती करना चाहते हैं, तो उनको सर्वप्रथम खेत की जुताई करने के उपरांत एकसार करना पड़ेगा। उसके बाद खेत में चौलाई के बीज की बुवाई करनी पड़ेगी। चौलाई के खेत में सदैव उर्वरक के तौर पर गोबर का ही उपयोग करें, इससे बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है। एक और मुख्य बात यह है, कि खेत में जल निकासी की भी बेहतर व्यवस्था होनी अति आवश्यक है।