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बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
विश्व में नंबर वन श्रेणी की चावल की किस्में, भारत की किस्म का नाम भी शामिल

विश्व में नंबर वन श्रेणी की चावल की किस्में, भारत की किस्म का नाम भी शामिल

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि बासमती चावल को विश्व का नंबर वन चावल माना जाता है। वहीं, इसके पश्चात इटली, पुर्तगाल, यूएस सहित जापान में उगाए जाने वाले चावल आते हैं। लोग चावल का उपभोग दाल, कढ़ी तो कभी बिरयानी के रूप में करते हैं। चावल का उपभोग तकरीबन भारत के हर घर में होता है। साथ ही, इसका इस्तेमाल विश्व भर के घरों में किया जाता है।

खबरों के मुताबिक, बासमती चावल को दुनिया में सबसे अच्छा चावल माना जाता है। भारत और पाकिस्तान में यह लंबे दाने वाला चावल उगाया जाता है। बासमती चावल का स्वाद सबसे हटकर है। पकाने पर यह एक-दूसरे के साथ चिपकता नहीं है और अलग रहता है। बासमती चावल को पुलाव, बिरयानी और सलाद में इस्तेमाल किया जाता है।

इटली में उगाए जाने वाला अर्बोरिया चावल

अब इसके उपरांत इटली में उत्पादित किए जाने वाला अर्बोरिया चावल आता है। इटली में उत्पादित किए जाने वाला मध्यम लंबे दाने वाला चावल है। साथ ही, इसकी नरम, चिपचिपी बनावट से अर्बोरिया चावल जाना जाता है। अर्बोरिया चावल पकाने पर मोटा और मलाईदार चावल बनता है। रिसोट्टो को बनाने के लिए सामान्य तोर पर अर्बोरिया चावल का इस्तेमाल किया जाता है। पुर्तगाल में लंबे दाने वाला चावल कैरोलिनो कहा जाता है। कैरोलिनो चावल अपनी नरम एवं मलाईदार बनावट से जाना जाता है। यह पकाने पर मोटा और मलाईदार चावल बनता है।  पुर्तगाली खाने, जैसे पोर्क बिफन और फ्राईड राइस, अक्सर कैरोलिनो चावल का इस्तेमाल करते हैं।

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जापान का चावल भी इसमें शामिल होता है

अरिजोना रॉयल चावल एक लंबे दाने वाला चावल है जो कि यूएस में उगाया जाता है। एरिजोना रॉयल चावल अपने नरम, मलाईदार बनावट के लिए मशहूर है। इसको पकाने पर मोटा और मलाईदार चावल बनता है। जापान में उगाए जाने वाला गोल, छोटे दाने वाला चावल जापानी सुशी चावल होता है। इसकी नरम और चिपचिपे बनावट से जापानी सुशी चावल जाना जाता है। ये पकाने पर मोटा और मलाईदार बनता है। जापानी सुशी चावल सुशी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।

दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

दून बासमती किस्म के चावल का स्वाद और उत्पादन कैसा होता है ?

बतादें, कि तीव्रता से होते शहरीकरण की वजह से दून बासमती चावल विलुप्त हो रहा है। खबरों के मुताबिक, बीते सालों में इसकी खेती काफी घट गई है। दून बासमती, चावल की किस्म जो अपनी समृद्ध सुगंध और विशिष्ट स्वाद के लिए जानी जाती है। तेजी से लुप्त हो रही है।उत्तराखंड जैव विविधता बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दून बासमती चावल की खेती का रकबा बीते पांच सालों में 62% प्रतिशत तक घट गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, दून बासमती चावल की पैदावार 2018 में जहां 410 हेक्टेयर क्षेत्रफल में किया जा रहा था। वहीं 2022 में यह आंकड़ा महज 157 हेक्टेयर तक सिमट गया है। यही नहीं इस खेती के सिकुड़ते क्षेत्रफल के कारण किसानों ने भी अपने हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया है। 2018 में 680 किसान दून बासमती चावल पैदा कर रहे थे। पांच सालों में 163 किसानों ने बासमती चावल की खेती बंद कर दी है।

दून बासमती चावल की सुगंध और स्वाद कैसा होता है ?

अपनी विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों की वजह से यह चावल दून घाटी के लिए स्थानिक महत्व रखता है। इसके अलावा, चावल की यह प्रजाति केवल बहते पानी में ही पैदा होती है। यह चावल की “बहुत ही नाजुक” किस्म है। यह पूरी तरह से जैविक रूप से उत्पादित अनाज है, रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का उपयोग करने पर इसकी सुगंध और स्वाद खो जाता है। 

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दून बासमती, चावल की एक दुर्लभ किस्म होने के अतिरिक्त देहरादून की समृद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण भाग है। दून बासमती को दून घाटी में चावल उत्पादकों द्वारा विकसित किया गया था। दून बासमती चावल एक वक्त में बड़े क्षेत्रफल पर उगाया जाता था, जो अब एक विशाल शहरी क्षेत्र के तौर पर विकसित हो चुका है। अब दून बासमती चावल की खेती उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ ही क्षेत्रों तक ही सीमित है।

यह किस्म बड़ी तीव्रता से विलुप्त हो रही है 

तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण घटती कृषि भूमि जैसे कई कारणों से चावल की विशिष्ट किस्म तीव्रता से विलुप्त हो रही है। विपणन सुविधाओं का अभाव और सब्सिडी न मिलने जैसी वजहों ने दून बासमती चावल को विलुप्त होने की कगार पर पहुंचा दिया हैं। बासमती चावल की विभिन्न अन्य प्रजातियां दून बासमती के नाम पर बेची जा रही हैं। दून बासमती के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।

धान की नई किस्म मचा रहीं धमाल

धान की नई किस्म मचा रहीं धमाल

हरित क्रांति की शुरुआत के दौर से अभी तक हुए अनुसंधानौं के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली ने धान की विश्व में धमाल मचाने वाली 1121, 1509,1637 ,1728 , 1718 के अलावा अनेक किस्में विकसित की हैं। समूचे विश्व में निर्यात होने वाली बासमती की अधिकांश किस्में पूसा संस्थान की देन हैं। 

किसान धान लगाने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में उन्हें यह जानना जरूरी है किस किस्म से उत्पादन अच्छा मिलेगा एवं बाजार में किस किस्म की अच्छी मांग होगी।

पूसा धान की 10 नई किस्में (Top10 New Varieties of Pusa Dhan)

पूसा बासमती 1509

वर्ष 2013 में यह मूर्छित इस किस्म को पंजाब एवं दिल्ली राज्य के बासमती उगाने वाले क्षेत्रों के लिए संस्तुत किया गया लेकिन यह किस्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक में अच्छा उत्पादन दे रही है। 

इसकी औसत उपज 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। इसके पौधे अर्ध बोने एवं गिरने के प्रति प्रतिरोधी है। पकने पर इसके दाने झड़ते नहीं हैं। 

यह पर्ण झुलसा रोग, भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है । तीव्र सुगंध, लंबा दाना एवं पकने में गुणवत्ता युक्त होने के कारण इसकी समूचे विश्व में अच्छी मांग है।

पूसा 1612

55 से 62 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली यह किस्म पंजाब ,हरियाणा ,दिल्ली एवं जम्मू कश्मीर राज्य में सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म पूसा सुगंध 5 का विकसित रूप है। 

यह ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी है।पकने में 120 दिन का समय लेती है। इस किस्म में लीफ ब्लास्ट बीमारी के प्रतिरोधक  जीन विद्यमान हैं। पैदावार की दृष्टि से पूसा बासमती 1,  तरावड़ी एवं पूसा बासमती 1121 से अच्छी है। 

पूसा बासमती 6- 1401

पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सिंचित अवस्था में यह किस्म 50 से 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है । यह मध्यम बोनी किस्म है। यह पकने पर गिरती नहीं है । 

दानों की समानता और पकने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती 1121 से बहुत अच्छी है। पकने पर दाना एक समान रहता है। सुगंध अच्छी है । 150 से 155 दिन में पकती है। 

उन्नत पूसा बासमती 1 -1460

पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सिंचित अवस्था मैं यह किस्म 55 से 63 कुंतल तक उपज देती है। 135 से 40 दिन में पक्का तैयार होती है। 

उषा सुगंध 5-25 11

दिल्ली पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य में यह किस्म में 55 से 62 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है। यह  उच्च उपज देने वाली सुगंधित चावल की किस्म उत्तर  भारत में वहु फसली पद्धति के लिए उत्तम है ।

सुगंधित और लंबी देने वाली यह किस्म पकाव में गुणवत्तापूर्ण है। झड़ने के प्रति सहिष्णु है। यह  भूरे धब्बे की प्रतिरोधी, पत्ती लपेटक एवं  ब्लास्ट के प्रति माध्यम प्रतिरोधी है। 125 दिन में तैयार हो जाती है। 

पूसा बासमती 1121

पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश उत्तराखंड एवं बासमती धान उगाने वाले सभी क्षेत्रों में सिंचित अवस्था में यह किस्म 40 से 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। पकने में 140 से 45 दिन लगते हैं । इसका दाना 8 मिलीमीटर लंबा होता है जो पकने के बाद 20 मिलीमीटर तक लंबा हो जाता है। 

पूसा आर एच-10 संकर धान

पंजाब ,हरियाणा, दिल्ली ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में यह किस्म 65 से 70 कुंतल तक उपज देती है। यह बासमती गुण वाली धान की विश्व में प्रथम संकर किस्म है। 

इसका दाना अत्यधिक सुगंधित ,लंबा और पतला है जो पकने पर लंबाई में 2 गुना बढ़ जाता है । यह  110 से 15 दिन का समय लेती है। 

पूसा बासमती 1718

यह किशन पूसा बासमती 1121 को संशोधित कर बनाई गई है। यह 1121 से 15 दिन पहले पक जाती है। लंबाई उतनी ही है लेकिन यह 11 21 किस्म के मुकाबले थोड़ा कम गिरती है। रोग कम आते हैं और उपज 1121 से ज्यादा होती है। 

पूसा बासमती 1728

यह धान की 14 01  किस्म से तैयार संशोधित प्रजाति है। बीएलबी रोग नहीं आता है। उपज भी 32 कुंतल प्रति एकड़ तक आ जाती है। 

पूसा बासमती 1637

इस किस्म से  30 कुंतल प्रति एकड़ तक उत्पादन मिल जाता है। यह भी पूसा की पूर्व में विकसित किस्मों की संशोधित प्रजाति है। मुख्य रूप से पूसा बासमती एक का यह संशोधित वर्जन है और गर्दन तोड़ जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है।

बासमती चावल ने अन्य चावलों को बाजार से बिल्कुल गायब कर दिया है

बासमती चावल ने अन्य चावलों को बाजार से बिल्कुल गायब कर दिया है

बतादें, कि आजकल लोग बासमती चावलों की सुगंध से मोहित हो जाते हैं। यदि उन्होंने एक बार भी गोविन्द भोग चावलों की सुगंध सूंघ ली तो दंग हो जाएंगे। यदि आज आप भारत में किसी से जानकारी लेंगे कि कौन सा चावल सबसे अच्छा होता है, तो सामने वाला व्यक्ति बिना वक्त लिए सोचकर बोल देगा बासमती। परंतु क्या ये सत्य है? क्या केवल बासमती ही एक ऐसा चावल है जो सबसे अच्छा है? शायद नहीं क्योंकि, भारत में एक वक्त में ऐसी कई सारी चावल की प्रजातियां थीं, जो अपने स्वाद एवं सुगंध के लिए संपूर्ण विश्व में मशहूर थीं।

गोविन्द भोग चावल की सुगंध अच्छी होती है

जो लोग आज बासमती चावलों की खुशबू से मोहित हो जाते हैं, अगर उन्होंने एक बार भी गोविन्द भोग चावलों की खुशबू सूंघ ली तो हैरान हो जाऐंगे। इस चावल की सुगंध ऐसी होती है, कि यदि ये किसी के घर में पक रहा हो तो सारे मोहल्ले को भनक पड़ जाती है, कि किसी के यहां गोविन्द भोग चावल पक रहा है। यह चावल पश्चिम बंगाल के पूर्वी जनपद में बहने वाली नदी दक्षिण बेसिन के किनारे वाले इलाकों में पैदा की जाती है। वर्तमान में भारत के अंदर यह चावल पश्चिम बंगाल के हुगली, बांकुरा, पुरुलिया और बीरभूम में पैदा किया जाता है। साथ ही, बिहार के कैमूर एवं छत्तीसगढ़ के सरगुजा में भी इस चावल की खेती की जाती है। ये भी पढ़े: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

सुगंध के मामले में काला नमक चावल को कोई टक्कर नहीं दे सकता

वर्तमान दौर में यदि किसी भारतीय से काला नमक कहा जाए तो वो नमक वाला काला नमक समझेगा। परंतु, एक वक्त पर काला नमक चावल की किस्म संपूर्ण भारत में लोकप्रिय थी। इस चावल को किसी विशेष अवसर पर ही पकाया जाता था। क्योंकि, ये बेहद महंगा होता है। ऐसा कहा जाता है, कि गोविन्द भोग चावल की सुगंध को किसी चावल की सुगंध मात दे सकती है तो वो काला नमक ही है। ये चावल विशेष रूप से नेपाल के कपिलवस्तु और उसके समीपवर्ती पूर्वी उत्तर प्रदेश के तराई वाले क्षेत्रों में पैदा किया जाता है। इस चावल की प्रसिद्धि एक वक्त पर इतनी थी, कि इसे संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य और कृषि संगठन ने संसार के विशिष्ट मतलब कि खास चावलों की सूची में स्थान दिया है।

काले चावल का बुद्ध से क्या संबंध है

ऐसा कहा जाता है, कि यह चावल स्वयं महात्मा बुद्ध ने किसानों को दिया था। बतादें कि इसके पीछे एक कहानी है, कि एक बार जब महात्मा बुद्ध लुम्बिनी के जंगलों से गुजर रहे थे, तो उन्होंने वहां के ग्रामीणों को काला नमक चावल के बीज देते हुए कहा था, कि इन बीजों से पैदा होने वाले चावल की सुगंध तुम्हें मेरी स्मृति दिलाती रहेगी। आप विचार करिए कि अभी तो हमने आपको केवल दो चावल की किस्मों के विषय में बताया है। हालाँकि, इस प्रकार की विभिन्न प्रजातियां भारत में पैदा की जाती थीं। फिलहाल, यह आहिस्ते-आहिस्ते बासमती की वजह से विलुप्त होती जा रही हैं।
धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 जो कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार दे कर किसानों को कर रही है मालामाल

धान की कई किस्में हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं इनमें से एक किस्म पूसा-1509 है जो किसानों को मालामाल कर रही है। एक एकड़ में ₹75000 तक की लागत देती है जिससे किसान की आर्थिक स्थिति में बहुत अच्छा असर पड़ता है। 

इस किस्म की धान लगाने से मुख्य फायदा यह है कि धान की कटाई होने के बाद हम उस खेत में सब्जियां भी लगा सकते हैं, ऐसे में किसान गेहूं लगाने के पहले सब्जियों से काफी रुपए कमा लेते हैं जिससे उनकी आय बढ़ जाती है। 

यह फसल न केवल कम दिनों में पकती है बल्कि इसकी खेती करने से किसानों को बहुत लाभ मिलता है इसलिए कई लोगों का कहना है कि धान की यह किस्म पूसा-1121 की जगह ले सकती है। 

ये भी देखें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation) बासमती चावल 

ना केवल भारत में सप्लाई होता है बल्कि इसकी मांग विदेशों में भी है। यूरोप में भी इस चावल की सप्लाई काफी मात्रा में होती है। कई एक्सपार्टों का कहना है कि विश्व बाजार में इस चावल के अच्छे दाम मिलेंगे। 

इस किस्म का चावल बहुत सुंदर है। चावल में सुगंध भी अच्छी है। धान की यह किस्म रोपाई के तीन महीने बाद तक पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती करने में पानी और खाद काम मात्रा में लगता है, अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। 

धान के इस किस्म के बीज की मांग बहुत है क्योंकि इससे किसानों को बहुत अच्छी पैदावार प्राप्त हो रही है। तरावडी की अनाज की मंडी बासमती की बड़ी मंडी है। 

और आजकल इस मंडी में पूसा-1509 किस्म की धान भी आना शुरू हो गई है। इस फसल का उत्पादन 20 से 22 क्विंटल प्रति एकड़ तक उत्पादन हो रहा है और इसे बेचने पर 3800 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से रुपए मिलते हैं। मतलब किसानों को इसमें 75000 रुपए प्रति एकड़ तक की पैदावार मिल रही है। 

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पूसा-1509 किस्म का दबदबा क्यों :

धान की पूसा-1509 किस्म के आने के पहले किसान धान की पूसा-1121 नमक किस्म की खेती करते थे। इसकी खेती करने में किसानों को कुछ दिक्कत आती थी। जैसे इस प्रकार की किस्म के पौधों की ऊंचाई अधिक होती थी। 

शुरू से लेकर फसल के तैयार होने में लगभग 5 महीने का वक्त लगता था और अगर कटने पर एक रात खेत में रुक गई तो 15-20% तो खेत में ही झड़ जाती थी। जिसके कारण किसानों का काफी नुकसान हो जाता था। 

लेकिन पूसा-1509 किस्म में ये सब परेशानियां नहीं आतीं। यह किस्म पूसा-1121 का उन्नत रूप है इसलिए इस किस्म की मांग ज्यादा है। इसके अलावा इस किस्म की खेती करने में पानी की कम मात्रा का इस्तेमाल होता है जिससे पानी की बचत होती है। 

इस प्रकार के किस्म की खेती करने से किसान को काफी फायदा मिलता है। जानकारी के मुताबिक इस साल करीब 200 क्विंटल बीज किसानों को दिया गया है जिसकी रोपाई लगभग 50 हजार हेक्टेयर में की गई है। 

और अगले वर्ष इसकी मात्रा बढ़ाई जाएगी जिससे किसानों को अच्छा लाभ मिल सके और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। आने वाले समय में पानी की और कमी होगी, पानी को बचाना है तो किसानों को इस तरह की किस्मों का चयन जरूर करना होगा।

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बुआई की जानकारी :

इस किस्म की धान की बुआई 17 मई से 21 जून तक कर सकते हैं एवं रोपाई का सही समय जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक है। एक एकड़ धान की रोपाई के लिए 4-5 कि.ग्रा. धान की आवश्यकता होती है। 

पूसा-1509 की कतार से कतार से दूरी 20cm और पौधे से पौधे की दूरी 15cm होनी चाहिए। बुआई के पूर्व बीजों का बीजोपचार कर लेना चाहिए। और उचित उर्वरक का चयन करना चाहिए। 

उर्वरकों का उपयोग मृदा के परीक्षण के हिसाब से करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रिटी लक्नोर + सेफनर का उपयोग बुआई के 3-4 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की किस्म में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती इसलिए समय समय पर आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। जब दाने परिपक्व हो जाएं तो इसकी कटाई कर लें। 

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धान की यह किस्म किसानों को नुकसान दे सकती है :

धान की इस केस में इतनी खूबियां होने के बावजूद भी कुछ खामियां भी हैं। देश के कुछ राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में बासमती जो सबसे पॉपुलर धान की किस्म थी उसमें एक दिक्कत सामने आ गई है। 

अभी तक ठीक काम कर रहे धान की इस किस्म में कुछ खामियों के कारण सरकार द्वारा इसके बीज वापस लिए जा रहे हैं इसलिए जो भी किसान धान कि इस किस्म की फसल करते हैं वह अब सावधान हो जाएं। 

ऐसा ठीक उसी प्रकार हुआ है जिस प्रकार किसी कंपनी की गाड़ी में खराबी आ जाने के कारण वह कंपनी उस गाड़ी को वापस ले लेती है। सरकार द्वारा ऐसा अहम फैसला इसलिए लिया गया है ताकि किसानों को ज्यादा नुकसान का सामना ना करना पड़े। 

अगर आप भी धान की किस्म के बीज वापस करना चाहते हैं तो आप 21 मई के पहले वापस कर सकते हैं। इसके लिए आपको खरीदी की ओरिजिनल रसीद दिखानी पड़ेगी तभी आप इस किस्म के बीजों को वापस कर सकते हैं। बीज वापसी के बदले किसानों को उनका पैसा या फिर नए बीज दिए जाएंगे।

इतने पॉपुलर बीज को क्यों लिया वापस लेने का फैसला :

जानकारी के मुताबिक एक किसान ने इस बीज के लिए शिकायत की थी जिसके कारण पूसा ने इसका टेस्ट किया जिसमें पता चला कि इसकी उपज सिर्फ 40 फ़ीसदी है जो कि 80 से 90 फ़ीसदी होना चाहिए इसीलिए सरकार द्वारा यह बीज वापस लिया जा रहा है। 

खराबी सिर्फ एक लाट में थी, जिसकी वजह से २५ फरवरी से ४ अप्रैल २०२२ तक की अवधी वाले कर्नाल क्षेत्र से बिक्री हुए एक लाट को वापस लिया जा रहा है। उस बिक्री की रसीद दिखा के किसान भाई बदले में नया बीज या पैसे वापस ले सकते हैं। 

किसान भाई क्षेत्रीय केंद्र करनाल, फोनः 018 42267169 पर बात कर सकते हैं। आशा करते हैं की पूसा-1509 की खेती से सम्बंधित जानकारी किसान भाइयों को पसंद आयी हो, इससे सम्बंधित किसी भी प्रकार की जानकारी चाहतें हों या अपने सुझाव देना चाहें तो कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। 

जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। 

और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। 

यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

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रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। 

इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

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 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। 

इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

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इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। 

उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। 

पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

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 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। 

जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

हमारे देश में गेहूं के बाद जिस फसल के उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है वह है धान। विश्व में सबसे ज्यादा चावल उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर आता है। इसी कारण सरकार धान के उत्पादन पर ज्यादा ध्यान दे रही है। जिस वजह से सरकार धान की नई नई किस्में ला रही है, जिनमें से पूसा बासमती 1728 भी धान की एक किस्म है। इस किस्म की धान में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसमें आवश्यकता पड़ने पर समय समय पर सिंचाई कर सकते हैं। इस प्रकार की धान में किसान को उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। उर्वरक की मात्रा सीमित होनी चाहिए। पूसा द्वारा निर्मित धान की इस किस्म में रोगरोधी क्षमता काफी अधिक है।

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पूसा 1728, पूसा 6 का एक नया वर्जन है लेकिन इस किस्म का उत्पादन पूसा 1401 जैसा ही है। कृपा करके सानु स्पेशल की देखरेख बहुत अच्छे से करें तो वह स्पेशल से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं।

पूसा 1728 की तैयारी :

पूसा द्वारा विकसित यह बासमती चावल किस्म एक अच्छी उपज देने वाली किस्म है। इस किस्म की बुआई 20 मई से लेकर 22 जून के बीच करनी चाहिए। एवं इसके पौधों की रोपाई का समय 15 जून से 5 जुलाई के मध्य होता है।

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फसलों में बीमारी लगने पर किसान अनेक प्रकार की जहरीली दवाओं का छिड़काव चावल की फसल पर कार्य था। जिस कारण से हमारे देश का चावल विदेशों से कई बार रिजेक्ट हो जाता था। इसलिए इस किस्म के पौधों में दवाई के छिड़काव की आवश्यकता न के बराबर होती है। किसान को बहुत कम मात्रा में स्प्रे की जरूरत पड़ेगी। एसे में किसानों के पैसे की बचत होगी। इस प्रकार की धान में प्रति एकड़ 4 से 5 किलोग्राम रोपाई और अनुसंधित धान के लिए 1 से 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की रोपाई है। इसमें दुख तारों की बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और दो पौधों की बीच की दूरी का अंतर 15 सेंटीमीटर होना चाहिए।

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पूसा 1728 : फसल का बीज उपचार :

किसी भी फसल के बीज की बुवाई से पहले उसके बीच का बीज उपचार करना बहुत जरूरी होता है धान की इस किस्म के बीज के बीज उपचार करने के लिए इसे पहले 10 ग्राम बाविस्टिन और 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइगिसन का 8 लीटर पानी के घोल में 24 घंटे तक भिगोते हैं। यह घोल 4 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। इससे बीज का अच्छी तरह से बीज उपचार हो जाता है और किसान द्वारा स्वस्थ बीज बोने से फसल की पैदावार भी अधिक होती है।

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पूसा 1728 में उर्वरक की मात्रा :

फसल में उर्वरक मिलाने से उस फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। जैविक उर्वरक की अपेक्षा कीटनाशक उर्वरक से अधिक पैदावार होती है लेकिन कीटनाशक के छिड़काव से फसलें जहरीली हो जाती हैं। धान की फसल में उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी का परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। इसमें उर्वरक का इस्तेमाल रोपाई के 35 से 40 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की फसल में औसत उपज पर्याप्त मात्रा में होती है। दोनों की परिपक्व होने पर इस फसल को काट लेते हैं। इसकी औसत उपज 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ है। धान की इस किस्म से किसान अच्छी उपज प्राप्त करता है और मुनाफा कमाता है।

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718 : 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा
धान की एक और किस्म विकसित की गई है जिसका नाम पूसा बासमती 1718 है। धान की इस किस्म से किसानों को अधिक फायदा मिल रहा है। यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार दे रही है और धान की इस किस्में में बीमारियों का खतरा भी कम है। धान की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक देती है। इस किस्म की धान का दाना लंबा और चमकदार है एवं तना मोटा है। इस फसल से आप अच्छी पैदावार प्राप्त करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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इस किस्म की धान के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए अपने खेत में ज्यादा पानी नहीं रुकने देना चाहिए और दूसरा पानी खेत की नमीं को देखते हुए देना चाहिए।

पूसा 1718 की तैयारी :

धान की इस किस्म की बुवाई हम 14 मई से 20 जून के बीच में कर सकते हैं अगर किसी कारणवश हम बुवाई करने में विलंब कर देते हैं तो भी हम इस किस्म से अच्छा उत्पादन कमा सकते हैं।

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इसके साथ ही आप इसकी रोपाई जून के दूसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह के बीच में कर सकते हैं। बासमती धान के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रति एकड़ रोपाई की आवश्यकता होती है। इस किस्म की रोपाई में क्यारियों और पौधों के बीच की दूरी पर भी ध्यान रखा जाता है। अगर हम कतार की बात करें तो कतार से कतार के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर इसके अलावा दो पौधों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसमें आप 110 किलोग्राम प्रति एकड़ नाइट्रोजन अर्थात यूरिया डाल सकते हैं। धान लगाने के 30 दिन के अंदर खेत में यूरिया डाल देना चाहिए। इसके साथ ही खेत में ज्यादा पानी ना रुकने दें और खेत की नमी को देखते हुए ही सिंचाई करें। ऐसा करने से पौधों की लंबाई ज्यादा नहीं बढ़ पाती है। जिससे धान के झड़ने की समस्या नहीं होती।

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पूसा 1718 की विशेषताएं

धान की एक किस्म पूसा 1121 का डुप्लीकेट वर्जन है। यह पूसा 1121 की तरह ही बनाई गई है लेकिन इसमें कुछ परिवर्तन किए गए हैं जैसे पूसा 1121 में लगने वाली गर्दन मरोड़ बीमारी पूसा 1718 में नहीं लगती। इसके साथ ही इस किस्म के पौधे की लंबाई कम और मोटाई ज्यादा है। जिससे इसका दाना गिरता नहीं है। पूसा 1121 का दाना हल्का लाल और पूछा 1718 का दाना हल्का पीला होता है। भारत के 7 राज्यों में किसकी खेती की जाती है जिनमें हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़ आदि प्रमुख हैं। इस फसल में बीमारी ना के बराबर लगती है जिसके कारण इसमें हम कीटनाशकों का उपयोग ना भी करें तो भी कोई समस्या नहीं जाती। इसके साथ ही अगर हम उत्पादन की बात करें तो किस का उत्पादन 20 से 25 कुंटल प्रति एकड़ होता है जो कि किसानों के लिए लाभदायक होता है।

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धान की किस्म पूसा 1718, पूसा 1121 की समस्याओं को देखते बनाई गई है इससे जो समस्याएं पूसा 1121 की उत्पादन में आती थी वह 1718 के उत्पादन में नहीं आती।
अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

अब गैर बासमती चावल के निर्यात पर लगेगा 20 फीसदी शुल्क

उसना और बासमती चावल पर लागू नहीं होगा यह निर्देश

नई दिल्ली। भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है, अब गैर बासमती चावल के निर्यात (rice export) पर सरकार 20 फीसदी शुल्क वसूलेगी। बताया जा रहा है कि चालू खरीफ फसल सत्र में धान की फसल का रकबा काफी घट गया है। यही कारण है कि घरेलू आपूर्ति बढाने के लिए सरकार ने निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क बढ़ा दिया है, इसमें
उसना चावल (Usna Chawal or Parboiled Rice) को शामिल नहीं किया गया है। बृहस्पतिवार को राजस्व विभाग ने इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी है। केन्द्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने बासमती (Basmati) और उसना चावल को छोड़कर सभी प्रकार की किस्मों के चावलों के निर्यात (chawal niryat) पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगना तय है। अभी तक खरीफ सत्र में धान की बुवाई का क्षेत्र 5.62 फीसदी से घटकर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में बारिश कम होने के कारण धान का बुवाई क्षेत्र घट गया है। चीन के बाद भारत चावल का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है। वैश्विक स्तर पर भारत में चावल का 40 प्रतिशत हिस्सा है। ये भी पढ़ें - असम के चावल की विदेशों में भारी मांग, 84 प्रतिशत बढ़ी डिमांड

9 सितंबर से लागू होगा सीमा शुल्क

भारत सरकार द्वारा 9 सितंबर से चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लागू किया जा रहा है। बासमती व उसना चावल को इस नियम से बाहर रखा जाएगा। बताया जा रहा है कि भारत में चावल को रोकने के लिए यह नियम लागू किया गया है।

150 से अधिक देशों को गैर बासमती चावल निर्यात करता है भारत

वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत ने 2.12 करोड़ चावल का निर्यात किया था। जिसमें से 39.4 लाख टन बासमती चावल शामिल था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान गैर बासमती चावल का निर्यात 6.11 अरब डॉलर का व्यापार रहा था। भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में 150 से अधिक देशों में गैर बासमती चावल का निर्यात किया था। ये भी पढ़ें - भारत से टूटे चावल भारी मात्रा में खरीद रहा चीन, ये है वजह

नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव की संभावना

चावल के निर्यात पर सीमा शुल्क लगाने के अलावा इसी महीने होने वाली नवीकरणीय ऊर्जा प्रदर्शनी यानी 'रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो-2022' (Renewable Energy India Expo) में हरित उपकरणों के विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है, साथ ही देश मे स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में स्थिति, अवसर और चुनौतियों के बारे में श्वेत पत्र जारी किया जा रहा है।

28-30 सितंबर को होगा कार्यक्रम

इन्फोर्मा मार्केट्स इन इंडिया (Informa Markets in India) द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी दी गई है कि आगामी 28-30 सितंबर को ऊर्जा के क्षेत्र में एशिया के सबसे बड़े 15वें क्रिस्टल संस्करण रिन्यूएबल एनर्जी इंडिया एक्सपो 2022 कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम दिल्ली के समीप उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में इंडिया एक्सपो मार्ट (India Expo Centre & Mart ) में होगा। ------ लोकेन्द्र नरवार
अगर आप भी चावल में मिलावट कर उसे बेच रहे हैं तो सावधान हो जाइए

अगर आप भी चावल में मिलावट कर उसे बेच रहे हैं तो सावधान हो जाइए

भारत में उगाए जाने वाले बासमती चावल का पूरी दुनिया में डंका बजता है। अगर पिछले साल की बात की जाए तो साल 2022-23 में बासमती चावल का निर्यात 24.97 लाख टन दर्ज किया गया है। अमेरिका और यूरोप में तो भारत के बासमती चावल की डिमांड है ही इसके साथ-साथ अरब के देशों में भी भारत से बासमती चावल मंगवाए जाते हैं। यही कारण है, कि पिछले कुछ समय में ना सिर्फ भारत चावल का सबसे बड़ा उत्पादक देश रहा है। बल्कि हम पूरे विश्व में बहुत ही बड़े स्तर पर चावल का निर्यात भी करते हैं। भारत की तरफ से हमेशा कोशिश की जाती है, कि पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय बाजार मानकों के आधार पर खरा उतरने के बाद ही बासमती चावल का निर्यात किया जाए। लेकिन आजकल बहुत से व्यापारी और चावल वितरित करने वाली कंपनियां नकली बासमती चावल बेच रही हैं। इस तरह की गड़बड़ी करते हुए अपनी नोटों से जेबें भर रहे हैं। ऐसी गैर-कानूनी गतिविधियों पर अब भारतीय खाद्य संरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी FSSAI ने लगाम कस दी है। अगर रिपोर्ट्स की मानें तो FSSAI ने बासमती चावल की क्वालिटी और स्टैंडर्ड के लिए खास नियम तय कर दिए हैं, जिनका पालन चावल कंपनियों को करना ही होगा। ये नियम 1 अगस्त 2023 से देशभर में लागू हो जाएंगे। नियमों का पालन न किए जाने पर व्यापारियों और कंपनियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही की जाएगी।

अब बाज़ार में बिकेगा केवल नेचुरल बासमती चावल

असली बासमती चावल में अपनी खुद की एक प्राकृतिक सुगंध होती है। लेकिन आजकल कई कंपनियां आर्टिफिशियल कलर और नकली पॉलिश करते हुए बासमती चावल में बाहर से एक अलग खुशबू डाल देती हैं। इस तरह के नकली चावल देशभर में बेचे जा रहे है। लेकिन अब सरकार ने इस कुकर्म पर लगाम लगाने की ठान ली है। ऐसी कंपनियों पर लगाम कसते हुए अब भारत सरकार के बजट में फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (फूड प्रोडक्ट स्टैंडर्ड एंड फूड एडिटिव) फर्स्ट अमेंडमेंट रेगुलेशन 2023 नोटिफाई किया गया है।


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इसमें बासमती चावल के लिए खास स्टैंडर्ड निर्धारित किए गए हैं, ताकि असली बासमती की पहचान, सुगंध, रंग और बनावट के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। नए नियमों में ब्राउन बासमती, मिल्ड बासमती, पारबॉइल्ड ब्राउन बासमती और मिल्ड पारबॉइल्ड बासमती चावल को प्रमुखता से जोड़ा गया है। इन खास तरह के स्टैंडर्ड का पालन न करने पर कंपनियों के खिलाफ सरकार की तरफ से लीगल एक्शन लिया जा सकता है।

किसे कहेंगे असली बासमती चावल

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी FSSAI द्वारा निर्धारित रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स के अनुसार, असली बासमती चावल वही होगा, जिसमें प्राकृतिक सुगंध होगी। साथ ही, इन नियमों के तहत बासमती चावल को किसी भी तरह से आर्टिफिशियल पॉलिश नहीं किया जाएगा। जो भी कंपनियां बासमती चावल बेच रही हैं, उन्हें पकने से पहले और पकने के बाद के चावल का आकार निर्धारित करना होगा। इसके अलावा चावल कंपनियों को बासमती चावल में नमी की मात्रा, एमाइलॉज की मात्रा, यूरिक एसिड के साथ-साथ बासमती चावल में टुकड़ों की उपस्थिति और इनकी मात्रा की पूरी जानकारी देनी होगी।

1 अगस्त से लागू हो जाएंगे नियम

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण द्वारा बासमती चावल के लिए निर्धारित रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स 1 अगस्त 2023 से लागू हो जाएंगे। इन नियमों का सबसे बड़ा मकसद बासमती चावल में हो रही मिलावट को खत्म करना है। साथ ही, ग्राहकों के हितों की रक्षा देश नियम के तहत की जाएगी। यहां पर सरकार का मकसद है, कि आपके खाने की थाली में एकदम वैसे ही चावल पहुंच सके जैसा उन्हें उगाया गया है।
प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है, FSSAI ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की हैं

प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है, FSSAI ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की हैं

जानकारी के लिए बतादें कि मिलावटी बासमती चावल का यह मु्द्दा अब काफी ज्यादा उठ चुका है। इसके लिए फिलहाल FSSAI मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा गाइडलाइन भी जारी कर दी गई हैं। भारत में आप उत्तर से लेके दक्षिण तक नजर डालोगे तो आपको रोटी से अधिक चावल को पसंद करने वाले लोग मिल जाएंगे। भारत में चावल की बहुत सारी प्रजातियां उपस्थित हैं। परंतु, सर्वाधिक बासमती चावल को पसंद किया जाता है। बासमती चावल की मांग वर्ष भर भारत में बनी रहती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है, कि यहां घरों में तो ये चावल बनता ही है, इसके साथ-साथ कोई भी कार्यक्रम हो उसमें भी लोग बासमती चावल ही बनाना पसंद करते हैं। इसी का लाभ उठा कर मिलावट खोर वर्तमान में इसमें मिलावट करने लग गए हैं। आइए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि कैसे आप असली और नकली बासमती चावल की पहचान कर सकते हैं।

प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी अहम बन चुका है

जैसा से कि हम जानते हैं, कि मिलावटी बासमती चावल का मु्द्दा इतना ज्यादा उठ चुका है, कि वर्तमान में इसको लेके FSSAI मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा गाइडलाइन भी जारी कर दी गई है। FSSAI के अनुसार, अगस्त 2023 से सभी को इस गाइडलाइन को मानना आवश्यक होगा। इसके लिए विशेष क्वालिटी और स्टैंडर्ड से जुड़े नियम जारी किए गए हैं। इन नियमों के अंतर्गत चावल की पहचान होगी, जो चावल इन मानकों पर उपयुक्त नहीं होंगे उनके मालिकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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प्लास्टिक वाले चावल की क्या पहचान होती है

प्लास्टिक वाले चावल बनते कैसे हैं। इस सवाल से पहले यह जानने की आवश्यकता है, कि प्लास्टिक के चावल बनते कैसे हैं। दरअसल, प्लास्टिक वाले बासमती चावल को बनाने हेतु मिलावटखोर कंपनियां प्लास्टिक और आलू का उपयोग करती हैं। यह चावल दिखने में और सुगंध में आम चावल की ही भांति होता है। परंतु, यह पूर्णतया नकली होता है और शरीर के लिए काफी ज्यादा हानिकारक भी होता है। इसकी पहचान करने का सबसे सुगम तरीका इसका स्वाद होता है। साथ ही, यदि आप इस चावल को धुलते हैं, तो आम चावल की भांति इसका पानी उतना सफेद नहीं होता है। वहीं, यदि आप इस चावल को थोड़े समय के लिए भिगो देंगे तो यह रबड़ की भांति हो जाएगा।

असली बासमती चावल किस तरह का दिखाई पड़ता है

असली बासमती चावल को आप उसकी गंध से ही पहचान सकते हैं। तो वहीं यह चावल आम चावलों की तुलना में अधिक लंबे होते हैं। इन चावलों की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका इनका सिरा होता है। जब आप असली बासमती चावलों को देखेंगे तो आपको उनके सिरे काफी नुकीले दिखाई देंगे। इसके साथ ही यह चावल बनते वक्त एक दूसरे से चिपकते नहीं हैं।