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खीरे की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

खीरे की उन्नत खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

कद्दूवर्गीय फसलों में खीरा का अपना एक विशेष स्थान है। क्योंकि भोजन के साथ सलाद के रूप में खीरा सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली फसल है। इस वजह से खीरा का उत्पादन देश के सभी हिस्सों में किया जाता है। गर्मियों में खीरे की बाजार में प्रचंड मांग बनी रहती है। इसे मुख्यत: भोजन के साथ सलाद के तौर पर कच्चा खाया जाता है। ये शरीर को गर्मी से शीतलता प्रदान करता है और हमारे शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। इसलिए गर्मियों में इसका सेवन करना बेहद लाभकारी बताया गया है। खीरे की गर्मियों में बाजार मांग को मद्देनजर रखते हुए जायद सीजन में इसकी खेती करके शानदार मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

खीरे की फसल में पाएं जाने वाले पोषक तत्व

खीरे का वानस्पतिक नाम कुकुमिस स्टीव्स है। यह एक बेल की भाँति लटकने वाला पौधा है। खीरे के पौधे का आकार बड़ा, पत्ते बेलों वाले और त्रिकोणीय आकार के होते है और इसके फूल पीले रंग के होते हैं। खीरे में 96 फीसद पानी होता है, जो गर्मी के मौसम में लाभकारी होता है। खीरा एम बी (मोलिब्डेनम) और विटामिन का एक शानदार स्त्रोत है। खीरे का प्रयोग दिल, त्वचा और किडनी की दिक्कतों के इलाज और अल्कालाइजर के तौर पर किया जाता है।

खीरे की विभिन्न प्रकार की उन्नत किस्में

खीरे की कुछ उन्नत भारतीय किस्में- पंजाब सलेक्शन, पूसा संयोग, पूसा बरखा, खीरा 90, कल्यानपुर हरा खीरा, कल्यानपुर मध्यम, स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा और खीरा 75 आदि प्रमुख हैं।

खीरे की नवीनतम किस्में- पीसीयूएच- 1, पूसा उदय, स्वर्ण पूर्णा और स्वर्ण शीतल आदि प्रमुख है।

खीरे की संकर किस्में- पंत संकर खीरा- 1, प्रिया, हाइब्रिड- 1 और हाइब्रिड- 2 आदि प्रमुख है।

खीरे की विदेशी किस्में- जापानी लौंग ग्रीन, चयन, स्ट्रेट- 8 और पोइनसेट आदि प्रमुख है।

खीरे की उन्नत खेती के लिए जलवायु व मृदा

सामान्य तौर पर खीरे को रेतीली दोमट व भारी मृदा में उत्पादित किया जाता है। परंतु, इसकी खेती के लिए एक बेहतर जल निकास वाली बलुई एवं दोमट मृदा उपयुक्त रहती है। खीरे की खेती के लिए मृदा का पीएच मान 6-7 के मध्य होना चाहिए। क्योंकि, यह पाला सहन नहीं कर सकता है। इसकी खेती उच्च तापमान में काफी बेहतरीन होती है। इसलिए जायद सीजन में इसकी खेती करना अच्छा रहता है।

खीरे की खेती बन रही है मोटी कमाई का जरिया , इस तकनीक की सहायता से किसान कर रहे दुगुना उत्पादन

खीरे की खेती बन रही है मोटी कमाई का जरिया , इस तकनीक की सहायता से किसान कर रहे दुगुना उत्पादन

गर्मियों में खीरे की खेती से किसान कमा रहे है मोटा मुनाफा। आइये आज के इस आर्टिकल में जानते है, किस प्रकार की तकनीक का उपयोग कर किसान खीरे से मोटी कमाई कर रहे है। 

यह कहानी है उतार प्रदेश के किसान दिलीप कुमार की जिन्होंने ड्रिप तकनीक की सहायता से खीरे की खेती कर भारी मुनाफा कमाया है। 

दिलीप कुमार ने बताया ड्रिप विधि से खीरे की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत की अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए। जुताई करने के बाद पुरे खेत में मेढ़ बनाते है और उन सभी मेढ़ों को पन्नी के जरिये अच्छे से ढक देते है। 

सभी मेढ़ों पर खीरे के बीज की बुवाई लगभग डेढ फ़ीट पर होनी चाहिए। खेत की मेढ़ों पर ड्रिप बिछा दी जाती है, और जब खीरे का पौधा बढ़ने लग जाता है तो इसी ड्रिप के द्वारा पौधों में सिंचाई की जाती है। ऐसा करने के बाद पौधों को बांस के जरिये सीधा डोरी या रस्सी से बाँध दिया जाता है। 

ऐसा करने से पौधा सीधा बढ़ता है और फसल अच्छी और ज्यादा रहती है। फलों को तोड़ने में भी आसानी होती है। खीरा की बुवाई के 60 से 65 दिन बाद ही पौधों पर फल निकलना शुरू हो जाते है। 

इन फलों को रोजाना तोड़कर बाजारों में बेचा जा सकता है। खीरे की फसल लगभग 2 महीने तक फल प्रदान करती है , इसके फलों को तोड़कर बाजार में कई बार बेचा जा सकता है।

किसानों द्वारा खीरे की खेती मुनाफे के तौर पर की जा रही है। यदि किसान खीरे की खेती वैज्ञानिक तौर से करें तो ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। लेकिन इसके लिए किसान को खीरे की बुवाई से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।

बाराबंकी में स्थित कुतलूपुर गांव के दिलीप कुमार ने बताया वो पिछले तीन वर्ष से एक बीघे जमीन पर खीरे की खेती कर रहे है। 

उन्होंने खीरे की खेती ड्रिप विधि की सहायता से शुरू की आज वो खीरे के खेती लगभग 4 बीघे जमीन पर कर रहे है। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया खीरे की खेती से वो सालाना 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमा रहे है। 

खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल 

खीरा की फसल लगभग 60 से 65 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। यह बहुत जल्दी तैयार होनी वाली फसल है। दीलिप कुमार ने बताया खीरे की एक बीघे खेती में लगभग 15 से 20 हजार का खर्चा आता है। 

खीरे की ड्रिप विधि द्वारा खेती में बीज, बांस, डोरी, पन्नी, ड्रिप, लेबर और कीटनाशक दवाइयों का खर्चा आता है। लेकिन इससे मुनाफा भी 3 से 4 लाख रुपए सालाना कमाए जा सकते है। 

खीरा बहुत जल्दी तैयार होने वाली फसल है। भोजन के साथ सलाद के अलावा खीरे को कच्चा भी खाया जा सकता है। इस फसल की बुवाई कर छोटे किसान भी इससे मुनाफा कमा सकते है। प्रति हेक्टेयर में खीरे का उत्पादन 100 से 150 क्विंटल होती है। 

एक एकड़ खेत में बीज की कितनी मात्रा होनी चाहिए ?

खीरे की बुवाई करते वक्त याद रहे, प्रति हेक्टेयर खेत में बीज की 1 किलोग्राम मात्रा की आवश्यकता रहती है। बीज की बुवाई से पहले बीज का उपचार करना आवश्यक है।  

यह भी पढ़ें: जायद में खीरे की इन टॉप पांच किस्मों की खेती से मिलेगा अच्छा मुनाफा

बिना उपचार के बीजो की खेतों में बुवाई करने से फसल में रोग लगने की ज्यादा आशंकाए रहती है। इसीलिए बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कप्तान से उपचारित करना चाहिए। 

कच्ची अवस्था में तोड़े खीरे के फल 

खीरे के फलों को कच्ची अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए, कच्चे फलों की बाजार में अच्छी कीमत होती है। फलों को एक दिन बाद छोड़कर तोडना चाहिए। 

फलों को तेज धार वाले चाकू से काटना चाहिए ताकि खीरे की बैल को कोई नुक्सान न पहुंचे। खीरे को पीला पड़ने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए , फल को तोड़ते समय फल नरम होना चाहिए। 

आलू के बाद ककड़ी की खेती दे कम समय में अच्छा पैसा

आलू के बाद ककड़ी की खेती दे कम समय में अच्छा पैसा

ककड़ी की खेती, आलू के खाली हुए खेतों में की जाए तो 40 से 50 दिन बाद उत्पादन देना शुरू कर देती है। इसकी खेती मण्डियों में खीरे की फसल की बड़ी आवक से पूर्व आने के कारण किसानों की अच्छी आय का जरिया बन सकती है। किसान इसके लिए बस तत्काल खेतों की अच्छे से जुताई करके बीज रोपदें और प्लास्टिक सीट से कूंड़ों को ढ़क दें ताकि बीज का अंकुरण ठंड के समय में ही हो जाए। प्लास्टिक सीट को लोटनल पॉलीहाउस के रूप में प्रयोग न कर पाने वाले किसान दिसंबर के अंत में या फिर फरबरी के प्रारंभ में तापमान सामान्य होने पर खेतों में बीजों की रोपाई करें।

ककड़ी की किस्में

ककडी की सरकारी संस्थानों के साथ-साथ प्राईवेट कंपनियों की किस्में बाजार में बेहद प्रचलित हैं। कारण यह है कि सरकारी संस्थानों तक मेहतनी किसानों की पहुंच बहुत ज्यादा नहीं है। वह नजदीकी दुकानदारों पर ही निर्भर रहते हैं। ककड़ी की खेती कैसे करें यह जानने के लिए इसकी हर तकनीकी जानकारी होना आवश्यक है। इसकी चंद्रा कंपनी की सुपर चंद्रप्रभा चंद्रा, ग्लोवल, डाक्टर नामक कंपनियों की ककड़ी के अलावा एग्रो कंपनी की ककड़ी बहुतायत में लगाई जाती है। पंजाब लान्गमेलन, करनाल सलेक्सन, अर्काशीतल जैसी अनेक किस्में सरकारी संस्थानों ने विकसित की हैं। इन सभी का उत्पादन 100 कुंतल प्रति एकड़ से ज्यादा बैठता है। किस्म का चयन कम समय में फल देने वाली का करना चाहिए।

आलू के खेतों के खाली होने के साथ ही किसान अच्छे से खेत तैयार कर इसके बीज को रोप सकते हैं। इकसे लिए खेत में नाली बनाई जाती है और नाली के किनारों पर ककड़ी बीज रोपा जाता है। आलू के खेतों में किसान कम्पोस्ट और रासायनिक खाद भरपूर डालते हैं। इस लिए ककड़ी के लिए कम उर्वरकों का प्रयोग करें। बीज को बुबाई से पूर्व कार्बन्डाजिम जैसे किसी फफूंदनाशक से दो ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दस से उपचारित करके बोएं।

ककडी की अच्छे फलन के लिए क्या करें

ककड़ी की फसल

सब्जी वाली फसलों में अच्छा फल बनाने के लिए कई तरह के प्रयोग वैज्ञानिकों ने किए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रयोग खरपतवारनाशी टू4डी का है। इसकी दो पीपीएम मात्रा यानी की 100 लीटर पानी में मात्र 2 एमएल दवा घोलकर बीज से अंकुर निकलने और दो पत्ते का होने की अवस्था में ही कर देना चाहिए। इससे फल बनने के समय नर फूलों की संख्या अधिक नहीं होगी। मादा फूल प्रचुर मात्रा में होंगे और हर फूल पर फल बनेंगे।

ककड़ी की खेती के लिए मिट्टी की सेहत

ककड़ी की खेती के लिए जमीन का पीएच मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जमीन अच्छी जल धारण क्षमता वाली एवं भुरभुरी होनी चाहिए।

फसल की बुबाई का समय

किसी भी फसल को यदि अगेती लगाया जाता है तो मण्डियों में अच्छा पैसा मिलता है लेकिन इसके लिए प्लास्टिक सीट का लो टनल पॉलीहाउस बनाना पड़ता है। इसमें पौध को प्लग ट्रे, दौने या छोटे ग्लासों में तैयार किया जाता है या फिर खेत में ही बीज रोपकर पालीथिन से ढ़कना पड़ता है। सामान्य तरीके से खेती करने के लिए फरवरी से मार्च तक ककड़ी की खेती के लिए बीज खेत में रोपे जा सकते हैं।

जरूरी क्रियाएं

हर फसल के लिए कुछ क्रियाएं आवश्यक होती हैं। ककड़ी की खेती के लिए प्रति एकड़ एक किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। कतार से कतार के मध्य डेढ़ से दो मीटर की दूरी रखें। एक स्थान पर कमसे कम दो बीज चोभें। ककड़ी की खेती के लिए चार से पांच पानी की आवश्यकता होती है।  बीज को ढ़ाई से चार सेण्टीमीटर गहरा बोना चाहिए।

ककड़ी की खेती में कीट एवं रोग

ककड़ी की खेती में कई तरह के कीट एवं रोग लगते हैं। इन्हें समुचित सिंचाई, बीजोपचार, उर्वरक प्रबंधन से रोका जा सकता है। इसमें लगने वाला कीट चेंपा होता है। यह सरसों की फसल से आता है। इसे मारने के लिए किसी भी सामान्य कीटनाशनक का छिड़काव फसल पर करें। भुण्डी के कारण फूल, पत्ते और तना प्रभावित होता है। इसके लक्षण दिखते ही कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। फल मक्खी से फसल को बचाने के​ लिए नीम के तेल का प्रयोग तीन प्रतिशत के हिसाब से करें। फफूंदजनित बीमारियों की रोकथाम के लिए कार्बन्डाजिम की उचित मात्रा का छिड़काव करें।

उचित क्रियाओं और रोगों की निगरानी व निदान करते हुए अधिकतम 60—70 दिन में फल लगने लगता है। इसकी ठीक तरह से ग्रेडिंग—पैकिंग करके बाजार ले जाएं। प्रारंभिक तौर पर ककड़ी की बेहद अच्छी कीमत मिलती है।

ऐसे करें खीरे की खेती, मिलेगा मुनाफा ही मुनाफा

ऐसे करें खीरे की खेती, मिलेगा मुनाफा ही मुनाफा

गर्मियों के मौसम में लोगों को खीरा सबसे ज्यादा पसंद आता है. इससे ना सिर्फ प्यास बुझती है, बल्कि यह शरीर को अंदर से तरोताजा कर देता है. खीरे से हेल्थ को बहुत फायदा होता है, साथ ही यह स्किन के लिए काफी अच्छा माना जाता है. अनगिनत गुणों वाले खीरे की खास तरह से खेती करके किसान भाई मुनाफा ही मुनाफा कमा सकते हैं. बात जब खीरे की खेती करने की आती है तो इसकी खेती खरीफ और जायद दो सीजन में सबसे ज्यादा की जाती है. इसके अलावा खीरे की खेती ग्रीन हाउस में पूरे साल भर बड़ी ही आसानी के साथ की जा सकती है. हालांकि खीरे की डिमांड बसे ज्यादा गर्मियों के मौसम में होती है. क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होती है. इस वजह से इसका सेवन गर्मियों में सबसे ज्यादा किया जाता है. गर्मियों में खीरा खाने से पेट से जुड़ी समस्याएं दूर रहती हैं. खीरे में 95 प्रतिशत पानी होता है जो गर्मियों में शरीर को डी-हाईड्रेट होने से बचाता है. खीरे में कई तरह के विटामिन मौजूद होते हैं जो स्किन और बालों के लिए काफी अच्छे होते हैं. सलाद, सब्जी या फिर कच्चा किसी भी तरह से खीरे का सेवन किया जा सकता है.

खीरे से जुड़ी खास जानकारी

खीरे का नाम कुकुमिस स्टीव्स है. इसे खास रूप से भारत में उगाया जाता है. खीरे की बेल होती है, जिसमें इसके फल लटकते हैं. खीरे के बीजों का इस्तेमाल तेल निकालने के लिए भी किया जा सकता है. जो शरीर और दिमाग दोनों के लिए ही काफी अच्छा होता है. खीरे के पौधे का आकार लंबा और इसके फूल पीले रंग के होते हैं. खीरे का इस्तेमाल स्किन, किडनी और दिल से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए किया जाता है.

क्या हैं खीरे की उन्नत किस्में?

भारतीय किस्में

स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा, कल्यानपुर मध्यम, खीर 90, पूसा खीरे जैसी करीब 75 किस्में हैं.

नवीनतम किस्में

स्वर्ण शीतल, पूसा उदय, स्वर्ण पूर्णा आदि. ये भी देखें: खीरा की यह किस्म जिससे किसान सालों तक कम लागत में भी उपजा पाएंगे खीरा

संकर किस्में

पंत संकर खीरा, प्रिया, हाइब्रिड 1, हाइब्रिड 2 आदि.

विदेशी किस्में

जापानी लौंग ग्रीन, स्ट्रेट 8, पोइनसेट आदि.

खीरे की खेती के लिए क्या हो जलवायु और मिट्टी?

खीरे की उन्नत खेती के लिए रेतीली दोमट और भारी मिट्टी में उगाया जाता है. इसकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई और दोमट मिट्टी दोनों की जरूरत होती है. खीरे की अच्छी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मां कम से कम 5 से 7 के बीच में होना चाहिए. अगर आप खीरे की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए अच्छे तापमान की जरूरत होती है.

क्या है खेती का सही समय?

खीरे की खेती पाले से खराब हो सकती है. इसलिए इसकी खेती के लिए जायद सीजन सबसे अच्छा होता है. गर्मियों के मौसम में खेती के बीजों की बुवाई फरवरी और मार्च के महीने में होती है. बारिश के मौसम में इसकी बुवाई जून से जुलाई में की जाती है. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च और अप्रैल के महीने में की जाती है.

कैसे करें जमीन तैयार?

खीरे की खेती करने से पहले जमीन को अच्छे से तैयार करना बेहद जरूरी है. इसके लिए पहली जुताई मिट्टी को पलटने वाले हल से करके इसकी दो से तीन बार जुताई देसी हल से करनी चाहिए. ये भी देखें: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

कितनी हो बीज की सही मात्रा?

अगर किसी किसान का खेत एक एकड़ है तो उसके लिए कम से कम एक किलो खीरे के बीजों की मात्रा काफी है. इस बात का ध्यान रखें कि, बिजाई से पहले फसल को कीड़ों और रोगों से बचाने के लिए जरूरी उपचार करें. बुवाई से पहले बीजों का कम से कम दो से तीन ग्राम कप्तान के साथ उपचार किया जाना चाहिए. इसके बीज बोने के लिए ढ़ाई मीटर चौड़े बैड का चुनाव करें. हर जगह दो बीजों की बुवाई करें औए उनके बीच कम से कम 50 से 60 सेमी. का फासला जरूर रखें.

कैसा हो बुवाई का सही ढ़ंग?

खीरे के बीजों की बुवाई छोटी सुरंग विधि से की जा सकती है. इस विधि से खीरे की पैदावार जल्दी होती है. इसके लिए गड्ढे को खोदकर बुवाई करनी चाहिए. इसके साथ ही खालियां बनाकर बुवाई और गोलाकार गड्ढे खोदकर भी बुवाई की जा सकती है.

कितनी हो खाद की मात्रा?

खीरे की खेती से पहले खेत तैयार करते वक्त 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटेशियम को शुरुआत में खाद के तौर पर डालें. बुवाई के समय नाइट्रोजन का एक तिहाई हिस्सा और पोटेशियम और सिंगल सुपर फास्फेट को मिलाकर डालें. बुवाई के लगभग एक महीने के बाद बची हुई खाद का भी इस्तेमाल कर लें.

कैसे करें खरपतवार को नियंत्रित?

खीरे की खेती के दौरान हो रही खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए गोड़ाई और रसायनों की मदद ली जा सकती है. इसके अलावा आधा लीटर ग्लाइफोसेट को हर 150 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जाता है. इसका छिड़काव मुक्य फसल पर ना करें.

कैसे करें सिंचाई?

खीरे की खेती गर्मियों के मौसम में की गयी है, तो इसकी सिंचाई बार बार की जानी चाहिए. हालांकि बारिश के मौसम में इसे सिंचाई की जरूरत नहीं होती. इसमें बुवाई से पहले एक बार सिंचाई की जानी चाहिए. जिसके बाद तीन से चार दिनों के गैप पर सिंचाई की जाती है. वहीं दूसरी बुवाई के बाद 5 से 6 दिनों पर सिंचाई की जाती है. ये भी देखें: मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

कैसे करें पौधे की देखभाल, बिमारी और रोकथाम

एन्थ्राक्नोस नाम की बिमारी में फल गलने लगते हैं. यह बिमारी खीरे के सारे हिस्सों को बुरी तरह से प्रभावित करती है. खासतौर से वो हिस्से जो जमीन के ऊपर होते हैं. इसमें पुराने पत्तों पर पीले रंग के दाग धब्बे और फलों पे गहरे गोल धब्बे नजर आते हैं. इस बिमारी की रोकथाम के लिए क्लोरोथैलोनिल और बेनोमाइल का इस्तेमाल किया जाता है.

अगर पौधा मुरझाए

इर्विनिया नाम की इस बिमारी से पौधे की नाड़ी प्रभावित होने लगती है. जिस वजह से पौधा मुरझा या सूख जाता है. पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए कीटनाशक स्प्रे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

पत्तों में दिखे सफेद धब्बे

अगर आपको पत्तों के ऊपर पाउडर वाले सफ़ेद धब्बे नजर आएं, तो सतर्क होने की जरूरत है. इससे पौधों को बचाने के लिए बैनोमाइल या क्लोरोथैलोनिल का स्प्रे किया जा सकता है.

अगर हो जाए चितकबरा रोग

अगर पौधे को चितकबरा रोग जाए तो पौधों का विकास रुक जाता है. इसके अलावा पत्ते मुरझा जाते हैं और निचले हिस्से में पीलापन हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए डियाजीनॉन का स्प्रे किया जाता है.

अगर लग जाए फल की मक्खी

खीरे की फसल में लगने वाला यह बेहद गंभीर रोग है. इसमें फल गलने शुरू हो जाते हैं और टूटकर नीचे गिर जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए पत्तों पर नीम के तेल का स्प्रे किया जाना चाहिए.

कैसे करें फसल की कटाई?

बुवाई के करीब एक से डेढ़ महीने में पौधे में फल लगाना शुरू हो जाते हैं. खीरे की कटाई खास तौर पर बीज के नरम होने, फल छोटे और हरे होने पर करें. इसकी कटाई के लिए धारदार चाकू या किसी नुकीली चीज का इस्तेमाल करें. इसकी पैदावार प्रति एकड़ 33 से 42 क्विंटल तक होती है. ये भी देखें: खरीफ की फसल की कटाई के लिए खरीदें ट्रैक्टर कंबाइन हार्वेस्टर, यहां मिल रही है 40 प्रतिशत तक सब्सिडी

कैसा हो बीज का उत्पादन

खीरे के उत्पादन के लिए भूरे रंग के बीज अच्छे होते हैं. बीज निकालने के लिए फलों के गुदे को कम दे कम दो दिनों तक पानी में रखें, ताकि बीज आसानी से अलग किये जा सकें. उसके बाद उन्हें हाथों से जोर से रगड़ा जाता है. जो बीज पानी में भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं, उनका इस्तेमाल कई और कामों में किया जाता है. इस तरह से खीरे की खेती करने से किसान भाइयों को अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है.
डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

खीरे के बाद अगर गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है, तो वो है ककड़ी. जी हां, ककड़ी बेहद कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है. देखा जाए तो, देश में लगभग सभी क्षेत्रों में ककड़ी की खेती की जाती है. गर्मियों का सीजन आते ही बाजार में इसकी डिमांड दोगुनी हो जाती है. जिसे देखते हुए अगर इसकी खेती की जाए तो, डबल मुआफा आराम से कमाया जा सकता है. देश में किसान ककड़ी की खेती नगदी फसल के तौर पर करते हैं. 

ककड़ी की खेती करने के लिए बेहद कम लागत में की जा सकती है. जिसमें अच्छा खासा मुनाफा मिलता है. इसे भारतीय मूल की फसल कहा जाता है, जिसे जायद के सीजन में उगाया जाता है. ककड़ी के पौधे में लगभग एक फीट तक फल लगते हैं. इसे सब्जी या सलाद के रूप में खाया जा सकता है. 

ये भी पढ़े: खीरे की खेती कब और कैसे करें? 

ककड़ी की खेती अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो इस्ससे डबल मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर आप भी ककड़ी की खेती करना चाहते हैं, तो इससे जुड़ी हर तरह की जानकारी के बारे में आपको जान लेना जरूरी है.

कैसे करें ककड़ी की खेती?

ककड़ी का साइंटिफिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय है. यह जायद के सीजन में बोई जाती है. तरोई की तरह ही इसकी खेती भी की जाती है. फरवरी से मार्च के बीच में इसकी बुवाई की जाती है. बलुई दुमट जमीनों से इसकी फसल अच्छी होती है. हफ्ते में दो बार इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत होती है. ककड़ी की सबसे अच्छी फसल गरम और शुष्क मौसम में होती है. दो जातियों वाली इस ककड़ी में एक का रंग हल्का हरा होता है, तो वहीं दूसरे में गहरे हरे रंग की होती है. इन दोनों जातियों में से पहली जाति को लोग ज्यादा खाना पसंद करते हैं. दो सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से उसकी उपज होती है.

क्या है उपयुक्त जलवायु?

गर्म और शुष्क जलवायु ककड़ी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. इसलिए गर्मियों के मौसम में इसकी पैदावार ज्यादा और अच्छी होती है. वहीं टंडी जलवायु में इसकी खेती करना मुश्किल हो सकता है. ककड़ी की फसल खासतौर पर गर्मियों की फसल है. 20 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच इसके बीज बढ़ते हैं. अगर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम है तो, कम के बीज नहीं लगते. लेकिन ज्यादा तापमान भी ककड़ी की खेती के लिए हानिकारक होता है.

कैसी हो जमीन?

ककड़ी की खेती आमतौर पर सरलता से सभी क्षेत्रों में की जा सकती है. अगर मिट्टी उपजाऊ है, तो इसकी खेती करने में आसानी हो सकती है. अगर इसकी अच्छी खासी पैदावार चाहते हैं, तो कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. जहां पर इसकी खेती कर रहे हैं, उस जगह की जमीन की पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए. अगर जल भराव वाली जगह पर खेती की जाएगी, तो फसल बर्बाद हो जाएगी.पीएच 6 से 7.5 मां वाली मिट्टी ककड़ी की खेती के लिए जरूरी होती है.

कैसे करें खेत की तैयारी?

अगर आप ककड़ी की कहती से उसकी ज्यादा पैदावार चाहते हैं, तो इसके खेत को पहले अच्छे से तैयार कर लें. खेत को तैयार करने के लिए खेत में पहले से मौजूद गंदगी को अच्छे से साफ़ कर लें, और खेत की अच्छे जुताई कर लें. जिसके बाद खेत को पलेव कर दें. इसके तीन से चार दिनों के बाद जब मिट्टी ऊपर से थोड़ी सूखने लगे तो उसे भुरभुरी बला लें. समतल जमीन पर मेड़ बनाकर ककड़ी के बीजों की बुवाई की जाती है. बुवाई से पहले तैयार खेत में नाली जरुर बना लें. ताकि जब भी मिट्टी में नमी हो तो बुवाई का काम शुरू किया जा सके. क्योंकि नम मिट्टी में बीजों का अंकुरण भी तेज होता है, और विकास भी अच्छा होता है. 

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क्या हैं उन्नत किस्में?

वैसे तो ककड़ी की उन्नत किस्में काफी कम होती हैं. लेकिन कुछ संकर किस्मों की मदद से किसान ज्यादा से ज्यादा ककड़ी की पैदावार कर सकते हैं.
  • जैनपुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 80 से 85 दिनों के बाद होता है. वहीं इसका उत्पादन 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलता है.
  • अर्का शीतल की उन्नत किस्म 90 से 100 दिन बाद लगभग 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • पंजाब स्पेशल की उन्नत किस्मों का उत्पादन समय 90 से 95 दिन के बाद होता है. जिसमें 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • दुर्गापुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 90 से 100 दिनों का होता है. जिसमें उत्पादन 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • लखनऊ अर्ली की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 75 से 80 दिन का होता है, इसमें 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • 708 की उन्नत किस्म में इसका उत्पादन 80 दिनों के बाद होता है. वहीं 140 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसका उत्पादन होता है.

कितनी मात्रा में करें बीज की बुवाई?

ककड़ी के बीजों की रोपाई आपके तरीके पर भी निर्भर करता है. इसके लिए कम से कम एक हेक्टेयर के खेत में लगभग दो से तीन किलोग्राम बीज काफी होते हैं. अगर आप चाहते हैं, कि मिट्टी को किसी तरह का रोग ना हो तो, उसके लिए बुवाई से पहले बैनलेट या दो से तीन ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें. अगर आप ककड़ी के पौधों को नर्सरी में तैयार कर सकते हैं, या किसी नर्सरी से खरीद भी सकते हैं. ककड़ी के बीजों की रोपाई करने के लिए कम से 20 से 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाएं. जिसके दोनों किनारे 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करें.

कितनी को खाद की मात्रा?

ककड़ी की खेती से पहले जमीन पर गोबर की सड़ी खाद को 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाया जाता है. यह ककड़ी की खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता है. इसके अलावा अगर रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके रूप में 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कर सकते हैं. फास्फोरस और पोटाश को आपस में मिलाकर उसमें एक तिहाई नाइट्रोजन मिला दें. फिर बुवाई करने वाली नालियों की जगह पर डालकर उसमें मिट्टी मिला दें और मेंड़ बना दें. बाकी के बचे हुए नैत्रोजं को दो बराबर हिसों में मिलाकर एक महीन के बाद नालियों में डालकर गुड़ाई कर दें.

कैसे करें पौधों की सिंचाई?

ककड़ी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. इसकी शुरुआती सिंचाई को पौधे रुपाई के तुरंत बाद करना होता है. वहीं गर्मियों के सीजन में ककड़ी के पौधों को हफ्ते में दो बार सिंचाई की जरूरत होती है. अगर जमीन में नमी कम है तो, पैदावार पर इसका असर हो सकता है. इसलिए पौधों पर बनने वक्त उनकी हल्की सिंचाई करते रहना जरूरी होता है.

कैसे करें रोग नियंत्रण?

बेल के रूप में विकास करने वाला ककड़ी का पौधे में खरपतवार से बचाना बेहद जरूरी है. इसे कंट्रोल करने के लिए निराई गुड़ाई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. जो 20 से 30 दिनों के बाद की जाती है. इसके अलावा इसके रोग को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं, ये भी जान लेते हैं.
  • ककड़ी की फसल में फल मक्खी का प्रकोप तेजी से होता है. इसे ककड़ी को ज्यादा नुकसान होता है. इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में बरुथी नाम का कीट पत्तियों के निचले हिस्से में रहता है. यह उसके तने और पत्तियों का रस चूसता है. इससे बचाव के लिए इथियान 50 ई सी 0.6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में दिखने वाला लाल भृंग नई पत्तियों को खा लेता है. इसकी वजह से पत्ते झुलसे हुए नजर आते हैं. इससे फसल को बचाने के लिए कार्बारिल का 3 से 5 फीसद चूरण का 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
ये भी पढ़े: जैविक पध्दति द्वारा जैविक कीट नियंत्रण के नुस्खों को अपना कर आप अपनी कृषि लागत को कम कर सकते है

कैसे करें फलों की तुड़ाई?

ककड़ी की फसल की तुड़ाई में बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. आपको इस बात का ख्याल रखना जरूरी है, कि फल हरे और मुलायम हो तभी तुड़ाई का काम करना चाहिए. अगर आपने समय से पहले या समय के बाद फलों की तुड़ाई करेंगे तो, फल अपना आकर्षण और गुण खो देते हैं. इस वजह से बाजार में इसके भाव भी घट जाते हैं.

तो कुछ इस तरह से ककड़ी की खेती करके आप भी मोटा मुनाफा कम सकते हैं.

नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

गर्मियों का सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में लोगों को गर्मी में कुछ रिफ्रेशिंग और नेचुरल चीजे खाने की सलाह दी जाती है. बात रोफ्रेशिंग और नेचुरल चीजों की हो तो कोई भला खीरे को कैसे भूल सकता है. जिसकी तासीर तो ठंडी होती ही है, साथ में शरीर के लिए भी बेहद फायदेमंद है. 

पहले के समय में खीरे की खेती किसी ख़ास सीजन में हुआ करती थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्नत किस्मों के बीज और पाली हाउस जैसे जरिये की मदद से अब लोगों को साल भर तक खीरे खाने को मिलता है. तभी तो पूरी दुनिया भर में भारत खीरे के सबसे बड़ा निर्यातक बनकर उबर चुका है. 

ज्यादातर मामलों में खीरे की बुवाई फरवरी से मार्च के महीने में की जाती है. खीरे की फसल गर्म और शुष्क वातावरण में की जाती है. साथ ही अच्छी जल निकाली वाली मिट्टी खीरे की फसल के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है. खीरा उन्हीं फसलों में से एक है, जिससे किसान भाइयों का अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है.

कहां से हुई निर्यात की शुरुआत

भारत में खीरे का निर्यात साल 1990 के दशक में कर्नाटक से शुरू हुआ था. जिसका स्तर काफी छोटा था. बाद में तमिलनाडु के साथ आंध्र प्रदेश एयर तेलंगाना में भी निर्यात का काम शुरू हो गया. पूरी दुनिया भर में सिर्फ भारत में 15 फीसद खीरे का उत्पादन किया जाता है. 

भारत से लगभग 20 देशों से भी ज्यादा खीरे का निर्यात किया जाता है, जिसमें अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्पेन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, जापान, चीन, रूस, श्री लंका और इजरायल जैसे देश हैं. 

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जानिए खीरे की उन्नत किस्मों के बारे में

वैसे तो खीरे की उन्नत किस्मों की भारत में भरमार है. जिनकी बुवाई से किसानों को भरपूर मुनाफा होता है. जिनमें पूसा संयोग और बरखा, स्वर्ण पूर्णिमा, स्वर्ण अनेति, पंजाब सलेक्शन जैसी ये सभी खीरे की अच्छी किस्मों में मानी जाती है.

इनके अलावा खीरे की एक और किस्म भी है. जिसका नाम इम्प्रूव्ड नूरी है. जिसे नुनहेम्स कंपनी ने तैयार किया है. इस खास किस्म के चलते किसानों को डबल मुनाफा होता है. किसानों को अच्छी और उपजाऊ फसलों के लिए बीज और नये नये किस्मों को उपलब्ध करवाने का काम नुनहेम्स कंपनी करती है. 

इसके अलावा यह कंपनी हरी सब्जियों और फलों की खेती के लिए बीज के साथ खेती करने का सही ढ़ंग भी किसानों को सिखाती है. ताकि उन्हें अच्छी और उन्नत फसलों का फायदा मिल सके. मोटल ग्रीन खीरे की किस्म इम्प्रूव्ड नूरी भी नुनहेम्स कंपनी की देन है. जिसकी उपज, आकार, परिपक्वता के साथ अन्य जानकारी भी जान लेनी चाहिए.

खीरे की किस्म है इम्प्रूव्ड नूरी

  • नुनहेम्स कंपनी इस खीरे की किस्म की स्रोत है.
  • लगभग 30 से 40 दिनों में यह पककर तैयार हो जाते हैं.
  • इस किस्म के खीरे का आकार बेलनाकार होता है.
  • इम्प्रूव्ड नूरी किस्म के खीरे की लम्बाई लगभग 18 से 22 सेंटीमीटर होती है.
  • कुछ वायरस के लिए इस किस्म में प्रतिरोधी किस्म है.
  • इस खीरे का रंग मीडियम हरा होता है.
  • इस किस्म के खीरे में भी संतुलित पोषक तत्व होते हैं.
  • इसकी उपज की बात की जाए तो इसमें काफी अच्छी उपज किसानों को मिलती है.

कैसे करें खीरे की खेती, जाने फसल से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण बातें

कैसे करें खीरे की खेती, जाने फसल से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण बातें

खीरा एक ऐसी फसल है जिसकी डिमांड भारत के बाजार में सालभर बनी रहती है। खीरे का नाम लेते ही हमारी आंखों के सामने एक बढ़िया सा सलाद या फिर खीरा सैंडविच जैसी चीजें सामने आने लगती है।  लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि खीरे की फसल को किसान कैसे उगाते हैं और कौन से समय में यह फसल उगाना सबसे अच्छा रहता है। खीरा एक प्रकार की हरी सब्जी है जिसकी बेल लगती है,  इसके फूल पीले रंग के होते हैं और यह फसल एक बहुत ही गुणकारी सलाद के रूप में जानी जाती है। यह एक ऐसी फसल है जो लगभग हर साल हमें बाजार में देखने को मिल जाती हैं। माना जाता है कि खीरे में लगभग 95% तक पानी होता है इसलिए गर्मियों में इसकी डिमांड और ज्यादा बढ़ जाती है। अगर आप अपने भोजन में खीरे का सेवन करते हैं तो गर्मियों के मौसम में यह आपको डिहाइड्रेट होने से बचाता है। इसके अलावा इसमें बहुत से विटामिन और पोषक तत्व पाए जाते हैं जो आपकी त्वचा और बालों के लिए बहुत गुणकारी माने गए हैं।

खीरे की खेती करना कैसे शुरू करें?

अगर मौसम की बात की जाए तो गर्मियों में, बारिश के मौसम में और सर्दी के समय तीनों ही प्रकार की ऋतु में
खीरे की फसल की खेती आसानी से की जा सकती हैं। यह एक ऐसी फसल है जिसमें किसान कम पैसे लगाकर लाखों रुपए का मुनाफा कमा सकते हैं।  इसके अलावा रोजाना हमें ऐसे बहुत से वाक्य देखने को मिलते हैं जिसमें किसान खीरे या फिर अलग-अलग तरह के हाइब्रिड खीरे की खेती करते हुए नई मिसाल कायम कर रहे हैं और अपने आप को आर्थिक रूप से सबल बना रहे हैं.

क्या है खीरे की खेती करने का सही समय ?

खीरे की फसल की खेती ज्यादातर गर्मी और बरसात के मौसम में ज्यादा की जाती है. गर्मी और बरसात के अलावा अगर किसान चाहे तो ग्रीनहाउस या फिर नेट हाउस की मदद से नहीं किसी भी सीजन में कर सकते हैं.

क्या है खीरे के पौधों की नर्सरी तैयार करने की विधि?

अगर किसान वातावरण और मौसम से अलग परिस्थितियों में खीरे की खेती करना चाहते हैं तो वह खीरे की पौध तैयार कर सकते हैं या फिर नर्सरी से भी खीरे  के पौधे खरीदे जा सकते हैं. ज्यादातर ऐसा उन मामलों में किया जाता है जब किसान मौसम के विपरीत इस फसल की खेती करना चाहते हैं  या फिर खेत में ज्यादा तापमान होने के कारण सीधे तौर पर इसकी बुआई नहीं कर पा रहे हैं।  नर्सरी से तैयार पौधों में एक खासियत यह होती है कि उन्हें किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है और साथ ही पॉलीहाउस नेट हाउस के लिए भी यह है पौधे अनुकूल रहते हैं। ये भी पढ़े: नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

खीरे के पौधों की नर्सरी तैयार करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

खीरे की नर्सरी तैयार करते समय किसान को बीजों का उच्च गुणवत्ता वाला चयन करना चाहिए। इसके बाद पौधों को ट्री-प्लेट या छोटे पॉलीबैग में लगाया जा सकता है। मिट्टी के लिए अच्छी मिट्टी का चयन करें और उर्वरक डालकर पॉलीबैग में भरें। बीजों को बैग में एक से 2 सेमी गहराई में लगाएं और पौधों में पानी दें। हल्की धूप और छाया वाले स्थान पर पौधे रखें और समय-समय पर देखभाल करें। नर्सरी में पौधा 12 से 16 दिन का होने पर उसे खेत में स्थापित कर दें।

खीरे की  नर्सरी तैयार करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • मिट्टी की तैयारी: खीरे की नर्सरी तैयार करते समय, मिट्टी को उत्तम ढंग से तैयार करना बहुत जरूरी है। खीरे को उगाने के लिए, नर्सरी में संभवतः लोम युक्त और निर्मल मिट्टी का उपयोग करना अच्छा होता है। मिट्टी को उचित संचार और निराई वाले जगह से चुनना चाहिए।
  • सीडलिंग की उपलब्धता: खीरे की नर्सरी में सीडलिंग की उपलब्धता का भी ध्यान रखना चाहिए। सीडलिंग के लिए उचित विकल्प चुनना बहुत जरूरी होता है। सीडलिंग की गुणवत्ता उच्च होनी चाहिए ताकि उन्हें अच्छी तरह से उगाया जा सके।
  • समय: खीरे की नर्सरी तैयार करने के लिए उचित समय चुनना बहुत जरूरी है। समय के अनुसार सीडलिंग के लिए उपलब्धता विभिन्न होती है। जैसे गर्मियों में खीरे की नर्सरी तैयार करना अधिक संभव होता है

खीरे की उन्नत किस्में ?

आजकल बाजार में हाइब्रिड खीरे भी आ रहे हैं और जब आप खीरे के किस्म के बारे में देखते हैं तो बाजार में बढ़-चढ़कर अलग-अलग वैरायटी आ रही हैं। आजकल हाइब्रिड खीरा काफी ज्यादा लोगों द्वारा पसंद किया जाता है और साथ ही किसान भी इसे उगा कर लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं।

इसके अलावा खीरे की कई उन्नत किस्में हैं, जो अलग-अलग शर्तों में उगाई जाती हैं। कुछ उन्नत खीरे की किस्में निम्नलिखित हैं:

  • हिमांशु (Himanshu)
  • पूजा (Pooja)
  • सुमीत (Sumit)
  • अर्जुन (Arjun)
  • गोल्डन (Golden)
  • किरण (Kiran)
  • वार्षिक (Varshik)
इनमें से कुछ किस्में अधिक उत्पादक होती हैं और कुछ अधिक रोग प्रतिरोधी होती हैं। इसलिए किसानों को अपने क्षेत्र में उगाने के लिए उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए।

विदेशी खीरे की उन्नत किस्में

  • हाइब्रिड लाइट ग्रीन
  • हाइब्रिड वाईट ग्रीन
  • स्वर्ण अगेती
  • स्वर्ण पूर्णिमा
  • पूसा उदय
  • पूना खीरा
  • पंजाब सलेक्शन
  • पूसा संयोग
  • विनायक हाइब्रिड
  • पूसा बरखा
  • खीरा 90
  • कल्यानपुर हरा खीरा
  • कल्यानपुर मध्यम
  • खीरा 75 जापानी लौंग ग्रीन
  • चयन
  • स्ट्रेट- 8
  • पोइनसेट
आदि प्रमुख है | विदेशी किस्मों की बात की जाए तो भारत में चाइनीज खीरे की खेती काफी कम की जाती है।

खीरे की फसल के लिए कैसी होनी चाहिए जलवायु?

जब भी आपकी खीरे की फसल पर फूल आता है उस समय तापमान अगर 13 से 18 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो यह है फसल के लिए काफी अच्छा माना जाता है और इसके बाद फूलों से जब खीरे बनते हैं तो 20 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में यह अच्छा उत्पादन लेता है।

खीरे की फसल के लिए कैसी होनी चाहिए मिट्टी?

खीरे की फसल के लिए अगर मिट्टी की बात की जाए तो जीवाश्म युक्त चिकनी मिट्टी,  बलुई मिट्टी,  काली मिट्टी और पीली मिट्टी इसके लिए एकदम उपयुक्त होती है।  इसके अलावा अगर आप खीरे की खेती ऐसी जगह पर कर रहे हैं जहां पर अधिक बरसात होती है तो ऐसी भूमि का चुनाव करें जहां पर बारिश का पानी खड़ा ना होता हो।

प्रति एकड़ के हिसाब से क्या रहेगी बीज  की लागत?

खीरे की फसल की बुवाई करते हुए किसान सीधा बीज  के माध्यम से भी है खेती कर सकते हैं या फिर नर्सरी से तैयार बौद्ध के साथी हैं खेत में लगा सकते हैं।  अगर आप बीज से बुवाई करते हैं तो तीन से चार सीट के अंतर पर तीन से चार बीज  एक साथ एक जगह पर लगाएं। ये भी पढ़े: खीरा की यह किस्म जिससे किसान सालों तक कम लागत में भी उपजा पाएंगे खीरा खीरे की आधुनिक खेती मे बीज की मात्रा 1 एकड़ में 1 किलो ग्राम तक लगती है | हाइब्रिड खीरा के बीज की लागत प्रति एकड़ 500 से 600 ग्राम प्रति एकड़ आवश्यकता पड़ती है |

क्या है खीरे के उत्पादन की  आधुनिक खेती विधि ?

खीरे की खेती करने के लिए देश में अलग-अलग क्षेत्र और सुविधा के अनुसार अलग-अलग तरह के तरीके अपनाए जाते हैं।  देश में आधुनिक विधियों से भी खीरे की खेती हो रही है।  खीरे की खेती करने की कुछ विधि है
  • माचान विधि
  • बांस मंडप विधि
  • मल्चिंग विधि
  • समतल खेत विधि

खीरे की खेती में  सिंचाई ?

खीरे की खेती में सिंचाई एक अहम् भूमिका निभाती है। खीरे पौधों को नियमित तौर पर पानी की आवश्यकता होती है ताकि उनके विकास में कोई बाधा न हो। इसके लिए सिंचाई का उपयोग किया जाता है। सिंचाई के लिए नलकूप, कुआं, नहर, तालाब आदि स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है। बारिश की कमी वाले क्षेत्रों में सिंचाई एक अत्यंत महत्वपूर्ण तरीका होता है खीरे की उत्पादन बढ़ाने के लिए। सिंचाई के लिए निर्धारित समय और मात्रा पर ध्यान देना चाहिए।

खीरे की फसल से  उत्पादन

खीरे की उचित देखभाल और सही मात्रा में सिंचाई करने पर एक एकड़ में 15 टन तक उत्पादन हो सकता है। यह उत्पादन भूमि की गुणवत्ता, उपयुक्त जलवायु, खेती की तकनीक, खाद आदि पर भी निर्भर करता है। देशी खीरे की औसत उपज 60 से 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा हाइब्रिड खीरे की औसत उपज 130-220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है |

खीरे की खेती से कमाई –

खीरे की खेती से कमाई उन्नत खेती के साथ संभव होती है। खीरे की खेती से कमाई का मुख्य स्रोत उत्पाद की बिक्री होती है। ये भी पढ़े: फरवरी में उगाई जाने वाली सब्जियां: मुनाफा कमाने के लिए अभी बोएं खीरा और करेला खीरे की खेती से प्रति एकड़ लाभ मिल सकता है जो कि ताजा बाजार में विभिन्न शहरों और नगरों में बेचे जाने वाले खीरों की मूल्य निर्धारण पर निर्भर करता है। इसके अलावा, खीरों से निर्मित उत्पादों के लिए भी बाजार होता है, जैसे कि आचार, मरीनेटेड खीरे, सलाद आदि। इन उत्पादों की बिक्री से भी अच्छी कमाई होती है। खीरे की खेती से कमाई को बढ़ाने के लिए खेती में उत्पादकता और उत्पाद गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, खीरे की खेती से कमाई को बढ़ाने के लिए अच्छी बीज उपलब्ध कराना, उत्तम सिंचाई व्यवस्था सुनिश्चित करना, उत्तम खाद उपलब्ध कराना और रोग-रोधक तथा कीटनाशक उपयोग करना अत्यंत आवश्यक होता है।

खीरे की फसल में लगने वाले कुछ लोग

खीरे में लगने वाले कुछ रोगों के नाम हैं:

  • वाइरस मॉसेइक
  • अधिक पानी से पौधे की वृद्धि और पत्तों का सूखा जाना
  • पानी का अभाव या कमी से होने वाली रोग
  • फसल के तने में सूखापन
  • पत्तों का पिलापन और मुरझाना
  • खीरे के दलों पर सफेद पदार्थ जमा हो जाना (मिल्यू बगैरा)
  • खीरे के पत्तों पर लाल रंग के दाग होना (अँगुलर स्पॉट)
खीरे की फसल के लिए नाइट्रोजन उर्वरक सबसे ज्यादा अच्छा माना जाता  है।  इस तरह से इन सब बातों का ध्यान रखते हुए आप खीरे की फसल से मुनाफा कमा सकते हैं।
ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

ककड़ी एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसकी खेती नकदी फसल के लिए की जाती है। भारतीय मूल की फसल ककड़ी जिसको जायद की फसल के साथ उत्पादित किया जाता है। इसके फल की लंबाई तकरीबन एक फीट तक होती है | ककड़ी को प्रमुख तौर पर सलाद एवं सब्जी के लिए उपयोग किया जाता है। गर्मियों के दिनों में ककड़ी का सेवन काफी बड़ी मात्रा में किया जाता है। यह गर्म हवा से बचाने में भी मददगार होती है एवं मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद भी होती है। ककड़ी के पौधे लता के रूप में फैलकर विकास करते हैं। भारत में ककड़ी की खेती तकरीबन देश के समस्त क्षेत्रों में की जाती है। किसान भाई इसकी खेती कर के अच्छी-खासी आमदनी भी करते हैं। अगर आप भी ककड़ी की खेती करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आगे इस लेख में आपको ककड़ी की खेती से जुड़ी सारी अहम जानकारी मिलेगी। यह जानकारी आपके लिए सहायक भूमिका निभाएगी।

ककड़ी की खेती कैसे करें

ककड़ी की खेती लिए उससे सम्बंधित सभी प्रकार की जानकारी का होना बहुत जरूरी होता है, इसलिए यहाँ इसके बारे में अवगत कराया गया है, इसके माध्यम से ककड़ी की उन्नत खेती करके लाभ कमा सकते हैं।

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ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

यदि हम ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त मृदा की बात करें तो यह किसी भी उपजाऊ मृदा में सहजता से की जा सकती है। लेकिन, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कार्बनिक पदार्थो से युक्त मृदा में ककड़ी का अधिक मात्रा में उत्पादन होता है। साथ ही, ककड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा भी काफी उत्तम मानी जाती है। ककड़ी की खेती करने के लिए जमीन जल निकासी वाली होनी बेहद जरूरी है। जल भराव वाली जमीन में ककड़ी की खेती न करें। ककड़ी की खेती में सामान्य P.H मान वाली मृदा की काफी जरूरत होती है।

ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

ककड़ी की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु का होना जरूरी होता है। सामान्य बारिश के मौसम में इसके पौधे बेहतर ढ़ंग से विकास करते हैं। परंतु, गर्मियों का मौसम ककड़ी की पैदावार के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। ककड़ी की खेती के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त नहीं होती है। बतादें, कि ककड़ी के बीज 20 डिग्री तापमान पर बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं। वहीं पौध विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान सबसे अच्छा होता है। इसके पौधे 35 डिग्री तापमान तक अच्छे से विकास कर लेते है। परंतु, इससे ज्यादा तापमान पौधों के लिए अनुकूल नहीं रहता है।

ककड़ी की खेती में सिंचाई किस प्रकार की जाए

  • ककड़ी की फसल में प्रथम सिंचाई बिजाई के शीघ्रोपरान्त करें।
  • द्वितीय सिंचाई के 4 से 5 दिन पश्चात करें, जिससे कि अंकुरण बेहतर हो पाए।
  • पौधो की वनस्पति एवं मृदा में नमी के आधार पर 7-10 दिनों के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए।
  • फसल में फूल आने से पूर्व, फूल आने के दौरान एवं फल के विकास के समय भूमि की नमी में गिरावट नहीं होनी चाहिये।
  • इससे फल की उन्नति में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसल से फलों की तुड़ाई के 2-3 दिन सिचाई करनी चाहिए, जिससे फल ताजा, चमकदार एवं आकर्षित बने रहेंगे।
  • किसान भाइयों जमीन की ऊपरी सतह से 50 से.मी. तक नमी को बरकरार रखना चाहिए। क्योंकि इस भाग पर जड़ें बड़ी संख्या में होती है ।


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ककड़ी की कटाई कब होती है

ऐसी स्थिति में जब फल हरे और मुलायम हों, तब ही तुड़ाई का कार्य करना चाहिए, ककड़ी की तुड़ाई किस्मो के अनुसार 35 से 40 दिन पर शुरू हो जाती है। फलो के आकार के अनुसार तुड़ाई करना चालू करदें।

ककड़ी की किस्में

पंजाब लोंगमेलन 1- यह किस्म 1995 में विकसित की गई थी। यह काफी शीघ्रता से पकने वाली प्रजाति है। इसकी बेलें लंबी, हल्के हरे रंग का तना, पतला एवं लंबा फल होता है। इसका औसतन उत्पादन 86 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। अर्का शीतल- इस किस्म के अंतर्गत 90 से 100 दिन की समयावधि में मध्म आकार का हरे रंग का फल लगता है। इसके फल को तैयार होने के लिए 90 से 100 दिन का समय लगता है। यदि हम इसके उत्पादन की बात करें तो पैदावार 200 से 250 क्विटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। दुर्गापुरी ककड़ी- दुर्गापुरी ककड़ी राजस्थान के समीपवर्ती राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है, इस प्रजाति के फल शीघ्रता से पककर तैयार हो जाते हैं। दुर्गापुरी ककड़ी की सही ढ़ंग से खेती करने पर करीब 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अर्जित किया जा सकता है। ककड़ी की इस किस्म के फल हल्के पीले रंग के होते हैं। जिन पर नालीनुमा धारियां नजर आती हैं।
परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई

परंपरागत खेती छोड़ हरी सब्जी की खेती से किसान कर रहा अच्छी कमाई

भारत में किसान परंपरागत खेती की जगह बागवानी की तरफ अपना रुख करने लगे हैं। आशुतोष राय नाम के एक किसान ने भी कुछ ऐसा ही किया है। कहा गया है, कि मार्च माह में उन्होंने बाजार से बीज लाकर तोरई और खीरे की बिजाई की थी। उन्होंने बताया था कि बुवाई करने से पूर्व उन्होंने खेत की बेहतर ढ़ंग से जुताई की गई थी।

 

आशुतोष ने इतने बीघे में तोरई और खीरे की खेती कर रखी है

बिहार के बक्सर जनपद में किसान परंपरागत खेती करने के साथ-साथ आधुनिक विधि से
सब्जी की भी खेती कर रहे हैं। इससे कृषकों को कम लागत में अधिक मुनाफा मिल रहा है। विशेष बात यह है, कि किसान एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। इनमें से आशुतोष राय भी एक उत्तम किसान हैं। इन्होने 2 बीघे भूमि में तोरई और खीरे की खेती कर रखी है। आशुतोष ने बताया है, कि उनके यहां विगत 20 साल से सब्जी का उत्पादन किया जा रहा है। हरी सब्जी विक्रय कर वह प्रतिवर्ष मोटी आमदनी कर लेते हैं।

 

आशुतोष खेती में जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं

मीड़िया खबरों के अनुसार, किसान आशुतोष राय का कहना है, कि उनके पिता जी और दादा जी पहले पारंपरिक ढ़ंग से खेती किया करते थे। इससे खर्च अधिक और लाभ कम होता था। परंतु, उन्होंने आधुनिक तकनीक से पारंपरिक फसलों के साथ- साथ बागवानी फसलों की भी खेती आरंभ कर दी है। इससे लागत में अत्यधिक राहत मिल रही है। आशुतोष की मानें तो वह अपने सब्जी के खेत में जैविक खाद का ही उपयोग करते हैं। इससे उनके खेत की सब्जियां हाथों- हाथ बाजार में बिक जाती हैं। 

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लगभग 2 महीने में हरी सब्जी की बिक्री शुरू हो गई

आशुतोष का कहना है, कि मार्च माह में उन्होंने बाजार से बीज लाकर तोरई और खीरे की बिजाई की थी। उन्होंने बताया कि बिजाई करने से पूर्व खेत को अच्छे ढ़ंग से जोता गया था। उसके बाद पाटा चलाकर मृदा को एकसार कर दिया गया। साथ ही, 6-6 फीट के फासले पर तरोई की बुवाई की गई। इसके साथ ही बीच-बीच में खीरे की भी बिजाई की गई। इस दौरान आशुतोष वक्त-वक्त पर सिंचाई भी करता रहा। लगभग 2 माह में हरी सब्जी की बिक्री चालू हो गई।

 

पारंपरिक फसलों के मुकाबले हरी सब्जी की खेती में ज्यादा मुनाफा है - आशुतोष

आशुतोष प्रतिदिन 10 रुपये किलो की कीमत से एक क्विंटल तोरई बेच रहे हैं। इससे उन्हें प्रतिदिन 10 हजार रुपये की आमदनी हो रही है। साथ ही, वह खीरा बेचकर भी अच्छा-खासा मुनाफा कर लेते हैं। आशुतोष के अनुसार तो 2 बीघे में सब्जी की खेती करने पर उनका 20 हजार रुपये का खर्चा हुआ है। साथ ही, रोगों से संरक्षण के लिए आशुतोष को कीटनाशकों का छिड़काव भी करना पड़ा है। इसके अतिरिक्त भी फसलों को व्हाईट फ्लाई रोग से काफी क्षति हुई है। आशुतोष राय ने बताया है, कि पारंपरिक फसलों की तुलना में हरी सब्जी की खेती में काफी ज्यादा मुनाफा है।