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सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे

सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे

अमरूद का वैज्ञानिक नाम सीडियम ग्वायवा है। इसकी प्रजाति सीडियम है और जाति ग्वायवा है। विटामिन की बात करें तो इस फल में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ए तथा विटामिन बी भी पाए जाते हैं। साथ ही इसमें आयरन, कैल्शियम तथा फास्फोरस काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसके कारण ये फल मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभकारी होता है। इतिहास में झांक कर देखें तो पता चलता है कि इस फल की उत्पत्ति केन्द्रीय अमेरिका में हुई, जिसे आजकल हम वेस्ट इंडीज के नाम से भी जानते हैं। वहां से यह फल 17 वीं शताब्दी में भारत आया। उसके बाद यह फल भारत की मिट्टी में इस तरह से रच बस गया कि मानों यह भारत के लिए ही पैदा किया गया हो। अब यह फल भारत के कोने-कोने में पैदा होता है। भारत में यह फल उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्रा, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी बंगाल और आंध्र प्रदेश में उगाया ही नहीं जाता है बल्कि इसकी खेती भी की जाती है। मीठे-मीठे व खट्टे -मीठे अमरूद तो आपने बहुत खाये होंगे। अमरूदों को गरीबों का सेब कहा जाता है। अमरूद के कितने फायदे होते हैं, शायद ही आप उनसे परिचित होंगे। यदि प्राचीन ग्रंथों की बात मानी जाये तो प्राचीन काल के ग्रंथों में अमरूद के औषधीय गुणों को देखते हुए संस्कृत भाषा में इस फल को अमृत फल कहा जाता था। इस फल एवं वृक्ष के औषधीय गुणों की बात करें तो अमरूद खाने से खून की कमी दूर होती है, इस फल में बीटा कैरोटीन होता है, इसलिये इसका सेवन करने से त्चचा संबंधी बीमारियां दूर होती हैं, चेहरे पर निखार आता है। इस फल से कब्ज की शिकायत दूर होती है। भुना हुआ अमरूद खाने से सर्दी-खांसी में फायदा मिलता है। फाइबर युक्त होने के कारण यह फल डायबिटीज को कंट्रोल करता है। अमरूद की पत्तियों का लेप लगाने से गठिया की बीमारी ठीक हो जाती है। अमरूद की पत्तियों के काढ़े से कुल्ला करने से मुंह की सारी बीमारियां दूर होतीं हैं, पत्तों के चबाने से दांत का दर्द दूर हो जाता है।कच्चे अमरूद का लेप सिर पर लगाने से पुराना सिर दर्द भी ठीक हो जाता है। सस्ता और औषधीय  गुणों के कारण यह फल आम तौर पर लोकप्रिय है। इसी कारण इस फल की भारत में व्यावसायिक खेती की जाती है। इससे किसानों को अच्छा लाभ प्राप्त होता है। अनेक लोगों के लिए इस फल की खेती रोजगार व आय का साधन बनी हुई है। आइये जानते है कि इसकी खेती किस प्रकार की जाती है।

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जलवायु व मिट्टी

अमरूद के लिये शुष्क व गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त है। केवल नन्हे पौधों को छोड़कर अमरूद का पेड अधिक गर्मी और सर्दी में पड़ने वाले पाला को भी वर्दाश्त कर लेता है। इस फल की खेती के लिए 20 से 300 सेंटीग्रेड का तापमान बहुत ही अच्छ होता है। इसके अलावा ये सूखा भी वर्दाश्त कर लेता है। अधिक लू लपेट व कम वर्षा तथा बाढ़ आदि का भी अमरूद की फसल पर असर नहीं पड़ता है। वैसे तो अमरूद हर प्रकार की मिट्टी में पैदा हो सकता है लेकिन बलुई दुमट मिट्टी अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है। इस फल की खेती 6 से लेकर 9 पीएच मान की मृदा अधिक लाभकारी होती है।

बुआई, अवधि और कुल उम्र

अमरूद के पौधे की बुआई वैसे तो जुलाई अगस्त के बीच में की जाती है लेकिन जहां पर सिंचाई आदि की अच्छी सुविधा हो वहां पर  अमरूद की बुआई फरवरी-मार्च में भी की जा सकती है। अमरूद की फसल 700 से 900 दिन यानी दो से तीन साल में तैयार होती है। यह अवधि अमरूद की विभिन्न किस्मों पर आधारित होती हैं। यह कहा जाता है कि अमरूद का पेड़ 30 साल तक फल देता रहता है। उसके बाद उसको बदलना पड़ता है।

कैसे करें खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई गहरी की जानी चाहिये। इसके बाद खेत को समतल करना चाहिये ताकि कहीं भी पानी न रुक सके और खरपतवार को बीन कर खेत को एकदम साफ कर लेना चाहिये। इसके 15 दिन बाद पौधे लगाने के लिए पौधों की किस्मों के अनुसार 3-6 मीटर की लाइन में एक निश्चित दूरी पर 20 इंच की गहराई, लम्बाई व चौड़ाई वाले गड्ढे बना लेने चाहिये। गोबर से तैयार  की गई खाद, सुपर फॉस्फेट, पोटाश, मिथाइल पैराथियॉन पाउडर को अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण तैयार करके इन गड्ढों में भर देनी चाहिये। इसके बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए। उसके बाद पौधे लगाएं।

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बीजों का उपचारित कर इस प्रकार रोपें

बीजों को रोपे जाने से पहले उनका उपचार करना आवश्यक होता है।  कार्बोनडाजिम को प्रति लीटर पानी में दो ग्राम घोल कर उसमें पौध को रात भर रखकर उसे उपचारित करें उसके बाद ही उन्हें रोपें। अमरूद के पौधों को रोपने के लिए उनकी नस्ल यानी किस्म के पौधों की लम्बाई चौड़ाई को देखते हुए जगह छोड़नी होती है। गड्डा बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है। कुछ पौधे पास-पास तो कुछ पौधे दूर-दूर लगाये जाते हैं। नस्लों के अनुसार तीन तरह से पौधों की रोपाई की जाती है जो इस प्रकार है
  • प्रति हेक्टेयर 2200 लगाये जाने वाले पौधों के लिए लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखी जाती है और पौधों से पौधों की दूरी 1.5 मीटर रखी जाती है
  • दूसरे तरह के 1100 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाये जाने के लिए लाइन से लाइन की दूरी तो 3 मीटर ही रखी जाती है लेकिन पौधों से पौधों की दूरी 3 मीटर हो जाती है।
  • सबसे बड़े आकार के पेड़ों की पौध के लिए लाइन से लाइन की दूरी 6 मीटर रखी जाती है और पौधों से पौधों की दूरी 1.5 मीटर ही रखी जाती है। इस तरह की बुआई में प्रति हेक्टेयर 600 पौधे रोपे जाते हैं।

बिजाई के तरीके

बिजाई के कई तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं। इसमें पके हुए फल के बीजों से बिजाई की जा सकती है। दूसरे तरीके में खेतों में पौधे पहले से तैयार करके उन्हेंं लगाया जा सकता है।  तीसरा तरीका कलमे लगा कर बिजाई की जा सकती है। चौथा तरीका पनीरी तैयार करे उनकी अंकुरित टहनियों को लगा कर बिजायी की जा सकती है। बिजाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उनकी जड़ों को लगभग 25 सेमी. तक की गहराई में रोपना चाहिये।

कटाई-छंटाई की आवश्यकता

पौधों को सही तरीके से बढ़ने व अधिक बढ़ने से रोकने के लिए उनकी कटाई-छंटाई की जाती है। अमरूद का पेड़ जितना छोटा और घना होगा उतने अधिक फल देगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार अवश्य कटाई-छंटाई की जानी चाहिये।

खाद कब-कब और कितनी डालनी चाहिये

अमरूद के पौधों की बुवाई के 12 महीने बाद प्रति पौधे को 15 किग्रा. गोबर की खाद, 400 ग्राम सुपर फास्फेट, 100 ग्राम कार्बोफरान, 200 ग्राम यूरिया और 100 ग्राम पोटाश देना जरूरी होता है । 24 महीने के बाद सभी खादों की मात्रा दोगुनी कर देनी चाहिये।  तीन साल बाद इन खादों व रसायनों मात्रा को बढ़ाकर तीन गुना कर दिया जाना चाहिये।

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सिंचाई कब-कब करें और कब नहीं करें

अमरूद की पौध लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिये। उसके बाद तीसरे दिन फिर सिंचाई करनी चाहिये। इसके बाद मौसम, मिट्टी व फसल की जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहना चाहिये। गर्मियों में कम से कम प्रति सप्ताह दो बार सिंचाई करनी चाहिये। सर्दियों में दो से तीन बार सिंचाई करना जरूरी है। जब पेड़ में फूल आ रहे हों तो सिंचाई नहीं करनी चाहिये। वरना फूल झड़ सकते हैं।

कीट व रोग प्रबंधन

अमरूद के पौधे में कई तरह के कीडे लगते हैं और कई तरह की बीमारियां भी लगतीं हैं। इनसे फसल का बहुत नुकसान हो सकता है। इन दोनों से फसल को बचाने के लिए भी प्रबंधन करने होते हैं।
  • अमरूद की शाख का कीट होने पर क्लोरपाइरीफॉस या क्विनलफॉस के पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • चेपा गंभीर कीट है, इसका हमला होने पर डाइमैथेएट या मिथाइल डेमेडान को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • सूखा रोग होने पर अमरूद के खेत में जमा पानी को बाहर निकालें। बीमार पौधों को बाहर निकाल कर दूर ले जाकर नष्ट करें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कार्बेनडाजिम को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • एंथ्राक्नोस रोग लगने से फल गलने लग जाते हैं। इससे बचाने के लिए बीमार पौधों को बाहर निकालें, प्रभावित फलों को नष्ट करें। खेत में पानी हो तो तुरन्त निकालें। छंटाई के बाद कप्तान को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फल पकने तक इसका छिड़काव समय-समय पर करते रहें। इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

फसल की कटाई करें

अमरूद की नस्लों के अनुसार बिजाई के दो या तीन साल बाद फसल तैयार हो जाती है। माल की सप्लाई की सुविधानुसार अधपके फलों को तोड़कर कार्टून  में पैक करके मार्केट भेजें। फलों को ज्यादा नहीं पकाना चाहिये। अधिक पकने से फल की क्वालिटी खराब हो जाती है।

अमरूद की प्रसिद्ध किस्में

इलाहाबाद सफेदा, पंजाब पिंक, सरदार या एल49, पंजाब सफेदा, अरका अमूल्या, स्वेता, निगिस्की, इलाहाबाद सुरखा, एपल गुवावा, चित्तीदार आदि।
पोषक तत्वों से भरपूर काले अमरुद की खेती से जुड़ी जानकारी

पोषक तत्वों से भरपूर काले अमरुद की खेती से जुड़ी जानकारी

काला अमरुद सिर्फ आमदनी के लिए ही नहीं बल्कि मानव सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है। आज हम आपको इसके अद्भुत गुणों के साथ-साथ इसकी खेती की भी जानकारी देंगे। हम सब अमरुद के संबंध में तो काफी अच्छे से जानते ही हैं। आज हम इसकी खेती को लेकर भी बहुत सी जानकारियों से परिचित हैं। परंतु, हम जिस अमरुद की चर्चा करने जा रहे हैं। वह सामान्य अमरुद की श्रेणी से अलग है और इतना ही नहीं इस अमरुद का रंग भी बाकी अमरुद से पूर्णतय भिन्न है।

भारत के अंदर काला अमरुद इन जगहों पर उगाया जाता है

काले
अमरुद का उत्पादन भारत के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किया जाता है। परंतु, यदि बाकी अमरूदों से इसकी तुलना करें तो यह बेहद ही कम मात्रा में उगाया जाता है। इस पौधे की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि काले रंग में यह अमरुद ही नहीं होता बल्कि इसके पत्ते और पेड़ में भी आपको कालिमा स्पष्ट तौर पर दिखाई देगी। यदि हम इस अमरुद के भाव की बात करें तो यह बाकी अमरूदों की तुलना में सबसे अधिक होती है।

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काले अमरुद में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि काले अमरुद में अगर हम पोषक तत्वों की बात करें तो यह एक औषधीय फल है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके साथ यदि हम इसके बाकी तत्वों की बात करें तो इसके अंदर विटामिन-ए, विटामिन-बी, विटामिन सी, कैल्शियम और आयरन के साथ-साथ और भी बहुत से मल्टीविटामिन तथा मिनरल्स होते हैं। एक तरह से हम कह सकते हैं, कि यह अमरुद हमारे शरीर के लिए पूर्ण रूप से एक आयुर्वेदिक औषधी का कार्य करती है।

काले अमरूद की खेती कैसे की जाती है

काले अमरुद की खेती करने के लिए सर्वोत्तम समय ठण्ड का मौसम होता है। अगर आप मृदा की जांच करा कर इस पौधे को सही तरीके से बोते हैं, तो यह 2 से 3 साल में ही आपको फल देने लग जाता है। सामान्य रूप से इस पौधे के लिए दोमट मृदा सबसे अनुकूल होती है। आप इनके 1 से 3 वर्ष के पौधों में 10 से 20 किलो तक गोबर की खाद का उपयोग कर सकते हैं। इसके साथ ही सिंगल सुपर फास्फेट 250 से 750 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 200 से 400 ग्राम का इस्तेमाल करना चाहिए। हम इनके बेहतरीन विकास के लिए यूरिया 50 से 250 ग्राम और जिंक सल्फेट 25 ग्राम प्रति पौधा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इन सब के उपरांत भी यदि आपके अमरुद के पेड़ में फूल नहीं आ रहे हैं, तो आप इसमें यूरिया अथवा एथेफॉन-यूरिया स्प्रे की उच्च सांद्रता का इस्तेमाल करें। यह पौधों में एक प्रेरक का कार्य करता है।
जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती करना किसानों के लिए क्यों लाभकारी है

जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती करना किसानों के लिए क्यों लाभकारी है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जापानी रेड डायमंड अमरूद अंदर से दिखने में सुर्ख लाल होता है। यह देसी अमरूद की तुलना में काफी महंगा बिकता है। बाजार में इसका भाव हमेशा 100 से 150 रुपये किलो के मध्य ही रहता है। अगर आप इसकी खेती करते हैं, तो आपकी कमाई तीन गुना बढ़ जाएगी। इस किस्म के अमरुद की खेती करने पर निश्चित रूप से मुनाफा हांसिल होगा। दरअसल, लोगों को अमरुद का सेवन करना बेहद पसंद होता है। बाजार में अमरुद की मांग हमेशा बनी रहती है। अमरुद एक प्रकार से पोषक तत्वों का भंडार होता है। किसानों को अत्यधिक मुनाफा हांसिल करने के लिए भी वैज्ञानिक अमरुद की खेती करने की सलाह देते हैं। दरअसल, अमरुद के अंदर विभिन्न विटामिन्स पाए जाते हैं। परंतु, इसमें सबसे ज्यादा विटामिन सी की मात्रा पाई जाती है। इसके अतिरिक्त अमरूद में लोहा, चूना एवं फास्फोरस भी भरपूर मात्रा में उपस्थित होते हैं। यदि आप नियमित तौर पर अमरूद का सेवन करते हैं, तो आपका शरीर तंदरुस्त एवं तरोताजा रहेगा। दरअसल, भारत के अंदर अमरूद की विभिन्न किस्मों की खेती की जाती है। परंतु, आज हम एक ऐसे किस्म के विषय में बात करने वाले हैं, जिसकी खेती से किसान कुछ ही दिनों में धनवान हो जाएंगे।

जापानी रेड डायमंड अमरुद की कीमत

भारत में सामान्यतः अमरूद 40 से 60 रुपये किलो बिकता है। परंतु, जापानी रेड डायमंड अमरूद की एक ऐसी किस्म है, जिसका भाव काफी अधिक होता है। यह अपने स्वाद एवं मिठास के लिए जाना जाता है। बाजार में यह 100 से 150 रुपये किलो बिकता है। इसकी खेती करने वाले किसान कुछ ही वर्षों में धनवान हो जाते हैं। मुख्य बात यह है, कि बहुत सारे राज्यों में किसानों ने जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती की शुरुआत भी कर दी है।

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जापानी रेड डायमंड अमरुद की खेती के लिए मृदा एवं तापमान

जापानी रेड डायमंड अमरुद की खेती के लिए 10 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस के मध्य का तापमान उपयुक्त माना गया है। इसकी खेती के लिए मृदा का पीएच मान 7 से 8 के मध्य होना चाहिए। यदि आप काली एवं बलुई दोमट मृदा में जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती करते हैं, तो आपको काफी बेहतरीन उत्पादन मिलेगा। मुख्य बात यह है, कि खेत में जापानी डायमंड की बुवाई करते वक्त कतार से कतार के मध्य का फासला 8 फीट होनी चाहिए। वहीं, पौधों से पौधों के बीच का फासला 6 फीट रखना चाहिए। इससे पौधों का तीव्रता से विकास होता है। साथ ही, वर्ष में दो बार पौधों की छटाई भी करनी चाहिए।

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जापानी रेड डायमंड अमरुद की खेती से वार्षिक आय

दरअसल, बाकी फसलों की भांति जापानी रेड डायमंड अमरूद के खेत में उर्वरक के तौर पर गोबर एवं वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करें। इससे जमीन की उर्वरक शक्ति भी काफी बढ़ जाती है। यदि आप चाहें, तो एनपीके सल्फर, कैल्शियम नाइट्रेट, मैग्नीशियम सल्फर एवं बोरान का खाद के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं। साथ ही, पौधों को पानी देने के लिए ड्रिप सिंचाई का ही इस्तेमाल करें, इससे पानी की खपत काफी कम होती है। यदि आप देशी अमरूद की खेती से वर्ष में एक लाख रुपये कमा पा रहे हैं, तो जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती से आपकी कमाई तीन गुना तक बढ़ जाएगी। इसका अर्थ यह है, कि आप साल में 3 लाख रुपये की आय करेंगे।
अमरूद की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अमरूद की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत के अंदर अमरूद की फसल आम, केला और नीबू के बाद चौथे स्थान पर आने वाली व्यावसायिक फसल है। भारत में अमरुद की खेती की शुरुआत 17वीं शताब्दी से हुई। अमेरिका और वेस्ट इंडीज के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र अमरुद की उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं। अमरूद भारत की जलवायु में इतना घुल मिल गया है, कि इसकी खेती बेहद सफलतापूर्वक की जाती है। 

वर्तमान में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार और  उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जा रही है। पंजाब में 8022 हेक्टेयर के भू-भाग परअमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मीट्रिक टन है। इसके साथ ही भारत की जलवायु में उत्पादित अमरूदों की मांग विदेशों में निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके चलते इसकी खेती व्यापारिक रूप से संपूर्ण भारत में भी होने लगी है।

अमरूद का स्वाद और पोषक तत्व

अमरुद का स्वाद खाने में ज्यादा स्वादिष्ट और मीठा होता है। अमरुद के अंदर विभिन्न औषधीय गुण भी विघमान होते हैं। इस वजह से इसका इस्तेमाल दातों से संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए भी किया जाता है। बागवानी में अमरूद का अपना एक अलग ही महत्व है। अमरूद फायदेमंद, सस्ता और हर जगह मिलने की वजह से इसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है। अमरुद के अंदर विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व विघमान होते हैं।

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अमरुद से कितना लाभ अर्जित होता है

अमरुद से जेली, जूस, जैम और बर्फी भी बनायीं जाती हैं। अमरुद के फल की अच्छे से देख-रेख कर इसको ज्यादा समय तक भंडारित किया जा सकता है। किसान भाई अमरुद की एक बार बागवानी कर तकरीबन 30 साल तक उत्पादन उठा सकते हैं। किसान एक एकड़ में अमरूद की बागवानी से 10 से 12 लाख रूपए वार्षिक आय सुगमता से कर सकते हैं। यदि आप भी अमरूद की बागवानी करने का मन बना रहे हैं तो यह लेख आपके लिए अत्यंत लाभकारी है। क्योंकि, हम इस लेख में आपको अमरुद की खेती के बारे में जानकारी देंगे।

अमरूद की व्यापारिक उन्नत किस्में 

पंजाब पिंक: इस किस्म के फल बड़े आकार और आकर्षक सुनहरी पीला रंग के होते हैं। इसका गुद्दा लाल रंग का होता है, जिसमें से काफी अच्छी सुगंध आती है। इसके एक पौधा का उत्पादन वार्षिक तकरीबन 155 किलोग्राम तक होता है।

इलाहाबाद सफेदा: इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है। इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है, जिस में से आकर्षक सुगंध आती है। एक पौधा से तकरीबन सालाना पैदावार 80 से 100 किलोग्राम हो सकती है।

ओर्क्स मृदुला: इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। इसके एक पौधे से वार्षिक 144 किलोग्राम तक फल हांसिल हो जाते हैं।

सरदार:  इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। इसका प्रति पौधा वार्षिक उत्पादन 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।

श्वेता: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5 से 11.0 फीसद होती है। इसकी औसतन पैदावार 151 किलो प्रति वृक्ष होती है। 

पंजाब सफेदा: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद होता है। फल में शुगर की मात्रा 13.4% प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62 प्रतिशत होती है।

अन्य उन्नत किस्में: इलाहाबाद सुरखा, सेब अमरूद, चित्तीदार, पंत प्रभात, ललित इत्यादि अमरूद की उन्नत व्यापारिक किस्में है। इन सभी किस्मों में टीएसएस की मात्रा इलाहबाद सफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है। 

अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

भारतीय जलवायु में अमरूद इस तरह से घुल मिल गया है, कि इसकी खेती भारत के किसी भी हिस्से में अत्यंत सफलतापूर्वक सुगमता से की जा सकती है। अमरूद का पौधा ज्यादा सहिष्णु होने की वजह इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में बड़ी ही आसानी से की जा सकती है। अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है।

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इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु को आसानी से सहन कर लेते हैं। किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके छोटे पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है। वहीं, पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।

खेती के लिए भूमि का चुनाव

जैसा कि उपरोक्त में आपको बताया कि अमरूद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा हैं। भारतीय जलवायु के अनुसार इसकी खेती हल्की से भारी और कम जल निकासी वाली किसी भी तरह की मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परंतु, इसकी बेहतरीन व्यापारिक खेती के लिए बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। क्षारीय मृदा में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने का संकट होता है। 

इस वजह से इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए। इसकी शानदार पैदावार लेने के लिए इसी तरह की मिट्टी के खेत का ही इस्तेमाल करें। अमरूद की बागवानी गर्म एवं शुष्क दोनों जलवायु में की जा सकती है। देश के जिन इलाकों में एक साल के अंदर 100 से 200 सेमी वर्षा होती है। वहां इसकी आसानी से सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है।

अमरूद के बीजों की बुवाई की प्रक्रिया

अमरूद की खेती के लिए बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर के महीने में करना सही है। अमरुद के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीकों से की जाती है। खेत में बीजों की बुवाई के अतिरिक्त पौध रोपाई से शीघ्र उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। यदि अमरुद के खेत में पौध रोपाई करते हैं, तो इसमें पौधरोपण के वक्त 6 x 5 मीटर की दूरी रखें। अगर पौध को वर्गाकार ढ़ंग से लगाया गया है, तो इसके पौध की दूरी 15 से 20 फीट तक रखें। पौध की 25 से.मी. की गहराई पर रोपाई करें। 

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इससे पौधों और उसकी शाखाओं को फैलने के लिए काफी अच्छी जगह मिल जायेगी। अमरूद के एक एकड़ खेत वाली भूमि में तकरीबन 132 पौधे लगाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसकी खेती की बुवाई बीजों के जरिए से कर रहे हैं, तो फासला पौध रोपाई के मुताबिक ही होगा और बीजों को सामान्य गहराई में बोना चाहिए।

बिजाई का ढंग - खेत में रोपण करके, कलम लगाकर, पनीरी लगाकर, सीधी बिजाई करके इत्यादि तरीके से बिजाई कर सकते हैं।

अमरूद के बीजों से पौध तैयार (प्रजनन) करने की क्या प्रक्रिया है  

चयनित प्रजनन में अमरूद की परंपरागत फसल का इस्तेमाल किया जाता है। फलों की शानदार उपज और गुणवत्ता के लिए इसे इस्तेमाल में ला सकते हैं। पन्त प्रभात, लखनऊ-49, इलाहाबाद सुर्ख, पलुमा और अर्का मिरदुला आदि इसी तरह से विकसित की गई है। इसके पौधे बीज लगाकर या एयर लेयरिंग विधि द्वारा तेयार किए जाते हैं। सरदार किस्म के बीज सूखे को सहने लायक होते हैं और इन्हें जड़ों द्वारा पनीरी तैयार करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए पूर्णतय पके हुए फलों में से बीज तैयार करके उन्हें बैड या नर्म क्यारियों में अगस्त से मार्च के माह में बिजाई करनी चाहिए। 

बतादें, कि क्यारियों की लंबाई 2 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर तक होनी चाहिए। बिजाई से 6 महीने के पश्चात पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है। नवीन अंकुरित पनीरी की चौड़ाई 1 से 1.2 सेंटीमीटर और ऊंचाई 15 सेंटीमीटर तक हो जाने पर यह अंकुरन विधि के लिए इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाती है। मई से जून तक का वक्त कलम विधि के लिए उपयुक्त होता है। नवीन पौधे और ताजी कटी टहनियों या कलमें अंकुरन विधि के लिए उपयोग की जा सकती हैं।

यह अमरुद किसानों की अच्छी आमदनी करा सकता है

यह अमरुद किसानों की अच्छी आमदनी करा सकता है

आपने हरा, पीला व लाल अमरूद सुना और देखा होगा। जिनका उत्पादन कर किसान अच्छी खासी आय भी अर्जित करते हैं। उसी तरह काला अमरूद भी एक ऐसा ही फल है, जो किसानों की बेहतरीन आमदनी करा सकता है। परंपरागत खेती किसानी की जगह नवीनतम व आधुनिक खेती कर किसान लाखों में खेल रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, धान, मक्का, तिलहन, दलहन, गेंहू पारंपरिक खेती का ही भाग है। किसान इनसे अच्छा मुनाफा अर्जित करते हैं। परंतु, एक पारंपरिक विधि से अलग खेती करें तो अच्छा लाभ हो सकता है। दरअसल, कृषि करने से पूर्व किसान विशेषज्ञों की सलाह नहीं लेते तो उनको खेती से अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है। जबकि फसल का चयन करने से लेकर फसल की कटाई तक विशेषज्ञों से अहम पहलुओं के बारे में जानना अति आवश्यक होता है। यदि किसान काला अमरूद (Kala Amrud Ki Kheti) का उत्पादन करना चाहते हैं, तो उनको किसानों से सलाह व जानकारी लेकर ही खेती करनी चाहिए। इससे उनको अच्छा मुनाफा होने की संभावना अधिक होगी।

इस अमरुद की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

कृषि विशेषेज्ञों के मुताबिक, वर्तमान में केवल हरे, पीले एवं इलाहाबादी की भाँति लाल अमरूद देखने को मिले होंगे। जो कि पारंपरिक खेती हैं। परंतु, यदि अमरूद का उत्पादन नवीनतम ढंग से किया जाए तो काला अमरूद उसके लिए अच्छा चयन है। काला अमरुद आने वाले समय में अत्यधिक मांग के साथ बाजार में अपना स्थान बनाएगा। भारतीय जलवायु व मृदा काले अमरूद के उत्पादन हेतु काफी अनुकूल है। आगामी दौर में पीले, हरे के उपरांत काले अमरूद की बाजार में अच्छी खासी माँग रहेगी। आपको बतादें कि आगामी समय में काले अमरुद की अत्यधिक मांग होने के साथ-साथ अच्छे मुनाफे की भी संभावना है।

काले अमरुद का उत्पादन किस समय किया जाता है

विशेषज्ञों के अनुसार, अमरूद का उत्पादन करने के लिए ठंडी जलवायु व मौसम होना काफी आवश्यक होता है। लेकिन आपको यह भी बतादें कि अत्यधिक मोसमिक नमी फसल के लिए फायदेमंद नहीं होती है। सर्द मौसम में यदि अमरुद की खेती की जाए तो अमरूद के पैदावार काफी बेहतर हो सकती है। साथ ही, उत्पादन के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन, यदि किसान सामान्य मृदा में भी अमरूद की खेती करना चाहें तो कर सकते हैं।


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कितने वर्ष उपरांत अमरुद लगने लगता है

अमरूद की खेती में यदि आप समुचित उर्वरक व सिंचाई इत्यादि करें, तो इसका विकास अच्छा और शीघ्र होता है। कृषकों को उचित समयानुसार अमरुद की कटाई, छंटाई भी होनी जरुरी होती है। आपको बतादें कि बुवाई करने के उपरांत दो से तीन वर्ष उपरांत पेड़ पर अमरूद लगना आरंभ हो जाते हैं। अमरूद की फसल की देखभाल करने में कोई लापहरवाही नहीं बरतनी चाहिए। कीट रोगों के संक्रमण के दौरान विशेषज्ञों से सलाह मशवरा लेकर ही कीटनाशकों का छिड़काव अवश्य कर देना चाहिए। अमरुद को पककर तैयार होने के बाद कटाई में समय नहीं लगाना चाहिए।

काले अमरुद की खेती कहाँ-कहाँ हो रही है

काले अमरूद की बाजार में उपलब्धता और बेहतर मुनाफे की वजह से देश के विभिन्न भागों में इसका उत्पादन किया जा रहा है। इस अमरुद की खेती हिमाचल से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में भी की जा रही है। इसके अतिरिक्त और कुछ राज्यों में भी इसकी खेती होती नजर आई है। इस अमरुद के अंदर पाया जाने वाला गूदा लाल रंग का होता है। इसको खाने हेतु स्वादिष्ट एवं पोषक तत्वों से युक्त माना गया है। किसानों को आज ऐसी ही नवीन और अच्छी माँग वाली खेती करने की अत्यधिक आवश्यकता है। जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति और देश की अर्थव्यवस्था सुधर सके।
जापानी रेड डायमंड अमरूद से किसान सामान्य अमरुद की तुलना में 3 गुना अधिक आय कर सकते हैं

जापानी रेड डायमंड अमरूद से किसान सामान्य अमरुद की तुलना में 3 गुना अधिक आय कर सकते हैं

अमरूद के फल की बाजार में सामान्यतः बहुत सारी किस्में उपलब्ध हैं। इन किस्मों के अंतर्गत एक जापानी रेड डायमंड नामक अमरुद की किस्म से किसान अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। लेकिन इसकी कृषि करते समय हमें समझदारी और बुद्धिमत्ता की आवश्यकता पड़ती है। इसके उपरांत किसान लाखों की आय अर्जित कर सकते हैं। अगर हम भारत की बात करें तो यहां गेहूं, मक्का, धान जैसी परंपरागत फसलों का अधिक प्रचलन रहा है। किसान कृषि के जरिए लाखों रुपये की आमदनी करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, गन्ना, मक्का, गेंहू जैसी फसलों का उत्पादन करके किसान अच्छी आय अर्जित करते हैं। परंतु, परंपरागत विधि की अपेक्षा यदि किसान खेती किसानी करें तो निश्चित रूप से उनको बेहतर मुनाफा प्राप्त हो सकता है। आगे इस लेख में हम आपको एक ऐसी ही किस्म के संबंध में बताने जा रहे हैं, जिसका उत्पादन करके किसान धनी और समृद्ध हो सकता है।

जापानी रेड डायमंड अमरूद की खेती मुनाफे का सौदा है

भारत में जापानी रेड डायमंड किस्म के अमरूद के उत्पादन के रकबे में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। विशेषज्ञों के मुताबिक, रेड डायमंड अमरूद की खेती करके आप अच्छा खासा लाभ उठाना चाहते हो तो आपको इसकी खेती समझदारी और आधुनिक विधि द्वारा करने की आवश्यकता है। इस
अमरुद की खेती से किसान वार्षिक तौर पर लाखों रुपये तक की आय की जा सकती है।

इस फल की खेती हेतु किस प्रकार की जलवायु, मिट्टी की आवश्यकता होती है

किसान जापानी रेड डायमंड अमरूद का उत्पादन करना किसानों को बेहद अच्छा लगता है। अमरुद की इस किस्म के बेहतर पैदावार हेतु 10 डिग्री सेल्सियस से 42 डिग्री सेल्सियस तापमान बेहद फायदेमंद होता है। दरअसल, तापमान में थोड़ी बहुत घटोत्तरी होने क स्थिति में भी उत्पादकों को चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस अमरुद के उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। हालांकि, जापानी रेड डायमंड अमरूद के बेहतर उत्पादन हेतु मृदा की बात की जाए तब इसकी अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट, काली मिट्टी सबसे अनुकूल होती है। पीएच 7 से 8 के मध्य होना जरुरी है।
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इस अमरुद की बुवाई करते समय किस बात का ध्यान रखें

जापानी डायमंड अमरुद की बुवाई के दौरान इसके मध्यस्थ समुचित दूरी का ध्यान रखना भी अति आवश्यक माना जाता है। आपको बतादें कि इसकी कतार से कतार में 8 फीट एवं पौधे से पौधे में 6 फीट की दूरी होना अनिवार्य है। पौधे का विकास समुचित ढ़ंग से हो इसके लिए आपको वर्ष में दो बार अमरुद के पौधे की छंटाई करनी होगी। यदि फल चीकू के आकार का हो जाये उस स्थिति में इसे फोम बैग अथवा अखबार की मदद से ढक देना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से अमरूद बेहतर तरीके से पकता है। साथ ही, किसी प्रकार का कोई भी दाग, धब्बे जैसा निशान भी नहीं रहता है।

इस फल की अच्छी पैदावार हेतु उर्वरक, पानी का समयानुसार उपयोग जरुरी होता है

इस किस्म के अमरुद में अन्य फसलों की ही भांति गोबर एवं वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किया जाना अच्छा माना जाता है। इन सबकी वजह से भूमि की उर्वरक शक्ति काफी बढ़ती है। इसके अतिरिक्त फसल हेतु रासायनिक उर्वरकों में कैल्शियम नाइट्रेट, मैग्नीशियम सल्फवत, बोरान, एनपीके सल्फर आदि का उपयोग कर सकते हैं। इस पौधे की सिंचाई हेतु ड्रिप सिंचाई उत्तम मानी जाती है। अन्यथा तो सामान्य सिंचाई समयानुसार करना अति आवश्यक होता है।
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जापानी रेड डायमंड अमरूद की बाजार में कितनी कीमत है

जापानी रेड डायमंड अमरूद का आंतरिक ढाँचा तरबूज की भांति सुर्ख लाल, नाशपाती की तरह मीठा होता है। हालांकि बाजार के अंदर देशी अमरूद का भाव 50 से 60 रुपये किलो होता है जबकि जापानी रेड डायमंड अमरूद की बाजार में कीमत 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक होती है। साधारण अमरूद की तुलना में इसकी कीमत 3 गुना तक होती है। कम खर्च में 3 गुना लाभ भी प्रदान करता है। इसलिए इसके उत्पादन से किसानों को बेहतर मुनाफा मिलने के साथ साथ उनकी प्रगति व विकास की राह भी आसान हो सकती है।
बदली MBA पास की किस्मत, अमरूद की खेती से बना करोड़पति

बदली MBA पास की किस्मत, अमरूद की खेती से बना करोड़पति

आज का अधिकांश युवा वर्ग खेती किसानी की तरफ रुख कर रहा है. इससे उन्हें उनके सुनहरे भविष्य को नये पंख लग रहे हैं. नई सोच और नई तकनीक से खेती के मायने बदलने वाले युवाओं में से एक हैं MBA पास राजीव भास्कर. जो अमरूद बेचकर करोड़पति बन गये हैं. राजीव भास्कर का जन्म नैनीताल में हुआ था. उन्होंने रायपुर की एक बीज कंपनी में भी काम किया. जिसमें उन्हें विशेषज्ञता मिली. जिस वजह से वो आज एक समृद्ध और उद्यमी किसान बन सके. राजीव ने बताया कि, उन्होंने बिक्री और मार्केटिंग के मेंबर के तौर पर VNR सीड्स कंपनी में करीब चार सालों तक काम किया. इस दौरान उन्होंने देश के अलग अलग क्षेत्र के कई किसानों के साथ मुलाकात की. जिसके बाद उन्हें खेती और किसानी से जुड़ी कई अहम जानकारियां मिली. इन्हीं जानकारियों के दम पर राजीव भास्कर ने नौकरी छोड़ कर खेती करने का फैसला किया.

MBA पास कर शुरू की खेती

राजीव भास्कर ने कृषि से BSC पूरा किया. हालांकि जब तक उन्होंने VNR बीजों के साथ काम करना नहीं शुरू किया था, तब तक खेती किसानी की दिशा में उन्होंने आगे बढ़ने के बारे में भी नहीं सोचा था. जिस बीच राजीव ने MBA का कोर्स कर लिया. जो Distance Learning था. राजीव भास्कर बताते हैं कि, जैसे जैसे उन्होंने बीजों और पोधौं को बेचने का काम शूरू किया, वैसे वैसे कृषि में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ती गयी. जिसके बाद उन्होंने इस ओर काम करने का मन बना लिया. नौकरी के साथ ही राजीव ने अमरूद की थाई किस्म के बारे में जाना और समझा. जिसने बाद उन्होंने इसकी खेती करने का फैसला लिया, और काम शुरू कर दिया. ये भी देखें:
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5 एकड़ जमीन पर की खेती, चमक गयी किस्मत

राजीव ने अमरूद की खेती के लिए सबसे पहले 5 एकड़ जमीन किराए पर ली. उन्होंने इसकी खेती हरियाणा के पंचकुला में की. उन्होंने अमरूद की थाई किस्म की खेती की और उसके लिए अपनी नौकरी तक छोड़ दी. जिसके बाद राजीव के उगाए थाई किस्म के अमरूदों ने पूरे हरियाणा में तहलका मचा दिया और इसकी डिमांड बढ़ गयी. जिसके चलते सिर्फ पांच सालों में ही राजीव करोड़पति बन गये. लेकिन इन पांच सालों में उनकी खेती का रकबा बढ़ा और आज वो 5 नहीं बल्कि 25 एकड़ की जमीन में थाई किस्म के अमरूद की खेती कर रहे हैं.

अच्छी पैदावार के लिए जैविक खेती जरूरी

राजीव भास्कर की उम्र महज 30 साल ही है. उनकी मानें तो अब तक उनके खेत में लगभग 12 हजार अमरूद के पेड़ हैं. जिसके चलते वो एक साल में करीब एक से डेढ़ करोड़ तक की कमाई कर रहे हैं. राजीव बताते हैं कि, नौकरी छोड़ने के बाद जब उन्होंने पहली बार खेती करनी शुरू की थी तो, उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि, ज्यादा विकास और ज्यादा उत्पादन के लिए अच्छे उर्वरक और सिंचाई की जरूरत होती है. राजीव भास्कर अपने उगाए हुए अमरूद की खेती के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, उनके अमरूद ना सिर्फ टेस्टी बल्कि हेल्दी और पौष्टिक तत्वों से भरपूर हैं. इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि, अगर आप जमीन पर खेती कर रहे हैं, और उर्वरकों का कम इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उस जगह पर जैविक खेती करने से अच्छी पैदावार मिल सकती है. राजीव कहते हैं कि, वो अपना सारा सामान दिल्ली एपीएमसी मार्केट तक पहुंचाते है. जहां उन्हें एक हफ्ते की पेमेंट दी जाती है. अच्छी वैरायटी और मौसम के हिसाब से उन्हें प्रति किलो अमरूद के 40 से 100 रुपये के बीच तक होती है. जिस तरह वो सालाना प्रति एकड़ के हिसाब से लगभग 6 लाख रुपये तक कमाते हैं.
अमरूद की इन किस्मों की करें खेती, होगी बम्पर कमाई

अमरूद की इन किस्मों की करें खेती, होगी बम्पर कमाई

भारत में अमरूद एक पसंदीदा फल है। जिसे लोग बेहद चाव के साथ खाते हैं। यह मिनरल्स औऱ विटामिन से भरपूर होता है। इसकी पैदावार मुख्यतः सर्दियों के मौसम में होती है, लेकिन अब ऐसी किस्में में आ गई हैं जिससे बाजार में हर मौसम में अमरूद उपलब्ध होता है। अमरूद में प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है, जिससे लोग उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस फल का सेवन करना पसंद करते हैं। बाजार में अमरूद के अच्छे खासे दाम मिल जाते हैं, ऐसे में किसान भाई अमरूद की खेती करके कम समय में ही अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। अमरूद एक बागवानी फसल है। इससे जैम, जैली, नेक्टर आदि परिरक्षित पदार्थ तैयार किये जाते है। इसकी पौष्टिकता को ध्यान मे रखते हुये लोग इसे गरीबों का सेब कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। इसमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

अमरूद की खेती उष्ण कटीबंधीय और उपोष्ण-कटीबंधीय जलवायु में बेहद आसानी से की जा सकती है। उष्ण क्षेत्रों में तापमान व नमी की पर्याप्त मात्रा उपलब्धता रहती है, जिसके कारण अमरूद के पेड़ों पर साल भर फल लगते हैं और किसान भाई हर मौसम में अमरूद की फसल प्राप्त कर सकते हैं। अमरूद के पेड़ 44 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान बेहद आसानी से सहन कर सकते हैं। ज्यादा वर्षा वाले क्षेत्र अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त नहीं माने गए हैं। ज्यादा वर्षा के कारण अमरूद के पौधे सड़ जाते हैं।

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इसकी खेती के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। ज्यादा ठंड से कई बार अमरूद के पौधों पर नकारात्मक असर देखा गया है। कई बार भीषण ठंड में अमरूद के पौधों में पाला लग जाता है। इसके विपरीत अमरूद के पेड़ कड़ाके की ठंड भी झेल सकते हैं, बड़े पेड़ों पर ठंड का कोई खास असर नहीं होता है।

भूमि का चयन एवं तैयारी

अमरूद का पेड़ हर प्रकार की भूमि में आसानी से उग सकता है। लेकिन यदि बलुई दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जाए तो इससे उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। अगर खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी का चयन किया गया है तो उसका पीएच मान 4.2 होना चाहिए। वहीं अगर अमरूद के पौधे लगाने के लिए चूनायुक्त भूमि का चुनाव किया गया है तो पीएच मान 8.2 होना चाहिए। खेत तैयार करने के पहले दो से तीन बार अच्छे से जुताई कर लें। इसके बाद खेत में 15 गाड़ी प्रति एकड़ के हिसाब से सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट डालें। इसके बाद खेत में 2 फीट व्यास के 8-10 सेंटीमीटर गहरे गड्ढे तैयार कर लें। गड्ढों की दूरी 20 फीट होनी चाहिए।

अमरूद की उपलब्ध प्रजातियां और किस्में

बाजार में अमरूद की कई प्रजातियां उपलब्ध हैं, जिनकी खेती किसान भाई करते हैं। लेकिन इन दिनों  इलाहाबादी सफेदा, सरदार 49 लखनऊ, सेबनुमा अमरूद, इलाहाबादी सुरखा, बेहट कोकोनट आदि प्रजातियां किसानों की पहली पसंद हैं। इसके अलावा चित्तीदार, रेड फ्लेस्ड, ढोलका, नासिक धारदार आदि किस्मों की खेती भी बहुतायत में की जाती है।

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पौध रोपण

अमरूद की पौध को जुलाई और अगस्त में लगाया जाता है। इसके अलावा फरवरी मार्च में भी अमरूद के पौधे लगाए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए सिंचाई व्यवस्था उपलब्ध होना चाहिए। रोपाई के पहले गड्ढों को सड़ी हुई गोबर की खाद और आर्गनिक खाद से भर दें। इसके बाद गड्ढों में पानी डालें। जब पानी सूख जाए और गड्ढों की मिट्टी बैठ जाए तब पौधे को गड्ढे के बीचों बीच लगा दें और मिट्टी से अच्छी प्रकार से दबाकर सिंचाई कर दें।

पौधों की सिंचाई

अमरूद के पौधों में मौसम के हिसाब से सिंचाई की जाती है। गर्मियों के मौसम में 7 दिन के अंतराल में तथा सर्दियों के मौसम में 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करना चाहिए। ध्यान रखें कि जरूरत से अधिक मात्रा में सिंचाई न करें, इससे पौधे सड़ सकते हैं।

खरपतवार नियंत्रण

अमरूद की खेती में खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी है। खरपतवार पौधों के विकास को प्रभावित करते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करते रहें। जब पेड़ बड़े हो जाएं तो बाग की जुताई कर दें। इससे खरपतवार पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।

कीट एवं रोग नियंत्रण

अमरूद के पेड़ों पर कीट एवं बीमारियों का प्रकोप मुख्यतः बरसात के मौसम में होता है। इनसे पौधों तथा फलों की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर दिखाई देता है। अमरूद के पेड़ों में छाल खाने वाले कीड़े, फल छेदक, फल में अंड़े देने वाली मक्खी, शाखा बेधक आदि कीट लगते हैं। इनके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैं। अगर तब भी कीटों का प्रकोप कम न हो तो पौधों को नष्ट कर दें। इसके अलावा अमरूद के पेड़ों पर उकठा रोग और तना कैंसर जैसे रोग लगते हैं। यह रोग भूमि में नमी होने के कारण फैलते हैं। इन रोगों के नियंत्रण के लिए ग्रसित डालियों को काटकर जाला देना चाहिए तथा कटे भाग पर ग्रीस लगा कर बंद कर देना चाहिए। इसके बाद भी अगर रोग से छुटकारा न मिले तो पौधे को तुरंत निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए।

फलों की तुड़ाई और उपज

अमरूद के पेड़ों पर फूल आने के 120 दिन बाद फल आने से शुरू हो जाते हैं। जब फलों का रंग पीला पड़ने लगे तो तुड़ाई करके पेटियों में स्टोर कर लेना चाहिए। एक पेड़ से 150 किलो फल तक प्राप्त किया जा सकते हैं। यह फल जल्दी खराब हो जाते हैं, इसलिए इनकी तुड़ाई के बाद तुरंत मंडी में बेंचने के लिए भेज देना चाहिए। उत्तर और पूर्वी भारत मे साल में दो बार अमरूद की फसल प्राप्त होती है। जबकि पश्चिम व दक्षिणी भारत में साल में तीन बार अमरूद के फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
अमरूद की फसल को इन दो बिमारियों से बचाने का वैज्ञानिक तरीका

अमरूद की फसल को इन दो बिमारियों से बचाने का वैज्ञानिक तरीका

अमरूद की फसल में लगने वाले दो रोग फल मक्खी एवं मिली बक्की फसल को पूर्णतय क्षतिग्रस्त कर सकती हैं। इस पर काबू करने के लिए कृषकों को फसल चक्र में तब्दीली से लेकर विभिन्न बातों का ख्याल रखना पड़ेगा। अमरूद एक काफी लोकप्रिय फल है, भारत के अधिकांश कृषकों के द्वारा अमरूद का उत्पादन किया जाता है। यदि देखा जाए तो अमरूद के आर्थिक व्यावसायिक महत्व के कारण यहां के कृषकों की दिलचस्पी इसकी ओर काफी बढ़ रही है।  ऐसी स्थिति में आज हम कृषकों के लिए अमरूद की फसल में लगने वाली बीमारियां इसकी रोकथाम की जानकारी लेकर आए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार गोस्वामी का कहना है, कि अमरूद में सबसे बड़ी दिक्कत बरसात के फसल में फल मक्खी की होती है। इसका सबसे शानदार तरीका फसल चक्र में बदलाव अधिकांश लोग इसको बाहर नियंत्रण भी कहते हैं।

अमरूद में कितनी बार फूल फल लगते हैं

बतादें, कि अमरूद में दो बार फूल आते हैं और दो बार ही फल लगते हैं। जो बरसात की फसल होती है, उसके फूल अप्रैल माह में आते हैं। यदि किसान अप्रैल माह में उन फूलों को झड़ा दें, तो फल मक्खी पर काबू पा सकते हैं। उसके केवल दो तरीके हैं या तो उसकी प्रूनिंग कर दें अथवा फिर उसमें 10 फीसद यूरिया का घोल स्प्रे कर दें। साथ ही, यदि किसान ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो उसकी दूसरी विधि फेरोमेन ट्रैप है।

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फल मक्खी बीमारी पर इस प्रकार नियंत्रण करें 

पूसा वैज्ञानिक डॉ अमित कुमार गोस्वामी ने बताया कि अमरूद में लगने वाली फल मक्खी है। उसकी रोकथाम के लिए मिथाइल यनल के ट्रैप वर्तमान में बाजार में उपलब्ध हैं। फेरोमेन ट्रैप के साथ-साथ में ये बैगिंन भी आजकल उपलब्ध हो रही हैं, जोकि एक पॉली प्रोफाइनल ट्यूब है। यदि यह भी कृषकों के पास मौजूद नहीं हैं, तो वह लिफाफे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे मिथाइल यनल ट्रैप के साथ-साथ फिरान ट्रैप के नाम से भी जाना जाता है।  इसके लिए कृषकों को एक बात का विशेष ख्याल रखना है, कि फेरोमोन ट्रैप में रखे रसायन को 15-21 दिन के समयांतराल में बदलना है। दरअसल, इसमें फेरोमेन, मिथाइल यू जनाइल एवं स्पाइनोसस का घोल होता है। इसके पश्चात आपको 30 से 45 दिन के पश्चात बैगिंग करनी है, जिससे फल बेर की आकृति का हो जाएगा। ऐसा करने से फल मक्खी के आक्रमण पर काबू देखने को मिलेगा।

अमरूद की फसल को प्रभावित करने वाली बक्की बीमारी

साथ ही, वर्तमान में अमरूद की फसल में दूसरी परेशानी भी आने लगी हैं, जो मिली बक्की है। यह एक ऐसा रोग है, जिसमें कृषकों को अमरूद के पत्तों में सफेद-सफेद बिल्कुल रुई की भांति इसमें कीड़े नजर आऐंगे। इसकोू काबू करने के लिए आप किसी भी कपड़े धोने वाले पाउडर का घोल बनाकर इसपर स्प्रे कर दें। उसके उपरांत कार्बोसल्फान का लगभग 2 ML प्रति लीटर के हिसाब से आप इस पर घोल का छिड़काव करें।