Ad

jeera price

महंगाई में लगातार इजाफे से लोगों की परेशानी बढ़ी, जीरे का भाव 700 पार

महंगाई में लगातार इजाफे से लोगों की परेशानी बढ़ी, जीरे का भाव 700 पार

महँगाई आज की तारीख में अपनी चरम सीमा पर है। आज केवल जीरा ही महंगा नहीं हुआ है, बल्कि अन्य दूसरे मसालों की भी कीमत बढ़ गई है। लाल मिर्च भी लोगों की आंखों से आंसू निकाल रही है। खुदरा बाजार में वर्तमान में भी लाल मिर्च 350 से 400 रुपये किलो बिक रही है। इसी प्रकार लौंग 1500 से 1800 रुपये किलो है। जैसा कि हम जानते हैं, कि महंगाई कम होने का नाम तक नहीं ले रही है। बतादें, कि एक चीज के भाव कम होते हैं, तो दूसरे खाद्य उत्पाद महंगे हो जाते हैं। विशेष कर मसालों के बढ़ते भावों ने आम जनता को परेशान कर दिया है, इससे खाने का स्वाद काफी परिवर्तित हो गया है। जीरा महंगा होने की वजह से बहुत से लोगों ने दाल और सब्जियों में तड़का लगाना बिल्कुल बंद कर दिया है। आम जनता को आशा है, कि वर्षा कम होने पर जीरे की कीमतों में गिरावट आएगी। परंतु, ऐसा कुछ होता हुआ तो नहीं नजर आ रहा है। मानसून के कमजोर पड़ने के पश्चात भी जीरा सस्ता होने की जगह महंगा ही होता जा रहा है। खुदरा बाजार में एक किलो जीरे की कीमत 700 रुपये से भी ज्यादा हो गई है। इससे रसोई का बजट काफी डगमगा गया है। यह भी पढ़ें: Spices or Masala price hike: पहले सब्जी अब दाल में तड़का भी हो गया महंगा, मसालों की कीमतों में हुई रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी

आजकल जीरा का भाव 750 रुपये से 800 रुपये है

महंगाई का कहर इतना है, कि बुधवार को राजस्थान के नागौर जनपद स्थित मंडी में जीरा 53 हजार 111 रुपए प्रति क्विंटल बिका है। हालांकि, जीरे की कीमत में बढ़ोत्तरी होने से किसान गदगद हैं। इस वर्ष वे जीरा विक्रय करके अच्छी आमदनी कर रहे हैं। परंतु, आम जनता के ऊपर महंगाई का भार काफी बढ़ता ही जा रहा है। अब इसकी वजह से खुदरा बाजार में जीरा 750 रुपये से 800 रुपये किलो बिक रहा है। ऐसी स्थिति में 100 ग्राम जीरा खरीदने के लिए लोगों को 75 से 80 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।

राजस्थान के किसान जीरे की खेती काफी बड़े पैमाने पर करते हैं

व्यापारियों ने बताया है, कि जीरे की नवीन फसल आने के उपरांत कीमतों में गिरावट आएगी। वर्तमान में मंडियों में मांग और आपूर्ति में काफी अंतर है। इसी वजह से कीमतें कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही हैं। वहीं, जानकारों ने बताया है, कि बहुत से स्टॉकिस्टों ने गैरकानूनी ढ़ंग से जीरे का भंडारण कर रखा है। बाजार में इससे भी जीरे की काफी कमी हो गई है। ऐसी स्थिति में आपूर्ति कम होने से कीमतें निरंतर बढ़ती ही जा रही हैं। बतादें, कि भारत में सबसे ज्यादा जीरे की पैदावार गुजरात में होती है। इसके पश्चात राजस्थान में किसान सबसे ज्यादा जीरे का खेती करते हैं।
जानें कैसे किसान ने जीरा और इसबगोल की खेती से बदली अपनी किस्मत?

जानें कैसे किसान ने जीरा और इसबगोल की खेती से बदली अपनी किस्मत?

मेरीखेती के इस लेख में आज हम आपको ऐसे किसान के विषय में जानकारी देंगे, जो रासायनिक एवं जैविक ढ़ंग से खेती करके वार्षिक लाखों की आमदनी सुगमता से कर रहे हैं। दरअसल, हम प्रगतिशील किसान कुम्प सिंह की बात कर रहे हैं। कुम्प सिंह मूल रूप से गांव–बरमसर, जिला जैसलमेर, राजस्थान के रहने वाले हैं। वह अपने बालकाल से ही खेती करते आ रहे हैं। प्रगतिशील किसान कुम्प सिंह ने स्नातक किया हुआ है। उन्होंने बताया कि हमारे पूरे परिवार के पास समकुल 350 बीघा तक भूमि है, जिसमें वह सीजन के अनुरूप कृषि करते हैं। किसान कुम्प सिंह ने बताया कि वह बारिश के मौसम में बाजरा, ज्वार और मूंग आदि फसलों की खेती करते हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी बताया है कि वह खेत में जीरा, काली सरसों और ईसबगोल की भी खेती करते हैं।


जैविक खेती के माध्यम से कैसा उत्पादन मिलता है 

आज हम आपको इस लेख में जीरे की खेती से अच्छी पैदावार और उपज लेने वाले किसान कुम्प सिंह के बारे में बताएंगे। कुम्प सिंह के मुताबिक, वह अपने खेत के 70% फीसद भूमि पर केवल जीरा की खेती/ Cumin Cultivation करते हैं। वहीं, अन्य शेष भूमि पर समस्त फसलों की खेती तकरीबन एक बराबर करते हैं। जैसे कि 20% फीसद में ईसबगोल एवं 10 प्रतिशत भाग में सरसों की खेती करते हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी कहा है, कि वह अपने खेत में पहले रासायनिक तरीकों से खेती/ Farming by Chemical Methods किया करते थे। परंतु, फिलहाल वह धीरे–धीरे जैविक खेती/ Organic farming की ओर अपना कदम बढ़ा रहे हैं। क्योंकि, इससे उत्पादन काफी बढ़ता है। साथ ही, लागत भी बेहद कम आती है।

 

ये भी पढ़ें: जैविक खेती के लिए किन बातों को महत्व दें और बेहतर बनाने के प्रमुख तरीके


जीरा और ईसबगोल की प्रति बीघा कितनी उपज मिलती है 

साथ ही, उन्होंने कहा है कि उनको प्रति बीघा जीरा उत्पादन 70 किलो तक सुगमता से मिल जाता है। वर्तमान में उनके इलाके में जीरे की कीमत 5000 रुपये प्रति किलो है। वहीं, उन्होंने यह भी बताया कि उनके खेत से ईसबगोल का उत्पादन प्रति बीघा एक से डेढ़ क्विंटल तक प्राप्त हो जाता है, जिसकी कीमत प्रति बीघा करीब 24 हजार रुपये तक होता है। वहीं, उन्होंने कहा कि जीरे की खेती में खर्चा भी काफी ज्यादा लगता है। साथ ही, ईसबगोल में लागत/ Cost in Isabgol जीरे से थोड़ी कम आती है।


कंपनी खुद खेत से अच्छे भाव पर फसल खरीदने आती हैं 

किसान कुम्प सिंह के मुताबिक उनकी पैदावार को खरीदने के लिए कंपनी वाले स्वयं खेत पर पहुँच उचित भाव पर खरीदकर लेकर जाते हैं। उन्हें अपनी फसल का बेहतर भाव अर्जित करने के लिए बाजार में नहीं भटकना पड़ता है। परंतु, इसके लिए उन्हें पहले कंपनी को अपनी फसल का एक सैंपल भेजना पड़ता है। यदि वह पास हो जाता है, तभी कंपनी वाले उनके पास उत्पादन खरीदने के लिए आते हैं।

 

ये भी पढ़ें: ईसबगोल को जैविक खाद से तैयार करने पर दोगुनी हो गई गुजरात के किसानों की आय


कृषक इन खादों का करें इस्तेमाल

किसान कुम्प सिंह ने बताया है, कि भारत के अधिकांश किसान जैविक खेती की दिशा में आगे बढ़े। जहां तक संभव हो अपने खेत में गोबर खाद के साथ ही घरेलू खादों का उपयोग सबसे ज्यादा करें। क्योंकि, इसके इस्तेमाल से फसल काफी बेहतर ढ़ंग से विकसित होती है। साथ ही, बाजार में भी शानदार भाव बड़ी सहजता से किसान को मिल जाता है।