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किसान सुबोध ने दोस्त की सलाह से खीरे की खेती कर मिशाल पेश करी है

किसान सुबोध ने दोस्त की सलाह से खीरे की खेती कर मिशाल पेश करी है

बिहार के इस किसान ने पारंपरिक खेती छोड़ शुरु की खीरे की खेती। आज वह हर सीजन में लाखों की आमदनी कर रहे हैं। भारत में किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर नई तकनीक को अपना रहे हैं। किसान सब्जी एवं मेडिसिनल प्लांट की खेती कर आर्थिक हालातों को बेहतर कर रहे हैं। इस वक्त बिहार के भिन्न-भिन्न जनपदों में युवा किसान सब्जी और औषधीय पौधों की खेती कर काफी मोटी आमदनी कर रहे हैं। इसके लिए बिहार सरकार भी किसानों को बड़े पैमाने पर सब्सिड़ी उपलब्ध करा रही है।

किसान सुबोध खीरे की खेती करते हैं

बिहार के सहरसा जनपद के युवा किसान सुबोध झा ने अपनी 4 एकड़ की भूमि में नेट हाउस पद्धति से
खीरे की खेती की चालू करी। उसके लिए उन्होंने बिहार सरकार से सब्सिड़ी भी ली है। किसान सुबोध का कहना है, कि केवल 3 से 4 महीनों में ही उन्हें चार से पांच लाख रुपए का मुनाफा हुआ। इस आमदनी से उन्होंने फिलहाल औषधीय पौधों की भी खेती चालू कर दी है। ये भी पढ़े: पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

सुबोध को खीरे की खेती के लिए किसने सलाह दी

किसान सुबोध का कहना है, कि वह काफी वर्षों से खेती-किसानी कर रहे हैं। परंतु, खीरे की खेती के संदर्भ में उनके एक दोस्त ने जानकारी दी, जो कि बिहार के कृषि विभाग में नौकरी करते हैं। उनकी सलाह के पश्चात उन्होंने इसकी खेती की शुरुआत करी है। सुबोध अपने खीरे की खेती के लिए केवल जैविक खाद का उपयोग करते हैं, जिस कारण उनके खीरे की मांग बाजार में काफी ज्यादा रहती है।

सुबोध से अन्य किसान भी तकनीकी गुर सीख रहे हैं

सुबोध का कहना है, कि उनकी खीरे की खेती की सफलता को ध्यान में रखते हुए उनके आस पास के साथी किसान भी बेहद प्रभावित हुए हैं। साथ ही, उन्होंने भी खीरे और औषधीय पौधे की खेती शुरु कर दी है। सुबोध ने बताया है, कि वह समय-समय पर अपने जनपद के कृषि वैज्ञानिकों से खेती से जुड़ी जानकारी से जुड़ी सलाह लेते हैं। वह बताते हैं, कि नेट हाउस में सब्जी की खेती करने से उनको काफी अच्छा उत्पादन हांसिल हुआ है। देखा देखी उनकी राह पर अन्य युवा किसान भी चलने लगे हैं।
ककड़ी की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

ककड़ी की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। आज हम आपको ककड़ी की फसल के बारे में जानकारी देंगे, तो आपको सबसे पहले बतादें, कि ककड़ी कुकरबिटेसी परिवार से संबंधित है और इसका वानस्पतिक नाम कुकुमिस मेलो है और भारत इसका मूल स्थान है। यह हल्के हरे रंग की होती है, जिसका छिल्का नर्म और गुद्दा सफेद होता है। इसका मुख्य रूप से सलाद के रूप में नमक और काली मिर्च के साथ सेवन किया जाता है। इसके फल में ठंडा प्रभाव होता है। इसलिए इसे मुख्य तौर पर गर्मियों के मौसम में खाया जाता है।

ककड़ी की खेती के लिए मृदा एवं भूमि  

ककड़ी का उत्पादन मिट्टी की विभिन्न किस्मों में बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है, जैसे रेतीली दोमट से भारी मिट्टी जो कि अच्छी जल निकासी वाली हो। इसकी खेती के लिए मिट्टी का pH 5.8-7.5 होना चाहिए। इसके साथ-साथ जमीन की तैयारी भी करना बहुत जरूरी है। ककड़ी की खेती के लिए अच्छी तरह से तैयार जमीन की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मिट्टी को भुरभुरा करने के लिए हैरो से 2-3 बार जोताई करना काफी जरूरी है।

बिजाई का समय और विधि क्या है?

बीजों की बिजाई के लिए फरवरी-मार्च का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है। बीजों के मध्य फासला खालियों के बीच 200-250 सैं.मी. और मेंड़ों के बीच 60-90 सैं.मी. रखना फायदेमंद साबित होगा। फसल के शानदार विकास के लिए दो बीजों को एक जगह पर बोयें। बीज की गहराई की बात करें तो बीजों को 2.5-4 सैं.मी गहराई में बोयें। बिजाई का तरीका बीजों को बैड या मेंड़ पर सीधे बोया जाता है। बीज की मात्रा की बात करें तो आप प्रति एकड़ में 1 किलो बीजों का इस्तेमाल करें।

बीजोपचार व खाद 

मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाने के लिए बैनलेट या बविस्टिन 2.5 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। वहीं, खाद की बात करें तो नर्सरी बैड से 15 सैं.मी. दूरी पर फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का 1/3 भाग बिजाई के समय डालें। बाकी की बची हुई नाइट्रोजन बिजाई से एक महीना बाद में डालें।

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खरपतवार नियंत्रण व सिंचाई 

खरपतवार नियंत्रण के लिए बेलों के फैलने से पहले इनकी ऊपरी परत की कसी से हल्की गुड़ाई करें। सिंचाई की बात करें तो बिजाई के तुरंत पश्चात सिंचाई करना बेहद जरूरी है। गर्मियों में, 4-5 सिंचाइयों की काफी जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई जरूरत के मुताबिक करें। 

ककड़ी के पौधे में लगने वाले हानिकारक कीट और उनकी रोकथाम

  • चेपा और थ्रिप्स: ये कीट पत्तों का रस चूसते हैं, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं और गिर जाते हैं। थ्रिप्स के कारण पत्ते मुड़ जाते हैं, जिससे पत्ते कप के आकार के और ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं। 

उपचार: इसका हमला फसल में दिखाई दे तो, थायामैथोकस्म 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे फसल पर करें।

  • भुण्डी:  भुंडी कीट के कारण फूल, पत्ते और तने नष्ट हो जाते हैं।

उपचार: यदि इसका हमला दिखाई दें तो, मैलाथियोन 2 मि.ली. या कार्बरिल 4 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें यह भुंडी की रोकथाम में सहायक है। 

फल की मक्खी

  • फल की मक्खी: यह ककड़ी की फसल का गंभीर कीट है। नर मक्खी फल की बाहरी परत के नीचे अंडे देती है उसके बाद ये छोटे कीट फल के गुद्दे को अपना भोजन बनाते हैं उसके बाद फल गलना शुरू हो जाता है और गिर जाता है।

उपचार: फसल को फल की मक्खी से बचाने के लिए नीम के तेल में 3.0% फोलियर स्प्रे करें।

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पत्तों पर सफेद धब्बे वाली बीमारियां और उनकी रोकथाम

  • सफेद फफूंदी: पत्तों के ऊपरी सतह पर सफेद रंग के धब्बे पड़ जाते हैं ये धब्बे प्रभावित पौधे के मुख्य तने पर भी दिखाई देते हैं। इसके कीट पौधे को अपने भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। इनका हमला होने पर पत्ते गिरते हैं और फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं।

उपचार: सफेद फफूँदी का हमला खेत में दिखे तो पानी में घुलनशील सल्फर 20 ग्राम को 10 लीटर पानी में डालकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार स्प्रे करें।

एंथ्राकनोस

  • ऐंथ्राक्नोस: यह पत्तों पर हमला करता है, जिसके कारण पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।

उपचार: एंथ्राकनोस की रोकथाम के लिए कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें। यदि इसका हमला खेत में दिखाई दे तो, मैनकोजेब 2 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

पत्तों के निचले धब्बे

  • पत्तों के निचली ओर धब्बे: यह रोग स्यिूडोपरनोस्पोरा क्यूबेनसिस के कारण होता है। इससे पत्तों की निचली सतह पर छोटे और जामुनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।

उपचार: यदि इसका प्रभाव दिखाई दे तो डाइथेन एम-45 या डाइथेन Z-78 का प्रयोग इस बीमारी से बचने के लिए करें।

ककड़ी का मुरझाना

  • मुरझाना: यह पौधे के वेस्कुलर टिशुओं पर प्रभाव डालता है, जिससे पौधा तुरंत ही मुरझा जाता है।

उपचार: फुजारियम सूखे से बचाव के लिए कप्तान या हैक्सोकैप 0.2-0.3%का छिड़काव करें।

  • कुकुरबिट फाइलोडी: इस बीमारी के कारण पोर छोटे और पौधे की वृद्धि रूक जाती है, जिसके कारण फसल फल पैदा नहीं करती।

उपचार: इस बीमारी से बचाव के लिए बिजाई के समय फुराडन 5 किलोग्राम बिजाई के समय प्रति एकड़ में डालें। यदि इसका हमला दिखे तो डाईमेक्रोन 0.05 % 10 दिनों के अंतराल पर करें।

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ककड़ी फसल की कटाई कब करें

ककड़ी के फल 60-70 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। कटाई मुख्य तौर पर फल के पूरी तरह विकसित होने और नर्म होने पर की जाती है। कटाई मुख्य रूप से फूल निकलने के मौसम में 3-4 दिनों के अंतराल पर की जाती है।

ककड़ी का बीज उत्पादन कैसे करें ?

ककड़ी को अन्य किस्मों जैसे कि स्नैप मैलन, वाइल्ड मैलन, खरबूजा और ककड़ी आदि से 1000 मीटर की दूरी पर रखें। खेत में से प्रभावित पौधों को हटा दें। जब फल पक जायें जैसे उनका रंग बदलकर हल्का हो जाये तब उन्हें ताजे पानी में रखकर हाथों से तोड़ें और गुद्दे से बीजों को अलग कर लें। बीज जो नीचे स्तर पर बैठ जाते हैं, उन्हें बीज उद्देश्य के लिए एकत्रित किया जाता है।

इस किसान ने मिट्टी में उगाए कमल के फूल, चारों तरफ फैल रही है ख्याति

इस किसान ने मिट्टी में उगाए कमल के फूल, चारों तरफ फैल रही है ख्याति

भारतीय किसान खेती में नए नए प्रयास करते रहते हैं। इन प्रयासों के माध्यम से किसान फसलों की उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही अपनी आय को बढ़ाने की कोशिश करते हैं। ऐसी ही एक कोशिश कर रहे हैं, जम्मू और कश्मीर के किसान भाई अबदुल अहद वानी। जो राज्य में 'किसान चाचा' के नाम से मशहूर हैं। 'किसान चाचा' इन दिनों खेती को लेकर नया प्रयोग कर रहे हैं। जिसमें वो मिट्टी में 'कमल ककड़ी' की खेती कर रहे हैं, यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि पानी के बिना सिर्फ मिट्टी में कमल ककड़ी की खेती करना आसान नहीं है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=JeQ8zGkrOCI&t=243s[/embed] जम्मू और कश्मीर में कमल ककड़ी को नादरू के नाम से जाना जाता है। अगर कमल ककड़ी की बात करें तो जम्मू और कश्मीर में कई स्थान हैं, जहां कमल ककड़ी की खेती बहुतायत में होती है। इनमें डल झील, वुलर झील और अंचर झील प्रसिद्ध है। इन झीलों में किसान भाई हर साल भारी मात्रा में कमल ककड़ी उत्पादित करते हैं। लेकिन अब अबदुल अहद वानी के प्रयासों से कमल ककड़ी को मिट्टी में भी उगाना संभव हो पाया है। अबदुल अहद वानी ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि उन्होंने जिज्ञासावस इस फसल की खेती करना शुरू की थी। उन्होंने प्रारम्भिक तौर पर कमल ककड़ी के बीज मिट्टी में रोप दिए थे। जिसके बाद स्वतः ही इसके पौधे निकाल आए और फसल तैयार हो गई। उन्होंने बताया कि बीजों की रोपाई जून में की थी और अब दिसम्बर में फसल पूरी तरह से तैयार हो चुकी है।


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अबदुल अहद वानी ने बताया कि उन्होंने मात्र एक कनाल खेत में कमल ककड़ी की रोपाई की थी। जिसके बाद उन्हें लगभग 400 किलोग्राम फसल प्राप्त हो चुकी है। भविष्य में उत्पादन बढ़ सकता है, साथ ही उन्होंने बताया कि इस फसल में सिंचाई बेहद आवश्यक है। जिसके लिए उन्होंने खुद ही नलकूप तैयार किए हैं। जिनसे वो कमल के पौधों को पानी देते हैं। तैयार हुई फसल को अबदुल अहद वानी खुद ही बाजार में बेचने जाते हैं। अबदुल अहद वानी की इस उपलब्धि से उनका नाम चारों ओर फैल रहा है। जिसके बाद लोग उनकी फसल की तरफ आकर्षित हो रहे हैं और कमल ककड़ी की खेती को देखने आ रहे हैं। लोगों का कहना है, कि 'किसान चचा' का यह प्रयास लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है। देश के लोग 'किसान चचा' से प्रेरित होकर कमल ककड़ी की खेती मिट्टी में करना शुरू कर सकते हैं। लोग 'किसान चचा' के इस प्रयास की दिल खोलकर तारीफ कर रहे हैं।
डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

डबल मुनाफा कराएगी ककड़ी की खेती, इस तरह करें खेती

खीरे के बाद अगर गर्मियों में सबसे ज्यादा पसंद की जाती है, तो वो है ककड़ी. जी हां, ककड़ी बेहद कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है. देखा जाए तो, देश में लगभग सभी क्षेत्रों में ककड़ी की खेती की जाती है. गर्मियों का सीजन आते ही बाजार में इसकी डिमांड दोगुनी हो जाती है. जिसे देखते हुए अगर इसकी खेती की जाए तो, डबल मुआफा आराम से कमाया जा सकता है. देश में किसान ककड़ी की खेती नगदी फसल के तौर पर करते हैं. 

ककड़ी की खेती करने के लिए बेहद कम लागत में की जा सकती है. जिसमें अच्छा खासा मुनाफा मिलता है. इसे भारतीय मूल की फसल कहा जाता है, जिसे जायद के सीजन में उगाया जाता है. ककड़ी के पौधे में लगभग एक फीट तक फल लगते हैं. इसे सब्जी या सलाद के रूप में खाया जा सकता है. 

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ककड़ी की खेती अगर वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो इस्ससे डबल मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर आप भी ककड़ी की खेती करना चाहते हैं, तो इससे जुड़ी हर तरह की जानकारी के बारे में आपको जान लेना जरूरी है.

कैसे करें ककड़ी की खेती?

ककड़ी का साइंटिफिक नाम कुकुमिस मेलो वैराइटी यूटिलिसिमय है. यह जायद के सीजन में बोई जाती है. तरोई की तरह ही इसकी खेती भी की जाती है. फरवरी से मार्च के बीच में इसकी बुवाई की जाती है. बलुई दुमट जमीनों से इसकी फसल अच्छी होती है. हफ्ते में दो बार इसकी फसल को सिंचाई की जरूरत होती है. ककड़ी की सबसे अच्छी फसल गरम और शुष्क मौसम में होती है. दो जातियों वाली इस ककड़ी में एक का रंग हल्का हरा होता है, तो वहीं दूसरे में गहरे हरे रंग की होती है. इन दोनों जातियों में से पहली जाति को लोग ज्यादा खाना पसंद करते हैं. दो सौ प्रति क्विंटल के हिसाब से उसकी उपज होती है.

क्या है उपयुक्त जलवायु?

गर्म और शुष्क जलवायु ककड़ी की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है. इसलिए गर्मियों के मौसम में इसकी पैदावार ज्यादा और अच्छी होती है. वहीं टंडी जलवायु में इसकी खेती करना मुश्किल हो सकता है. ककड़ी की फसल खासतौर पर गर्मियों की फसल है. 20 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच इसके बीज बढ़ते हैं. अगर तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम है तो, कम के बीज नहीं लगते. लेकिन ज्यादा तापमान भी ककड़ी की खेती के लिए हानिकारक होता है.

कैसी हो जमीन?

ककड़ी की खेती आमतौर पर सरलता से सभी क्षेत्रों में की जा सकती है. अगर मिट्टी उपजाऊ है, तो इसकी खेती करने में आसानी हो सकती है. अगर इसकी अच्छी खासी पैदावार चाहते हैं, तो कार्बनिक पदार्थ युक्त बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. जहां पर इसकी खेती कर रहे हैं, उस जगह की जमीन की पानी की निकासी अच्छी होनी चाहिए. अगर जल भराव वाली जगह पर खेती की जाएगी, तो फसल बर्बाद हो जाएगी.पीएच 6 से 7.5 मां वाली मिट्टी ककड़ी की खेती के लिए जरूरी होती है.

कैसे करें खेत की तैयारी?

अगर आप ककड़ी की कहती से उसकी ज्यादा पैदावार चाहते हैं, तो इसके खेत को पहले अच्छे से तैयार कर लें. खेत को तैयार करने के लिए खेत में पहले से मौजूद गंदगी को अच्छे से साफ़ कर लें, और खेत की अच्छे जुताई कर लें. जिसके बाद खेत को पलेव कर दें. इसके तीन से चार दिनों के बाद जब मिट्टी ऊपर से थोड़ी सूखने लगे तो उसे भुरभुरी बला लें. समतल जमीन पर मेड़ बनाकर ककड़ी के बीजों की बुवाई की जाती है. बुवाई से पहले तैयार खेत में नाली जरुर बना लें. ताकि जब भी मिट्टी में नमी हो तो बुवाई का काम शुरू किया जा सके. क्योंकि नम मिट्टी में बीजों का अंकुरण भी तेज होता है, और विकास भी अच्छा होता है. 

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क्या हैं उन्नत किस्में?

वैसे तो ककड़ी की उन्नत किस्में काफी कम होती हैं. लेकिन कुछ संकर किस्मों की मदद से किसान ज्यादा से ज्यादा ककड़ी की पैदावार कर सकते हैं.
  • जैनपुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 80 से 85 दिनों के बाद होता है. वहीं इसका उत्पादन 150 से 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिलता है.
  • अर्का शीतल की उन्नत किस्म 90 से 100 दिन बाद लगभग 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • पंजाब स्पेशल की उन्नत किस्मों का उत्पादन समय 90 से 95 दिन के बाद होता है. जिसमें 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • दुर्गापुरी ककड़ी की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 90 से 100 दिनों का होता है. जिसमें उत्पादन 2 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • लखनऊ अर्ली की उन्नत किस्म में उत्पादन का समय 75 से 80 दिन का होता है, इसमें 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का हिसाब से उत्पादन मिलता है.
  • 708 की उन्नत किस्म में इसका उत्पादन 80 दिनों के बाद होता है. वहीं 140 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इसका उत्पादन होता है.

कितनी मात्रा में करें बीज की बुवाई?

ककड़ी के बीजों की रोपाई आपके तरीके पर भी निर्भर करता है. इसके लिए कम से कम एक हेक्टेयर के खेत में लगभग दो से तीन किलोग्राम बीज काफी होते हैं. अगर आप चाहते हैं, कि मिट्टी को किसी तरह का रोग ना हो तो, उसके लिए बुवाई से पहले बैनलेट या दो से तीन ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें. अगर आप ककड़ी के पौधों को नर्सरी में तैयार कर सकते हैं, या किसी नर्सरी से खरीद भी सकते हैं. ककड़ी के बीजों की रोपाई करने के लिए कम से 20 से 30 सेंटीमीटर चौड़ी नालियां बनाएं. जिसके दोनों किनारे 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी पर बुवाई करें.

कितनी को खाद की मात्रा?

ककड़ी की खेती से पहले जमीन पर गोबर की सड़ी खाद को 200 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाया जाता है. यह ककड़ी की खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता है. इसके अलावा अगर रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो उसके रूप में 80 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से कर सकते हैं. फास्फोरस और पोटाश को आपस में मिलाकर उसमें एक तिहाई नाइट्रोजन मिला दें. फिर बुवाई करने वाली नालियों की जगह पर डालकर उसमें मिट्टी मिला दें और मेंड़ बना दें. बाकी के बचे हुए नैत्रोजं को दो बराबर हिसों में मिलाकर एक महीन के बाद नालियों में डालकर गुड़ाई कर दें.

कैसे करें पौधों की सिंचाई?

ककड़ी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है. इसकी शुरुआती सिंचाई को पौधे रुपाई के तुरंत बाद करना होता है. वहीं गर्मियों के सीजन में ककड़ी के पौधों को हफ्ते में दो बार सिंचाई की जरूरत होती है. अगर जमीन में नमी कम है तो, पैदावार पर इसका असर हो सकता है. इसलिए पौधों पर बनने वक्त उनकी हल्की सिंचाई करते रहना जरूरी होता है.

कैसे करें रोग नियंत्रण?

बेल के रूप में विकास करने वाला ककड़ी का पौधे में खरपतवार से बचाना बेहद जरूरी है. इसे कंट्रोल करने के लिए निराई गुड़ाई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. जो 20 से 30 दिनों के बाद की जाती है. इसके अलावा इसके रोग को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं, ये भी जान लेते हैं.
  • ककड़ी की फसल में फल मक्खी का प्रकोप तेजी से होता है. इसे ककड़ी को ज्यादा नुकसान होता है. इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ई एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में बरुथी नाम का कीट पत्तियों के निचले हिस्से में रहता है. यह उसके तने और पत्तियों का रस चूसता है. इससे बचाव के लिए इथियान 50 ई सी 0.6 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए.
  • ककड़ी की फसल में दिखने वाला लाल भृंग नई पत्तियों को खा लेता है. इसकी वजह से पत्ते झुलसे हुए नजर आते हैं. इससे फसल को बचाने के लिए कार्बारिल का 3 से 5 फीसद चूरण का 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की से प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
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कैसे करें फलों की तुड़ाई?

ककड़ी की फसल की तुड़ाई में बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए. आपको इस बात का ख्याल रखना जरूरी है, कि फल हरे और मुलायम हो तभी तुड़ाई का काम करना चाहिए. अगर आपने समय से पहले या समय के बाद फलों की तुड़ाई करेंगे तो, फल अपना आकर्षण और गुण खो देते हैं. इस वजह से बाजार में इसके भाव भी घट जाते हैं.

तो कुछ इस तरह से ककड़ी की खेती करके आप भी मोटा मुनाफा कम सकते हैं.

ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

ककड़ी की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

ककड़ी एक कद्दू वर्गीय फसल है, जिसकी खेती नकदी फसल के लिए की जाती है। भारतीय मूल की फसल ककड़ी जिसको जायद की फसल के साथ उत्पादित किया जाता है। इसके फल की लंबाई तकरीबन एक फीट तक होती है | ककड़ी को प्रमुख तौर पर सलाद एवं सब्जी के लिए उपयोग किया जाता है। गर्मियों के दिनों में ककड़ी का सेवन काफी बड़ी मात्रा में किया जाता है। यह गर्म हवा से बचाने में भी मददगार होती है एवं मानव शरीर के लिए बेहद फायदेमंद भी होती है। ककड़ी के पौधे लता के रूप में फैलकर विकास करते हैं। भारत में ककड़ी की खेती तकरीबन देश के समस्त क्षेत्रों में की जाती है। किसान भाई इसकी खेती कर के अच्छी-खासी आमदनी भी करते हैं। अगर आप भी ककड़ी की खेती करने के विषय में सोच रहे हैं, तो आगे इस लेख में आपको ककड़ी की खेती से जुड़ी सारी अहम जानकारी मिलेगी। यह जानकारी आपके लिए सहायक भूमिका निभाएगी।

ककड़ी की खेती कैसे करें

ककड़ी की खेती लिए उससे सम्बंधित सभी प्रकार की जानकारी का होना बहुत जरूरी होता है, इसलिए यहाँ इसके बारे में अवगत कराया गया है, इसके माध्यम से ककड़ी की उन्नत खेती करके लाभ कमा सकते हैं।

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ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

यदि हम ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त मृदा की बात करें तो यह किसी भी उपजाऊ मृदा में सहजता से की जा सकती है। लेकिन, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार कार्बनिक पदार्थो से युक्त मृदा में ककड़ी का अधिक मात्रा में उत्पादन होता है। साथ ही, ककड़ी की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा भी काफी उत्तम मानी जाती है। ककड़ी की खेती करने के लिए जमीन जल निकासी वाली होनी बेहद जरूरी है। जल भराव वाली जमीन में ककड़ी की खेती न करें। ककड़ी की खेती में सामान्य P.H मान वाली मृदा की काफी जरूरत होती है।

ककड़ी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

ककड़ी की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु का होना जरूरी होता है। सामान्य बारिश के मौसम में इसके पौधे बेहतर ढ़ंग से विकास करते हैं। परंतु, गर्मियों का मौसम ककड़ी की पैदावार के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। ककड़ी की खेती के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त नहीं होती है। बतादें, कि ककड़ी के बीज 20 डिग्री तापमान पर बेहतर ढ़ंग से अंकुरित होते हैं। वहीं पौध विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान सबसे अच्छा होता है। इसके पौधे 35 डिग्री तापमान तक अच्छे से विकास कर लेते है। परंतु, इससे ज्यादा तापमान पौधों के लिए अनुकूल नहीं रहता है।

ककड़ी की खेती में सिंचाई किस प्रकार की जाए

  • ककड़ी की फसल में प्रथम सिंचाई बिजाई के शीघ्रोपरान्त करें।
  • द्वितीय सिंचाई के 4 से 5 दिन पश्चात करें, जिससे कि अंकुरण बेहतर हो पाए।
  • पौधो की वनस्पति एवं मृदा में नमी के आधार पर 7-10 दिनों के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए।
  • फसल में फूल आने से पूर्व, फूल आने के दौरान एवं फल के विकास के समय भूमि की नमी में गिरावट नहीं होनी चाहिये।
  • इससे फल की उन्नति में प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसल से फलों की तुड़ाई के 2-3 दिन सिचाई करनी चाहिए, जिससे फल ताजा, चमकदार एवं आकर्षित बने रहेंगे।
  • किसान भाइयों जमीन की ऊपरी सतह से 50 से.मी. तक नमी को बरकरार रखना चाहिए। क्योंकि इस भाग पर जड़ें बड़ी संख्या में होती है ।


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ककड़ी की कटाई कब होती है

ऐसी स्थिति में जब फल हरे और मुलायम हों, तब ही तुड़ाई का कार्य करना चाहिए, ककड़ी की तुड़ाई किस्मो के अनुसार 35 से 40 दिन पर शुरू हो जाती है। फलो के आकार के अनुसार तुड़ाई करना चालू करदें।

ककड़ी की किस्में

पंजाब लोंगमेलन 1- यह किस्म 1995 में विकसित की गई थी। यह काफी शीघ्रता से पकने वाली प्रजाति है। इसकी बेलें लंबी, हल्के हरे रंग का तना, पतला एवं लंबा फल होता है। इसका औसतन उत्पादन 86 क्विंटल प्रति एकड़ होता है। अर्का शीतल- इस किस्म के अंतर्गत 90 से 100 दिन की समयावधि में मध्म आकार का हरे रंग का फल लगता है। इसके फल को तैयार होने के लिए 90 से 100 दिन का समय लगता है। यदि हम इसके उत्पादन की बात करें तो पैदावार 200 से 250 क्विटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। दुर्गापुरी ककड़ी- दुर्गापुरी ककड़ी राजस्थान के समीपवर्ती राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है, इस प्रजाति के फल शीघ्रता से पककर तैयार हो जाते हैं। दुर्गापुरी ककड़ी की सही ढ़ंग से खेती करने पर करीब 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अर्जित किया जा सकता है। ककड़ी की इस किस्म के फल हल्के पीले रंग के होते हैं। जिन पर नालीनुमा धारियां नजर आती हैं।