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सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

किसान भाई खेत में उचित नमी देखकर ही तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई शुरू करें

नई दिल्ली। बारिश में देरी के चलते और प्रतिकूल मौसम के कारण तिलहन और दलहन की फसलों की बुवाई में भारी गिरावट के आसार बताए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सोयाबीन, अरहर और मूंग की फसल की बुवाई में रिकॉर्ड गिरावट आ सकती है। 

खरीफ सीजन की फसलों की बुवाई इस साल काफी पिछड़ रही है। तिलहन की फसलों में मुख्यतः सोयाबीन की बुवाई में पिछले साल के मुकाबले राष्ट्रीय स्तर पर 77.74 फीसदी कमी आ सकती है। 

वहीं अरहर की बुवाई में 54.87 फीसदी और मूंग की फसल बुवाई में 34.08 फीसदी की कमी आने की संभावना है। उधर बुवाई पिछड़ने के कारण कपास की फसल की बुवाई में भी 47.72 फीसदी की कमी आ सकती है। हालांकि अभी भी किसान बारिश के बाद अच्छे माहौल का इंतजार कर रहे हैं।

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तिलहन के फसलों के लिए संजीवनी है बारिश

- इन दिनों तिलहन की फसलों के लिए बारिश संजीवनी के समान है। जून के अंत तक 80 मिमी बारिश वाले क्षेत्र में सोयाबीन और कपास की बुवाई शुरू हो सकती है। जबकि दलहन की बुवाई में अभी एक सप्ताह का समय शेष है।

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दलहनी फसलों के लिए पर्याप्त नमी की जरूरत

- कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि दलहनी फसलों की बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखना आवश्यक है। नमी कम पड़ने पर किसानों को दुबारा बुवाई करनी पड़ सकती है। दुबारा बुवाई वाली फसलों से ज्यादा बेहतर उत्पादन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसीलिए किसान भाई पर्याप्त नमी देखकर की बुवाई करें। ----- लोकेन्द्र नरवार

कपास की उन्नत किस्में लगाएँ

कपास की उन्नत किस्में लगाएँ

कम पानी वाले इलाकों में गर्मियों में कपास की खेती की जाती है। ​महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में कपास की खेती किसान करते हैं। 

अब देशी कपास के बजाय हाइिब्रिज और बीटी कपास का क्षेत्र लगतार बढ़ रहा है। इसके लिए जरूरी है कि कपास की उन्नत किस्मों की जानकारी किसानों को हो। 

कपास की खेती के लिए अभी तक उन्नत किस्मों के हा​इब्रिड एनआरसी 7365, एसीएच 177-2, शक्ति 9, पीसीएच 9611, आरसीएच 314, 602, 791,776,650,773, 653, 809 नेमकोट 617,2502-2,311-1, केसीएच 999,  जेकेसीएच 8940, 841-2, एसीएच 155-2, एनएसपीएल 252, सीआरसीएच 653, एबीसीएच 243, एमएच 5302, एसडबल्यूसीएच 4757, 4748, वीआईसीएच 308, आईसीएच 809,जेकेसीएच 0109, अंकुर 3244 की संस्तुति की गई है। 

इसके अलावा उत्तर  प्रदेश के लिए देशी किस्मों में पुरानी लोहित, आरजी 8, सीएडी 4, सभी 150 से 180 दिन लेती हैं। औसत उपज 13 से 16 कुंतल प्रति हैक्टेयर है। 

अमेरिकन कपास की उन्नत किस्में की एचएस 6, विकास, एच 777, एफ 846, आरएस 810 से भी उपरोक्तानुसार उपज मिलती है। कपास की उन्नत किस्में कम लागत, कम पानी और जमीन से कम पोषक तत्वों का अवशेषण करती है।

इसकी जडें मूसला होती हैं यानी यह जमीन में काफी गहरे तक चली जाती हैं। जमीन की उपज क्षमता बढ़ाने के लिए भी यह बेहद अच्दी फसल है। इसके पत्ते झड़ कर खेत में खाद का काम करते हैं।

महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम - दोगुनी होगी किसानों की आमदनी

कपास की खेती से दोगुनी होगी किसानों की आमदनी - महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम

मुम्बई। कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना बन गई है। भले ही केन्द्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कॉटन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 6380 रु. तय किया है। जबकि महाराष्ट्र में किसानों को कॉटन का भाव 12000 रु. प्रति क्विंटल मिल रहा है। इसीलिए इस साल कपास की बुवाई पर किसान काफी जोर दे रहे हैं। कृषि विभाग भी चाहता है कि किसान ज्यादा से ज्यादा कपास की बुवाई करें, जिससे किसानों को फायदा मिले। और किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाए। कृषि विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन और किसानों की भागी से इस बार उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद जताई जा रही है। महाराष्ट्र के कई गांवों में कपास की एक ही किस्म लगाने और उत्पादन में इजाफा करने का प्लान बनाया गया है।

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कपास का रकबा बढाने के लिए पहल

- 'एक-गांव, एक-पहल' के तहत महाराष्ट्र के 63 गांवों में 6 हजार 225 हेक्टेयर में एक साथ कपास की बुवाई की जाएगी। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। यहां कपास का रकबा साल दर साल बढ़ रहा है। इस अभियान का मकसद तभी पूरा होगा, जब किसानों को फसल का पूरा दाम मिले। ये भी देखें: कपास की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

ये ब्लॉक होंगे अभियान में शामिल

- 'एक गांव-एक किस्म' अभियान के तहत नगर तालुका में 9 गांव शामिल होंगे। इसमें 774 हेक्टेयर में कपास की खेती होगी। पथरडी तालुका में 13 गांवों को शामिल किया गया है। इनमें 1460 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल होगा। शेवगांव तालुका के 8 गांवों में 1 हजार 200 हेक्टेयर एरिया शामिल किया जाएगा। इस पहल के जरिए रकबा तो बढ़ेगा ही साथ में उत्पादन में भी इजाफा होगा. जिससे किसानों की आय बढ़ेगी। ------ लोकेन्द्र नरवार
कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से खतरा, कृषि विभाग ने जारी किया अलर्ट

सिरसा। किसानों के लिए वरदान बनी कपास की खेती को गुलाबी सुंडी (Pink bollworm) का खतरा हो सकता है। हरियाणा राज्य में कृषि विभाग ने इसके लिए अलर्ट जारी किया है। 

सरकार ने कपास की खेती करने वाले सभी किसान भाईयों को गुलाबी सुंडी से कपास की फसल को बचाने के लिए निर्देश भी दिए हैं। पिछले दो साल से कपास की खेती किसानों के लिए सफेद सोना साबित हुई है। 

कपास ने किसानों को अच्छा मुनाफा दिया है। जिसके चलते किसानों में लगातार कपास की खेती के प्रति रुचि बढ़ रही है। अकेले सिरसा जिले में 2 लाख 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की जा रही है।

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क्या है गुलाबी सुंडी?

- कपास की कलियों और बीजकोषों को क्षति का कारण गुलाबी सुंडी (इल्ली) पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला का लार्वा है। वयस्कों का रंग और आकार अलग-अलग होता है लेकिन आम तौर पर वे चित्तीदार धूसर से धूसर-भूरे होते हैं। 

वे दिखने में लंबे पतले और भूरे से होते हैं। अंडाकार पंख झालरदार होते हैं। करीब 4 से 5 दिन में लार्वा अंडे से बाहर निकल आते हैं। और तुरंत ही कपास की कलियों या बीजकोष में घुस जाते हैं। और फिर करीब 12 से 14 दिन तक फसल को खाता है।

कैसे करें गुलाबी सुंडी से बचाव?

1- जैविक नियंत्रण के अनुसार पेक्टिनोफोरा गॉसिपिएला से प्राप्त सेक्स फेरोमोन्स का संक्रमित खेत में छिड़काव करने से गुलाबी सुंडी की क्षमता और तादात कम होती है। 

2- रासायनिक नियंत्रण के अनुसार इन गुलाबी पतंगों को मारने के लिए क्लोरपाइरिफास, एस्फेंवैलेरेट या इंडोक्साकार्ब के कीटनाशक फार्मूलेशन का पत्तियों पर छिड़काव किया जा सकता है।

 3- कीट के लक्षणों को पहचानने के लिए नियमित कपास के पौधों पर निगरानी रखें।

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4- कपास की जल्द परिवक्व होने वाली वैरायटी का उपयोग करें, ताकि सीजन शुरू होने से पहले ही फसल की उपज मिल जाए। आमतौर पर गुलाबी सुंडी सीजन में ज्यादा जोर पकड़ती है।

5- कीटनाशक दवाओं का सावधानी से प्रयोग करें, ताकि कोई नुकसान न हो। 

6- कटाई के तुरंत बाद पौधों को नष्ट कर देना चाहिए। 

7- ध्यान रहे कि कभी भी दो रासायनिक पदार्थों को मिलाकर छिड़काव न करें। इससे फसल को नुकसान संभावना बढ़ जाती है। 8- अधिकांश तौर पर नीम आधारित दवाओं का इस्तेमाल करें। 

 ------- लोकेन्द्र नरवार

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी

लक्ष्य की आधी हुई कपास की खेती, गुलाबी सुंडी के हमले से किसान परेशान

मुआवजा न मिलने से किसानों ने लगाए आरोप

भूजल एवं कृषि
भूमि की उर्वरता में क्षय के निदान के तहत, पारंपरिक खेती के साथ ही फसलों के विविधीकरण के लिए, केंद्र एवं राज्य सरकारें फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। इसके बावजूद हैरानी करने वाली बात है कि, सरकार से सब्सिडी जैसी मदद मिलने के बाद भी किसान फसल विविधीकरण के तरीकों को अपनाने से कन्नी काट रहे हैं।

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क्या वजह है कि किसान को फसल विविधीकरण विधि रास नहीं आ रही? क्यों किसान इससे दूर भाग रहे हैं? इन बातों को जानिये मेरी खेती के साथ। लेकिन पहले फसल विवधीकरण की जरूरत एवं इसके लाभ से जुड़े पहलुओं पर गौर कर लें।

फसल विविधीकरण की जरूरत

खेत पर परंपरागत रूप से साल दर साल एक ही तरह की फसल लेने से खेत की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है। एक ही तरह की फसलें उपजाने वाला किसान एक ही तरह के रसायनों का उपयोग खेत में करता है। इससे खेत के पोषक तत्वों का रासायनिक संतुलन भी गड़बड़ा जाता है।

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भूमि, जलवायु, किसान का भला

यदि किसान एक सी फसल की बजाए भिन्न-भिन्न तरह की फसलों को खेत में उगाए तो ऐसे में भूमि की उर्वरकता बरकरार रहती है। निवर्तमान जैविक एवं प्राकृतिक खेती की दिशा में किए जा रहे प्रयासों से भी भूमि, जलवायुु संग कमाई के मामले में किसान की स्थिति सुधरी है।

नहीं अपना रहे किसान

पंजाब सरकार द्वारा विविधीकृत कृषि के लिए किसानों को सब्सिडी प्रदान करने के बावजूद किसान कृषि की इस प्रणाली की ओर रुख नहीं कर रहे है। प्रदेश में आलम यह है कि यहां कुछ समय तक विविधीकरण खेती करने वाले किसान भी अब पारंपरिक मुख्य खेती फसलों की ओर लौट रहे हैं।

किसानों को नुकसान

पंजाब सरकार खरीफ कृषि के मौसम में पारंपरिक फसल धान की जगह अन्य फसलों खास तौर पर कम पानी में पैदा होने वाली फसलों की फार्मिंग को सब्सिडी आदि के जरिए प्रेरित कर रही है।

सब्सिडी पर नुकसान भारी

सरकार द्वारा दी जा रही सब्सिडी के मुकाबले विविधीकृत फसल पर कीटों के हमले से प्रभावित फसल का नुकसान भारी पड़ रहा है।

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पंजाब के किसानों क मुताबिक उन्हें विविधीकरण कृषि योजना के तहत सब्सिडी आधारित फसलों पर कीटों के हमले के कारण पैदावार कम होने से आर्थिक नुकसान हो रहा है। इस कारण उन्होंने फसल विविधीकरण योजना एवं इस किसानी विधि से दूसी अख्तियार कर ली है।

कपास का लक्ष्य अधूरा

पंजाब कृषि विभाग द्वारा संगरूर जिले में तय किया गया कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है। कपास के लिए निर्धारित 2500 हेक्टेयर खेती का लक्ष्य यहां अभी तक आधा ही है।

पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी)

किसान कपास की खेती का लक्ष्य अधूरा होने का कारण पिंक बॉलवर्म का हमला एवं खराब मौसम की मार बताते हैं।

गुलाबी सुंडी क्या है

गुलाबी सुंडी (गुलाबी बॉलवार्म), पिंक बॉलवर्म या गुलाबी इल्ली (Pink Bollworm-PBW) कीट कपास का दुश्मन माना जाता है। इसके हमले से कपास की फसल को खासा नुकसान पहुंचता है। किसानो के मुताबिक, संभावित नुकसान की आशंका ने उनको कपास की पैदावार न करने पर मजबूर कर दिया। एक समाचार सेवा ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि, जिले में 2500 हेक्टेयर कपास की खेती का लक्ष्य तय मान से अधूरा है, अभी तक केवल 1244 हेक्टेयर में ही कपास की खेती हो पाई है।

7 क्षेत्र पिंक बॉलवर्म प्रभावित

विभागीय तौर पर फिलहाल अभी तक 7 क्षेत्रों में पिंक बॉलवर्म के हमलों की जानकारी ज्ञात हुई है। विभाग के अनुसार कपास के कुल क्षेत्र के मुकाबले प्रभावित यह क्षेत्र 3 प्रतिशत से भी कम है।

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नुकसान आंकड़ों में भले ही कम हो, लेकिन पिछले साल हुए नुकसान और मुआवजे संबंधी समस्याओं के कारण भी न केवल फसल विविधीकरण योजना से जुड़े किसान अब योजना से पीछे हट रहे हैं, बल्कि प्रोत्साहित किए जा रहे किसान आगे नहीं आ रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में किसानों ने बताया कि, पिछली सरकार ने पिंक बॉलवर्म के हमले से हुए नुकसान के लिए आर्थिक सहायता देने का वादा किया था।

नहीं मिला धान का मुआवजा

भारी बारिश से धान की खराब हुई फसल के लिए मुआवजे से वंचित किसान प्रभावित 47 गांवों के किसानों की इस तरह की परेशानी पर नाराज हैं।

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बार-बार नुकसान वजह

किसानों की फसल विविधीकरण योजना से दूरी बनाने का एक कारण उन्हें इसमें बार-बार हो रहा घाटा भी बताया जा रहा है। दसका गांव के एक किसान के मुताबिक इस वर्ष गेहूं की कम उपज से उनको बड़ा झटका लगा। पिछले दो सीजन से नुकसान होने की जानकारी किसानों ने दी है। कझला गांव के एक किसान ने खेती में बार-बार होने वाले नुकसान को किसानों को नई फसलों की खेती के प्रयोग से दूर रहने के लिए मजबूर करने का कारण बताया है। उन्होंने कई किसानों का उदाहरण सामने रखने की बात कही जो, फसल विविधीकरण के तहत अन्य फसलों के लिए भरपूर मेहनत एवं कोशिशों के बाद वापस धान-गेहूं की खेती करने में जुट गए हैं। किसानों के अनुसार फसल विविधीकरण के विस्तार के लिए प्रदेश में सरकारी मदद की कमी स्पष्ट गोचर है।

सिर्फ जानकारी से कुछ नहीं होगा

इलाके के किसानो का कहना है कि, जागरूकता कार्यक्रमों के जरिए सिर्फ जानकारी प्रदान करने से लक्ष्य पूरे नहीं होंगे। उनके मुताबिक कृषि अधिकारी फसलों की जानकारी तो प्रदान करते हैं, लेकिन फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रोत्साहन राशि के साथ अधिकारी किसानों के पास बहुत कम पहुंचते हैं।

हां नुकसान हुआ

किसान हित के प्रयासों में लगे अधिकारियों ने भी क्षेत्र में फसलों को नुकसान होने की बात कही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसानों को हो रहे नुकसान को उन्होंने भी फसल विविधीकरण नहीं अपनाने की वजह माना है। नाम पहचान की गोपनीयता रखने की शर्त पर कृषि विकास अधिकारी ने बताया कि, फसल के नुकसान की वजह से कृषक फसल विविधीकरण कार्यक्रम में अधिक रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्होंने बताया कि, केवल 1244 हेक्टेयर भूमि पर इस बार कपास की खेती की जा सकी है।
महाराष्ट्र में फसलों पर कीटों का प्रकोप, खरीफ की फसल हो रही बर्बाद

महाराष्ट्र में फसलों पर कीटों का प्रकोप, खरीफ की फसल हो रही बर्बाद

महाराष्ट्र में किसान अक्सर बारिश से परेशान रहते हैं लेकिन इस बार परेशानी उससे भी ज्यादा गंभीर है। दरअसल, उनकी खरीफ की फसल पर कीटों ने हमला बोल दिया है, जिसकी वजह से खड़ी फसल में भारी नुकसान हो रहा है। इस साल फसल सीजन की शुरुआत ही महाराष्ट्र के किसानों के लिए किसी बुरे सपने की तरह हुई। पहले काफी दिन तक बारिश नहीं हुई, लेकिन जब बारिश हुई तो मूसलाधार हुई और फसलें पानी में डूब गईं। अब अगस्त के महीने में जाकर बारिश हल्की हो रही है जिसके चलते कृषि कार्यों में तेजी तो आई है, लेकिन फसल बेहतर कैसे तैयार हो, इसको लेकर किसान जूझ रहे हैं।


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बारिश के बाद से पर्यावरण में तेजी से बदलाव देखने को मिला है, जिसकी वजह से फसलों पर तरह-तरह के कीट लग रहे हैं और उन्हें जमकर नुकसान हो रहा है। इस तरह का कीट का मामला सामने आया है जो फसलों का रस चूस लेता है और उन्हें सुखा देता है। ऐसे में भले ही अब बारिश का खतरा टल गया हो, लेकिन कीट लगने की वजह से उत्पादन पर असर पड़ने की आशंकाएं बढ़ गई हैं। पिछले साल कपास का रेट किसानों को अच्छा मिला था इसलिए महाराष्ट्र के कई इलाकों में कपास की जमकर बुवाई की गई है। ऐसे में किसान सोच रहे थे कि उत्पादन बढ़िया होगा तो उनके हालात सुधर जाएंगे, लेकिन कीटों के हमले के चलते ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। किसानों का कहना है कि जब फसलें छोटी थीं जब कीटों ने हमला नहीं किया, बल्कि जैसे-जैसे फसलें बढ़ती गईं कीटों ने हमला करना शुरू कर दिया।


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राज्य में जून के महीने में बिल्कुल बारिश नहीं हुई थी। इसके बाद जुलाई के महीने से लेकर 15 अगस्त तक मूसलाधार बारिश हुई। आलम यह है कि इस बारिश के चलते कई खेतों में जलभराव हो गया। अब जहां जलभराव हुआ है वहां फफूंद या कवक रोग फैल रहे हैं, जिसके चलते फसलें बढ़ नहीं रही हैं। पहले बारिश का असर फसलों पर हुआ था, लेकिन अब बदलते पर्यावरण का असर साफ दिख रहा है। जिन क्षेत्रों में पानी भरा हुआ है वहां रस चूसने वाले कीड़े फसलों पर कहर बरपा रहे हैं। ये कीड़े रस चूस रहे हैं जिसके चलते कपास की पत्तियां लाल होकर गिर जाती हैं। इस कपास की बुवाई मई में की गई थी, जो अब अपने शबाब पर थी, लेकिन संक्रमण इतना खतरनाक है कि फूल मर रहे हैं। अब किसानों ने भी इन कीड़ों से निपटने के लिए कमर कस ली है और उनके द्वारा कैमिकल और उर्वरकों का उपयोग किया जा रहा है, ताकि इन कीड़ों को खत्म किया जा सके। लेकिन कामयाबी पूरी तरह इसमें भी अब तक नहीं मिल पाई है। किसानों को कीटों से कैसे लड़ा जाए इसके लेकर बहुत थोड़ी जानकारी होती है। ऐसे में अगर कृषि विभाग अपनी तरफ से कोई पहल करे तो राज्य के किसानों का भला हो जाएगा और वे अपनी फसलों को बचा पाएंगे।
कपास की फसल पैदा करने वाले किसानों का बढ़ा संकट

कपास की फसल पैदा करने वाले किसानों का बढ़ा संकट

हाल ही में न्यूज़ में देखा गया की तेलंगाना में कपास की कीमतों में भरी गिरावट दर्ज की गई है, कपास का दाम केवल 6500 रुपये क्विंटल हो या है जिसकी वजह से किसानों की हालत चिंताजनक है। 

किसानों से हुई बातचीत में पता चला कि वह दाम कम से कम 15000 रुपये क्विंटल चाहते हैं। इस साल कपास की फसल की बात की जाए तो देश में इस साल किसानों को फसलों का काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। 

इसके अलावा कुछ फसल की खेती जैसे पपीता, सेब और संतरे आदि की फसल को भी पहले से ज्यादा नुक्सान पहुंचा है। कभी बाढ़ तो कभी बारिश के कारण किसानों को ये समस्या झेलनी पड़ती है। 

हाल ही में कपास की कीमत कम होने से किसान परेशान हैं। सही रेट न मिलने से किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही है।

तेलंगाना में 6000 रुपये क्विंटल तक हो गया है कपास का मूल्य

इस बार कपास की कीमत का संकट सबसे ज्यादा तेलंगाना के किसानों को परेशान कर रहा है। मीडिया के हवाले पता चला है, कि इस साल का दाम बेहद कम रखा गया है। 

पहले जिस फसल के लिए 15000 रुपये क्विंटल तक मिलते थे। वो अब महज 6000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। इतने कम दाम होने के कारण किसानों की लागत तक नहीं निकल पा रही है। 

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बारिश के चलते उत्पादन में आई गिरावट

एक्सपर्ट के अनुसार इस बार भारी बारिश के चलते फसल मेें आई पत्तियों के कारण डोड़े की बढ़त को नुकसान हुआ है। प्रोडक्शन में भारी गिरावट आ गई है। Production में करीब 50 प्रतिशत गिरावट आने की संभावना है। 

वहीं, विशेषज्ञों का कहना है, कि बाजार में कपास की कीमत 6 हजार से लेकर 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल के बीच है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इसे 15 हजार रुपये प्रति क्विंटल कर देना चाहिए।

कीमत सही न मिलने पर किसान कर सकते हैं विरोध प्रदर्शन

कपास के सही दाम न मिलने से किसान परेशान हैं। किसान जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों का कहना है, कि यदि राज्य सरकार 15000 रुपये प्रति क्विंटल कपास का रेट नहीं करती है तो पूरे प्रदेश में धरना-प्रदर्शन करेंगे। 

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पंजाब में भी कपास उत्पादकों का है यही हाल

पंजाब में कपास उत्पादन में 45% तक की बड़ी गिरावट देखने को मिली है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 3 सालों से पंजाब में कपास की अच्छी पैदावार हो रही थी। 

इतनी अच्छी पैदावार से सभी खुश थे, लेकिन हाल ही में यहां कपास में गुलाबी वार्म और कई तरह के कीट होने के कारण किसानों की पैदावार में घटोतरी हुई है।