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किसानों को मुनाफा दिलाने वाली पुदीने की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसानों को मुनाफा दिलाने वाली पुदीने की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पुदीना का वानस्पतिक नाम मेंथा है , इसे जड़ी बूटी वाला पौधा भी कहा जाता है। पुदीना के पौधे को स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। पुदीना के अंदर विटामिन ए और सी के अलावा खनिज जैसे पोषक तत्व भी पाए जाते है। गर्मियों के समय में पुदीने की अच्छी माँग रहती है , इसीलिए इसकी खेती कर किसान अच्छा मुनाफा भी कमा सकते है। 

पुदीने के पौधे की पत्तियां लगभग 2-2.5 अंगुल लम्बी और 1.5 से 2 अंगुल चौड़ी रहती है। इस पौधे में से सुगन्धित खुशबू आती रहती है , गर्मियों में इसका प्रयोग बहुत सी चीजों में किया जाता है। पुदीना एक बारहमासी पौधा है। 

कैसे करें पुदीने के खेत की तैयारी 

पुदीने की खेती के लिए अच्छे जल निकासी वाली भूमि की आवश्यकता रहती है। पुदीने की बुवाई से पहले खेत की अच्छे से जुताई कर ले, उसके बाद भूमि को समतल कर ले। दुबारा जुताई करते वक्त खेत में गोबर की खाद का भी प्रयोग कर सकते है। इसके साथ पुदीने की अधिक उपज के लिए खेत में नाइट्रोजन , पोटाश और फोस्फोरस का भी उपयोग किया जा सकता है। पुदीने की खेती के लिए भूमि का पी एच मान 6 -7 के बीच होना चाहिए। 

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पुदीने के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

वैसे तो पुदीने को बसंत ऋतू में लगाया जाना बेहतर माना जाता है। लेकिन यह एक बारहमासी पौधा है ज्यादा सर्दी के मौसम को छोड़कर इसकी खेती सभी मौसम में की जा सकती है। इसकी पैदावार के लिए उष्ण जलवायु को बेहतर माना जाता है। पुदीने की खेती के लिए ज्यादा उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता रहती है। पुदीना की खेती जल जमाव वाले क्षेत्र में भी की जा सकती है, इसकी खेती के लिए नमी की आवश्यकता रहती है।  

पुदीने की उन्नत किस्में

पुदीने की कुछ किस्में इस प्रकार है , कोसी , कुशाल , सक्ष्म, गौमती (एच वाई 77 ) ,शिवालिक , हिमालय , संकर 77 , एमएएस-1 यह सब पुदीने की उन्नत किस्में है। इन किस्मों का उत्पादन कर किसान अच्छा मुनाफा कमा सकता है। 

पुदीने की खेती की विधि क्या है 

पुदीने की खेती धान की खेती के जैसे की जाती है। इसमें पहले पुदीने को खेत की एक क्यारी में अच्छे से बो लिया जाता है। जब इसकी जड़े निकल आती है ,तो पुदीने को पहले से तैयार खेत में लगा दिया जाता है। पुदीने की खेती के लिए किसानो को उचित किस्मों का चयन करना चाहिए ,ताकि किसान ज्यादा मुनाफा कमा सके। 

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सिंचाई प्रबंधन

पुदीने के खेत में लगभग 8 -9 बार सिंचाई का कार्य किया जाता है। पुदीने की सिंचाई ज्यादातर मिट्टी की किस्म और जलवायु पर आधारित रहती है। अगर मॉनसून के बाद अच्छी बारिश हो जाती है , तो उसमे सिंचाई का काम कम हो जाता है। मानसून के जाने के बाद पुदीने की फसल में लगभग तीन बार पानी और दिया जाता है।  इसके साथ ही सर्दियों में पुदीने की फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं रहती है, किसानों द्वारा जरुरत के हिसाब से पानी दिया जाता है।

खरपतवार नियंत्रण 

पुदीने की फसल को खरपतवार से बचाने के लिए किसानों द्वारा समय समय पर गुड़ाई और नराई का काम किया जाना चाहिए। इसके साथ ही किसानों द्वारा कीटनाशक दवाइयों का भी उपयोग किया जा सकता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान को एक ही फसल का उत्पादन नहीं करना चाहिए , उसे फसल चक्र अपनाना चाहिए। फसल चक्र अपनाने से खेत में खरपतवार जैसी समस्याएं कम होती है और फसल का उत्पादन भी अधिक होता है। 

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फसल की कटाई 

पुदीने की फसल लगभग 100 -120 में पककर तैयार हो जाती है। पुदीने की फसल की कटाई किसानो द्वारा हाथ से की जाती है। पुदीने के जब निचले भाग के पत्ते पीले पड़ने लग जाये तो  इसकी कटाई प्रारंभ कर दी जाती है। कटाई के बाद पुदीने के पत्तों का उपयोग बहुत से कामो में किया जाता है। पुदीने को लम्बे समय के लिए भी स्टोर किया जा सकता है। साथ ही इसके हरे पत्तों का उपयोग खाना बनाने के लिए भी किया जाता है। 

पुदीने का इस्तेमाल आमतौर पर बहुत सी चीजों में किया जाता है, जैसे : चटनी बनाने , छाछ में डालने के लिए और भी बहुत सी चीजों में इसका उपयोग किया जाता है। पुदीने की दो बार कटाई की जाती है पहली 100 -120 दिन बाद और दूसरी कटाई 80 दिन बाद। साथ ही पुदीना बहुत से औषिधीय गुणों से भरपूर है। पुदीने का ज्यादातर उत्पादन पंजाब , हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य में किया जाता है। साथ ही पुदीना शरीर के अंदर इम्मुनिटी को बढ़ाता है। 

पुदीने की खेती - Mint Planting & Harvesting in Hindi

पुदीने की खेती - Mint Planting & Harvesting in Hindi

दोस्तों आज हम बात करेंगे, पुदीना के विषय में, पुदीना जिसके बिना खाने का स्वाद अधूरा है और पुदीना जिस की मौजूदगी से खाने का स्वाद और खुशबू, दोनों में तरो ताजगी और खुशबू  पड़ जाती है, वो पुदीना कहलाता है। पुदीने को इंग्लिश में मिट भी कहते हैं। पुदीने को किस प्रकार से रोपण किया जाता है और पुदीने की कटाई किसान किस प्रकार करते हैं, इस पुदीने की खेती के विषय की पूर्ण  जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे।

पुदीना

पुदीना एक जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है,  पुदीना को वैज्ञानिक दृष्टि में मेंथा के नाम से भी जाना जाता है। पुदीना विभिन्न विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के स्वाद को बढ़ाता है उन्हें खुशबूदार और स्वादिष्ट बनाता है। पुदीने का उपयोग विभिन्न विभिन्न प्रकार से किया जाता है जैसे: माउथ फ्रेशनर के रूप में, टूथपेस्ट के स्वाद को बढ़ाने के लिए, फ्लेवरिंग, खाने, सलाद इत्यादि में पुदीने का इस्तेमाल किया जाता है। पुदीना न सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाता है, बल्कि पुदीना औषधि रूप में सेहत को भी संवारता है 

पुदीने के प्रकार

भारत देश में सबसे ज्यादा पुदीना उगाए जाने वाली चार प्रकार की फसलें है जो इस प्रकार है : जापानी टकसाल/मेन्थॉल टकसाल और पुदीना । पुदीना, बर्गमोट टकसाल हैं, सबसे ज्यादा आय का साधन बनाए रखती है वह जापानी टकसाल/मेन्थॉल टकसाल पुदीने की फसल है। 

पुदीने की खेती

पुदीने की खेती के लिए उत्तम जलवायु का होना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है और पुदीने की खेती के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी जलवायु समशीतोष्ण और उष्ण एवं उपोषण जलवायु होती है। पुदीने की खेती किसान साल भर आराम से कर सकते हैं। पुदीने की खेती उगाने के लिए अच्छी गहरी उपजाऊ मिट्टी की बहुत आवश्यकता होती है। भूमि की जल धारण की क्षमता अच्छी होनी चाहिए। ताकि उस में फसल अच्छे से उगाए जा सके हैं तथा पुदीने की फसल को आप जमाव वाली मिट्टी में भी बुवाई कर सकते हैं। 

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पुदीने की खेती के लिए मिट्टी का चयन:

पुदीने की खेती के लिए आप अलग - अलग तरह की मिट्टी का इस्तेमाल कर सकते हैं ,परंतु सबसे अच्छी मिट्टी दोमट मिट्टी, रेतीली दोमट मिट्टी, तथा कार्बनिक पदार्थों से परिपूर्ण गहरी मिट्टी इसकी खेती करने के लिए बहुत ही उचित होती है। पुदीने की अच्छी फसल के लिए मिट्टियों का सूखा और ढीला होना आवश्यक होता है। तथा पुदीने की फसल को अच्छा रखने के लिए पानी ठहराव से बचे। फ़सल की अच्छी तरह से जांच करते रहना चाहिए, ताकि पानी बिल्कुल भी न ठहरे, लाल और काली दोनों ही मिट्टियों में पुदीने की फसल की खेती कर सकते हैं। 

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पुदीने के लिए खेत की तैयारी

पुदीने की खेती के लिए भूमि की अच्छी तैयारी करने की बहुत ही आवश्यकता होती है। सर्वप्रथम पुदीने की खेती के लिए पहली गहरी जुताई की आवश्यकता होती है, तथा जुताइयां हैरो से करना खेत के लिए उपयोगी होता है। आखिरी जुताई  के लिए करीबन 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर के रूप से उच्च कोटि की सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में  मिलाना अनिवार्य होता है तथा पाटा लगाकर खेत को पूरी तरह से समतल करना उपयोगी होता है। 

पुदीने की खेती में रोपण

किसान पुदीने की खेती रोपण करने का समय मानसून का चुनते हैं, इस मौसम के शुरू में ही उत्तरी भारत में जापानी पुदीने की बुवाई करना शुरू कर देते हैं फरवरी के शुरुआती सप्ताह के बीच में तथा मार्च के दूसरे सप्ताह तक बुवाई करना उपयोगी होता है। 

पुदीने की खेती रोपण विधि जानिए

पुदीने की खेती करने से पहले कसक को लगभग 10 से 14 सेंटीमीटर लंबाई के बीच पुदीना रोपण के लिए काट लें । प्रति हेक्टेयर भूमि को कम से कम 450 से 500 किलोमीटर की दूरी पर कसक की जरूरत पड़ती है। पुदीने की खेती के लिए गहराई लगभग 2 से 3 सेंटी मीटर गहरी होनी चाहिए, पुदीना रोपण करने के लिए जड़ वाला भाग खेत में रोपण करना चाहिए इस प्रकार पुदीने की बुवाई करनी चाहिए। 

पुदीने की खेती में सिंचाई की आवश्यकता

पुदीने की खेती के लिए अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती हैं, और फसल में नमी की अच्छी मात्रा होना आवश्यक होता है। पुदीने की सिंचाई लगभग 10 से 12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए वो भी ग्रीष्म ऋतु काल के दौरान, यदि मौसम पतझड़ का हो तो इसकी पांच से छह सिंचाई  करना आवश्यक होता है। सिंचाई के साथ ही साथ बरसात के मौसम में पानी के ठहराव से बचे तथा जल निकास का मार्ग भी बनाएं, ताकि खेतों को आवश्यकतानुसार सिंचाई की प्राप्ति हो। 

पुदीने के पौधों की कटाई

पुदीने की फसल किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक फसलों में से एक है ,क्योंकि पुदीने की खेती में साल में दो से तीन बार इनकी कटाई कर सकते हैं और इस आधार पर किसान अच्छे आय निर्यात का साधन भी बनाए रखते हैं। किसान पुदीने की खेती की कटाई बरसात के शुरुआती मौसमों में मई और जून के महीने में करते हैं। वही पुदीने की दूसरी फसल की कटाई सितंबर और अक्टूबर तथा मानसून के बाद करते हैं। सबसे आखिरी और तीसरी कटाई किसान पुदीने की फसल की नवंबर और दिसंबर के महीने में करते। 

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पुदीना के पौधे की देखभाल

पुदीने के पौधों के लिए धूप बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होती है, लेकिन अत्यधिक धूप मिलने से पौधे खराब भी हो सकते है। इसीलिए निश्चित रूप से पौधों को दिन में तेज धूप से बजाएं। तेज धूप से पौधे खराब ना हो इसके लिए विभिन्न प्रकार से छाया की व्यवस्था करनी चाहिए। नियमित रूप से धूप प्राप्ति के बाद पौधों को धूप के हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए छाया का इस्तेमाल करें। 

पुदीने के पौधे में लगने वाले रोग

कृषि विशेषज्ञों द्वारा प्राप्त जानकारियों के अनुसार ज्यादा नमी के कारण पुदीने की फसल खराब भी हो सकती है तथा पुदीने में विभिन्न प्रकार के कीट रोग भी लग सकते हैं जैसे: सुंडी जालीदार कीट तथा रोएंदार सुंडी इत्यादि। सबसे ज्यादा नुकसान फसल को रोएंदार सुंडी द्वारा होता है। क्योंकि यह हरे पुदीने की पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से जालीदार कागज की तरह बनाकर, उन्हें हानि पहुंचाते हैं इस प्रकार इन रोएंदार सुंडी द्वारा फसल को भारी नुकसान होता है। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल मिंट या पुदीना का रोपण, कटाई पसंद आया होगा और आप इस आर्टिकल के द्वारा सभी प्रकार की जानकारियां जो पुदीने के पौधों से जुड़ी हुई है हमारे इस आर्टिकल के जरिए प्राप्त कर सकते हैं। हमारी दी हुई जानकारियों को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

भारतीय बाजार में बढ़ी पिपरमिंट ऑयल की मांग, ऐसे करें पिपरमिंट की खेती

भारतीय बाजार में बढ़ी पिपरमिंट ऑयल की मांग, ऐसे करें पिपरमिंट की खेती

नई दिल्ली। भारतीय बाजार में पिपरमिंट की मांग लगातार बढ़ रही है, किसान बदलते समय के साथ पारंपरिक फसलों के साथ-साथ आधुनिक खेती करने का तरीका भी खूब सीख रहे हैं, और नए नए प्रयोग करके फसलों, फलों व सब्जियों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आप भी पिपरमिंट (Peppermint; वैज्ञानिक नाम - मेंथा-पिपरिता; Mentha piperita Linn; मेंथा; Mentha)की खेती करके भी लाखों रुपए कमाना चाहते हैं, तो पढ़िए कैसे करते हैं पिपरमेंट की खेती। पिपरमेंट या पिपरमिंट बेहतरीन पौधों में से एक है, जिसकी पैदावार करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। 

ऐसे करें पिपरमिंट की खेती (Peppermint Farming)

पिपरमिंट को देसी भाषा मे मेंथा या पिपरमेंट भी कहा जाता है, यह क्रैश क्रॉप फसलों की श्रेणी में आती है। पिपरमिंट का पौधा दिखने में पुदीना जैसा दिखाई देता है। जनवरी से फरवरी महीने के बीच पिपरमेंट की खेती करने का सबसे अच्छा समय है, क्योंकि इन दिनों की जलवायु पिपरमिंट के लिए काफी बेहतर होती है। पिपरमिंट की खेती के लिए बलुई दोमट अथवा मटियारी दोमट मिट्टी होनी चाहिए, खेत को समतल करके अच्छे से जुताई करें। इसके बाद मिट्टी में 20 से 25 टन देसी गोबर से बनी खाद डाल दें, इससे मिट्टी अच्छी तरह नम और उपजाऊ बन जाये। ततपश्चात तैयार खेत मे पिपरमिंट के पौधों की रोपाई की जाएगी, पौध लगाने के तुरंत बाद खेत मे हल्के पानी के साथ सिंचाई करनी चाहिए।

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जलजमाव नहीं होना चाहिए

पिपरमिंट की खेती के लिए खेत को इस तरह तैयार करें कि उस खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए। खेत में जलनिकासी की व्यवस्था पहले ही कर लें। 

पहाड़ी अथवा जंगली जमीन पर नहीं होगा पिपरमिंट

पिपरमिंट की खेती के लिए समतल जगह होनी चाहिए, पहाड़ी अथवा जंगली जमीन पर पिपरमिंट की खेती नहीं हो सकती है। अधिक ठंड वाले स्थानों पर भी पिपरमिंट की खेती करना संभव नहीं है। जहां बर्फ या पाला पड़ता है, ऐसे स्थानों पर पिपरमिंट का पौधा विकास नहीं कर पाता है। हालांकि कुछ ठंड के इलाकों में मार्च महीने में पिपरमिंट की पौध लगाई जा सकती है।

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100 दिन के अंदर मिल जाता है पूरा उत्पादन

पिपरमिंट की फसल की केवल 40 से 50 दिन में ही कटाई शुरू हो जाती है, दूसरी कटाई 60 से 70 दिन के बीच हो जानी चाहिए। इस तरह कुल 100 दिन के अंदर पिपरमिंट की फसल का पूरा उत्पादन मिल जाता है। 

पिपरमिंट के तेल की मांग

पिपरमिंट की खेती करना का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बाज़ार में इस पौधे से निकलने वाले तेल की मांग बहुत ज्यादा है, जिसकी वजह से यह पौधा और भी कीमती हो जाता है। अगर आप 1 बीघा जमीन में पिपरमिंट की खेती करते हैं, तो उसके पौधों से लगभग 20 से 25 लीटर या उससे ज्यादा तेल निकल सकता है।

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पिपरमिंट के तेल की कीमत

भारतीय बाज़ार में एक लीटर पिपरमिंट तेल की कीमत लगभग 2 हजार से 3 हजार रुपए के बीच है, ऐसे में किसान 20 से 25 लीटर तेल बेचकर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। पिपरमिंट की खेती से लेकर उसकी पेराई तक, प्रति लीटर पिपरमिंट आयल के उत्पादन पर लगभग 500 रुपए लागत आती है, जबकि मार्केट में पिपरमिंट तेल की कीमत लागत से दोगुना है।

पिपरमिंट तेल का इस्तेमाल

पिपरमिंट तेल (peppermint oil) का इस्तेमाल एक दर्द निवारक के रूप में किया जाता है, जो कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इस तेल में मेन्थोन, मेंथाल और मिथाइल जैसे एसीटेट पाए जाते हैं, जो सिर दर्द, कमर दर्द समेत घुटनों के दर्द और सांस सम्बंधी समस्याओं को दूर करने मददगार साबित होते हैं। इसके अतिरिक्त पिपरमिंट ऑयल का इस्तेमाल ब्यूटी प्रोडक्ट्स तैयार करने के लिए भी किया जाता है, जिससे कई प्रकार की क्रीम और साबुन इत्यादि तैयार किए जाते हैं। पिपरमिंट ऑयल की खुशबू बहुत अच्छी होती है, इसलिए इसका इस्तेमाल पेय पदार्थ, पर्फ्यूम और पान मसाला बनाने के लिए भी किया जाता है। यही कारण हैं कि भारतीय बाज़ार में पिपरमिंट ऑयल की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिसकी वजह से किसान इस पौधे की खेती करने में रूचि ले रहे हैं। पिपरमिंट की फसल को दो बार काटकर उससे तेल निकाला जा सकता है, जिससे किसानों को अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है।

मेंथा यानी मिंट की खेती से होता है तिगुना फायदा, लागत कम और मुनाफा ज्यादा

मेंथा यानी मिंट की खेती से होता है तिगुना फायदा, लागत कम और मुनाफा ज्यादा

मेंथा का उत्पादन भारत भर में की जाती है। परंतु, उत्तर प्रदेश में अधिकाँश किसान मेथा का उत्पादन करते हैं। सोनभद्र, फैजाबाद, बदायूं, बाराबंकी, रामपुर, पीलीभीत समेत बहुत से जनपदों में फिलहाल किसान बड़े स्तर पर मेंथा का उत्पादन कर रहे हैं। भारत समेत पूरे विश्व में हर्बल उत्पादों की मांग बढ़ गई है। फिलहाल छोटे से बड़े किसान तक हर्बल के उत्पादन की तरफ रुख किया जाता है। विशेष बात यह है, कि हर्बल उत्पादों का इस्तेमाल लोगों की जिंदगी में बढ़ने से बाजार में हर्बल उत्पादों की मांग में काफी वृध्दि देखने को मिली है। ऐसी स्थिति में अधिक माँग एवं अधिक भाव की वजह से किसान हर्बल खेती की दिशा में बढ़ रहे हैं। अंततः किसान हर्बल का उत्पादन क्यों ना करें, जब इस पर कम खर्च करके अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। वास्तविकता में हर्बल उत्पादों के अंदर औषधीय गुण विघमान होते हैं। बतादें कि इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों एवं सौंदर्य उत्पादों को निर्मित करने के लिए किया जाता है। विशेष रूप से मेथा के तेल से सुगंधित इत्र और काफी महँगी औषधियां निर्मित की जाती हैं। अब ऐसी उपयोगिता वाली फसल का उत्पादन करके किसान कम लागत और कम समय में खूब पैसा कमा सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह बताया गया है कि मेथा को कम लागत से ही उत्पादित किया जा सकता है। वहीं आय भी तीन गुना अधिक हो जाती है। इतना ही नहीं इसके उत्पादन से मृदा की उर्वरक क्षमता भी काफी बढ़ जाती है। इसकी वजह यह है कि इसमें बहुत सारे औषधीय तत्व शामिल होते हैं।

मेंथा यानी मिंट से एक एकड़ में उत्पादन करके कितनी आय की जा सकती है

अगर मेंथा की खेती से आमदनी की बात की जाए तो किसान भाईयों की 1 एकड़ भूमि पर उत्पादन करने पर 25 हजार रुपए का खर्च होता है। तो वहीं बाजार में मेंथा के तेल का भाव फिलहाल 1000 से 1500 रुपए किलो है। अगर एक हैक्टेयर में आप मेंथा की खेती करते हैं, तो आप लगभग डेढ़ लाख रुपए तक की आय अर्जित कर सकते हैं।

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भारत में मेंथा के तेल की पैदावार काफी मात्रा में होती है

वैसे तो मेंथा का उत्पादन पूरे भारत में किया जाता है। परंतु, उत्तर प्रदेश में मेंथा का उत्पादन करने वाले काफी किसान हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, फैजाबाद, पीलीभीत, बदायूं, बाराबंकी और रामपुर जनपद समेत विभिन्न जनपदों के किसान वर्तमान में बड़े रकबे में मेंथा का उत्पादन करते हैं। मुख्य बात यह है, कि लोग मेंथा को मिंट के नाम से भी जाना जाता है। मेंथा का इस्तेमाल आयुर्वेदिक औषधियों को बनाने के साथ साथ इसके तेल के माध्यम से सौंदर्य उत्पाद कैंडी व टूथपेस्ट भी निर्मित किया जाता है। भारत में सर्वाधिक मेंथा का उत्पादन किया जाता है।

मेंथा से 1 हैक्टेयर भूमि में 100 लीटर के करीब तेल की पैदावार ली जा सकती है

मेंथा का उत्पादन करने से पूर्व अच्छी तरह खेत की जुताई करके तैयार कर लिया जाना चाहिए। साथ ही, खेत में बेहतर सिंचाई की व्यवस्था करनी काफी आवश्यक है। इसकी वजह यह है, कि मेंथा की खेती के लिए काफी जल की आवश्यकता होती है। अगर हम इसकी तैयार होने की समयावधि के बारे में बात करें तो यदि समय से इसकी बुवाई की जाए तब किसान तीन माह में इससे पैदावार ले सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, मेंथा की बुवाई करने हेतु फरवरी से मध्य अप्रैल का माह सबसे उपयुक्त माना जाता है। साथ ही, जून के माह में इसकी फसल की कटाई की जा सकती है। मेंथा की फसल को धूप में सूखाने के उपरांत प्रोसेसिंग के माध्यम से इसका तेल निकाला जाता है। अगर इसके तेल के उत्पादन की बात की जाए तो 1 हैक्टेयर भूमि में इसकी खेती से 100 लीटर के करीब तेल प्राप्त किया जा सकता है।
इस हर्बल फसल की खेती करके कमाएं भारी मुनाफा, महज तीन महीने में रकम होगी 3 गुना

इस हर्बल फसल की खेती करके कमाएं भारी मुनाफा, महज तीन महीने में रकम होगी 3 गुना

इन दिनों दुनिया में हर्बल प्रोडक्ट्स की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है। जिसको देखते हुए दुनिया भर के किसान हर्बल खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि मांग बढ़ने से हर्बल प्रोडक्ट्स ऊंचे दाम में बेंचे जा रहे हैं जिसका फायदा किसानों को भी हो रहा है। इसके अलावा हर्बल खेती में अन्य खेती के मुकाबले लागत भी बेहद कम लगती है साथ ही इस खेती में किसानों को मेहनत भी कम करनी होती है। इन कारणों से किसान भाई लगातार हर्बल खेती की तरफ प्रेरित हो रहे हैं। अगर हम हर्बल उत्पादों की बात करें तो ये उत्पाद अपने औषधीय गुणों के लिए जाने जाते हैं। इन उत्पादों का उपयोग ज्यादातर दवाइयां बनाने में किया जाता है। इसके साथ ही ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में भी इन उत्पादों का बड़े स्तर पर उपयोग किया जाता है। खास कर मेंथा का तेल इस मामले में बहुत प्रसिद्ध है, जिससे न केवल सुगंधित इत्र बल्कि इससे कई तरह की दवाइयां भी बनाई जाती हैं। यह बेहद कम लागत वाली खेती होती है, जिससे किसान भाई बहुत ही जल्दी अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। मेंथा की खेती में लागत से 3 गुना ज्यादा तक मुनाफा होता है। चूंकि यह एक औषधीय खेती है इसलिए इसकी खेती करने से खेत की उर्वरा शक्ति भी तेजी से बढ़ती है।

दुनिया में मेंथा के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है भारत

मेंथा का तेल का उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में किया जाता है। मेंथा को भारत में मिंट के नाम से भी जानते हैं। इसका उत्पादन ज्यादातर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में किया जाता है। उत्तर प्रदेश में पीलीभीत, सोनभद्र, बदायूं, रामपुर, बाराबंकी और फैजाबाद जिले इसके उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। जबकि मध्य प्रदेश में इसका उत्पादन छतरपुर, टीकमगढ़ और सागर जिले में किया जाता है। मेंथा का तेल की बिक्री हाथोंहाथ हो जाती है, क्योंकि दवाइयां निर्माता कंपनियां इस तेल को किसानों से सीधे खरीद ले जाती हैं।

एक एकड़ में होता है जबरदस्त उत्पादन

किसानों को मेंथा की खेती के पहले कई बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। जैसे खेत में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इस खेती में पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। इसके साथ ही किसान भाई जिस खेत में मेंथा की खेती करना चाहते हैं उसे पहले अच्छे से जुताई करके तैयार कर लें। इसके बाद फरवरी से अप्रैल माह के बीच मेंथा कि बुवाई कर दें। यदि सही समय पर मेंथा की बुवाई की गई है तो फसल तीन माह में तैयार हो जाएगी। जून माह में इस फसल की कटाई कर लें और कुछ दिनों तक सूखने के लिए इसे खेत पर ही छोड़ दें। धूप में अच्छी तरह से सूखने के बाद फसल को प्लांट पर भेजा जाता है जहां इसका तेल निकाला जाता है। मेंथा की खेती से किसान भाई एक एकड़ जमीन में लगभग 100 लीटर तेल प्राप्त कर सकते हैं। ये भी पढ़े: इस राज्य के किसान अब करेंगे औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती अगर बाजार में मेंथा के तेल के भाव की बात करें तो यह 1,000 से 1,500  रुपये प्रति लीटर तक बिकता है। जबकि इस फसल को एक एकड़ में लगाने पर मात्र 25 हजार रुपये का खर्चा आता है। इस हिसाब से किसान भाई मात्र एक एकड़ में मेंथा की फसल लगाकर सवा लाख रुपये तक की कमाई बेहद आसानी से कर सकते हैं