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किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

किसान पूसा से धान की इन किस्मों का बीज अब ऑनलाइन खरीद सकते हैं

भारत विश्व में चावल उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर है। भारत में खरीफ की प्रमुख फसलों में धान का विशेष स्थान है। धान की खेती भारत के उत्तरी और दक्षिणी प्रदेशों में मानसून के मौसम में की जाती है। 

साथ ही, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां धान का सीजन (Paddy Season) वर्ष में दो बार आता है। धान की खेती सिंचित और असिंचित दोनों ही तरह के इलाकों में की जाती है। बतादें, कि धान की खेती छिड़काव और रोपाई विधि के माध्यम से की जाती है। 

बतादें, कि रोपाई विधि से धान का उत्पादन काफी अच्छा हांसिल होता है। भारत में धान की बहुत सारी ऐसी उन्नत किस्में हैं, जिनकी खेती करके आप काफी शानदार लाभ कमा सकते हैं। 

इनमें धान की PB 1692" और "PB 1509" किस्म शामिल है, जिन्हें आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं।

धान की पीबी 1692 किस्म / Paddy PB 1692 Variety

पूसा बासमती 1692 धान की उन्नत किस्मों में से एक है। यह एक शीघ्र पकने वाली बासमती धान की प्रजाति है। इसको पकने में तकरीबन 110 से 115 दिनों का समय लगता है और ज्यादा उत्पादन होता है। 

इसी खूबी की वजह से यह बासमती उत्पादक क्षेत्र में धान की फसल की समय पर कटाई करने में सहयोग करता है। ताकि फसल के पश्चात अन्य कार्यों को करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। 

अगर समय पर खेतों की सफाई की जाती है, तो इससे पर्यावरण प्रदूषण को भी कम करने में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त बासमती जीआई क्षेत्र में आने वाली गेहूं की फसल की भी वक्त पर बुवाई में सहायता मिलती है। 

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किसान धान की पीबी 1692 किस्म की खेती कर करीब 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ फसल हांसिल कर सकते हैं। वहीं, प्रति एकड़ में रोपाई के लिए 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं।

धान की पीबी 1509 किस्म / Paddy PB 1509 Variety

पूसा बासमती 1509 धान भी उन्नत किस्मों में से एक है। इसको 2013 में सीवीआरसी द्वारा बासमती उगाने वाले इलाकों जैसे कि - दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी, उत्तराखंड और जम्मू और कश्मीर के लिए जारी किया गया था। 

यह एक शीघ्रता से पकने वाली बासमती धान की किस्म है। इसको पकने में 115 से 120 दिनों का वक्त लगता है। पूसा बासमती 1509 धान की किस्म 5 से 6 सिंचाई तक बचाने में मदद करती है, जिससे आप लगभग 33% प्रतिशत तक पानी की बचत कर सकते हैं। 

किसान धान की इस किस्म की खेती से करीब 27 से 28 क्विंटल प्रति एकड़ फसल हांसिल कर सकते हैं। प्रति एकड़ भूमि में इस किस्म की धान की रोपाई के लिए 4 से 5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं। 

धान की ऑनलाइन खरीद कैसे करें 

अगर आप धान की “PB 1692" और "PB 1509" किस्म को खरीदना चाहते हैं, तो आप इसको घर बैठे ऑनलाइन माध्यम से भी ऑर्डर कर सकते हैं। 

अब आप एनएससी के उत्तम किस्म के धान ‘पीबी 1692’ और पीबी’ किस्म के सर्टिफाइड बीज के 10 किलोग्राम के पैकट को ऑनलाइन माध्यम से खरीद सकते हैं। 

यहां आपको NSC धान पीबी 1509 बीज के 10 किलोग्राम का पैकट 850 रुपये में मिलता है। वहीं, NSC धान पीबी 1509 बीज के 10 किलोग्राम के पैकट की कीमत 800 रुपये निर्धारित की गई है। अभी ऑर्डर करने के लिए https://mystore.in/en/search/nsc-paddy लिंक पर क्लिक करें। 

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

जून में उगाई जाने वाली फसलों की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

खेती किसानी में बहुत से आतंरिक और बाहरी कारक फसलीय उत्पादन को प्रभावित करते हैं। इनमें से एक प्रमुख कारक फसल बुवाई के समय का चयन करना है। 

किसान भाइयों को बेहतर उपज हांसिल करने के लिए हर एक माह के मुताबिक फसलों की बुवाई और कृषि कार्य करना चाहिए। साथ ही, फसल की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए, 

ताकि बंपर उत्पादन हांसिल किया जा सके। ऐसे में कृषकों के पास प्रति महीने कृषि कार्यों की जानकारी होनी चाहिए, ताकि ज्यादा उपज के साथ उच्च गुणवत्ता प्राप्त हो सके।

भारत में मौसम के आधार पर भिन्न-भिन्न फसलों की खेती की जाती है। इसी प्रकार प्रत्येक महीने मौसम को मद्देनजर रखते हुए अलग-अलग कृषि कार्य भी किया जाता है, ताकि फसलों की सही ढ़ंग से देखभाल की जा सके। 

इससे फसल की अच्छी-खासी वृद्धि होती है। साथ ही, उपज की गुणवत्ता में भी सुधार होता है। ऐसे में आवश्यक है, कि कृषकों को मौसम के आधार पर किए जाने वाले कृषि कार्यों की सटीक जानकारी होनी चाहिए।

धान की नर्सरी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी 

यदि किसान भाई मई के अंतिम सप्ताह में धान की नर्सरी नहीं लगा पाए हैं, तो जून के प्रथम सप्ताह तक यह कार्य पूर्ण कर लें। वहीं, सुगंधित किस्मों की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह तक लगा लें। 

धान की मध्यम और देरी से पकने वाली किस्मों को काफी अच्छा माना गया है। इसमें स्वर्ण, पंत-10, सरजू-52, नरेन्द्र-359, जबकि टा.-3, पूसा बासमती-1, हरियाणा बासमती सुगंधित एवं पंत संकर धान-1 तथा नरेन्द्र संकर धान-2 प्रमुख उन्नत संकर किस्में हैं। 

धान की बारीक किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर बीज दर 30 किलोग्राम, मध्यम धान के लिए 35 किलोग्राम, मोटे धान के लिए 40 किलोग्राम और बंजर भूमि के लिए 60 किलोग्राम, जबकि संकर किस्मों के लिए 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है। 

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अगर नर्सरी में खैरा रोग नजर आए तो 20 ग्राम यूरिया, 5 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 वर्ग मीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए।

मक्का की जून में बुवाई से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी   

जून में मक्का की खेती से किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए अगर आप मक्का की बुवाई करना चाहते हैं, तो इसकी बुवाई 25 जून तक कर लेनी चाहिए। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो इसकी बुवाई 15 जून तक भी की जा सकती है। 

मक्का की उन्नत किस्मों में शक्तिमान-1, एच.क्यू.पी.एम.-1, तरुण, नवीन, कंचन, श्वेता और जौनपुरी की सफेद और मेरठ की पीली स्थानीय किस्में अच्छी मानी जाती हैं।

किसान पशु चारा की फसलों की बुवाई करें  

पशुओं के लिए हरे चारे का अभाव ना हो इसलिए आप इस महीने में ज्वार, लोबिया और चरी जैसे चारे वाली फसलों की बुवाई कर सकते हैं। बारिश न होने की स्थिति में खाद देकर बुवाई की जा सकती है। 

जून के महीने में किसान इन सब्जियों की खेती करें

जून के महीने में आप बैंगन, मिर्च, अगेती फूलगोभी की रोपाई कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी, खीरा, चिकनी तोरी, सावन तोरी, करेला और टिंडा की बुवाई भी इसी माह की जा सकती है। 

भिंडी की उन्नत किस्मों में परभणी क्रांति, आजाद भिंडी, अर्का अनामिका, वर्षा, उपहार, वी.आर.ओ.-5, वी.आर.ओ.-6 और आईआईवीआर-10 अच्छी मानी जाती है।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

धान की खेती भारत में खरीफ के मौसम में बड़े पैमाने पर की जाती है। भारत में धान की बुवाई बड़े क्षेत्र में की जाती है। अन्य देशों में धान की उपज में वृद्धि हो रही है जो की हमरे देश में बहुत कम है। 


धान की उपज कई कारकों से प्रभावित होती है जिन में से सबसे बाद कारक है इसमें लगने वाले खतरनाक रोग, फसल में रोगों के प्रभाव के कारण उपज आधी से भी कम होती है। 


इसलिए आज के इस लेख में हम आपके लिए धान के रोगों से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी लेके आए है, जिससे की आप समय रहते इन रोगों को पहचान कर इनका उपचार कर सकते है।

 

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण 

भूरा धब्बा रोग

ये रोग हेलमिनथोस्पोरियम ओरायजी जीवाणु के कारण होता है जो की फसल की उपज को बहुत प्रभावित करता है। इस रोग के लक्षण पौधे के सभी ऊपरी भागो पर देखने को मिलते है । 


तनों पत्तियों एवं बालियों पर बहुत सारे अण्डाकार स्लेटी धब्बे दिखाई देते है जो बाद में भूरे हो जाते है। इस रोग में आपस में धब्बे मिलकर बड़े धब्बे बना लेते है। रोग का अधिक प्रकोप होने पर पौधे उकठकर मर जाते है। 


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पौधे के विकास के साथ में बालियों का विकास भी रूक जाता है और बालियों में दाने नहीं बनते है। फसल की किसी भी अवस्था में यह रोग हो सकता है। रोग से प्रभावित पौधों में दाने की गुणवत्ता कम हो जाती है जिससे फसल का रेट भी अच्छा नहीं लगता है।     


भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के उपाय         

  • इस रोग की जड़ को ख़तम करने के लिए केवल प्रतिरोधक किस्मों का उपयोग करें।  
  • खेत में पूर्स्च्छ खेती करें।
  • फसल चक्र अपनाए।  
  • रोपण की तिथि में बदलाव करें।  
  • उचित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करें।      
  • उपयुक्त जल प्रबंधन करें।      
  • पोटाश की कमी की पूर्ति के लिए पोटाश युक्त उर्वरकों का उपयोग करें।
  • भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के थाईरम 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें या कार्बेंडाजिम 1.5 ग्रा./ कि.ग्रा. बीज से उपचारित करें।                               
  • मेनेकोजेब 0.25 प्रतिशत की दर से 10 से 15 दिन के अंतराल में लक्षण दिखते ही छिड़काव करें।                      

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट (जेन्थोमोनस केम्पेस्ट्रिस)

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग को हिंदी में जेन्थोमोनस केम्पेस्ट्रिस रोग के नाम से जाना जाता है जो की जेन्थोमोनस केम्पेस्ट्रिस जीवाणु के कारण होता है। इस रोग में पत्तियों पर पानीदार धब्बे बनते है। 

धब्बों के आसपास चिपचिपी बूंदे जमा होती है। रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियां पीला से नांरगी भूरी हो जाती है। छोटे धब्बे मिलकर पत्तियों की सतह पर बड़े धब्बे बन जाते है। ये रोग फसल को विकराल रूप में प्रभावित करता है। 

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग के लक्षण दो भागों में दिखाई देते है। क्रेसिक फेस और ब्लाइट फेस इन दोनों में लक्षण अलग अलग होते है। क्रेसिक भाग पौधे की प्रांरभिक अवस्था में मुरझााकर सुख जाते है। 

बाद की अवस्था में ब्लाइट फेस के लक्षण दिखते है जो पत्ती के ऊपर और किनारे में दिखाई पड़ते है, ये धीरे धीरे बढ़कर बड़े एवं लम्बे धब्बे बन जाते है। जैसे - जैसे रोग आगे बढ़ता है, जल्दी ही धब्बे पीले से सफेद हो जाते है।         

बेक्टीरियल लीफ ब्लाइट रोग के नियंत्रण के उपाय        

  • सबसे पहले बुवाई के लिए रोग मुक्त बीजों का उपयोग करें इससे ही इस रोग का रोकथाम किया जा सकता है। 
  • इस रोग को खड़ी फसल में नियंत्रित करने के लिए 5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन 500 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से रोग की शुरूवात में छिड़काव करें। 
  • अच्छा नियंत्रण प्राप्त करने के लिए बाद में 09-12 दिन के अंतराल से छिड़काव फिर से दोहराए।

खैरा रोग 

धान की फसल में ये रोग भी बहुत नुकसान करता है जिस कारण से फसल की उपज की  कम हो जाती है। इस रोग की क्षति की बात करे तो ये रोग मुख्य रूप से  जस्ते की कमी से होता है। 


इस रोग के लक्षण नर्सरी में ही दिखाई देने लग जाते है। इस रोग के सबसे पहले लक्षण नर्सरी में पौधे का पीला पड़ना है। रोग से संक्रमित पौधे पर पत्तों के बीच वाली शिरा के पास पीलापन दिखाई देता है। जिससे की पौधों की बढ़वार रूक जाती है। संक्रमण अधिक होने पर पौधे सुख जाते है।    


खैरा रोग के नियंत्रण के उपाय  

  • नर्सरी के पौधों को बोने से पहले 1 से 2 मिनट तक जिंक सल्फेट के 0.2 प्रतिशत घोल में भिगाए।
  • रोग की रोकथाम के लिए  बीज को बोने से पहले रात भर जिंक सल्फेट के 0.4 प्रतिशत घोल में भिगाए। या जिंक सल्फेट 5 कि.ग्रा. और चूना 2.5 कि.ग्रा. का छिड़काव करें।   
  • जिंक सल्फेट 5 कि.ग्रा. और चूना 2.5 कि.ग्रा. का पहला छिड़काव नर्सरी में बोने के 10 दिन बाद करें।दूसरा छिड़काव बोनी के 20 दिन बाद करे और
  • तीसरा छिड़काव रोपणी के 15 से 30 दिन बाद करें।

फाल्स स्मट या आभासी कंडवा रोग 

ये रोग यूसलीगनीओइड विरेन्स जीवाणु से होता है। धान की फसल का ये सबसे घातक रोग माना जाता है। रोग फूल आने के बाद में दिखता है। इस रोग में बालियों में दाने हरे काले हो जाते है। 


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संक्रमित दाने छिद्र युक्त चुर्ण से ढके रहते है। हवा से उड़कर यह स्वस्थ फूलों को भी संक्रमित कर देते है। अधिक संक्रमण होने पर सारे दाने खराब हो जाते है। 


फाल्स स्मट या आभासी कंडवा रोग के नियंत्रण के उपाय     

  • इस रोग को पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए दो से तीन साल के लिए फसल चक्र अपनाए।          
  • गहरी जुताई से भूमि में गिरे स्केलोरेशिया नष्ट हो जाते है।
  • संक्रमित दाने एवं पौधों को नष्ट करें, संक्रमित पौधों से बीज न इकटठा करें।    
  • प्रोपेकोनोज़ोल ( टिल्ट) 1 मि.ली. प्रति लीटर या क्लोरोथोलोनिल 2 ग्राम प्रति लीटर की दर से फूल निकलने समय छिड़काव करें।
  • दूसरा छिड़काव फूल पूरी तरह से आने के बाद करें।
  • पोटाश उर्वरकों को डाले। 

चावल की कम समय और कम जल खपत में तैयार होने वाली किस्में

चावल की कम समय और कम जल खपत में तैयार होने वाली किस्में

चावल उत्पादन के मामले में भारत दूसरे स्थान पर आता है। धान की फसल के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती हैं इसके पौधों को जीवनकाल में औसतन 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 37 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती हैं। 

धान की खेती के लिए मटियार एवम दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती हैं। प्रदेश में धान की खेती असिंचित व् सिंचित दशाओं में सीधी बुवाई व रोपाई द्वारा की जाती हैं।

बतादें, कि निरंतर घटते भू-जल स्त्रोत की वजह से आज पानी का संकट होता जा रहा है। गर्मियों के दिनों में तो पेयजल संकट और ज्यादा गहरा हो जाता है। धान की खेती करने वाले कृषकों के समक्ष सिंचाई की चुनौतियां आती हैं। 

धान की खेती में सर्वाधिक पानी की जरूरत पड़ती है। एक अनुमान के मुताबिक, एक किलोग्राम धान उत्पन्न करने में लगभग 2500 से 3000 लीटर जल की आवश्यकता होती है। 

वर्तमान में हमें कम समय और कम पानी में तैयार होने वाले ऐसे चावल की किस्मों की आवश्यकता है, जिससे कि उनकी सिंचाई में पानी की खपत को कम करके पर्यावरण को सुरक्षित किया जा सके और कम पानी में उत्तम पैदावार हांसिल की जा सके। 

इस बात को मद्देनजर रखते हुए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीयू) के विशेषज्ञों ने चावल की कम व मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों की सिफारिश की है। इसमें चावल की पीआर 126 और पीआर 131 के अच्छे परिणाम मिले हैं। 

यह दोनों ही प्रजातियां कम पानी व समयावधि में तैयार होने वाली चावल की प्रजातियां हैं। आगे आपको बताएंगे कि कृषक इन किस्मों की बुवाई करके कम खर्चा में चावल की अच्छी-खासी उपज प्राप्त कर सकते हैं।

चावल की पीआर 126 किस्म

धान (चावल) की पीआर 126 किस्म को पंजाब कृषि विभाग के द्वारा विकसित किया गया है, जो कम समयावधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की ऊंचाई 102 सेमी तक होती है। 

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यह किस्म 123 से 125 दिनों के समयांतराल में पक जाती है। इस किस्म को कम जल की जरूरत होती है। इतना ही नहीं यह किस्म सात अलग-अलग बैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनकों के लिए प्रतिरोधी प्रजाति है। इसकी उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 31 क्विंटल की उपज हांसिल की जा सकती है।

चावल की पीआर 131 किस्म की क्या खूबी है ?

चावल की पीआर 131 किस्म की ऊंचाई 111 सेमी है। यह किस्म रोपाई के लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह वैक्टीरियल ब्लाइट रोगजनक के समस्त 10 रोगों के लिए प्रतिरोधी प्रजाति है। इसके उत्पादन की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ लगभग 31 क्विंटल की उपज प्राप्त की जा सकती है।

बतादें, कि इन किस्मों के अतिरिक्त भी धान की कम पानी में उगने वाली बाकी किस्में भी हैं, जिनकी खेती करके लघु या मध्यम अवधि में धान की शानदार उपज हांसिल की जा सकती है। इन किस्मों में पूसा सुगंध- 5, पूसा बासमती- 1509, पूसा बासमती-1121 व पूसा-1612 आदि शम्मिलित हैं।

चावल की धान पूसा सुगंध-5 किस्म 

धान की पूसा सुगंध-5 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) पूसा दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह चावल की संकर प्रजाति है। इसके दाने पतले, सुगंधित और लगभग 7 से 8 मिमी लंबे होते हैं। 

इसके दाने की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है और उपज क्षमता भी काफी अच्छी होती है। यह किस्म 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

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इस किस्म से औसत पैदावार लगभग 5.5 से 6 टन प्रति हैक्टेयर अर्जित की जा सकती है। पूसा सुगंध की खेती भारत में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में विशेष तोर पर की जाती है।

चावल की पूसा बासमती- 1509 किस्म 

धान (चावल) की पूसा बासमती 1509 किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई कम समयावधि में तैयार होने वाली प्रजाति है। यह किस्म 120 दिन की समयावधि में तैयार हो जाती है।

इसकी औसत उपज की बात की जाए तो इस प्रजाति से लगभग 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। पूसा बासमती- 1509 किस्म के दाने लंबे व पतले हाते हैं, जिनकी लंबाई लगभग 8.19 मिमी होती है। 

यह चावल की अत्यंत सुगंधित किस्म है। इस किस्म में चार सिंचाई के जल की रक्षा में सहयोग मिल सकता है। यह किस्म धान की 1121 किस्म की तुलना में कम जल खपत में तैयार हो जाती है, जिससे पानी की 33% प्रतिशत बचत होती है। 

यह किस्म सिंचित अवस्था में धान-गेहूं फसल प्रणाली के लिए अनुकूल बताई गई है। इसके पौधे आधे बौने होते हैं और गिरते नहीं है। 

बतादें, कि इसके साथ ही फसल पकने पर दाने झड़ते नहीं है। यह किस्म पूर्ण झुलसा व भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी किस्म है। 

चावल की पूसा बासमती-1121 किस्म

धान की पूसा बासमती-1121 किस्म को सिंचित इलाकों में उगाया जा सकता है। यह किस्म 140 से 145 दिन के अंदर पककर तैयार हो जाती है। 

यह धान की अगेती प्रजाति है, इसका दाना लंबा व पतला और खाने में अत्यंत स्वाद से परिपूर्ण होता है। धान की इस प्रजाति से 40 से 45 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन हांसिल किया जा सकता है।

चावल की पूसा-1612 किस्म

धान की पूसा-1612 किस्म को 2013 में विमोचित किया गया था। यह धान की सुगंध-5 किस्म का विकसित स्वरूप है। यह किस्म 120 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

यह सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती है। यह किस्म ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी किस्म मानी जाती है। बतादें, कि इस किस्म से तकरीबन 55 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

ऐसे मिले धान का ज्ञान, समझें गन्ना-बाजरा का माजरा, चखें दमदार मक्का का छक्का

पैडी (Paddy) यानी धान, शुगरकैन (sugarcane) अर्धात गन्ना, बाजरा (millet) और मक्का (maize) की अच्छी पैदावार पाने के लिए, भूमि सेवक किसान यदि मात्र कुछ मूल सूत्रों को अमल में ले आएं, तो कृषक को कभी भी नुकसान नहीं रहेगा। यदि होगा भी तो बहुत आंशिक।

धान, गन्ना, जवार, बाजरा, मक्का, उरद, मुंग की अच्छी पैदावार : समझें अनुभवी किसानों से

स्यालू में धान (dhaan/Paddy)

स्यालू यानी कि खरीफ की मुख्य फसल (Major Kharif Crops) की यदि बात की जाए तो वह है धान (dhaan/Paddy/Rice)। इस मुख्य फसल की बीज या फिर रोपा (इसकी सलाह अनुभवी किसान देते हैं) आधारित रोपाई, जूलाई महीने में हर हाल में पूरा कर लेने की मुंहजुबानी सलाह किसानों से मिल जाएगी। 

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अच्छी धान के लिए कृषि वैज्ञानिकों के मान से धान (dhaan) के खेत (Paddy Farm) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा का उपयोग धान रोपण के 58 दिन बाद करना हितकारी है। क्योंकि इस समय तक पौधे जमीन में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुके होते हैं। रोपण के सप्ताह उपरांत खेत में रोपण से वंचित एवं सूखकर मरने वाले पौधों वाले स्थान पर, फिर से पौधों का रोपण करने से विरलेपन के बचाव के साथ ही जमीन का पूर्ण सदुपयोग भी हो जाता है। 

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धान रोपण युक्ति

तकरीबन 20 से 25 दिन में तैयार धान की रोपाई खेत में की जा सकती है। इस दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। उत्कृष्ट उत्पादन के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किग्रा नाइट्रोजन (Urea), 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश और 25 किग्रा जिंक सल्फेट डालने की सलाह कृषि सलाहकारों की है। 

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गन्ने की खेती (Sugarcane Farming)

गले की तरावट, मद्य, मीठे गुड़ में मददगार शुगरकैन फार्मिंग (Sugarcane Farming), यानी गन्ने की खेती में भी कुछ बातों का ख्याल रखने पर दमदार और रस से भरपूर वजनदार गन्नों की फसल मिल सकती है। जैसे गन्ने की पछेती बुवाई (रबी फसल कटने के बाद) करने की दशा में, खेत में समय-समय पर सिंचाई, निराई एवं गुड़ाई अति जरूरी है। फसल कीड़ों-मकोड़ों और बीमारियों के प्रकोप से ग्रसित होने पर रासायनिक, जैविक या अन्य विधियों से नियंत्रित किया जा सकता है। ये भी पढ़ें: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें अत्यधिक वर्षा, तूफान या तेज हवा के दबाव में गन्ने के फसल जमीन पर बिछने/गिरने का खतरा मंडराता है। ऐसे में जुलाई-अगस्त के महीने में ही, दो कतारों मध्य कुंड बनाकर निकाली गई मिट्टी को ऊपर चढ़ाने से ऐहतियातन बचाव किया जा सकता है।

उड़द, मूंग में सावधानी

बारिश शुरू होते ही उड़द एवं मूंग की बुवाई शुरू कर देना चाहिए। अनिवार्य बारिश में देर होने की दशा में पलेवा कर इनकी बुवाई जुलाई के प्रथम पखवाड़े, यानी पहले पंद्रह दिनों में खत्म करने की सलाह दी जाती है। 

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उड़द, मूंग की बुवाई सीड ड्रिल या फिर अपने पुश्तैनी देसी हल से कर सकते हैं। इस दौरान ख्याल रहे कि 30-45 सेमी दूरी पर बनी पक्तियों में बुवाई फसल के लिए कारगर होगी। इसके साथ ही निकाई से पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7 से 10 सेमी कर लेनी चाहिए। उड़द, मूंग की उपलब्ध किस्मों के अनुसार उपयुक्त बीज दर 15 से 20 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है। दोनों फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा गंधक का मानक रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक एवं सलाहकार देते हैं।

भरपूर बाजरा (Bajra) उगाने का यह है माजरा

बाजरा के भरपूर उत्पादन के लिए कई प्लस पॉइंट हैं। अव्वल तो बाजरा (Bajra) के लिए अधिक उपजाऊ मिट्टी की जरूरी नहीं, बलुई-दोमट मिट्टी में यह पनपता है। इसकी भरपूर पैदावार के लिए सिंचित क्षेत्र के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फॉस्फोरस और पोटाश 40-40 किलोग्राम और बारानी क्षेत्रों के लिए नाइट्रोजन-60 किग्रा, फॉस्फोरस व पोटाश 30-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने की सलाह जानकार देते हैं।


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सभी परिस्थितियों में नाइट्रोजन की मात्रा आधी तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश पूरी मात्रा में तकरीबन 3 से 4 सेंमी की गहराई में डालना चाहिए। बचे हुए नाइट्रोजन की मात्रा अंकुरण से 4 से 5 हफ्ते बाद मिट्टी में अच्छी तरह मिलाने से फसल को सहायता मिलती है।

ज्वार का ज्वार, मक्का (Maize) का पंच

देशी अंदाज में भुंजा भुट्टा, तो फूटकर पॉपकॉर्न तक कई रोचक सफर से गुजरने वाले मक्के की दमदार पैदावार का पंच यह है, कि मक्का (Maize) व बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए मानसून उपयुक्त माना गया है। उत्तर भारत में इसकी बुवाई की सलाह मध्य जुलाई तक खत्म कर लेने की दी जाती है। मक्के की ताकत की यही बात है कि इसे सभी प्रकार की मिट्टी में लगाया जा सकता है। हालांकि बलुई-दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी बढ़त एवं उत्पादकता में सहायक हैं।


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जोरदार, धुआंधार ज्वार की पैदावार का ज्वार लाने के लिए बारानी क्षेत्रों में मॉनसून की पहली बारिश के हफ्ते भर भीतर ज्वार की बुवाई करना फलदायी है। ज्वार के मामले में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुवाई के लिए 12 से 15 किलोग्राम ज्वार के बीज की जरूरत होगी।  

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

चावल की बेहतरीन पैदावार के लिए इस प्रकार करें बुवाई

धान की बेहतरीन पैदावार के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिश्रित करनी है। आज कल देश के विभिन्न क्षेत्रों में धान की रोपाई की वजह खेत पानी से डूबे हुए नजर आ रहे हैं। किसान भाई यदि रोपाई के दौरान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो उन्हें धान की अधिक और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार मिल सकती है। अमूमन धान की रोपाई जून के दूसरे-तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे-चौथे सप्ताह के मध्य की जाती है। रोपाई के लिए पंक्तियों के मध्य का फासला 20 सेंटीमीटर और पौध की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। एक स्थान पर दो से तीन पौधे रोपने चाहिए। धान की फसल के लिए तापमान 20 डिग्री से 37 डिग्री के मध्य रहना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी काफी बेहतर मानी जाती है। धान की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके खेत को तैयार करना चाहिए। साथ ही, खेत की सुद्रण मेड़बंदी करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज्यादा समय तक संचित रह सके।

धान शोधन कराकर खेत में बीज डालें

धान की बुवाई के लिए 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के अनुसार बिजाई करनी चाहिए। साथ ही, एक हेक्टेयर रोपाई करने के लिए 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। हालांकि, इससे पहले बीज का शोधन करना आवश्यक होता है। ये भी पढ़े: भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

खाद और उवर्रकों का इस्तेमाल किया जाता है

धान की बेहतरीन उपज के लिए जुताई के दौरान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ क्विंटल गोबर की खाद खेत में मिलाते हैं। उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन, पोटाश और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं।

बेहतर सिंचाई प्रबंधन किस प्रकार की जाए

धान की फसल को सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। रोपाई के उपरांत 8 से 10 दिनों तक खेत में पानी का बना रहना आवश्यक है। कड़ी धूप होने पर खेत से पानी निकाल देना चाहिए। जिससे कि पौध में गलन न हो, सिंचाई दोपहर के समय करनी चाहिए, जिससे रातभर में खेत पानी सोख सके।

कीट नियंत्रण किस प्रकार किया जाता है

धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिए जुताई, मेंड़ों की छंटाई और घास आदि की साफ सफाई करनी चाहिए। फसल को खरपतवारों से सुरक्षित रखना चाहिए। 10 दिन की समयावधि पर पौध पर कीटनाशक और फंफूदीनाशक का ध्यान से छिड़काव करना चाहिए।
बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

बासमती उत्पादक किसानों को सरकार के इस कदम से झेलना पड़ रहा नुकसान

भारत संपूर्ण दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात कर देता है। साल 2022-23 में भारत ने तकरीबन 4.6 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब की मंडियों में बासमती धान की आवक चालू हो गई है। परंतु, इस बार कृषकों को विगत वर्ष की तुलना में बासमती धान का कम भाव मिल रहा है। किसानों का यह कहना है, कि उन्हें इस वर्ष बासमती धान की बिक्री में काफी हानि हो रही है। किसानों की मानें, तो उन्हें इस बार प्रति क्विंटल 400 से 500 रुपये कम प्राप्त हो रहे हैं। साथ ही, किसानों का यह आरोप है, कि केंद्र सरकार द्वारा बासमती चावल के मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 1,200 डॉलर प्रति टन निर्धारित करने के चलते उन्हें काफी हानि उठानी पड़ रही है।

भारत दुनिया में सबसे बड़ा बासमती निर्यातक देश है

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।

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किसानों को वहन करना पड़ रहा घाटा

किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी

हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

गेहूं की बुवाई हुई पूरी, सरकार ने की तैयारी, 15 मार्च से शुरू होगी खरीद

देश में महंगाई चरम पर है. सब्जी और दाल के साथ आटे के दाम भी आसमान छू रहे हैं. बढ़ी हुई महंगाई ने आम आदमी के बजट और जेब दोनों पर डाका डाल दिया है. इन बढ़े हुए दामों ने केंद्र सरकार को भी परेशान कर रखा है. वहीं बात महंगे गेहूं की करें तो, अब इसके दाम कम हो सकते हैं. आम जनता के लिए यह बड़ी राहत भरी खबर हो सकती है. देश में कई बड़े राज्यों में गेहूं की बुवाई का काम हो चुका है. बताया जा रहा है कि इस साल बुवाई रिकॉर्ड स्तर पर की गयी है. हालांकि भारत के बड़े हिस्से में गेहूं की बुवाई की जाती है. जिसके बाद केंद्र सरकार 15 मार्च से गेहूं खरीद का काम शुरू कर देगी. इसके अलावा इसे जमीनी स्तर पर परखने के लिए खाका भी तैयार किया जा रहा है.

आटे की कीमतों पर लगेगी लगाम

हाल ही में केंद्र सरकार ने गेहूं और आटे की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए खुले बाजार में लगभग तीस लाख टन गेहूं बेचने की योजना का ऐलान किया था. बता दें ई-नीलामी के तहत बेचे जाने वाले गेहूं को उठाने और फिर उसे आटा मार्केट में लाने के बाद उसकी कीमतों में कमी आना तय है.
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जानकारी के लिए बता दें कि, OMSS  नीति के तहत केंद्र सरकार FCI को खुले बाजार में पहले निर्धारित कीमतों पर अनाज खास तौर पर चावल और गेहूं बेचने की अनुमति देती है. सरकार के ऐसा करने का लक्ष्य मांग ज्यादा होने पर आपूर्ति को बढ़ाना है और खुले बाजार मनें कीमतों को कम करना है. भारत में गेहूं की पैदावार पिछले साल यानि की 2021 से 2022 में 10 करोड़ से भी ज्यादा टन था. गेहूं की पैदावार की कमी की राज्यों में अचानक बदले मौसम, गर्मी और बारिश की वजह से हुई. जिसके बाद गेहूं और गेहूं के आटे के दामों में उछाल आ गया.
इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

इस राज्य में 24 लाख टन गेहूं की खरीद बढ़ी, क्या इससे किसानों को होगा फायदा

पंजाब राज्य सरकार की तरफ से अंदाजा लगाया जा रहा है, कि प्रदेश में इस वर्ष विगत वर्ष के मुकाबले गेहूं की खरीद में इजाफा किया जाएगा। विगत वर्ष जहां आंकड़ा 96.47 करोड़ के करीब रहा था। इसबार वह आंकड़ा काफी ज्यादा रहेगा। भारत के बहुत सारे राज्यों में गेहूं कटाई चल रही है। किसान गेहूं को काटकर तत्काल मंडी लेकर पहुंच रहे हैं। किसान भाई सर्व प्रथम मौसम के रुझान को भांप रहा है। एक-दो दिन पूर्व आई बरसात ने गेहूं काट रहे किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। उधर, केंद्र एवं राज्य सरकार भी गेहूं खरीद पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं। केंद्र सरकार एजेंसियों के माध्यम से गेहूं खरीद का डाटा इकठ्ठा कर रही है। साथ ही, राज्य सरकार भी मंडी के स्तर से गेहूं के आंकड़ों की अपडेट ले रही हैं। खरीद केंद्रों पर किसानों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न हो सके। इसका भी विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। गेहूं खरीद को लेकर पंजाब से राहत भरा समाचार सुनने को सामने आया है। यहां गेहूं की धुआँधार खरीद होने का अंदाजा लगाया गया है। इससे यह बिल्कुल साफ है, कि किसान भी गेहूं बेचकर अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं।

पंजाब में इतने करोड़ टन गेहूं की खरीद होने की संभावना

पंजाब की मंडियों में भी गेहूं पहुंचाया जा रहा है। अधिकारी भी गेहूं खरीदने में पूरी तेयारी से जुटे हुए हैं। फिलहाल, पंजाब सरकार के अधिकारी ने कहा है, कि मौजूदा रबी सत्र में गेहूं की खरीद काफी अच्छी होने की संभावना है। खरीद का आंकड़ा 1.2 करोड़ टन पहुंचने का अंदाजा है। जबकि विगत वर्ष गेहूं खरीद 96.47 लाख टन रही थी। लगभग 24 लाख टन का इजाफा दर्ज किया जा रहा है।

पंजाब में लगभग 14 लाख हेक्टेयर फसल को हुई हानि

पंजाब में मौसमिक अनियमितताओं के चलते बेमौसम हुई बारिश से तकरीबन 14 हैक्टेयर फसल पर काफी असर पड़ा है। वर्तमान में सांसद राघव चडढा की तरफ से भी प्रभावित किसानों की सहायता करने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने बताया है, कि राज्य में समकुल 34.90 लाख हेक्टेयर में फसल की बुआई की गई है, वहीं इसमें से 14 लाख हेक्टेयर फसल काफी प्रभावित हो चुकी है। जो कि अपने आप में एक बड़ा हिस्सा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा 47.24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अथवा 19 क्विंटल प्रति एकड़ की औसत पैदावार की संभावना व्यक्त की गई है। इसी आधार पर आंकड़ा भी निकाला गया है।

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पंजाब के इन जनपदों को बेमौसम बारिश ने काफी प्रभावित किया है

ओलावृष्टि के साथ तीव्र हवाओं की वजह से पंजाब के मोगा, फाजिल्का, पटियाला और मुक्तसर सहित पंजाब के बहुत से अन्य इलाकों में भी गेंहू के साथ अन्य फसलें भी काफी प्रभावित हुई हैं। हालाँकि, सहूलियत की बात यह है, कि केंद्र सरकार की एजेंसियों के माध्यम से 18 फीसद तक भीगे, सिकुड़े और टूटे गेंहू के लिए छूट दे दी है। नतीजतन कृषकों को अत्यधिक हानि वहन नहीं करनी पड़ेगी। लेकिन, किसान भाइयों की यही अरदास है, कि गेंहू विक्रय से पूर्व बारिश ना हो जाए।
कैसे डालें धान की नर्सरी

कैसे डालें धान की नर्सरी

किसी भी फसल की नर्सरी डालना सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है क्योंकि अनेक तरह के रोग संक्रमण नर्सरी से शुरू होकर आखरी फसल पकने तक परेशान करते हैं। इनमें मुख्य रूप से जीवाणु और विषाणु जनित रोग प्रमुख हैं। 

धान की नर्सरी (paddy nursery)

एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए महीन धान 30 किलोग्राम,मध्यम धान 35 किलोग्राम और मोटे धान का 40 किलोग्राम बीज को तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। एक हेक्टेयर की नर्सरी से लगभग 15 हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई हो जाती है। 

धान की नर्सरी डालने से पहले पौधों वाली क्यारी को खेत से 1 से 2 इंची ऊंचा उठा लें ताकि गर्मी के समय में यदि क्यारी में पानी ज्यादा लग जाए तो उसे निकाला जा सके।

क्यारी उपचार


धान की नर्सरी डालने से पूर्व एक कुंतल सड़े हुए गोबर की खाद में एक किलोग्राम ट्राइकोडरमा मिला लें और उसे पेड़ की छांव में पानी के छींटे मार कर रखते हैं। 

7 दिन तक पानी के छींटे मारते हुए स्थान को पलटते रहें। इसके बाद धान की नर्सरी जिस क्यारी में डालनी है उसमें इसे मिला दें। ऐसा करने से जमीन में मौजूद सभी हानिकारक फफूंदियां नष्ट हो जाएंगी। 

उर्वरक प्रबंधन

एक हेक्टेयर नर्सरी डालने के लिए खेत में 100 किलोग्राम नत्रजन एवं 50 किलोग्राम फास्फोरस का प्रयोग करें।ट्राइकोडरमा का एक छिड़काव नर्सरी लगने के 10 दिन के अंदर पर कर देना चाहिए।

मौत के 10 से 15 दिन का होने पर एक सुरक्षात्मक छिड़काव खैरा सहित विभिन्न रोगों से सुरक्षा के लिए कर देना चाहिए। पांच किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया, या ढाई किलोग्राम बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिड़काव बुवाई के 10 दिन बाद दूसरा 20 दिन बाद करना चाहिए। 

सफेदा रोग का नियंत्रण करने के लिए 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट का 20 किलो यूरिया के घोल के साथ मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। झोंका रोग की रोकथाम के लिए 500 ग्राम कार्बन डाई, 50% डब्ल्यूपी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 

भूरा धब्बा रोग से बचाव के लिए दो किलोग्राम जिंक मैग्नीस कार्बोमेट का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। नर्सरी में लगने वाले कीड़ों से पौधों को बचाने के लिए 1 लीटर फेनीट्रोथियान 50 ईसी, 1. 25 लीटर क्नायूनालफास 25 ईसी या 1.5 लीटर क्लोरो पायरी फास 20 ईसी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें। 

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समय-समय पर पद की क्यारी में पानी लगाते रहे और इस बात का जरूर ध्यान रखें की पानी शाम को लगाएं। सुबह तक क्यारी पानी को पी जाए इतना ही पानी लगाएं। ज्यादा पानी लगाने और पानी के क्यारी में ठहर जाने से पौध मर सकती है।

बीज का भिगोना

धान के बीज को अंकुरण के लिए भिगोने से पूर्व 100 किलो पानी में 2 किलो नमक डालकर बीज को उसमें डालें। इससे संक्रमित थोथा और खराब बीज ऊपर तैर आएगा। 

खराब बीज को फेंक दें। अच्छे बीज को नमक के घोल से निकाल कर तीन चार बार साफ पानी में धो लें ताकि नमक का कोई भी अंश बीज पर ना रहे।

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

हमारे देश के बड़े भूभाग में धान की फसल की जाती है। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में तो धान की ही मुख्य फसल होती है। धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई में बहुत से श्रमिकों की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों आज का समय पैसे कमाने का समय है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिश्रम का अधिक से अधिक मेहनताना लेना चाहता है। इसके लिए आज के श्रमिकों ने खेती किसानी का काम छोड़ करन परदेश जाकर कारखानों में काम करना शुरू कर दिया है। इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों का अभाव हो गया है। इस वजह से खेती किसानी करना बहुत मुश्किल होता जा रह है। जो श्रमिक गांवों में बचे रह गये हैं वे भी अपने अन्य भाइयों के समान औद्योगिक श्रमिकों की तरह मेहनताना मांगते हैं। इससे खेती की लागत उतनी अधिक बढ़ जाती है जितना उत्पादन नहीं हो पाता है। इसलिये किसान भाई वो काम नहीं कर पाते हैं।

धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई

Content

  1. समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान
  2. हंसिया (Sickle)
  3. ब्रश कटर (Brush Cutter)
  4. क्या होता है ब्रश कटर
  5. कम्बाइंट हार्वेस्टर (Combined Harvester Machine)
  6. क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)
  7. क्या होता है कम्बाइंड हार्वेस्टर कटर
  8. रीपर मशीन (Reaper Machine)
  9. क्या होता है रीपर मशीन
  10. हाथ से चलने वाली मशीन (हैंड रीपर)
  11. छोटे वाहन वाली मशीन (सेल्फ प्रॉपलर मशीन)
  12. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन (ट्रैक्टर माउंटेड)

समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान

खेती किसानी का काम समय से होना चाहिये तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है। श्रमिकों के अभाव में किसान भाइयों की खेती प्रभावित होती है। कभी लेट बुआई होती है तो कभी निराई गुड़ाई नहीं हो पाती है। कभी सिंचाई देर से हो पाती है अथवा फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई नहीं हो पाती है। कीट व रोग के प्रकोप से नियंत्रण में भी असर पड़ता है। कुल मिलाकर श्रमिकों के बिना खेती पूरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को खेती के आधुनिक तरीके और आधुनिक उपकरणों और मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिये। इन मशीनों व उपकरणों से मानव श्रम से अधिक और बहुत ही साफ सुथरा काम हो जाता है। लागत  व समय भी कम लगता है। आइये हम आज धान की फसल को काटने वाली छोटे उपकरण से लेकर बड़ी मशीनों तक की चर्चा करेंगे। जो इस प्रकार है:-
  1. हंसिया या हंसुआ: (Sickle)

यह किसानों का पारंपरिक कटाई का औजार, उपकरण या हथियार है। इससे किसी प्रकार की फसल की कटाई की जा सकती है। धान की फसल की कटाई इसी हथियार से की जाती है। छोटे किसान आज भी अपने परिवार के साथ इसी हथियार से कटाई करते हैं। इससे फसल की कटाई में काफी समय लगता है। जब धान की फसल पक गयी हो और खेत में पानी भरा हो तब यही हथियार फसल की कटाई के काम आता है।
  1. ब्रश कटर (Brush Cutter)

हाथ से कटाई करने में बहुत श्रमिक और बहुत समय लगता है। इससे किसान भाइयों का समय व पैसा बहुत बर्बाद होता है। धान की फसल की समय पर कटाई होनी बहुत जरूरी होती है। यदि समय पर धान की फसल की कटाई नहीं की गई तो बहुुत नुकसान होता है। आज के समय में खेतों में काम करने वाले मजदूर न मिलने के कारण किसानों के समक्ष बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में समय पर कटाई करना किसान भाइयों के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है। इस समस्या को आधुनिक यंत्रों व मशीनों के द्वारा हल किया जा सकता है। पहले तो व्यापारियों ने धान की फसल कटाई के लिए बड़ी बड़ी मशीनें मार्केट में उतारीं, जिन्हें किराये पर लेकर काम कराया जा सकता था। लेकिन इन मशीनों का किराया भी इतना अधिक था कि प्रत्येक किसान उसको वहन नहीं कर सकता था। इसलिये अब बाजार में छोटी मशीनें आ गयी है। इसमें एक ब्रश कटर नाम से एक ऐसी मशीन आ गयी है, जिसको किसान अकेले ही दस मजदूरों के बराबर फसल की कटाई कर सकता है।  पेट्रोल से चलने वाली यह मशीन महीनों का काम घंटों में कर देती है। ये भी पढ़े: आधुनिक तकनीक अपनाकर घाटे से बचेंगे किसान

कितना है मैनुअल व मशीन के काम व दाम में अंतर

जानकार लोगों का दावा है कि एक एकड़ की मजदूरों द्वारा खेती की धान की फसल की कटाई पर लगभग 5 हजार रुपये का खर्च आता है। लेकिन इस मशीन से मात्र 500  रुपये में एक ही व्यक्ति कटाई कर सकता है। यदि किसान भाई यह काम करने में सक्षम हो तो ठीक वरना इस मशीन को चलाने वाले बहुत से लोग आ गये हैं। इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें फसल के अनुसार ब्लेड लगाकर अलग-अलग तरह की फसलों की कटाई की जा सकती है। यह मंशीन कंधे पर टांग कर फसल की कटाई की जा सकती है। खेत में पानी भी भरा हो तब भी किसान भाई इस मशीन से कटाई कर सकते हैं। यदि किसान भाई इस मशीन की मेंटीनेंस अच्छी तरह से करे तो यह मशीन अपनी कीमत एक साल में ही निकाल देती है। यह मशीन अधिक महंगी भी नहीं है।

क्या होता है ब्रश कटर (Brush Cutter):-

ये भी पढ़े: भूमि की तैयारी के लिए आधुनिक कृषि यन्त्र पावर हैरो छोटे किसानों के लिए यह एक ऐसी आधुनिक मशीन है, जिसके माध्यम से किसान भाई केवल धान फसल की कटाइई ही नहीं कर सकते हैं बल्कि इससे अनेक प्रकार की फसलों च चारे की कटाई आसानी से कर सकते हैं। इस मशीन से खेतों में रुका हुआ थोड़ा बहुत पानी भी निकाल सकते हैं। अब यह मशीन पेट्रोल और मोबिल आयल से चलने वाली 4 स्ट्रोक वाली मोटर से लैस मशीन है। इसमें एक हैंडल दिया गया है। हैंडल के आगे कटर लगाने के लिए स्थान दिया गया है। इसमें आप अपनी जरूरत के ब्लेड लगाकर अपनी मनचाही फसल काट सकते हैं। इसका वजन 7 से 10 किलो तक का होता है।

किसी ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं

इस मशीन को चलाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं लेनी होती है। शुरू के 10 से 15 मिनट में नये व्यक्ति को परेशानी होती है। एक बार इसको चलाने का तरीका जानने के बाद इसे आसानी से चलाया जा सकता है। इतनी ट्रेनिंग मशीन बेचने वाली कंपनी के टेक्नीशियन दे देते हैं। इसके अलावा इस मशीन को किसान भाई तो चला सकते हैं और उनकी अनुपस्थिति में घर की महिलाएं भी आसानी से चला सकतीं हैं।
  1. कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

धान फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हार्वेस्ट मशीन का उपयोग तेजी से होने लगा है। इस मशीन के माध्यम से खेत में खड़ी फसल की बालियों यानी अनाज की कटाई की जाती है और उसकी मढ़ाई और गहाई की जाती है। यह मशीन जमीन से 30 सेंटीमीटर ऊपर से फसल काटती है और खेत में ठूंठ छोड़ देती है इससे पुआल का नुकसान होता है। दूसरा समय पर खेत को खाली करने के लिए किसान भाइयों को जल्दी होती है और उस समय कोई दूसरा उपाय न सूझने के कारण खेत में पराली को जला दिया जाता है। इससे जानवरों के चारे का नुकसान होता है दूसरा पर्यावरण प्रदूषित होता है।

नुकसान के बावजूद है फायदे का सौदा

हालंकि मजदूरों की अपेक्षा आधी कीमत पर बहुत कम समय में अच्छी तरह से कटाई, मढ़ाई और गहाई हो जाती है। इसलिये किसान भाई इस मशीन का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की मशीन का इस्तेमाल बड़े किसान भाई करते हैं जिनके पास लम्बी चौडी खेती है और समय पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं तो उनके पास इसी तरह की मशीन का ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन इस मशीन की इस कमी को देखते हुए अनेक तरह के आकर्षक रीपर मार्केट में आ गये हें। जिनसे जमीन से 5 सेंटी ऊपर की कटाई की जाती है। इससे किसान भाइयों के समक्ष ठूंठ व पराली वाली समस्या नहीं आती है।  चारे व अन्य काम के लिए बची पुआल भी काम में आ जाती है।

क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

यह मशीन वास्तव में बड़े किसानों के इस्तेमाल के लिए होती है। यह मशीन महंगी होती है तथा इसको किराये पर चलाने के उद्देश्य से भी लिया जा सकता है। यह मशीन सूखे खेत में ही चलाई जा सकती है। जो किसान भाई कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करना चाहें तो प्रॉपलर या ट्रैक्टर में लगाकर इस मशीन को इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह की मशीन बनाने वालों में दशमेशर, हिंद एग्रो, न्यू हिन्द, प्रीत, क्लास आदि ब्रांड के हार्वेस्टर कटर आते हैं। ये चौड़ाई के अनुसार दो फिल्टर्स आते हैं। इनकी चौड़ाई 1 से 10 व 11 से 20 फीट तक होती है। इसके अलावा आप अपनी जरूरत के हिसाब की चौड़ाई वाले फिल्टर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  1. रीपर मशीन (Reaper Machine)

यह भी ब्रश कटर से मिलती जुलती मशीन है। इस मशीन में भी कटर का इस्तेमाल होता है। इस मशीन की खास बात यह है कि यह कई साइजों में आती है। इस मशीन को किसान भाई अपनी क्षमता व जरूरत के हिसाब से लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं अथवा किराये पर लेकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मशीन हाथ ठेले के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है, इसे मिनी ट्रैक्टर या छोटी गाड़ी में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। इसको बड़े ट्रैक्टर में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। यह मशीन धान की फसल की कटाई के लिए तो उपयुक्त है ही। साथ ही गेहूं  सहित अनेक फसलों को भी इससे काटा जा सकता है।

क्या होती है रीपर मशीन (Reaper Machine)

आधुनिक कृषि उपकरणों में इस मशीन की गिनती होती है। यह मशीन ऐसी है जिसे हर तरह का किसान अपनी क्षमता के अनुसार खरीद कर फसल की कटाई आसानी से कर सकता है। जहां पर फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हावेस्टर और ट्रैक्टर नहीं पहुंच पाता है वहां पर यह मशीन काम आती है। यह मशीन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी आती है। मुख्यत: तीन प्रकार की ये मशीन होती है।
    1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)
    2. छोटे वाहन वाली मशीन सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)
    3. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन ट्रैक्टर माउंटेड (Tractor Mounted Machine)
  1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)

यह मशीन मूलत: छोटे किसानों के लिए होती है। यह एक पॉवरफुल मशीन होती है जो हाथों से एक व्यक्ति द्वारा चलाई जाती है। इसमें एक 5 हॉर्सपॉवर का इंजन लगा होता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले इंजन अलग-अलग आते हैं। इसमें आगे की तरफ रीपर में ब्लेड़स लगे रहते हैं जिससे फसल की कटाई की जाती है। इसमें पीछे एक हैंडल लगा होता है और इसमें दो मजबूत रबर के टायर भी लगे होते हैं। हैंडल में दो गियर भी लगे होते हैं। किसान भाई हैंडल को पकड़ कर इस मशीन को खेतों में धकेलते जाते हैं और गियर के इस्तेमाल से फसल की कटाई होती रहती है। यदि इस मशीन को कहीं दूर ले जाना होता है तो इसको मोटर व मशीन को आसानी से अलग-अलग भी किया जा सकता है और इस्तेमाल के समय जोड़ा भी जा सकता है।
  1. छोटे वाहन वाली मशीन यानी सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)

जो किसान मध्यम श्रेणी में आते हैं और जिनकी खेती का रकबा थोड़ा बड़ा होता है, जो थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं तो वे छोटे वाहन यानी सेल्फ प्रॉपलरवाली मशीनों को खरीद कर फसल की आसान कटाई कर सकते हैं। इसमें एक सीटर वाहन होता है। उसमें रीपर में ब्लेड लगे होते हैं। इस एक सीटर वाहन में किसान भाई आराम से बैठ कर रीपर के माध्यम से फसलों की कटाई आसानी से कर सकते हैं। समय, पैसा दोनों ही बचा सकते हैं। ये भी पढ़े: कल्टीवेटर से खेती के लाभ और खास बातें

रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binding Machine)

रीपर बाइंडिंग मशीन ऐसी मशीन होती है जो खेत में फसल की कटाई के साथ पौधों का बडल यानी पूला बना देती है। इससे किसान भाइयों को काफी सुविधा होती है।
  1. ट्रैक्टर माउंटेड मशीन (Tractor Mounted Machine)

यह मशीन बड़े किसानों के लिए होती है। यह मशीन ट्रैक्टर में लगायी जाती है। यह मशीन उन किसानों के लिए है, जिनकी बड़ी काश्तकारी है और उनके पास काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम होती है। ऐसे किसान अपने खेत के काम निपटा कर दूसरों के खेतों पर कटाई का व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह से किसान इसको किराये पर चला कर अपना व्यवसाय भी कर सकते हैं।
तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

* सीधी बिजाई धान क्रांतिकारी संरक्षण/टिकाऊ कृषि तकनीक *

* पर्यावरण हितेषी संरक्षण कृषि तकनीक * भूजल संरक्षण- ग्रीन हाउस गैसें का कम विसर्जन- सुगम फसल अवशेष पराली प्रबंधन! * किसान हितेषी टिकाऊ खेती तकनीक * एक तिहाही भूजल सिचाई, खेती की लागत, श्रम, डीज़ल, बिजली आदि की बचत * झंडा रोग मुक्त फसल व पूरी पैदावार ! फसल विविधिकरण किसान हितेषी वैकल्पिक फसल चक्र से ही सम्भव है! वर्षा ऋतु में आधा प्रदेश जल भराव ग्रस्त होने से, धान फसल का कोई व्यवहायरिक विकल्प नही है। सिवाय भूजल बर्बादी वाली धान की रोपाई पर, क़ानूनी प्रतिबंध 15 जुन की बजाय पहली जुलाई तक बढाकर, भूजल व खेती लागत बचत वाली तर-वत्तर
सीधी बिजाई धान तकनीक को प्रोत्साहन दिया जाए। वैसे भी धान फसल किसान हितेषी (40,000 रूपये/एकड लाभ) होने के साथ-2, राष्ट्रहित मे भी है जो भारत की खाध्य सुरक्षा और 63,000 करोड रूपये वार्षिक निर्यात भी सुनिश्चित करती है ! धान फ़सल से लगातार हो रही भूजल बर्बादी एक गंभीर समस्या है लेकिन लाइलाज नही है। ज़िसे किसान हितेषी व वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित “तर- वत्तर सीधी बिजाई धान" तकनीक को अपनाकर आसानी से हल किया जा सकता है। जो पिछले वर्ष पंजाब में लगभग सात लाख हेक्टर (यानि प्रदेश के कुल धान क्षेत्र के चोथाई हिस्से) और हरियाना मे लगभग 2 लाख हेक्टर भूमि पर सफलता से बहुत बड़े स्तर पर अपनायी गई और लगभग 28 किवंटल प्रति एकड़ की दर से रोपाई धान के बराबर ही पैदावार मिली। तर-वत्तर सीधी धान तकनीक अपनाने से रोपाई धान के बेकार झंझटों (बुआई से पहले खेत में पानी खड़ा करके पाड़े काटना/ कद्दु करना, पौध बोना, उखाड़ना और फिर से लगाना और तीन महीने खेत में पानी खड़ा रखना आदि) से मुक्ति मिलती है और फसल का झंडा/बकानी रोग से भी प्रभावी बचाव होता है । तर- वत्तर सीधी बिजाई धान तकनीक मे बुआई मूँग व गेंहू आदि फ़सलो की तरह बिल्कुल आसान है। जिसे इच्छुक किसान निम्नलिखित विधि अपनाकर, आने वाली पीढ़ियों के भूजल-पर्यावरण संरक्षण और खेती की लागत में भारी बचत कर सकते है। ये भी पढ़े: धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

* तर-वत्तर सीधी बीजाई धान तकनीक *

तर वत्तर सीधी बिजाई धान की तकनीक से बने खेत औरधान की फसल [Paddy fields after direct plantation ]

1) तर-वत्तर सीधी बीजाई धान की किस्मे

धान की सभी किस्मे कामयाब है!

2) बुआई का समय

25 मई से 5 जुन तक अच्छी नमी वाले तर- वत्तर खेत मे करे (मानसुन आगमन से एक महीना पहले बुआई करे) यानि सीधी बीजाई धान की बुआई रोपाई धान की पौध नर्सरी की बुआई के समय पर ही करनी है !

3) सीधी बिजाई धान के लिए खेत की तैयारी

पहले खेत को समतल बनाए, फिर गहरी सिचाई, जुताई व तर-वत्तर (अच्छी नमी) तैयार खेत मे शाम के समय बुआई करे !

4) बीज की मात्रा व उपचार

बुआई से पहले बीज उपचार बहुत ज़रुरी है ! एक एकड के लिए 8 किलो बीज को 12 घंटे 25 लीटर पानी मे डूबोये, फिर 8 घंटे छाया मे सुखाकर, 2 ग्राम बाविस्टीन और एक मि.ली. क्लोरोपायरीफास प्रति किलो बीज उपचार करे !

5) सीधी बिजाई धान की बुआई का तरीका

लाईन से लाईन की दूरी : 8-9 इंच , बीज की गहराई: मात्र एक इंच रखे!  बुआई बीज मशीन के ईलावा छींटा विधि से भी हो सकती है ! बुआई के बाद खेत की नमी बचाने के लिए हलका पाटा(सुहागा) लगाये!

6) खरपतवार नियंत्रण

खरपतवार ज़माव रोकने को, बुआई के तुरंत बाद 1.5 लीटर पेंडामेथेलीन प्रति एकड 200 लीटर पानी मे  छिडकाव ज़रूर करे और आवश्कता पड़ने पर 20- 25 दिन बाद 100 लीटर पानी प्रति एकड मे 100 मि. ली. नामिनी गोल्ड (बिस्पाईरीबेक सोडीयम), या 400 मि.ली. राईस स्टार (फेनोक्सापरोप पी ईथाइल) या 8 ग्राम अलमिक्स (क्लोरीम्यूरान ईथाइल मेटसल्फूरान मिथाइल) या 90 ग्राम कौंसील एकटीव (ट्राईमाफोन 20: एथोक्सीसल्फूरान 10) य़ा 250 ग्राम  2,4- डी 80 प्रतिशत सोडीयम साल्ट का छिडकाव करे!

7) सीधी बिजाई धान की सिचाई

पहली सिचाई देर से 21 दिन के बाद और बाद की सिचाई 10 दिन के अंतराल पर गीला - सुखा प्रणाली से वर्षा आधारित करे ! बुआई के बाद अगर पहले सप्ताह मे बे-मौसम वर्षा से भूमि की ऊपरी सतह पर करंड (मिट्टी सख्त हो), तो तुरंत हलकी सिचाई करे वर्ना धान के उगे नये पौधे भूमि की सतह से बाहर नही निकल पायेंगे ! धान के तर बत्तर खेत [watered paddy fields]  

ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

8) खाद की मात्रा

रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे ! धान फसल मे प्रति एकड सामान्यता 40 किलो नाईट्रोजन, 16 किलो फासफोरस और 8-10 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है!नाईट्रोजन की एक तिहाही और फासफोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय प्रयोग करे, जो एक बेग डी.ए. पी. प्रति एकड से पूरी हो जाती  है! यूरिया और म्यूरेट आफ पोटाश (MOP) उर्वरको का प्रयोग मशीन के खाद बक्से मे नही रखना चाहिए! इन उर्वरको का प्रयोग टाप ड्रेसिंग के रुप मे पहली सिचाई यानि 21दिन बाद करना  चाहिए, उसी समय 10 किलो ज़िंक सल्फेट प्रति एकड भी डालना  चाहिए ! इस विधि से ऊगाई धान फसल की शुरुवाती अवस्था मे अक्सर , आयरन की कमी से पौधो मे पीलापन देखा जाता है उसके लिए, एक प्रतिशत आयरन सल्फेट का छिडकाव एक सप्ताह अंतराल पर दो बार करे ! फसल मे बालिया निसरने पर एक किलो  घूलनशील इफको उर्वरक 13:0:45 प्रति एकड छिडकाव करे !

9) कीट-बिमारीया प्रबंधन

रोपाई धान की अनुमोदित दर और विधि से ही करे, लेकिन ध्यान रखे कि रसायनिक दवायो का प्रयोग अनुमोदित दर से ज्यादा कभी नही करे ! तने की सुंडी (गोभ के  कीडे) के 25-35 दिन के फसल अवस्था पर 8 किलो कारटेप रेत मे  मिलाकर तथा पत्ता लपेट/ तना छेदक के लिए 200 मि .ली . मोनोक्रोटोफास या कलोरोपायरीफास या 400 मि .ली. क्वीनलफास 100 लीटर पानी मे प्रति एकड प्रयोग करे! धान  निसरने के समय, ह्ल्दी रोग या ब्लास्ट से बचाव के लिए 200 ग्राम  कार्बेंडाज़िम या प्रोपीकानाजोल (टिलट) 200 लीटर पानी प्रति एकड छिडकाव करे ! शीट ब्लाईट के लिए 400 मि. ली. वैलिडामाईसिन (अमीस्टार/लस्टर आदि) 200 लीटर पानी प्रति  एकड छिडकाव करे ! फसल मे दीमक की शिकायत होने पर , एक  लीटर कलोरोपायरीफास प्रति एकड सिचाई पानी के साथ चलाये ! धान की लह लहाती फसल [lush green paddy field]

10) सीधी बीजाई तकनीक के बारे मे सावधानिया

- इस विधि से बोयी गई फसल रोपाई धान के मुकाबले पहले 40 दिन हलकी नजर आयेंगी, इसलिये किसान होसला बनाए रखे! - सीधी बुआई धान खारे पानी और सेम व लवनीय भूमि मे खास सफल नही है ! ऐसे क्षेत्रो मे किसान रोपाई धान ही लगाये! - 15 जुन के बाद धान की सीधी बिजाई नही करे और तब रोपाई विधि से धान की खेती फायदेमन्द रहेंगी ! -बुआई समय पर कम तापमान व फसल पकाई समय पर मानसुन वर्षा के कारण साठी धान (मार्च-अप्रेल बुआई) मे सीधी बीजाई तकनीक कामयाब नही है !

11) सुगम पराली (फसल अवशेष) प्रबंधन

सीधी बिजाई धान फसल आमतौर पर रोपाई धान के मुकाबले 7-10 दिन पहले पकती है ज़िससे किसानो को पराली प्रबंधन मे धान कटाई के बाद ज्यादा मिलने से भी पराली प्रबंधन मे सहायता मिलती है ! इस विधि मे किसान जल्दी पकने वाली कम अवधी (125 दिन) की किस्मो पूसा बासमती- 1509, पी.आर -126 आदि की खेती से, धान फसल की कटाई सितम्बर महीने मे कर सकते है! ज़िससे फसल अवशेष (पराली) को भूमि मे दबाकर, गेंहू फसल की बुआई से पहले ढ़ेंचा या मूँग की हरी खाद के लिए फसल ली ज़ा सकती है! जो भूमि ऊर्वरा शक्ती बढाने और पराली जलाने से उत्पन होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने मे भी रामबाण साबित होगी !

डा. वीरेन्द्र सिह लाठर , पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि  अनुसंधान संस्थान, नयी  दिल्ली drvslather@gmail.com