दूध के बाजार में इस बार अजीब उथल पुथल की स्थिति है। यह ओमेक्रोन के खतरे के चलते है या महंगे भूसे, दाने चारे के कारण या किसी और वजह से कह पाना आसान नहीं है लेकिन हालात अच्छे नहीं हैं।
गुजरे कोरोनाकाल में दूध के कारोबार पर बेहद बुरा असर पड़ा। यह बात अलग है दूधिए और डेयरियों को किसी तरह की बंदिश में नहीं रखा गया लेकिन दूध से बनने वाले अनेक उत्पादों पर रोक से दूध की खपत बेहद घटी। चालू सीजन में बाजार में दूध की आवक करीब 25 फीसद कम है। दूध की आवक में कमी के चलते देश के कई कोआपरेटिव संघ एवं मितियां दूध के दाम बढ़ाने की दिशा में निर्णय कर चुके हैं। कुछने तो दाम बढ़ा भी दिए हैं। एक एक संघ रेट बढ़ाता है तो दूसरों को भी कीमत बढ़ानी पड़ती है। नवंबर माह में पिछले साल के मुकाबले इस बार दूध की कीमत दो से तीन रुपए लीटर ज्यादा हैं।
15 रुपए किलो हुआ भूसा
सूखे चारे पर महंगाई की मार से पशुपालक आहत हैं। गेहूं का भूूसा 15 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। एक भैंस को दिन में तकरीबन 10 किलोग्राम सूखे भूसे की आवश्यकता होती है।
सूखे चारे पर महंगाई की मार से किसान भी कराहने लगे हैं। इसके चलते पशुपालन में लगे लोगों ने भी अपने पशुओं की संख्या बढ़ाने के बजाय सीमित की हुई है। इसी का असर है कि ठंड के दिनों में भी बड़ी डेयरियों पर दूध की आवक कमजोर बीते सालों के मुकाबले कमजोर चल रही है।
घाटे का सौदा है दूध बेचना
आईए 10 लीटर दूध की कीमत का आकलन करते हैं। 10 लीटर दूध देने वाली भैंस के लिए हर दिन 10 किलोग्राम भूसे की जरूरत होती है। इसकी कीमत 150 रुपए बैठती है। इसके अलावा एक किलोग्राम दाना शरीर के मैनेजमेंट के लिए जरूरी होता है। इसकी कीमत भी करीब 25 रुपए बैठती है। तकनीबन 300 ग्राम दाना प्रति लीटर दूध पर देना होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध वाले पशु को करीब तीन किलोग्राम दाना, खल, चुनी चोकर आदि चाहिए। यह भी 250 रुपए से कम नहीं बैठता।
इसके अलावा हरा चारा, नमक, गुड़ और कैल्सियम की पूर्ति के लिए खडिया जैसे सस्ते उत्पादों की कीमत जोड़ें तो दुग्ध उत्पादन से पशुपलकों को बिल्कुल भी आय नहीं मिल रही है। गांवों में दूध 40 रुपए लीटर बिक रहा है। यानी 10 लीटर दूध 400 का होता है और पशु की खुराब 500 तक पहुंच रही है। उक्त सभी उत्पादों की कीमत जोड़ें तो 10 लीटर दूध देने वाले पशु से आमदनी के बजाय नुकसान हो रहा है। पशु पालक के श्रम को जोड़ दिया जाए को घाटे की भरपाई असंभव है। किसान दूध से मुनाफा लेने के लिए पशु की खुराक में कटौती करते हैं लेकिन इसका असर उसकी प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसके चलते पशु समय से गर्मी पर नहीं आता। इसके चलते पशु पालक को पशुओं का कई माह बगैर दूध के भी चारा दाना देना होता है। इस स्थिति में तो पशुपालक की कमर टूट जाती है।
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दूध नहीं घी बनाएं किसान
देश के अधिकांश ग्रामीण अंचल में अधिकतर पशु पालक 40 रुपए लीटर ही दूध बेच रहे हैं। भैंस के दूध में औसतन 6.5 प्रतिशत फैट होता है। इस हिसाब से 10 लीटर दूध में करीब 650 ग्राम घी बनता है। गांवों में भी 800 से 1000 रुपए प्रति किलोग्राम शुद्ध घी आसानी से बिक जाता है। घी बनाते समय मिलने वाली मठा हमारे पशुपालक परिवार के पोषण में वृद्धि करती है। इस लिहाज से दूध बेचने से अच्छा तो घी बनाना है। दूध बेचने में खरीददार दूधियों द्वारा भी पशु पालकों के पैसे को रोक कर रखा जाता है। उन्हें समय पर पूरा पैसा भी नहीं मिलता। इसके अलावा ठंड के दिनों में जो दूधिया दूध खरीदता है उसे गर्मियों में दूध देना पशु पालक की मजबूरी बना जाता है।