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आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

किसानों को खेती किसानी के लिए मजबूत बनाने में कृषि वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कड़ी में ICAR की तरफ से आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। कृषकों को सर्दियों के समय अपनी फसलों का संरक्षण करने के उपाय और निर्देश दिए गए हैं। 

आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए महत्वपूर्ण समाचार है। यदि आप भी आलू का उत्पादन करते हैं, तो इस समाचार को भूल कर भी बिना पढ़े न जाऐं।  क्योंकि, यह समाचार आपकी फसल को एक बड़ी हानि से बचा सकता है। दरअसल, सर्दियों के दौरान कोहरा कृषकों के लिए एक काफी बड़ी चुनौती बन जाता है। विशेष रूप से जब कड़ाकड़ाती ठंड पड़ती है। इस वजह से केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम मेरठ (ICAR) ने आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है।

ICAR की एडवाइजरी में क्या क्या कहा गया है ?

ICAR की इस एडवाइजरी में कृषकों को यह बताया गया है, कि वे अपनी फसलों को किस तरह से बचा कर रख सकते हैं। कुछ ऐसे तरीके बताए गए हैं, जो कि सहज हैं और जिनसे आप अपनी फसलों को काफी सुरक्षित रख सकेंगे। यदि किसान के पास सब्जी की खेती है, तो उसे मेढ़ पर पर्दा अथवा टाटी लगाकर हवा के प्रभाव को कम करने पर कार्य करना चाहिए। ठंडी हवा से फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचती है। इसके अतिरिक्त कृषि विभाग की तरफ से जारी दवाओं की सूची देखकर किसान फसलों पर स्प्रे करके बचा सकते हैं। सर्दियों में गेहूं की फसल को कोई हानि नहीं होती है। हालांकि, सब्जियों की फसल काफी चौपट हो सकती है। ऐसी स्थिति में कृषकों को सलाह मशवरा दिया गया है, कि वह वक्त रहते इसका उपाय कर लें।

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किसान भाई आलू की फसल में झुलसा रोग से सावधान रहें 

ICAR के एक प्रवक्ता का कहना है, कि आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है। इसकी वजह फंगस है, जो कि झुलसा रोग या फाइटोथोड़ा इंफेस्टेस के रूप में जाना जाता है। यह रोग आलू में तापमान के बीस से पंद्रह डिग्री सेल्सियस तक रहने पर होता है। अगर रोग का संक्रमण होता है या वर्षा हो रही होती है, तो इसका असर काफी तीव्रता से फसल को समाप्त कर देता है। आलू की पत्तियां रोग के चलते किनारे से सूख जाती हैं। किसानों को हर दो सप्ताह में मैंकोजेब 75% प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। अगर इसकी मात्रा की बात करें तो यह दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के तौर पर होनी चाहिए।

आलू की खेती में इन चीजों का स्प्रे करें

प्रवक्ता का कहना है, कि संक्रमित फसल का संरक्षण करने के लिए मैकोजेब 63% प्रतिशत व मेटालैक्सल 8 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम व मैकोनेच संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में 200 से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इसके अतिरिक्त, तापमान 10 डिग्री से नीचे होने पर किसान रिडोमिल 4% प्रतिशत एमआई का इस्तेमाल करें। 

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अगात झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह से होता है। इसकी वजह से पत्ती के निचले भाग पर गोलाकार धब्बे निर्मित हो जाते हैं, जो रिंग की भांति दिखते हैं। इसकी वजह से आंतरिक हिस्से में एक केंद्रित रिंग बन जाता है। पत्ती पीले रंग की हो जाती है। यह रोग विलंब से पैदा होता है और रोग के लक्षण प्रस्तुत होने पर किसान 75% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण, मैंकोजेब 75% प्रतिशत विलुप्तिशील पूर्ण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण को 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर पर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। 

गेहूं चना और आलू की खेती करने वाले किसान कैसे बचा सकते हैं अपनी फसल

गेहूं चना और आलू की खेती करने वाले किसान कैसे बचा सकते हैं अपनी फसल

मौसम की अनिश्चितताओं के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने मौसम के बदलते मिज़ाज को देखते हुए खेती से जुड़ी एक एडवायजरी जारी की है। ताकि इस बार सही समय पर सही कदम उठाते हुए फसलों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके। विभाग द्वारा किसानों को सलाह दी गई है, कि अगर उनके इलाके में ज्यादा बारिश हुई है तो अपनी खड़ी फसल में अब वे सिंचाई ना करें।

कैसे कर सकते हैं किसान गेहूं की फसल की निगरानी

इस मौसम में गेहूं की फसलों में रतुआ रोग काफी ज्यादा देखने को मिलता है। माना जा रहा है, कि अगर इस रोग पर पहले से ध्यान दिया जाए तो फसल को इससे होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। अगर गेहूं की फसल में पत्तियों पर आपको काले, पीले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई दे रहे हैं। तो तुरंत डाइथेन एम-45 की 2.5 ग्राम मात्रा एक लीटर पानी में मिलाकर पूरी फसल पर छिडकाव करें। ऐसा करने से फसल को इस रोग से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
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पीला रतुआ रोग गेहूं में 10-20°C तापमान के बीच होता है। अगर तापमान 25 डिग्री से ऊपर चला जाए तो रोग गेहूं को प्रभावित नहीं करता है। इसी तरह से भूरा रतुआ रोग 15-25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर होता है। साथ ही, भूमि में नमी हो तो ये और फैल जाता है।

चने की फसल में कैसे करें कीट से बचाव

चने की फसल को छेदक कीट लगने का खतरा बन रहता है। अगर फसल में फुल आ गए हैं तो 3 से 4 फैरोमेन ट्रैप प्रति एकड़ के हिसाब से लगाने पर इससे बचा जा सकता है।

आलू की फसल का बचाव कैसे करें

अगर आपने आलू की खेती की है तो इसमें झुलसा रोग होने की संभावना रहती है। एक बार इस रोग के लक्षण देखते ही 2 ग्राम कैप्टान एक लीटर पानी में मिलाकर पूरी फसल पर छिडकाव करें।